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Important Questions: कठपुतली | Hindi (Vasant II) Class 7 (Old NCERT) PDF Download

अति लघु उत्तरीय प्रश्न:-    (1 अंक)


प्रश्न 1: कविता "कठपुतली" के रचयिता का नाम बतायें।
उत्तर:
"भवानीप्रसाद मिश्र" इस कविता के रचयिता का नाम है।

प्रश्न 2: निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
1.आगे
2.इच्छा
उत्तर:

1.आगे - पीछे
2.इच्छा - अनिच्छा

प्रश्न 3: निम्न शब्दों के शब्दार्थ लिखिए।
1.कठपुतली
2.छूए
उत्तर:

1.कठपुतली - धागे से हिलने-डुलने वाले खिलौने|
2.छूए - स्पर्श, संपर्क

प्रश्न 4: निम्न शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए।
इच्छा , गुस्सा |
उत्तर:
इच्छा - मर्ज़ी, इरादा ,मन |
गुस्सा - क्रोध, नाराजगी |

प्रश्न 5: मुझे मेरे ............ छोड़ दो। पंक्ति को पूरा करो।
उत्तर:
मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।

लघु उत्तरीय प्रश्न:-    (2 अंक)


प्रश्न 6: कविता में कठपुतली किस पर गुस्सा कर रही है?
उत्तर:
कविता में कठपुतली धागे पर गुस्सा कर रही हैं। वह ऐसा इसलिए कर रही है क्यूँकि उसे लगता हैं  उसकी जीवन रुपी डोर धागे पर निर्भर हैं।  

प्रश्न 7: कठपुतली के मन में कैसी इच्छा जाग्रत हुई |
उत्तर:
कठपुतली के मन में यह इच्छा जाग्रत हुई ,कि वह धागों से आज़ादी प्राप्त कर के अपनी  स्वयं की पहचान बनाएगी |कठपुतली के मन में आज़ादी से जीने की इच्छा जाग्रत हुई|

प्रश्न 8: कठपुतली धागे से क्‍यों गुस्सा हैं?  
उत्तर:
कठपुतली धागे से इसलिए गुस्सा है, क्‍योंकि धागे ने उसको पकड़ रखा हैं। धागे की पकड की वजह से वह खुद को आजाद महसूस नहीं कर पा रही थी|

प्रश्न 9: कठपुतली क्या चाहती है?
उत्तर:
कठपुतली यह चाहती थी, कि वह अपने पैरों पर चले ,बिना धागे का सहारा लिए |अर्थात उस को धागे कि कभी जरूरत ना पड़े |बिना धागे के आज़ादी से आगे बढ़े |

प्रश्न 10: कठपुतली धागे को क्‍या कहती है?
उत्तर:
कठपुतली से कहती है, कि धागों तुम मेरे आगे – पीछे क्यों रहते हो। कठपुतली धागों से आज़ादी चाहती है |तुम मुझसे अलग हो जाओ ताकि में स्वयं को स्वतंत्र समाज सकू |

लघु उत्तरीय प्रश्न:-    (3 अंक)


प्रश्न 11: कठपुतली गुस्से से उबली,
बोली-ये धागे क्‍यों हैं, मेरे पीछे-आगे?
उपरोक्त पंक्तियों का आशय व्यक्त करो।
उत्तर:
कवि कहते है, कि कठपुतली गुस्सा हो जाती है, क्योंकि वह एक धागे से बंधी है ,और वह आजाद होने की इच्छा  प्रकट करती है।वह बोलती है,की क्यों ये धागे हमेशा मेरे साथ रहते है | मैं इनसे खुद को मुक्त क्यों नहीं कर सकती|मैं अपने पैरो पर खड़ी होना चाहती हूँ|

प्रश्न 12: “इन्हें तोड़ दो;
मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।“
उपरोक्त पंक्तियों का आशय व्यक्त करो।
उत्तर:
दुख से बाहर निकलने के लिए एक कठपुतली बगावत कर ती है, और कहती है कि इस धागे को तोड़ दो और मुझे अपने पैरों खड़ा होने दो से आशय यह है,कि मैं भी आजाद होना चाहती हूँ।स्वयं को आजाद करना चाहती है ताकि उसको धागे के सहारे की जरूरत ना पड़े |बंधन से मुक्त होना चाहती हूँ|वह धागे से अपनी पहचान नहीं अपितु स्वयं कि पहचान बनाना क्गाहती है

