UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): November 2023 UPSC Current Affairs

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): November 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

कार्बन नैनोफ्लोरेट्स 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में IIT बॉम्बे के शोधकर्त्ताओं ने बेजोड़ दक्षता के साथ सूर्य के प्रकाश को गर्मी में परिवर्तित करने में सक्षम कार्बन नैनोफ्लोरेट बनाया है।

  • यह नवोन्मेषी विकास कार्बन फुटप्रिंट को कम करते हुए स्थायी ताप समाधानों में क्रांति लाने की क्षमता रखता है।

कार्बन नैनोफ्लोरेट्स

  • परिचय:
    • IIT बॉम्बे के शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित कार्बन नैनोफ्लोरेट्स 87% की प्रभावशाली प्रकाश अवशोषण दक्षता प्रदर्शित करता है।
    • वे पारंपरिक सौर-थर्मल सामग्रियों, जो कि आमतौर पर केवल दृश्य और पराबैंगनी प्रकाश को अवशोषित करते हैं, के बिल्कुल विपरीत अवरक्त, दृश्य प्रकाश तथा पराबैंगनी सहित सूर्य के प्रकाश की कई आवृत्तियों को अवशोषित कर सकते हैं।
  • कार्बन नैनोफ्लोरेट्स की डिज़ाइनिंग प्रक्रिया:
    • सिलिकॉन कण का एक विशेष रूप जिसे DFNS (डेंड्राइटिक फाइबरस नैनोसिलिका) कहा जाता है, भट्टी में गर्म किया जाता है।
    • चैंबर में एसिटिलीन गैस का प्रयोग कार्बन जमाव को सुविधाजनक बनाता है, जिससे यह काला हो जाता है।
    • उसके बाद काले पाउडर को एकत्र कर एक शक्तिशाली रसायन में मिश्रित किया जाता है जो DFNS को विघटित कर देता है, जिससे कार्बन कण शेष बचते हैं। इसके परिणामस्वरूप शंकु के आकार के गड्ढों वाले गोलाकार कार्बन कण बनते हैं, जो माइक्रोस्कोप से देखने पर गेंदे के फूल के समान कार्बन नैनोफ्लोरेट बनाते हैं।

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  • विशिष्ट संरचना की भूमिका:
    • कार्बन शंकुओं से बनी नैनोफ्लोरेट्स की संरचना, प्रकाश प्रतिबिंब को कम करती है और अधिकतम आंतरिक अवशोषण सुनिश्चित करती है।
    • यह विशिष्ट डिज़ाइन सूर्य के प्रकाश को अभिग्रहण कर इसे बनाए रखता है तथा इस सौर ऊर्जा को तापीय ऊर्जा में परिवर्तित करता है।

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  • न्यूनतम ताप अपव्यय:
    • नैनोफ्लोरेट्स की संरचना में लंबी दूरी की अव्यवस्था के कारण पदार्थ में उत्पन्न उष्मा का स्थानांतरण अधिक दूरी तक नहीं हो  पाता है।
    • यह विशेषता पर्यावरण में ताप के अपव्यय को कम करती है, जिससे नैनोफ्लोरेट्स उत्पन्न तापीय ऊर्जा को प्रभावी ढंग से बनाए रखने एवं उपयोग करने की अनुमति देता है।

कार्बन नैनोफ्लोरेट्स के अनुप्रयोग और वाणिज्यिक क्षमताएँ

  • जल का पर्याप्त तापन:
    • कार्बन नैनोफ्लोरेट्स की एक वर्ग मीटर की कोटिंग एक घंटे के भीतर लगभग 5 लीटर जल को वाष्पित कर सकती है, जो वाणिज्यिक सौर स्थिरांक के प्रदर्शन को पार कर जाती है।
    • कार्बन नैनोफ्लोरेट जल तापन अनुप्रयोगों के लिये आदर्श हैं, जो एक संधारणीय और लागत प्रभावी समाधान प्रदान करते हैं तथा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करता है।
    • नैनोफ्लोरेट को कागज़, धातु और टेराकोटा मिट्टी जैसी विभिन्न सतहों पर लगाया जा सकता है, जो उन्हें विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये सुग्राह्य बनाता है।
  • पर्यावरण अनुकूल तापन:
    • नैनोफ्लोरेट कोटिंग्स का उपयोग कर उपयोगकर्ता पर्यावरण के अनुकूल तरीके से अपने घरों को गर्म करने के लिये सौर ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं, जिससे उनके कार्बन पदचिह्न को कम किया जा सकता है।
  • स्थिरता और दीर्घायु:
    • कोटेड नैनोफ्लोरेट न्यूनतम आठ वर्षों के जीवनकाल के साथ असाधारण स्थिरता प्रदर्शित करते हैं।
    • शोधकर्त्ता विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में उनके स्थायित्व का निरंतर आकलन कर रहे हैं।

डीपफेक

हाल ही में एक फैक्ट-चेकर वेबसाइट ने खुलासा किया कि लिफ्ट में प्रवेश करती अभिनेत्री रश्मिका की वायरल वीडियो वस्तुतः ‘डीपफेक’ (Deepfake) है। इस वीडियो ने एक बहस छेड़ दी है जहाँ अन्य अभिनेताओं द्वारा डीपफेक वीडियो के कानूनी विनियमन की माँग की जा रही है। इसकी प्रतिक्रिया में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) राज्य मंत्री ने आईटी अधिनियम, 2000 के अंतर्गत मौजूद विनियमनों का हवाला दिया है जो ऐसे वीडियो के प्रसार से निपट सकते हैं। हालाँकि, डीपफेक के विनियमन के लिये एक समग्र दृष्टिकोण के तहत प्लेटफॉर्म और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ArtificiaI Inteliigence- AI) विनियमन के बीच की अंतःक्रिया और उभरती प्रौद्योगिकियों के लिये सुरक्षा उपायों को अधिक व्यापक रूप से शामिल करने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक होगा।

डीपफेक क्या है?

  • डीपफेक (Deepfake) शब्द सिंथेटिक मीडिया को संदर्भित करता है जहाँ किसी व्यक्ति की सदृश्ता को दूसरे व्यक्ति की सदृश्ता से बदलने के लिये डिजिटल रूप से हेरफेर किया जाता है।
  • डीपफेक मशीन लर्निंग और AI के प्रभावशाली तकनीकों—जैसे कि डीप लर्निंग (deep learning) और जेनरेटिव एडवरसैरियल नेटवर्क (Generative Adversarial Networks- GANs) का उपयोग कर सृजित किये जाते हैं।
  • डीपफेक तकनीक का उपयोग मनोरंजन, शिक्षा, कला और सक्रिय गतिविधियों (activism) जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है।
  • हालाँकि, यह गंभीर नैतिक और सामाजिक चुनौतियाँ भी उत्पन्न कर सकता है, जैसे फेक न्यूज़ सृजित करना, भ्रामक सूचना का प्रसार करना, निजता/गोपनीयता का उल्लंघन करना और किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाना।
  • इसका उपयोग नकली या फेक वीडियो बनाने के लिये किया जा सकता है; इसका उपयोग स्कैमर्स द्वारा मित्रों या प्रियजनों का रूप धारण कर लोगों से धोखाधड़ीपूर्ण तरीके से धन प्राप्त करने के लिये भी किया जा सकता है।

