सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके —
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला कागज़ उड़ सके
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया
शब्दार्थ- बौछार – वर्षा। भादो – भादो मास। शरद – शीत ऋतु। झुंड – समूह। इशारों से – संकेतों से। मुलायम – कोमल / नरम। बांस – एक प्रकार की लकड़ी। चमकीली – रोशनीदार। कमानी – धुरी। नाजुक – कोमल।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां ‘आलोक धन्वा’ द्वारा रचित ‘पतंग’ नामक कविता से ली गई है, जो ‘आरोह भाग 2’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने प्रकृति के परिवर्तन का मनोहारी चित्रण किया है।
व्याख्या:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने भादो मास के बाद जो नया सवेरा आता है उसका वर्णन किया है। जब भादो मास में तेज वर्षा की बौछारों का अंत होता है, उसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में भी हर कठिन समय का अंत होता है और बाद में खुशियों का आगमन होता है। खरगोश की आंखों के समान सुंदर व चमकदार सवेरा आता है जो कि अनेक शरद ऋतु को और पुलों और झाड़ियों को पार करके आया है अर्थात मानव जीवन में अंधकार को समाप्त करके जो सवेरा आया है वह बहुत सी कठिनाइयों को सहन करके आया है। कवि इस नई ऋतु को मानव के रूप में प्रस्तुत करते हुए बताते हैं कि नई ऋतु चमकदार साइकिल पर सवार होकर साइकिल को तेज चलाते हुए और घंटी बजाते हुए जोर शोर से चमकीले संकेत द्वारा बच्चों के संपूर्ण को पतंग उड़ाने के लिए बुला रही हैं। अब आकाश इतना साफ सुथरा हो गया है कि अब पतंग बहुत आसानी से उड़ सकती है। कवि फिर कहता है कि दुनिया का सबसे पतला कागज उड़ सकता है जो कि बांस की सबसे पतली कमानी से बनी हुई एक पतंग है। इसके साथ वातावरण इतना मधुर हो गया है कि अब बच्चे खुशी से चिल्ला रहे हैं और साफ आकाश में इन पतंगों के साथ तितलियां भी उड़ रही हैं। इस सुंदर दृश्य को देखकर अनेक नई भावना उत्पन्न हो रही है।
काव्य-सौंदर्य:-
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर
शब्दार्थ- कपास – रुई की फसल। बेसुध – बेहोश। नरम – कोमल। मृदंग – नगाड़ा। पेंग भरन – झूला झूलना। डाल – शाखा। अक्सर – प्रायः / आमतौर पर।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां ‘आलोक धन्वा’ द्वारा रचित ‘पतंग’ नामक कविता से ली गई है, जो ‘आरोह भाग 2’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने प्रकृति के परिवर्तन का मनोहारी चित्रण किया है।
व्याख्या:- कवि ने इन पंक्तियों में बताया है कि छोटे बच्चे जन्म से ही अत्याधिक कोमल होते हैं, जिस प्रकार कपास के फूल होते हैं। धरती बच्चों के पैरों के स्पर्श के लिए बेचैन रही है जिस प्रकार बच्चे खेलने के लिए बेचैन रहते हैं। जब बच्चे मकानों की छतों को अपने कोमल पैरों से पागलों की तरह दौड़ लगाते हैं जिससे छतें भी नरम बन जाती है। अर्थात छोटे बच्चे अत्यंत ही कोमल और पाप हीन होते हैं, जब कोई व्यक्ति उनके साथ खेलता है तो वह भी बच्चों की तरह बन जाता है। वह अपने सारे दु:ख-दर्द भूल कर उनके साथ खो जाता है। बच्चों की रोने की आवाज चारों दिशाओं में नगाड़ों की तरह जाती है। बच्चों को लचीले पेड़ों पर झूला झुलाया जाता है और बड़े ही प्यार से इधर-उधर बुलाया जाता है ताकि वह सुरक्षित रहे। परंतु बच्चे तो अपनी ही मस्ती में झूले को इधर-उधर तेजी से घुमाते हैं।
काव्य-सौंदर्य:-
छतों के खतरनाक किनारों तक
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ़ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं।
अपने रंध्रों के सहारे
शब्दार्थ- रोमांचित – रोमांच से भरे कार्य। महज – केवल। थाम – रोक। रंध्रों – सुराखों।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां ‘आलोक धन्वा’ द्वारा रचित ‘पतंग’ नामक कविता से ली गई है, जो ‘आरोह भाग 2’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने प्रकृति के परिवर्तन का मनोहारी चित्रण किया है।
व्याख्या:- कभी कहता है जब बच्चे पतंग को छतों पर उड़ाते हैं तो छतों के खतरनाक किनारों तक वह पहुंच जाते हैं। उस समय उन्हें गिरने से सिर्फ उनके शरीर में भरा रोमांचित संगीत ही बचाता है। अर्थात पतंग उड़ाने के रोमांच से वह हर खतरे से बच जाते हैं। पतंगे मात्र एक पतले धागे के सहारे आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंच जाती है। पतंगों के साथ-साथ बच्चे भी स्वयं को महसूस करते हैं कि वह भी सुराखों के सहारे आसमान की ऊंचाइयों में उड़ रहे हैं।
काव्य-सौंदर्य:-
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हुई आती है
उनके बेचैन पैरों के पास।
शब्दार्थ- निडर – जिसे डर ना हो। सुनहरे – रंग का एक प्रकार।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां ‘आलोक धन्वा’ द्वारा रचित ‘पतंग’ नामक कविता से ली गई है, जो ‘आरोह भाग 2’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने प्रकृति के परिवर्तन का मनोहारी चित्रण किया है।
व्याख्या:- कवि कहता है कि यदि वे कभी छतों के खतरनाक किनारों से गिर जाते हैं और बच जाते हैं। तब तो वह और भी साहसी व निडर होकर सुनहरे सूरज के सामने आते हैं। अर्थात अब तो सूर्योदय होते ही बिना किसी डर के पतंग उड़ाने को तैयार हैं। अब पृथ्वी उनके साहस और निडरता भरे स्वभाव को देखकर उनके पैरों के पास आ जाती है। जो पैर बेचैन है जिन्हें आराम करने में कोई आनंद नहीं आता है।
काव्य-सौंदर्य:-
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