जलवायु इंजीनियरिंग के नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जोखिम
चर्चा में क्यों?
- जलवायु इंजीनियरिंग की नैतिकता पर अपनी रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) ने महिलाओं, युवाओं और स्वदेशी लोगों के साथ-साथ समाज के कमज़ोर, उपेक्षित तथा बहिष्कृत लोगों को महत्त्वपूर्ण हितधारकों के रूप में जलवायु इंजीनियरिंग के विवादास्पद क्षेत्र के संबंध में नीतिगत निर्णयों में शामिल करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया है।
जलवायु इंजीनियरिंग क्या है?
- जलवायु इंजीनियरिंग से आशय जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये पृथ्वी की जलवायु में जान-बूझकर किये गए बदलावों से है।
- इसमें विभिन्न तकनीकें शामिल हो सकती हैं जिनमें सौर विकिरणों को परावर्तित करना अथवा वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सीमित करना शामिल है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने संबंधी लक्ष्यों और वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैस सांद्रता में आवश्यक कटौती के बीच मौजूदा अंतर को देखते हुए जलवायु इंजीनियरिंग तकनीकों के उपयोग को लेकर चर्चाएँ चल रही हैं।
जलवायु इंजीनियरिंग को तकनीकों के दो समूहों में वर्गीकृत किया गया है:
कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (CDR):
यह वायुमंडल से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड को निष्काषित और संग्रहीत करती है। CDR में पाँच तकनीकों का उपयोग किया जाता है:
- सीधे वायु से कार्बन का संग्रहण
- वनरोपण/पुनर्वनीकरण के माध्यम से भूमि-उपयोग प्रबंधन
- बायोमास द्वारा उत्पादित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) पृथक्करण, जिसका उपयोग ऊर्जा स्रोत के रूप में भी किया जा सकता है, से समुद्र द्वारा CO2 के अवशोषण तथा प्राकृतिक मौसम प्रक्रियाओं में वृद्धि होती है जिससे वायुमंडल में CO2 की मात्रा में कमी आती है।
- नेचर जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, नई CDR प्रौद्योगिकियों के उपयोग से लक्षित प्रतिवर्ष लगभग 2.3 मिलियन टन कार्बन निष्कासन में से केवल 0.1% ही लक्ष्य पूरा किया जा सका है।
सौर विकिरण संशोधन (SRM):
- इसमें पृथ्वी की धरातल परावर्तन क्षमता में वृद्धि करना शामिल है।
- परावर्तक पेंट से संरचनाओं की रंगाई
- उच्च परावर्तनशीलता वाले फसलों की बुवाई
- समुद्री मेघों की परावर्तनशीलता को बढ़ाना
- इन्फ्रारेड-अवशोषित मेघों को हटाना
- अन्य SRM रणनीतियों में ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण होने वाली शीतलन का अनुकरण करने के लिये निचले समताप मंडल में एरोसोल मुक्त करना और पृथ्वी की कक्षा में रिफ्लेक्टर अथवा ढाल स्थापित कर पृथ्वी तक पहुँचने वाले सौर विकिरण की मात्रा को कम करना शामिल है।
रिपोर्ट में जलवायु इंजीनियरिंग से संबंधित किन मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है?
नैतिक मुद्दे:
- जलवायु इंजीनियरिंग तकनीक हितधारकों को जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कटौती न करने का कारण प्रदान करते हुए "नैतिक जोखिम" उत्पन्न कर सकती है। ऐसे में नैतिक जोखिम के परिप्रेक्ष्य से आगे बढ़ते हुए जलवायु नीति की व्यापक शृंखला के हिस्से के रूप में जलवायु इंजीनियरिंग रणनीतियों का आकलन करना आवश्यक है।
- "संगठित गैर-ज़िम्मेदारी", जलवायु इंजीनियरिंग के समक्ष एक अन्य समस्या है, जिसमें अनिश्चितताओं और पर्यावरणीय चिंताओं के कारण एकल संस्थानों पर दोष आरोपित करना कठिन हो जाता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि सभी संस्थान अंतर्संबंधित हैं तथा उनमें व्यक्तिगत जवाबदेही का अभाव है।
आर्थिक मुद्दे:
- व्यावसायिक निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिये निगम जलवायु इंजीनियरिंग को एक पसंदीदा समाधान के रूप में प्रोत्साहित कर सकते हैं।
- जलवायु इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन के लिये विभिन्न वित्तीय उद्देश्यों वाले देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। इन प्रौद्योगिकियों द्वारा अन्य को खतरे में न डालते हुए कमज़ोर देशों की मदद करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
शासन और विनियमन संबंधी मुद्दे:
- वर्तमान में जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई में आवश्यक वैश्विक दृष्टिकोण और वर्तमान राष्ट्र-आधारित कानूनी व्यवस्था के बीच सामंजस्य की कमी है।
- जलवायु इंजीनियरिंग के प्रशासन हेतु गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं और बहु-स्तरीय दृष्टिकोण के बीच समन्वय की आवश्यकता होती है। ऐसे अभिकर्त्ताओं की भागीदारी जोखिमपूर्ण हो सकती है, हालाँकि संस्थानों पर उनके दायित्वों को पूरा करने के लिये दबाव बनाने हेतु नागरिक समाज कानूनी अभियोग का भी सहारा ले सकता है।
यूनेस्को की रिपोर्ट की सिफारिशें क्या हैं?
- यूनेस्को ने अपने सदस्य राज्यों से जलवायु कार्रवाई को विनियमित करने और मानव तथा पारिस्थितिक तंत्रों पर लिये गए उनके निर्णयों का अन्य राज्यों पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने हेतु कानून पेश करने की सिफारिश की है।
- प्रभावों के असमान भौगोलिक वितरण की संभावना को कम करने के लिये देशों को क्षेत्रीय समझौतों पर विचार करना चाहिये।
- इसमें जलवायु इंजीनियरिंग तकनीकों को शीर्ष प्राथमिकता प्रदान करने पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया गया।
- इसमें आगे कहा गया है कि जलवायु इंजीनियरिंग पर शोध के लिये राजनीतिक अथवा व्यावसायिक उद्देश्यों हेतु हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिये।
मीथेन उत्सर्जन से निपटने के लिये विश्व बैंक की योजना
चर्चा में क्यों?
- मीथेन उत्सर्जन के बढ़ते खतरे से निपटने के प्रयास में विश्व बैंक ने अपने निवेश जीवन अवधि के दौरान 10 मिलियन टन तक मीथेन को कम करने के लिये कई देशों के नेतृत्व वाले कार्यक्रमों की एक शृंखला शुरू करने की योजना की घोषणा की है।
मीथेन उत्सर्जन से संबंधित विश्व बैंक की योजना क्या है?
