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Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): January 2024 UPSC Current Affairs | पर्यावरण (Environment) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

जलवायु लक्ष्यों और जैवविविधता संरक्षण का संतुलन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है जिसका शीर्षक है- जलवायु लक्ष्यों और जैव-विविधता संरक्षण को संतुलित करना: भूमि-आधारित कार्बन निष्कासन के लिये 30x30 लक्ष्य के कानूनी निहितार्थ (Balancing climate goals and biodiversity protection: legal implications of the 30x30 target for land-based carbon removal), यह शीर्षक भूमि-आधारित कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन हेतु (CDR) रणनीतियों और संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना के बीच संघर्ष को उजागर करता है।

अध्ययन के मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • सीमित भूमि उपलब्धता:
    • भूमि उपलब्धता की सीमाएँ जैव-विविधता लक्ष्य और भूमि-आधारित जलवायु शमन रणनीतियों दोनों को लागू करने में एक महत्त्वपूर्ण चुनौती हैं।
    • CDR गतिविधियों के लिये देशों द्वारा भूमि के महत्त्वपूर्ण हिस्से को गिरवी रखने से, सीमित भूमि उपलब्धता के कारण संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना के लिये एक चुनौती उत्पन्न हो गई है।
  • वैश्विक लक्ष्य और वर्तमान स्थिति:
    • राष्ट्र वर्ष 2030 तक विश्व के 30% स्थलीय और समुद्री क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये "30x30" जैव- विविधता लक्ष्य हेतु प्रतिबद्ध हुए हैं। हालाँकि वर्ष 2023 तक संरक्षित क्षेत्र केवल 16% स्थलीय क्षेत्रों और 8% समुद्री क्षेत्रों को कवर करते हैं, जो कि 30x30 के लक्ष्य से कम है।
    • 30×30 लक्ष्य एक वैश्विक लक्ष्य है जिसका उद्देश्य प्रजातियों के तेज़ी से हो रहे नुकसान को रोकना और महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करना है जो हमारी आर्थिक सुरक्षा का स्रोत हैं।
  • भूमि उपयोग और संघर्ष:
    • कुछ भूमि-आधारित शमन रणनीतियाँ भूमि उपयोग की बाधाओं के कारण अधिक संरक्षित क्षेत्रों को स्थापित करने की आवश्यकता के साथ संघर्ष करती हैं।
    • CDR की बड़े पैमाने पर तैनाती के परिणामस्वरूप जैवविविधता को हानि हो सकती है और खाद्य फसल उत्पादन में उपयोग की जाने वाली भूमि के लिये प्रतिस्पर्द्धा हो सकती है।
  • लक्ष्य की अपर्याप्तता:
    • 30x30 लक्ष्य की महत्त्वाकांक्षी प्रकृति के बावजूद, शोधकर्त्ताओं का अनुमान है कि जैवविविधता को प्रभावी ढंग से संरक्षित करने के लिये वैश्विक भूमि का कम से कम 44% संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत होना चाहिये।
    • इसके अलावा, अकेले CDR गतिविधियाँ ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 या 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये पेरिस समझौते में उल्लिखित लक्ष्यों को पूरा नहीं कर सकती हैं।
  • कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
    • प्रश्न उठते हैं कि खाद्य उत्पादन का विस्तार और CDR रणनीतियों को लागू करते समय देश संरक्षित क्षेत्रों एवं बहाली के लिये अतिरिक्त भूमि किस प्रकार आवंटित करेंगे।
    • इन उद्देश्यों को संतुलित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
  • कानूनी परिप्रेक्ष्य:
    • जबकि कुछ भूमि-आधारित CDR दृष्टिकोण जैवविविधता को लाभ पहुँचा सकते हैं, वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून समान अधिग्रहित भूमि पर संरक्षित क्षेत्रों के साथ CDR तकनीकों के कार्यान्वयन को नहीं रोकता है।
  • सिफारिशें:
    • CDR नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो जैवविविधता की रक्षा करते हुए ग्रीनहाउस गैसों को प्रभावी ढंग से अवशोषित करती हैं। वे जलवायु परिवर्तन को कम करने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं, यह कहते हुए कि जैवविविधता के लिये इससे होने वाला खतरा अन्य चिंताओं से कहीं अधिक है।

बायोडायवर्सिटी क्रेडिट

चर्चा में क्यों?