डीपफेक टेक्नोलॉजी के उपयोग 

  • फिल्म डबिंग: डीपफेक तकनीक का उपयोग विभिन्न भाषाएँ बोलने वाले अभिनेताओं के लिये यथार्थपरक लिप-सिंकिंग (lip-syncing) के सृजन के लिये किया जा सकता है, जिससे उक्त फिल्म वैश्विक दर्शकों के लिये अधिक अभिगम्य (accessible and immersive) हो जाती है।
  • उदाहरण के लिये, मलेरिया के उन्मूलन का आह्वान करने के लिये एक याचिका शुरू करने के लिये एक वीडियो बनाया गया था, जहाँ डीपफेक तकनीक का उपयोग कर डेविड बेकहम, ह्यूज जैकमैन और बिल गेट्स जैसी मशहूर हस्तियों से विभिन्न भाषाओं में आह्वान कराया गया था।
  • शिक्षा: डीपफेक तकनीक कक्षा में ऐतिहासिक व्यक्तियों को जीवंत करने या विभिन्न परिदृश्यों के इंटरैक्टिव सिमुलेशन बनाने के रूप में शिक्षकों के लिये आकर्षक पाठ प्रदान कर सकने में मदद कर सकती है।
  • उदाहरण के लिये, अब्राहम लिंकन के प्रसिद्ध गेटिसबर्ग संबोधन के डीपफेक वीडियो का उपयोग छात्रों को अमेरिकी गृहयुद्ध के बारे में शिक्षण प्रदान करने के लिये किया जा सकता है।
  • कला: डीपफेक तकनीक का उपयोग कलाकारों के लिये स्वयं को अभिव्यक्त करने, विभिन्न शैलियों के साथ प्रयोग करने या अन्य कलाकारों के साथ सहयोग करने के लिये एक रचनात्मक साधन के रूप में किया जा सकता है।
  • उदाहरण के लिये, फ्लोरिडा में साल्वाडोर डाली के संग्रहालय को बढ़ावा देने के लिये डाली का एक डीपफेक वीडियो सृजित किया गया था, जहाँ उन्होंने आगंतुकों के साथ संवाद किया और अपनी कृतियों पर टिप्पणी की।
  • स्वायत्तता और अभिव्यक्ति: डीपफेक तकनीक लोगों को अपनी डिजिटल पहचान को नियंत्रित करने, अपनी गोपनीयता की रक्षा करने या विभिन्न तरीकों से अपनी पहचान व्यक्त करने के लिये सशक्त बना सकती है।
  • उदाहरण के लिये, रिफेस (Reface) नामक एक डीपफेक ऐप उपयोगकर्ताओं को मनोरंजन या वैयक्तिकरण के लिये वीडियो या जिफ (gifs) के रूप में मशहूर हस्तियों या चरित्रों के साथ अपना चेहरा बदलने की अनुमति देता है।
  • संदेश और उसकी पहुँच का विस्तार: डीपफेक तकनीक उन लोगों की आवाज़ और प्रभाव को बढ़ाने में मदद कर सकती है जिनके पास साझा करने के लिये महत्वपूर्ण संदेश हैं, विशेष रूप से वे लोग जो भेदभाव, सेंसरशिप या हिंसा का सामना कर रहे हैं।
  • उदाहरण के लिये, सऊदी सरकार द्वारा हत्या करा दिये गए एक पत्रकार का डीपफेक वीडियो बनाया गया जहाँ उसने अपना अंतिम संदेश दिया और न्याय की गुहार लगाई।
  • डिजिटल पुनर्निर्माण और सार्वजनिक सुरक्षा: डीपफेक तकनीक गुम या क्षतिग्रस्त डिजिटल डेटा के पुनर्निर्माण में मदद कर सकती है, जैसे पुरानी तस्वीरों या वीडियो का पुनर्निर्माण या निम्न गुणवत्ता वाले फुटेज को बेहतर बनाना।
  • यह आपातकालीन प्रतिक्रियाकर्ताओं, कानून प्रवर्तन एजेंसियों या सैन्य कर्मियों के लिये यथार्थवादी प्रशिक्षण सामग्री का सृजन कर सार्वजनिक सुरक्षा में सुधार लाने में भी मदद कर सकता है।
  • उदाहरण के लिये, स्कूल में गोलीचालन (शूटिंग) का एक डीपफेक वीडियो बनाया गया ताकि शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा सके कि वे ऐसे परिदृश्य में किस प्रकार प्रतिक्रिया दें।
  • नवाचार: डीपफेक तकनीक मनोरंजन, गेमिंग या मार्केटिंग जैसे विभिन्न क्षेत्रों और उद्योगों में नवाचार को बढ़ावा दे सकती है। यह स्टोरीटेलिंग, इंटरैक्शन, डायग्नोसिस या प्रत्यायन/अनुनय (persuasion) के नए रूपों को सक्षम कर सकता है।
  • उदाहरण के लिये, सिंथेटिक मीडिया की क्षमता और समाज पर इसके प्रभाव को प्रदर्शित करने के लिये मार्क जुकरबर्ग का एक डीपफेक वीडियो बनाया गया था।

डीपफेक प्रौद्योगिकी से संबद्ध चुनौतियाँ 

  • झूठी सूचना का प्रसार: डीपफेक का उपयोग जानबूझकर झूठी जानकारी या गलत सूचना के प्रसार के लिये किया जा सकता है, जो महत्वपूर्ण विषयों के बारे में भ्रम पैदा कर सकता है।
  • उदाहरण के लिये, राजनेताओं या मशहूर हस्तियों के डीपफेक वीडियो का इस्तेमाल जनता की राय को प्रभावित करने या चुनावों को प्रभावित करने के लिये किया जा सकता है।
  • उत्पीड़न और धमकी: डीपफेक को लोगों को परेशान करने, भयभीत करने, नीचा दिखाने और कमज़ोर करने के लिये डिज़ाइन किया जा सकता है।
  • उदाहरण के लिये, डीपफेक तकनीक अन्य अनैतिक कार्यों को बढ़ावा दे सकती है, जैसे कि रिवेंज पोर्न (revenge porn) बनाना, जिससे महिलाएँ असंगत रूप से हानि उठाती हैं।
  • डीपफेक पोर्न पीड़ितों की निजता एवं सहमति का भी उल्लंघन कर सकता है और मनोवैज्ञानिक संकट एवं आघात (trauma) का कारण बन सकता है।
  • डीपफेक प्रौद्योगिकी का उपयोग ब्लैकमेल या फिरौती की सामग्री के निर्माण के लिये किया जा सकता है, जैसे किसी व्यक्ति द्वारा कोई अपराध करने, प्रेम प्रसंग रखने या खतरे में होने के नकली वीडियो बनाना।
  • उदाहरण के लिये, एक राजनेता का डीपफेक वीडियो बनाया गया और इसे सार्वजनिक नहीं करने के बदले धन की मांग की गई।
  • झूठे साक्ष्य गढ़ना: डीपफेक का उपयोग झूठे साक्ष्य गढ़ने के लिये किया जा सकता है, जिसका उपयोग फिर जनता को धोखा देने या राज्य की सुरक्षा को हानि पहुँचाने के लिये किया जा सकता है। डीपफेक साक्ष्य का उपयोग कानूनी कार्यवाही या जाँच में हेरफेर करने के लिये भी किया जा सकता है।
  • उदाहरण के लिये, डीपफेक ऑडियो या वीडियो का उपयोग किसी की पहचान या आवाज़ का प्रतिरूपण करने और झूठे दावे करने या आरोप लगाने के लिये किया जा सकता है।
  • प्रतिष्ठा धूमिल करना: डीपफेक का उपयोग किसी व्यक्ति की ऐसी छवि बनाने के लिये किया जा सकता है जैसा वह नहीं है या किसी को कुछ ऐसा कहते या करते हुए दिखाने के लिये जैसा उसने कभी नहीं किया या किसी व्यक्ति की आवाज़ को ऑडियो फ़ाइल में संश्लेषित करने के लिये किया जा सकता है, जिसका उपयोग फिर उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिये किया जा सकता है।
  • उदाहरण के लिये, डीपफेक मीडिया का उपयोग किसी व्यक्ति या संगठन की विश्वसनीयता या विश्वस्तता को हानि पहुँचाने और प्रतिष्ठा संबंधी या वित्तीय नुकसान करने के लिये किया जा सकता है।
  • वित्तीय धोखाधड़ी: डीपफेक तकनीक का उपयोग अधिकारियों, कर्मचारियों या ग्राहकों का रूप धारण करने और उन्हें संवेदनशील जानकारी प्रकट करने, धन हस्तांतरित करने या गलत निर्णय लेने के लिये भ्रमित करने हेतु किया जा सकता है।
  • उदाहरण के लिये, एक CEO के डीपफेक ऑडियो का इस्तेमाल एक कर्मचारी को भ्रमित करने और धोखाधड़ीपूर्ण खाते में 2,43,000 अमेरिकी डॉलर हस्तांतरित करने के लिये किया गया था।

