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Moral Integrity (नैतिकता अखंडता): November 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

ऑनलाइन गेमिंग पर नैतिक परिप्रेक्ष्य


चर्चा में क्यों? 

महाराष्ट्र के पुणे में एक पुलिस उप-निरीक्षक (Police Sub-Inspector- PSI) के निलंबन का हालिया मामला सामने आया है जो ऑनलाइन गेमिंग तथा एक कानून प्रवर्तन अधिकारी के उत्तरदायित्वों से संबंधित जटिल नैतिक चिंताओं को उजागर करता है।

ऑनलाइन गेमिंग में अधिकारी की भागीदारी से संबंधित नैतिक निहितार्थ क्या हैं?

ऑनलाइन गेमिंग में अधिकारी की भागीदारी के पक्ष में तर्क

  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकार: अधिकारी को किसी भी अन्य नागरिक की तरह मिलने वाले व्यक्तिगत समय के दौरान कानूनी मनोरंजक गतिविधियों में शामिल होने का अधिकार है।
  • ऑनलाइन गेमिंग सहित कानूनी मनोरंजक गतिविधियों के लिये अधिकारी द्वारा व्यक्तिगत निधि का उपयोग उनके विवेकाधीन व्यय एवं वित्तीय स्वायत्तता के अंतर्गत आता है।
  • कानूनी मानदंडों का पालन: यदि ऑनलाइन गेमिंग गतिविधि कानूनी रूप से स्वीकार्य है तथा वह अधिकारी कानून का अनुपालन करता है, तो उनकी भागीदारी कानूनी मानदंडों के ढाँचे के भीतर है और व्यक्तिगत स्वायत्तता के भाग के रूप में इसका सम्मान किया जाना चाहिये।
  • तनाव का शमन: ऑनलाइन गेमिंग किसी भी अवकाश गतिविधि की तरह तनाव से राहत देने वाले उपकरण के रूप में कार्य कर सकती है, जो नौकरी के दबाव से उत्पन्न मानसिक तनाव से  मुक्ति प्रदान करता है।

शामिल नैतिक मुद्दे:

  • संगठनात्मक मानकों का उल्लंघन:
    • आचार संहिता का उल्लंघन: यूनिट कमांडर की अनुमति के बिना ऑनलाइन गेमिंग में संलग्न होना महाराष्ट्र राज्य पुलिस के भीतर स्थापित आचार संहिता का उल्लंघन है, जो संस्थागत नियमों की उपेक्षा का संकेत देता है।
    • व्यावसायिक मानदंडों के साथ संघर्ष: नैतिक रूप से ड्यूटी के दौरान ऑनलाइन गेमिंग में अधिकारी की भागीदारी कानून प्रवर्तन के लिये आवश्यक अपेक्षित व्यावसायिकता और नैतिक मानकों के साथ संघर्ष करती है।
  • नकारात्मक लोक छवि और विश्वास के निहितार्थ:
    • लोक धारणा और विश्वास का क्षरण: वर्दी में व्यक्तिगत जीत पर चर्चा वाला मीडिया साक्षात्कार अधिकारी की पेशेवर ईमानदारी और कानून प्रवर्तन की व्यापक छवि में जनता के विश्वास को कमज़ोर कर सकता है, जिससे जनता का पुलिस बल में विश्वास कम हो जाता है।
    • संगठनात्मक विश्वसनीयता पर प्रभाव: नैतिक रूप से ऐसे आचरण से पूरे पुलिस बल की विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है, क्योंकि अधिकारी के कार्य संस्था को प्रतिबिंबित करते हैं, जिससे इसकी समग्र छवि और सार्वजनिक विश्वास पर प्रभाव  पड़ता है।
  • रोल मॉडल अपेक्षाएँ और नैतिक ज़िम्मेदारियाँ:
    • एक सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में भूमिका: नैतिक रूप से एक कानून प्रवर्तन अधिकारी के रूप में अधिकारी एक सार्वजनिक व्यक्ति होता है और उससे नैतिक व्यवहार तथा ज़िम्मेदार आचरण का उदाहरण स्थापित करते हुए एक रोल मॉडल के रूप में कार्य करने की उम्मीद की जाती है।

