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The Hindi Editorial Analysis - 4th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

भारत-दक्षिण कोरिया रक्षा सहयोग को पुनर्जीवित और पोषित करना


संदर्भ -

वैश्विक भू-राजनीति की जटिल संरचना में अंतर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता की नींव मजबूत रक्षा सहयोग में निहित है। नवंबर 2023 में भारत के थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे की कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया) की राजनयिक यात्रा के दौरान घनिष्ठ वार्तालाप भारत-कोरिया रक्षा संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतीक है। इस यात्रा ने राजनयिक संबंधों को मजबूत किया, साथ ही उन चुनौतियों को भी प्रकट किया जिन पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

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भारत-दक्षिण कोरिया संबंध

  • ऐतिहासिक संबंध: भारत और दक्षिण कोरिया के बीच ऐतिहासिक संबंधों की जड़ें बहुत गहरी हैं, जो 13वीं शताब्दी से चली आ रही हैं जब अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना ने कोरिया में गया संघ ( Gaya Confederacy) के राजा किम-सुरो से विवाह किया था । इस विवाह का उल्लेख 13वीं सदी के कोरियाई ऐतिहासिक ग्रंथ "संगुक्युसा" या "तीन राज्यों का विरासत इतिहास" में दर्ज है। विद्वानों का सुझाव है कि राजकुमारी सुरिरत्ना और उनके भाई भिक्षु जंग्यू के आगमन के साथ बौद्ध धर्म कोरिया पहुंचा ।
  • साहित्यिक संबंध: दोनों देशों के मध्य साहित्यिक संबंध भी महत्वपूर्ण है नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने 1929 में कोरिया के अतीत और भविष्य को दर्शाते हुए 'लैंप ऑफ द ईस्ट' कविता की रचना की थी।
  • राजनीतिक संबंध:1945 में कोरिया की स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक संबंध मजबूत हुए। भारतीय राजनयिक श्री केपीएस मेनन ने 1947 में कोरिया में चुनावों की देखरेख करने वाले संयुक्त राष्ट्र आयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2018 में दोनों देशों ने एक संयुक्त बयान के माध्यम से अपने साझा लक्ष्यों को व्यक्त किया जिसमें समृद्धि, शांति, और भविष्य पर जोर दिया गया ।
  • कूटनीतिक संबंध: 1962 में वाणिज्यिक संबंधों की स्थापना के बाद 1973 में औपचारिक रूप से राजनयिक संबंध स्थापित किए गए। आर्थिक साझेदारी ने 2010 में "रणनीतिक साझेदारी" के गठन के साथ एक ऐतिहासिक पड़ाव पार किया, जिसे बाद में 2015 में "विशेष रणनीतिक साझेदारी" के रूप में उन्नत किया गया। "कोरिया प्लस" पहल का उद्देश्य भारत में कोरियाई निवेश को बढ़ावा देना है।
  • द्विपक्षीय व्यापार: 2022 में द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर रिकॉर्ड 27.8 बिलियन डॉलर हो गया, जिसमें भारत ने 18.8 बिलियन डॉलर का सामान आयात किया और 9 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात किया। 2020 में, रक्षा उद्योग सहयोग के लिए एक रोडमैप पर हस्ताक्षर किए गए जिससे रक्षा सहयोग मजबूत हुआ।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: 2011 में सियोल में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान फला-फूला जो भारत की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करता है। ये बहुआयामी संबंध भारत और दक्षिण कोरिया के बीच मजबूत और गतिशील संबंध को रेखांकित करते हैं।

चुनौतियां और अवसर:

  • साझा दृष्टिकोण का अभाव: हालिया उच्च-स्तरीय वार्ताओं के बावजूद एक महत्वपूर्ण चुनौती एक नए व्यापक रक्षा ढांचे के लिए साझा दृष्टिकोण का अभाव है । एक स्थायी क्षेत्रीय व्यवस्था के लिए अपनी नीतियों को संरेखित करने में दोनों देशों का मार्गदर्शन करने के लिए एक मजबूत संरचना की आवश्यकता है। साथ ही आवश्यकता द्विपक्षीय सहयोग से आगे बढ़कर एक पैराडाइम शिफ्ट को अपनाने की है जो वैश्विक संदर्भ में भूमिकाओं की गहन समझ को बढ़ावा देता हो ।
  • भारत की क्षेत्रीय भूमिका की कोरियाई धारणा: कोरिया द्वारा भारत की क्षेत्रीय भूमिका को पुनर्विचार करने का विरोध करना द्विपक्षी संबंधों में एक बाधा है। इसलिए कोरिया के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह भारत को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्वीकार करे जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता में पर्याप्त योगदान दे सकता है । साथ ही गहन साझेदारी के लिए शीत युद्ध की मानसिकता से बाहर निकालना भी आवश्यक है। सार्थक सहयोग के लिए कोरियाई रणनीतिक सोच में यह पैराडाइम शिफ्ट अपरिहार्य है।
  • हथियारों के अधिग्रहण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर बल : भारत सरकार द्वारा हथियारों के अधिग्रहण और कोरिया से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर अत्यधिक बल देना महत्वपूर्ण होते हुए भी, व्यापक रणनीतिक विचारों को नजरअंदाज कर सकता है। इसी प्रकार कोरियाई रक्षा प्रतिष्ठान का रणनीतिक दूरदर्शिता के बिना भारत को हथियारों की बिक्री पर लाभ-प्रेरित ध्यान अदूरदर्शी हो सकता है। दोनों देशों में शक्तिशाली हथियार लॉबियों को ध्यान में रखते हुए दीर्घकालिक रणनीतिक लक्ष्यों को अल्पकालिक लाभों से संतुलित करना अनिवार्य है।
  • उभरते गठबंधन की चुनौतियां: उत्तर कोरिया, चीन और रूस का उभरता गठबंधन एक नई गंभीर चुनौती पेश करता है। इस गठबंधन के उद्देश्यों और लक्ष्यों को लेकर भिन्न विचार उभर सकते हैं जिसके लिए प्रत्येक पक्ष की रणनीतिक अनिवार्यताओं का सूक्ष्म मूल्यांकन आवश्यक है। जनरल पांडे और शीर्ष कोरियाई सैन्य नेतृत्व के बीच उच्च-स्तरीय बातचीत रक्षा समुदायों को एकजुट करने, बेहतर समझ और सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