डीपफेक पर अंकुश लगाने के लिये सरकार द्वारा प्रवर्तित नियम

  • आईटी अधिनियम 2000 और आईटी नियम 2021: आईटी अधिनियम और आईटी नियम दोनों में स्पष्ट निर्देश दिये गए हैं जो सोशल मीडिया मध्यस्थों पर ज़िम्मेदारी डालते हैं कि वे यह सुनिश्चित करें कि इस तरह के डीपफेक वीडियो या फोटो को जल्द से जल्द हटा दिया जाएगा। ऐसा न करने पर तीन वर्ष तक की कैद और 1 लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
  • आईटी अधिनियम की धारा 66D: आईटी अधिनियम 2000 की धारा 66D में कहा गया है कि जो कोई भी संचार उपकरण या कंप्यूटर संसाधन का उपयोग कर प्रतिरूपण के माध्यम से धोखाधड़ी (cheating by personating) करता है, उसे तीन वर्ष तक की कैद और एक लाख रुपए तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
  • नियम 3(1)(b)(vii): यह नियम कहता है कि सोशल मीडिया मध्यस्थों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके प्लेटफॉर्म के उपयोगकर्ता किसी भी ऐसी सामग्री को होस्ट न करें जो किसी अन्य व्यक्ति का प्रतिरूपण करती हो।
  • नियम 3(2)(b): ऐसी किसी सामग्री के विरुद्ध शिकायत प्राप्त होने के 24 घंटे के भीतर ऐसी सामग्री को हटाना आवश्यक है।

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डीपफेक के खतरे से निपटने के लिये क्या किया जाना चाहिये?

  • अन्य देशों के अनुभव से सीखना: डीपफेक के जीवनचक्र को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है - निर्माण, प्रसार और इसका पता लगाना। AI विनियमन का उपयोग गैरकानूनी या गैर-सहमति वाले डीपफेक के निर्माण के शमन के लिये किया जा सकता है।
  • चीन जैसे देश जिन तरीकों से इस तरह के विनियमन की ओर आगे बढ़ रहे हैं, उनमें से एक यह है कि डीपफेक प्रौद्योगिकियों के प्रदाताओं को अपने वीडियो में मौज़ूद लोगों की सहमति प्राप्त करने, उपयोगकर्त्ताओं की पहचान सत्यापित करने और उन्हें साधन या अवलंब (recourse) प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • डीपफेक से होने वाले नुकसान को रोकने के लिये कनाडा का दृष्टिकोण यह रहा है कि व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाए जाएँ और ऐसे विधान बनाए जाएँ जो दुर्भावनापूर्ण इरादे से डीपफेक के सृजन एवं वितरण को अवैध बना देंगे।
  • सभी AI-जनित वीडियो में वॉटरमार्क जोड़ना: AI-जनरेटेड वीडियो में वॉटरमार्क जोड़ना प्रभावी पहचान और श्रेय (attribution) के लिये आवश्यक है। वॉटरमार्क विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करते हुए सामग्री के उद्गम और स्वामित्व को प्रकट करते हैं। वे सामग्री के निर्माता या स्रोत को स्पष्ट करके इसकी पहचान में सहायता करते हैं, विशेष रूप से जब इन्हें विभिन्न संदर्भों में साझा किया जाता है।
  • दृश्यमान वॉटरमार्क अनधिकृत उपयोग के विरुद्ध एक निवारक के रूप में भी कार्य करते हैं, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सामग्री के स्रोत या उद्गम का पता लगाया जा सकता है।
  • इसके अलावा, वॉटरमार्क मूल निर्माता के अधिकारों का प्रमाण प्रदान कर जवाबदेही का समर्थन करते हैं; इस प्रकार AI-जनित सामग्री के लिये कॉपीराइट और बौद्धिक संपदा सुरक्षा के प्रवर्तन को सरल बनाते हैं।
  • उपयोगकर्ताओं को अनुचित सामग्री अपलोड करने से रोकना: ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को उपयोगकर्ताओं को उनकी सामग्री नीतियों के बारे में शिक्षित और सूचित करने के लिये कदम उठाने चाहिए तथा उन्हें अनुचित सामग्री अपलोड करने से रोकने के लिये उपाय भी लागू करने चाहिए।
  • डीपफेक डिटेक्शन तकनीकों का विकास और सुधार: इसमें अधिक परिष्कृत एल्गोरिदम का उपयोग करने के साथ ही नए तरीकों को विकसित करना शामिल हो सकता है जो डीपफेक के संदर्भ, मेटाडेटा या अन्य कारकों के आधार पर उनकी पहचान कर सकते हैं।
  • डिजिटल शासन और विधान को सुदृढ़ करना: यह ऐसे स्पष्ट एवं संगत कानूनों एवं नीतियों को संलग्न कर सकता है जो डीपफेक के दुर्भावनापूर्ण उपयोग को परिभाषित एवं प्रतिबंधित करते हैं, साथ ही डिजिटल नुकसान के पीड़ितों और अपराधियों के लिये प्रभावी उपचार एवं प्रतिबंध प्रदान करते हैं।
  • मीडिया साक्षरता और जागरूकता बढ़ाना: इसमें जनता और मीडिया को डीपफेक के अस्तित्व एवं संभावित प्रभाव के बारे में शिक्षित करना, साथ ही उन्हें संदिग्ध सामग्री को सत्यापित करने और रिपोर्टिंग करने के लिये कौशल एवं साधन प्रदान करना शामिल हो सकता है।
  • डीपफेक प्रौद्योगिकी के नैतिक और उत्तरदायी उपयोग को बढ़ावा देना: इसमें डीपफेक प्रौद्योगिकी के सृजनकर्ताओं और उपयोगकर्ताओं के लिये आचार संहिता एवं मानकों की स्थापना और कार्यान्वयन के  साथ ही इसके सकारात्मक एवं लाभकारी अनुप्रयोगों को प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।

आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट

चर्चा में क्यों?

भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) में जैव अर्थव्यवस्था के योगदान को 2.6% से बढ़ाकर 5% करना है, जैसा कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा 'बायोइकोनॉमी रिपोर्ट 2022' में बताया गया है।

  • भारत में जैव प्रौद्योगिकी वित्तपोषण सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.0001% आवंटन के साथ स्थिर बना हुआ है। कोविड-19 के दौरान अस्थायी वृद्धि के बावजूद वित्तपोषण का स्तर महामारी-पूर्व मानकों पर वापस नहीं आया है।
  • अप्रैल 2023 में DBT द्वारा जारी 'आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Engineered- GE) कीटों के लिये दिशा-निर्देश' उन लोगों हेतु प्रक्रियात्मक रोडमैप प्रदान करते हैं जो GE कीट निर्माण में रुचि रखते हैं लेकिन उनकी अपनी समस्याएँ हैं

