UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi  >  Economic Development (आर्थिक विकास): November 2023 UPSC Current Affairs

Economic Development (आर्थिक विकास): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

टैक्स हेवेन के रूप में साइप्रस 

चर्चा में क्यों?

हाल की साइप्रस गोपनीय जाँच से साइप्रस में अपतटीय संस्थाओं और भारत में धनी व्यक्तियों से उनके संबंध से जुड़ी वित्तीय गतिविधियों का एक जटिल वेब सामने आया है।

  • अंतर्राष्ट्रीय खोजी पत्रकार संघ (International Consortium of Investigative Journalists- ICIJ) के सहयोग से की गई यह वैश्विक अपतटीय जाँच, विश्व भर के अमीर और शक्तिशाली लोगों द्वारा टैक्स हेवेन के रूप में साइप्रस के उपयोग को उजागर करती है।

टैक्स हेवन के रूप में साइप्रस क्या कर लाभ प्रदान करता है?

  • कॉर्पोरेट कराधान:
    • साइप्रस से प्रबंधित और नियंत्रित अपतटीय कंपनियों और अपतटीय शाखाओं पर 4.25% कर लगता है
    • विदेश से प्रबंधित अपतटीय शाखाएँ और अपतटीय साझेदारियाँ कर से पूर्ण छूट का लाभ लेती हैं।
  • विदहोल्डिंग कर और लाभांश:
    • साइप्रस लाभांश पर कोई विदहोल्डिंग टैक्स नहीं लगाता है।
    • अपतटीय संस्थाओं या शाखाओं के लाभकारी मालिक लाभांश या मुनाफे पर अतिरिक्त कर के लिये उत्तरदायी नहीं हैं।
  • पूंजीगत लाभ और संपदा शुल्क:
    • किसी अपतटीय इकाई में शेयरों की बिक्री या हस्तांतरण पर कोई पूंजीगत लाभ कर देय नहीं है।
    • एक अपतटीय कंपनी में शेयरों की विरासत संपत्ति शुल्क से मुक्त है।
  • आयात शुल्क में छूट:
    • विदेशी कर्मचारियों के लिये कार, कार्यालय या घरेलू उपकरण की खरीद पर कोई आयात शुल्क नहीं।
  • गुमनामी और गोपनीयता:
    • साइप्रस अपतटीय संस्थाओं के लाभकारी मालिकों की गुमनामी सुनिश्चित करता है।
    • गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए साइप्रस में अपतटीय ट्रस्टों को किसी भी सरकार या प्राधिकरण के साथ पंजीकृत होने की आवश्यकता नहीं है।
  • अपतटीय ट्रस्ट:
    • ऑफशोर ट्रस्ट ऐसे ट्रस्ट हैं जिनकी संपत्ति और आय साइप्रस के बाहर है तथा यहाँ तक कि सेटलर एवं लाभार्थी भी साइप्रस के स्थायी निवासी नहीं हैं।
    • यदि ट्रस्टी साइप्रस है तो साइप्रस में अपतटीय ट्रस्टों को संपत्ति शुल्क से छूट दी गई है।
    • अपतटीय ट्रस्टों द्वारा उत्पन्न आय और लाभ पर कोई कर नहीं।
    • ट्रस्ट को किसी भी सरकार या अन्य प्राधिकरण के साथ पंजीकृत होने की आवश्यकता नहीं है और यह गोपनीयता नए कानून में निहित है।

साइप्रस के साथ भारत की कर संधि क्या है?

वर्ष 2013 से पहले

  • पूंजीगत लाभ कर से छूट:
    • भारत और साइप्रस के बीच एक कर संधि थी जो निवेशकों को बाहर निकलने पर पूंजीगत लाभ कर से छूट देती थी।
    • दोनों देशों में पूंजीगत लाभ पर शून्य कराधान ने साइप्रस को भारत में इक्विटी निवेश के लिये एक पसंदीदा स्थान बना दिया है।
    • साइप्रस ने 4.5% के कम विदहोल्डिंग टैक्स की पेशकश की, जिससे व्यक्तियों और व्यवसायों के लिये इसका आकर्षण बढ़ गया।
    • विदहोल्डिंग टैक्स गैर-निवासियों द्वारा कर अनुपालन सुनिश्चित करने के एक साधन के रूप में कार्य करता है, जो अनिवासी व्यक्तियों को किये गए भुगतान पर लागू होता है।
    • आयकर अधिनियम, 1961 या दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (Double Taxation Avoidance Agreement- DTAA), जो भी कम हो, द्वारा परिभाषित दरों पर सरकार के पास जमा किये गए कर में कटौती के लिये भुगतानकर्त्ता ज़िम्मेदार थे।
    • DTAA या तो आय के सभी स्रोतों को कवर करने के लिये व्यापक हो सकते हैं या कुछ क्षेत्रों तक सीमित हो सकते हैं जैसे- शिपिंग, हवाई परिवहन, विरासत आदि से आय पर कर लगाना।

वर्ष 2013 से

  • भारत ने आयकर अधिनियम की धारा 94A के तहत 1 नवंबर, 2013 को साइप्रस को अधिसूचित क्षेत्राधिकार (NJA) के रूप में नामित किया।
  • NJA स्थिति के परिणामस्वरूप साइप्रस में संस्थाओं को भुगतान के लिये उच्च विदहोल्डिंग कर दर (30%) जैसे परिणाम देखे गए।
  • NJA में संस्थाओं के साथ लेन-देन भारतीय हस्तांतरण मूल्य निर्धारण नियमों के अधीन हो गया।
  • स्थानांतरण मूल्य निर्धारण एक उद्यम के अंदर नियंत्रित (या संबंधित) कानूनी संस्थाओं (विभिन्न देशों में स्थित हो सकता है) के बीच बेची जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के लिये मूल्य निर्धारण है।

वर्ष 2016 से

  • वर्ष 2016 में साइप्रस के साथ एक संशोधित DTAA पर हस्ताक्षर किये गए थे, जिसमें वर्ष 2013 से पूर्वव्यापी प्रभाव से NJA स्थिति को रद्द करना स्पष्ट किया गया था।
  • शेयरों के हस्तांतरण से पूंजीगत लाभ के स्रोत-आधारित कराधान के लिये नया DTAA पेश किया गया।
  • अलगाव का तात्पर्य मालिक द्वारा संपत्ति की स्वैच्छिक बिक्री/स्थानांतरण या त्याग से है।
  • 1 अप्रैल, 2017 से पहले किये गए निवेश को ग्रैंडफादरिंग क्लॉज़ द्वारा संरक्षित किया गया है, जिससे करदाता के निवास के देश में पूंजीगत लाभ पर कराधान की अनुमति मिलती है।

विश्लेषण और निहितार्थ

  • चरणबद्ध विकास साइप्रस के साथ भारत की कर व्यवस्था की गतिशील प्रकृति को दर्शाता है।
  • स्रोत-आधारित कराधान की दिशा में कदम कर चोरी को रोकने और उचित राजस्व वितरण सुनिश्चित करने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
  • वैश्विक स्तर पर कर-संबंधित मामलों पर बढ़ती जाँच, जैसा कि विदेशी जाँच से पता चला है, ने कर संधियों के प्रति भारत के दृष्टिकोण को प्रभावित किया है।
  • ग्रैंडफादरिंग क्लॉज़ का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तनों से पहले किये गए निवेशों के लिये निरंतरता और स्थिरता प्रदान करना था।

साइप्रस में भारतीय कंपनियों की वैधता

  • साइप्रस में एक अपतटीय कंपनी स्थापित करना अवैध नहीं है।
  • भारत का साइप्रस सहित कई देशों के साथ DTAA है, जो कम कर दरों की पेशकश करते हैं।
  • कंपनियाँ ऐसे देशों में कानूनी रूप से उपलब्ध कर लाभों का आनंद लेने के लिये अपने कर निवास प्रमाणपत्र का उपयोग करती हैं।
  • इन न्यायक्षेत्रों की विशेषता सामान्यतः कमज़ोर नियामक निगरानी और सख्त गोपनीयता कानून हैं।

निवेशक साइप्रस को टैक्स हेवेन के रूप में कैसे उपयोग करते हैं?