योजना की आवश्यकता:
- वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) में मीथेन का योगदान लगभग 19% है जो इसे जलवायु परिवर्तन में प्रमुख योगदानकर्त्ता बनाता है।
- चावल उत्पादन में 8%, पशुधन में 32% तथा सभी मानव-चालित मीथेन उत्सर्जन में 18% अपशिष्ट शामिल है, जिससे इन क्षेत्रों में लक्षित प्रयास महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।
- मीथेन में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में बहुत अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (GWP) है।
- ग्रह पर ऊष्मा उत्पन्न करने के मामले में मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड से 80 गुना अधिक शक्तिशाली है, इसके बावजूद इस पर कम ध्यान देने के साथ ही कम धन आवंटन किया जाता है।
विश्व बैंक की योजना:
- विश्व बैंक की योजना अगले 18 महीनों के भीतर कम-से-कम 15 देशों के नेतृत्व वाले कार्यक्रम शुरू करना है।
- विश्व बैंक के अनुसार, यह कदम वैश्विक तापमान में चिंताजनक वृद्धि को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सबसे संवेदनशील समुदायों का समर्थन करने की दिशा में उठाया गया है।
- ये कार्यक्रम विशेष रूप से मीथेन उत्सर्जन को लक्षित करेंगे, पर्यावरणीय गिरावट को रोकने और संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये रणनीतिक हस्तक्षेपों को नियोजित करेंगे।
विश्व बैंक का ट्रिपल विन दृष्टिकोण:
- महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम चावल उत्पादन, पशुधन संचालन और अपशिष्ट प्रबंधन सहित विभिन्न स्रोतों से मीथेन उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित होंगे।
- विश्व बैंक द्वारा मीथेन कटौती के लिये उल्लिखित व्यापक दृष्टिकोण ट्रिपल विन- उत्सर्जन को कम करना, लचीलापन बढ़ाना और आजीविका को सशक्त बनाने पर बल देता है।
निधीयन तंत्र:
- वर्तमान में मीथेन उपशमन के लिये कुल वित्त वैश्विक जलवायु वित्त का 2% से भी कम है।
- विश्व बैंक ने वर्ष 2024 से वर्ष 2030 के दौरान सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के चैनलों के माध्यम से मीथेन कटौती के लिये वित्तपोषण में पर्याप्त वृद्धि की कल्पना की है।
- संस्था प्रभावी समाधान उपायों को लागू करने और संपूर्ण ऊर्जा मूल्य शृंखला में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये जर्मनी, नॉर्वे, संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात तथा निजी क्षेत्र के साथ सहयोग करने के लिये तैयार है।
साझेदारी प्लेटफॉर्म:
- अपने प्रयासों को क्रियान्वित करते हुए विश्व बैंक दो साझेदारी मंच लॉन्च कर रहा है:
- ग्लोबल मीथेन रिडक्शन प्लेटफॉर्म फॉर डेवलपमेंट (CH4D) कृषि और अपशिष्ट में मीथेन में कमी लाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- ग्लोबल फ्लेयरिंग एंड मीथेन रिडक्शन पार्टनरशिप (GFMR) तेल और गैस क्षेत्र में मीथेन के रिसाव को कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (GWP):
- GWP इस बात का परिमाण है कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तुलना में कोई ग्रीनहाउस गैस एक विशिष्ट समय अवधि, आमतौर पर 100 वर्षों में वातावरण में कितनी हिट ट्रैप करती है।
- इसका उपयोग ग्लोबल वार्मिंग पर विभिन्न ग्रीनहाउस गैसों के संभावित प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिये किया जाता है। GWP वायुमंडल में उष्मा को अवशोषित करने और इसे बनाए रखने की उनकी क्षमता के आधार पर विभिन्न गैसों के वार्मिंग प्रभावों की तुलना करने में सहायक है।
- कार्बन डाइऑक्साइड 1 परिमाण के GWP वाली एक रेफरेंस/संदर्भ गैस है। अन्य ग्रीनहाउस गैसों, जैसे- मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) की GWP अधिक होती है क्योंकि वे उष्मा को ट्रैप करने में अधिक प्रभावी होते हैं।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) विभिन्न गैसों के लिये GWP मान प्रदान करता है। यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि GWP मान तुलना के लिये चयनित समय (Time Horizon) के आधार पर भिन्न हो सकते हैं।
मीथेन उत्सर्जन से निपटने के लिये क्या पहलें की गई हैं?
भारतीय:
- 'हरित धरा' (HD): भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने एक एंटी-मिथेनोजेनिक फीड पूरक 'हरित धरा' (HD) विकसित किया है, जो मवेशियों के मीथेन उत्सर्जन को 17-20% तक कम कर सकता है और इसके परिणामस्वरूप उच्च दुग्ध उत्पादन भी हो सकता है।
- भारत ग्रीनहाउस गैस कार्यक्रम: WRI इंडिया (गैर-लाभकारी संगठन), भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) और द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (TERI) के नेतृत्व में भारत GHG कार्यक्रम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का आकलन करने और इसे प्रबंधित करने के लिये एक उद्योग-आधारित स्वैच्छिक ढाँचा है।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC): इसे भारत में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिये वर्ष 2008 में लॉन्च किया गया। इसका उद्देश्य जन प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरों तथा इन परिवर्तनों का मुकाबला करने हेतु भारत के स्तर पर प्रस्तावित कदमों के आधार पर समुदाय के बीच जागरूकता पैदा करना है।