बायोइकोनॉमी रिपोर्ट 2022 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • भारत की जैव अर्थव्यवस्था मज़बूत विकास पथ पर है, जिसके वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने और वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने का अनुमान है।
  • इस क्षेत्र में उल्लेखनीय 14.1% की वृद्धि हुई, जो वर्ष 2020 के 70.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में वर्ष 2021 में 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई।
  • जैव अर्थव्यवस्था ने प्रतिदिन 219 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का उत्पादन किया, जो इसके महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव को दर्शाता है।
  • वर्ष 2021 में इस क्षेत्र में प्रतिदिन तीन बायोटेक स्टार्टअप की स्थापना हुई, जो वर्ष में कुल 1,128 थीं।
  • अनुसंधान और विकास में 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के निवेश के साथ यह उद्योग नवाचार और उन्नति के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर रहा है।
  • वैश्विक महामारी के बीच भारत ने अपने लचीलेपन और क्षमता का प्रदर्शन करते हुए 4 मिलियन कोविड-19 वैक्सीन खुराक  प्रदान की और प्रतिदिन 3 मिलियन परीक्षण किये।
  • पिछले एक दशक में बायोटेक स्टार्टअप्स की संख्या 50 से बढ़कर 5,300 से अधिक हो गई है तथा वर्ष 2025 तक दोगुनी होने की उम्मीद है।
  • जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) ने जैव-उद्यमियों के लिये एक सहायक वातावरण को बढ़ावा देने, 21 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 74 जैव-ऊष्मायन केंद्र स्थापित करके महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • विशेष रूप से भारत अमेरिका के बाहर USFDA (यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) द्वारा अनुमोदित विनिर्माण संयंत्रों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या का दावा करता है, जो बायोटेक उद्योग में इसकी वैश्विक स्थिति को रेखांकित करता है।

आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट क्या हैं? 

  • परिचय:
    • GE कीट ऐसे जीव हैं जिनकी आनुवंशिक सामग्री को विशिष्ट वांछित लक्षण अथवा विशेषताओं को पेश करने के लिये आनुवंशिक संशोधन तकनीकों के माध्यम से परिवर्तित कर दिया गया है।
    • इसमें कीट के DNA में इस तरह से हेर-फेर करना शामिल है जो स्वाभाविक रूप से नहीं होता है, अक्सर कुछ लाभ प्रदान करने या विशिष्ट मुद्दों को संबोधित करने के उद्देश्य से।
    • इसमें अमूमन लाभ प्रदान करने अथवा विशेष समस्याओं को हल करने के प्रयास में कीट के DNA को इस तरह से संशोधित करना शामिल है जो प्रकृति में नहीं देखा जाता है।
  • अनुप्रयोग:
    • GE कीटों का विकास विभिन्न क्षेत्रों में अनुप्रयोग प्रदान करता है, जैसे-
    • मानव व पशुधन स्वास्थ्य में वेक्टर प्रबंधन
    • प्रमुख फसल कीटों का प्रबंधन
    • रसायनों के उपयोग में कमी के माध्यम से मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण का रखरखाव तथा उसमें सुधार
    • स्वास्थ्य देखभाल प्रयोजनों के लिये प्रोटीन का उत्पादन
    • शिकारी, परजीवी, परागणकर्त्ता (जैसे मधुमक्खी) अथवा उत्पादक कीट (जैसे रेशमकीट, लाख कीट) आदि लाभकारी कीटों का आनुवंशिक सुधार।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित (GE) कीट दिशा-निर्देशों से संबंधित मुद्दे:
    • भारत में GE कीटों के उपयोग के बारे में दिशा-निर्देश अस्पष्ट हैं। वे स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण के क्षेत्रों में अनुप्रयोगों पर ज़ोर देते हैं, लेकिन उनका ध्यान जैव अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के बड़े लक्ष्य के अनुरूप नहीं है।
    • शोधकर्त्ताओं के लिये अनिश्चितता: दिशा-निर्देश अनुसंधान तक सीमित हैं एवं सीमित परीक्षणों अथवा नियोजन को संबोधित नहीं करते हैं। नियोजन के लिये सरकारी मंज़ूरी पर अनिश्चितता व्यक्तिगत प्राथमिकता से परे सामुदायिक प्रदर्शन के बारे में चिंता पैदा करती है।
    • दायरे की अनिश्चितता: GE कीटों के संदर्भ में 'फायदेमंद' की परिभाषा को लेकर अस्पष्टता है, जो फंड प्रदाता तथा वैज्ञानिकों को निवेश करने से रोकती है। अन्य जीन-संपादन दिशा-निर्देशों में भी इसी तरह की अस्पष्टताएँ मौजूद हैं, जो प्रगति को प्रभावित कर रही हैं।

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GE) कीटों से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • पारिस्थितिक प्रभाव:
    • एक बड़ी चिंता पर्यावरण में आनुवंशिक रूप से संशोधित कीटों को छोड़ने का संभावित पारिस्थितिक प्रभाव हो सकता है। ऐसा जोखिम है कि ये कीट गैर-लक्षित प्रजातियों को प्रभावित कर अथवा मौजूदा आबादी के संतुलन को बदलकर पारिस्थितिक तंत्र को बाधित कर सकते हैं।
  • अनायास नतीजे: 
    • यह आनुवंशिक रूप से संशोधित एक जटिल प्रक्रिया है और इसके अनपेक्षित परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। लक्षित जीन में परिवर्तन से कीट के व्यवहार, जीवन काल या अन्य जीवों के साथ अंतःक्रिया पर अप्रत्याशित प्रभाव पड़ सकता है।
    • संशोधित जीन की लक्षित आबादी से परे फैलने का जोखिम है। यदि संशोधित कीट जंगली आबादी के साथ प्रजनन करते हैं, तो संशोधित जीन जंगली जीन पूल में प्रवेश कर सकते हैं, जिसके अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं।
  • नैतिक चिंताएँ:
    • कुछ व्यक्ति जीवित जीवों की आनुवंशिकी को बदलने की नैतिकता के विषय में चिंतित हैं, खासकर जब पर्यावरण में उनकी रिहाई शामिल होती है।
  • नियामक चुनौतियाँ:
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित कीटों के लिये नियामक ढाँचा विकसित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सुरक्षा और प्रभावशीलता दोनों सुनिश्चित करने के लिये परीक्षण, निगरानी तथा निरीक्षण का उचित स्तर निर्धारित करना महत्त्वपूर्ण है।
  • दीर्घकालिक स्थिरता:
    • पीढ़ी-दर-पीढ़ी संशोधित किये गए लक्षणों की स्थिरता सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। आनुवंशिक संशोधनों को प्रभावी रहना चाहिये और उनमें खराबी नहीं आनी चाहिये या यह प्राकृतिक चयन के दबाव के अधीन नहीं होना चाहिये जो उनके इच्छित उद्देश्य से समझौता कर सकता है।
  • लागत और मापनीयता:
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट प्रौद्योगिकियों का विकास और कार्यान्वयन महँगा हो सकता है। रोग वेक्टर नियंत्रण जैसे बड़े पैमाने के अनुप्रयोगों के लिये लागत-प्रभावशीलता और मापनीयता सुनिश्चित करना एक निरंतर चुनौती है।

आगे की राह

  • जैव अर्थव्यवस्था के लिये निर्धारित महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु व्यापक और स्पष्ट नीतियाँ आवश्यक है और इन मुद्दों को संबोधित करना क्षेत्र की वृद्धि तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान के लिये  महत्त्वपूर्ण है।
  • GM कीटों से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिये वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, नैतिकतावादियों और जनता को शामिल करते हुए एक बहु-विषयक दृष्टिकोण की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संभावित जोखिमों को कम करते हुए आनुवंशिक रूप से संशोधित कीटों के लाभ प्राप्त हो।
  • इन जटिलताओं से ज़िम्मेदारीपूर्वक निपटने के लिये निरंतर अनुसंधान और खुला संवाद आवश्यक है।

आपातकालीन चेतावनी प्रणाली 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 3 नवंबर, 2023 को नेपाल में आए 6.4 तीव्रता के भूकंप तथा उसके बाद के झटके (आफ्टरशॉक) ने दिल्ली तथा उसके आसपास आपातकालीन चेतावनी प्रणालियों की गंभीर कमियों को उजागर किया है।

  • संबद्ध क्षेत्र में भूकंप के झटके के दौरान सरकारी एवं निजी चेतावनी तंत्र भूकंप वाले क्षेत्रों के लोगों को सचेत करने में असफल रहे।
  • आपातकालीन चेतावनी प्रणालियाँ ऐसी व्यवस्थाएँ हैं जो भूकंप, चक्रवात, बाढ़, भूस्खलन आदि जैसी आसन्न अथवा चल रही आपदाओं की प्रारंभिक चेतावनी एवं अधिसूचना प्रदान करती हैं।

भारत में आपातकालीन चेतावनी प्रणालियाँ क्या हैं?

