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Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): January 2024 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

इदाते आयोग की रिपोर्ट

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भारत में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों (NT, SNT और DNT) की चिंताओं को दूर करने के लिये इदाते आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों को क्रियान्वित करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।

  • NHRC ने सरकार से आभ्यासिक अपराधी अधिनियम, 1952 (Habitual Offenders Act, 1952) को निरस्त करने या अधिनियम के तहत अनिवार्य नोडल अधिकारियों के साथ गैर-अधिसूचित जनजाति समुदाय से एक प्रतिनिधि नियुक्त करने का आग्रह किया।
  • इसके अतिरिक्त, इसने SC/ST/OBC श्रेणियों से DNT/NT/SNT को बाहर करने और उनके लिये अनुरूप नीतियाँ बनाने की सिफारिश की।

इदाते आयोग (Idate Commission) की प्रमुख सिफ़ारिशें क्या थीं?

  • परिचय:
    • इसकी स्थापना वर्ष 2014 में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों (DNT) की एक राज्यव्यापी सूची संकलित करने के लिये भीकू रामजी इदाते के नेतृत्व में की गई थी।
    • एक अन्य आदेश अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों से बाहर रखे गए लोगों की पहचान और उनकी भलाई के लिये कल्याणकारी उपायों की सिफारिश करना था।
  • सिफारिशें:
    • SC/ST/OBC सूची में चिह्नित नहीं किये गए व्यक्तियों को OBC श्रेणी में निर्दिष्ट किया जाए।
    • अत्याचारों को रोकने और समुदाय के सदस्यों के बीच सुरक्षा की भावना को बहाल करने के लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में तीसरी अनुसूची को शामिल करके वैधानिक तथा संवैधानिक सुरक्षा उपायों को बढ़ाना।
    • DNT, SNT और NT के लिये कानूनी स्थिति वाले एक स्थायी आयोग का गठन किया जाए।
    • महत्त्वपूर्ण आबादी वाले राज्यों में इन समुदायों के कल्याण के लिये एक अलग विभाग बनाए जाएँ।
    • DNT परिवारों की अनुमानित संख्या और वितरण निर्धारित करने के लिये उनका गहन सर्वेक्षण किया जाए।

विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ कौन हैं?

  • परिचय:
    • इन्हें 'विमुक्त जाति' के नाम से भी जाना जाता है। ये समुदाय सबसे अधिक असुरक्षित और वंचित हैं।
    • ब्रिटिश शासन के दौरान आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 जैसे कानूनों के तहत गैर-अधिसूचित समुदायों को 'जन्मजात अपराधी' के रूप में अधिसूचित/अंकित किया गया था।
    • उन्हें वर्ष 1952 में भारत सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर गैर-अधिसूचित कर दिया गया था।
    • इनमें से कुछ समुदाय जिन्हें गैर-अधिसूचित के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, वे भी घुमंतू थे।
    • घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो हर समय एक ही स्थान पर रहने के बदले एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं।
    • ऐतिहासिक रूप से, घुमंतू जनजातियों और गैर-अधिसूचित जनजातियों को कभी भी निजी भूमि या गृह स्वामित्व तक पहुँच नहीं थी।
    • अधिकांश DNT अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं, कुछ DNT अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों में से किसी में भी शामिल नहीं हैं।
  • NT, SNT और DNT समुदायों के लिये प्रमुख समितियाँ/आयोग:
    • संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में आपराधिक जनजाति जाँच समिति, 1947 का गठन किया गया।
    • नंतशयनम आयंगर समिति, 1949 
    • इस समिति की अनुशंसा के आधार पर आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 को निरस्त कर दिया गया।
    • काका कालेलकर आयोग (जिसे पहला ओबीसी आयोग भी कहा जाता है) का गठन वर्ष 1953 में किया गया था।
    • बी.पी. मंडल आयोग, 1980
    • आयोग ने NT, SNT और DNT समुदायों के मुद्दे से संबंधित कुछ सिफारिशें भी कीं।
    • राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग’(National Commission to Review the Working of the Constitution - NCRWC), 2002 ने माना कि DNT को गलत तरीके से अपराध प्रवण माना गया है और उनके साथ गलत व्यवहार किया गया है। साथ ही कानून और व्यवस्था एवं सामान्य समाज के प्रतिनिधियों द्वारा शोषण किया जाता है।
  • वितरण:
    • भारत में, लगभग 10% आबादी NT, SNT और DNT समुदायों से बनी है।
    • जहाँ विमुक्त जनजातियों की संख्या लगभग 150 है, वहीं घुमंतू जनजातियों की जनसंख्या में लगभग 500 विभिन्न समुदाय शामिल हैं।
    • यह अनुमान लगाया गया है कि दक्षिण एशिया में विश्व की सबसे बड़ी खानाबदोश आबादी है।

