UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  The Hindi Editorial Analysis- 19th January 2024

The Hindi Editorial Analysis- 19th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

मुख्य सचिव के कार्यकाल पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (National Capital Territory of Delhi- NCT of Delhi) अद्वितीय स्थिति रखती है क्योंकि यह दिल्ली सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार की भी सीट है। दिल्ली की निर्वाचित सरकार और केंद्र सरकार के बीच सहयोग एवं समन्वय सुनिश्चित करने के लिये विशेष उपबंध किये गए हैं। उपराज्यपाल या लेफ्टिनेंट गवर्नर (LG) दिल्ली NCT का संवैधानिक प्रमुख होता है जो इस क्षेत्र में भारत के राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व करता है।

पुलिस, लोक व्यवस्था और भूमि जैसे कुछ विषय दिल्ली की निर्वाचित सरकार के बजाय उपराज्यपाल एवं केंद्र सरकार के क्षेत्राधिकार में रखे गए हैं। निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल के बीच शक्तियों और उत्तरदायित्वों का वितरण संवैधानिक एवं राजनीतिक बहस का मुद्दा रहा है। हालिया विवाद दिल्ली के मुख्य सचिव के कार्यकाल के विस्तार को लेकर उभरा है।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के प्रशासन के संबंध में हालिया विवाद क्या है?

  • वर्ष 2015 की अधिसूचना:
    • केंद्र सरकार की वर्ष 2015 की अधिसूचना ने अनुच्छेद 239 AA (3 (a)) के तहत अपवादों की सूची में प्रविष्टि 41 का योग किया और सेवाओं, लोक व्यवस्था, पुलिस एवं भूमि से जुड़े मामलों से निपटने का अधिकार LG को सौंप दिया, जहाँ वह मुख्यमंत्री से सलाह ले सकता है।
      • अधिसूचना में कहा गया है कि NCT दिल्ली सरकार प्रविष्टि 41 यानी ‘सेवाओं’ के लिये कानून नहीं बना सकती है क्योंकि यह दिल्ली की NCT विधानसभा के दायरे से बाहर है। वर्ष 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा भी इसकी पुष्टि की गई।
  • सर्वोच्च न्यायालय की अमान्यता:
    • सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने NCT दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ (2023) मामले में निर्णय दिया कि NCT दिल्ली के पास लोक व्यवस्था, पुलिस एवं भूमि से संबंधित मामलों को छोड़कर राष्ट्रीय राजधानी में अन्य सभी प्रशासनिक सेवाओं पर विधायी एवं कार्यकारी शक्ति प्राप्त है और ऐसे मामलों में LG दिल्ली सरकार के निर्णयों को मानने के लिये बाध्य है।
    • जवाबदेही की तिहरी शृंखला:
      • उपर्युक्त निर्णय में SC ने स्पष्ट रूप से ‘जवाबदेही की तिहरी शृंखला’ की अवधारणा को मान्यता प्रदान की।
      • जवाबदेही की यह तिहरी शृंखला प्रतिनिधिक लोकतंत्र का अभिन्न अंग है और निम्नानुसार आगे बढ़ती है:
      • लोक सेवक मंत्रिमंडल के प्रति जवाबदेह होते हैं।
      • मंत्रिमंडल विधायिका या विधानसभा के प्रति जवाबदेह होता है।
      • विधानसभा (आवधिक रूप से) मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होती है।
      • कोई भी कार्रवाई जो जवाबदेही की इस तिहरी शृंखला को तोड़ती है, बुनियादी रूप से प्रतिनिधि सरकार के मूल संवैधानिक सिद्धांत को कमज़ोर करती है जो कि हमारे लोकतंत्र का आधार है।
  • अमान्य करार दिये जाने के बाद केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया:
    • केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत के निर्णय को निष्प्रभावी या ‘ओवररूल’ करने के लिये राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश जारी कर दिया।
      • दिल्ली सरकार ने इस अध्यादेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया, जिसने फिर अधिनिर्णय के लिये मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया।
    • जबकि मामला अभी भी संविधान पीठ के पास लंबित ही था, संसद द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली शासन (संशोधन) अधिनियम, 2023 [Government of National Capital Territory of Delhi (Amendment) Act, 2023] अधिनियमित किया गया, जहाँ दिल्ली में प्रशासन के संबंध में केंद्र को अधिभावी शक्तियाँ प्रदान की गईं।
      • दिल्ली के मुख्य सचिव के कार्यकाल में छह माह के विस्तार का निर्णय केंद्र सरकार द्वारा इसी शक्ति का एक प्रयोग है।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2023 क्या है?