आगे की राह

  • पेशेवरों के आचरण के संबंध में:
    • स्पष्ट संगठनात्मक नीतियाँ: ऑफ-ड्यूटी आचरण के संबंध में कानून प्रवर्तन एजेंसियों के अंर्तगत स्पष्ट दिशानिर्देश स्थापित करना, विशेष रूप से ऑनलाइन गेमिंग से संबंधित अनुमेय एवं गैर-अनुमेय गतिविधियों आदि को निर्दिष्ट करना।
    • नैतिक प्रशिक्षण एवं शिक्षा: कानून प्रवर्तन कर्मियों को नैतिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करके  आश्वस्त करना कि जनता उन्हें उनके कार्यों के लिये उत्तरदायी मानती है जो ऑन-ड्यूटी तथा ऑफ-ड्यूटी दोनों जगह नैतिक व्यवहार बनाए रखने के मूल्य पर ज़ोर देती है।
    • मज़बूत आचार संहिता: आधुनिक समय की चुनौतियों से निपटने के लिये मौजूदा आचार संहिता की समीक्षा कर उसे अधिक मज़बूत किया जाना चाहिये, जिसमें मनोरंजक गतिविधियों में शामिल होने, पेशेवर छवि बनाए रखने एवं वर्दी में सोशल मीडिया के उपयोग के लिये दिशानिर्देश शामिल हैं।
    • सहायता और परामर्श सेवाएँ: अधिकारियों के लिये सहायता सेवाएँ एवं परामर्श प्रदान करना, उनके तनाव को दूर करना तथा उनके पेशे की चुनौतीपूर्ण प्रकृति को ध्यान में रखते हुए तनाव को कम करने के लिये सकारात्मक प्रतिरोधी तंत्र को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। 
  • ऑनलाइन गेमिंग के संबंध में:
    • स्पष्ट कानूनी परिभाषाएँ: कौशल-आधारित गेमिंग तथा द्यूत (Gambling) के बीच का अंतर स्पष्ट करना, राज्यों में समान रूप से नियामक उपायों का मार्गदर्शन करने के लिये सटीक कानूनी परिभाषाएँ सुनिश्चित करना।
    • सहयोगात्मक शासन और निरीक्षण: उत्तरदायी गेमिंग प्रथाओं को बढ़ावा देने, उपयोगकर्ता सुरक्षा, गेमिंग आसक्ति की रोकथाम एवं उपयोगकर्ताओं के बीच वित्तीय जोखिमों को कम करने के उपायों पर ज़ोर देने के लिये गेमिंग कंपनियों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।
    • व्यापक अनुसंधान और विश्लेषण: ऑनलाइन गेमिंग के मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के लिये व्यापक स्तर पर शोध में निवेश करने तथा साक्ष्य-आधारित नीति निर्धारण व प्रभावी नियामक उपायों के विकास की सुविधा प्रदान करने की आवश्यकता है।

भारत में बढ़ता वैज्ञानिक कदाचार

चर्चा में क्यों?

इंडिया रिसर्च वॉचडॉग के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय शोध में प्रत्यावर्तन की बढ़ती संख्या ने भारत में वैज्ञानिक कदाचार से संबंधित महत्त्वपूर्ण चिंताओं को जन्म दिया है।

वैज्ञानिक कदाचार

  • परिचय:
    • वैज्ञानिक कदाचार को वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन और प्रकाशन की नैतिकता के स्वीकृत मानकों से विचलन के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
    • वैज्ञानिक कदाचार के कई रूप हो सकते हैं जैसे- साहित्यिक चोरी, प्रयोगात्मक तकनीकों से जुड़ा कदाचार और धोखाधड़ी।
    • जब गलतियों, डेटा निर्माण, साहित्यिक चोरी और कदाचार के अन्य रूपों सहित विभिन्न कारणों से प्रकाशित पत्रों को वैज्ञानिक साहित्य से वापस ले लिया जाता है।
  • उदाहरण:
    • जब किसी वैज्ञानिक जाँच के नतीजे उन प्रमुख जाँचकर्त्ताओं को श्रेय दिये बिना रिपोर्ट किये जाते हैं जिनका काम इसमें शामिल रहा है।
    • वैज्ञानिक धोखाधड़ी, जहाँ लेखक मनगढ़ंत छवियों या डेटा के साथ एक लेख तैयार करता है, जिसे बाद में एक स्वतंत्र निरीक्षण बोर्ड की मंज़ूरी के बिना सहकर्मी-समीक्षित प्रकाशन में प्रस्तुत किया जाता है।