घुमंतू जनजातियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • बुनियादी अवसंरचना सुविधाओं का अभाव: इन समुदायों के सदस्यों के पास पेयजल, आश्रय और स्वच्छता आदि संबंधी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा ये स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी सुविधाओं से वंचित रहते हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव: चूँकि इन समुदायों के लोग प्रायः यात्रा पर रहते हैं, इसलिये इनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता है। नतीजतन उनके पास सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव होता है और उन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड आदि भी नहीं जारी किया जाता है।
  • स्थानीय प्रशासन का दुर्व्यवहार: विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के संबंध में प्रचलित गलत तथा अपराधिक धारणाओं के कारण आज भी उन्हें स्थानीय प्रशासन एवं पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।
  • संदिग्ध (Ambiguous) जाति वर्गीकरण: इन समुदायों के बीच जाति वर्गीकरण बहुत स्पष्ट नहीं है, कुछ राज्यों में इन समुदायों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाता है, जबकि कुछ अन्य राज्यों में उन्हें अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के तहत शामिल किया जाता है।

इन जनजातियों के लिये क्या विकासात्मक प्रयास किये गए हैं?

  • DNT के लिये डॉ. अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति:
    • यह केंद्रीय प्रायोजित योजना वर्ष 2014-15 में विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति (DNT) के उन छात्रों के कल्याण हेतु शुरू की गई थी, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के अंतर्गत नहीं आते हैं।
    • DNT छात्रों के लिये प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति की योजना DNT बच्चों, विशेषकर लड़कियों के बीच शिक्षा का प्रसार करने में सहायक है।
  • DNT बालकों और बालिकाओं हेतु छात्रावासों के निर्माण संबंधी नानाजी देशमुख योजना:
    • वर्ष 2014-15 में शुरू की गई यह केंद्र प्रायोजित योजना, राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों/केंद्रीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से लागू की गई है।
    • इस कार्यक्रम का लक्ष्य उन DNT छात्रों को छात्रावास आवास प्रदान करना है जो SC, ST या OBC की श्रेणियों में नहीं आते हैं।
    • इस सहायता का उद्देश्य उनकी उच्च शिक्षा को आगे बढ़ाने में सुविधा प्रदान करना है।
  • DNT के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु योजना:
    • इनका उद्देश्य निःशुल्क प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग, स्वास्थ्य बीमा, आवास सहायता तथा आजीविका पहल प्रदान करना है।
    • इसके तहत वर्ष 2021-22 से शुरू होने वाले पाँच वर्षों में 200 करोड़ रुपए के व्यय को सुनिश्चित किया गया।
    • DWBDNC (गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के लिये विकास तथा कल्याण बोर्ड) को इस योजना के कार्यान्वयन का कार्य सौंपा गया।

मल्टीपल स्केलेरोसिस

34,000 वर्ष पूर्व जीवित प्राचीन यूरोपीय लोगों की अस्थियों तथा दाँतों से प्राप्त डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid- DNA) अमूमन मानव को अक्षम करने वाली न्यूरोलॉजिकल व्याधि मल्टीपल स्केलेरोसिस (Multiple Sclerosis) की उत्पत्ति के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

  • ये निष्कर्ष पश्चिमी यूरोप तथा एशिया के विभिन्न स्थलों से 1,664 लोगों के प्राचीन DNA अनुक्रमों से संबंधित शोध से प्राप्त हुए हैं।

प्रमुख अवलोकन क्या हैं?