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (KMGBF) के तहत निर्धारित विभिन्न लक्ष्यों पर वित्तपोषण के रूप में बायोडायवर्सिटी क्रेडिट अथवा बायोक्रेडिट को तेज़ी से आगे बढ़ाया जा रहा है।

  • जैवविविधता अभिसमय (CBD) पर पक्षकारों के सम्मेलन (CoP15) की 15वीं बैठक में स्थापित किया गया KMGBF, जैवविविधता संरक्षण, सतत् उपयोग एवं न्यायसंगत लाभ साझाकरण के लिये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करता है। 

बायोडायवर्सिटी क्रेडिट क्या है?

  • परिचय:
    • बायोडायवर्सिटी क्रेडिट एक वित्तीय साधन है जिसे जैवविविधता-समृद्ध क्षेत्रों के संरक्षण, पुनर्स्थापन तथा सतत् उपयोग के लिये धन जुटाने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
    • ये कार्बन क्रेडिट के समान ही कार्य करते हैं किंतु नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के स्थान पर इनका उपयोग विशेष रूप से जैवविविधता संरक्षण पर केंद्रित है।
    • बायोडायवर्सिटी क्रेडिट का मुख्य उद्देश्य CBD के तहत KMGBF जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों द्वारा उल्लिखित जैवविविधता के संरक्षण तथा पुनर्स्थापन के लक्ष्यों के अनुरूप पहल के लिये निजी निवेश को आकर्षित करना है।
  • बायोडायवर्सिटी क्रेडिट एलायंस:
    • बायोक्रेडिट को प्रोत्साहन देने के लिये CBD के CoP15 में बायोडायवर्सिटी क्रेडिट एलायंस लॉन्च किया गया था।
    • वर्ष 2023 तक विभिन्न मंचों के माध्यम से इन्हें प्रोत्साहन देने का प्रयास किया गया। दिसंबर 2023 में दुबई में आयोजित UNFCCC के CoP28 में इससे संबंधित गहन चर्चा की गई।
    • इसका उद्देश्य सरकारी निकायों, गैर-लाभकारी संस्थाओं तथा निजी उद्यमों सहित विभिन्न हितधारकों के बीच समर्थन जुटाना एवं जागरूकता फैलाना है।
  • क्रियान्वयन एवं पहल:
    • महासागर संरक्षण प्रतिबद्धताएँ (OCC): महासागर संरक्षण प्रतिबद्धताओं (Ocean Conservation Commitments- OCC) को सितंबर 2023 में न्यूए (Niue) के मोआना महू संरक्षित समुद्री क्षेत्र (127,000 वर्ग किलोमीटर) के लिये लॉन्च किया गया था।
    • OCC इच्छुक खरीदारों द्वारा खरीद के लिये उपलब्ध हैं जिसमें प्रत्येक OCC 20 वर्षों के लिये संरक्षण प्रयासों का समर्थन करने की प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करता है।
    • 148 अमेरिकी डॉलर प्रति OCC की कीमत पर, इन प्रतिबद्धताओं ने ब्लू नेचर एलायंस, कंज़र्वेशन इंटरनेशनल तथा निजी दानदाताओं जैसे गैर-सरकारी संगठनों से निवेश जुटाने का सफल कार्य किया है।
    • वालेसिया ट्रस्ट: जैवविविधता तथा जलवायु अनुसंधान पर केंद्रित यूनाइटेड किंगडम स्थित इस संगठन ने जैवविविधता क्रेडिट के लिये 5 मिलियन की पर्याप्त वित्तीय राशि उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता जताई है। इसकी भागीदारी संरक्षण प्रयासों का समर्थन करने के लिये जैवविविधता क्रेडिट का उपयोग करने में अनुसंधान-उन्मुख संस्थाओं की रुचि का संकेत देती है।
  • चुनौतियाँ और अनिश्चितताएँ:
    • पर्याप्त क्षमता के बावजूद, जैवविविधता क्रेडिट की सफलता निश्चित नहीं है। इसके समक्ष चुनौतियों में नियामक ढाँचे, मूल्य निर्धारण संरचनाएँ शामिल हैं जो खरीदारों तथा विक्रेताओं दोनों के लिये निष्पक्षता तथा यह सुनिश्चित करती हैं कि ये तंत्र वास्तव में कॉर्पोरेट हितों के स्थान पर जैवविविधता संरक्षण के लिये कार्य करते हैं।