- भारत स्टेज-VI मानदंड: भारत, भारत स्टेज-IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों में स्थानांतरित हो गया।
वैश्विक स्तर पर:
मीथेन चेतावनी और प्रतिक्रिया प्रणाली (MARS):
- MARS बड़ी संख्या में मौजूदा और भविष्य के उपग्रहों से डेटा को एकीकृत करेगा जो विश्व में कहीं भी मीथेन उत्सर्जन की घटनाओं का पता लगाने की क्षमता रखता है तथा इस पर कार्रवाई करने के लिये संबंधित हितधारकों को सूचनाएँ भेजता है।
वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा :
- वर्ष 2021 में ग्लासगो जलवायु सम्मेलन (UNFCCC COP-26) में वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को वर्ष 2020 के स्तर से 30% तक कम करने के लिये लगभग 100 राष्ट्र एक स्वैच्छिक प्रतिज्ञा में शामिल हुए थे, जिसे ग्लोबल मीथेन प्रतिज्ञा के रूप में जाना जाता है।
वैश्विक मीथेन पहल (GMI):
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक-निजी साझेदारी है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में मीथेन की पुनर्प्राप्ति और उपयोग में आने वाली बाधाओं को कम करने पर केंद्रित है।
मीथेन उत्सर्जन को कम करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- ऊर्जा क्षेत्र में: मीथेन उत्सर्जन संपूर्ण तेल और गैस आपूर्ति शृंखला के साथ घटित होता है, लेकिन इसमें विशेष रूप से उपकरणों के कारण लीकेज, सिस्टम में गड़बड़ी और जान-बूझकर फ्लेयरिंग और वेंटिंग से होने वाले क्षणिक उत्सर्जन शामिल हैं।
- मौजूदा लागत प्रभावी समाधान उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकते हैं। इसमें लीक डिटेक्शन एंड रिपेयर कार्यक्रम शुरू करना, बेहतर प्रौद्योगिकियों एवं परिचालन अभ्यासों को लागू करना और मीथेन की ज़ब्ती एवं उपयोग करना शामिल हैं जो अन्यथा बर्बाद हो जाएगा।
- कृषि क्षेत्र में: किसान पशुओं को अधिक पौष्टिक चारा प्रदान कर सकते हैं ताकि वे बड़े, स्वस्थ और अधिक उत्पादक हों और इस प्रकार कम लागत में प्रभावी ढंग से अधिक उत्पादन किया जा सके।
- जब धान-चावल जैसी प्रमुख फसलों की बात आती है, तो विशेषज्ञ वैकल्पिक रूप से गीला करने और सुखाने के तरीकों की सलाह देते हैं जो उत्सर्जन को आधा कर सकते हैं।
- खेतों में लगातार जल बनाए रखने के बजाय पूरे फसल मौसम में दो-तीन बार सिंचाई और अपवाह का प्रयोग किया जा सकता है जिससे उपज को प्रभावित किये बिना मीथेन उत्पादन को सीमित किया जा सकता है।
- इस प्रक्रिया में एक-तिहाई कम जल की आवश्यकता होगी, जिससे यह अधिक किफायती हो जाएगा।
- अपशिष्ट क्षेत्र में: अपशिष्ट क्षेत्र वैश्विक मानव-जनित मीथेन उत्सर्जन में लगभग 20% योगदान करते हैं।
- लागत-प्रभावी शमन उपाय (जहाँ आर्गेनिक पदार्थों के पृथक्करण और पुनर्चक्रण में व्यापक संभावनाएँ निहित हैं) नए रोज़गार पैदा करने की भी क्षमता रखते हैं।
खाद्य क्षति और अपव्यय से बचना भी महत्त्वपूर्ण है।
- इसके अतिरिक्त लैंडफिल गैस को एकत्र करने और ऊर्जा पैदा करने से मीथेन उत्सर्जन कम होगा, अन्य प्रकार के ईंधन विस्थापित होंगे और राजस्व की नए अवसर सृजित होंगे।
- सरकार की भूमिका: भारत सरकार को अपने नागरिकों के लिये खाद्यान्न उत्पादन और उपभोग करने में मदद के लिये एक खाद्य प्रणाली परिवर्तन नीति विकसित करनी चाहिये।
- साइलो में काम करने के बजाय सरकार को एक व्यापक नीति विकसित करनी चाहिये जो किसानों को पौधे-आधारित खाद्य उत्पादन के स्थायी तरीकों की ओर ले जाए।
- औद्योगिक पशुधन उत्पादन और उससे जुड़े इनपुट से सब्सिडी को हटाना और रोज़गार सृजन, सामाजिक न्याय, गरीबी में कमी, पशु संरक्षण एवं बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य को एक ही समाधान के कई पहलुओं के रूप में देखना।
तटीय क्षरण
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (NCCR) द्वारा संचालित वर्ष 1990 से वर्ष 2016 तक बहु-वर्णक्रमीय उपग्रह चित्रों तथा क्षेत्र-सर्वेक्षण डेटा से संपूर्ण भारतीय तटरेखा में हुए परिवर्तन पर अंतर्दृष्टि साझा की।
- NCCR, भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है जिसे केंद्रीय डोमेन के तहत सभी बहु-विषयक अनुसंधान करने के लिये अनिवार्य किया गया है जिनमें समुद्री प्रदूषण, तटीय प्रक्रियाएँ और खतरे, तटीय आवास तथा पारिस्थितिकी तंत्र एवं क्षमता निर्माण व प्रशिक्षण शामिल हैं।
तटीय क्षरण के संबंध में NCCR की प्रमुख टिप्पणियाँ क्या हैं?
- प्राकृतिक कारणों अथवा मानवजनित गतिविधियों के कारण भारत की तटरेखा के कुछ हिस्से विभिन्न डिग्री के क्षरण के अधीन हैं।
- तटरेखा विश्लेषण से पता चलता है कि 34% तट का क्षरण हो रहा है, 28% साथ-साथ बढ़ भी रहा है तथा 38% स्थायी स्थिति में है।
- राज्य-वार विश्लेषण से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल (63%) तथा पांडिचेरी (57%) तटों पर क्षरण 50% से अधिक है जिसके बाद केरल (45%) एवं तमिलनाडु (41%) हैं।
- ओडिशा (51%) एकमात्र तटीय राज्य है जहाँ 50% से अधिक अभिवृद्धि देखी गई है।
- तटरेखा के पीछे हटने के कारण भूमि/आवास और मछुआरों की आजीविका को नुकसान होगा, साथ ही नावों को खड़ा करने, जाल सुधारने तथा मछली पकड़ने जैसी गतिविधियों के लिये जगह नहीं बचेगी।
तटीय कटाव से निपटने हेतु क्या सरकारी उपाय किये गए हैं?
