UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi  >  Geography (भूगोल): November 2023 UPSC Current Affairs

Geography (भूगोल): November 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

आइसलैंड में भूकंप 

चर्चा में क्यों?

आइसलैंड ने 14 घंटे से भी कम समय में दक्षिण-पश्चिमी रेक्जेन्स (Reykjanes) प्रायद्वीप में आए 800 भूकंपों की शृंखला के बाद आपात स्थिति की घोषणा कर दी है।

  • आइसलैंड में एक ही दिन में लगभग 1,400 भूकंप आए। उल्लेखनीय है कि अक्तूबर 2023 के अंत से अब तक प्रायद्वीप में 24,000 से अधिक भूकंपीय घटनाएँ घटित हुई हैं। इनमें से सबसे शक्तिशाली भूकंप, 5.2 की तीव्रता के साथ, आइसलैंड की राजधानी रेक्जाविक (Reykjavík) से लगभग 40 किमी. की दूरी पर दर्ज़ किया गया।

Geography (भूगोल): November 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

आइसलैंड में क्या हो रहा है?

  • आइसलैंड के बारे में:
    • आइसलैंड मध्य-अटलांटिक कटक (Mid-Atlantic Ridge) पर अवस्थित है, जो तकनीकी रूप से विश्व की सबसे लंबी पर्वत शृंखला है, लेकिन यह अटलांटिक महासागर के तल पर स्थित है। यह कटक यूरेशियाई और उत्तरी अमेरिकी विवर्तनिक प्लेटों को एक-दूसरे से अलग करती है जिसके परिणामस्वरूप यह क्षेत्र भूकंपीय गतिविधि का केंद्र बन जाता है।
    • मध्य-अटलांटिक कटक एक अपसारी या निर्माणात्मक प्लेट सीमा है जहाँ विवर्तनिक प्लेटें एक-दूसरे से दूर चली जाती हैं, जिसके फलस्वरूप नई महासागरीय पर्पटी का निर्माण होता है।
    • रेक्जाविक में स्थित पेरलान नामक प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, इस भूवैज्ञानिक समायोजन के चलते ही क्षेत्र में बार-बार भूकंप आने का खतरा बना रहता है। इन भूकंपीय घटनाओं की बारंबारता का वार्षिक औसत लगभग 26,000 है।
    • हालाँकि इनमें से अधिकांश भूकंपीय झटकों पर ध्यान नहीं दिया जाता है लेकिन श्रेणी भूकंप /भूकंप झुंड /भूकंपों की शृंखला (Earthquake Swarms) की घटना, जिसमें बिना किसी मुख्य झटके के कई निम्न परिमाण वाले भूकंप शामिल हैं, आसन्न ज्वालामुखी विस्फोट की संभावना को इंगित करती है।
    • ये श्रेणी भूकंप विशिष्ट क्षेत्रों में बढ़े हुए विवर्तनिक तनाव का संकेत देते हैं।
  • आइसलैंड में प्रमुख ज्वालामुखी घटनाएँ:
    • आइसलैंड में कुल 33 सक्रिय ज्वालामुखी हैं।
    • आइसलैंड के सबसे प्रसिद्ध ज्वालामुखियों में से एक, आईजफजल्लाजोकुल (Eyjafjallajökull), में वर्ष 2010 में विस्फोट हुआ था जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर राख के बादल छा गए थे।
    • अन्य उल्लेखनीय ज्वालामुखियों में हेक्ला (Hekla), ग्रिम्सवोटन (Grímsvötn), होलुह्रौन (Hóluhraun) और लिटली-ह्रुतूर (Litli-Hrútur) शामिल हैं, जो फाग्राडल्सफजाल (Fagradalsfjall) प्रणाली का हिस्सा हैं।

किस प्रकार श्रेणी भूकंप ज्वालामुखीय गतिविधि का संकेत हैं?

