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The Hindi Editorial Analysis- 9th December 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

खाद्य सुरक्षा योजनाएं और आहार विविधीकरण


संदर्भ:

  • कुपोषण के संदर्भ में, विशेष रूप से बच्चों के लिए भारत की चुनौतियां, नीति निर्माण में एक आदर्श बदलाव की तात्कालिकता को रेखांकित करती हैं।
  • हमें खाद्य सुरक्षा, आहार विविधीकरण और पोषण संबंधी परिणामों के बीच के जटिल संबंधों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • लगभग तीन में से एक भारतीय बच्चे का अविकसित और कम वजन का होना, इस महत्वपूर्ण मुद्दे को हल करने के लिए दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता पर जोर देता है।

The Hindi Editorial Analysis- 9th December 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

पोषण युक्त भोजन के लिए आहार विविधीकरण की अनिवार्यताः

व्यापक कुपोषण को दूर करने के लिए भारतीय खाद्य प्रणाली में पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। स्टंटिंग (Stunting) और वेस्टिंग (Wasting) वाले बच्चों की अधिकता वाले आंकड़ों के संदर्भ में आहार विविधीकरण एक महत्वपूर्ण रणनीति के रूप में कार्य करता है। विटामिन, खनिज और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर फलों, सब्जियों और दालों जैसे विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के उपभोग को बढ़ावा देकर कुपोषण को कम किया जा सकता है।

प्रोटीन न्यूनता चुनौतीः

  • भारत में प्रति दिन 47 ग्राम की औसत प्रोटीन खपत एशियाई और विकसित देशों में सबसे कम है। इस कमी को दूर करने के लिए, दालों, फलियों, डेयरी और मांस जैसे प्रोटीन युक्त खाद्य उत्पादों को शामिल करना आवश्यक है।
  • विकास और समग्र स्वास्थ्य के लिए प्रोटीन सेवन की गुणवत्ता को बढ़ाना सर्वोपरि हो जाता है। इसके अतिरिक्त, भोजन का सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर होना एक लाभकारी रणनीति के रूप में मौजूद है, विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों जैसे कमजोर समूहों के लिए।

आहार विविधीकरण के दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभः

  • तत्काल पोषण परिणामों से परे, आहार विविधीकरण आहार से संबंधित बीमारियों के जोखिम को कम करके और स्वास्थ्य चुनौतियों के प्रति सामुदायिक लचीलापन बढ़ाकर दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
  • खाद्य उत्पादों में लौह, विटामिन - A और जस्ता जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों का समावेशन विशिष्ट पोषण संबंधी कमियों का मुकाबला करने हेतु महत्वपूर्ण हो जाता है। हालांकि, इस तरह की रणनीतियों की सफलता इसकी स्वीकार्यता और अनुपालन तथा क्षेत्रीय और सांस्कृतिक आहार प्राथमिकताओं पर भी निर्भर करती है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और आहार विविधीकरण के अवसरः

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), जो मुख्य रूप से गेहूं और चावल उपलब्ध कराती है, आहार विविधीकरण के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में कार्य करती है। इसकी क्षमता को पहचानते हुए, सरकार ने PDS में मोटे अनाज की शुरुआत की है और उत्पादन एवं खपत को बढ़ाने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया है। हालांकि, असमान रूप से अपनाने, खरीद में देरी और कम शेल्फ लाइफ जैसी चुनौतियां मोटे अनाज की व्यापक स्वीकृति में बाधा डालती हैं।

PDS में मोटे अनाज और चुनौतियांः

  • हालांकि मोटे अनाज को PDS में शामिल किया गया है, किन्तु इसकी स्वीकार्यता राज्यों में भिन्न- भिन्न है। कुछ राज्य चावल और गेहूं पसंद करते हैं, जिससे मोटे अनाज को कम अपनाया जाता है।
  • इसके लिए मोटे अनाज के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने तथा खरीद में देरी और शेल्फ-लाइफ जैसी चिंताओं से संबंधित चुनौतियों को दूर करने की आवश्यकता है।