  • गूगल की एंड्रॉइड भूकंप पूर्व चेतावनी प्रणाली: 
    • यह एक ऐसी सुविधा है जो भूकंपीय गतिविधि का पता लगाने तथा संभावित भूकंपों के बारे में उपयोगकर्त्ताओं को सचेत करने के लिये एंड्रॉइड स्मार्टफोन में सेंसर का उपयोग करती है।
    • यह भूकंप का पता लगाने एवं विश्लेषण को बेहतर बनाने के लिये डेटा एकत्र कर उसे भूकंप विज्ञान एजेंसियों के साथ साझा करती है।
    • Google ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS) के सहयोग से भारत में यह सुविधा सितंबर 2023 में लॉन्च की थी।
    • Google की चेतावनी प्रणाली संशोधित मरकली तीव्रता (Modified Mercalli Intensity- MMI) परिमापक के माध्यम से कार्य करती है, जो रिक्टर स्केल का एक विकल्प है।
    • MMI परिमापक किसी विशिष्ट स्थान पर भूकंप के प्रभाव को मापता है। यह भूकंप के प्रभावों का वर्णन करता है, जिसमें लोगों के अनुभव के साथ इमारतों व वस्तुओं की स्थिति शामिल होती है।
    • MMI परिमापक रिक्टर स्केल से भिन्न होता है तथा इसकी रेंज 1 से 12 तक होती है।
  • सेल ब्रॉडकास्ट अलर्ट सिस्टम (CBAS): 
    • CBAS अत्याधुनिक तकनीक का प्रतिनिधित्व करता है जो निर्दिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों के अंदर सभी मोबाइल उपकरणों पर महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील आपदा प्रबंधन संदेशों को समय पर प्रसारित करने का अधिकार देता है, भले ही प्राप्तकर्त्ता निवासी हों या आगंतुक।
    • सेल ब्रॉडकास्ट के सामान्य अनुप्रयोगों में आपातकालीन अलर्ट जैसे गंभीर मौसम की चेतावनी (जैसे- सुनामी, अचानक बाढ़, भूकंप), सार्वजनिक सुरक्षा संदेश, निकासी नोटिस और अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी देना शामिल है।
    • इसे दूरसंचार विभाग (DOT) और NDMA तथा अन्य एजेंसियों के सहयोग से विकसित किया गया है ताकि लोगों को अलर्ट किया जा सके।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS): 
    • यह भारत और उसके पड़ोसी देशों में भूकंपीय गतिविधि की निगरानी तथा रिपोर्टिंग के लिये ज़िम्मेदार एजेंसी है।
    • यह पूरे देश में भूकंपीय वेधशालाओं का एक नेटवर्क संचालित करता है और भूकंप एवं सुनामी पर वास्तविक समय डेटा तथा जानकारी प्रदान करता है।
    • यह जनता को भूकंप की चेतावनी और अपडेट प्रदान करने के लिये भूकैंप (BhooKamp) नामक एक वेबसाइट तथा एक मोबाइल एप भी संचालित करता है।

आपातकालीन चेतावनी प्रणालियों की कमियाँ और चुनौतियाँ क्या हैं?

  • समन्वय और एकीकरण का अभाव:
    • भारत में एकल, मानकीकृत आपातकालीन चेतावनी प्रणाली का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप जनता और अधिकारियों दोनों को असंगत एवं अविश्वसनीय जानकारी मिलती है।    
    • कई एजेंसियाँ और प्लेटफॉर्म स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं, जिससे भ्रम, दोहराव के साथ अलर्ट करने में देरी होती है।
    • दिल्ली के आसपास हाल के झटकों के दौरान NCS वेबसाइट और एप क्रैश हो गए, जिससे ट्रैफिक में अचानक वृद्धि का सामना करना पड़ा, जबकि झटकों को लेकर वास्तविक समय की जानकारी महत्त्वपूर्ण थी।
    • यह घटना आपातकालीन स्थितियों के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण समन्वय चुनौतियों पर प्रकाश डालती है।
  • सटीकता और समयबद्धता का अभाव:
    • भारत में आपातकालीन चेतावनी प्रणालियाँ आपदाओं के स्थान, परिमाण, तीव्रता और प्रभाव के विषय में सटीक तथा समय पर जानकारी प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं।
    • यह डेटा संग्रह, विश्लेषण और ट्रांसमिशन में सीमाओं के कारण है।
  • जागरूकता और तैयारी की कमी:
    • जनता और अधिकारियों के बीच जागरूकता और तैयारियों की कमी के कारण भारत में आपातकालीन चेतावनी प्रणालियाँ प्रभावी ढंग से जनता तक पहुँचने और उन्हें सूचित करने में सक्षम नहीं हैं।
    • बहुत से लोग नहीं जानते कि अलर्ट तक कैसे पहुँच प्राप्त करें, कैसे व्याख्या करें और उस पर प्रतिक्रिया दें तथा अक्सर उन्हें गलत अलार्म के रूप में अनदेखा या खारिज़ कर देते हैं।
    • आपदा जोखिमों और शमन उपायों तथा प्रतिक्रिया तंत्र को लेकर सार्वजनिक शिक्षा तथा जागरूकता अभियानों की कमी देखी गई है।

आगे की राह

  • SMS, वॉयस कॉल, सोशल मीडिया और पारंपरिक माध्यमों जैसे कई चैनलों को शामिल करते हुए एक एकीकृत आपातकालीन चेतावनी प्रणाली विकसित करना।
  • MoES, DoT, NDMA, IMD और NCS जैसी प्रमुख एजेंसियों के साथ निर्बाध समन्वय तथा एकीकरण स्थापित करना।
  • डेटा संग्रह, विश्लेषण और ट्रांसमिशन को बढ़ाने के लिये उपग्रहों तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों का लाभ लेना।
  • भूकंपीय वेधशालाओं का विस्तार करके अतिरिक्त सेंसर तैनात करना और कंप्यूटिंग क्षमताओं को उन्नत करके बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना।
  • आपदा के स्थान, परिमाण और प्रभाव पर विस्तृत विवरण प्रदान करते हुए तत्काल अलर्ट जारी करने का लक्ष्य तय करना।
  • जनता को आपदा जोखिमों, शमन उपायों और आपातकालीन चेतावनी प्रणालियों की कार्यक्षमता के बारे में सूचित और संलग्न करना।
  • चेतावनी प्रणालियों और प्रतिक्रिया तंत्रों का परीक्षण एवं परिशोधन के लिये हितधारकों एवं समुदायों को शामिल करते हुए लगातार अभ्यास करना।

इलेक्ट्रिक बैटरियाँ और इलेक्ट्रोकेमिकल सेल

चर्चा में क्यों? 

इलेक्ट्रिक बैटरियों और इलेक्ट्रोकेमिकल सेल की प्रगति ने परिवहन और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी क्रांति लाकर विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया है, जो हमें एक स्थायी भविष्य की ओर ले जाता है।

इलेक्ट्रिक बैटरियाँ और इलेक्ट्रोकेमिकल सेल क्या हैं?

