UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi  >  Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2023 UPSC Current Affairs

Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

OBC तथा अन्य के लिये श्रेयस योजना

चर्चा में क्यों?

युवा विजेताओं के लिये उच्च शिक्षा हेतु छात्रवृत्ति योजना- श्रेयस (Scholarships for Higher Education for Young Achievers Scheme- SHREYAS) को OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) और EBC के लिये चल रही दो केंद्रीय क्षेत्रक योजनाओं को शामिल करके वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 के दौरान लागू करने का प्रस्ताव दिया गया है। 

  • ये योजनाएँ हैं- OBC के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप तथा अन्य पिछड़े वर्गों (OBC ) एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (EBC) के लिये विदेश में अध्ययन हेतु शैक्षणिक ऋण पर ब्याज अनुदान की डॉ. अंबेडकर केंद्रीय क्षेत्र योजना।

श्रेयस योजना क्या है? 

  • परिचय:
    • इनका मुख्य उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये फेलोशिप (वित्तीय सहायता) तथा विदेश में अध्ययन हेतु शैक्षणिक ऋण पर ब्याज अनुदान प्रदान करके ओबीसी और ईबीसी छात्रों का शैक्षणिक रूप से सशक्त बनाना है। 
  • नोडल मंत्रालय:
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय।

मुख्य घटकः

  • OBC के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप:
    • परिचय: इसका उद्देश्य विभिन्न मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों, अनुसंधान और वैज्ञानिक संस्थानों में  उच्च शिक्षा, विशेष रूप से एम.फिल तथा पीएच.डी की पढाई करने वाले OBC छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। 
    • यह योजना उन्नत अध्ययन और अनुसंधान के लिये सालाना 1000 जूनियर रिसर्च फेलोशिप (वित्तीय सहायता) प्रदान करती है। यह फेलोशिप उन छात्रों को प्रदान की जाती है जिन्होंने UGC-NET या UGC-CSIR NET-JRF संयुक्त परीक्षा जैसे विशिष्ट परीक्षणों के माध्यम से अर्हता प्राप्त की है।
    • मुख्य विशेषताएँ: यह वित्तीय सहायता राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त और विकास निगम (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत भारत सरकार का उपक्रम) के माध्यम से प्रदान की जाती है।
    • आकस्मिकताओं के अलावा JRF के लिये फेलोशिप दरें 31,000 रुपए प्रति माह और SRF के लिये 35,000 रुपए प्रति माह निर्धारित की गई हैं।
    • दिव्यांग छात्रों के लिये सीटों का आरक्षण और आरक्षित सरकारी कोटे से परे अतिरिक्त स्लॉट।
    • योजना को लागू करने के लिये UGC नोडल एजेंसी है।
  • अन्य पिछड़े वर्गों (OBC ) एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (EBC) के लिये विदेश में अध्ययन हेतु शैक्षणिक ऋण पर ब्याज अनुदान की डॉ. अंबेडकर केंद्रीय क्षेत्र योजना:
    • इसका उद्देश्य विदेश में स्नात्तकोत्तर, एम.फिल और पी.एच.डी. स्तर पर अनुमोदित पाठ्यक्रम की पढ़ाई करने वाले OBC और EBC के लिये शैक्षणिक ऋण पर ब्याज सब्सिडी प्रदान करना है।
    • यह योजना केनरा बैंक के माध्यम से कार्यान्वित की गई है और विदेश में उच्च अध्ययन के लिये मौजूदा शैक्षणिक ऋण योजनाओं से जुड़ी है।
    • पात्रता मानदंड में OBC उम्मीदवारों के लिये क्रीमी लेयर मानदंड के आधार पर आय प्रतिबंध और EBC उम्मीदवारों के लिये प्रतिवर्ष 5.00 लाख रुपए की आय सीमा शामिल है।
    • वित्तीय सहायता का 50% महिला उम्मीदवारों के लिये आरक्षित है।
    • सरकार अधिस्थगन अवधि के दौरान देय 100% ब्याज वहन करती है, जिसके बाद छात्र ऋण पुनर्भुगतान की ज़िम्मेदारी लेता है।

लोकपाल का क्षेत्राधिकार

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के लोकपाल ने क्षेत्राधिकार की सीमाओं का हवाला देते हुए कहा कि वह उत्तर प्रदेश में आत्महत्या से मरने वाले एक सरकारी अधिकारी की पत्नी की याचिका पर विचार नहीं कर सकता।

  • स्वदेश दर्शन योजना के तहत केंद्र सरकार की परियोजनाओं के समापन प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करने के लिये अधिकारी पर कथित तौर पर वरिष्ठों द्वारा दबाव डाला गया था।

भारत के लोकपाल द्वारा क्या रुख अपनाया गया?

  • उत्तर प्रदेश मामले में लोकपाल की क्षेत्राधिकार संबंधी सीमाएँ:
    • लोकपाल ने स्पष्ट किया कि उसके पास प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं संस्कृति और उत्तर प्रदेश के महानिदेशक के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का अधिकार नहीं है।
    • कथित आपराधिक गतिविधियों से जुड़ा यह मुद्दा आपराधिक कानून और प्रक्रिया के दायरे में आता है, जिसके कारण लोकपाल को यह घोषित करना पड़ा कि वह याचिका पर विचार नहीं कर सकता।
  • शिकायत अग्रेषित करना:
    • अपने अधिकार क्षेत्र की बाधाओं के बावजूद, लोकपाल ने आगे की जाँच के लिये शिकायत को केंद्रीय पर्यटन सचिव को भेजकर एक कदम आगे बढ़ाया।

लोकपाल के अधिकार क्षेत्र और उसकी शक्तियों के अंतर्गत क्या आता है?

