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श्रीलंका के 13वें संबैधानिक संशोधन संबंधी विवाद


संदर्भ:

1987 के ऐतिहासिक भारत-श्रीलंका समझौते के पश्चात श्रीलंका के संविधान में 13वें संशोधन का कार्यान्वयन तीन दशकों से अधिक समय से एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। इसके अधिनियमन के बावजूद, नृजातीय समुदायों के बीच परस्पर विरोधी मत, राजनीतिक धारणाओं और कानूनी बाधाओं जैसे विभिन्न कारकों ने इसके पूर्ण कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न की है।

The Hindi Editorial Analysis- 8th December 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

ऐतिहासिक पृष्ठभूमिः

  • श्रीलंका में नृजातीय-राजनीतिक मुद्दे की जड़ें उत्तर औपनिवेशिक काल से जुड़ी हुई हैं, जो सिंहली-बौद्ध राष्ट्रवाद के उद्भव से सम्बद्ध हैं। बहुसंख्यक सिंहली समुदाय के हितों का समर्थन करने वाले राजनेताओं के कार्यों ने अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से तमिलों के बीच मोहभंग उत्पन्न कर दिया । 1950 और 1960 के दशक में समझौतों और संधियों के माध्यम से इन मुद्दों का समाधान करने के प्रारंभिक प्रयास विफल रहे, परिणामस्वरूप संघवाद स्थापित नहीं हुआ। 1972 के गणतांत्रिक संविधान से अल्पसंख्यकों के अधिकार और अधिक हाशिए पर चले गए, इससे राष्ट्रीयता और स्वाभिमान पर तमिलों का रुख और मुखर हो गया।
  • 1983 में तमिल विरोधी दंगों ने भारत को हस्तक्षेप करने के लिए प्रेरित किया। 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते ने श्रीलंका को एक बहुभाषी, बहु-नृजातीय समाज के रूप में मान्यता दी और 13वें संबैधानिक संशोधन का मार्ग प्रशस्त किया। इस संशोधन के माध्यम से प्रांतों को शक्तियों के हस्तांतरण की शुरुआत हुई।

13वां संशोधन क्या है?

14 नवंबर, 1987 को अधिनियमित, 13वें संबैधानिक संशोधन ने तमिल और सिंहली को आधिकारिक भाषाओं और अंग्रेजी को एक संपर्क भाषा के रूप में स्वीकारने सहित कई महत्वपूर्ण बदलाव किए। हालांकि, इसकी प्रभावशीलता को एक कठोर एकात्मक राज्य के ढांचे में इसके एकीकरण ने प्रभावित किया। राज्यपाल की व्यापक शक्तियां, प्रांतीय निर्णयों को अमान्य करने की केंद्रीय कार्यपालिका की क्षमता और विधायी स्वायत्तता के बारे में अनिश्चितताओं ने प्रांतों को शक्तियों के हस्तांतरण में बाधा उत्पन्न की है।

कानूनी विकास प्रक्रिया एवं राजनीतिक पहलूः

  • 1987 के प्रांतीय परिषद अधिनियम ने भारत-श्रीलंका समझौते के तहत पूर्वोत्तर प्रांत बनाने के लिए उत्तर और पूर्व को मिलाकर श्रीलंका में नौ प्रांत बनाए।
  • इसने अलगाववाद की आशंका से सिंहली समुदाय की प्रतिक्रिया को जन्म दिया। 1990 में, पूर्वोत्तर प्रांत के मुख्यमंत्री ने एक स्वतंत्र ईलम की घोषणा की, जिससे प्रांतीय परिषद भंग हो गई।
  • 1995 और 2001 में 13वें संबैधानिक संशोधन में संशोधन के प्रयासों को सिंहली विरोध और अतिवादी लिट्टे के प्रस्तावों जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • राष्ट्रवादी दलों द्वारा समर्थित महिंदा राजपक्षे को 2005 में नेतृत्व प्रदान करने का उद्देश्य एकात्मक स्थिति को बनाए रखना था।
  • 2006 में, सर्वोच्च न्यायालय ने 1987 के विलय को "अमान्य" करार देते हुए सिंहली याचिकाकर्ताओं को खुश किया, लेकिन तमिलों में निराशा पैदा की। 1988 से, उत्तर और पूर्वी प्रांतों का सैन्यीकरण किया गया है।