  • फिर इन प्राचीन जीनोम की तुलना यूके बायोबैंक के आधुनिक डीएनए से की गई, जिसमें लगभग 4,10,000 स्व-पहचान वाले "श्वेत-ब्रिटिश"( "white-British") लोग शामिल थे और 24,000 से अधिक अन्य लोग यूनाइटेड किंगडम के बाहर पैदा हुए थे।
  • मल्टीपल स्केलेरोसिस (Multiple Sclerosis) से संबंधित एक आश्चर्यजनक खोज, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की एक पुरानी बीमारी जिसे एक ऑटोइम्यून विकार (autoimmune disorder) माना जाता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने लगभग 5,000 साल पहले कांस्य युग की शुरुआत में एक महत्त्वपूर्ण प्रवासन घटना की पहचान की, जब पशुपालक जिन्हें यमनया लोग (Yamnaya people) कहा जाता था, एक ऐसे क्षेत्र से पश्चिमी यूरोप में चले गए, जिसमें आधुनिक यूक्रेन और दक्षिणी रूस शामिल हैं।
  • उनमें आनुवंशिक गुण थे, जो उस समय फायदेमंद थे और उनकी भेड़ों तथा मवेशियों से उत्पन्न होने वाले संक्रमणों के खिलाफ सुरक्षात्मक थे।
  • जैसे-जैसे सहस्राब्दियों में स्वच्छता की स्थिति में सुधार हुआ, इन्हीं प्रकारों ने मल्टीपल स्केलेरोसिस के खतरे को और ज़्यादा बढ़ा दिया।

मल्टीपल स्केलेरोसिस क्या है?

  • परिचय:
    • मल्टीपल स्केलेरोसिस (MS) के रूप में जानी जाने वाली पुरानी ऑटोइम्यून रोग एक विकार है जिसमें शरीर अनजाने में स्वयं पर हमला करता है। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) प्रभावित होता है।
    • MS में प्रतिरक्षा प्रणाली माइलिन आवरण पर हमला करती है और उसे हानि पहुँचाती है, यह एक सुरक्षात्मक आवरण है जो मस्तिष्क एवं रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका तंतुओं को घेरता है, जिससे कई प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते हैं।
  • लक्षण:
    • मांसपेशियों में कमज़ोरी और सुन्नता(Numbness) की स्थिति आना।
    • किसी व्यक्ति को अपना मूत्रविसर्जन करने में कठिनाई हो सकती है या बार-बार या अचानक मूत्रविसर्जन करने की आवश्यकता हो सकती है।
    • आंत्र समस्याएँ, थकान, चक्कर आना, और रीढ़ की हड्डी में क्षतिग्रस्त तंत्रिका फाइबर की स्थिति।
    • चूँकि लक्षण सामान्य होते हैं, लोग अक्सर बीमारी को जल्दी पहचान नहीं पाते हैं और इसी कारण से अक्सर इसका निदान होने में कई वर्ष लग जाते हैं, क्योंकि इसके लिये किसी विशिष्ट कारण या ट्रिगर को निर्धारित करना असंभव होता है।
  • कारण:
    • रोग का सटीक कारण अभी तक अज्ञात है, लेकिन यह निम्न कारणों का संयोजन हो सकता है:
    • आनुवंशिक कारक जीन में पारित हो सकते हैं
    • धूम्रपान और तनाव
    • विटामिन डी और बी12 की कमी

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डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) क्या है?

  • डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) एक जटिल आणविक संरचना वाला एक कार्बनिक अणु है।
  • DNA अणु की शृंखला मोनोमर न्यूक्लियोटाइड की एक लंबी शृंखला से बनी होती है। यह एक डबल हेलिक्स संरचना में व्यवस्थित होती है।
  • जेम्स वॉटसन एवं फ्रांसिस क्रिक ने वर्ष 1953 में पता लगाया कि DNA एक डबल हेलिक्स बहुलक है।
  • यह जीवित प्राणियों की आनुवंशिक विशेषताओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित करने के लिये आवश्यक है।
  • DNA का अधिकांश भाग कोशिका केंद्रक (cell nucleus) में पाया जाता है, इसलिये इसे परमाणु DNA कहा जाता है।

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केप वर्ड को मलेरिया-मुक्त देश घोषित किया गया

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने केप वर्ड को मलेरिया मुक्त देश घोषित किया है। केप वर्ड वर्तमान में मॉरीशस तथा अल्जीरिया के साथ अफ्रीकी क्षेत्र में WHO द्वारा प्रामाणित  मलेरिया मुक्त होने वाला तीसरा देश बन गया है।

मलेरिया उन्मूलन प्रमाणन प्रक्रिया क्या है ?

  • परिचय:
    • WHO द्वारा किसी देश को मलेरिया-मुक्त का प्रमाण तब दिया जाता है जब वह कम-से-कम 3 वर्षों तक संपूर्ण देश में मलेरिया के संचरण में रोकथाम दर्शाता है तथा उसके पास स्वदेशी संचरण के पुनः संचरित होने की स्थिति में उसकी रोकथाम करने वाली कार्यात्मक निगरानी एवं प्रतिक्रिया प्रणाली होती है।
  • वैश्विक स्थिति:
    • दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र: मालदीव (2015) तथा श्रीलंका (2016) को WHO द्वारा मलेरिया मुक्त प्रामाणित किया गया है।
    • भारत को मलेरिया-मुक्त प्रामाणित नहीं किया गया है।
    • वर्तमान में WHO ने 43 देशों तथा 1 क्षेत्र को 'मलेरिया-मुक्त' प्रमाणन प्रदान किया है।

मलेरिया क्या है?

  • मलेरिया मच्छर जनित एक जानलेवा रक्त रोग है जो प्लाज़्मोडियम परजीवियों के कारण होता है।
  • 5 प्लाज़्मोडियम परजीवी प्रजातियाँ हैं जो मनुष्यों में मलेरिया का कारण बनती हैं और इनमें से 2 प्रजातियाँ– पी. फाल्सीपेरम (P. falciparum) और पी. विवैक्स (P. vivax), सबसे बड़ा खतरा उत्पन्न करती हैं।
  • मलेरिया मुख्य रूप से अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • मलेरिया संक्रमित मादा एनोफिलीज़ मच्छर के काटने से फैलता है।
  • किसी संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद मच्छर संक्रमित हो जाता है। इसके बाद मलेरिया परजीवी उस व्यक्ति के रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं जिसे वह संक्रमित मच्छर काटता है। परजीवी यकृत तक पहुँचते हैं, परिपक्व होते हैं और फिर लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं।
  • मलेरिया के लक्षणों में बुखार और फ्लू जैसी बीमारी शामिल हैं, जिसमें कंपकंपी वाली ठंड, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द तथा थकान शामिल है। विशेष रूप से, मलेरिया का इलाज और इसकी रोकथाम दोनों संभव है।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से संबंधित चिंताएं

चर्चा में क्यों? 

आंध्र प्रदेश में आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता बेहतर वेतन और लाभ की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं। राज्य सरकार ने प्रदर्शनकारी आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं और सहायिकाओं के खिलाफ आवश्यक सेवा एवं रखरखाव अधिनियम (Essential Services and Maintenance Act- ESMA), 1971 लागू कर दिया है।

आँगनवाड़ी केंद्रों पर समेकित बाल विकास सेवाओं (ICDS) पर उनकी चल रही अनिश्चितकालीन हड़ताल के प्रभाव का हवाला देते हुए, आदेश ने राज्य में छह महीने के लिये उनकी हड़ताल पर रोक लगा दी है।

आँगनवाड़ी सेवाएँ और आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं की भूमिका क्या हैं?