  • प्रधानमंत्री (PM) और मंत्रियों से संबंधित:
    • लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में प्रधानमंत्री, अन्य मंत्री, संसद सदस्य (सांसद), समूह A, B, C और D अधिकारी तथा केंद्र सरकार के अधिकारी शामिल हैं।
    • लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में प्रधानमंत्री शामिल हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले इसके अपवाद हैं।
    • संसद में कही गई किसी बात या वहाँ दिये गए वोट के मामले में लोकपाल के पास मंत्रियों और सांसदों के संबंध में कोई अधिकार नहीं है।
  • सिविल सेवकों और नौकरशाहों से संबंधित: 
    • इसके अधिकार क्षेत्र में वह व्यक्ति भी शामिल है जो केंद्रीय अधिनियम द्वारा स्थापित किसी भी सोसायटी या केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित/नियंत्रित किसी अन्य निकाय का प्रभारी (निदेशक/प्रबंधक/सचिव) है या रहा है और उकसाने, रिश्वत देने या लेने के कृत्य में शामिल है।
    • लोकपाल अधिनियम के अनुसार सभी सार्वजनिक अधिकारियों को अपनी और अपने आश्रितों की संपत्ति एवं देनदारियों की जानकारी देना आवश्यक है।
  • केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) से संबंधित: 
    • इसके पास CBI पर अधीक्षण और निर्देश देने की शक्तियाँ हैं।
    • यदि लोकपाल ने कोई मामला CBI को भेजा है, तो ऐसे मामले में जाँच अधिकारी को लोकपाल की स्वीकृति के बिना स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।

लोकपाल की कार्यप्रणाली के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?

  • पूर्णकालिक अध्यक्ष की कमी: मई 2022 से लोकपाल के पास कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है, जिससे इसके प्रभावी ढंग से कार्य करने की क्षमता के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • भ्रष्ट अधिकारियों से निपटने में निष्क्रियता: अप्रैल 2023 में संसद में पेश की गई एक संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, लोकपाल ने "आज तक भ्रष्टाचार के आरोपी एक भी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया है।"
    • लोकपाल कार्यालय द्वारा कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DOPT) के पैनल को उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019-20 के बाद से भ्रष्टाचार विरोधी निकाय को कुल 8,703 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 5,981 शिकायतों का निपटारा किया गया।
    • बड़ी संख्या में शिकायतें प्राप्त होने के बावजूद भ्रष्टाचार के लिये किसी पर मुकदमा नहीं चलाया गया है जो भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की लोकपाल की क्षमता के बारे में चिंताओं को उजागर करता है।
  • पारदर्शिता की कमी: कुछ विशेषज्ञों ने लोकपाल की पारदर्शिता तथा उत्तरदायित्व की कमी के संबंध में भी आलोचना की है, जिसके बारे में उनका कहना है कि इससे लोकपाल की विश्वसनीयता एवं प्रभावशीलता कम होती है।

आगे की राह

  • भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने के लिये लोकपाल की संस्था को कार्यात्मक स्वायत्तता एवं जनशक्ति की उपलब्धता दोनों के संदर्भ में सशक्त किया जाना चाहिये।
  • अधिक पारदर्शिता, सूचना के अधिकार तक अधिक पहुँच तथा नागरिकों व नागरिक समूहों के सशक्तिकरण सहित एक अच्छे नेतृत्व की आवश्यकता है जो स्वयं को सार्वजनिक जाँच के अधीन करने के लिये तत्पर हो।
  • प्रशासनिक सुदृढ़ता के लिये लोकपाल की नियुक्ति ही अपने आप में पर्याप्त नहीं है। जाँच एजेंसियों के सशक्तीकरण मात्र से सरकार का आकार तो बढ़ेगा किंतु ज़रूरी नहीं कि प्रशासन में सुधार हो।
  • सरकार द्वारा अपनाया गया नारा "न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन" का अक्षरशः पालन किया जाना चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त, लोकपाल तथा लोकायुक्त को ऐसे लोगों से संबंधित वित्तीय, प्रशासनिक एवं कानूनी जाँच एवं उसकी रिपोर्ट तैयार करके मुक्त होने की आवश्यकता है, जिनके विरुद्ध जाँच करने तथा मुकदमा चलाने के लिये उन्हें कहा गया है।
  • लोकपाल तथा लोकायुक्त की नियुक्तियाँ पारदर्शी तरीके से की जानी चाहिये जिससे अनुचित अवधारणा वाले लोगों के प्रवेश की संभानाएँ कम हो सकें।
  • किसी एकल संस्थान अथवा प्राधिकरण में अत्यधिक शक्ति के संकेन्द्रण से बचने के लिये उचित उत्तरदायी तंत्र के साथ विकेन्द्रीकृत संस्थानों की बहुलता की आवश्यकता है।

केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव 

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में केंद्र और राज्यों के बीच विवादों की आवृत्ति एवं तीव्रता में वृद्धि हुई है, जिससे सहकारी संघवाद के स्तंभ कमज़ोर हो रहे हैं तथा इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ रहा है।

केंद्र-राज्य संबंधों के मुद्दे क्या हैं?

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 1991 से जारी आर्थिक सुधारों के कारण निवेश पर कई नियंत्रणों में ढील दी गई है, जिससे राज्यों को कुछ छूट मिली है, लेकिन सार्वजनिक व्यय नीतियों के संबंध में पूर्ण स्वायत्तता नहीं है क्योंकि राज्य सरकारें अपनी राजस्व प्राप्तियों के लिये केंद्र पर निर्भर हैं।
    • हाल ही में कई राज्यों ने अपने कदम पीछे खींच लिये हैं, जिसके परिणामस्वरूप केंद्र और राज्यों के बीच आदान-प्रदान के समीकरण ने दोनों के रुख को और अधिक सख्त कर दिया है, जिससे बातचीत के लिये बहुत कम अवसर बचा है।
    • तेज़ी से बढ़ते केंद्र-राज्य संबंधों ने सहकारी संघवाद को नुकसान पहुँचाया है।
  • समसामयिक विवादों की जटिलताएँ:
    • विवाद के क्षेत्रों में सामाजिक क्षेत्र की नीतियों का एकरूपीकरण, नियामक संस्थानों की कार्यप्रणाली और केंद्रीय एजेंसियों की शक्तियाँ शामिल हैं।
    • आदर्श रूप से इन क्षेत्रों में अधिकांश नीतियाँ राज्यों के विवेक पर होनी चाहिये, जिसमें एक शीर्ष केंद्रीय निकाय संसाधन आवंटन की प्रक्रिया की देख-रेख करता है।
    • हालाँकि शीर्ष निकायों ने अक्सर अपना प्रभाव बढ़ाने और राज्यों को उन दिशाओं में धकेलने का प्रयास किया है जो केंद्र के अधीन हैं।

हाल के समय में राजकोषीय संघवाद से कैसे समझौता किया गया है?