- खतरे की रेखा: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने देश के तटों के लिये खतरे की रेखा का निर्धारण किया है।
- खतरे की रेखा जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि सहित तटरेखा परिवर्तन का संकेत है।
- इस लाइन का उपयोग तटीय राज्यों में एजेंसियों द्वारा अनुकूली और शमन उपायों की योजना सहित आपदा प्रबंधन के लिये एक उपकरण के रूप में किया जाना है।
- तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाएँ: MoEFCC द्वारा अनुमोदित तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की नई तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं में खतरे की रेखा शामिल है।
- तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, 2019: MoEFCC ने तटीय हिस्सों, समुद्री क्षेत्रों के संरक्षण और सुरक्षा तथा मछुआरों एवं अन्य स्थानीय समुदायों के लिये आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, 2019 को अधिसूचित किया है।
- हालाँकि तटीय नियम तट पर कटाव/क्षरण नियंत्रण उपाय सुनिश्चित करने की अनुमति देते हैं।
- नो डेवलपमेंट ज़ोन (NDZ): अधिसूचना भारत के समुद्र तट को अतिक्रमण और क्षरण से बचाने के लिये तटीय क्षेत्रों की विभिन्न श्रेणियों के साथ NDZ का भी प्रावधान करती है।
- बाढ़ प्रबंधन योजना: यह योजना जल शक्ति मंत्रालय की है, जिसमें राज्यों की प्राथमिकताओं के अनुसार राज्य सरकारों द्वारा अपने स्वयं के संसाधनों के साथ समुद्री क्षरण-प्रतिरोधी योजनाओं की योजना और कार्यान्वयन शामिल है।
- केंद्र सरकार राज्यों को तकनीकी, सलाहकारी, उत्प्रेरक और प्रचारात्मक सहायता प्रदान करती है।
तटीय प्रबंधन सूचना प्रणाली (CMIS):
- इसे केंद्रीय क्षेत्र योजना ‘जल संसाधन सूचना प्रणाली के विकास’ के तहत शुरू किया गया है।
- CMIS एक डेटा संग्रह गतिविधि है किजिसके तहत निकट समुद्र तटीय क्षेत्र का डेटा इकट्ठा करना शामिल है, इसका उपयोग सुभेद्य तटीय हिस्सों में साइट विशिष्ट तटीय सुरक्षा संरचनाओं की योजना, डिज़ाइन, निर्माण और रखरखाव में किया जा सकता है।
- समुद्र तटीय क्षरण का शमन: ये उपाय पुद्दुचेरी और केरल के चेल्लानम में किये गए हैं, जिससे पुद्दुचेरी में क्षरित तटीय क्षेत्रों और चेल्लानम में बाढ़ के कारण नष्ट हुए मत्स्यन वाले गाँव के तटीय क्षेत्रों की बहाली और सुरक्षा में मदद मिली।
- सुभेद्य हिस्सों में तटीय सुरक्षा उपायों के डिज़ाइन और तटरेखा प्रबंधन योजनाओं की तैयारी में तटीय राज्यों को तकनीकी सहायता प्रदान की गई है।
ग्लोबल क्लाइमेट 2011-2020: WMO
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO) ने संपूर्ण ग्रह पर जलवायु परिवर्तन के खतरनाक त्वरण तथा इसके बहुमुखी प्रभावों के संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसका शीर्षक ग्लोबल क्लाइमेट 2011-2020: डिकेड ऑफ एक्सीलिरेशन है।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
तापमान के रुझान:
- 2011-2020 का दशक भूमि तथा महासागर दोनों के लिये रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म दशक के रूप में उभरा।
- वैश्विक औसत तापमान 1850-1900 के औसत से 1.10 ± 0.12 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है जो 1990 के दशक के बाद से प्रत्येक दशक में गर्मी पिछले दशक से अधिक रही है।
- कई देशों में रिकॉर्ड स्तर पर उच्च तापमान दर्ज किया गया, वर्ष 2016 (अल-नीनो घटना के कारण) तथा वर्ष 2020 सबसे गर्म वर्षों के रूप में सामने आए।
ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन:
- प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों (GHG) की वायुमंडलीय सांद्रता में वृद्धि जारी रही, विशेष रूप से CO2, 2020 में 413.2 ppm तक पहुँच गई, जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन के दहन और भूमि-उपयोग परिवर्तनों के कारण थी।
- इस दशक में CO2 की औसत वृद्धि दर में वृद्धि देखी गई, जो जलवायु को स्थिर करने के लिये स्थायी उत्सर्जन में कमी की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है।
समुद्री परिवर्तन:
- महासागर के गर्म होने की दर में काफी तेज़ी आई, 90% संचित ऊष्मा समुद्र में जमा हो गई। वर्ष 2006-2020 तक ऊपरी 2000 मीटर की गहराई में वार्मिंग दर दोगुनी हो गई, जिससे समुद्री पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हुआ।
- CO2 अवशोषण के कारण महासागर के अम्लीकरण ने समुद्री जीवों के लिये चुनौतियाँ पैदा कीं, जिससे उनके खोल और कंकाल का निर्माण प्रभावित हुआ।
समुद्री गर्म लहरें और समुद्र स्तर में वृद्धि:
- समुद्री हीटवेव की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हुई, जिससे वर्ष 2011 और 2020 के बीच समुद्र सतह लगभग 60% प्रभावित हुआ।
- वर्ष 2011-2020 तक वैश्विक औसत समुद्र स्तर में 4.5 मिमी/वर्ष की वृद्धि हुई, जिसका मुख्य कारण समुद्र का गर्म होना और बर्फ के बड़े पैमाने पर नुकसान है।
ग्लेशियर और हिम परत का नुकसान:
- वर्ष 2011 और 2020 के बीच वैश्विक स्तर पर ग्लेशियर लगभग 1 मीटर प्रतिवर्ष की कमी देखी गई, जिससे अभूतपूर्व जनहानि हुई, इससे पानी की आपूर्ति प्रभावित हुई।
- वर्ष 2001-2010 की तुलना में ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक में हिम परत में 38% से अधिक की गिरावट आई, जिसने समुद्र के स्तर में वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
आर्कटिक सागर में बर्फ का कम होना:
- ग्रीष्म मौसम के दौरान आर्कटिक समुद्री बर्फ में पिघलना जारी रहा, जिसका औसत मौसमी न्यूनतम स्तर 1981-2010 के औसत से 30% कम था।
ओज़ोन छिद्र और सफलताएँ:
- वर्ष 2011-2020 की अवधि में अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र कम हो गया, जिसका श्रेय मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत सफल अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई को दिया गया है।
- इन प्रयासों के कारण ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों से समताप मंडल में प्रवेश करने वाले क्लोरीन में कमी आई है ।
सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) पर प्रभाव:
- चरम मौसम की घटनाओं ने SDG की प्रगति में बाधा उत्पन्न की, जिससे खाद्य सुरक्षा, मानव गतिशीलता और सामाजिक आर्थिक विकास प्रभावित हुआ है।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में सुधार से प्रभावित लोगों की संख्या में कमी आई है, लेकिन चरम मौसम की घटनाओं से आर्थिक नुकसान बढ़ गया है।
- 2011-2020 का दशक 1950 के बाद पहला दशक था जब 10,000 या उससे अधिक मौतों वाली एक भी अल्पकालिक घटना नहीं हुई थी।
- जलवायु और विकास लक्ष्यों पर कार्रवाई को मुख्यधारा में लाने के लिये WMO की सिफारिशें क्या हैं?
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और उनके भागीदारों के साथ सहयोग के माध्यम से वर्तमान एवं भविष्य के वैश्विक संकटों के खिलाफ सामूहिक समुत्थानशीलता को बढ़ाना।
- सहक्रियात्मक कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिये विज्ञान-नीति-समाज संपर्क को मज़बूत करना।
- विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण/ग्लोबल साउथ के लिये राष्ट्रीय, संस्थागत और व्यक्तिगत स्तरों पर संस्थागत क्षमता निर्माण एवं क्रॉस-सेक्टरल व अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
- राष्ट्रीय, उप-राष्ट्रीय और बहु-राष्ट्रीय स्तरों पर जलवायु एवं विकास सहक्रियाओं को बढ़ाने के लिये सभी क्षेत्रों और विभागों के नीति निर्माताओं के बीच नीतिगत सुसंगतता एवं समन्वय सुनिश्चित करना।
WMO क्या है?