  • साइप्रस में शेल कंपनियों के कई नेटवर्कों के माध्यम से धनराशि को प्रसारित करके मनी लॉन्ड्रिंग की सुविधा प्रदान की जाती है।
  • शेल कंपनी एक ऐसी फर्म है जो अर्थव्यवस्था में कोई संचालन नहीं करती है, लेकिन यह अर्थव्यवस्था में औपचारिक रूप से पंजीकृत, निगमित या कानूनी रूप से संगठित होती है।
  • साइप्रस में उच्च स्तर की बैंकिंग गोपनीयता है और यह अन्य देशों के साथ वित्तीय खातों की जानकारी का स्वचालित रूप से आदान-प्रदान नहीं करता है।
  • यह निवेशकों को अधिकारियों और लेनदारों से संपत्ति एवं आय छिपाने में सहायता करता है।
  • इसके अलावा निवेशक रणनीतिक दान और लॉबिंग प्रथाओं के माध्यम से राजनीति तथा नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकते हैं।

भारत टैक्स हेवन के रूप में साइप्रस के उपयोग पर कैसे अंकुश लगा सकता है?

  • अनुपालन तंत्र को सशक्त करना: भारत द्वारा प्रवर्तन एवं अनुपालन तंत्र को मज़बूत किया जाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कर अधिकारियों के पास कर चोरी और परिवर्जन के मामलों का पता लगाने, जाँच करने एवं मुकदमा चलाने के लिये पर्याप्त संसाधन एवं शक्तियाँ मौजूद हैं। इस माध्यम से साइप्रस को टैक्स हेवन के रूप में उपयोग करने की स्थिति का मुकाबला किया जा सकता है।
  • उत्तरदायित्व के उपाय: भारत को अपतटीय संस्थाओं की पारदर्शिता एवं जवाबदेही बढ़ानी चाहिये जिससे उनके हिताधिकारी स्वामियों, निदेशकों एवं वित्तीय गतिविधियों का खुलासा हो सके।
  • भारत साइप्रस संस्थाओं अथवा व्यक्तियों को किये गए भुगतान पर विदहोल्डिंग टैक्स एवं परिवर्जन-विरोधी उपाय का इस्तेमाल भी कर सकता है।
  • सशक्त विधान: भारत मज़बूत कानून बनाकर तथा लागू करके कर संधियों के दुरुपयोग का समाधान कर सकता है। इसमें इन कानूनों के दायरे तथा कवरेज का विस्तार करना एवं उनके प्रभावी कार्यान्वयन व निगरानी को सुनिश्चित करना शामिल है।
  • नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देना: करदाताओं के नैतिक तथा ज़िम्मेदार व्यवहार को बढ़ावा देना तथा प्रोत्साहन देना चाहिये तथा उन्हें करों का उचित हिस्सा चुकाने एवं राष्ट्रीय विकास में योगदान देने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता का महत्त्व एवं विनियमन

संदर्भ

  • सरल शब्दों में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) मानव मस्तिष्क की समस्या-समाधान और निर्णयकारी क्षमताओं के अनुकरण हेतु कंप्यूटर और मशीनों का लाभ उठाती है। सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करते हुए हम क्या देखना चाहते हैं का अनुमान लगाने से लेकर कृषि के प्रबंधन के लिये हमें मौसम का रुख बताने तक, AI सर्वव्यापी उपस्थिति रखती है।
  • वैश्विक AI बाज़ार का आकार वर्ष 2021 में5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था और वर्ष 2022 से 2030 तक इसके 38.1% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से विस्तार करने का अनुमान है। भारतीय बाज़ार में AI की हिस्सेदारी वर्ष 2021 में 7.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आकलित की गई थी।
  • AI के लिये बाज़ार में वृद्धि के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता की नैतिकता (Ethics of Artificial Intelligence) पर वैश्विक विनियमनों और समझौतों की आवश्यकता उत्पन्न हुई है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि AI को इसके मूल में साझा, मानवीय मूल्यों के साथ विकसित किया जा रहा है।
  • नवंबर, 2021 में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की नैतिकता पर यूनेस्को में 193 देशों के बीच एक महत्त्वपूर्ण समझौता संपन्न हुआ। इसने AI के संबंध में पहला वैश्विक मानक ढाँचा तय किया है जबकि राज्यों को स्वयं के स्तर पर इसे लागू करने का उत्तरदायित्व सौंपा है।
  • समझौता इस पर लक्षित है कि AI को सरकारों और तकनीकी कंपनियों द्वारा कैसे डिज़ाइन और उपयोग किया जाना चाहिये।

समझौते के उद्देश्य क्या हैं?

  • शक्ति संतुलन बनाए रखना:
    • इसका उद्देश्य लोगों और AI विकसित करने वाले व्यवसायों एवं सरकारों के बीच शक्ति संतुलन को मौलिक रूप से बदलना है।
    • यदि इन प्रौद्योगिकियों के विकास के तरीके में मानव हित को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी तो असमानताएँ इतनी बढ़ सकती हैं जैसा इतिहास में पहले कभी अनुभव नहीं किया गया।
  • जीवन चक्र को विनियमित करना:
    • यूनेस्को के सदस्य देश AI प्रणाली के संपूर्ण जीवन चक्र- ‘अनुसंधान-डिज़ाइन-विकास-तैनाती और उपयोग’ को विनियमित करने पर सहमत हुए हैं।
    • इसका अभिप्राय यह है कि उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिये सकारात्मक कार्रवाई का उपयोग करना चाहिये कि AI डिज़ाइन टीमों में महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों का उचित प्रतिनिधित्व हो।
  • डेटा का प्रबंधनगोपनीयता और सूचना तक पहुँच:
    • यह उपयोगकर्ताओं के पास डेटा का नियंत्रण होने की आवश्यकता को स्थापित करता है, जिससे उन्हें आवश्यकतानुसार सूचना तक पहुँच या इसके विलोपन की अनुमति मिलती है।
    • यह सदस्य राज्यों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान करता है कि संवेदनशील डेटा के प्रसंस्करण और प्रभावी जवाबदेही के लिये उपयुक्त सुरक्षा उपाय योजनाएँ तैयार करे और क्षति की स्थिति में निवारण तंत्र प्रदान करे।
  • ‘सोशल स्कोरिंग’ और सामूहिक निगरानी पर प्रतिबंध:
    • यह सोशल स्कोरिंग (Social Scoring) और सामूहिक निगरानी (Mass Surveillance) के लिये AI प्रणाली के उपयोग पर प्रकट रूप से प्रतिबंध लगाता है।
    • यह बल देता है कि नियामक ढाँचे को विकसित करते समय सदस्य राज्यों को यह विचार करना चाहिये कि अंतिम ज़िम्मेदारी एवं जवाबदेही हमेशा मनुष्यों के पास रहे और AI प्रौद्योगिकियों को स्वयं का कानूनी व्यक्तित्व नहीं प्रदान किया जाए।
  • पर्यावरण की संरक्षा
    • यह इस बात पर बल देता है कि AI अभिकर्त्ताओं को डेटा तथा ऊर्जा एवं संसाधन-कुशल AI विधियों का समर्थन करना चाहिये जो जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध संघर्ष और पर्यावरणीय मुद्दों से निपटने में अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
    • यह सरकारों से कार्बन फुटप्रिंट, ऊर्जा खपत और AI प्रौद्योगिकियों के निर्माण का समर्थन करने के लिये कच्चे माल के निष्कर्षण के पर्यावरणीय प्रभाव जैसे विभिन्न प्रभावों का आकलन करने का आह्वान करता है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लाभ

  • पुलिस व्यवस्था में:
    • AI की मदद से केंद्रीय डेटाबेस के साथ चेहरे की पहचान के मिलान, अपराध के पैटर्न के अनुमान और सीसीटीवी फुटेज के विश्लेषण द्वारा संदिग्धों की पहचान की जा सकती है।
    • सरकार सभी रिकॉर्ड (विशेष रूप से अपराध रिकॉर्ड) का डिजिटलीकरण कर रही है; वह इसे CCTNS नामक एक ही स्थान पर एकत्र कर रही है जहाँ किसी अपराधी या संदिग्ध की तस्वीरों, बायोमीट्रिक्स या आपराधिक इतिहास सहित सभी डेटा उपलब्ध हैं।
  • कृषि:
    • AI कृषि डेटा का विश्लेषण करने में मदद करता है:
    • किसान अपने निर्णयों को बेहतर ढंग से सूचित करने के लिये अपने खेत से एकत्रित मौसम की स्थिति, तापमान, पानी के उपयोग या मिट्टी की स्थिति जैसे कारकों का विश्लेषण कर सकते हैं।
  • कृषि में परिशुद्धता:
    • सटीक कृषि पौधों, कीटों और खेतों में खराब पौधों के पोषण में बीमारियों का पता लगाने में सहायता के लिये AI तकनीक का उपयोग करती है।
    • AI सेंसर खरपतवारों का पता लगा सकते हैं और उन्हें लक्षित कर सकते हैं और फिर तय कर सकते हैं कि सही बफर ज़ोन के भीतर कौन सी जड़ी-बूटियाँ लगानी हैं।
  • जल प्रबंधनफसल बीमा और कीट नियंत्रण:
    • इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स आईसीआरआईएसएटी ने एक AI-पावर बुवाई ऐप विकसित किया है, जो स्थानीय फसल उपज और वर्षा पर मौसम मॉडल और डेटा का उपयोग करता है ताकि स्थानीय किसानों को अपने बीज बोने के बारे में अधिक सटीक भविष्यवाणी और सलाह दी जा सके।

