वर्ष 2047 में भारत स्वतंत्रता का शताब्दी वर्ष मनाएगा। इस समय तक भारत के विकसित राष्ट्र बनने के संकल्प के साथ ‘विकसित भारत’ का औपचारिक रूप से शुभारंभ किया गया है। ध्यातव्य है कि विकसित भारत के संदर्भ में आर्थिक विकास केंद्र में है, हालांकि विकास की व्यापक प्रकृति और भारतीय जनता की विविध आकांक्षाओं के साथ यह अवधारणा कितनी मेल खाती है, इसके बारे में विभिन्न सवाल उठते हैं। आलोचकों का तर्क है कि विकास का वर्तमान मॉडल आर्थिक विकास पर बहुत अधिक जोर देता है, यह एक यूरोप-केंद्रित विकास मॉडल है जो पूरी तरह से भारत के सर्वोत्तम हितों को पोषित नहीं कर सकता है।
विकास कि अवधारणा में एक आदर्श बदलाव प्रस्तावित किया गया खुशहाली को भारत की विकास यात्रा में केंद्रीय तत्व के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए , क्योंकि खुशहाली प्राप्त किए बिना, विकास का कोई अर्थ नहीं है। यह आलोचना इस अवलोकन तक विस्तारित है कि विकसित देश के रूप में मूल्यांकित राष्ट्र अक्सर सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कल्याण संकेतकों की उपेक्षा करते हैं।विदित हो कि पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2023 में 137 देशों में से भारत का 126वां स्थान चिंता का विषय है।
खुशहाली को पहले व्यक्तिपरक माना जाता था, लेकिन अब यह दुनिया भर में सार्वजनिक नीति में एक मापन योग्य आयाम बन गया है। 2012 में शुरू की गई विश्व खुशहाली रिपोर्ट में छह संकेतकों को शामिल करते हुए इसके मापन हेतु एक मजबूत कार्यप्रणाली का उपयोग किया गया हैः
2023 की रिपोर्ट में कोविड-19 महामारी जैसी संकट स्थितियों के संदर्भ में विश्वास और परोपकार पर विशेष रूप से जोर दिया गया है।
यह रिपोर्ट खुशहाली और कल्याण में योगदान देने में सामाजिक संबंधों की भूमिका को रेखांकित करती है। महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद परोपकार के कार्य, जैसे अजनबियों की मदद करना, दान करना और स्वयंसेवा करना आदि विश्व स्तर पर काफी बढ़ गए हैं। सबसे खुश माने जाने वाले फिनलैंड, डेनमार्क, आइसलैंड और नीदरलैंड जैसे देशों ने सामाजिक एकता का त्याग किए बिना विकास हासिल किया है। इससे यह सवाल उठता है कि सामाजिक संबंधों और सांस्कृतिक मूल्यों पर अपनी मजबूत निर्भरता को देखते हुए क्या भारत के लिए एक खुशहाली-प्रेरित विकास मॉडल प्रासंगिक है?
चूंकि भारत विकसित भारत अभियान की शुरुआत कर रहा है, अतः इसके द्वारा अपनी विकास प्राथमिकताओं का पुनर्मूल्यांकन करने की अनिवार्यता स्पष्ट हो जाती है। नीति निर्माताओं के समक्ष संकीर्ण आर्थिक दृष्टिकोण से अधिक व्यापक मॉडल पर ध्यान केंद्रित करने का प्रस्ताव है जो खुशहाली को प्राथमिकता देता हो। खुशहाली सूचकांक, अच्छी तरह से परिभाषित मापदंडों के साथ, सकल घरेलू उत्पाद से परे सफलता को मापने के लिए एक मूल्यवान ढांचा प्रदान करता है। सामाजिक संबंध, दयालुता के कार्य और कल्याण पर ध्यान केंद्रित करने से विकास की गाथा को नया रूप मिल सकता है।
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