  • मैग्मा का निर्माण और संचलन:
    • पृथ्वी की सतह के नीचे अत्यधिक गर्मी के कारण चट्टानें पिघलती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मैग्मा बनता है, यह ठोस चट्टान की तुलना में हल्का तरल पदार्थ है।
    • मैग्मा की उत्प्लावाकता इसे ऊपर की ओर ले जाती है, जिसका अधिकांश हिस्सा मुख्य रूप से गहरे भूमिगत मैग्मा कक्षों तक सीमित होता है।
  • ज्वालामुखी विस्फोट:
    • हालाँकि अधिकांश मैग्मा समय के साथ ठंडा और ठोस हो जाता है लेकिन इसका एक अंश पृथ्वी की सतह पर छिद्रों एवं दरारों के माध्यम से ऊपर निकलने लगता है।
    • यह उद्गार सतह के नीचे होने वाली भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का दृश्यमान परिणाम है।
  • श्रेणी भूकंप संकेतक के रूप में:
    • पृथ्वी की सतह के निकट मैग्मा की गति आसपास की चट्टानी परतों पर बल आरोपित करती है।
    • इस बल के कारण अक्सर किसी विशेष क्षेत्र में श्रेणी भूकंप/भूकंपीय गतिविधि की शृंखलाबद्ध घटना जैसी स्थिति उत्पन्न होती है।
  • विस्फोट से निकटता:
    • मैग्मा का भूमिगत संचलन हमेशा ज्वालामुखी विस्फोट के रूप में ही परिणत नहीं होता है।
    • मैग्मा पृथ्वी की सतह के जितना निकट आता है, विस्फोट की संभावना उतनी ही अधिक होती है, साथ ही अधिक बारंबारता वाले सांकेतिक श्रेणी भूकंप भी आते हैं।

लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्ववर्षावनों का अस्तित्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज़ (BSIP) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व अर्ली इओसीन क्लाइमेट ऑप्टिमम (Early Eocene Climatic Optimum- EECO) के भूमध्यरेखीय (उष्णकटिबंधीय) वर्षावनों की जलवायु का खुलासा किया है, जो तब अस्तित्व में थी जब पृथ्वी वैश्विक स्तर पर गर्म थी।

  • इस अनुसंधान ने अतीत के स्थलीय भूमध्यरेखीय जलवायु डेटा की मात्रा निर्धारित करने हेतु प्लांट प्रॉक्सी को नियोजित करते हुए नवीन तकनीकों का उपयोग किया। इन तरीकों से उन तंत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिली जो प्राचीन वर्षावनों को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम बनाते थे।

अध्ययन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • भूमध्यरेखीय वर्षावनों का लचीलापन:
    • लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले वैश्विक स्तर पर गर्मी और वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर के बावजूद भूमध्यरेखीय वर्षावन न केवल अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहे बल्कि फले-फूले भी।
    • पहले यह ज्ञात था कि पृथ्वी वर्तमान की तुलना में लगभग 13 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म थी और इस दौरान कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 1000 ppmv से अधिक थी।
    • जल विज्ञान चक्र में परिवर्तन के कारण मध्य और उच्च अक्षांश के वनों के अस्तित्व पर इसका काफी प्रभाव पड़ा, लेकिन भूमध्यरेखीय वन अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल रहे।
  • उच्च वर्षा की भूमिका:
    • अध्ययन में भूमध्यरेखीय वर्षावनों के अस्तित्व को बनाए रखने और उन्हें समृद्ध करने वाले एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में उच्च वर्षा पर प्रकाश डाला गया है।
    • उच्च वर्षा से पौधों की जल उपयोग दक्षता में वृद्धि होने की संभावना है, जिससे वनस्पतियों को अत्यधिक गर्मी और उच्च कार्बन डाइऑक्साइड स्तरों में कार्य करने की अनुमति मिलेगी।
  • इस अध्ययन के निहितार्थ:
    • EECO जैसे ऊष्म अवधि के दौरान भूमध्यरेखीय वर्षावनों की जलवायु गतिशीलता एवं लचीलेपन को समझना भविष्य के जलवायु पूर्वानुमानों के लिये महत्त्व रखता है तथा विषम जलवायु परिस्थितियों में उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्र के अस्तित्व हेतु रणनीतियाँ बनाने में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

भूमध्यरेखीय वर्षावन क्या हैं?