भारत में वैज्ञानिक कदाचार के आँकड़े

  • वैज्ञानिक प्रत्यावर्तन में वृद्धि:
    • भारत में वर्ष 2017-2019 के बीच दर्ज संख्या की तुलना में वर्ष 2020-2022 के बीच प्रत्यावर्तन में 2.5 गुना वृद्धि हुई है।
    • इसका प्राथमिक कारण कदाचार के रूप में पहचाना जाता है, जहाँ लेखक जान-बूझकर अनैतिक प्रथाओं में संलग्न होते हैं।
  • गुणवत्ता में गिरावट के संकेतक:
    • अनुसंधान आउटपुट और प्रत्यावर्तन के अनुपात का उपयोग गुणवत्ता के लिये एक प्रॉक्सी के रूप में किया जाता है, जिससे भारत में गिरावट का पता चलता है, जिसके कारण अनुपात लगभग आधा हो जाता है। यह शोध की समग्र गुणवत्ता में संभावित गिरावट का संकेत देता है।
  • प्रत्यावर्तन के क्षेत्र:
    • इंजीनियरिंग में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2017-2019 की अवधि में  36% बढ़कर सभी प्रत्यावर्तन का लगभग 48% है।
    • इसके अतिरिक्त मानविकी के क्षेत्र में प्रत्यावर्तन में 567% की असाधारण वृद्धि का अनुभव होता है।
  • वैज्ञानिक कदाचार में वृद्धि का कारण:
    • आधे से अधिक उत्तरदाताओं का मानना है कि वृद्धि के पीछे विश्वविद्यालय रैंकिंग पैरामीटर हैं।
    • अन्य 35% ने इसके लिये अनैतिक शोधकर्ताओं को ज़िम्मेदार ठहराया, जबकि 10% ने किसी आरोप की सूचना मिलने पर या किसी अपराधी के 'पकड़े जाने' पर की जाने वाली न्यूनतम कार्रवाई की ओर इशारा किया।
    • प्रत्यावर्तन में वृद्धि में योगदान देने वाले अतिरिक्त कारकों में वर्ष 2017 में स्थापित पीएचडी छात्रों के लिये अनिवार्य प्रकाशन की आवश्यकता शामिल है, जिससे संभावित रूप से निम्न-गुणवत्ता वाले प्रकाशन और प्रीडेटरी पत्रिकाओं का प्रसार हो सकता है।

Moral Integrity (नैतिकता अखंडता): November 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

  • तत्काल कार्रवाई का आह्वान:
    • डेटा को कार्रवाई के लिये एक तत्काल आह्वान के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें भारतीय शिक्षा जगत में अनुसंधान कदाचार की जाँच करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
    • अनुसंधान और शिक्षण दोनों पर संभावित परिणामों को लेकर प्रकाश डाला गया है, घटिया या फर्ज़ी अनुसंधान को रोकने के लिये तत्काल हस्तक्षेप का आग्रह किया गया है।

वैज्ञानिक कदाचार के नैतिक निहितार्थ क्या हैं? 