प्रश्न 13: पहली कठपुतली सोचने लगी,
ये कैसी इच्छा,
मेरे मन में जगी?
उपरोक्त पंक्तियों का आशय व्यक्त करो।
उत्तर:
जब पहली कठपुतली आजाद होने के लिए बगावत करती है, तो उसके साथकी सभी कठपुतलियाँ भी हाँ में हाँ मिलाती हैं |आशय है कि जिस प्रकार मै अपने आप को बंधन से मुक्त करना चाहती हूँ, उसी प्रकार बाकि सब कठपुतलियोंकी मुक्ति की भी जिम्मेदारी भी में लेकर सब को मुक्त कराना चाहती है | कठपुतली सोचती है, कि वह बाकि सब कठपुतलियों कि जिम्मेदारी उठा सकने में सक्षम है | ये सब सोच कर वह चिंतित है कि वो जो करने जा रही है वो कर पायेगी|

प्रश्न 14: पहली कठपुतली में अच्छी बात क्या है?
उत्तर:
पहली कठपुतल्री में अच्छी बात यह है, कि वह दूसरी कठपुललियों को पसंद करती थी ,और पहली कठपुतली स्वतंत्र होने की बात कर रही थी, और दूसरी कठपुतलियो के बंधन से मुक्त होना चाहती थी। वह केवल स्वय के लिए नहीं अपितु अपनी सखियों के विषय सोचती है|अर्थात वो अपने साथ साथ सब सखियों कि भी स्वतंत्रता चाहती है |ताकि सब आगे भी साथ ही रहे|

प्रश्न 15: कठपुतली गुस्से से उबली
बोली ,ये धागे क्यों हैं मेरे पीछे-आगे?
उपरोक्त पंक्तियों का आशय व्यक्त करो।
उत्तर:
पंक्तियों में कवि 'भवानीप्रसाद मिश्र" कहते है, कि कठपुतली गुस्सा है ,और धागे से पूछती है, कि अरे! धागों मेरे आगे - पीछे क्यों ? पड़े हो। मुझे छोड़ दो, मैं भी आजाद होना चाहती हूँ Iतुम मुझे स्वतंत्र  नहीं करना चाहते और सदैव मेरे आगे पीछे आते रहते है |मैं तुमसे अलग होकर अपनी पहचान से जीना चाहती  हूँ|ये सब कठपुतली धागे को गुस्से में बोलती है |  

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न:-    (5 अंक)               


प्रश्न 16: "सुनकर बोलीं और-और
कठपुतलियाँ
कि हां,”
उपरोक्त पंक्तियों का आशय व्यक्त करो।
उत्तर:
दुख से बाहर निकलने के लिए जब एक कठपुतली बगावत कर देती है , तो उसकी बात सभी कठपुतलियों को अच्छी लगती है ,और फिर सब कठपुतलियाँ उसके  प्रतिध्वनि करती हैं और कहती है कि हमको भी मुक्त करो । हम सब अपने पैरों पर खड़ा होना चाहते है। आशय है, कि जब एक कठपुतली स्वतंत्र होने बात करती है, तो सब कठपुलियो को उसकी बात ठीक लगती है , वो सब उसका समर्थन करती है ,ताकि वो सब भी स्वतंत्र हो जाए और स्वयं अपने पैरो  पर खड़ी हो सके |अर्थात प्रत्येक जीव और वस्तु को आज़ादी  से प्रेम होता है|कठपुतलिया स्वयं कि पहचान बनाना चाहती है ,और आज़ादी से बिना धागे के जीवन का आनंद लेना चाहती है |

प्रश्न 17: पहली कठपुतत्री ने दूसरी कठ्पुलियों को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर:
पहली कठपुतल्री ने जब खुद को... आजाद करने की बात धागे से कहती है .. , तो उसकी बात सुनकर॒ दूसरी  कठपुतलियों के मन में भी आजादी होने इच्छा जाग उठती है। इस तरह पहली कठपुतली दूसरों को प्रभावित करती है।कठपुतलियाँ ये सुनकर बहुत प्रभावित होती है|सब अपना समर्थन देती है |वो कहती है कि किसी एक ने तो आजाद होने कि बात सोची तो क्यों ना हम सब भी उसको अपना समर्थन दे |तब ही हम सब स्वतंत्र हो पाएंगे |अर्थात किसी भी कठिन कार्य को करने के लिए किसी ना किसी को तो पहल करनी पडती है ,इसी प्रकार एक कठपुतली आगे बढ़ी तो बाकि सबने उसका समर्थन किया |ताकि सब अपनी पहचान बना कर जी सके|