महामारी से निपटने के लिए

  • राष्ट्रीय स्तर पर:
    • कोविड -19 प्रतिक्रिया के लिए, संचार सुनिश्चित करने के लिये MyGov द्वारा AI- सक्षम चैटबॉट का उपयोग किया गया था।
    • इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने कोविड -19 पर देश भर में विभिन्न परीक्षण और नैदानिक सुविधाओं से फ्रंटलाइन स्टाफ और डेटा एंट्री ऑपरेटरों के विशिष्ट प्रश्नों का उत्तर देने के लिये अपने पोर्टल पर वाटसन सहायक को तैनात किया है।
  • शिक्षा:
    • इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस साल अप्रैल में  "युवाओं के लिये जिम्मेदार AI" कार्यक्रम लॉन्च किया था।, जिसमें सरकारी स्कूलों के 11,000 से अधिक छात्रों ने AI में बुनियादी पाठ्यक्रम पूरा किया।
    • केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने स्कूली पाठ्यक्रम में AI को एकीकृत किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पास होने वाले छात्रों को डेटा साइंस, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बुनियादी ज्ञान और कौशल हो।

स्वास्थ्य देखभाल

  • मशीन लर्निंग:
    • सटीक दवा में AI का अनुप्रयोग फायदेमंद हो सकता है - यह भविष्यवाणी करना कि विभिन्न रोगी विशेषताओं और उपचार संदर्भ के आधार पर रोगी पर कौन से उपचार प्रोटोकॉल सफल होने की संभावना है।
  • प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (Natural Language Processing- NLP):
    • NLP में नैदानिक दस्तावेज़ीकरण और प्रकाशित शोध का निर्माण, समझ और वर्गीकरण शामिल है।
    • NLP सिस्टम रोगियों पर असंरचित नैदानिक नोटों का विश्लेषण कर सकता है, रिपोर्ट तैयार कर सकता है, रोगी की बातचीत को ट्रांसक्रिप्ट कर सकता है और संवादी AI का संचालन कर सकता है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े मुद्दे क्या हैं?

  • डेटा की अपूर्ण प्रस्तुति:
    • AI में फीड करने के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला डेटा अक्सर हमारी विविधता का प्रतिनिधित्व नहीं करता है
    • इससे ऐसे परिणाम उत्पन्न होते हैं जिन्हें पक्षपाती या भेदभावपूर्ण कहा जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, जबकि भारत और चीन मिलकर दुनिया की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा बनाते हैं, Google ब्रेन ने अनुमान लगाया कि वे इमेजनेट में उपयोग की जाने वाली छवियों का केवल 3% बनाते हैं , जो व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले डेटासेट हैं।
  • तकनीकी चुनौतियाँ:
    • चेहरे की पहचान करने वाली प्रौद्योगिकियाँ, जिनका उपयोग हमारे फोन, बैंक खातों और अपार्टमेंट तक पहुँचने के लिये किया जाता है और कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा महिलाओं और गहरे रंग के लोगों की पहचान करने में तेज़ी से नियोजित किया जाता है।
    • प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा जारी किये गए ऐसे तीन कार्यक्रमों के लिये, गोरे रंग वाले पुरुषों के लिये त्रुटि दर 1% थी, लेकिन गहरे रंग के पुरुषों के लिये 19% और गहरे रंग की महिलाओं के लिये 35% तक थी। चेहरे की पहचान तकनीकों में पक्षपात के कारण गलत तरीके से गिरफ्तारियाँ हुई हैं।
  • पूर्वाग्रहों और असमानताओं को बढ़ावा देना:
    • यह नहीं भूलना चाहिये कि AI सिस्टम मनुष्यों द्वारा बनाए गए हैं, जो पक्षपाती निर्णय लेने वाले हो सकते हैं। इस प्रकार, AI पूर्वाग्रहों और असमानताओं को बढ़ावा दे सकता है, अगर AI एल्गोरिदम का प्रारंभिक प्रशिक्षण पक्षपाती है।
    • उदाहरण के लिये, AI चेहरे की पहचान और निगरानी तकनीक को रंग और अल्पसंख्यकों के लोगों के साथ भेदभाव करने के लिये प्रेरित कर सकता है।
  • गोपनीयता से समझौता:
    • AI सिस्टम बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण करके सीखते हैं और वे इंटरेक्शन डेटा और उपयोगकर्ता-प्रतिक्रिया के निरंतर मॉडलिंग के माध्यम से अनुकूलन करते रहते हैं।
    • इस प्रकार, AI के बढ़ते उपयोग के साथ, किसी के गतिविधि डेटा तक अनधिकृत पहुँच के कारण निजता का अधिकार खतरे में पड़ सकता है।
  • अनुपातहीन शक्ति और नियंत्रण:
    • प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ वैज्ञानिक/इंजीनियरिंग और वाणिज्यिक और उत्पाद विकास दोनों स्तरों पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के संबंध में भारी निवेश कर रहे हैं।
    • किसी भी महत्त्वाकांक्षी प्रतियोगी की तुलना में इन बड़े खिलाड़ियों को बहुत बड़ा लाभ होता है जो डेटा-कुलीन समाज का एक लक्षण है।
    • AI को बढ़ावा देने के लिये क्या पहल की गई है?

राष्ट्रीय पहल

  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर वैश्विक भागीदारी (GPAI):
    • वर्ष 2020 में भारत AI के ज़िम्मेदार एवं मानव-केंद्रित विकास और उपयोग का समर्थन करने के लिये एक संस्थापक सदस्य के रूप में GPAI में शामिल हुआ।
  • राइज़ 2020:
    • RAISE (Responsible AI for Social Empowerment), 2020 आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर अपनी तरह की पहली वैश्विक बैठक है, जो ज़िम्मेदार AI के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन, समावेश और सशक्तिकरण के लिये भारत के दृष्टिकोण और रोडमैप को आगे बढ़ाने के लिये है।
  • नीति आयोग का AI फॉर ऑल कैंपेन:
    • वर्ष 2018 में NITI आयोग ने 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिये राष्ट्रीय रणनीति # AI4ALL' शीर्षक से एक चर्चा पत्र प्रकाशित किया, जो दर्शाता है कि कैसे AI को भारत में पाँच प्रमुख क्षेत्रों में सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है:
    • स्वास्थ्य , कृषि, शिक्षा, स्मार्ट शहरों और बुनियादी ढांचे, स्मार्ट गतिशीलता और परिवहन, देश की सामान्य आबादी को लाभान्वित करने के लिए।

उठाए गए सही कदम

  • AI तकनीकी क्रांति समृद्धि और विकास के लिये महान अवसर लाती है - लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रौद्योगिकी को सही दिशा में लागू और उपयोग किया जाएगा।
  • इस संबंध में, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पहले से ही कुछ कदम उठाए जा रहे हैं, जैसे कि व्याख्या करने योग्य AI (XAI) और यूरोपीय संघ का GDPR - सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन)।
  • सामान्य नियम पुस्तिका:
    • यह एक मान्यता है कि AI से संबंधित प्रौद्योगिकियाँ एक सामान्य नियम पुस्तिका के बिना काम करना जारी नहीं रख सकती हैं।
    • आने वाले वर्षों में स्वेच्छा से AI प्रौद्योगिकियों को विकसित और तैनात करने के लिए, जो आम तौर पर सहमत सिद्धांतों के अनुरूप हैं, यूनेस्को समझौते की सिफारिश, सरकारों और कंपनियों का मार्गदर्शन करने के लिये एक कंपास के रूप में काम करेगी।
  • सभी का समावेशन:
    • यह सुनिश्चित करने के लिये सकारात्मक कार्रवाई की जानी चाहिये एवं लिंग/वर्ग/जाति के आधार पर पक्षपात के जोखिम को खत्म करने के लिये AI डिज़ाइन टीमों में महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों का उचित प्रतिनिधित्व किया जाए।