परिचय:
- यह 192 सदस्य राष्ट्रों और क्षेत्रों की सदस्यता वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है। भारत भी इसका एक सदस्य है।
- इसका गठन अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुआ, जिसकी स्थापना वर्ष 1873 वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान काॅन्ग्रेस के बाद की गई थी।
स्थापना:
- 23 मार्च, 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुसमर्थन द्वारा स्थापित WMO मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), परिचालन जल विज्ञान तथा संबंधित भू-भौतिकी विज्ञान के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी बन गई।
मुख्यालय:
UNFCCC में पार्टियों का 28वाँ सम्मेलन
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) के लिये पार्टियों का 28वाँ सम्मेलन (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़-28) दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित किया गया था।
COP28 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
लॉस एंड डैमेज (L&D) फंड:
- COP28 के सदस्य देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहे देशों को प्रतिपूर्ति प्रदान करने के उद्देश्य से लॉस एंड डैमेज (L&D) फंड को संचालित करने के लिये एक समझौते पर पहुँचे।
- UNFCCC तथा पेरिस समझौते के अनुरूप, विश्व बैंक चार वर्षों के लिये फंड/निधि का "अंतरिम मेज़बान" होगा।
- सभी विकासशील देश आवेदन करने के पात्र हैं तथा प्रत्येक देश को स्वेच्छा से योगदान देने के लिये "आमंत्रित" किया जाता है।
- अल्प विकसित देशों तथा लघु द्वीपीय विकासशील देशों के लिये फंड का एक विशिष्ट प्रतिशत निर्धारित किया गया है।
वैश्विक स्टॉकटेक टेक्स्ट:
- ग्लोबल स्टॉकटेक (GST) वर्ष 2015 में पेरिस समझौते के तहत स्थापित एक आवधिक समीक्षा तंत्र है।
- ग्लोबल स्टॉकटेक (GST) टेक्स्ट का 5वाँ संस्करण COP28 में जारी किया गया जिसे बिना किसी आपत्ति के अपनाया गया।
- टेक्स्ट में वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के दायरे में रखने के लिये आठ कदम प्रस्तावित हैं:
- विश्व स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना और वर्ष 2030 तक ऊर्जा दक्षता सुधार की वैश्विक औसत वार्षिक दर को दोगुना करना;
- अनअबेटेड कोयला ऊर्जा को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की दिशा में प्रयासों में तेज़ी लाना;
- शुद्ध शून्य उत्सर्जन ऊर्जा प्रणालियों की दिशा में विश्व स्तर पर प्रयासों में तेज़ी लाना, शून्य और निम्न कार्बन ईंधन का उपयोग सदी के मध्य से पहले या उसके आसपास करना;
- ऊर्जा प्रणालियों में स्थिर जीवाश्म ईंधन के प्रतिस्थापन की दिशा में प्रयासों को बढ़ाने के लिये शून्य और निम्न उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों में तेज़ी लाना, जिसमें अन्य बातों के अलावा, नवीकरणीय, परमाणु, अबेटमेंट एवं निष्कासन प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं, जिनमें कार्बन कैप्चर तथा उपयोग और भंडारण, व निम्न कार्बन हाइड्रोजन उत्पादन शामिल हैं;
- ऊर्जा प्रणालियों में जीवाश्म ईंधन से परे, उचित, व्यवस्थित और न्यायसंगत तरीके से संक्रमण, इस दशक में कार्रवाई में तेज़ी लाना, ताकि विज्ञान के अनुसार वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य हासिल किया जा सके;
- वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर विशेष रूप से मीथेन उत्सर्जन सहित गैर-CO2 उत्सर्जन में तेज़ी लाना और उसे कम करना;
- बुनियादी ढाँचे के विकास एवं शून्य और कम उत्सर्जन वाले वाहनों की तेज़ी से तैनाती सहित कई मार्गों के माध्यम से सड़क परिवहन से उत्सर्जन में कटौती में तेज़ी लाना;
- जितनी जल्दी हो सके अप्रभावी जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना जो व्यर्थ खपत को प्रोत्साहित करती है और ऊर्जा की कमी या बदलावों को संबोधित नहीं करती है।
- पाँचवाँ पुनरावृत्ति लेख ग्लासगो में COP26 के साथ निरंतरता बनाए रखता है, जो विविध ऊर्जा आवश्यकताओं वाले भारत जैसे देशों की वैश्विक आकांक्षाओं को संतुलित करता है।
- India argues that it needs to continue using coal to meet its developmental needs and emphasizes the importance of adhering to nationally determined contributions (NDCs). भारत का तर्क है कि उसे अपनी विकास संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कोयले का उपयोग जारी रखने की ज़रूरत है और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) का पालन करने के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
- COP28 में लगभग 200 देश "ऊर्जा प्रणालियों में जीवाश्म ईंधन से दूर जाने" पर सहमत हुए।
- यह समझौता पहली बार है जब देशों ने यह प्रतिज्ञा की है। इस सौदे का उद्देश्य नीति निर्माताओं और निवेशकों को यह संकेत देना है कि दुनिया जीवाश्म ईंधन से अलग होने के लिये प्रतिबद्ध है।
- विकासशील और गरीब देश COP28 में ग्लोबल स्टॉकटेक टेक्स्ट (GST) के नवीनतम प्रारूप पर असंतोष व्यक्त कर रहे हैं और महत्त्वपूर्ण बदलावों की मांग कर रहे हैं।
- भारत सहित कई देश मीथेन उत्सर्जन में कटौती के किसी भी आदेश का अत्यंत विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इसका एक प्रमुख स्रोत कृषि और पशुधन है।
- मीथेन उत्सर्जन में कटौती में कृषि पैटर्न में बदलाव शामिल हो सकता है जो भारत जैसे देश में बेहद संवेदनशील हो सकता है।
- संभवतः ऐसे देशों की चिंताओं के का सम्मान रखते हुए समझौते में वर्ष 2030 के लिये मीथेन उत्सर्जन में कटौती के किसी भी लक्ष्य का उल्लेख नहीं किया गया है, हालाँकि लगभग 100 देशों के एक समूह ने वर्ष 2021 में ग्लासगो में अपने मीथेन उत्सर्जन को वर्ष 2030 तक 30% कम करने के लिये एक स्वैच्छिक प्रतिबद्धता जताई थी।
- इस प्रतिज्ञा को ग्लोबल मीथेन प्लेज के रूप में जाना जाता है। हालाँकि भारत ग्लोबल मीथेन प्लेज का हिस्सा नहीं है।
- विकासशील देश अमीर देशों से नकारात्मक कार्बन उत्सर्जन हासिल करने का आह्वान करते हैं, न कि 2050 तक शुद्ध शून्य तक पहुँचने का। वे जलवायु परिवर्तन से निपटने में समान लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (CBDR-RC) के सिद्धांतों पर भी बल देते हैं।
- विकासशील देशों का तर्क है कि अमीर देश, जिन्होंने वैश्विक कार्बन बजट का 80% से अधिक उपभोग किया है, उन्हें विकासशील देशों को भविष्य के उत्सर्जन में उनका उचित हिस्सा प्रदान करना चाहिये।
वैश्विक नवीकरणीय और ऊर्जा दक्षता प्रतिज्ञा:
- प्रतिज्ञा में कहा गया है कि हस्ताक्षरकर्त्ता 2030 तक दुनिया की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता को कम से कम 11,000 गीगावॉट तक तीन गुना करने और 2030 तक हर साल ऊर्जा दक्षता सुधार की वैश्विक औसत वार्षिक दर को लगभग 2% से दोगुना करके 4% से अधिक करने तथा मिलकर काम करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