  • दीर्घकालिक परिणाम:
    • पैमाने की परवाह किये बिना वैज्ञानिक कदाचार के  दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, खासकर जब किसी क्षेत्र के प्रभावशाली व्यक्ति इसमें शामिल हों।
  • शैक्षणिक सत्यनिष्ठा का उल्लंघन:
    • साहित्यिक चोरी, डेटा निर्माण और हेर-फेर सहित वैज्ञानिक कदाचार, शैक्षणिक तथा वैज्ञानिक अखंडता का गंभीर उल्लंघन है। यह ईमानदार और पारदर्शी विद्वतापूर्ण जाँच की नींव को कमज़ोर करता है।
  • दायित्व एवं विश्वसनीयता पर प्रभाव:
    • अनैतिक आचरण वैज्ञानिक निष्कर्षों की विश्वसनीयता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, जिससे अनुसंधान की विश्वसनीयता कम हो जाती है। इससे न केवल व्यक्तिगत शोधकर्त्ताओं की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है अपितु समग्र वैज्ञानिक समुदाय की छवि खराब होती है।
  • गुणवत्ता एवं शिक्षण की संस्कृति से समझौता:
    • अनुसंधान आउटपुट एवं प्रत्यावर्तन के अनुपात में चिंताजनक गिरावट, गुणवत्ता से समझौते का संकेत देती है।
    • इससे शिक्षण की संस्कृति कमज़ोर होती है तथा ज्ञान के विस्तार और उन्नति में बाधा उत्पन्न होती है।

आगे की राह

  • वैज्ञानिकों ने संस्थागत प्रयासों के अभाव में सहयोगात्मक कार्य की जाँच करने, विश्वसनीय एवं त्रुटिपूर्ण अनुसंधान के बीच अंतर करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली है ताकि उनके संपूर्ण कार्य पर सवाल न किये जा सकें।
  • हालाँकि इसका एक व्यापक पुनर्मूल्यांकन होना चाहिये, विशेष रूप से जाने-माने वैज्ञानिकों की ओर से। इसकी जटिलता और बेहतर प्रक्रियाओं एवं मानदंडों की आवश्यकता को पहचानते हुए इस आदर्श धारणा को संशोधित किये जाने की आवश्यकता है कि विज्ञान स्वाभाविक रूप से जटिल और स्वयं-सुधार करने वाला है। 
  • इसमें निरंतर स्व-मूल्यांकन और सुधार को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी को शामिल करने व प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है, जिससे इसे 'विशेष' परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया के बजाय एक मानक अभ्यास में बदला जा सके।

Case study 1

प्रश्न: हाल ही में आप केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक नियुक्त हुए हैं। आपके प्रभाग के मुख्य आर्किटेक्ट, जो छह महीने में सेवानिवृत्त होने वाले हैं, एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर उत्साहपूर्वक कार्य कर रहे हैं, जिसका सफल समापन उनके बचे हुए जीवन में एक स्थायी प्रतिष्ठा हासिल करेगा।
मैनचेस्टर आर्किटेक्चर स्कूल, यूके से प्रशिक्षित, एक नई महिला आर्किटेक्ट, सीमा ने आपके प्रभाग में बतौर वरिष्ठ आर्किटेक्ट कार्यभार सँभाला है। इस प्रोजेक्ट के बारे में विवरण देने के दौरान सीमा ने कुछ सुझाव दिये, जो न केवल प्रोजेक्ट में मूल्य वृद्धि करेंगे, बल्कि प्रोजेक्ट की समापन अवधि भी घटा देंगे। इससे मुख्य आर्किटेक्ट असुरक्षित हो गए और सारा श्रेय सीमा को प्राप्त होने की उन्हें लगातार चिंता होने लगी। नतीजतन, उन्होंने सीमा के प्रति एक निष्क्रिय एवं आक्रामक व्यवहार अपना लिया, जो सीमा के लिये अपमानजनक हो गया। सीमा उलझन में पड़ गई, क्योंकि मुख्य आर्किटेक्ट उसे नीचा दिखाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं। वह अक्सर दूसरे सहयोगियों के सामने सीमा को गलत ठहराते तथा उससे ऊँची आवाज़ में बात करते। इस लगातार उत्पीड़न से सीमा आत्मविश्वास और आत्मसम्मान खोने लगी। वह लगातार तनाव, चिंता एवं दबाव महसूस करती। ऐसा प्रतीत हुआ कि सीमा मुख्य आर्किटेक्ट से डर भरे विस्मय में थी क्योंकि वह एक लंबे समय से कार्यालय में थे तथा उनके पास इस कार्य क्षेत्र में व्यापक अनुभव था।
सीमा की उत्कृष्ट शैक्षणिक योग्यता और पूर्व संस्थाओं में कॅरियर रिकॉर्ड से आप अवगत हैं। हालाँकि आपको डर है कि इस उत्पीड़न से सीमा को इस महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट में अत्यंत आवश्यक योगदान पर समझौता करना पड़ सकता है तथा यह उसकी भावात्मक कुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। आपको अपने समकक्ष लोगों से भी पता चला है कि वह त्यागपत्र देने के बारे में सोच रही है।
(a) उपर्युक्त मामले में कौन-से नैतिक मुद्दे शामिल हैं?
(b) प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिये तथा सीमा को संस्था में बनाए रखने हेतु आपके पास क्या विकल्प उपलब्ध हैं?
(c) सीमा की दुर्दशा के लिये आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? संस्था में ऐसी घटनाएँ रोकने के लिये आप क्या कदम उठाएंगे?
(250 शब्द, UPSC मुख्य परीक्षा 2023)
उत्तर:

  • परिचय:
    • यह केस अध्ययन केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में एक चुनौतीपूर्ण परिदृश्य से संबंधित है, जहाँ सेवानिवृत्त मुख्य वास्तुकार और हाल ही में शामिल हुई वरिष्ठ वास्तुकार सीमा के बीच होने वाला तनाव इस प्रमुख परियोजना की सफलता को खतरे में डालता है। सीमा के नवीन सुझावों से मुख्य वास्तुकार में असुरक्षा की भावना विकसित हुई है, जिससे कार्य वातावरण विषाक्त हो गया है।

मुख्य भाग:

  • उपर्युक्त मामले में शामिल नैतिक मुद्दे:
    • कार्यस्थल पर उत्पीड़न (गरिमा और सम्मान): मुख्य आर्किटेक्ट का सीमा के प्रति अपमान और गैर-सम्मानजनक व्यवहार उसकी गरिमा का उल्लंघन है और इससे एक प्रतिकूल कार्यस्थल वातावरण का निर्माण होता है।
    • पेशेवर ईर्ष्या (सहयोग और टीम वर्क): मुख्य आर्किटेक्ट की असुरक्षा की भावना एवं सीमा के साथ सहयोग करने की अनिच्छा, प्रोजेक्ट की सफलता में बाधक बन सकता है और यह टीम वर्क की भावना के भी प्रतिकूल है।
    • कर्मचारी के भावनात्मक स्वास्थ्य पर प्रभाव: मुख्य आर्किटेक्ट द्वारा सीमा को लगातार अपमानित किया जाना और इससे उत्पन्न तनाव उसके भावनात्मक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, जिससे उसकी कार्य उत्पादकता में बाधा आती है।
    • नैतिक नेतृत्व की विफलता (नैतिक आचरण): एक सक्षम सहयोगी को अपमानित करने के रूप में मुख्य आर्किटेक्ट का अनैतिक आचरण, किसी संगठन में नैतिक नेतृत्व की विफलता को दर्शाता है।
    • (b) प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिये तथा सीमा को संस्था में बनाए रखने के लिये आपके पास क्या विकल्प उपलब्ध हैं?
    • मध्यस्थता: मुख्य आर्किटेक्ट और सीमा के मध्य विवादों को सुलझाने के लिये उनके बीच निजी तौर पर बातचीत की सुविधा प्रदान करना।
    • सहयोगात्मक कार्यों का वितरण: सीमा और मुख्य आर्किटेक्ट को उनकी क्षमता और विशेषज्ञता के आधार पर विशिष्ट प्रोजेक्ट कार्य सौंपना, सहयोग को बढ़ावा देंना तथा प्रोजेक्ट को पूरा करने में तेज़ी लाना।
    • (c) सीमा की दुर्दशा के लिये आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? संस्था में ऐसी घटनाएँ रोकने के लिये आप क्या कदम उठाएंगे?
  • सीमा की दुर्दशा के लिये प्रतिक्रिया:
    • मार्गदर्शन और समर्थन: सीमा को इस बात से अवगत कराना कि उसके योगदान का काफी महत्त्व है तथा उसके आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिये उसे भावनात्मक समर्थन प्रदान करना।
    • आइडिया इनक्यूबेटर: "आइडिया इनक्यूबेटर" नाम से एक प्लेटफॉर्म का निर्माण करना जहाँ सीमा सहित अन्य कर्मचारी परियोजना संबंधी नवीन विचारों का प्रस्ताव रख सकें। इसके साथ ही रचनात्मकता की संस्कृति को बढ़ावा देते हुए योगदानकर्ताओं की पहचान कर उन्हें पुरस्कृत करने पर बल देना।
  • संस्था में ऐसी घटनाएँ रोकने के लिये कदम:
    • निष्पक्ष मूल्यांकन: निष्पक्ष प्रदर्शन मूल्यांकन के माध्यम से योग्यता आधारित मान्यीकरण सुनिश्चित करना।
    • शून्य-सहिष्णुता नीति: सुरक्षित कार्य वातावरण को बढ़ावा देने के लिये एक सख्त उत्पीड़न-विरोधी नीति लागू करना और इसके विषय में सभी को जागरूक करना।
    • पहचान रहित रिपोर्टिंग: पहचान रहित रिपोर्टिंग तंत्र की स्थापना करना, ताकि कर्मचारी प्रतिशोध के भय से मुक्त होकर उत्पीड़न अथवा संघर्ष की सुरक्षित रूप से रिपोर्टिंग कर सकें।
  • निष्कर्ष:
    • नैतिक मुद्दों को हल करने के रूप में तत्काल हस्तक्षेप, प्रभावित पक्ष के लिये समर्थन और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये प्रणालीगत परिवर्तनों का संयोजन शामिल है। एक ऐसे सम्मानजनक और समावेशी कार्य वातावरण पर बल देना चाहिये जो सभी कर्मचारियों के योगदान को महत्त्व देता हो।