खाद्य लेबल के लिये QR कोड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने दृष्टिबाधित व्यक्तियों की पहुँच के लिये खाद्य उत्पादों पर QR कोड शामिल करने की सिफारिश की है, जिसमें कहा गया है कि इससे सभी के लिये सुरक्षित भोजन तक पहुँच सुनिश्चित होगी।

  • FSSAI ने वर्ष 2019 में फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (FOPL) का प्रस्ताव रखा, जो उपभोक्ताओं को सूचित विकल्प चुनने के लिये सचेत और शिक्षित करने की एक प्रमुख रणनीति है।

QR कोड

  • त्वरित प्रतिक्रिया (Quick Response- QR) कोड एक प्रकार का द्वि-आयामी मैट्रिक्स बारकोड है जो विभिन्न प्रकार के डेटा को संग्रहीत कर सकता है, जैसे- अल्फान्यूमेरिक टेक्स्ट, वेबसाइट यूआरएल, संपर्क जानकारी आदि।
  • इसका आविष्कार वर्ष 1994 में जापानी कंपनी डेंसो वेव द्वारा मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल के हिस्सों को ट्रैक व लेबल करने के उद्देश्य से किया गया था।
  • QR कोड की विशेषता उसके विशिष्ट चौकोर आकार और सफेद पृष्ठभूमि पर काले वर्गों का एक पैटर्न है, जिसे QR कोड रीडर या स्मार्टफोन कैमरे का उपयोग करके स्कैन एवं भाषांतरित/इंटरप्रेट किया जा सकता है।

FSSAI की प्रमुख सिफारिशें

  • FSSAI के खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियम, 2020: 
    • ये सिफारिशें FSSAI के खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियम, 2020 के अनुरूप हैं। 
    • यह सुनिश्चित करता है कि खाद्य निर्माता लेबलिंग आवश्यकताओं का पालन करें, जो खाद्य सुरक्षा और उपभोक्ता संरक्षण के लिये आवश्यक हैं।
  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016:
    • दृष्टिबाधित व्यक्तियों की पहुँच के लिये QR कोड को शामिल करने का यह कदम दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के अनुरूप है।
    • यह समावेशिता और आवश्यक जानकारी तक समान पहुँच को बढ़ावा देता है।
  • QR कोड द्वारा प्रदत्त जानकारी:
    • QR कोड में उत्पाद से संबंधित व्यापक विवरण शामिल होगा, जिसमें सामग्री, पोषण जानकारी, एलर्जी संबंधी चेतावनी, विनिर्माण तिथि, तिथि से पहले/समाप्ति/उपयोग की सर्वोत्तम तिथि और ग्राहक पूछताछ के लिये संपर्क जानकारी आदि, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है। 
    • जानकारी तक पहुँच के लिये QR कोड को शामिल करना, संबंधित नियमों द्वारा निर्धारित उत्पाद लेबल पर अनिवार्य जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता को प्रतिस्थापित या अस्वीकार नहीं करता है।

सुरक्षित भोजन तक पहुँच से संबंधित वर्तमान चिंताएँ

  • भारत में मोटापा, मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियों जैसे- गैर-संचारी रोगों (NCD) में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पिछले दो दशकों में NCD में वैश्विक वृद्धि देखी गई है।
  • इन बीमारियों को आंशिक और आक्रामक रूप से आसानी से उपलब्ध सस्ते और प्री-पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की खपत एवं विपणन के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जाता है, जो उपभोक्ताओं के बीच तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे हैं।

इसका महत्त्व

  • दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिये पहुँच:
    • इन कोड्स को स्कैन करने के लिये स्मार्टफोन के एप्लीकेशन का उपयोग किया जा सकता है और उपयोगकर्त्ता पढ़ी गई जानकारी को सुन सकता है। 
    • यह गारंटी के साथ सुरक्षित भोजन तक समावेशिता और न्यायसंगत पहुँच को बढ़ावा देता है तथा सामान्य ग्राहकों के समान ही दृष्टिबाधितों की पहुँच खाद्य उत्पादों के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी तक सुनिश्चित करता है।
  • विस्तृत जानकारी:
    • QR कोड में प्रदान किये गए विवरण का स्तर सभी उपभोक्ताओं, जिनमें आहार संबंधी प्रतिबंध या एलर्जी वाले लोग भी शामिल हैं, को सूचित विकल्प चुनने का अधिकार देता है, ताकि प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं या स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को कम किया जा सके।
  • सूचित निर्णय लेना:
    • उपभोक्ता निर्माताओं द्वारा किये गए दावों को तुरंत सत्यापित कर सकते हैं और ऐसे विकल्प चुन सकते हैं जो उनके स्वास्थ्य तथा आहार संबंधी आवश्यकताओं का समर्थन करते हैं।
    • प्री-पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की पर्याप्तता वाले बाज़ारों में यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उपभोक्ता स्वस्थ और कम स्वस्थ विकल्पों के बीच अंतर कर सकते हैं।
    • QR कोड के माध्यम से पोषण जानकारी और एलर्जी संबंधी चेतावनियाँ प्राप्त कर उपभोक्ता स्वस्थ खाद्य पदार्थ का चयन कर सकते हैं।
  • वैश्विक महत्त्व:
    • खाद्य उत्पादों पर QR कोड का उपयोग केवल भारत ही नहीं करता है बल्कि अमेरिका, फ्राँस और ब्रिटेन जैसे देश भी खाद्य उत्पादों पर QR कोड के प्रमुख उपयोगकर्त्ता हैं।
    • यह वैश्विक रुझानों के अनुरूप है, क्योंकि उपभोक्ता अपने द्वारा खरीदी गई वस्तुओं के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिये QR कोड का अधिक-से-अधिक उपयोग करते हैं।

निष्कर्ष

  • भारत में खाद्य उत्पादों पर QR कोड को शामिल करना सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार, उपभोक्ता संरक्षण और समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यह खाद्य लेबलिंग में वैश्विक रुझानों के अनुरूप है तथा उपभोक्ताओं को उनकी आहार संबंधी प्राथमिकताओं के विषय में सूचित विकल्प चुनने का अधिकार देता है।
  • यह पहल प्री-पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत और NCD में वृद्धि से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिये भारतीय अधिकारियों की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है।

भारतीय रेलवे की राजस्व समस्याएँ

चर्चा में क्यों?

भारतीय रेलवे (IR) ने अपने रेल बजट को मुख्य बजट में विलय करने के बाद से अपने पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) में उल्लेखनीय वृद्धि की है। हालाँकि इसका परिचालन अनुपात, जो राजस्व के विरुद्ध व्यय का मापन करता है, में संशोधन नहीं हुआ है।

भारतीय रेलवे की वर्तमान चिंताएँ

  • ऋण जाल की चिंताएँ:
    • भारतीय रेलवे (IR) बढ़ते कर्ज़ से संबंधित समस्या का सामना कर रहा है। अधिशेष निधि के अभाव में भारतीय रेलवे सकल बजटीय सहायता (GBS) और अतिरिक्त बजटीय संसाधन (EBS) के माध्यम से बढ़ी हुई निधि पर निर्भर रहा है।
    • हालाँकि EBS पर यह निर्भरता एक महत्त्वपूर्ण लागत के साथ आती है। मूलधन और ब्याज के पुनर्भुगतान पर भारतीय रेलवे का खर्च राजस्व प्राप्तियों का 17% है, जिसने सत्र 2015-16 तक 10% से भी कम वृद्धि की है।
  • अनुत्पादक निवेश की तुलना में आर्थिक विकास से संबंधित चिंताएँ:
    • बढ़ते कर्ज़ के बावज़ूद भी पूंजीगत व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि इस विश्वास पर आधारित है कि रेलवे क्षेत्र में निवेश का विनिर्माण, सेवाओं, सरकारी कर राजस्व और रोज़गार के अवसरों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
    • हालाँकि यह ज़रूरी है कि भारतीय रेलवे एक महत्त्वपूर्ण संगठन के रूप में एयर इंडिया जैसी संस्थाओं में देखी जाने वाली वित्तीय अस्थिरता से बचने पर ध्यान केंद्रित करे।
  • घटते शेयर:
    • पिछले कुछ वर्षों में प्रमुख वस्तुओं के परिवहन में अपनी हिस्सेदारी घटने के कारण भारतीय रेलवे (IR) को एक महत्त्वपूर्ण चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2011 में कोयला परिवहन 602 मिलियन टन (MT) था, जिसमें रेलवे हिस्सेदारी 70% थी, लेकिन वर्ष 2020 तक कोयले की खपत बढ़कर 978 मिलियन टन हो गई, जबकि रेलवे हिस्सेदारी घटकर 60% रह गई।
    • इसी तरह बंदरगाहों से आने-जाने वाले एक्ज़िम (निर्यात-आयात) कंटेनरों की हिस्सेदारी में वर्ष 2009-10 के बाद से 10 से 18% के बीच उतार-चढ़ाव आया है, वर्ष 2021-22 में4 यह आँकड़ा 13% है।
  • निवल टन किलोमीटर (NTKM) से संबंधित चिंताएँ:
    • वर्ष 2015-16 और 2016-17 में NTKM में क्रमशः 4% तथा 5% की अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गई।
    • वर्ष 2021-22 में समाप्त होने वाली सात वर्ष की अवधि में NTKM ने 3.5% की वार्षिक वृद्धि दर दिखाई, जो सड़क परिवहन में वृद्धि दर से काफी कम है।