COP28 के लिए वैश्विक शीतलन प्रतिज्ञा:
- इसमें 66 राष्ट्रीय सरकारी हस्ताक्षरकर्त्ता शामिल हैं जो 2050 तक 2022 के स्तर के सापेक्ष वैश्विक स्तर पर सभी क्षेत्रों में शीतलन-संबंधी उत्सर्जन को कम से कम 68% कम करने के लिये मिलकर काम करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
जलवायु वित्त:
- व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) का अनुमान है कि जलवायु वित्त के लिये नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (NCQG) के तहत धनी देशों पर 2025 में विकासशील देशों का 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर बकाया है।
- 2015 में पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों द्वारा NCQG की पुष्टि की गई थी।
- इसका लक्ष्य 2025 से पूर्व एक नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य निर्धारित करना है। यह लक्ष्य प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर से शुरू होगा।
- इसमें शमन के लिये 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर, अनुकूलन के लिये 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर और हानि व क्षतिपूर्ति के लिये 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल हैं।
- वर्ष 2030 तक यह आँकड़ा बढ़कर 1.55 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।
- प्रति वर्ष 100 बिलियन अमरीकी डॉलर का वर्तमान जलवायु वित्त लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है, और विकासशील देश ऋण संकट का सामना कर रहे हैं।
- विशेषज्ञ संरचनात्मक मुद्दों के समाधान और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये वैश्विक वित्तीय ढाँचे में सुधार का आह्वान करते हैं।
अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (GGA):
- अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (GGA) पर प्रारंभिक डेटा पेश किया गया था। इसकी स्थापना पेरिस समझौते के तहत 1.5/2°C लक्ष्य के संदर्भ में देशों की अनुकूलन आवश्यकताओं के प्रति जागरूकता एवं वित्तपोषण बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को बेहतर करने के लिये की गई थी।
प्रारूप पाठ महत्त्वपूर्ण मुद्दों को हल करता है:
- जलवायु-प्रेरित जल की कमी की समस्या का हल।
- जलवायु-अनुकूल भोजन और कृषि उत्पादन।
- जलवायु-संबंधी स्वास्थ्य प्रभावों के विरुद्ध समुत्थान शक्ति को मज़बूत करना।
ट्रिपल न्यूक्लियर एनर्जी की घोषणा:
- COP28 में शुरू की गई घोषणा का लक्ष्य वर्ष 2050 तक वैश्विक परमाणु ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना है।
- 22 राष्ट्रीय सरकारों द्वारा समर्थित घोषणा में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के शेयरधारकों से समर्थन का आह्वान किया गया है। यह शेयरधारकों को ऊर्जा ऋण नीतियों में परमाणु ऊर्जा को शामिल करने का समर्थन करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
पावरिंग पास्ट कोल एलायंस (PPCA):
- PPCA राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय सरकारों, व्यवसायों एवं संगठनों का एक गठबंधन है जो निर्बाध कोयला बिजली उत्पादन से स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण को आगे बढ़ाने के लिये कार्य कर रहा है।
- COP28 में PPCA ने नई राष्ट्रीय और उपराष्ट्रीय सरकारों का स्वागत किया तथा स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों का आह्वान किया।
कोयला संक्रमण त्वरक:
- फ्राँस ने विभिन्न देशों और संगठनों के सहयोग से कोयला संक्रमण त्वरक की शुरुआत की।
- उद्देश्यों में कोयले से स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन की सुविधा के लिये ज्ञान-साझाकरण, नीति डिज़ाइन और वित्तीय सहायता शामिल है।
- इस पहल का उद्देश्य प्रभावी कोयला परिवर्तन नीतियों के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं और प्राप्त सीख का लाभ उठाना है।
जलवायु कार्रवाई के लिये उच्च महत्त्वाकांक्षा बहुस्तरीय भागीदारी गठबंधन (CHAMP):
- कुल 65 राष्ट्रीय सरकारों ने जलवायु रणनीतियों की योजना, वित्तपोषण, कार्यान्वयन एवं निगरानी में उपराष्ट्रीय सरकारों के साथ, जहाँ लागू और उचित हो, सहयोग बढ़ाने के लिये CHAMP प्रतिबद्धताओं पर हस्ताक्षर किये।
COP28 में भारत के नेतृत्व वाली पहल:
ग्लोबल रिवर सिटीज़ अलायंस (GRCA):
- इसे भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के नेतृत्व में COP28 में लॉन्च किया गया था।
- GRCA एक अनूठा गठबंधन है जो विश्व के 11 देशों के 275+ नदी-शहरों को कवर करता है।
- भागीदार देशों में मिस्र, नीदरलैंड, डेनमार्क, घाना, ऑस्ट्रेलिया, भूटान, कंबोडिया, जापान एवं नीदरलैंड से हेग (डेन हाग), ऑस्ट्रेलिया से एडिलेड और हंगरी के स्ज़ोलनोक के नदी-शहर शामिल हैं।
- GRCA सतत् नदी-केंद्रित विकास तथा जलवायु लचीलेपन में भारत की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
हरित ऋण पहल:
- GRCA मंच ज्ञान के आदान-प्रदान, नदी-शहर के जुड़ाव एवं सर्वोत्तम प्रथाओं के प्रसार की सुविधा प्रदान करेगा।
- भारत ने नवीन पर्यावरण कार्यक्रमों और उपकरणों के आदान-प्रदान तथा एक भागीदारीपूर्ण वैश्विक मंच बनाने के लिये यहाँ COP28 में ग्रीन क्रेडिट पहल शुरू की।
- इस पहल की दो मुख्य प्राथमिकताएँ जल संरक्षण और वनीकरण हैं।
- इस पहल का मुख्य उद्देश्य देश के सामने आने वाले जलवायु संबंधी मुद्दों में बदलाव लाने वाले बड़े निगमों और निजी कंपनियों को प्रोत्साहित करके वृक्षारोपण, जल संरक्षण, टिकाऊ कृषि एवं अपशिष्ट प्रबंधन जैसी स्वैच्छिक पर्यावरणीय गतिविधियों को बढ़ावा देना है।
कूलिंग सेक्टर के लिये UNEP की कार्ययोजना
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) ने अपनी हालिया रिपोर्ट "कीपिंग इट चिल: हाउ टू मीट कूलिंग डिमांड्स व्हाइल कटिंग एमिशन्स " में वैश्विक कूलिंग सेक्टर से उत्सर्जन को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करने के उद्देश्य से एक कार्य योजना प्रस्तावित की है।
- यह पहल अनुमानित 2050 ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर पर्याप्त प्रभाव डालने की क्षमता रखती है, जिससे उन्हें 60% तक कम किया जा सकता है।
- यह रिपोर्ट ग्लोबल कूलिंग प्लेज (Global Cooling Pledge) के समर्थन में जारी की गई है, जो कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP28) तथा कूल कोएलिशन (Cool Coalition) के मेज़बान के रूप में संयुक्त अरब अमीरात के बीच एक संयुक्त पहल है।
नोट:
- कूल कोएलिशन साझेदारों का एक वैश्विक नेटवर्क है जो सभी के लिये कुशल, जलवायु-अनुकूल शीतलन सुनिश्चित करने के लिये कार्य कर रहा है।
- UNEP ने सतत् विकास लक्ष्यों के लिये 2030 एजेंडा तथा पेरिस समझौते के बीच तालमेल से पहले वैश्विक सम्मेलन में कूल कोएलिशन का शुभारंभ किया।
- भारत कूल कोएलिशन का सदस्य है।
सस्टेनेबल कूलिंग हेतु UNEP की प्रस्तावित कार्य योजना क्या है?