आगे की राह

  • जैवविविधता क्रेडिट की अवधारणा कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (KMGBF) में उल्लिखित जैवविविधता संरक्षण के लिये आवश्यक वित्तीय अंतर को कम करती है। हालाँकि विनियमन, वास्तविक संरक्षण प्रभाव एवं जैवविविधता लक्ष्यों के साथ संरेखण के बारे में महत्त्वपूर्ण विचार सतर्क और सावधानीपूर्वक कार्यान्वयन की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
  • यह तुरंत पता लगाना महत्त्वपूर्ण है कि उन्हें कैसे विनियमित किया जाना चाहिये और उनकी निगरानी किस प्रकार की जानी चाहिये। यह सुनिश्चित करना होगा कि वस्तु के मूल्य का निर्धारण विक्रेताओं के साथ-साथ खरीदारों के लिये भी उचित हो।
  • ब्रिटेन और फ्राँसीसी सरकारें उच्च-अखंडता जैवविविधता क्रेडिट बाज़ार के लिये एक रोडमैप तैयार करने में अग्रणी हैं।
  • इस बात को ध्यान में रखते हुए यह कठिन होगा क्योंकि अधिकांश बायोक्रेडिट समर्थक वाणिज्यिक क्षेत्र से हैं और जैवविविधता के बजाय जैवविविधता विनाश को किर्यांवित करने वाली फर्मों के हितों की रक्षा करने के इच्छुक हैं।

स्वच्छ वायु लक्ष्य में विविध प्रगति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में क्लाइमेट ट्रेंड्स (Climate Trends) तथा रेस्पायरर लिविंग साइंसेज़ (Respirer Living Sciences) ने एक अध्ययन किया जिसके अनुसार भारत के अधिकांश शहर राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Campaign- NCAP) के स्वच्छ वायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहे हैं।

अध्ययन से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • PM2.5 स्तर में कमी का अभाव:
    • पाँच वर्षों में निरंतर PM2.5 डेटा वाले 49 शहरों में से केवल 27 शहरों में PM2.5 के स्तर में गिरावट देखी गई जबकि केवल चार शहर राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) लक्ष्यों के अनुसार लक्षित गिरावट को पूरा कर पाए अथवा उससे बेहतर कर पाए।
    • NCAP का लक्ष्य 131 शहरों में वर्ष 2026 तक औसत पार्टिकुलेट मैटर (PM) सांद्रता को 40% तक कम करना है।
    • प्रारंभ में वर्ष 2024 तक 20-40% की कटौती का लक्ष्य रखा गया था जिसे बाद में वर्ष 2026 तक विस्तारित कर दिया गया।
  • सभी शहरों में मिश्रित प्रगति:
    • वाराणसी, आगरा तथा जोधपुर जैसे कुछ शहरों में PM2.5 के स्तर में उल्लेखनीय कमी देखी गई जबकि दिल्ली सहित अन्य शहरों में मानक स्तर में मामूली गिरावट (केवल 5.9%) दर्ज की गई और साथ ही कई शहरों में प्रदूषण भार में वृद्धि दर्ज की गई।
    • वाराणसी में वर्ष 2019 से वर्ष 2023 तक PM2.5 के स्तर में 72% की औसत कमी तथा PM10 के स्तर में 69% की कमी के साथ सबसे बड़ा सुधार देखा गया।
  • क्षेत्रीय सुभेद्यता:
    • इंडो-गैंगेटिक प्लेन (IGP) उच्च कणिका पदार्थ सांद्रता के प्रति अत्यधिक सुभेद्य/संवेदनशील बना हुआ है और PM2.5 वाले शीर्ष 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से लगभग 18 शहर इसी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
    • IGP के बाहर, केवल गुवाहाटी और राउरकेला, PM 2.5 के लिये 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से थे।
  • निगरानी चुनौतियाँ:
    • निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता मॉनिटर की उपलब्धता और वितरण वार्षिक प्रदूषक सांद्रता को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
    • हालाँकि, कई भारतीय शहरों में पर्याप्त संख्या में ऐसे निगरानी स्टेशनों का अभाव है।
    • जहाँ मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में ऐसे कई स्टेशन हैं, तो वहीं अधिकांश भारतीय शहरों में केवल कुछ ही हैं।
    • 92 शहरों में से केवल चार में 10 से अधिक ऐसे स्टेशन हैं।
  • प्रदूषण को प्रभावित करने वाले कारक:
    • प्रदूषण के स्तर में भिन्नता के लिये भौगोलिक स्थान, विविध उत्सर्जन स्रोत, मौसम संबंधी प्रभाव और उत्सर्जन एवं मौसम विज्ञान के बीच अंतरसंबंध को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसके लिये आगामी जाँच की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम क्या है?