  • केंद्र का प्रभुत्व और निवेश परिवर्तन:
    • केंद्र की गतिविधियों का विस्तारित दायरा ऐसे परिदृश्य को जन्म दे सकता है जहाँ यह राज्यों के निवेश क्षेत्र का अतिक्रमण करेगा।
    • उदाहरणतः केंद्र ने PM गति शक्ति लॉन्च की, जहाँ सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्बाध कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय मास्टर प्लान के अनुरूप एक राज्य मास्टर प्लान तैयार करना एवं संचालित करना था।
    • हालाँकि राष्ट्रीय मास्टर प्लान की योजना तथा कार्यान्वयन के केंद्रीकरण से अपने मास्टर प्लान को तैयार करने में राज्यों का लचीलापन कम हो जाता है, जिससे राज्यों द्वारा कम निवेश किया जाता है।
    • परिणामस्वरूप राज्यों में सड़कों तथा पुलों पर पूंजीगत व्यय में गिरावट देखी गई, जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद का मात्र 0.58% रह गया।
  • विचित्र राजकोषीय प्रतिस्पर्द्धा:
    • संघीय व्यवस्था में आमतौर पर क्षेत्रों/राज्यों के बीच वित्तीय प्रतिस्पर्द्धा देखी जाती है किंतु भारत ने राज्यों को न केवल आपस में बल्कि केंद्र के साथ भी इस प्रतिस्पर्द्धा में उलझते देखा है।
    • यह परिदृश्य केंद्र की संवर्द्धित राजकोषीय गुंज़ाइश के कारण उत्पन्न हुआ है, जिससे उसे अधिक खर्च करने की शक्ति मिलती है, जबकि राज्यों को गैर-कर राजस्व जुटाने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • इसके अतिरिक्त व्यय तीन सबसे बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में  अधिक केंद्रित हो गया है, जो वर्ष 2021-22 तथा 2023-24 के बीच 16 राज्यों के व्यय का लगभग आधा है।
    • इस असंतुलन के कारण राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता कम हो जाती है तथा कल्याण प्रावधान की गतिशीलता में कमी देखी जाती है।
  • समानांतर नीतियों के कारण अक्षमताएँ:
    • केंद्र और राज्यों के बीच संघीय मतभेदों के परिणामस्वरूप 'समानांतर नीतियों' का उदय हुआ है।
    • उदाहरण के लिये राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) ने एक परिभाषित लाभ योजना से परिभाषित योगदान योजना में बदलाव की शुरुआत की।
    • हालाँकि अधिकांश राज्यों ने शुरू में NPS को अपनाया, जबकि कुछ राज्य कथित वित्तीय प्रभावों के कारण पुरानी पेंशन योजना पर वापस लौट रहे हैं।
    • संघीय प्रणाली के भीतर विश्वास की कमी राज्यों को नीतियों की नकल करने के लिये प्रेरित करती है, जिससे अक्षमता की स्थिति उत्पन्न होती है तथा अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक राजकोषीय प्रभाव पड़ता है।

भारत में संघवाद को कैसे सशक्त किया जा सकता है?

  • सहयोगात्मक संवाद: केंद्र एवं राज्यों के बीच खुले तथा पारदर्शी संचार को बढ़ावा देना। चिंताओं को दूर करने एवं दोनों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर सामान्य आधार खोजने के लिये नियमित बैठकों व चर्चाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • राज्यों को सशक्त बनाना: उत्तरदायित्व सुनिश्चित करते हुए राज्यों को अधिक निर्णय लेने की शक्तियाँ एवं संसाधन हस्तांतरित करना चाहिये। यह राज्यों को केवल केंद्र पर निर्भर हुए बिना अपने विकास एजेंडे का प्रभार लेने के लिये सशक्त बना सकता है।
  • सहकारी नीतियाँ: सहकारी नीतियों को प्रोत्साहित करना जहाँ केंद्र और राज्य पहल तैयार करने तथा लागू करने हेतु मिलकर कार्य करते हैं। यह सहयोग संसाधनों का अनुकूलन कर सकता है और व्यापक विकास सुनिश्चित कर सकता है।
  • भूमिकाओं में स्पष्टता: अतिव्यापी क्षेत्राधिकारों और संघर्षों को कम करने हेतु सरकार के दोनों स्तरों के लिये स्पष्ट भूमिकाएँ तथा ज़िम्मेदारियाँ परिभाषित करना। यह स्पष्टता संचालन को सुव्यवस्थित कर सकती है और नीति के दोहराव को रोक सकती है।
  • विश्वास निर्माण: आपसी सम्मान और समझ के माध्यम से विश्वास तथा सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देना। विश्वास स्थापित करने से नीतियों और सुधारों के सुचारु कार्यान्वयन में सहायता मिल सकती है।

निष्कर्ष

  • एक अनुकूल आर्थिक माहौल के लिये संघीय व्यवस्था के अंदर केंद्र और राज्यों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध होना महत्त्वपूर्ण है।
  • सहयोगात्मक और उत्पादक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये सहयोग, सशक्तीकरण, स्पष्टता एवं विश्वास आवश्यक घटक हैं।

हरियाणा का निजी क्षेत्र कोटा कानून

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2020 को रद्द कर दिया है, जिसमें निजी क्षेत्र के रोज़गार में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 75% आरक्षण अनिवार्य था।

  • न्यायालय ने कानून को असंवैधानिक और नागरिकों एवं नियोक्ताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला घोषित किया है।

हरियाणा निजी क्षेत्र कोटा कानून क्या है?

  • हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2020 राज्य सरकार द्वारा मार्च 2021 में अधिनियमित किया गया था।
  • कानून में 30,000 रुपए (मूल रूप से 50,000 रुपए) से कम मासिक वेतन वाले निजी क्षेत्र के रोज़गार में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 10 वर्षों तक 75% आरक्षण का प्रावधान है।
    • इस अधिनियम में कंपनियों, सोसायटी, ट्रस्ट, साझेदारी फर्म और बड़े व्यक्तिगत नियोक्ताओं सहित विभिन्न संस्थाएँ शामिल थीं।
  • इसमें 10 या अधिक कर्मचारियों वाले नियोक्ता शामिल थे, लेकिन केंद्र या राज्य सरकारों और उनके संगठनों को छूट थी।
  • कानून के अनुसार, नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों को सरकारी पोर्टल पर पंजीकृत करना होगा और स्थानीय उम्मीदवारों के लिये अधिवास प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा।
  • हरियाणा राज्य का निवासी "स्थानीय उम्मीदवार" एक निर्दिष्ट ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण करके आरक्षण का लाभ उठा सकता है।
  • इस कानून का उद्देश्य स्थानीय युवाओं, विशेषकर अकुशल तथा अर्द्ध-कुशल श्रमिकों के लिये रोज़गार के अवसर एवं उनका कौशल विकास करना व अन्य राज्यों से आने वाले प्रवासियों की संख्या को कम करना था।

हरियाणा द्वारा निजी क्षेत्र की नौकरियों में दिये गए आरक्षण से संबंधित क्या चिंताएँ हैं?

  • फरीदाबाद इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन तथा अन्य हरियाणा-आधारित एसोसिएशंस ने यह कहते हुए उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया कि हरियाणा "धरती के पुत्र" की नीति शुरू कर निजी क्षेत्र में आरक्षण सुनिश्चित करना चाहता है, जो नियोक्ताओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि निजी क्षेत्र की नौकरियाँ पूर्ण रूप से कौशल तथा विश्लेषणात्मक विवेक पर आधारित होती हैं एवं कर्मचारियों को भारत के किसी भी हिस्से में कार्य करने का मौलिक अधिकार है।
  • उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि नियोक्ताओं को स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिये बाध्य करने का सरकार का कृत्य संविधान के संघीय ढाँचे का उल्लंघन है, जो सार्वजनिक हित के विपरीत है एवं केवल एक वर्ग को लाभ पहुँचा रहा है।
  • हरियाणा सरकार ने तर्क दिया कि उसके पास संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत इस तरह के आरक्षण प्रदान करने की शक्ति है, जिसमें कहा गया है कि सार्वजनिक रोज़गार में समानता का अधिकार राज्य को किसी भी पिछड़े वर्ग के लिये आरक्षण प्रदान करने से नहीं रोकता है, जिनका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • हरियाणा सरकार ने कहा कि राज्य में रहने वाले लोगों के जीवन और आजीविका के अधिकार तथा उनके स्वास्थ्य, रहने की स्थिति एवं रोज़गार के अधिकार की रक्षा के लिये कानून आवश्यक था।

उच्च न्यायालय ने क्या फैसला दिया?

  • न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 6, स्थानीय उम्मीदवारों पर त्रैमासिक रिपोर्ट अनिवार्य करती है और धारा 8, जो अधिकृत अधिकारियों को सत्यापन करने में सक्षम बनाती है, की "इंस्पेक्टर राज" स्थापित करने के रूप में आलोचना की गई।
    • इंस्पेक्टर राज का तात्पर्य कारखानों और औद्योगिक इकाइयों पर सरकार द्वारा अत्यधिक विनियमन/पर्यवेक्षण से है।
  • न्यायालय ने कहा कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह कानून जन्म स्थान और निवास स्थान के आधार पर नागरिकों व नियोक्ताओं के खिलाफ भेदभाव करता है।
    • अनुच्छेद 14 भारत के क्षेत्र के भीतर सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण की गारंटी देता है।
  • कानून ने संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (g) के तहत व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन किया, क्योंकि इसने योग्य तथा उपयुक्त स्थानीय उम्मीदवारों के बावजूद  नियोक्ताओं द्वारा उन्हें नियुक्त करने पर अनुचित प्रतिबंध लगा दिया।
  • न्यायालय का मानना है कि निजी नियोक्ताओं को केवल स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिये मजबूर करना संविधान की दृष्टि से अनुचित है, क्योंकि इससे राज्यों द्वारा अपने निवासियों के लिये समान सुरक्षा प्रदान करने हेतु व्यापक अधिनियम बनाए जा सकते हैं, जिससे ऐसी बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं जो संविधान के निर्माताओं द्वारा नहीं बनाई गई थीं।

भारत में सड़क दुर्घटनाएँ-2022

हाल ही में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 'भारत में सड़क दुर्घटनाएँ- 2022' शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जो सड़क दुर्घटनाओं और इससे होने वाली मृत्यु से संबंधित मामलों पर प्रकाश डालती है।

