डिज़ाइन-लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना—जो ‘भारत का सेमीकंडक्टर मिशन’ (ISM) का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है, के मध्यावधि मूल्यांकन का समय निकट आ रहा है। पाँच वर्षों की अवधि में 100 स्टार्ट-अप्स का समर्थन करने के अपने लक्ष्य के बावजूद, केवल 7 को ही मंज़ूरी दी गई है, जिससे योजना के पुनर्मूल्यांकन और संभावित पुनरुद्धार की मांग उठी है।
भारत एक ग्लोबल सेमीकंडक्टर हब बनने की आकांक्षा रखता है, लेकिन सेमीकंडक्टर चिप की कमी ने आपूर्ति शृंखला में कमज़ोरियों को रेखांकित किया है, जिससे घरेलू विनिर्माण क्षमता बढ़ाने की तात्कालिकता पर बल पड़ा है।
विद्युत चालकता के मामले में कंडक्टर और इंसुलेटर के बीच स्थित मध्यवर्ती क्रिस्टलीय ठोस पदार्थों का कोई भी वर्ग सेमीकंडक्टर (Semiconductors) के रूप में जाना जाता है।
DLI योजना को प्रतिबंधात्मक स्वामित्व शर्तों, भारी लागत और सीमित प्रोत्साहन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे सेमीकंडक्टर डिज़ाइन क्षमताओं को विकसित करने की दिशा में ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता महसूस हो रही है। आवश्यक संशोधनों में स्वामित्व को विकास से अलग करना, वित्तीय सहायता बढ़ाना और नोडल एजेंसी की भूमिका पर पुनर्विचार करना शामिल होना चाहिये। एक सक्षम संस्थान के नेतृत्व में एक पुनर्निर्देशित नीति हाई-टेक सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भारत की पकड़ स्थापित करते समय कुछ विफलताओं को सहन कर सकने में सक्षम होगी।
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