  • इलेक्ट्रिक बैटरियाँ:
    • इलेक्ट्रिक बैटरी एक ऐसा उपकरण है जो रासायनिक ऊर्जा को संग्रहीत करता है और इसे बिजली में परिवर्तित करता है।
    • बैटरियाँ एक या अधिक इलेक्ट्रोकेमिकल कोशिकाओं से बनी होती हैं जो बाहरी इनपुट और आउटपुट से जुड़ी होती हैं।
    • इलेक्ट्रिक बैटरियों ने मोटराइज़ेशन और वायरलेस प्रौद्योगिकी के प्रसार को सक्षम करके हमारी दुनिया को बदल दिया है।
  • प्रमुख अनुप्रयोग:
    • पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक्स: स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट और पहनने योग्य उपकरणों को सशक्त बनाना।
    • परिवहन: व्यक्तिगत और सार्वजनिक परिवहन दोनों के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) का संचालन तथा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करना।
    • नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण: सौर पैनलों और पवन टर्बाइनों द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को बाद में उपयोग के लिये संग्रहीत करना।
    • दूरस्थ क्षेत्रों के लिये बिजली: दूरस्थ या ऑफ-ग्रिड स्थानों पर बिजली प्रदान करना जहाँ पारंपरिक बिजली स्रोत अनुपलब्ध या अविश्वसनीय हैं।
  • बैटरियों के प्रमुख प्रकार:
    • सॉलिड-स्टेट बैटरी: यह एक ऐसी बैटरी है जो लिक्विड या पॉलिमर जेल इलेक्ट्रोलाइट के बजाय सॉलिड इलेक्ट्रोड और सॉलिड इलेक्ट्रोलाइट का उपयोग करती है।
    • सॉलिड-स्टेट बैटरियों का उपयोग विभिन्न उपकरणों में किया जाता है, जिनमें शामिल हैं: पेसमेकर, रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) और पहनने योग्य डिवाइस।
    • निकेल-कैडमियम बैटरी (Ni-Cd): इनका उपयोग ताररहित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, ड्रिल, कैमकोर्डर और अन्य छोटे बैटरी चालित उपकरणों के लिये किया जाता है, जिनके लिये समान पावर डिस्चार्ज की आवश्यकता होती है।
    • क्षारीय बैटरी: यह एक प्रकार की प्राथमिक बैटरी है जो इलेक्ट्रोड के रूप में जिंक और मैंगनीज़ डाइऑक्साइड का उपयोग करती है।
    • इसका उपयोग उन अनुप्रयोगों के लिये किया जाता है जिनके लिये कम लागत और विश्वसनीय विद्युत की आवश्यकता होती है, जैसे- फ्लैशलाइट, खिलौने, रेडियो और रिमोट कंट्रोल।
    • लिथियम-आयन बैटरी: ली-आयन बैटरी के अभूतपूर्व सिद्धांतों ने इसके डेवलपर्स को वर्ष 2019 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार दिलाया, जो 20वीं और 21वीं सदी में इसके गहरे प्रभाव को रेखांकित करता है।
    • ली-आयन बैटरियाँ बहुमुखी हैं, जो फोन और लैपटॉप जैसे पोर्टेबल उपकरणों को ऊर्जा प्रदान करने के साथ-साथ कारों और बाइक जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये भी उपयोगी हैं।
  • विद्युत रासायनिक सेल:
    • इलेक्ट्रोकेमिकल सेल ऐसे उपकरण हैं जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर सकते हैं, या इसके विपरीत प्रतिक्रिया करते हैं।
    • वे रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से विद्युत प्रवाह उत्पन्न कर सकते हैं या रासायनिक प्रतिक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने के लिये विद्युत ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं।
    • इलेक्ट्रोकेमिकल सेल, जैसे वोल्टाइक या गैल्वेनिक सेल, रेडॉक्स प्रतिक्रियाओं के माध्यम से संचालित होते हैं, जिसमें ऑक्सीकरण के दौरान इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं और कमी के दौरान उपयोग किये जाते हैं।
    • एक मानक सेल में विशिष्ट इलेक्ट्रोलाइट्स में डूबे धातु इलेक्ट्रोड को समायोजित करने वाले दो खंड होते हैं।
    • इलेक्ट्रोड अर्थात् एनोड और कैथोड, विद्युत संचालन करते हैं।
    • एनोड में जहाँ ऑक्सीकरण होता है, कैथोड, में अपचयन होता है, सेल के मूलभूत घटक बनाते हैं।
    • इलेक्ट्रॉन एक बाहरी सर्किट के माध्यम से नकारात्मक रूप से चार्ज किये गए एनोड से सकारात्मक रूप से चार्ज किये गए कैथोड में प्रवाहित होते हैं, जो विभिन्न प्रकार के उपयोगों के लिये ऊर्जा प्रदान करते हैं।
    • इन हिस्सों को जोड़ने वाला एक तार और एक लवण सेतु है, जो उनके बीच आयनों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाता है।
    • इलेक्ट्रॉनों द्वारा ली गई ऊर्जा स्रोत वोल्टेज को निर्देशित करती है, जिससे सर्किट के भीतर इलेक्ट्रॉन प्रवाह नियंत्रित होता है।
    • आदर्श परिस्थितियों में स्रोत वोल्टेज टर्मिनल वोल्टेज के बराबर होता है, जो एक कुशल विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
    • सेल डिज़ाइन और सामग्रियों में प्रगति, निकल-कैडमियम, ज़िंक-कॉपर तथा आधुनिक लिथियम-आयन सेल में देखी गई, जो बढ़े हुए वोल्टेज एवं बढ़ी हुई दक्षता को दर्शाती है।
  • संबंधित चुनौतियाँ:
    • इलेक्ट्रोकेमिकल सेल की दक्षता को प्रभावित करने वाली प्रमुख चुनौतियों में से एक ‘जंग’ है। उदाहरण के लिये उच्च आर्द्रता वाले वातावरण में इलेक्ट्रोड जल की बूंँदों को इकट्ठा कर सकते हैं।
    • यदि वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर ऊँचा हो जाता है, तो जल और गैस के संयोजन से कार्बोनिक एसिड का निर्माण होता है, जिससे इलेक्ट्रोड सतहों पर जंग लग जाती है।
    • एक अन्य समस्या गैल्वेनिक संक्षारण से उत्पन्न होती है, जहाँ एक सेल के भीतर इलेक्ट्रोड में से एक अपनी उच्च प्रतिक्रियाशीलता के कारण इलेक्ट्रोलाइट में तेज़ी से खराब हो जाता है।
    • उदाहरण के लिये कार्बन-ज़िंक बैटरी में बैटरी के उपयोग के दौरान जिंक इलेक्ट्रोड अधिक तेज़ी से नष्ट हो जाता है।

राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने पद्म पुरस्कार और अन्य राष्ट्रीय पुरस्कारों के समान 'राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार' (RVP) की घोषणा की है।

राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार (RVP) क्या है?