प्रश्न 18: कठपुतलियों अपने पैरों पर खड़ा क्‍यों नहीं हो सकती है?
उत्तर:
कठपुतलियाँ अपने पैरो इसलिए नहीं खड़ी  हो सकती थी, क्यूँकि जैस की हम लोग जानते है, कि कठपुतलियाँ धागे से बंधी हुई होती है। इसलिए वह अपने पैरों पर खड़ा  होंने में असमर्थ है | धागे से आजाद होने के बाद ही वो अपने पैरो पर खड़ी हो सकती है| उन्हें इस बात का बहुत दुःख है कि वे कब धागों से मुक्त होकर स्वयं अपने पैरो पर खड़ी होंगी |अतः धागे से मुक्ति ही उन्हें  पैरो पर खड़ा कर सकती है |जब तक धागा उनको सहारा देता रहेगा तब तक वो स्वयं नहीं चल सकती |और उनकी पहचान केवल धागे से होगी ,धागे के अभाव में अधूरी होगी | इसलिए धागे से मिली पहचान से वो आज़ादी चाहती है |धागे से मुक्त होकर ही वो अपने पैरो पर खड़ी हो सकती है|

प्रश्न 19: “बहुत दिन हुए"
हमें अपने मन के छंद छुए।“
उपरोक्त पंक्तियों का आशय व्यक्त करो।
उत्तर:
यहाँ 'मन के छंद से भाव है ,कि कठपुतली' मन की प्रसन्नता को दर्शाते हुए  कहती है, कि लंबे समय से हमने अपनी मर्जी से अपनी खुशी के लिए  कुछ भी नहीं किया है। इस कारणवश हमारे मन की इच्छाएं समाप्त हो गई हैं। और हमारे मन का दुःख दूर नहीं हुआ है।हम जो करते है वो धागे कि मर्ज़ी से करते है|हमें जैसे चाहे वैसे हिलाता डूलाता  है |हम विवश है, इस कारण मन की सब इच्छाए समाप्त हो गयी है|हम मुक्त होकर ही प्रसन्न हो सकते है हमारी ख़ुशी केवल स्वतंत्र होने में ही है | अर्थात जब हम किसी के बंधन में होते है ,तो हमारी कोई मर्जी या पहचान नहीं होती जिस से हमारे मन कि सभी इच्छाऐ समाप्त हो जाती है |ऐसा लगता है जीवन का आधार ही नहीं है कुछ |जीवन तो किसी दुसरे के हाथ में है |इसलिए आज़ादी में ही जीवन है अन्यथा सब व्यर्थ है|

प्रश्न 20: आजादी की बात कहने के पश्चात् पहली कठपुतली क्‍या सोचने लगी?
उत्तर:
पहले कठपुतली ने अपनी इच्छा व्यक्त तो कर दी थी| लेकिन बाद में सोचनेलगी,  कि उसके पास स्वतंत्र होने की क्षमता है या नहीं। अकेले स्वतंत्र होना अलग बात है .और दूसरों को स्वतंत्र बनाना अलग बात है। उसे लगा कि उसकी आयु अभी इतनी नहीं है, कि वह सभी की जिम्मेदारी ले सके | इस प्रकार उसे लगा कि जो वो कर रही है ,वो ठीक भी है ,या नहीं| वो सब कि जिम्मेदरी उठा पाएगी या नही | ये उसके लिए चिंता का विषय बनता जा रहा था|अतः वह सोच में पड गयी, कि जो वो करने जा रही वो उसको किस प्रकार कर पायेगी |सब सखियों के साथ आजाद होने कि खुशी भी थी| और साथ में ये दुःख  भी था, कि हम सब आखिर आजाद हो भी पाएंगे |और यदि होंगे तो किस प्रकार इतनी आयु है, या नहीं |और सबसे बड़ी बात कि इतनी हिम्मत हम कर पयेंगे या नहीं |

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