प्रकृति-आधारित समाधान:
- सिफारिशों में निष्क्रिय शीतलन उपाय जैसे- छायांकन, वेंटिलेशन, इन्सुलेशन, ग्रीन रूफ और परावर्तक सतहें तथा शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक स्थिति का पुनः निर्माण करना शामिल है।
- निष्क्रिय शीतलन यांत्रिक शीतलन की आवश्यकता को कम कर सकता है और ऊर्जा तथा उत्सर्जन को बचा सकता है।
दक्षता मानक:
- एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर और पंखे जैसे कूलिंग उपकरणों के लिये उच्च ऊर्जा दक्षता प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया है।
- उच्च-ऊर्जा दक्षता वाले कूलिंग उपकरणों की ऊर्जा खपत और उत्सर्जन कम हो सकता है तथा उपयोगकर्त्ताओं और उपयोगिताओं के लिये लागत कम हो सकती है।
रेफ्रिजरेंट्स को चरणबद्ध तरीके से बंद करना:
- इसका तात्पर्य हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) के बजाय हाइड्रोकार्बन, अमोनिया या कार्बन डाइऑक्साइड जैसे शीतलन उपकरणों में वैकल्पिक पदार्थों के उपयोग से है, जो शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें हैं।
- HFC सिंथेटिक गैसों का एक समूह है जिसका उपयोग मुख्य रूप से शीतलन और प्रशीतन के लिये किया जाता है। "सुपर-प्रदूषक" के रूप में वर्गीकृत HFC में शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस के गुण होते हैं, जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में सैकड़ों से हज़ारों गुना अधिक गर्मी को रोकने में सक्षम होते हैं।
- अपने महत्त्वपूर्ण प्रभाव के बावजूद वे अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक हैं, जिनका औसत वायुमंडलीय जीवनकाल 15 वर्ष है।
- कम-ग्लोबल वार्मिंग क्षमता वाले रेफ्रिजरेंट कूलिंग उपकरणों के प्रत्यक्ष उत्सर्जन को कम कर सकते हैं और मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन के तहत HFC को चरणबद्ध तरीके से कम करने में योगदान कर सकते हैं।
- जलवायु को गर्म करने वाले रेफ्रिजरेंट और एयर कंडीशनिंग को तेज़ी से चरणबद्ध तरीके से बंद करने का आग्रह किया गया है।
कूलिंग सेक्टर पर ध्यान क्यों दें?
- कूलिंग सेक्टर बढ़ते तापमान से निपटने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, औद्योगिक शीतलन प्रक्रियाओं और उत्पादक अर्थव्यवस्थाओं के परिचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- हालाँकि हस्तक्षेप के बिना शीतलन उपकरणों की बढ़ती मांग से बिजली की खपत और उत्सर्जन में पर्याप्त वृद्धि हो सकती है।
- वैश्विक बिजली खपत में कूलिंग क्षेत्र की हिस्सेदारी 20% है।
- यदि वर्तमान नीतियाँ जारी रहती हैं, तो वैश्विक स्तर पर कूलिंग उपकरणों की स्थापित क्षमता तीन गुना हो जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2050 तक बिजली की खपत दोगुनी से अधिक हो जाएगी।
- इससे वर्ष 2050 में 4.4 बिलियन से 6.1 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष (CO2e) का उत्सर्जन हो सकता है, जो उस वर्ष वैश्विक अनुमानित उत्सर्जन का 10% से अधिक होगा।
सतत् शीतलन/कूलिंग के क्या लाभ हैं?
- निष्क्रिय शीतलन तकनीक और कुशल शीतलन उपकरण उपभोक्ताओं को वर्ष 2022 से 2050 के दौरान 17 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत करवा सकते हैं।
- यह अनुमान लगाया गया है कि अधिकतम बिजली आवश्यकताओं को 1.5-2 टेरावाट (TW) तक कम कर दिया जाएगा, जिससे बिजली उत्पादन में पर्याप्त निवेश से बचा जा सकेगा।
- नए उपकरणों में कम-ग्लोबल वार्मिंग क्षमता वाली प्रौद्योगिकियों को अपनाने और रेफ्रिजरेंट जीवन चक्र को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने से वर्ष 2050 में HFC उत्सर्जन को 50% तक कम किया जा सकता है।
- पावर ग्रिड को डीकार्बोनाइज़ करने से क्षेत्रीय उत्सर्जन को 96% तक कम किया जा सकता है।
सतत् शीतलन से संबंधित पहलें क्या हैं?
वैश्विक:
नेशनल कूलिंग एक्शन प्लान (NCAPs):
- वर्तमान में भारत सहित 40 से अधिक देशों ने NCAP तैयार किये हैं और 25 अन्य देश तैयारी के विभिन्न चरणों में हैं।
- हालाँकि भारत और चीन द्वारा अपने NCAP में कार्यान्वयन तंत्र को शामिल किये जाने के बावजूद कार्यान्वयन धीमा रहा है।
वैश्विक शीतलन प्रतिज्ञा:
- 60 से अधिक देशों ने कूलिंग सेक्टर के जलवायु प्रभाव को कम करने की वचनबद्धता के साथ प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर किये।
- 28वें पार्टियों के सम्मेलन (COP28) में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय, मेज़बान देश संयुक्त अरब अमीरात एवं कूल कोएलिशन ने वैश्विक शीतलन प्रतिज्ञा की शुरुआत की।
किगाली संशोधन को गति:
- किगाली संशोधन HFC के उत्पादन और खपत को कम करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। इसका लक्ष्य वर्ष 2047 तक HFC के उत्पादन एवं खपत को 80-85% तक कम करना है।
- यह संशोधन ओज़ोन परत का क्षय करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का हिस्सा है।
- इससे 105 बिलियन टन CO2 (एक ग्रीनहाउस गैस) के उत्सर्जन को रोकने की उम्मीद है, जिससे 21वीं सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से सुरक्षा प्राप्त की जा सकेगी।
भारत:
- इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) स्टार रेटिंग कार्यक्रम
CCS और CDR की सीमाए
चर्चा में क्यों?
दुबई में COP28 में लिए गए मसौदा निर्णयों में कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) और कार्बन-डाइऑक्साइड निष्कासन (CDR) तकनीकों का उपयोग करके कार्बन उत्सर्जन को कम करने और हटाने का उल्लेख किया गया है।
'निरंतर' जीवाश्म ईंधन क्या हैं?