  • परिचय:
    • भूमध्यरेखीय वर्षावन (Equatorial Rainforests) उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भूमध्य रेखा के पास पाए जाने वाले हरे-भरे, जैवविविधता वाले वन हैं।
    • ये वन आमतौर पर भूमध्य रेखा के उत्तर अथवा दक्षिण में 10 डिग्री अक्षांश के अंतर्गत स्थित होते हैं तथा इनमें समग्र वर्ष उच्च तापमान एवं भारी वर्षा की स्थिति बनी रहती है।

Geography (भूगोल): November 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • जलवायु: इन वनों में ऊष्म तथा आर्द्र जलवायु की स्थिति होती है  जहाँ वर्ष भर लगातार उच्च तापमान होता है जो आमतौर पर औसत 25-27 डिग्री सेल्सियस (77-81 डिग्री फारेनहाइट) के आसपास होता है। यहाँ भारी वर्षा होती है, जो अमूमन सालाना 2,000 मिलीमीटर (80 इंच) से अधिक होती है, जिसके कारण इसे "वर्षावन" कहा जाता है।
    • जैवविविधता: भूमध्यरेखीय वर्षावन पृथ्वी पर सबसे विविध पारिस्थितिक तंत्रों में से हैं, जिनमें पौधों तथा जीवों की प्रजातियों की अविश्वसनीय रूप से समृद्ध विविधता पाई जाती है।
    • इन वनों में पेड़ों, पौधों, कीटों, पक्षियों, स्तनपायी जीवों तथा अन्य जीवों की असंख्य प्रजातियाँ मौजूद हैं, जिनमें से कई इन क्षेत्रों के लिये स्थानिक हैं।
    • वनस्पति तथा जीव: भूमध्यरेखीय वर्षावनों में ऊँचे वृक्ष पाए जाते हैं जो गहन छतरियों के रूप में वन के धरातल को छाया प्रदान करते हैं, जिससे एक बहुस्तरीय पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण होता है।
    • इनमें विभिन्न प्रकार के पौधों की प्रजातियाँ, जिनमें एपिफाइट्स (अन्य पौधों पर उगने वाले पौधे), लियाना (ऊपर की ओर जाने वाली लताएँ) तथा पेड़ों की कई प्रजातियाँ शामिल हैं जो  समृद्ध जैवविविधता में योगदान करती हैं।
    • महत्त्व: भूमध्यरेखीय वर्षावन पृथ्वी की जलवायु और कार्बन चक्र को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त वे अनगिनत प्रजातियों के लिये आवास प्रदान करते हैं, स्वदेशी समुदायों का समर्थन करते हैं और औषधीय पौधों के संसाधनों के केंद्र हैं।
    • खतरे: दुर्भाग्य से इन वर्षावनों के निर्वनीकरण, कटाई, कृषि, खनन और अन्य मानवीय गतिविधियों जैसे खतरों का सामना करना पड़ता है।
    • जलवायु परिवर्तन इन वनों में रहने वाली विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के लिये खतरा उत्पन्न करने के अलावा उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को नुकसान पहुँचाकर वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है।

ग्लोबल एनर्जी मॉनीटर का ग्लोबल कोल प्लांट ट्रैकर

चर्चा  में क्यों?

हाल ही में दुनिया भर में कोयला परियोजनाओं को सूचीबद्ध करने वाली गैर-लाभकारी संस्था ग्लोबल एनर्जी मॉनीटर (GEM) ने GEM के ग्लोबल कोल प्लांट ट्रैकर का अपना त्रैमासिक अपडेट जारी किया है, जिसमें दुनिया भर में कोयला बिजली परियोजनाओं की स्थिति के बारे में कई प्रमुख निष्कर्षों पर प्रकाश डाला गया है।