  • इसे जनवरी 2019 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forests and Climate Change- MoEFCC) द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • समयबद्ध रूप से वायु प्रदुषण में कमी के लक्ष्य के साथ वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये एक राष्ट्रीय फ्रेमवर्क तैयार करने का यह देश में पहला प्रयास है।
  • NCAP का लक्ष्य 131 शहरों में वर्ष 2026 तक औसत कणिका पदार्थ/पार्टिकुलेट मैटर (PM) सांद्रता को 40% तक कम करना है। प्रारंभ में वर्ष 2024 तक 20-40% की कटौती का लक्ष्य रखा गया था, बाद में लक्ष्य को वर्ष 2026 तक बढ़ा दिया गया।
  • इसमें 131 गैर-प्राप्ति वाले शहर शामिल हैं जिनकी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) द्वारा पहचान की गई थी।
  • गैर-प्राप्ति शहर वे हैं जिन्होंने 5 वर्षों से अधिक समय से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality Standards- NAAQS) को पूरा नही किया है।
  • NAAQ वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत CPCB द्वारा अधिसूचित चिह्नित किये गए प्रदूषकों के संदर्भ में परिवेशी वायु गुणवत्ता के मानक हैं। 
    • NAAQS के तहत प्रदूषकों की सूची: PM10, PM2.5, SO2, NO2, CO, NH3, ओज़ोन, सीसा, बेंज़ीन, बेंज़ो-पाइरीन, आर्सेनिक और निकल।
  • गैर-प्राप्ति शहरों में वायु-प्रदूषण के विनियमन के लिये पोर्टल PRANA (Portal for Regulation of Air-pollution in Non-Attainment cities), NCAP के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये एक पोर्टल है।

प्रोजेक्ट टाइगर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में टाइगर रिज़र्व (55) की स्थापना तथा महत्त्वपूर्ण वन्यजीव संरक्षण कानूनों को कार्यांवित कर समय के साथ बाघ संरक्षण पहल में विकास किया गया है।

  • हालाँकि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 तथा वन अधिकार अधिनियम, 2006 के उल्लंघन के कारण वन प्रशासन तथा वनवासियों के बीच टाइगर रिज़र्व में संघर्ष की स्थिति बढ़ गई है।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दो प्रमुख कार्यक्रमों प्रोजेक्ट टाइगर (PT) एवं प्रोजेक्ट एलीफेंट को प्रोजेक्ट टाइगर एंड एलीफेंट (Project Tiger and Elephant- PTE) के रूप में एकीकृत करने की घोषणा की।

बाघ संरक्षण में कौन-सी कमियाँ हैं?

  • वन्यजीव संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 के तहत विकास परियोजनाओं के लिये "बाघ के वन" के डायवर्ज़न पर रोक नहीं लगाई गई तथा यदि वन्यजीवों से मानव जीवन को खतरा होता है तो उन्हें अंतिम उपाय के रूप में मारने की अनुमति दी जाती है।
  • सरकार ने वर्ष 2009 में FRA नियमों को अधिसूचित करने तथा अधिनियम को क्रिर्यांवित करने की योजना बनाई।
  • किंतु नवंबर 2007 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA) ने एक आदेश पारित किया जिसमें मुख्य वन्यजीव वार्डनों को 800-1,000 वर्ग किमी. के क्षेत्र वाले क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट्स (CTH) को अंकित करने का प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिये 13 दिनों का समय दिया गया। 
  • परिणामस्वरूप सरकार ने WLPA की धारा 38 (V) के प्रावधानों का अनुपालन किये बिना 12 राज्यों में 26 टाइगर रिज़र्व को संबद्ध अधिसूचना जारी की।
  • सिमिलिपाल, ओडिशा में टाइगर रिज़र्व, क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट्स में बफर क्षेत्र का अभाव था।
  • 2012 में ही उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्देश के बाद शामिल किया गया था, जिसने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को तीन महीने का अल्टीमेटम दिया था।
  • टाइगर टास्क फोर्स ने पाया कि बंदूकें, गार्ड और बाड़ का उपयोग करने का दृष्टिकोण बाघों की रक्षा नहीं कर रहा था, और वन/वन्यजीव नौकरशाही और बाघों के साथ सह-अस्तित्व रखने वालों के बीच बढ़ता संघर्ष आपदा का एक प्रकार था।