Case study 2

प्रश्न: शनिवार की शाम 9 बजे संयुक्त सचिव रशिका अपने कार्यालय में अब भी अपने काम में व्यस्त थी। उसके पति विक्रम किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यपालक हैं और अपने काम के सिलसिले में अकसर वे शहर से बाहर रहते हैं। उनके दो बच्चे क्रमशः 5 और 3 साल के हैं जिनकी देखभाल घरेलू सहायिका द्वारा होती है। रशिका के उच्च अधिकारी श्रीमान सुरेश ने उसे शाम 9ः30 बजे बुलाया और उन्होंने मंत्रालय की बैठक में चर्चा होने वाले किसी ज़रूरी मुद्दे पर एक विस्तृत टिप्पणी तैयार करने के लिये कहा। उसे लगा कि उसके उच्च अधिकारी द्वारा दिये गए इस अतिरिक्त काम को पूरा करने के लिये उसे रविवार को काम करना होगा।
वह स्मरण करती है कि कैसे वह इस पोस्टिंग के प्रति उत्सुक थी और इसे हासिल करने के लिये उसने कई महीने देर-देर तक काम किया था। उसने अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में लोगों के कल्याण को सर्वाेपरि रखा था। उसे महसूस होता है कि उसने अपने परिवार के साथ पर्याप्त न्याय नहीं किया है और आवश्यक सामाजिक दायित्वों के निर्वहन में कर्त्तव्यों को पूरा नहीं किया है। यहाँ तक कि अभी पिछले महीने उसे अपने बीमार बच्चे को आया की देखभाल में छोड़ना पड़ा था क्योंकि उसे दफ्तर में काम करना था। अब उसे लगता है कि उसे एक रेखा खींचनी चाहिये, जिसमें अपनी पेशेवर ज़िम्मेदारियों की तुलना में प्रथमतः निजी जिंदगी को महत्त्व मिलना चाहिये। वह सोचती है कि समय की पाबंदी, कड़ी मेहनत,कर्त्तव्यों के प्रति समर्पण और निःस्वार्थ सेवा जैसे कार्य नैतिकता की समुचित सीमाएँ होनी चाहिये।
(a) इस मामले में शामिल नैतिक मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
(b) महिलाओं के लिये एक स्वस्थ, सुरक्षित और न्यायसंगत कार्य परिवेश मुहैया कराने के संदर्भ में सरकार द्वारा बनाए गए कम-से-कम चार कानूनों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
(c) कल्पना कीजिये कि आप भी ऐसी ही स्थिति में हों। आप उक्त कामकाजी परिस्थितियों को हल्का करने के लिये क्या सुझाव देंगे?