  • यह रिपोर्ट एशिया प्रशांत सड़क दुर्घटना डेटा (APRAD) आधार परियोजना के अंतर्गत एशिया और प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (UNESCAP) द्वारा प्रदान किये गए मानकीकृत प्रारूपों में कैलेंडर वर्ष के आधार पर राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस विभागों से प्राप्त डेटा/जानकारी पर आधारित है।
  • APRAD एक सॉफ्टवेयर टूल है जिसे विशेष रूप से UNESCAP और उसके सदस्य देशों के लिये एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सदस्य देशों द्वारा सड़क दुर्घटना डेटाबेस को विकसित करने, अद्यतन करने, बनाए रखने एवं प्रबंधित करने में सहायता करने के लिये विकसित किया गया है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • सड़क दुर्घटनाओं की संख्या:
    • वर्ष 2022 में भारत में कुल 4,61,312 सड़क दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें 1,68,491 लोगों ने अपनी जान गँवाई और कुल 4,43,366 लोग घायल हो गए। 
    • विगत वर्षों की तुलना में दुर्घटनाओं में 11.9 प्रतिशत, मृत्यु में 9.4 प्रतिशत और घायल लोगों की संख्या में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • सड़क दुर्घटना वितरण:
    • वर्ष 32.9% दुर्घटनाएँ राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे पर, 23.1% राज्य राजमार्गों पर एवं शेष 43.9% अन्य सड़कों पर हुईं।
    • 36.2% मौतें राष्ट्रीय राजमार्गों पर, 24.3% राज्य राजमार्गों पर और 39.4% अन्य सड़कों पर हुईं।
  • जनसांख्यिकीय प्रभाव:
    • वर्ष 2022 में दुर्घटना का शिकार होने वाले लोगों में 18 से 45 वर्ष के आयु वर्ग के युवा वयस्कों की संख्या 66.5% थी।
    • इसके अतिरिक्त 18-60 वर्ष के कामकाज़ी आयु वर्ग के व्यक्ति सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली कुल मौतों का 83.4% हिस्सा थे।
  • ग्रामीण बनाम शहरी दुर्घटनाएँ:
    • वर्ष 2022 में सड़क दुर्घटना में लगभग 68% मौतें ग्रामीण क्षेत्रों में हुईं, जबकि देश में कुल दुर्घटना मौतों में शहरी क्षेत्रों का योगदान 32% है।
  • वाहन श्रेणियाँ:
    • लगातार दूसरे वर्ष 2022 में कुल दुर्घटनाओं और मृत्यु दर दोनों में दोपहिया वाहनों की हिस्सेदारी सर्वाधिक रही।
    • कार, जीप और टैक्सियों सहित हल्के वाहन दूसरे स्थान पर रहे।
  • सड़क-उपयोगकर्ता श्रेणियाँ:
    • सड़क-उपयोगकर्ता श्रेणियों में कुल मृत्यु के मामलों में दोपहिया सवारों की हिस्सेदारी सबसे अधिक थी, जो वर्ष 2022 में सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए 44.5% व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है।
    • 19.5% मौतों के साथ पैदल सड़क उपयोगकर्ताओं दूसरे स्थान पर रहे।
  • राज्य-विशिष्ट डेटा:
    • वर्ष 2022 में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएँ तमिलनाडु में दर्ज़ की गईं, कुल दुर्घटनाओं में से 13.9%, इसके बाद 11.8% के साथ मध्य प्रदेश का स्थान आता है।
    • सड़क दुर्घटनाओं के कारण सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश (13.4%) में हुईं, उसके बाद तमिलनाडु (10.6%) का स्थान रहा। लक्षित हस्तक्षेपों के लिये राज्य-विशिष्ट रुझानों को समझना आवश्यक है।

Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुलना:
    • सड़क दुर्घटनाओं के कारण मरने वाले कुल व्यक्तियों की संख्या भारत में सबसे अधिक है, इसके बाद चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थान है।
    • वेनेज़ुएला में प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर मारे गए व्यक्तियों की दर सबसे अधिक है।

भारतीय सड़क नेटवर्क की स्थिति

  • सत्र 2018-19 में भारत का सड़क घनत्व 1,926.02 प्रति 1,000 वर्ग किमी. क्षेत्र कई विकसित देशों की तुलना में अधिक था, हालाँकि सड़क की कुल लंबाई का 64.7% हिस्सा सतही/पक्की सड़क है, जो विकसित देशों की तुलना में तुलनात्मक रूप से कम है।
  • वर्ष 2019 में देश की कुल सड़क की लंबाई का 2.09% हिस्सा राष्ट्रीय राजमार्गों का था।
  • शेष सड़क नेटवर्क में राज्य राजमार्ग (2.9%), ज़िला सड़कें (9.6%), ग्रामीण सड़कें (7.1%), शहरी सड़कें (8.5%) और परियोजना सड़कें (5.4%) शामिल हैं।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा सड़क दुर्घटना न्यूनीकरण उपाय

  • शिक्षा के उपाय:
    • सड़क सुरक्षा के बारे में प्रभावी जन जागरूकता बढ़ाने के लिये मंत्रालय द्वारा सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के माध्यम से विभिन्न प्रचार उपाय एवं जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं।
    • इसके अलावा मंत्रालय सड़क सुरक्षा समर्थन के संचालन हेतु विभिन्न एजेंसियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये एक योजना लागू करता है।
  • इंजीनियरिंग उपाय:
    • योजना स्तर पर सड़क सुरक्षा को सड़क डिज़ाइन का एक अभिन्न अंग बनाया गया है। सभी राजमार्ग परियोजनाओं का सभी चरणों में सड़क सुरक्षा ऑडिट (RSA) अनिवार्य कर दिया गया है।
    • मंत्रालय ने वाहन की अगली सीट पर ड्राइवर के बगल में बैठे यात्री के लिये एयरबैग के अनिवार्य प्रावधान को अधिसूचित किया है।
  • प्रवर्तन उपाय:
    • मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019।
    • सड़क सुरक्षा नियमों की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी और प्रवर्तन {इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्तन उपकरणों (स्पीड कैमरा, बॉडी वियरेबल कैमरा, डैशबोर्ड कैमरा आदि के माध्यम से) के व्यवहार के लिये विस्तृत प्रावधान को निर्दिष्ट करना}।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम

सार्वभौमिक बुनियादी आय या  यूनिवर्सल बेसिक इनकम (Universal Basic Income- UBI) प्रदान किया जाए या नहीं, एक ऐसा विचार है जिस पर चर्चा थमती नज़र नहीं आ रही। जहाँ पूर्व में मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) अरविंद सुब्रमण्यन ने वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में इसे ‘अवधारणात्मक रूप से आकर्षक विचार’ के रूप में प्रस्तावित किया था, तो वहीं वर्तमान CEA वी. अनंत नागेश्वरन ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह देश के लिये आवश्यक नहीं है। 

  • अभी कुछ समय पूर्व ही प्रधानमंत्री को आर्थिक सलाहकार परिषद (Economic Advisory Council) द्वारा सौंपी गई असमानता पर एक रिपोर्ट में भी UBI की अनुशंसा की गई थी। नीति आयोग के एक सदस्य द्वारा भी अर्द्ध-सार्वभौमिक बुनियादी ग्रामीण आय के उपबंध का समर्थन किया गया था।
  • वर्तमान CEA मानते हैं कि UBI की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भारत को अपने लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये आर्थिक विकास पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। उन्होंने यह भी कहा इसे निकट अवधि के एजेंडे में शामिल नहीं होना चाहिये।

सार्वभौमिक बुनियादी आय की अवधारणा

  • सार्वभौमिक बुनियादी आय एक सामाजिक कल्याण प्रस्ताव है जिसमें सभी लाभार्थियों को बिना शर्त हस्तांतरण भुगतान के रूप में नियमित रूप से एक गारंटीकृत आय प्राप्त होती है।  
  • एक बुनियादी आय प्रणाली के लक्ष्यों में गरीबी को कम करना और ऐसे अन्य आवश्यकता-आधारित सामाजिक कार्यक्रमों को प्रतिस्थापित करना शामिल है जिसके लिये संभावित रूप से अधिक नौकरशाही संलग्नता की आवश्यकता होती है। 
  • UBI आम तौर पर बिना शर्तों के या न्यूनतम शर्तों के साथ सभी (या आबादी के एक अत्यंत बड़े भाग) तक पहुँच बनाने का लक्ष्य रखती है।

सार्वभौमिक बुनियादी आय के गुण एवं दोष

  • गुण:
    • गरीबी उन्मूलन: यह सभी के लिये, विशेष रूप से सबसे कमज़ोर और हाशिये पर स्थित समूहों के लिये एक न्यूनतम आय सीमा प्रदान करके गरीबी और आय असमानता को कम करती है। यह लोगों को खाद्य, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को वहन करने में भी मदद कर सकती है।
    • एक स्वास्थ्य प्रोत्साहक: गरीबी और वित्तीय असुरक्षा से संबद्ध तनाव, दुश्चिंता और अवसाद को कम करके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाती है। यह लोगों को बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता और पोषण तक पहुँच बनाने में भी सक्षम कर सकती है।
    • सरलीकृत कल्याण प्रणाली: यह विभिन्न लक्षित सामाजिक सहायता कार्यक्रमों को प्रतिस्थापित कर मौजूदा कल्याण प्रणाली को सुव्यवस्थित कर सकती है। यह प्रशासनिक लागत को कम करती है और साधन-परीक्षण, पात्रता आवश्यकताओं एवं बेनिफिट क्लिफ (benefit cliffs) से जुड़ी जटिलताओं को समाप्त करती है।
    • व्यक्तिगत स्वतंत्रता में वृद्धि: UBI लोगों को वित्तीय सुरक्षा और उनके कार्य, शिक्षा एवं व्यक्तिगत जीवन के बारे में चयन की अधिक स्वतंत्रता प्रदान करती है।
    • आर्थिक प्रोत्साहक: यह प्रत्यक्ष रूप से व्यक्तियों के हाथों में धन का प्रवेश कराती है, जो उपभोक्ता व्यय को उत्प्रेरित करती है और आर्थिक विकास को गति देती है। यह स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा दे सकती है, वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये मांग उत्पन्न कर सकती है और रोज़गार के अवसर सृजित कर सकती है।
    • यह लोगों को उद्यमशीलता की राह पर आगे बढ़ने, जोखिम उठाने और रचनात्मक या सामाजिक रूप से लाभकारी गतिविधियों में संलग्न होने के लिये सशक्त कर सकती है जो अन्यथा आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं भी हो सकते हैं।
  • दोष:
    • लागत और राजकोषीय संवहनीयता: सार्वभौमिक बुनियादी आय अत्यधिक लागत रखती है और इसके वित्तपोषण के लिये उच्च करों, व्यय में कटौती या ऋण की आवश्यकता होगी। यह मुद्रास्फीति उत्पन्न कर सकती है, श्रम बाज़ार को विकृत कर सकती है और आर्थिक विकास को मंद कर सकती है।
    • विकृत प्रोत्साहन का निर्माण: यह काम करने की प्रेरणा को कम करती है और उत्पादकता एवं दक्षता में कमी लाती है। यह निर्भरता, पात्रता और आलस्य की एक संस्कृति का भी निर्माण कर सकती है। यह लोगों को कौशल, शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त करने से भी हतोत्साहित कर सकती है।
    • वर्तमान मुख्य आर्थिक सलाहकार ने UBI पर आपत्ति जताई है क्योंकि यह आय-सृजन के अवसरों की तलाश के लिये लोगों को अपने स्वयं के प्रयास करने से रोकने में ‘विकृत प्रोत्साहन’ (perverse incentives) का निर्माण करती है। 
    • मुद्रास्फीति संबंधी दबाव: यह मुद्रास्फीति संबंधी दबावों में योगदान कर सकती है। यदि सभी को एक निश्चित राशि प्राप्त होगी तो इससे वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि हो सकती है क्योंकि व्यवसाय बाज़ार में उपलब्ध अतिरिक्त आय पर कब्जा करने के लिये अपनी मूल्य निर्धारण रणनीतियों को समायोजित करते हैं।
    • निर्भरता बढ़ाने की क्षमता: सार्वभौमिक बुनियादी आय सरकारी समर्थन पर लोगों की निर्भरता का निर्माण कर सकती है और इसमें एक जोखिम शामिल है कि कुछ लोग आत्मसंतुष्ट या मूल आय पर आश्रित बन सकते हैं, जिससे व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास के लिये प्रेरणा कम हो सकती है।

UBI भारत में व्यवहार्य क्यों नहीं है?