बाघ संरक्षण के लिये पहल

प्रोजेक्ट टाइगर:

  • परिचय:
    • प्रोजेक्ट टाइगर भारत में एक वन्यजीव संरक्षण पहल है जिसे वर्ष 1973 में शुरू किया गया था।
    • प्रोजेक्ट टाइगर का प्राथमिक उद्देश्य समर्पित टाइगर रिज़र्व बनाकर बाघों की आबादी के प्राकृतिक आवासों में अस्तित्त्व और रखरखाव सुनिश्चित करना है।
    • 9,115 वर्ग किमी में फैले केवल नौ अभ्यारण्यों से शुरू होकर, इस परियोजना ने वन्यजीव संरक्षण प्रयासों में एक आदर्श बदलाव को चिह्नित किया है।
  • बाघ गणना की विधि: 
    • वर्ष 1972 में पहली बाघ ज़नगणना की अविश्वसनीय पग-चिह्न विधि ने कैमरा-ट्रैप विधि जैसी अधिक सटीक तकनीकों का मार्ग प्रशस्त किया।
  • बाघों की जनसंख्या में वृद्धि: 
    • 1972 में पहली बाघ जनगणना में 1,827 बाघों की गिनती के लिये अविश्वसनीय पग-चिह्न पद्धति का उपयोग किया गया था।
    • 2022 तक, बाघों की आबादी 3,167-3,925 होने का अनुमान है, जो प्रतिवर्ष 6.1% की वृद्धि दर को दर्शाता है।
  • अब भारत विश्व के तीन-चौथाई बाघों का घर है।
  • टाइगर रिज़र्व:
    • 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर 9,115 वर्ग कि.मी. में फैले नौ अभ्यारण्यों के साथ शुरू हुआ। 2018 तक यह विभिन्न राज्यों में 55 रिज़र्व तक बढ़ गया था, जो कुल 78,135.956 वर्ग किमी या भारत के भूमि क्षेत्र का 2.38% था।
  •  वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972:
    • वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 वन्य जीवों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों की सुरक्षा, उनके आवासों के प्रबंधन, वन्य जीवों, पादपों तथा उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (Wildlife (Protection) Act- WLPA), 1972 में बाघ संरक्षण के लिये आधार तैयार किया गया। इसने राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना की, राज्य सरकारों के पक्ष में अधिकारों को अलग किया तथा क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट्स (Critical Tiger Habitat- CTH) की अवधारणा को पेश किया।
    • वर्ष 2006 में WLPA में संशोधन से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA) और एक व्यापक बाघ संरक्षण योजना का निर्माण हुआ।
    • इसने बाघ संरक्षण, वन संरक्षण और स्थानीय समुदायों की भलाई के बीच अविभाज्य संबंध को स्वीकार करते हुए, पूर्व के कैप्टिव संरक्षण दृष्टिकोण से बदलाव को चिह्नित किया।
  • टाइगर टास्क फोर्स:
    • वर्ष 2005 में बाघ संरक्षण के बारे में चिंताओं से प्रेरित टाइगर टास्क फोर्स के गठन ने पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। टास्क फोर्स ने मौजूदा रणनीति में कमियों को उजागर किया जो हथियारों, वनरक्षकों एवं बाड़ों पर बहुत अधिक निर्भर थी।

वन अधिकार मान्यता अधिनियम, 2006 क्या है?