GEM रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • कोयला निर्माण में वैश्विक रुझान:
    • वर्ष 2023 में निर्माण शुरू होने वाली 95% से अधिक कोयला संयंत्र क्षमता चीन में है, जो नई कोयला परियोजनाओं में प्रभुत्व को दर्शाता है।
    • लगातार दूसरे वर्ष नई कोयला बिजली क्षमता निर्माण में गिरावट देखी गई है, जो कई क्षेत्रों में कोयले के उपयोग को कम करने के संकेत हैं।
  • विचाराधीन कोयला क्षमता:
    • 32 देशों में 110 गीगावाट कोयला बिजली क्षमता पर विचार किया जा रहा है, जिससे पता चलता है कि बड़ी मात्रा में कोयला परियोजनाओं पर अभी भी विचार-विमर्श किया जा रहा है।
    • भारत, बांग्लादेश और इंडोनेशिया अग्रणी देश हैं, जिनमें चीन के बाहर प्रस्तावित कोयला क्षमता का 83% हिस्सा शामिल है।
  • परियोजना की स्थिति पर रुझान:
    • वर्ष 2023 के पहले नौ महीनों में कई देशों में 18.3 गीगावाट क्षमता वाले कोयला चालित संयंत्र स्थापना परियोजनाएँ प्रस्तावित की गई थी, जिसे स्थगित या रद्द कर दिया गया है।
    • रद्द करने के बावजूद भारत, इंडोनेशिया, कज़ाखस्तान और मंगोलिया में 15.3 गीगावाट के पूरी तरह से कई नए प्रस्ताव सामने आए हैं ।
    • जुलाई 2023 तक भारत, इंडोनेशिया, बांग्लादेश और वियतनाम चीन के बाहर निर्माणाधीन 67 गीगावाट कोयला विद्युत क्षमता के 84% का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • भारत ने वर्ष 2032 तक कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्र की क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि करने की योजना बनाई है, जिसका लक्ष्य राष्ट्रीय विद्युत योजना 2022-32 (NEP) में पहले निर्धारित लक्ष्य  27 गीगावाट की तुलना में 80 गीगावाट कर दिया गया है।
    • भारत में विशिष्ट राज्यों ने कोयला संयंत्र परियोजनाओं में प्रगति दर्शाई है, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में परमिट दिये गए हैं और प्रगति की सूचना दी है।
  • सिफारिशें:
    • जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों के बीच रिपोर्ट ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावी ढंग से सीमित करने के लिये बिना किसी विनियम के नए कोयला विद्युत संयंत्रों के निर्माण को रोकने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देती है।

कोयला क्या है?

  • परिचय:
    • यह एक प्रकार का जीवाश्म ईंधन है जो तलछटी चट्टानों के रूप में पाया जाता है और इसे प्राय: 'ब्लैक गोल्ड' के नाम से जाना जाता है।
    • यह ऊर्जा का एक पारंपरिक स्रोत है और व्यापक रूप से उपलब्ध है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में लोहा एवं इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में बिजली उत्पादित करने के लिये किया जाता है। कोयले से प्राप्त बिजली को तापीय ऊर्जा कहा जाता है।
    • विश्व के प्रमुख कोयला उत्पादकों में चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, भारत शामिल हैं।
  • भारत में कोयला वितरण:
    • गोंडवाना कोयला क्षेत्र (250 मिलियन वर्ष पुराना):
    • गोंडवाना कोयला भारत में कुल भंडार का 98% और कोयले के उत्पादन का 99% भाग है।
    • गोंडवाना कोयला भारत के धातुकर्म ग्रेड के साथ-साथ बेहतर गुणवत्ता वाले कोयले का निर्माण करता है।
    • यह दामोदर (झारखंड-पश्चिम बंगाल), महानदी (छत्तीसगढ़-ओडिशा), गोदावरी (महाराष्ट्र) तथा नर्मदा घाटियों में पाया जाता है।
  • टर्शियरी कोयला क्षेत्र (15-60 मिलियन वर्ष पुराना):
    • कार्बन की मात्रा बहुत कम होती है लेकिन नमी और सल्फर प्रचुर मात्रा में होता है।
    • टर्शियरी कोयला क्षेत्र मुख्यतः अतिरिक्त-प्रायद्वीपीय क्षेत्रों तक ही सीमित हैं।
    • महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग की हिमालय की तलहटी, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और केरल शामिल हैं।
  • वर्गीकरण:
    • एन्थ्रेसाइट (80-95% कार्बन सामग्री), यह जम्मू-कश्मीर में कम मात्रा में पाया जाता है।
    • बिटुमिनस (60-80% कार्बन सामग्री), यह  झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
    • लिग्नाइट (40 से 55% कार्बन सामग्री), यह राजस्थान, लखीमपुर (असम) एवं तमिलनाडु में पाया जाता है।
    • पीट (40% से कम कार्बन सामग्री), यह कार्बनिक पदार्थ (लकड़ी) से कोयले में परिवर्तन के पहले चरण में है।

चीन में जनसंख्या सर्वेक्षण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन ने जनसंख्या परिवर्तन के कारण 1.4 मिलियन व्यक्तियों पर एक सर्वेक्षण शुरू किया क्योंकि घटती जन्म दर और छह दशकों से अधिक समय में पहली बार जनसंख्या में गिरावट के कारण अधिकारी, व्यक्तियों को अधिक संतान पैदा करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु संघर्ष कर रहे हैं।