भारतीय रेलवे प्रणाली में दीर्घकालिक मुद्दे

  • वित्तीय प्रदर्शन में चुनौतियाँ:
    • भारतीय रेलवे को अपने वित्तीय प्रदर्शन के साथ एक समस्या का सामना करना पड़ रहा है, विशेष रूप से इसके लाभदायक माल खंड और घाटे में चल रहे यात्री खंड के बीच काफी अंतर है।
    • भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की वर्ष 2023 की रिपोर्ट में यात्री सेवाओं में 68,269 करोड़ रुपए के भारी नुकसान पर प्रकाश डाला गया, जिसे माल ढुलाई से होने वाले मुनाफे से कवर किया जाना था।
  • माल ढुलाई व्यवसाय में चुनौतियाँ:
    • अप्रैल से जुलाई 2023 तक माल ढुलाई की मात्रा और राजस्व में वार्षिक वृद्धि क्रमशः 1% तथा 3% रही, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था 7% की दर से बढ़ रही है।
    • भारत के माल ढुलाई कारोबार में भारतीय रेलवे की मॉडल हिस्सेदारी अत्यधिक कमी के साथ लगभग 27% रह गई है, जो कि भारत की आज़ादी के समय 80% से अधिक थी।   
  • कार्गो का कृत्रिम विभाजन:
    • माल और पार्सल में कार्गो का कृत्रिम विभाजन दक्षता में बाधा डाल रहा है। टैरिफ नियमों, हैंडलिंग प्रक्रियाओं और निगरानी प्रथाओं द्वारा संचालित ये प्रभाग शिपर्स की चिंताओं से समानता नहीं रखते हैं।
    • IR के लिये यह आवश्यक है कि वह इस कृत्रिम विभाजन को छोड़ दे और कार्गो को उसकी विशेषताओं के आधार पर थोक या गैर-थोक के रूप में वर्गीकृत करें, जिसे मूल्य-वर्धित कहा जा सकता है।
  • सड़क परिवहन से प्रतिस्पर्धा में चुनौतियाँ:
    • भारतीय रेलवे को सड़क परिवहन से भी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जो रेल परिवहन की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा है। निवल टन किलोमीटर (NTKM) में उतार-चढ़ाव के साथ इस प्रतिस्पर्धा ने IR के लिये माल परिवहन में अपनी हिस्सेदारी को बनाए रखना और विस्तारित करना चुनौतीपूर्ण बना दिया है, इसलिये रेलवे परिवहन में सुधार की आवश्यकता है।
  • कंटेनरीकरण की अपर्याप्तता:
    • निजीकरण के 15 वर्षों के बाद कंटेनरीकृत घरेलू माल भारतीय रेल की कुल लोडिंग का केवल 1% और देश के कुल माल का 0.3% है।
    • उच्च ढुलाई दर और संभावित नुकसान के साथ बाज़ार विकास का जोखिम इस खराब प्रदर्शन में योगदान दे रहा है।

Economic Development (आर्थिक विकास): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

भारतीय रेलवे द्वारा माल वहन को आसान एवं बेहतर बनाने के उपाय

  • पार्सल ट्रेनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की आवश्यकता:
    • भारतीय रेलवे को पार्सल ट्रेनों और विशेष भारी पार्सल वैन (VPH) ट्रेनों का उपयोग करके सामान्य माल ले जाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • इन चुनौतियों का एक प्रमुख कारण उच्च सीमा शुल्क है, जो अक्सर ट्रक सीमा शुल्क दरों से अधिक होता है।
    • भारी पार्सल ढुलाई के लिये VPH पार्सल ट्रेनों को प्रतिकूल पाया गया है, कवर किये गए वैगन एक अधिक प्रभावी विकल्प हैं जो VPH पार्सल ट्रेनों की तुलना में अधिक माल वहन कर सकते हैं।
  • जहाज़ कंपनियों के लिये लचीलेपन की आवश्यकता:
    • भारतीय रेलवे के लिये एक बड़ी समस्या यह है कि शिपर्स को माल ढुलाई सीमा शुल्क अथवा पार्सल सीमा शुल्क के तहत न्यूनतम कुछ हज़ार टन माल ही भेजना होता है जिससे यह सामान्य माल की ज़रूरतों के लिये अनुपयुक्त हो जाता है।
    • शिपर्स को अधिक लचीले और उपयुक्त विकल्प की आवश्यकता होती है जो उनके माल क्षमता के उपयुक्त हो, जैसे किसी यात्री ट्रेन में बर्थ बुक करने से पहले यात्रियों को बहुत सारे यात्रियों के साथ आने पर छूट प्रदान करना।
  • माल वहन में चुनौतियों पर काबू पाना:
    • थोक माल में भारतीय रेलवे की घटती हिस्सेदारी आंशिक रूप से रेलवे साइडिंग की उच्च लागत और पूंजी-गहन प्रकृति के कारण है, जो छोटे उद्योगों को उनका उपयोग करने से हतोत्साहित करती है।
    • इसके समाधान के लिये विशेषकर खनन समूहों, औद्योगिक क्षेत्रों और बड़े शहरों में माल एकत्रीकरण एवं वितरण बिंदुओं पर आम-उपयोगकर्ता सुविधाओं की आवश्यकता है।
  • रेल और सड़क द्वारा माल वहन के बीच समान अवसर सुनिश्चित करना:
    • रेल लोडिंग/अनलोडिंग सुविधाओं के लिये पर्यावरण मंज़ूरी अनिवार्य कर दी गई है, किंतु सड़क लोडिंग/अनलोडिंग सुविधाओं पर इसे लागू नहीं किया गया है। इसलिये एक समान  सतत् पर्यावरणीय नियमों की आवश्यकता है।
  • सीमा शुल्कों का अनुकूलन:
    • वॉल्यूमेट्रिक लोडिंग को प्रोत्साहित करने के लिये लोड की गई मात्रा के आधार पर सीमा शुल्क में छूट दी जा सकती है। भारतीय रेलवे को कार्गो एग्रीगेटर्स को भी प्रोत्साहित करना चाहिये और लंबे समय में बेहतर दक्षता के लिये पेलोड एवं गति को अनुकूलित करना चाहिये।
  • आधारभूत अवसंरचना का आधुनिकीकरण:
    • सुरक्षा, दक्षता और लागत में कमी के लिये हाई-स्पीड रेल, स्टेशन पुनर्विकास, ट्रैक डब्लिंग, कोच नवीनीकरण, जी.पी.एस. ट्रैकिंग तथा डिजिटलीकरण सहित रेलवे में बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण की तत्काल आवश्यकता है।
  • परिचालन लागत में कमी:
    • भारतीय रेलवे ने 98.14% का परिचालन अनुपात हासिल किया है जिसे ऊर्जा संरक्षण, श्रमबल को अनुकूलित करने तथा खरीद प्रथाओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करके और बेहतर बनाया जा सकता है।