  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अधिनियमन ने समुदायों में प्रथागत एवं पारंपरिक वन अधिकारों को मान्यता दी।
  • इसने ग्राम सभाओं को अपनी सीमाओं के भीतर वन संसाधनों और जैवविविधता का लोकतांत्रिक ढंग से प्रबंधन करने का अधिकार दिया।
  • महत्त्वपूर्ण वन्यजीव पर्यावास  (Critical Wildlife Habitat- CWH): 
    • वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act- FRA) ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA) के तहत क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (CTH) की भाँति एक 'क्रिटिकल वाइल्डलाइफ हैबिटेट' (CWH) की शुरुआत की।
    • हालाँकि एक महत्त्वपूर्ण अंतर यह था कि एक बार CWH अधिसूचित हो जाने के बाद, इसे गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये पुनर्निर्देशित नहीं किया जा सकता था। बातचीत के दौरान आदिवासी आंदोलनों द्वारा इस विशेष खंड पर ज़ोर दिया गया था।
    • क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट्स (CTH) 42,913.37 वर्ग किमी. या राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के अंतर्गत 26% क्षेत्र को कवर करता है।
    • ग्राम सभाओं को अपनी पारंपरिक सीमाओं के भीतर जंगल, वन्य जीवन और जैवविविधता की सुरक्षा, संरक्षण एवं निगरानी करने का अधिकार दिया गया था।

निष्कर्ष

वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर से लेकर वर्ष 2006 के संशोधनों द्वारा NTCA के निर्माण तक की यात्रा बाघ संरक्षण और टिकाऊ सह-अस्तित्व के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। सामुदायिक सशक्तीकरण का एकीकरण, वन अधिकारों की मान्यता और वन्यजीव संरक्षण के लिये एक सूक्ष्म दृष्टिकोण वन्यजीव संरक्षण में एक समग्र प्रतिमान प्रदर्शित करता है।


हिम तेंदुओं के लिए संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम

पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क (PNHZP), पश्चिम बंगाल जिसे आमतौर पर दार्जिलिंग चिड़ियाघर के रूप में भी जाना जाता है, ने हिम तेंदुओं के लिये अपने सफल संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम (Conservation Breeding Programme- CBC) हेतु वर्ल्ड एसोसिएशन फॉर ज़ू एंड एक्वेरियम (WAZA) से अंतर्राष्ट्रीय मान्यता हासिल की है।
यह मान्यता वन्यजीव संरक्षण और संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के प्रति चिड़ियाघर के समर्पण का एक प्रमाण है।

दार्जिलिंग चिड़ियाघर में हिम तेंदुओं के संरक्षण के प्रयास क्या हैं?

  • परिचय:
    • भारत में एकमात्र दार्जिलिंग चिड़ियाघर में हिम तेंदुओं के लिये संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम है।
    • हिम तेंदुओं के अलावा, इसमें रेड पांडा, पहाड़ी ओरल और तीतर लिये संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम हैं।
    • दार्जिलिंग चिड़ियाघर भारत का सबसे ऊँचाई पर स्थित सबसे बड़ा चिड़ियाघर है।
  • संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम:
    • पहला गैर-स्थानिक संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1986 में हिम तेंदुए संरक्षण प्रजनन परियोजना के रूप में हुई।
    • दार्जिलिंग चिड़ियाघर में CBC के तहत वर्ष 1989 में हिम तेंदुए का पहला जन्म दर्ज किया गया। वर्तमान में चिड़ियाघर में CBC के तहत 77 हिम तेंदुओं का जन्म हो चुका है जो वन्यजीव संरक्षण में एक उल्लेखनीय उपलब्धि है।
    • हिम तेंदुओं के प्रजनन में चिड़ियाघर की सफलता का श्रेय नर व मादा हिम तेंदुओं की सावधानीपूर्वक जोड़ी बनाने, बाड़ों के भीतर एक प्राकृतिक वातावरण बनाने तथा अंतःप्रजनन (Inbreeding) से बचने के लिये एक विस्तृत आनुवंशिक कोश/पूल का उपयोग करने को दिया जा सकता है।
    • नर व मादा तेंदुओं की जोड़ी बनाने से पूर्व अनुनय/संबंध विकसित करने के लिये उन्हें निकटवर्ती बाड़ों में रखा जाता है। उनकी अनुकूलता की पुष्टि होने पर उनकी जोड़ी बनाकर उन्हें एक ही बाड़े में रखा जाता है।
    • गर्भवती होने की स्थिति में मादा तेंदुओं को अलग कर दिया जाता है तथा नियमित रक्त परीक्षण एवं शरीर के भार की निगरानी के साथ उन्हें 24X7 CCTV निगरानी में रखा जाता है।
    • चिड़ियाघर सभी बंदी जानवरों के लिये उच्चतम जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल का अनुपालन करता है जिसमें परजीवियों से सुरक्षा हेतु नियमित जाँच, कृमि मुक्ति एवं उन्नत पशु चिकित्सा सुविधाएँ शामिल हैं।