सहयोग के अवसर:

  • तकनीकी सहयोग: अपनी तकनीकी क्षमताओं का लाभ उठाते हुए भारत और दक्षिण कोरिया उन्नत रक्षा प्रणालियों और उपकरणों के विकास में सहयोग करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। यह सहयोग रक्षा प्रौद्योगिकी और उद्योग क्षेत्र में असीमित संभावनाओं के द्वार खोलता है जिससे दोनों देश नवाचार और आत्मनिर्भरता के मामले में आगे बढ़ सकते हैं। अंतरिक्ष युद्ध, सूचना युद्ध और साइबर सुरक्षा के युग में सहयोग के व्यापक अवसर हैं।
  • आतंकवाद का मुकाबला और समुद्री सुरक्षा: आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए समन्वित प्रयासों को मजबूत करना साझा चिंताओं के साथ जुड़ा हुआ है। समुद्री सुरक्षा में सहयोग, जिसमें संयुक्त गश्त और सूचना साझा करना शामिल है, दोनों देशों के हिंद महासागर में महत्वपूर्ण समुद्री हितों को संबोधित कर सकता है। इन क्षेत्रों में संयुक्त प्रयास महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और सूचना की समग्र सुरक्षा में योगदान करते हैं।
  • शांतिरक्षण और अभ्यास: शांतिरक्षण और अभ्यास दोनों राष्ट्रों को शांति और सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करने और क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण प्रदान करते हैं।
    • शांतिरक्षण कार्यों में सहयोग, विशेषज्ञता और संसाधनों को साझा करने से दोनों देशों को लाभ होगा। यह उन्हें संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में अधिक प्रभावी ढंग से काम करने और शांति स्थापना प्रक्रियाओं को मजबूत करने में मदद करेगा।
    • संयुक्त अभ्यास और मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) में सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान भी महत्वपूर्ण है। यह दोनों देशों को आपदाओं के लिए बेहतर तरीके से तैयार करने और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों की मदद करने में सक्षम बनाएगा।
  • संयुक्त सैन्य अभ्यास और अंतरप्रचालन: संयुक्त सैन्य अभ्यास कई कारणों से महत्वपूर्ण हैं। ये सेनाओं को एक साथ काम करने, अपनी रणनीति साझा करने और एक-दूसरे की क्षमताओं में वृद्धि करने का अवसर प्रदान करते हैं। यह संघर्ष की स्थिति में अंतर-संचालन और समन्वय में सुधार करने में भी मदद कर सकता है। जनरल पांडे की यात्रा ने नौसेना के अलावा भारत के सशस्त्र बलों की अन्य शाखाओं तक सहयोग के विस्तार को प्रेरित किया है जिससे सहयोग का दायरा बढ़ा है।

निष्कर्ष:

  • जनरल पांडे की हालिया यात्रा ने भारत-कोरिया रक्षा सहयोग को पुनर्जीवित किया है। एक रणनीतिक और संतुलित दृष्टिकोण, विकसित भू-राजनीतिक परिदृश्य के साथ मिलकर, एक मजबूत और स्थायी रक्षा सहयोग की कुंजी बनता है। यह सहयोग एक ऐसी साझेदारी बनाएगा जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देगा।
  • एकजुट होकर, दोनों राष्ट्र भविष्य की जटिलताओं और अनिश्चितताओं का सामना करने के लिए तैयार हैं, एक मजबूत और अधिक लचीली साझेदारी की ओर बढ़ रहे हैं। रणनीतिक सहयोग और साझा दृष्टिकोण के प्रति प्रतिबद्धता निस्संदेह विकसित वैश्विक परिदृश्य में अंतर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता के संरक्षण में योगदान देगी।
  • वस्तुतः भारत-कोरिया रक्षा सहयोग दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है। एक मजबूत और स्थायी साझेदारी बनाने के लिए प्रतिबद्धता और प्रयास की आवश्यकता है। यह साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र और दुनिया में शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
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