थोक माल वहन क्षमता बढ़ाने हेतु भारतीय रेल की विभिन्न पहलें

  • भारतीय रेलवे (IR) ने थोक माल क्षेत्र में कई पहल की हैं, जिनमें ब्लॉक रेक मूवमेंट नियमों में लचीलापन, मिनी रेक की अनुमति देना और प्राइवेट फ्रेट टर्मिनल (PFT) शुरू करना शामिल है।
  • गति शक्ति टर्मिनल (GCT) नीति इन टर्मिनलों के संचालन को सरल बनाती है, इसके लिये निजी साइडिंग को GCT में परिवर्तित किया जा रहा है।
  • भारत सरकार ने दो प्रमुख नीतियाँ प्रस्तुत की हैं: PM गतिशक्ति (PMGS) नीति, जिसका उद्देश्य एक निर्बाध मल्टी-मॉडल परिवहन नेटवर्क बनाना है और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP), जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स पोर्टल बनाने एवं विभिन्न मंत्रालयों में प्लेटफार्मों को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • रेलवे बुनियादी ढाँचे में निवेश: सरकार ने बंदरगाह आधारित विकास एवं सड़क विकास के लिये क्रमशः 'सागरमाला' और 'भारतमाला' जैसी योजनाएँ भी शुरू की हैं जिन्हें भारतीय रेलवे के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
  • डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर: सरकार ने 'डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर' जैसी योजनाएँ भी शुरू की हैं, जिनका लाभ माल परिवहन को बढ़ाने के लिये उठाया जाना चाहिये।

चावल के निर्यात प्रतिबंध का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

जुलाई 2023 में भारत ने केंद्रीय पूल में सार्वजनिक स्टॉक में कमी, अनाज की ऊँची कीमतों और असमान मानसून के बढ़ते खतरे के बीच गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसने वैश्विक एवं घरेलू स्तर पर कीमतों को प्रभावित किया है।

भारत द्वारा चावल के निर्यात पर प्रतिबंध के कारण

  • घरेलू खाद्य सुरक्षा:
    • चावल के निर्यात को प्रतिबंधित करने से भारत की बड़ी आबादी की खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये देश में विशेष रूप से केंद्रीय पूल में पर्याप्त स्टॉक बनाए रखने में सहायता मिलती है।
    • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023-24 सीज़न में प्रमुख खरीफ फसलों के उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, चावल का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 3.7% कम होने का अनुमान है।
  • बढ़ती घरेलू कीमतें:
    • सरकार ने घरेलू चावल की कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिये निर्यात प्रतिबंध लगाए। जब घरेलू बाज़ार में चावल की कमी होती है, तो कीमतें बढ़ने लगती हैं और प्रतिबंध कीमतों को स्थिर करने तथा उपभोक्ताओं को मुद्रास्फीति से बचाने में सहायता कर सकते हैं।
  • मानसून से संबंधित अनिश्चितता:
    • भारत कृषि उत्पादन के लिये मानसून के मौसम पर अत्यधिक निर्भर रहता है। अप्रत्याशित अथवा असमान मानसून फसल की पैदावार को प्रभावित कर सकता है।
    • खराब मॉनसून सीज़न की स्थिति में चावल के स्टॉक को संरक्षित करने के लिये निर्यात प्रतिबंधों को एहतियाती उपाय के रूप में माना गया था।

गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध का प्रभाव

  • चावल की वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव:
    • भारत के चावल प्रतिबंधों से पिछले कुछ महीनों में घरेलू और वैश्विक बाज़ारों में आपूर्ति, उपलब्धता एवं कीमतों पर प्रभाव पड़ा है।
    • भारत द्वारा गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद चावल की वैश्विक कीमतों में तत्काल प्रभाव से पर्याप्त वृद्धि हुई।
    • हालाँकि आगामी महीनों में कीमतों में थोड़ी नरमी आई, किंतु वे कीमतें प्रतिबंध-पूर्व अवधि की तुलना में अभी भी अधिक हैं।
  • घरेलू मूल्य वृद्धि:
    • निर्यात प्रतिबंध के बावजूद भारत में घरेलू चावल की कीमतों में वृद्धि जारी है।
    • अक्तूबर 2023 तक प्रति क्विंटल चावल का औसत थोक मूल्य विगत अवधि की तुलना में काफी अधिक था, जो पिछले महीने की तुलना में 27.43% की वृद्धि दर्शाता है।
    • वर्ष 2022 की तुलना में खुदरा कीमतों में वृद्धि हुई है, अक्तूबर 2023 में प्रति किलोग्राम चावल की औसत कीमत एक वर्ष पहले की तुलना में 12.59% अधिक है तथा सरकार द्वारा निर्यात नियमों को लागू किये जाने की तुलना में 11.72% अधिक है।
  • समग्र आर्थिक प्रभाव:
    • चावल निर्यात पर प्रतिबंधों के दूरगामी आर्थिक परिणाम सामने आए हैं, जिससे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ार प्रभावित हुए हैं।
    • इन परिणामों में कीमतों में उतार-चढ़ाव, वैश्विक व्यापार में व्यवधान और आयात करने वाले देशों में खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव शामिल हैं।

भारत द्वारा चावल का निर्यात

  • भारत विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (USDA) के अनुसार, वर्ष 2022 के दौरान कुल वैश्विक चावल निर्यात (56 मिलियन टन) में भारत का योगदान लगभग 40% था।
  • भारत के चावल निर्यात को मोटे तौर पर बासमती और गैर-बासमती चावल में वर्गीकृत किया गया है।
  • बासमती चावल: सत्र 2022-23 में भारत ने 45.61 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल का निर्यात किया।
  • भारत से बासमती चावल के शीर्ष आयातकों में ईरान, सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और यमन शामिल हैं।
  • गैर-बासमती चावल: वित्त वर्ष 2022-23 में भारत ने 177.91 लाख मीट्रिक टन गैर-बासमती चावल का निर्यात किया।
  • गैर-बासमती चावल में सोना मसूरी और जीरा चावल जैसी किस्में शामिल हैं।
  • गैर-बासमती श्वेत चावल का शीर्ष गंतव्य: बेनिन, मेडागास्कर, केन्या, कोटे डी' आइवर, मोज़ाम्बिक, वियतनाम।
  • देश में गैर-बासमती चावल श्रेणी में 6 उप-श्रेणियाँ शामिल हैं- बीज के गुणों वाले भूसी युक्त चावल; भूसी युक्त अन्य चावल; भूसी (भूरा) चावल; उसना (Parboiled) चावल; गैर-बासमती सफेद चावल; और टूटे हुए चावल।

श्रमिक उत्पादकता और आर्थिक विकास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उद्योग जगत के एक अभिकर्त्ता ने युवा भारतीयों से प्रति सप्ताह 70 घंटे काम करने का आग्रह करके श्रमिक उत्पादकता एवं आर्थिक विकास पर बहस छेड़ दी है।

  • उन्होंने जापान और जर्मनी को उन देशों के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जो इसलिये विकसित हो सके क्योंकि उनके नागरिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपने राष्ट्रों के पुनर्निर्माण के लिये लंबी अवधि तक कार्य करते हुए कड़ी मेहनत की ।

श्रमिक उत्पादकता

  • परिचय:
    • श्रमिक उत्पादकता और श्रम उत्पादकता के बीच एकमात्र वैचारिक अंतर यह है कि श्रमिक उत्पादकता में 'कार्य' मानसिक गतिविधियों का वर्णन करता है जबकि श्रम उत्पादकता में 'कार्य' ज्यादातर शारीरिक गतिविधियों से जुड़ा होता है।
    • किसी गतिविधि की उत्पादकता को आमतौर पर सूक्ष्म स्तर पर श्रम (समय) लागत की प्रति इकाई आउटपुट मूल्य की मात्रा के रूप में मापा जाता है।
    • व्यापक स्तर पर इसे श्रम-उत्पादन अनुपात या प्रत्येक क्षेत्र में प्रति कर्मचारी शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP) में परिवर्तन के संदर्भ में मापा जाता है (जहाँ काम के लिये प्रतिदिन 8 घंटे अनिवार्य माने जाते हैं)।
  • बौद्धिक कार्यकर्त्ता उत्पादकता को मापना:
    • कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से बौद्धिक श्रम से जुड़े, में उत्पादन के मूल्य का मूल्यांकन करना स्वाभाविक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • परिणामस्वरूप, श्रमिक उत्पादकता अक्सर श्रमिक आय के आधार पर अनुमानित की जाती है, जो उच्च उत्पादकता के साथ बढ़ते कार्य घंटों को सहसंबंधित करने के प्रयास में जटिलता उत्पन्न कर सकती है, विशेष रूप से ऐसी स्थिति में जब श्रमिकों को उनके अतिरिक्त प्रयासों के लिये उचित मुआवज़ा नहीं मिलता है।
  • उत्पादकता में कौशल की भूमिका:
    • उत्पादकता सिर्फ समय के विषय में नहीं है, यह कौशल के विषय में भी है। शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य और मानव पूंजी के अन्य पहलुओं में निवेश करके, श्रमिक अधिक कुशल बन सकते हैं तथा समान समय में अधिक उत्पादन कर सकते हैं। 
    • इसलिये, कम घंटे कार्य करने से आउटपुट का कम होना ज़रूरी नहीं; बल्कि इससे श्रमिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
    • अर्थव्यवस्था अब भी बढ़ सकती है जब तक कि श्रमिक अधिक कुशल और उत्पादक बनते हैं तथा नाममात्र मज़दूरी समान रहती है।