  • शामिल पुरस्कार:
    • विज्ञान रत्न पुरस्कार: ये पुरस्कार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के किसी भी क्षेत्र में किये गए पूरे जीवन की उपलब्धियों और योगदान को मान्यता देंगे।
    • विज्ञान श्री पुरस्कार: ये पुरस्कार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट योगदान को मान्यता देंगे।
    • विज्ञान टीम पुरस्कार: ये पुरस्कार तीन या अधिक वैज्ञानिकों/शोधकर्त्ताओं/नवप्रवर्तकों की टीम को दिये जाएंगे, जिन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के किसी भी क्षेत्र में एक टीम में काम करते हुए असाधारण योगदान दिया है।
    • विज्ञान युवा-शांति स्वरूप भटनागर (VY-SSB): ये पुरस्कार युवा वैज्ञानिकों (अधिकतम 45 वर्ष) के लिये भारत में सर्वोच्च बहुविषयक विज्ञान पुरस्कार हैं।
    • इनका नाम वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के संस्थापक और निदेशक शांति स्वरूप भटनागर के नाम पर रखा गया है, जो एक प्रसिद्ध रसायनज्ञ तथा दूरदर्शी थे।
  • मानदंड:
    • पुरस्कारों में प्रौद्योगिकी-आधारित नवाचारों और टीम के सहयोगी प्रयासों को शामिल करते हुए विविध मानदंड शामिल हैं।
    • पिछले पुरस्कारों के विपरीत RVP विज्ञान युवा-SSB पुरस्कार को छोड़कर आयु प्रतिबंध लागू नहीं करता है, जो आयु और लैंगिक पूर्वाग्रहों को संबोधित करने के आह्वान के अनुरूप है।
    • पुरस्कारों के लिये नामांकन प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को आमंत्रित किये जाएंगे जो प्रत्येक वर्ष 28 फरवरी (राष्ट्रीय विज्ञान दिवस) तक खुले रहेंगे।
    • इन पुरस्कारों की घोषणा प्रत्येक वर्ष 11 मई (राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस) को की जाएगी। सभी श्रेणियों के पुरस्कारों के लिये पुरस्कार समारोह 23 अगस्त (राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस) को आयोजित किया जाएगा।
  • महत्त्व:
    • यह भारतीय वैज्ञानिक प्रतिभा के वैश्विक प्रभाव को पहचानते हुए विदेशों में भारतीय मूल के व्यक्तियों की भागीदारी को स्वीकार और प्रोत्साहित करता है।
    • नए पुरस्कार सरकारी, निजी क्षेत्र के संगठनों में कार्य करने वाले वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकीविदों और नवप्रवर्तकों (या टीमों) या किसी संगठन के बाहर कार्य करने वाले व्यक्तियों के विस्तारित समूह के लिये खुले होंगे।
    • नए पुरस्कारों में खोज-आधारित अनुसंधान के अलावा प्रौद्योगिकी-आधारित नवाचारों या उत्पादों सहित पात्रता मानदंडों का भी विस्तार होगा।  RVP में वैज्ञानिक अनुसंधान की बढ़ती सहयोगात्मक, अंतर-विषयक, अनुवादात्मक एवं अंतःक्रियात्मक प्रकृति को स्वीकार करने के लिये टीम पुरस्कारों (विज्ञान टीम) का एक सेट भी शामिल है।
    • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि विज्ञान युवा-SSB पुरस्कार, जो 45 वर्ष की आयु तक के वैज्ञानिकों को दिया जाता है, को छोड़कर सभी RVP पुरस्कारों में कोई आयु प्रतिबंध नहीं है और स्पष्ट रूप से निष्पक्ष लिंग प्रतिनिधित्व की गारंटी देने की प्रतिज्ञा है।

RVP पिछली सीमाओं को पार करते हुए समावेशिता को कैसे बढ़ा सकता है?

  • असाधारण योगदान के लिये स्पष्ट मानदंड:
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि RVP प्रणाली केवल वास्तव में "उल्लेखनीय और प्रेरणादायक योगदान" को ही मान्यता देती है, पुरस्कारों के विवरण में यह कथन अवश्य शामिल होना चाहिये कि योगदान किसी वैज्ञानिक/प्रौद्योगिकीविद् के मानक नौकरी विवरण के अलावा है, न कि केवल वृद्धिशील कार्य या उनकी नियुक्ति का अभिन्न अंग है।
  • विविध वैज्ञानिक संलग्नता को शामिल करना:
    • RVP पुरस्कारों में श्रेणियों को शामिल करके या शिक्षण, सलाह, विज्ञान संचार और नेतृत्व पर विचार करके अनुसंधान से परे वैज्ञानिकों के योगदान को स्वीकार किया जाना चाहिये।
    • ये प्रयास अक्सर प्राथमिक भूमिकाओं के अतिरिक्त चयन के दौरान पुरस्कार संरचना के तहत मान्यता के योग्य होते हैं।
  • आयु सीमा और लिंग समानता में संशोधन:
    • विज्ञान युवा-SSB के लिये 45 वर्ष की आयु सीमा लैंगिक समानता की चुनौती पेश करती है, जिससे महिलाओं को पारिवारिक दायित्व निभाने में बाधा आती है।
    • निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये कॅरियर की स्वतंत्रता के आधार पर 'युवा वैज्ञानिक' को फिर से परिभाषित करना या व्यक्तिगत परिस्थितियों पर विचार करते हुए पात्रता विस्तार की पेशकश करना लैंगिक समानता के खिलाफ बाधाएँ से बचने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
  • पारदर्शी चयन प्रक्रियाएँ:
    • जब RVP पुरस्कार प्रक्रिया लागू की जाती है, तो चयन प्रक्रिया को पूर्व निर्धारित समय-सीमा का पालन करना होगा, शॉर्टलिस्ट किये गए आवेदकों की एक सार्वजनिक सूची प्रदान करनी होगी और इसमें लिंग-संतुलित एवं विविध चयन समितियाँ, अंतर्राष्ट्रीय जूरी सदस्य तथा एक गैर-पक्षपातपूर्ण जूरी सदस्य - एक गैर-वैज्ञानिक जूरी सदस्य शामिल होने चाहिये जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि चयन निष्पक्ष हो।
  • विविधता और सामाजिक आर्थिक प्रतिनिधित्व:
    • नई पुरस्कार प्रणाली को लैंगिक समानता के अलावा पुरस्कार विजेताओं के बीच उचित सामाजिक-आर्थिक और जनसांख्यिकीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और कार्यस्थल से संबंधित गंभीर प्रणालीगत सामाजिक चुनौतियों और/या बाधाओं तथा विचारों के योगदान के लिये सचेत होकर प्रयास करने का संकल्प लेना चाहिये। 
  • सुधार के लिये सतत् मूल्यांकन:
    • वैज्ञानिक पुरस्कारों की आवश्यकता पर बहस के बावजूद भारत के पास निर्णय लेने के लिये पर्याप्त डेटा का अभाव है। हालाँकि वैज्ञानिक प्रगति, क्षेत्र के विकास, रोल मॉडल, विविधता और देश की वैज्ञानिक संस्कृति पर पुरस्कार प्रणाली के प्रभाव का मूल्यांकन सूचित निर्णयों हेतु महत्त्वपूर्ण है।

भारत में फार्म फायर डेटा का संग्रह

चर्चा में क्यों? 

जैसे-जैसे खेतों में आगजनी का मौसम करीब आ रहा है, सितंबर से नवंबर 2023 तक छह उत्तर भारतीय राज्यों में ऐसी आग की कुल 55,725 घटनाएँ दर्ज की गई हैं।

  • ये आँकड़े स्थापित और मानकीकृत निगरानी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए उपग्रह निगरानी के माध्यम से प्राप्त किये गए हैं।

खेत की आग क्या है? 

  • खेत की आग (Farm Fires) आमतौर पर कृषि क्षेत्रों में मुख्य रूप से फसल के मौसम के बाद फसल के अवशेषों को साफ करने के लिये जान-बूझकर लगाई गई आग को संदर्भित करती है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ पराली जलाई जाती है।
  • इन आग को घटनाओं में प्रायः आगामी रोपण मौसम हेतु खेतों को जल्दी से तैयार करने के लिये बचे हुए पुआल, ठूँठ या फसल के अवशेषों का  दहन शामिल होता है।
  • हालाँकि मशीनरी की खराबी या अन्य अनपेक्षित कारणों से भी खेत में आग लग सकती है। 
  • हालाँकि यह किसानों के लिये लागत प्रभावी और समय बचाने वाला तरीका हो सकता है, लेकिन इससे  वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे वायुमंडल में बड़ी मात्रा में धुआँ, कणिका पदार्थ और ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं।

खेतों में लगी आग के डेटा संग्रहण से संबंधित प्रमुख पहलू क्या हैं?