  • NCCSA की स्थापना: यह अधिनियम सिविल सेवकों के पदस्थापन एवं नियंत्रण के संबंध में निर्णय लेने के लिये राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (National Capital Civil Service Authority- NCCSA) नामक एक स्थायी प्राधिकरण की स्थापना की मंशा रखता है।
    • NCCSA में दिल्ली के मुख्यमंत्री (इसके प्रमुख के रूप में), मुख्य सचिव और प्रधान सचिव (दोनों NCT दिल्ली सरकार से संबद्ध) शामिल होंगे।
    • NCCSA लोक व्यवस्था, भूमि एवं पुलिस से संबंधित मामलों का प्रबंधन करने वाले अधिकारियों को छोड़कर दिल्ली सरकार के विभिन्न विषयों में सेवारत सभी समूह ‘A’ अधिकारियों के स्थानांतरण एवं पदस्थापन के संबंध में LG को अनुशंसाएँ भेजेगा।
  • धारा 45D: उल्लिखित अध्यादेश की धारा 45D में संशोधन के माध्यम से दिल्ली में सांविधिक आयोगों और न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों के संबंध में केंद्र को शक्ति प्रदान की गई है।
    • धारा 45D में कहा गया है कि कोई भी प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग या कोई सांविधिक निकाय, या उसका कोई पदाधिकारी या सदस्य, जिसका NCT दिल्ली में या उसके लिये, तत्समय प्रभावी किसी विधि द्वारा गठित या नियुक्त किया जाता है तो यह राष्ट्रपति द्वारा गठित, नियुक्त या मनोनीत होगा।
    • यह अधिनियम LG को अंतिम प्राधिकार प्रदान देता है, जहाँ किसी भी मतभेद की स्थिति में LG का निर्णय अधिभावी होगा।
  • NCT दिल्ली के मंत्रियों को दरकिनार करना: नया अधिनियम विभाग के सचिवों को संबंधित मंत्री से परामर्श किये बिना LG, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के पास किसी मामले को ले जाने की अनुमति देता है।
  • दिल्ली विधानसभा कानूनों के तहत गठित निकायों के संबंध में: NCCSA धारा 45H के उपबंधों के अनुसार LG द्वारा गठन या नियुक्ति या नामांकन के लिये उपयुक्त व्यक्तियों के एक पैनल की सिफ़ारिश करेगा।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2023 से संबद्ध समस्याएँ क्या हैं?

  • लोकतंत्र को कमज़ोर करना:
    • यह अधिनियम प्रतिनिधि लोकतंत्र और उत्तरदायी शासन के सिद्धांतों को कमज़ोर करता है , जो भारत की संवैधानिक व्यवस्था के स्तंभ माने जाते हैं।
    • यह निर्वाचित दिल्ली सरकार से सेवाओं का नियंत्रण छीन लेता है, जबकि उनके पास दिल्ली के लोगों की ओर से विधि निर्माण और प्रशासन का स्पष्ट जनादेश होता है।
    • यह मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की भूमिका को ‘रबर स्टांप’ होने तक कम कर देता है, क्योंकि उन्हें NCCSA में दो नौकरशाहों (मुख्य सचिव और प्रधान सचिव) द्वारा ओवररूल किया जा सकता है, जो अंततः LG और केंद्र के प्रति जवाबदेह होते हैं।
  • संवैधानिक उल्लंघन:
    • यह अधिनियम सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लंघन करता है और उसे रद्द कर देता है, जहाँ कहा गया था कि दिल्ली सरकार के पास लोक व्यवस्था, पुलिस एवं भूमि से संबंधित मामलों को छोड़कर, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अन्य सेवाओं पर विधायी एवं कार्यकारी शक्तियाँ प्राप्त हैं।
    • यह संविधान के अनुच्छेद 239AA के प्रावधानों के भी विपरीत है, जहाँ दिल्ली को एक विधानसभा के साथ केंद्रशासित प्रदेश के रूप में विशेष दर्जा दिया गया है और यह केंद्र एवं दिल्ली सरकार के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध की परिकल्पना करता है।
    • यह अधिनियम संघवाद (federalism) के सिद्धांत का भी उल्लंघन करता है, जो संविधान की एक मूल विशेषता (basic feature) है और यह राज्यों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करता है।

सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय से संबद्ध विभिन्न चिंताएँ क्या हैं?

  • संवैधानिक तर्क और अतीत के ज्ञान की हानि:
    • मुख्य सचिव के कार्यकाल के एकपक्षीय विस्तार की अनुमति देने का न्यायालय का निर्णय न केवल संवैधानिक तर्क से भटकाव को प्रकट करता है, बल्कि इसके अतीत के ज्ञान के भी विपरीत है, जो संवैधानिक व्याख्या को दिये जाते महत्त्व को नष्ट करता है।
    • यह संवैधानिक मामलों पर न्यायालय के बदलते रुख के बारे में चिंताएँ पैदा करता है।
  • मुख्य सचिव के लिये नियमों का चयनात्मक अनुप्रयोग:
    • न्यायालय ने अपने आदेश में उन नियमों से छूट प्रदान कर दी जहाँ मुख्य सचिव के कार्यकाल विस्तार के लिये सरकार की अनुशंसा की आवश्यकता रखी गई है।
      • स्थापित मानदंडों से यह विचलन संवैधानिक तर्क के प्रति न्यायालय की सुसंगतता और अनुपालन के संबंध में सवाल खड़े करता है।
  • हितों के टकराव के आरोप और कार्यकाल विस्तार के मानदंड:
    • हितों के टकराव के आरोपों का सामना कर रहे मुख्य सचिव के कार्यकाल विस्तार ने ‘पूर्ण औचित्य’ और ‘सार्वजानिक हित’ जैसे मानदंड को चुनौती दी।
      • सरकार का मुख्य सचिव से भरोसा खोने के साथ, इन चिंताओं को दूर करने में न्यायालय की विफलता कार्यकाल विस्तार की वैधता के बारे में संदेह पैदा करती है।
  • मुख्य सचिव की भूमिका और पूर्व-दृष्टांतों की अनदेखी:
    • न्यायालय का हालिया आदेश मुख्य सचिव की भूमिका पर उसके पूर्व के रुख का खंडन करता है, जैसा कि रोयप्पा मामले (1974) में रेखांकित हुआ था।
      • रोयप्पा मामले में न्यायालय ने माना था कि मुख्य सचिव का पद अत्यंत भरोसे का पद है, क्योंकि वह ‘प्रशासन की मुख्य धुरी’ होता है; इसलिये उसके और मुख्यमंत्री के बीच तालमेल का होना आवश्यक है।
    • न्यायालय ने आरंभ में तो रोयप्पा मामले में व्यक्त अपने रुख की अनदेखी की, लेकिन बाद में चुनिंदा रूप से इसकी टिप्पणियों को शामिल कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप विधि की त्रुटिपूर्ण व्याख्या की स्थिति बनी।
  • नियुक्ति के संबंध दिल्ली सरकार की स्थिति की गलत व्याख्या:
    • न्यायालय ने यह मान लिया कि दिल्ली सरकार मुख्य सचिव की नियुक्ति में केंद्र सरकार के अधिकार को पूरी तरह से खारिज करने की इच्छा रखती है।
      • हालाँकि, वास्तव में दिल्ली सरकार न्यायालय की व्याख्या का विरोध करते हुए एक संयुक्त नियुक्ति प्रक्रिया की वकालत करती है।
  • शासन में जवाबदेही शृंखला का टूटना:
    • मुख्य सचिव द्वारा सरकार का भरोसा खो देने की स्थिति में भी जवाबदेही में कमी को चिह्नित कर सकने में न्यायालय की विफलता शासन संबंधी मामलों में अविश्वास को आगे बढ़ाती है।
      • यह लापरवाही या चूक, सेवा संबंधी निर्णयों में जवाबदेही पर बल देने के न्यायालय के पूर्व के रुख का खंडन करती है।
  • दिल्ली सरकार की क्षमता के अंतर्गत विविध विषयों की उपेक्षा:
    • न्यायालय ने दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र के तहत 100 से अधिक विषयों में मुख्य सचिव की भागीदारी को नज़रअंदाज़ कर दिया।
      • केंद्र सरकार के मामलों से मुख्य सचिव की संबद्धता पर बल देते हुए, न्यायालय ने उसकी ज़िम्मेदारियों के व्यापक दायरे की उपेक्षा की।