PDS के माध्यम से खाद्य सुदृढ़ीकरण (फोर्टिफिकेशन) पहलः

  • 2024 तक PDS, ICDS, पीएम पोषण (मध्याह्न भोजन योजना) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से चावल फोर्टिफिकेशन को लागू करने की सरकार की योजना एक सकारात्मक कदम है।
  • FSSAI द्वारा परिभाषित फोर्टिफिकेशन का उद्देश्य आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों को बढ़ाकर मुख्य भोजन की पोषण गुणवत्ता में सुधार करना है। हालांकि, इसकी सफलता के लिए प्रभावी कार्यान्वयन और विद्यमान चुनौतियों का समाधान महत्वपूर्ण है।

पोषण उद्यानों और स्कूल की पहलों के माध्यम से उपभोग को प्रोत्साहित करनाः

दालों, फलियों और स्थानीय रूप से प्राप्त उत्पादों की खपत को बढ़ावा देना आहार विविधीकरण का अभिन्न अंग है। महामारी के दौरान मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने वाली प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना जैसी पहल सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। इसके अतिरिक्त, पोषण/सामुदायिक उद्यान और स्कूल रसोई उद्यान आहार विविधता को बढ़ाने के लिए बेहतर मॉडल प्रदान करते हैं।

आहार विविधता के लिए पोषण उद्यानः

  • पोषण उद्यान, विशेष रूप से आंगनवाड़ी केंद्रों और स्कूलों में फलों और सब्जियों की निरंतर आपूर्ति प्रदान करके आहार विविधता में योगदान करते हैं।
  • बागवानी विभागों के साथ मिलकर विकसित किए गए ये उद्यान बच्चों और गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं के पोषण में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

स्कूल रसोई उद्यान पहल:

  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, स्कूल रसोई उद्यानों का उद्देश्य बच्चों के पौष्टिक भोजन विकल्पों के बारे में जागरूकता विकसित करना है।
  • ओडिशा, झारखंड और कर्नाटक के सरकारी स्कूलों के उदाहरण शैक्षिक प्रणाली में रसोई उद्यानों के सफल एकीकरण पर प्रकाश डालते हैं।
  • इसके अलावा, पूर्वोत्तर राज्यों में स्थानीय और स्वदेशी खाद्य पदार्थों के पोषण संबंधी लाभ आहार विविधीकरण में क्षेत्रीय विविधता की भूमिका पर बल देते हैं।

सतत खाद्य सुरक्षा के लिए कृषि विविधता को बढ़ावा देनाः

खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण स्थिति प्राप्त करने के लिए, एक व्यापक दृष्टिकोण में उत्पादन और उपभोग विविधता दोनों शामिल हैं।

सतत कृषि के लिए कृषि विविधताः

  • फसल विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करने वाले कृषि अनुसंधान और विकास कार्यक्रम अधिक विविधतापूर्ण खाद्य आपूर्ति में योगदान करते हैं।
  • विविधतापूर्ण पोषण वाली फसलों की एक विस्तृत श्रृंखला की खेती न केवल सतत कृषि को बढ़ावा देती है, बल्कि समुदायों के लिए एक निरंतर और विविधतापूर्ण खाद्य स्रोत भी सुनिश्चित करती है।

जागरूकता और बाजार हस्तक्षेप की भूमिकाः

  • हालांकि फोर्टिफिकेशन और पूरकता का अपना महत्व है, किन्तु आहार विविधता के लिए भोजन-आधारित दृष्टिकोण भी एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरा है।
  • जागरूकता बढ़ाना और लोगों को विविधतापूर्ण और संतुलित आहार के महत्व के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण घटक हैं।
  • बाजार हस्तक्षेप, जैसे कि कृषि बाजार जो विविध ताजा खाद्य उत्पादों की सीधी बिक्री की सुविधा प्रदान करते हैं, उपभोक्ताओं को अपने आहार में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

निष्कर्ष:

भारत के पोषण परिदृश्य को पुनर्जीवित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो आहार विविधीकरण, सुदृढ़ीकरण पहल, कृषि विविधता और जागरूकता अभियानों को एकीकृत करता है। नीति निर्माताओं को क्षेत्रीय विविधता, सांस्कृतिक प्राथमिकताओं और विभिन्न जनसांख्यिकीय समूहों की विशिष्ट पोषण संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए त्वरित सुधारों पर दीर्घकालिक समाधानों को प्राथमिकता देनी चाहिए। इन व्यापक रणनीतियों को अपनाकर, भारत एक स्वस्थ और सक्षम जनसांख्यिकीय सुनिश्चित करते हुए अपनी पोषण चुनौतियों का समाधान कर सकता है।

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