श्रमिक उत्पादकता और आर्थिक विकास के बीच संबंध

  • किसी भी क्षेत्र के माध्यम से की गई उत्पादकता में वृद्धि से अर्थव्यवस्था में मूल्यवर्धित, संचय या वृद्धि पर प्रभाव पड़ने की संभावना है, दोनों के बीच संबंध काफी जटिल हैं।
  • वर्ष 1980 से 2015 की अवधि के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो मज़बूत आर्थिक विकास का संकेत है। हालाँकि इस आर्थिक विकास से समाज के सभी वर्गों को समान रूप से लाभ नहीं हुआ है।
  • वर्ष 1980 में भारत की GDP लगभग 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो वर्ष 2015 तक 2,000 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई।
  • हालाँकि जब आय वितरण को देखते हैं, तो वर्ष 1980-2015 के दौरान राष्ट्रीय आय में मध्यम-आय समूह की हिस्सेदारी 48% से घटकर 29% हो गई और निम्न-आय समूह की हिस्सेदारी 23% से घटकर 14% हो गई।
  • इसके विपरीत, शीर्ष 10% आय अर्जित करने वाले समूह की हिस्सेदारी 30% से बढ़कर 58% हो गई, जो इस अवधि के दौरान देश में बढ़ते आय अंतर को दर्शाता है।
  • विभिन्न आय समूहों के बीच इस आय असमानता और समृद्धि के विषम वितरण को उत्पादकता द्वारा नहीं बल्कि खराब श्रम कानूनों, धन के वंशानुगत हस्तांतरण एवं अत्यधिक वेतन पैकेज़ों द्वारा समझाया गया है।

भारत में श्रमिक उत्पादकता

  • आय और श्रम में समानता के संबंध में प्रचलित धारणाओं के बावजूद, भारत में श्रमिक उत्पादकता कम नहीं हुई है। श्रम कानून, श्रमिकों के लिये प्रतिकूल नियम और अनौपचारिक रोज़गार जैसे कई मुद्दों ने 1980 के दशक से वेतन में कमी में योगदान दिया है।
  • वैश्विक कार्यबल प्रबंधन कंपनी क्रोनोस ने भारतीय कर्मचारियों को विश्व के सबसे मेहनती कर्मचारियों में से एक के रूप में मान्यता दी है।
  • इसके विपरीत, औसत मासिक वेतन के मामले में भारत काफी नीचे है।

आगे की राह 

  • भारत का परिदृश्य काफी अलग है तथा दूसरों देशों के साथ किसी भी तुलना से केवल भ्रामक नीतिगत सिफारिशें एवं संदिग्ध विश्लेषणात्मक निष्कर्ष सामने आएँगे।
  • उदाहरण के लिये, जापान तथा जर्मनी न तो श्रम बल के आकार व गुणवत्ता के मामले में तुलनीय हैं और न ही उनके तकनीकी प्रक्षेप पथ की प्रकृति अथवा उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक व राजनीतिक संरचनाओं में समानता है।
  • अधिक सतत् और वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिये सामाजिक निवेश को बढ़ाना तथा विकास की सफलताओं के मानव-केंद्रित मूल्यांकन को बनाए रखते हुए अधिक उत्पादकता के लिये घरेलू उपभोग की संभावनाओं की जाँच को प्राथमिकता देना आवश्यक है।

डिजिटल ऋण परिदृश्य में धोखाधड़ी वाले ऋण एप का खतरा

चर्चा में क्यों?

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर धोखाधड़ी वाले ऋण एप्स का प्रसार उधारकर्त्ताओं के लिये गंभीर जोखिम पैदा कर रहे है, जिसमें अत्यधिक ब्याज दरों के साथ ही मानसिक उत्पीड़न की घटनाएँ भी बढ़ रही हैं।

  • डिजिटल ऋण प्रदान करने में तेज़ी से वृद्धि के बावजूद नियामक शून्यता के कारण ऐसी घोटालेबाज़ एप्स के प्रसार में मदद मिलती है, जो बिना सोचे-समझे उपयोगकर्त्ताओं का शोषण करते हैं।

धोखाधड़ी वाले ऋण एप क्या हैं?

  • परिचय:
    • नकली ऋण एप्स अनधिकृत और अवैध डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म हैं जो कम आय और कमज़ोर वित्तीय स्थिति वाले लोगों को लक्षित कर 1,000 रुपए से 1 लाख रुपए तक का ऋण प्रदान करते हैं।
    • वे बिना किसी क्रेडिट जाँच, दस्तावेज़ या संपार्श्विक के तत्काल और बिना किसी परेशानी के ऋण प्रदान करने का दावा करते हैं।
  • परिचालन प्रक्रिया:
    • धोखाधड़ी करने वाले ऋण एप अक्सर स्वयं को ऋण कैलकुलेटर या एग्रीगेटर जैसे वैध वित्तीय उपकरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो वित्तीय सहायता चाहने वाले उपयोगकर्त्ताओं के विश्वास का फायदा उठाते हैं।
    • ये एप्स विशाल उपयोगकर्त्ता आधार का लाभ उठाते हुए इंस्टाग्राम, फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर स्वतंत्र रूप से विज्ञापन जारी करते हैं।
    • हालाँकि चेतावनी के संकेत होने के बावजूद सावधानीपूर्वक जाँच न किये जाने के कारण वे अपने भ्रामक विज्ञापन जारी रखने सफल होते हैं।
    • चेतावनी के संकेत होने के बावजूद सावधानीपूर्वक जाँच का अभाव उन्हें अपने भ्रामक विज्ञापन जारी रखने की अनुमति देता है।
    • झूठे दावों और वादों से आकर्षित होकर उपयोगकर्त्ता इन भ्रामक एप्स का शिकार हो जाते हैं, जिससे उन्हें अत्यधिक ब्याज दरों के साथ ही उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है।
    • यदि उधारकर्त्ता समय पर ऋण चुकाने में विफल रहता है, तो एप द्वारा उधारकर्त्ता और उसके संपर्कों के ज़रिये अपमानजनक तथा धमकी भरे संदेश, कॉल एवं ईमेल भेजना शुरू कर दिया जाता है। 
    • यह एप उधारकर्त्ता की तस्वीरों और वीडियो तक भी पहुँच सकता है तथा उन्हें ब्लैकमेल करने के लिये विकृत व अश्लील छवियाँ बना सकता है।
    • कुछ एप्स रिकवरी एजेंटों को कार्य पर रखकर शारीरिक हिंसा और उत्पीड़न का सहारा भी लेते हैं।
    • कुछ मामलों में अत्यधिक दबाव और अपमान के कारण कर्ज़दार आत्महत्या करने के लिये मजबूर हो जाते हैं।
  • डिजिटल ऋण का विकास और धोखाधड़ी करने वालों का उदय:
    • पिछले 11 वर्षों में डिजिटल ऋण बाज़ार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2023 तक अनुमानित 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, यह लगभग 40% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है, इसमें से अधिकांश गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) और बैंकों से समर्थित वास्तविक फिनटेक कंपनियों द्वारा संचालित है।
    • हालाँकि इस वृद्धि ने धोखेबाज़ों के लिये एक अवसर भी प्रदान किया है, अवैध ऋण बाज़ार संभावित रूप से 700-800 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
    • बैंकों, NBFC और फिनटेक कंपनियों के नेतृत्व में वर्ष 2023 में डिजिटल ऋण 80 बिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है। यह बैंकों, NBFC और फिनटेक कंपनियों के बीच सहयोग बढ़ाने में योगदान देता है।

धोखाधड़ी वाले ऋण एप्स को लेकर क्या चिंताएँ हैं?