आगे की राह

  • विशेषज्ञ समिति का गठन:
    • इस मुद्दे को सुलझाने के लिये अनुशंसाएँ करने हेतु विधिक, संवैधानिक और प्रशासनिक विशेषज्ञों की एक विशेषज्ञ समिति गठित की जा सकती है।
    • इस समिति को विधिक एवं प्रशासनिक पहलुओं का गहन विश्लेषण करना चाहिये, पूर्व-दृष्टांतों की समीक्षा करनी चाहिये और व्यावहारिक समाधान प्रस्तावित करना चाहिये जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कायम रखें और केंद्र सरकार एवं दिल्ली की निर्वाचित सरकार के बीच शक्ति का नाजुक संतुलन बनाए रखें।
  • संवाद और सुलह वार्ता:
    • मुद्दे के समाधान के लिये केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच सार्थक संवाद एवं सुलह वार्ता आवश्यक है।
    • दोनों पक्षों को अपनी-अपनी चिंताओं एवं हितों पर चर्चा करने के लिये एक साथ आना चाहिये और एक पारस्परिक रूप से सहमत समाधान की तलाश करनी चाहिये जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों एवं राष्ट्रीय राजधानी के रूप में दिल्ली की अद्वितीय स्थिति का सम्मान करता हो।
  • संवैधानिक सिद्धांतों का सम्मान:
    • समाधान की पूरी प्रक्रिया में सभी हितधारकों के लिये लोकतांत्रिक प्रशासन, शक्तियों के पृथक्करण और निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधिकारों सहित संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने के लिये प्रतिबद्धता प्रदर्शित करना महत्त्वपूर्ण है।
    • संवैधानिक ढाँचे का सम्मान करने से मुद्दे को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हल करने के लिये एक ठोस आधार प्राप्त होगा।

निष्कर्ष:

सर्वोच्च न्यायालय, जिसने पूर्व में सेवाओं पर निर्वाचित सरकार के नियंत्रण के महत्त्व पर बल दिया था, अब मुख्य सचिव के कार्यकाल के एकपक्षीय विस्तार की अनुमति देकर अपने रुख से पलट गया है। न्यायालय द्वारा कानूनी सिद्धांतों का चयनात्मक अनुप्रयोग, जैसे कि रोयप्पा मामले की अवहेलना और चुनिंदा टिप्पणियाँ, इसके निर्णयों की सुसंगतता एवं अखंडता पर सवाल उठाता है। यह निर्णय न केवल संवैधानिक तर्क को कमज़ोर करता है बल्कि शासन के मामलों में निर्वाचित सरकार और नौकरशाही के बीच के नाजुक संतुलन को भी खतरे में डालता है।

The document The Hindi Editorial Analysis- 19th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC is a part of the UPSC Course Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly.
All you need of UPSC at this link: UPSC
2218 docs|810 tests

Top Courses for UPSC

2218 docs|810 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Extra Questions

,

ppt

,

practice quizzes

,

Exam

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

The Hindi Editorial Analysis- 19th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

shortcuts and tricks

,

Important questions

,

mock tests for examination

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

The Hindi Editorial Analysis- 19th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Viva Questions

,

Semester Notes

,

The Hindi Editorial Analysis- 19th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Summary

,

Objective type Questions

,

past year papers

,

video lectures

,

Sample Paper

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

Free

,

pdf

,

study material

,

MCQs

;