उत्तर: 

  • नैतिक मुद्दे:
    • कार्य एवं व्यक्तिगत जीवन में संतुलन: मुख्य नैतिक मुद्दा रशिका द्वारा एक माँ तथा जीवनसाथी के रूप में अपनी भूमिका के साथ अपनी व्ययसाय संबंधी ज़िम्मेदारियों को संतुलित करने का संघर्ष है।
    • सामाजिक दायित्व से समझौता: रशिका अपने पारिवारिक कर्त्तव्यों तथा सामाजिक दायित्वों को पूरा करने में अपनी असमर्थता को दर्शाती है, जो एक नैतिक संघर्ष का संकेत देता है।
    • बच्चे का भावनात्मक विकास क्षीण होना: लंबे समय तक कार्य करने के दौरान छोटे बच्चों को घरेलू सहायकों की देखभाल में छोड़ना उनके कल्याण और पालन-पोषण से संबंधित नैतिक चिंताओं को उजागर करता है।
    • समग्र स्वास्थ्य: रशिका की सप्ताहांत पर कार्य करने और अपनी नौकरी के लिये निजी जीवन से समझौता करने की तत्परता उसके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है।
  • महिलाओं के कार्य परिवेश से संबंधित कानून:
    • मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961: यह कानून महिला कर्मचारियों के लिये मातृत्व अवकाश एवं लाभों को अनिवार्य करता है, जो गर्भावस्था के दौरान और बाद में उनके कल्याण के लिये प्रतिबद्ध है।
    • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध व निवारण) अधिनियम, 2013: इसका उद्देश्य कार्यस्थल पर उत्पीड़न की रोकथाम - तथा उनको संबोधित करके महिलाओं के लिये एक सुरक्षित एवं उत्पीड़न मुक्त कार्य वातावरण बनाना है।
    • समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976: यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि महिलाओं को समान कार्य के लिये समान वेतन प्राप्त हो, जिससे कार्यस्थल पर लैंगिक समानता को प्रोत्साहित किया जा सके।
    • कारखाना अधिनियम, 1948: इस अधिनियम के तहत महिला श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कल्याण से संबंधित प्रावधान शामिल हैं, जिनमें उनके कार्यों के घंटों को विनियमित करना, उचित वायु- संचार की सुविधा सुनिश्चित करना तथा बच्चों की देखभाल की सुविधाएँ प्रदान करना शामिल है।
  • कामकाजी परिस्थितियों को सुलभ बनाने हेतु सुझाव:
    • सीमाएँ स्थापित करना: कार्य और व्यक्तिगत जीवन के बीच की सीमाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना।
    • कार्य का वितरण एवं प्राथमिकता: जब संभव हो कार्य का वितरण करना तथा कार्यभार को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने हेतु प्रमुख ज़िम्मेदारियों को प्राथमिकता देना।
    • सहायता प्रणालियाँ: देखभाल की ज़िम्मेदारियाँ साझा करने के लिये परिवार, दोस्तों तथा सहकर्मियों की सहायता लेना।
    • स्वयं की देखभाल: स्वयं की देखभाल को प्राथमिकता देना, जिसमें शारीरिक व्यायाम, विश्राम तथा तनाव अथवा कार्य से संबंधित दबाव से निपटने के दौरान पेशेवर मदद लेना शामिल है।
    • कार्य एवं व्यक्तिगत जीवन में संतुलन पर केंद्रित नीतियों को प्रोत्साहन देना: कार्य एवं व्यक्तिगत जीवन में संतुलन को बढ़ावा देने तथा कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर केंद्रित नीतियों का समर्थन करना।
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