  • डेटा संग्रहण निकाय:
    • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोइकोसिस्टम मॉनीटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (CREAMS) प्रयोगशाला द्वारा धान के अवशेषों की आग पर एक दैनिक रिपोर्ट जारी की गई है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 2013 में की गई थी, जिसका प्राथमिक उद्देश्य चरम जलवायु घटनाओं के खिलाफ फसल की स्थिति की निगरानी करना था।
    • इस व्यापक बुलेटिन में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली में खेतों में आग लगने की घटनाओं का विवरण दिया गया है।
    • इसमें वर्ष 2020 के बाद से दर्ज की गई घटनाओं का ज़िला-वार विवरण शामिल है, जिसमें आग का स्थान, उपयोग किये गए उपग्रह, टाइमस्टैम्प और तीव्रता को निर्दिष्ट किया गया है।
    • रिपोर्ट को केंद्रीय एवं राज्य-स्तरीय एजेंसियों के साथ साझा किया जाता है, ताकि कार्यों का मार्गदर्शन किया जा सके और केंद्रित हस्तक्षेप की आवश्यकता वाले हॉटस्पॉट की पहचान की जा सके।
  • उपग्रहों के माध्यम से डेटा संग्रह:
    • नासा के तीन अलग-अलग उपग्रहों पर लगे तीन सेंसर: एक जिसे सुओमी NPP सैटेलाइट पर विज़िबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट (VIIRS) कहा जाता है और दो मॉडरेट रेज़ोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर (MODIS) हैं, जो टेरा और एक्वा उपग्रहों पर हैं, भूमि सतह तापमान रिकॉर्ड करके इस डेटा को एकत्र करता है।
    • प्रत्येक उपग्रह प्रत्येक 24 घंटे में दो बार अलग-अलग समय पर भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर से गुज़रता है।
    • पिछले पाँच वर्षों में प्रयोगशाला ने जले हुए क्षेत्रों का मानचित्रण करने के लिये  एक अलग उपग्रह सेट का उपयोग किया है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का हिस्सा सेंटिनल-2 उपग्रह इस उद्देश्य को पूरा करता है।
  • निगरानी प्रोटोकॉल:
    • IARI अपने ग्राउंड स्टेशन और नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर से सैटेलाइट डेटा प्राप्त करता है, जिससे पूरे देश में खेतों में लगने वाली आग की साल भर निगरानी सुनिश्चित होती है।
    • वर्ष 2021 से पहले विभिन्न कार्यप्रणालियों के चलते विभिन्न निगरानी केंद्रों में दर्ज की गई खेत में आग की घटनाओं में विसंगतियाँ पाई गईं।
    • हालाँकि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने वर्ष 2021 में एक मानकीकृत प्रोटोकॉल लागू किया।
    • IARI ने इस प्रोटोकॉल का उपयोग करके वर्ष 2020 में डेटा को पुन: संसाधित किया, जिससे वर्ष 2020 से तुलनात्मक विश्लेषण करना संभव हो पाया।
  • धान के खेत में लगी आग की पहचान:
    • धान के खेत में लगी आग की पहचान करने में उसे वनाग्नि या उद्योगों से उत्पन्न होने वाली आग से अलग करना शामिल है। पहचान के लिये धान की आग को वनाग्नि और औद्योगिक क्षेत्र में लगने वाली आग से अलग करना होगा।
    • यह प्रक्रिया धान की खेती के क्षेत्रों की पहचान करने और उसके अनुसार खेत की आग का मानचित्रण करने से शुरू होती है।
    • गन्ना या मक्का जैसी अन्य फसलों के विपरीत धान की खेती जल की अपनी विशिष्ट पृष्ठभूमि के कारण समय के साथ एक विशिष्ट परावर्तन संकेत प्रदर्शित करती है। इस संकेत को आग की घटनाओं के साथ जोड़ने से धान के खेत में लगी आग को पहचानने में मदद मिलती है।
    • उपग्रह विशिष्ट सीमा से ऊपर भूमि की सतह के ताप में वृद्धि का पता लगाकर धान के खेतों में सक्रिय आग का निर्धारण किया जाता है तथा उसे आसपास के क्षेत्रों से अलग कर सकते हैं।
  • सीमाएँ और चुनौतियाँ:
    • मौसम का प्रभाव: जलवायु परिस्थितियाँ, विशेष रूप से मेघ आवरण तथा जल वाष्प, उपग्रह सेंसर को बाधित कर सकते हैं, सटीक रीडिंग एवं डेटा अधिग्रहण में बाधा डाल सकते हैं।
    • मौसम तथा दिन के समय में परिवर्तनशीलता: मौसम में बदलाव तथा दिन एवं रात की स्थितियों के बीच विसंगतियाँ आग का पता लगाने की सीमा की प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं, जिससे लगातार निगरानी में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।

निष्कर्ष

खेत की आग को रोकने तथा पर्यावरण व सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर उसके प्रभाव को कम करने के लिये प्रभावी रणनीति तैयार करने में डेटा संग्रह की जटिलताओं एवं सीमाओं को समझना महत्त्वपूर्ण है। प्रौद्योगिकी एवं कार्यप्रणाली में निरंतर प्रगति बेहतर अंतर्दृष्टि व सक्रिय हस्तक्षेप के लिये निगरानी दृष्टिकोण को परिष्कृत करने का अभिन्न अंग बनी हुई है।

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FAQs on Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): November 2023 UPSC Current Affairs - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

1. कार्बन नैनोफ्लोरेट्स क्या हैं?
उत्तर: कार्बन नैनोफ्लोरेट्स एक प्रकार के नैनोफ्लोरेट्स हैं जो कार्बन और फ्लोराइड यों का संयोजन हैं। ये बहुत छोटे आकार के होते हैं और उच्च विद्युतीय चालकता और अन्य विशेषताओं के कारण विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण हैं।
2. डीपफेक क्या है?
उत्तर: डीपफेक एक विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शाखा है जो आनुवंशिक रूप से संशोधित कीटविज्ञान और प्रौद्योगिकी को अध्ययन करती है। यह उन प्रोटीन और जीन के बारे में जानकारी प्रदान करता है जो कीटों की विभिन्न विशेषताओं को निर्धारित करते हैं और उनके नवीनीकरण में मदद करते हैं।
3. कार्बन नैनोफ्लोरेट्स का उपयोग किस प्रकार से हो सकता है?
उत्तर: कार्बन नैनोफ्लोरेट्स का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है। इन्हें उच्च विद्युतीय चालकता के कारण सरंक्षण आविष्कार, ऊर्जा संचय, नवाचार इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक उत्पादन, बायोमेडिकल अनुप्रयोग और इलेक्ट्रॉनिक इलेक्ट्रॉनिक्स में किया जा सकता है।
4. किटविज्ञान और प्रौद्योगिकी में आनुवंशिक संशोधन क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: किटविज्ञान और प्रौद्योगिकी में आनुवंशिक संशोधन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें जीनों और प्रोटीनों के बारे में अधिक ज्ञान प्रदान करता है जो विभिन्न कीटों की विशेषताओं का निर्धारण करते हैं। यह हमें नई कीटनाशक और उत्पादों का निर्माण करने में मदद करता है और कीटों के साथ नए रोगों के लिए उपचार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।
5. कार्बन नैनोफ्लोरेट्स के अलावा और कौन-कौन से नैनोफ्लोरेट्स हैं?
उत्तर: कार्बन नैनोफ्लोरेट्स के अलावा, अन्य प्रमुख नैनोफ्लोरेट्स शामिल हैं सिलिकन नैनोफ्लोरेट्स, बोरॉन नैनोफ्लोरेट्स, फ्लोराइड नैनोफ्लोरेट्स और ऑक्सीजन नैनोफ्लोरेट्स। ये सभी विशेषताओं के साथ अद्वितीय विज्ञानी और औद्योगिक उपयोग प्रदान करते हैं।
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