UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): January 2024 UPSC Current Affairs

Art & Culture (इतिहास

17 से अधिक उत्पादों के लिये जीआई टैग

हाल ही में ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर के 17 से अधिक उत्पादों को भौगोलिक संकेत (Geographical Indication - GI) टैग मिला है।

ओडिशा से किन उत्पादों को GI टैग प्राप्त हुआ है?

  • कपडागंडा शॉल (Kapdaganda Shawl):
    • ओडिशा के रायगढ़ा और कालाहांडी ज़िलों में नियमगिरि पहाड़ियों में विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Group - PVTG) डोंगरिया कोंध जनजाति की महिलाओं द्वारा बुना तथा कढ़ाई की गई शॉल डोंगरिया कोंधों की समृद्ध आदिवासी विरासत को दर्शाता है।
  • लांजिया सौरा पेंटिंग:
    • यह कला लांजिया सौरा समुदाय से संबंधित है, जो एक PVTG है जो मुख्य रूप से रायगड़ा ज़िले में रहता है। 
    • ये पेंटिंग्स घरों की मिट्टी की दीवारों पर चित्रित बाहरी भित्तिचित्रों के रूप में हैं। लाल-मैरून पृष्ठभूमि पर सफेद पेंटिंग दिखाई देती हैं।
  • कोरापुट काला जीरा चावल: 
    • काले रंग के चावल की किस्म, जिसे 'चावल का राजकुमार' भी कहा जाता है, अपनी सुगंध, स्वाद, बनावट और पोषण मूल्य के लिये प्रसिद्ध है।
    • कोरापुट क्षेत्र के आदिवासी किसानों ने लगभग 1,000 वर्षों से चावल की किस्म को संरक्षित रखा है।
  • सिमिलिपाल काई चटनी:
    • लाल चींटियों से बनी चटनी ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के आदिवासियों का पारंपरिक व्यंजन है। ये चींटियाँ सिमिलिपाल जंगलों सहित मयूरभंज के जंगलों में पाई जाती हैं।
  • नयागढ़ कांटेईमुंडी बैंगन:
    • यह बैंगन तने और पूरे पौधे पर काँटेदार काँटों के लिये जाना जाता है। पौधे प्रमुख कीटों के प्रति प्रतिरोधी हैं और इन्हें न्यूनतम कीटनाशकों के साथ उगाया जा सकता है।
  • ओडिशा खजूरी गुड़:
    • ओडिशा का "खजुरी गुड़" खजूर के पेड़ों से निकाला गया एक प्राकृतिक स्वीटनर है और इसकी उत्पत्ति गजपति ज़िले में हुई है। ढेंकनाल माजी:
    • यह भैंस के दूध के पनीर से बनी एक प्रकार की मिठाई है, जो स्वादिष्ट और आकार की दृष्टि से विशिष्ट विशेषताओं से युक्त होती है।

अन्य कौन से उत्पाद हैं जिन्हें जीआई टैग प्राप्त हुआ?

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नृत्य कलानिधि' पुरस्कार

चर्चा में क्यों?

शास्त्रीय नृत्यांगना और कोरियोग्राफर वसंतलक्ष्मी नरसिम्हाचारी को 04 जनवरी, 2024 को चेन्नई में संगीत अकादमी के 17वें नृत्य महोत्सव में ‘नृत्य कलानिधि’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

प्रमुख बिंदु 

  • 17वें नृत्य महोत्सव में भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, कथक, यक्षगान और मोहिनीअट्टम सहित शास्त्रीय कला की कई शैलियों को एकल और समूह दोनों के रूप में प्रदर्शित किया गया।
  • वसंतलक्ष्मी नरसिम्हाचारी भरतनाट्यम, कथकली ,ओडिसी, मोहिनीअट्टम एवं कुचिपुड़ी की नृत्यांगना हैं।
  • वसंतलक्ष्मी नरसिम्हाचारी ने वर्ष 1969 में कलासमर्पण फाउंडेशन की स्थापना ललित कला के प्रचार और संवर्धन के लिए किया।
  • कर्नाटक गायिका बॉम्बे जयश्री को गायन के लिए वर्ष 2023 के संगीत अकादमी के संगीत कलानिधि पुरस्कार के लिये चुना गया।
  • संगीता कलानिधि पुरस्कार को कर्नाटक संगीत के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान माना जाता है। इसकी स्थापना 1942 में की गई थी।

नृत्य कलानिधि पुरस्कार

  • इसे मद्रास संगीत अकादमी द्वारा हर वर्ष नृत्य के क्षेत्र में प्रदान किया जाता है ।

मद्रास संगीत अकादमी

  • यह ललित कला का ऐतिहासिक संस्थान है।
  •  यह दिसंबर,1927 में मद्रास में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस सत्र की एक शाखा के रूप में स्थापित किया गया।
  • इसकी कल्पना कर्नाटक संगीत के मानक संस्थान के रूप में किया गया था। 
  • यह संस्थान संगीत कलानिधि, नृत्य कलानिधि, संगीत कला आचार्य जैसे विभिन्न पुरस्कार भी प्रदान करता है ।