वर्तमान परिप्रेक्ष्यः

  • श्रीलंका में लिट्टे (LTTE - Liberation Tigers of Tamil Eelam) के अंत के पश्चात एक पृथक ईलम के समर्थन के स्थान पर 13वें संबैधानिक संशोधन का पूर्ण कार्यान्वयन केन्द्रीय मुद्दा बन गया है। आम तौर पर तमिल इसका समर्थन करते हैं, जबकि सिंहली इसका विरोध करते हैं।
  • राष्ट्रपति विक्रमसिंघे के हालिया कार्यों ने विभिन्न प्रतिक्रियाओं को प्रेरित किया है। विपक्षी दल 13वें संशोधन के खिलाफ हैं और नेशनल पीपुल्स पावर के सांसद इसके स्थायित्व पर सवाल उठाते हैं। कुछ बौद्ध धर्मावलंबियों ने संसद के नजदीक इसकी एक प्रति जलाकर कड़ा विरोध व्यक्त किया। तमिल समुदाय राष्ट्रपति की प्रतिबद्धता का स्वागत करता है, लेकिन राजनीतिक दल पिछले अनुभवों के कारण सतर्क भी हैं।
  • अरगलया संघर्ष ने सिविल मामलों में सेना की भूमिका के बारे में चिंता उत्पन्न की है, जिसमें मुख्य मुद्दा उत्तर और पूर्व के सैन्यीकरण को संबोधित करने के बजाय सैन्य बजट पर केंद्रित था। यह इन प्रांतों के लिए राजनीतिक स्वायत्तता के प्रति सिंहली झुकाव की कमी को दर्शाता है।
  • राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में एक संघीय राज्य का विरोध एवं प्रांतों को सत्ता हस्तांतरण का समर्थन करते हुए एकात्मक राज्य की स्थापना का समर्थन किया। 13वें संबैधानिक संशोधन के प्रति उनका झुकाव यूएनएचआरसी (UNHRC) के प्रस्ताव, यूरोपीय संघ के जीएसपी + (Generalised Scheme of Preferences Plus +) से लाभ प्राप्त करने और श्रीलंकाई तमिल प्रवासियों के दबाव जैसे कारकों से प्रभावित है।

भारत की संबद्धता:

  • भारत सरकार श्रीलंका में अलगाववाद को लगातार खारिज करने के साथ एक संयुक्त श्रीलंका के अंतर्गत नृजातीय मुद्दे के लिए एक राजनीतिक सुलह प्रक्रिया पर जोर देती है। लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ संरेखित बातचीत के समाधान के लिए भारत की प्रतिबद्धता के बावजूद, कुछ लोग इसे "बड़े भाई के रवैये"( Big brotherly attitude ) के रूप में देखते हैं।
  • भारत और श्रीलंका के बीच "लोगों से लोगों" का संबंध, विशेष रूप से श्रीलंका में 15% तमिल आबादी के साथ, सांस्कृतिक समझौतों और जाफना सांस्कृतिक केंद्र जैसी पहलों से सशक्त होता है। इनमें रामायण सर्किट जैसे तीर्थयात्रा मार्ग और भारत द्वारा श्रीलंकाई छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करना भी महत्वपूर्ण हैं।
  • राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने फ्रांस 24 (न्यूज चैनल) के साथ एक साक्षात्कार में भारत के खिलाफ इस मुद्दे के प्रयोग को रोकने के लिए श्रीलंका की तटस्थता और प्रतिबद्धता को दोहराया। हालांकि, हम्बनटोटा बंदरगाह में चीन-श्रीलंका संबंधों के बारे में भारत की चिंताएं बनी हुई हैं। जुलाई 2023 में विक्रमसिंघे की हालिया भारत यात्रा ने सकारात्मक बदलावों को बढ़ावा दिया है।
  • प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंका में तमिल भाषी लोगों की आकांक्षाओं को प्राथमिकता दी है और 13वें संशोधन के पूर्ण कार्यान्वयन पर जोर दिया है। भारत विस्थापित प्रवासियों और मछुआरों सहित घरेलू एवं साझा मुद्दों को संबोधित करने पर जोर देता है।

निष्कर्ष:

राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के सकारात्मक उपाय, जिनमें सर्वदलीय सम्मेलन एवं राष्ट्रीय सुलह कार्यक्रम और पूर्वोत्तर विकास पर चर्चा शामिल हैं, तमिल आकांक्षाओं के लिए आशा प्रदान करते हैं। 13 वें संशोधन की सीमाओं को देखते हुए इसे पूरी तरह से लागू करने पर ही ध्यान केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि समस्या का समाधान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। विशेष रूप से, विमर्श प्रक्रिया में नागरिक समाजों को शामिल करना और राजनीतिक दलों के सम्मेलनों में उनकी जरूरतों को प्राथमिकता देना आवश्यक है।

राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने संसद में प्रबलता से कहा कि एक संपन्न प्रांतीय परिषद प्रणाली में महत्वपूर्ण समग्र परिवर्तन की क्षमता है। श्रीलंका में चल रहे आर्थिक पुनर्निर्माण कार्यक्रमों के बावजूद, लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने से ही एक राष्ट्र के रूप में सच्ची समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में पूर्ण विसैन्यीकरण, पुलिस, भूमि एवं शिक्षा शक्तियों के पूर्ण हस्तांतरण, चुनाव कराने और इन क्षेत्रों को पर्याप्त धन आवंटित करने की आवश्यकता है।

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