  • सामर्थ्य/वहनीयता: भारत एक बड़ी आबादी लेकिन सीमित संसाधनों वाला उभरता हुआ देश है। यहाँ प्रत्येक नागरिक को बुनियादी आय प्रदान करना बेहद महंगा सिद्ध हो सकता है, विशेष रूप से उस स्तर पर जो उनकी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त हो।
    • वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया कि प्रत्येक भारतीय नागरिक को 7,620 रुपए प्रति वर्ष की सार्वभौमिक बुनियाद आय प्रदान करने पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4.9% खर्च होगा, जो खाद्य, ईंधन और उर्वरक सब्सिडी पर संयुक्त व्यय से भी अधिक है।
    • UBI को वित्तपोषित करने के लिये सरकार को या तो करों में वृद्धि करनी होगी, अन्य परिव्ययों में कटौती करनी होगी या उधारी में वृद्धि करनी होगी और इन सभी के अर्थव्यवस्था एवं समाज के लिये नकारात्मक परिणाम उत्पन्न होंगे।
  • राजनीतिक व्यवहार्यता: सरकार के विभिन्न स्तरों, राजनीतिक दलों और हित समूहों के साथ भारत में एक जटिल एवं विविध राजनीतिक व्यवस्था मौजूद है। राजनेताओं, नौकरशाहों, लाभार्थियों और करदाताओं जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच UBI के लिये आम सहमति एवं समर्थन जुटाना जटिल सिद्ध हो सकता है। 
    • मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित होने वालों या वैचारिक आधार पर पुनर्वितरण का विरोध करने वालों द्वारा भी UBI को प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।
  • कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: भारत को सार्वजनिक सेवाओं के वितरण और हस्तांतरण को प्रभावी एवं कुशल तरीके से कार्यान्वित करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पहचान, लक्ष्यीकरण, वितरण, निगरानी और उत्तरदायित्व जैसे कई मुद्दे हैं जो मौजूदा कार्यक्रमों की गुणवत्ता एवं पहुँच को प्रभावित करते हैं । 
    • UBI को विश्वसनीय डेटा, प्रौद्योगिकी और संस्थानों की आवश्यकता होगी ताकि इसे उपयुक्त रूप से कार्यान्वित किया जा सके और लीकेज, भ्रष्टाचार एवं अपवर्जन त्रुटियों से बचा जा सके।
    • इसके अलावा, भारत ने अभी तक एक सार्वभौमिक आधार नामांकन हासिल नहीं किया है, इसलिये लाभार्थी की पहचान और सेवा के लक्ष्य-आधारित वितरण में समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • व्यावहारिक प्रभाव: UBI का प्राप्तकर्ताओं या वृहत रूप से समाज के व्यवहार पर अनपेक्षित या अवांछनीय प्रभाव पड़ सकता है ।
    • उदाहरण के लिये, UBI कार्य करने या कौशल हासिल करने की प्रेरणा को कम कर सकती है, जिससे उत्पादकता एवं दक्षता में कमी आ सकती है।
    • यह प्राप्तकर्ताओं के बीच निर्भरता, पात्रता या आलस्य की संस्कृति भी उत्पन्न कर सकती है। 
    • यह लोगों को उन सामाजिक या नागरिक गतिविधियों में भाग लेने से भी हतोत्साहित कर सकती है जो साझा भलाई में योगदान करती हैं।

UBI के स्थान पर भारत कौन-से विकल्प चुन सकता है?