कर्नाटक संगीत

  • कर्नाटक संगीत दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत है।
  • कर्नाटक संगीत का विकास दक्षिण भारतीय राज्यों तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में हुआ है।
  • कर्नाटक संगीत में एक अत्यंत विकसित सैद्धांतिक प्रणाली है। यह रागम (राग) और थालम (ताल) की एक जटिल प्रणाली पर आधारित है। 
  • त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की 'त्रिमूर्ति' कहा जाता है, जबकि पुरंदरदास को कर्नाटक संगीत का जनक माना जाता है।
  • कर्नाटक संगीत के विषयों में पूजा-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति शामिल हैं।

कर्नाटक गायन शैली के प्रमुख रूप

  • वर्णम:
    • इसके तीन मुख्य भाग पल्लवी, अनुपल्लवी तथा मुक्तयीश्वर होते हैं। वास्तव में इसकी तुलना हिंदुस्तानी शैली के ठुमरी के साथ की जा सकती है।
  • जावाली:
    • यह प्रेम प्रधान गीतों की शैली है। भरतनाट्यम के साथ इसे विशेष रूप से गाया जाता है। इसकी गति काफी तेज होती है।
  • तिल्लाना: 
    • उत्तरी भारत में प्रचलित तराना के समान ही कर्नाटक संगीत में तिल्लाना शैली होती है। यह भक्ति प्रधान गीतों की गायन शैली है।

तिरुवल्लुवर

प्रधानमंत्री ने तमिल कवि और दार्शनिक तिरुवल्लुवर को उनकी जयंती ‘तिरुवल्लुवर दिवस’ (Thiruvalluvar Day ) के अवसर पर याद किया। वर्तमान समय में इसे आमतौर पर तमिलनाडु में 15 या 16 जनवरी को मनाया जाता है और यह पोंगल समारोह का एक हिस्सा है।

प्रमुख बिंदु

परिचय:

  • तिरुवल्लुवर जिन्हें वल्लुवर भी कहा जाता है, एक तमिल कवि-संत थे।
  • धार्मिक पहचान के कारण उनकी कालावधि के संबंध में विरोधाभास है सामान्यतः उन्हें तीसरी-चौथी या आठवीं-नौवीं शताब्दी का माना जाता है।
  • सामान्यतः उन्हें जैन धर्म से संबंधित माना जाता है। हालाँकि हिंदुओं का दावा है कि तिरुवल्लुवर हिंदू धर्म से संबंधित थे।
  • द्रविड़ समूहों (Dravidian Groups) ने उन्हें एक संत माना क्योंकि वे जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते थे।
  • उनके द्वारा संगम साहित्य में तिरुक्कुरल या 'कुराल' (Tirukkural or ‘Kural') की रचना की गई थी।
  • तिरुक्कुरल में 10 कविताएँ व 133 खंड शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक को तीन पुस्तकों में विभाजित किया गया है:
  • अराम- Aram (सदगुण- Virtue)।
  • पोरुल- Porul (सरकार और समाज)।
  • कामम- Kamam (प्रेम)।
  • तिरुक्कुरल की तुलना विश्व के प्रमुख धर्मों की महान पुस्तकों से की गई है।
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FAQs on Art & Culture (इतिहास

1. जीआई टैग क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: जीआई टैग एक प्रौद्योगिकी है जो उत्पादों को अद्वितीय पहचान देने के लिए उपयोग की जाती है। इसका महत्व उत्पादों की असलीता और मूल्य को सुनिश्चित करने में है।
2. जनवरी 2024 की तारीख में कला और संस्कृति कैसे जुड़े हो सकते हैं?
उत्तर: जनवरी 2024 के समय में कला और संस्कृति को एक जीआई टैग के माध्यम से जोड़ा जा सकता है, जिससे इनका विस्तारित इतिहास और महत्व प्रकट हो सकता है।
3. जीआई टैग कैसे काम करता है?
उत्तर: जीआई टैग एक विशेष प्रकार का टैग होता है जो एक संकेत या कोड के रूप में होता है जो उत्पाद की जानकारी को संग्रहित करता है और उसे पहचानने में मदद करता है।
4. क्या जीआई टैग इतिहास को संज्ञान में लेता है?
उत्तर: हां, जीआई टैग इतिहास को संज्ञान में लेता है क्योंकि यह उत्पादों की पुरानी और ऐतिहासिक महत्वपूर्ण जानकारी को संग्रहित कर सकता है।
5. जीआई टैग की उपयोगिता क्या है और उससे क्या लाभ हो सकता है?
उत्तर: जीआई टैग की उपयोगिता यह है कि यह उत्पादों की पहचान को सुगम और सरल बनाता है और उपभोक्ताओं को सटीक जानकारी प्रदान करने में मदद करता है।
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