- निरंतर - कोयले, तेल के जलने से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के लिए कुछ नहीं करना। और प्राकृतिक गैस.
- IPCC के अनुसार, निर्बाध जीवाश्म ईंधन वे हैं "बिना किसी हस्तक्षेप के जो GHG उत्सर्जन को काफी हद तक कम करते हैं।
- COP28 में, "अनियंत्रित जीवाश्म ईंधन" शब्द का अर्थ इन ईंधनों का दहन है CCS प्रौद्योगिकियों का उपयोग किए बिना उनके उत्सर्जन को पकड़ने के लिए .
- निरस्त - प्रदूषक पदार्थों के उत्सर्जन को स्वीकार्य स्तर तक कम करने का प्रयास।
सीसीएस और सीडीआर क्या हैं?
- सीडीआर और सीसीएस अलग-अलग हैं, लेकिन कुछ सीओ2 हटाने के तरीके (उदाहरण के लिए, प्रत्यक्ष वायु कैप्चर) पारंपरिक सीसीएस के लिए उपयोग की जाने वाली समान कैप्चर प्रक्रियाओं या दीर्घकालिक भंडारण बुनियादी ढांचे को साझा कर सकते हैं।
- कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) - CCS उन प्रौद्योगिकियों को संदर्भित करता है जो उत्सर्जन के स्रोत पर CO₂ को कैप्चर कर सकते हैं वायुमंडल में छोड़े जाने से पहले।
- इन स्रोतों में जीवाश्म ईंधन उद्योग (जहां बिजली पैदा करने के लिए कोयला, तेल और गैस का दहन किया जाता है) और स्टील और सीमेंट उत्पादन जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएं शामिल हैं।
यह तीन चरणों वाली प्रक्रिया है, जिसमें शामिल हैं:
- उत्पादित CO2 को कैप्चर करना
- कैप्चर किए गए CO2 का परिवहन
- इसे गहरे भूमिगत भंडारण करना
- कार्बन-डाइऑक्साइड निष्कासन (सीडीआर) - प्रौद्योगिकियों, प्रथाओं और तरीकों का उपयोग करता है CO2 को हटाता है हमारे वातावरण सेजानबूझकर और जानबूझकर किए गए मानवीय कार्यों के माध्यम से।
- CDR वातावरण से CO2 ग्रहण करता है और इसे पौधों, मिट्टी, महासागरों, चट्टानों, खारे जलभृतों, ख़त्म होते तेल के कुओं, या सीमेंट जैसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले उत्पादों में वर्षों तक रोक कर रखता है।
- यह प्राकृतिक (वनरोपण या पुनर्वनरोपण) या प्रौद्योगिकियों का उपयोग हो सकता है (प्रत्यक्ष वायु कैप्चर), जहां मशीनें CO₂ को अवशोषित करके और इसे भूमिगत संग्रहीत करके पेड़ों की नकल करती हैं।
- उदाहरण के लिए: उन्नत चट्टान अपक्षय और BECCS (कार्बन कैप्चर और भंडारण के साथ बायोएनर्जी)
सीसीएस और सीडीआर को कितनी अच्छी तरह काम करने की आवश्यकता है?
- संयुक्त राष्ट्र की आईपीसीसी की 6वींवीं आकलन रिपोर्ट (AR6) के अनुसार, जलवायु शमन पर बहुत कुछ निर्भर करता है दुनिया की औसत सतह के तापमान में वृद्धि को बिना किसी या सीमित ओवरशूट के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में सीडीआरके उपयोग पर।
- यदि CO₂ उत्सर्जन मौजूदा स्तर पर जारी रहता है, तो हमारे पास 7 वर्षों में पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने की 50% संभावना होगी।
- यदि दुनिया 2040 तक 5 अरब टन CO₂ को अलग कर सकती है तो तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की 50% से अधिक संभावना है जो कि भारत द्वारा वर्तमान में हर वर्ष उत्सर्जित किये जाने वाले उत्सर्जन से अधिक है।
- प्रत्यक्ष शमन का तात्पर्य सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को कम करना है।
सीसीएस की सीमाएँ क्या हैं?
- अविकसित प्रौद्योगिकी- दशकों के विकास के बावजूद CCS ने व्यवहार्यता को बड़े पैमाने पर प्रदर्शित नहीं किया है।
- उच्च लागत - संयंत्र में कार्बन कैप्चर डिवाइस जोड़ने की तुलना में कोयला संयंत्र को बंद करना और इसे पवन, सौर और बैटरी के कुछ संयोजन से बदलना सस्ता है।
- अतिरिक्त ऊर्जा आवश्यकताएं - यह कार्बन के परिवहन और दीर्घकालिक भंडारण के लिए नई ऊर्जा आवश्यकताएं पैदा करता है।
- जीएचजी उत्सर्जित करने के लिए जगह बनाता है - जर्मनी स्थित जलवायु विज्ञान और नीति संस्थान ने खुलासा किया कि सीसीएस पर निर्भरता अतिरिक्त 86 बिलियन जारी कर सकती है 2020 और 2050 के बीच वायुमंडल में टन ग्रीनहाउस गैसें।
- अंडरपरफॉर्मेंस - इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) के 2022 के एक अध्ययन में पाया गया कि दुनिया भर में 13 प्रमुख सीसीएस परियोजनाओं में से अधिकांश या तो पूरी तरह से विफल हुए हैं या ख़राब प्रदर्शन कर पाए हैं।
सीडीआर की सीमाएँ क्या हैं?
- भूमि अधिकारों को प्रभावित - पेड़ लगाने और बड़े पैमाने पर सीडीआर तरीकों को तैनात करने के लिए उच्च भूमि की मांग स्वदेशी समुदायों को उनके भूमि अधिकारों से वंचित करती है.
- खाद्य सुरक्षा को खतरा - यह कृषि जैसे भूमि-उपयोग के अन्य रूपों के साथ प्रतिस्पर्धा करता है अर्थात खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण।
- जैव विविधता को प्रभावित करता है - यह मौजूदा भूमि उपयोग को बदल सकता है और इस प्रकार विभिन्न जीवों के निवास स्थान और अस्तित्व को प्रभावित कर सकता है .
- जलवायु परिवर्तन शमन का प्रभाव – भूमि के बड़े हिस्से में सीडीआर प्रौद्योगिकियों को तैनात करने से नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों को उत्पन्न करने के लिए भूमि का उपयोग करने से प्रतिकार हो सकता है।
- उदाहरण के लिए, 2023 'भूमि अंतर' रिपोर्ट जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन की भरपाई के लिए भूमि-आधारित सीडीआर पर सरकार की निर्भरता को दर्शाता है < /span>।अपने शमन बोझ को जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने से दूर स्थानांतरित करना
- अनिश्चित भविष्य - व्यवहार्य और स्केलेबल सीडीआर तरीकों की पहचान करने और यह पता लगाने की आवश्यकता है कि भविष्य में बड़े पैमाने पर सीडीआर के लिए भुगतान कौन करेगा