  • विनियामक मानदंडों का अभाव:
    • हितधारक, सरकार और नियामक मानदंडों की अनुपस्थिति की कमी को उजागर करते हैं, जो ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म को अपेक्षित प्रयास (Minimal due Diligence) की अनुमति देता है।    
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY), भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) एवं राज्य सरकारों जैसे विभिन्न नियामकों के बीच समन्वय एवं पर्यवेक्षण का अभाव है।
    • प्रवर्तन और जवाबदेही की कमी के चलते कई अवैध ऋण एप नकली या विदेशी पहचान का उपयोग कर बार-बार अपना नाम तथा व्यक्तिगत पहचान को परिवर्तित करते हैं ताकि कई चैनलों एवं मध्यस्थों के माध्यम से संचालन कर व अपनी पहचान छुपाकर कार्रवाई से बच सकें।
  • RBI के सीमित दिशा-निर्देश:
    • हालाँकि RBI ने सितंबर 2022 में डिजिटल ऋण देने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये लेकिन ये दिशा-निर्देश केवल बैंकों और NBFC जैसी विनियमित संस्थाओं पर लागू होते हैं। कारणवश धोखाधड़ी करने वाले एप्स पर काफी हद तक नियंत्रण लगाना मुश्किल हो जाता है।
  • सोशल मीडिया कंपनियों की गंभीरता की कमी:
    • बढ़ते खतरे के बावजूद नकली ऋण एप्स के विज्ञापनों की सक्रिय रूप से निगरानी नहीं करने के लिये सोशल मीडिया कंपनियों की आलोचना की जाती है।
    • कुछ व्यक्तियों का तर्क है कि कॉर्पोरेट क्षेत्र का लालच कमज़ोर निरीक्षण में भूमिका निभाता है।
  • विनियामक अनिश्चितता का वैध एप्स पर प्रभाव:
    • विनियामक कार्रवाई कभी-कभी वैध ऋण देने वाले एप्स को प्रभावित करती है, जिससे अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • वर्ष 2021 में कुछ एप्स पर प्रतिबंध ने वास्तविक ऋण देने वाली कंपनियों को प्रभावित किया, जो नियामक कार्यों में चुनौतियों को दर्शाता है।
  • वैध NBFC की गलतबयानी:
    • वैध NBFC अवैध ऋण देने वाले एप्स द्वारा उनकी गलतबयानी के विषय में चिंता व्यक्त करते हैं।
    • कुछ धोखाधड़ी वाले एप्स पूरे क्षेत्र की प्रतिष्ठा को धूमिल कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता जागरूकता:
    • उपभोक्ता जागरूकता और सुरक्षा की कमी, कई उधारकर्त्ता ऋण एप्स की साख और शर्तों को सत्यापित नहीं करते तथा उनकी भ्रामक प्रथाओं का शिकार हो जाते हैं।

आगे की राह

  • नियामक ढाँचे को मज़बूत बनाना:
    • डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफाॅर्मों, विशेष रूप से मोबाइल एप के माध्यम से कार्य करने वाले प्लेटफाॅर्मों के लिये व्यापक कानूनी दिशा-निर्देश स्थापित करना।
    • अनियमित प्लेटफाॅर्मों सहित डिजिटल ऋण देने वाली संस्थाओं के व्यापक स्पेक्ट्रम को कवर करने के लिये RBI दिशा-निर्देशों का दायरा बढ़ाना।
    • धोखाधड़ी वाले ऋण एप्स को विनियामक अंतराल का लाभ उठाने से रोकने के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिये सख्त उचित प्रक्रियाएँ लागू करना।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर निगरानी बढ़ाना:
    • ऋण एप्स से संबंधित विज्ञापनों की सक्रिय निगरानी तथा विनियमन के लिये सोशल मीडिया कंपनियों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।
    • धोखाधड़ी वाले एप्स की पहचान कर उन्हें हटाने के लिये कड़ी स्क्रीनिंग प्रक्रियाओं को लागू करने के लिये सोशल मीडिया कंपनियों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • उन सोशल मीडिया कंपनियों पर दंड लगाना जो अपने प्लेटफॉर्म पर नकली ऋण एप्स के प्रसार को रोकने में विफल रहती हैं।
  • उपभोक्ता शिक्षा तथा जागरूकता:
    • उपयोगकर्त्ताओं को धोखाधड़ी वाले ऋण एप्स से संबंधित जोखिमों के बारे में शिक्षित करने हेतु  जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिये।
    • उत्तरदायी ऋण प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये तथा व्यक्तियों को ऋण देने वाले प्लेटफाॅर्मों से जुड़ने से पहले उनकी वैधता को सत्यापित करने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • सीमा पार धोखाधड़ी वाले ऋण एप संचालन को ट्रैक करने तथा दंडित करने के लिये वैश्विक संगठनों एवं नियामकों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिये।
    • नियामक उपायों को सशक्त करने एवं डिजिटल ऋण चुनौतियों से निपटने के लिये एकीकृत दृष्टिकोण सुनिश्चित करने हेतु संबद्ध विषय की वैश्विक विशेषज्ञता का उपयोग करने की आवश्यकता है।
The document Economic Development (आर्थिक विकास): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
245 videos|240 docs|115 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on Economic Development (आर्थिक विकास): November 2023 UPSC Current Affairs - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. टैक्स हेवेन के रूप में साइप्रस क्या है?
उत्तर: साइप्रस एक आर्थिक उपमहाद्वीप है जो टैक्स हेवेन के रूप में प्रसिद्ध हुआ है। इसका मतलब है कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां आर्थिक गतिविधियाँ अधिकतर अस्पष्ट होती हैं और टैक्स के नियमों को लागू करने में कमी होती है।
2. कृत्रिम बुद्धिमत्ता क्यों महत्त्वपूर्ण है और इसका विनियमन कैसे किया जाता है?
उत्तर: कृत्रिम बुद्धिमत्ता का महत्त्व यह है कि यह मशीनों और कंप्यूटर प्रोग्रामों को मानव समझने और विश्लेषण करने की क्षमता है। इसका विनियमन विभिन्न तकनीकी मानकों, नीतियों और नियमों के माध्यम से किया जाता है जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग और विकास को नियंत्रित करते हैं।
3. खाद्य लेबल के लिए QR कोड का क्या महत्त्व है?
उत्तर: खाद्य लेबल पर QR कोड का महत्त्व यह है कि यह उपभोक्ताओं को खाद्य उत्पाद के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। QR कोड को स्कैन करके उपभोक्ता जान सकते हैं कि उत्पाद में कौन से संघटक मौजूद हैं, उत्पाद के निर्माण की तारीख, सबसे अधिक उपयोग होने वाली सामग्री, उत्पाद के आपूर्ति चेन के बारे में आदि।
4. भारतीय रेलवे की राजस्व समस्याएँ क्या हैं?
उत्तर: भारतीय रेलवे की राजस्व समस्याएँ विभिन्न हो सकती हैं। कुछ मुख्य समस्याएं शामिल हैं: यात्रा और रेलवे सेवाओं की कम डिमांड, यात्रा और सामान वाहन के बीच मुकाबले में कम लाभ, कार्यकारी दक्षता में कमी, रेलवे सम्बन्धित बिल्डिंग और अपडेट की कमी, महंगाई के कारण बढ़ती व्यय आदि।
5. चावल के निर्यात प्रतिबंध का प्रभाव क्या है?
उत्तर: चावल के निर्यात प्रतिबंध का प्रभाव अर्थात रोक का मतलब है कि चावल के आउटबाउंड वाणिज्यिक प्रवाह को सीमित कर दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप, चावल उत्पादक देश में अधिक उपभोग किया जाता है और निर्यात देशों में कम। यह व्यापारिक और आर्थिक प्रभावों को प्रभावित कर सकता है, जैसे कि चावल के निर्यात से आय की कमी, कृषि क्षेत्र में विकास की गति में कमी आदि।
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Exam

,

video lectures

,

study material

,

Free

,

pdf

,

shortcuts and tricks

,

mock tests for examination

,

practice quizzes

,

Summary

,

Economic Development (आर्थिक विकास): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

,

MCQs

,

Objective type Questions

,

Important questions

,

Extra Questions

,

ppt

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Sample Paper

,

Viva Questions

,

past year papers

,

Economic Development (आर्थिक विकास): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

,

Semester Notes

,

Economic Development (आर्थिक विकास): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

;