बुक्सा टाइगर रिज़र्व

पश्चिम बंगाल के बुक्सा टाइगर रिज़र्व (Buxa Tiger Reserve- BTR) में 23 साल के अंतराल के बाद दो सालों में दूसरी बार बाघ (Tiger) की वापसी देखी गई, जिससे एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र और बाघों की आबादी में वृद्धि होने की उम्मीद है।

बुक्सा टाइगर रिज़र्व के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • बुक्सा टाइगर रिज़र्व और नेशनल पार्क 760 वर्ग किलोमीटर में फैला है तथा उत्तरी बंगाल के अलीपुरद्वार ज़िले में स्थित है।
    • बुक्सा टाइगर रिज़र्व की उत्तरी सीमा भूटान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के साथ लगती है। सिंचुला पहाड़ी शृंखला बुक्सा राष्ट्रीय उद्यान के उत्तरी किनारे पर स्थित है तथा पूर्वी सीमा असम राज्य को स्पर्श करती है।
    • टाइगर रिज़र्व में बहने वाली मुख्य नदियाँ- संकोश, रैदक, जयंती, चुर्निया, तुरतुरी, फशखवा, दीमा और नोनानी हैं।
  • गलियारा कनेक्टिविटी:
    • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA) के अनुसार, बुक्सा टाइगर रिज़र्व की कॉरिडोर कनेक्टिविटी की सीमाएँ उत्तर में भूटान के जंगलों को, पूर्व में कोचुगाँव के जंगलों और मानस टाइगर रिज़र्व तथा पश्चिम में जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान को स्पर्श करती हैं।
    • रिज़र्व की कनेक्टिविटी बंगाल बाघों के प्रवासन तथा आनुवंशिक विविधता को बढ़ावा देने में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करती है।
  • वनस्पतिजात:
    • इसके प्रमुख वृक्ष प्रजातियों में साल, चैंप, गमर, सिमुल तथा चिक्रासी शामिल हैं, जो रिज़र्व के विविध एवं जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान देते हैं।
  • प्राणिजात:
    • इसकी प्राथमिक वन्यजीव प्रजातियों में एशियाई हाथी, बाघ, गौर (भारतीय बाइसन), जंगली सूअर, साम्भर तथा जंगली कुत्ता (ढोल) शामिल हैं।
    • बक्सा टाइगर रिज़र्व में संकटग्रस्त जातियों में तेंदुआ बिल्ली (Leopard cat), बंगाल फ्लोरिकन, रीगल अजगर, चीनी पैंगोलिन, हिस्पिड खरगोश तथा हॉग हिरण शामिल हैं।
  • संरक्षण पहल:
    • बाघों के शिकार आधार को बढ़ाने, उनकी वापसी के लिये अनुकूल परिस्थितियों को बढ़ावा देने एवं सफल संरक्षण प्रयासों को प्रदर्शित करने के लिये रिज़र्व में चीतल (चित्तीदार हिरण) की संख्या में वृद्धि करना।
    • बाघों तथा अन्य वन्यजीवों के लिये एक आदर्श आवास बनाने के लिये घासस्थल का विस्तार करने हेतु सक्रिय उपाय किये गए हैं।
    • मानव व वन्यजीवों के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व में सरलता लाने हेतु मानव हस्तक्षेप कम करने, घुसपैठ पर अंकुश लगाने तथा अतिक्रमण को नियंत्रित करने के लिये केंद्रित पहल की शुरुआत की गई है।
    • टाइगर ऑग्मेंटेशन प्रोजेक्ट वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया था, इस सहयोगी परियोजना में राज्य वन विभाग, भारतीय वन्यजीव संस्थान और NTCA शामिल हैं, जो बाघों की जीवसंख्या की निगरानी तथा इनकी वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
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