  • चीन में 60 से अधिक वर्षों में पहली बार जन्म दर और जनसंख्या में गिरावट के साथ वर्ष 2022 में लगभग 850,000 लोगों की कमी का अनुभव किया गया है।
  • वर्ष 1961 में चीन के भीषण अकाल के बाद पहली बार वर्ष 2022 में वहाँ की जनसंख्या में गिरावट का अनुभव किया गया।

जनसंख्या के लिये चीन की अब तक की नीतियाँ

  • वन चाइल्ड पाॅलिसी:
    • चीन ने वर्ष 1980 में तब अपनी वन चाइल्ड पाॅलिसी शुरू की, जब वहाँ की सरकार इस बात से चिंतित थी कि देश की बढ़ती जनसंख्या (जो कि उस समय एक अरब के करीब पहुँच रही थी) आर्थिक प्रगति में बाधा बनेगी।
    • चीनी अधिकारियों ने लंबे समय से चल रही इस नीति को सफल बताया है और दावा किया है कि इससे देश में 40 करोड़ लोगों के जन्म को रोककर भोजन एवं जल की गंभीर कमी को दूर करने में मदद मिली है।
    • यह असंतोष का एक कारण हो सकता है क्योंकि राज्य ने ज़बरन गर्भपात और नसबंदी जैसी क्रूर रणनीति का प्रयोग किया था।
    • इसकी नीति की आलोचना भी हुई तथा यह मानवाधिकारों के उल्लंघन और गरीबों के प्रति अन्याय के कारण विवादास्पद रही।
  • टू चाइल्ड पाॅलिसी:
    • वर्ष 2016 से चीनी सरकार ने अंततः प्रति जोड़े के लिये दो संतान की अनुमति दी, इस नीति परिवर्तन ने जनसंख्या वृद्धि में तेज़ी से गिरावट को रोकने में बहुत कम योगदान दिया।
  • थ्री चाइल्ड पाॅलिसी:
    • इसकी घोषणा तब की गई जब चीन की वर्ष 2020 की जनगणना के आँकड़ों से पता चला कि वर्ष 2016 की छूट के बावजूद देश की जनसंख्या वृद्धि दर तेज़ी से कम हो रही है।
    • देश की प्रजनन दर कम होकर 1.3 हो गई है जो एक पीढ़ी के लिये पर्याप्त संतान पैदा करने हेतु आवश्यक 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे है।
    • संयुक्त राष्ट्र को उम्मीद है कि चीन की जनसंख्या वर्ष 2030 के बाद कम हो जाएगी लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा अगले एक या दो वर्षों में हो सकता है।

चीन में कम होती जनसंख्या को लेकर चिंताएँ

  • श्रम में कमी:
    • जब किसी देश में युवा जनसंख्या कम हो जाती है, तो इससे श्रम की कमी की स्थिति उत्पन्न होती है जिसका अर्थव्यवस्था पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
  • सामाजिक व्यय में वृद्धि:
    • अधिक वृद्ध व्यक्तियों का अर्थ यह भी है कि स्वास्थ्य देखभाल एवं पेंशन की मांग बढ़ सकती है, जिससे देश की सामाजिक व्यय प्रणाली पर तब और अधिक बोझ पड़ेगा जब कम व्यक्ति कार्य कर रहे हैं तथा इसमें योगदान दे रहे हैं।
  • विकासशील देशों के लिये महत्त्वपूर्ण: 
    • चीन को एक मध्यम आय वाले देश के रूप में जनसंख्या गिरावट की एक अनूठी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है जो कि श्रम केंद्रित क्षेत्रों पर निर्भर करता है, जबकि अमीर देश (जापान और जर्मनी) पूंजी और प्रौद्योगिकी में अधिक निवेश कर सकते हैं। इससे इसकी आर्थिक वृद्धि में कमी आ सकती है और भारत जैसे अन्य विकासशील देशों पर इसका असर पड़ सकता है।
    • जनसंख्या में गिरावट के कारण विश्व पर विभिन्न प्रभाव पड़ सकते हैं जैसे- वैश्विक आर्थिक विकास में धीमी गति और चीन के विनिर्माण तथा निर्यात पर निर्भर आपूर्ति शृंखला का  बाधित होना।
    • यह वैश्विक श्रम बाज़ार और उपभोक्ता मांग में अंतर की समस्या से निपटने में अन्य देशों के लिये अवसर के साथ ही चुनौतियाँ भी पैदा कर सकता है।  

