गुटनिरपेक्षता और उपनिवेशवाद विरोध जैसे प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित भारत की विदेश नीति पर उपनिवेशवाद का प्रभाव लंबे समय तक रहा। लेकिन वर्तमान सरकार के तहत, भारत की विदेश नीति में व्यापक परिवर्तन आया है। हाल के भू-राजनीतिक परिवर्तन वैश्विक मुद्दों पर भारत के रुख को फिर से परिभाषित कर रहे हैं। इस बदलाव को समझने के लिए इजरायल-गाजा संघर्ष एक महत्वपूर्ण मानक बनकर उभरा है।
स्वतंत्रता के बाद जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने शीत युद्ध के दौरान "रणनीतिक स्वायत्तता" और “गुटनिरपेक्षता” की नीति का अनुकरण किया । भारत की लोकतंत्र और विविधता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बावजूद साम्राज्यवाद के खिलाफ नैतिकता कभी-कभी पश्चिम विरोधी रुख में बदल जाती थी। 1947 में फिलिस्तीन के विभाजन के खिलाफ भारत का प्रारंभिक मतदान उसके खुद के ब्रिटिशकालीन विभाजन के अनुभव को प्रदर्शित करता है।
इज़राइल-गाजा संघर्ष पर भारत के रुख के साथ विदेश नीति की बदलती गतिशीलता वर्तमान सरकार के बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य को रेखांकित करती है। भारत की विदेश नीति ऐतिहासिक गुटनिरपेक्षता और उपनिवेशवाद-विरोधी भावनाओं से लेकर रणनीतिक गठबंधन बनाने और अधिक मुखर भूमिका अपनाने की समकालीन चुनौतियों के अनुरूप ढल रही है। इज़राइल-गाजा संघर्ष एक प्रिज्म के रूप में कार्य करता है, जिसके माध्यम से भारत के वैश्विक दृष्टिकोणों की पुनर्संरचना को समझा जा सकता है। यह दृष्टिकोण उभरती भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के साथ ऐतिहासिक गठबंधनों के संतुलन को दर्शाता है।
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