  • Quasi UBRI: अर्द्ध-सार्वभौमिक बुनियादी ग्रामीण आय (Quasi-Universal Basic Rural Income- QUBRI) सार्वभौमिक बुनियादी आय का एक रूप है, जिसे ऐसे हस्तांतरण के रूप में परिभाषित किया गया है जो सार्वभौमिक रूप से, बिना शर्त और नकद रूप में प्रदान किया जाता है। भारत में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को (उन परिवारों को छोड़कर जो प्रकट रूप से समृद्ध हैं और कृषि संकट का सामना कर सकते हैं) 18,000 रुपए प्रति वर्ष का प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण (Direct Cash Transfer) प्रदान करने का विचार पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
  • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefits Transfers- DBT): इस योजना के तहत सब्सिडी या नकद को प्रत्यक्ष रूप से लाभार्थियों के बैंक खातों में हस्तांतरित किया जाता है ( बजाय इसके कि बिचौलियों की मदद ली जाए या वस्तु या सेवाओं के रूप में हस्तांतरण किया जाए)। DBT का उद्देश्य कल्याणकारी वितरण की दक्षता, पारदर्शिता एवं जवाबदेही में सुधार के साथ-साथ लीकेज और भ्रष्टाचार को कम करना है।
  • पीएम किसान, प्रधानमंत्री जन-धन योजना जैसी योजनाएँ DBT की सफलता के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
  • सशर्त नकद हस्तांतरण (Conditional Cash Transfers- CCT): इस योजना के तहत गरीब परिवारों को इस शर्त पर नकद राशि प्रदान की जाती है कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने, उनका टीकाकरण कराने करना या स्वास्थ्य जाँच में भाग लेने जैसी कुछ शर्तों की पूर्ति करेंगे। CCT का उद्देश्य मानव पूंजी और गरीबों के दीर्घकालिक परिणामों में सुधार के साथ-साथ व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करना है।
  • अन्य आय सहायता योजनाएँ: इन योजनाओं के तहत किसानों, महिलाओं, वृद्धजनों, दिव्यांगों जैसे लोगों के ऐसे विशिष्ट समूहों को नकद या अन्य प्रकार की सहायता प्रदान की जाती है जो इसकी आवश्यकता रखते हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य इन समूहों के समक्ष विद्यमान विशिष्ट भेद्यताओं और चुनौतियों का समाधान करना है, साथ ही साथ उनके सशक्तीकरण एवं समावेशन को बढ़ावा देना है।
  • रोज़गार गारंटी योजनाएँ: मनरेगा (MGNREGA) के साथ भारत के पास पहले से ही इसका एक सफल उदाहरण मौजूद है। ये योजनाएँ ग्रामीण परिवारों को एक वर्ष में निश्चित दिनों के लिये रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान करती हैं। ऐसे कार्यक्रमों का विस्तार और सुदृढ़ीकरण यह सुनिश्चित कर सकता है कि व्यक्तियों की रोज़गार अवसरों तक पहुँच हो और वे आजीविका कमा सकें।
  • कौशल विकास एवं प्रशिक्षण: कौशल विकास एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश से व्यक्तियों को स्थायी रोज़गार सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक कौशल से लैस किया जा सकता है। कौशल संवर्द्धन पर ध्यान केंद्रित करके सरकार व्यक्तियों को उपयुक्त नौकरी खोजने और अपनी आय संभावनाओं में सुधार करने में सक्षम बना सकती है।
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY) और प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना (PMRPY) आदि का प्रभावी कार्यान्वयन किया जाना चाहिये।
  • सार्वभौमिक बुनियादी सेवाएँ (Universal Basic Services): भारत एक सार्वभौमिक बुनियादी आय प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छ जल और स्वच्छता जैसी आवश्यक सेवाओं के प्रावधान को प्राथमिकता दे सकता है। सरकार सभी नागरिकों के लिये इन सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित कर समग्र जीवन स्तर में सुधार ला सकती है और असमानता को कम कर सकती है।
  • परिसंपत्ति-निर्माण नीतियाँ: ये ऐसी नीतियाँ हैं जिनका उद्देश्य निम्न आय वाले लोगों को बचत, शिक्षा, आवास या व्यावसायिक पूंजी जैसी परिसंपत्ति का संचयन करने में मदद करना है। उनमें मैचिंग फंड, कर प्रोत्साहन, सब्सिडी या संपत्ति संचय के लिये अनुदान शामिल हो सकते हैं। परिसंपत्ति-निर्माण नीतियों के समर्थकों का तर्क है कि वे UBI की तुलना में बेहतर ढंग से दीर्घावधिक आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक गतिशीलता और निम्न आय वाले लोगों के सशक्तीकरण को बढ़ावा दे सकते हैं। इसके साथ ही, वे बचत और निवेश की संस्कृति को भी बढ़ावा दे सकते हैं।
  • समावेशी विकास: लोगों को एक निश्चित राशि प्रदान करने के बजाय उनके लिये अधिक अवसर और क्षमताओं के निर्माण पर ध्यान देना चाहिये ताकि वे अर्थव्यवस्था और समाज में भागीदारी एवं योगदान कर सकें। समावेशी विकास गरीबी और अपवर्जन के संरचनात्मक कारणों—जैसे भेदभाव और शिक्षा, स्वास्थ्य, अवसंरचना एवं सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच की कमी आदि को भी संबोधित करता है।
The document Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
184 videos|557 docs|199 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2023 UPSC Current Affairs - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. OBC तथा अन्य के लिये श्रेयस योजना क्या है?
Ans. OBC तथा अन्य के लिये श्रेयस योजना एक सरकारी योजना है जो अनुसूचित जाति/जनजाति, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों को विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में वित्तीय सहायता प्रदान करने की उद्देश्य से चलाई जाती है।
2. लोकपाल का क्षेत्राधिकार क्या है?
Ans. लोकपाल का क्षेत्राधिकार लोकपाल कानून के तहत निर्धारित किया गया है। यह क्षेत्राधिकार लोकपाल को सरकारी दफ्तरों और निगमों के खिलाफ ग्राहकों की शिकायतों का संग्रह, जांच और निराकरण करने की अनुमति देता है।
3. केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव क्या है?
Ans. केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव वह स्थिति है जहाँ केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों के बीच असंगति या असहमति होती है। इसके कारण संबंधित क्षेत्रों में सही नीति निर्धारण और कार्यक्रमों को लेकर विवाद उत्पन्न हो सकता है।
4. हरियाणा का निजी क्षेत्र कोटा कानून क्या है?
Ans. हरियाणा का निजी क्षेत्र कोटा कानून हरियाणा राज्य में निजी क्षेत्र के अनुभवहीन और पिछड़े वर्ग के छात्रों को विभिन्न सरकारी और निजी कॉलेजों में प्रवेश के लिए विशेष कोटा प्रदान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य वित्तीय और विभाजनात्मक असमानता को कम करना है।
5. भारत में सड़क दुर्घटनाएँ-2022 क्या हैं?
Ans. भारत में सड़क दुर्घटनाएँ-2022 भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है जो देश में सड़क दुर्घटनाओं को कम करने का लक्ष्य रखती है। इस पहल के तहत सड़क सुरक्षा सम्बंधित कई कदम उठाए जाते हैं, जैसे कि सड़क निर्माण, सड़क संरचना और लोगों की जागरूकता बढ़ाना।
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

mock tests for examination

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

ppt

,

pdf

,

Free

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

Exam

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): November 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

study material

,

Semester Notes

,

Sample Paper

,

practice quizzes

,

Important questions

,

video lectures

,

Summary

,

Previous Year Questions with Solutions

,

past year papers

,

Extra Questions

,

shortcuts and tricks

,

Viva Questions

,

Objective type Questions

,

MCQs

;