चीन में जनसांख्यिकीय बदलाव भारत के लिये सबक

  • कड़े उपायों से बचाव: 
    • कड़े जनसंख्या नियंत्रण उपायों ने चीन को एक ऐसे मानवीय संकट में डाल दिया है जो अपरिहार्य थे। यदि दो बच्चों की सीमा जैसे कठोर नियम लागू किये जाते हैं, तो भारत की स्थिति और खराब हो सकती है।
  • महिला सशक्तीकरण:
    • प्रजनन दर को कम करने के सिद्ध तरीकों में महिलाओं को उनकी प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण प्रदान करना और शिक्षा, आर्थिक अवसरों एवं स्वास्थ्य देखभाल तक अभिगम बढ़ाकर उनका अधिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
    • वास्तव में चीन की प्रजनन क्षमता में कमी के लिये ज़बरदस्ती नीतियों को लागू करना केवल आंशिक वजह है जबकि यह मुख्य रूप से महिलाओं के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरी के अवसरों में देश द्वारा किये गए निरंतर निवेश के कारण है।
  • जनसंख्या स्थिरीकरण की आवश्यकता: 
    • भारत ने अपने परिवार नियोजन उपायों के चलते बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और अब यह प्रजनन क्षमता 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर पर है जो कि अभीष्ट है। 
    • इसे जनसंख्या स्थिरता को बनाए रखने की आवश्यकता है क्योंकि सिक्किम, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, केरल और कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों में कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे है, जिसका अर्थ है कि भारत ऐसा 30-40 वर्षों में अनुभव कर सकता है जैसा कि चीन अब अनुभव कर रहा है।

निष्कर्ष

  • भारत के पास वर्ष 2040 तक अपनी युवा आबादी (जनसांख्यिकीय लाभांश) से लाभ उठाने का मौका है- जैसा कि चीन ने 2015 तक किया था।
  • लेकिन यह युवाओं के लिये अच्छी नौकरी के अवसर उपलब्ध कराने पर निर्भर करता है। उन अवसरों के बिना भारत का जनसांख्यिकीय लाभ, लाभ के बजाय समस्या बन सकता है।
The document Geography (भूगोल): November 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
55 videos|460 docs|193 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on Geography (भूगोल): November 2023 UPSC Current Affairs - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. इस लेख में किस बात के बारे में चर्चा हो रही है?
उत्तर. इस लेख में आइसलैंड में भूकंप के बारे में चर्चा हो रही है।
2. भूकंप कब और कहां हुआ था?
उत्तर. भूकंप लगभग 50 मिलियन वर्ष पूर्व आइसलैंड में हुआ था।
3. इस लेख में किस चीज का वर्णन किया गया है जो 50 मिलियन वर्ष पहले मौजूद थी?
उत्तर. इस लेख में वर्षावनों का वर्णन किया गया है जो 50 मिलियन वर्ष पहले मौजूद थीं।
4. इस लेख में किस चीज के बारे में चर्चा हो रही है जो ग्लोबल एनर्जी मॉनीटर का हिस्सा है?
उत्तर. इस लेख में ग्लोबल कोल प्लांट ट्रैकर के बारे में चर्चा हो रही है जो ग्लोबल एनर्जी मॉनीटर का हिस्सा है।
5. चीन में किस विषय पर नवंबर 2023 तक जनसंख्या सर्वेक्षण होने की उम्मीद है?
उत्तर. चीन में नवंबर 2023 तक जनसंख्या सर्वेक्षण भूगोल पर होने की उम्मीद है।
55 videos|460 docs|193 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Important questions

,

Semester Notes

,

shortcuts and tricks

,

video lectures

,

ppt

,

Exam

,

Objective type Questions

,

study material

,

practice quizzes

,

Geography (भूगोल): November 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

pdf

,

MCQs

,

Sample Paper

,

Free

,

Extra Questions

,

Previous Year Questions with Solutions

,

mock tests for examination

,

Summary

,

past year papers

,

Geography (भूगोल): November 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

Geography (भूगोल): November 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

Viva Questions

;