  • ICDS योजना और आँगनवाड़ी: 
    • ICDS योजना भारत में 2 अक्तूबर, 1975 को शुरू की गई थी। इसका नाम बदलकर आँगनवाड़ी सेवा कर दिया गया और अब यह सेवाएँ सक्षम आँगनवाड़ी तथा पोषण 2.0 के हिस्से के रूप में पेश की जाती हैं।
    • यह राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा कार्यांवयन एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं (AWW) और सहायकों (AWH) के एक बड़े नेटवर्क के माध्यम से लाभार्थियों अर्थात् 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों के प्रारंभिक बाल्यकाल, गर्भवती महिलाओं एवं स्तनपान कराने वाली माताओं के लिये देखभाल तथा विकास प्रदान करती है।

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आँगनवाड़ी द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ

  • यह देश भर के आँगनवाड़ी केंद्रों के मंच के माध्यम से सभी पात्र लाभार्थियों अर्थात् 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को प्रदान किया गया है।
  • तीन सेवाएँ अर्थात् टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच और रेफरल सेवाएँ स्वास्थ्य से संबंधित हैं जो राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन व सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना के माध्यम से प्रदान की जाती हैं।
  • आँगनवाड़ी सेवाओं की ट्रैकिंग: ICT प्लेटफॉर्म पोषण ट्रैकर को देश भर में आँगनवाड़ी सेवाओं के कार्यान्वयन एवं निगरानी पर वास्तविक समय डेटा कैप्चर करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • यह आँगनवाड़ी केंद्र (AWC) की गतिविधियों, आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं (AWW) की सेवा वितरण और संपूर्ण लाभार्थी प्रबंधन का सर्वांगीण दृश्य प्रदान करता है।

 आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं की प्रमुख भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ

  • सामुदायिक आउटरीच और गतिशीलता:
    • लाभार्थियों का पंजीकरण: इनके द्वारा ICDS सेवाओं के लिये पात्र गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं तथा छह वर्ष से अल्प आयु के बच्चों की पहचान कर उनका पंजीकरण किया जाता है।
    • समुदायों को संगठित करना: ये कार्यकर्त्ता आँगनवाड़ी गतिविधियों में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं तथा ICDS कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं और साथ ही स्वस्थ व्यवहार को बढ़ावा देते हैं।
  • शिशु देखभाल तथा प्रारंभिक बचपन की शिक्षा:
    • आँगनवाड़ी केंद्रों का प्रबंधन: केंद्र की साफ-सफाई और स्वच्छता सुनिश्चित करना तथा रिकॉर्ड बनाए रखना व शिक्षण सामग्री तैयार करना।
    • प्री-स्कूल शिक्षा प्रदान करना: बच्चों को औपचारिक स्कूली शिक्षा के लिये तैयार करने हेतु आयु-उपयुक्त खेल गतिविधियाँ, कहानी के सत्र एवं मूल शिक्षण गतिविधियाँ आयोजित करना।
    • वृद्धि और विकास की निगरानी करना: नियमित रूप से बच्चों की लंबाई और वज़न को मापना तथा विकास में किसी भी प्रकार की बाधा की पहचान करना एवं यदि आवश्यक हो तो उनका समाधान करने हेतु आगे प्रेषित करना।
    • माता-पिता को परामर्श देना: शिशु देखभाल प्रथाओं, बाल पोषण तथा स्वस्थ आचरणों पर मार्गदर्शन प्रदान करना।
  • स्वास्थ्य तथा पोषण:
    • पूरक पोषण वितरित करना: विशेष रूप से गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली माताओं एवं छह वर्ष से कम आयु के बच्चों के बीच कुपोषण को दूर करने के लिये गर्म पका हुआ भोजन, घर ले जाने के लिये राशन व पूरक पोषाहार प्रदान करना।
    • स्वास्थ्य जाँच करना: सामान्य बीमारियों से बचाव के लिये बच्चों के स्वास्थ्य की निगरानी करना, मूल स्वास्थ्य जाँच करना एवं आवश्यकता की स्थिति में उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये रेफर करना।
    • इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के वितरण में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (National Rural Health Mission) के तहत कार्यरत मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं (Accredited Social Health Activists- ASHA) का मार्गदर्शन करना।
    • टीकाकरण: बच्चों के लिये टीकाकरण अभियान आयोजित करने तथा उसे सुविधाजनक बनाने में स्वास्थ्य कर्मियों की सहायता करना एवं समय पर टीकाकरण सुनिश्चित करना।
    • जागरूकता बढ़ाना: माताओं तथा समुदायों को स्वास्थ्य, स्वच्छता, स्वच्छता व स्वस्थ बाल विकास प्रथाओं के बारे में शिक्षित करना।

आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • अल्प पारिश्रमिक: वे मान्यता प्राप्त सरकारी कर्मचारी नहीं होते हैं एवं आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं का मासिक मानदेय कई राज्यों में न्यूनतम वेतन से काफी कम है, जो अमूमन 5,000 से 10,000 रुपए के बीच होता है। 
  • इससे परिणामस्वरूप उनके लिये अपनी मूल आवश्यकतों की पूर्ति करने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है जिससे वे अपना पूरा ध्यान अपने कार्य पर केंद्रित करने से हतोत्साहित हो जाते हैं।
  • उनके मानदेय मिलने में विलंब भी एक आम बात है जिससे उनकी वित्तीय असुरक्षा तथा कठिनाई बढ़ जाती है।
  • कार्य तथा ज़िम्मेदारियों का अत्यधिक बोझ: आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को बहुत सारे कार्यों का उत्तरदायित्व दिया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारें अमूमन उन्हें बिना किसी अतिरिक्त मानदेय के कोविड-19 संबंधित कर्त्तव्यों, जनगणना कर्त्तव्यों अथवा आयुष्मान भारत जैसी सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन जैसे अतिरिक्त कार्य का उत्तरदायित्व देती हैं।
  • यह व्यापक कार्यभार अक्सर थकान की ओर ले जाता है और उनके द्वारा प्रदान की जा सकने वाली सेवाओं की गुणवत्ता में बाधा उत्पन्न करता है।
  • उचित प्रशिक्षण और संसाधनों का अभाव: हालाँकि आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को प्रारंभिक प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ता है, लेकिन यह अक्सर उन्हें उन जटिल कार्यों को संभालने के लिये पर्याप्त रूप से तैयार करने में विफल रहता है जिनका वे दैनिक सामना करते हैं।
  • इसके अतिरिक्त, आँगनवाड़ी केंद्रों में अक्सर उचित बुनियादी ढाँचे, शिक्षण सामग्री और दवाओं जैसे आवश्यक संसाधनों की कमी होती है, जिससे उनकी प्रभावी ढंग से कार्य करने की क्षमता में बाधा आती है।
  • सामाजिक मान्यता और सम्मान का अभाव: आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को समुदाय में उनके बहुमूल्य योगदान के लिये अक्सर सामाजिक कलंक और मान्यता की कमी का सामना करना पड़ता है।  सम्मान की यह कमी उनके मनोबल और प्रेरणा पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

आगे की राह

  • बढ़ा हुआ मुआवज़ा और लाभ:
    • जीवन यापन की लागत के अनुरूप उचित और समय पर वेतन संशोधन।
    • स्वास्थ्य बीमा, भविष्य निधि और मातृत्व अवकाश सहित मज़बूत सामाजिक सुरक्षा पैकेज।
  • व्यावसायिक विकास और मान्यता:
    • पदोन्नति के अवसरों के साथ समर्पित कॅरियर प्रगति मार्ग।
    • बाल विकास, स्वास्थ्य, पोषण और प्रारंभिक बचपन की शिक्षा में नियमित, गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम।
    • उनकी विशेषज्ञता को मान्यता देते हुए औपचारिक योग्यताएँ और प्रमाण-पत्र।
  • उन्नत कार्य परिस्थितियाँ और संसाधन:
    • कार्यभार को कम करने के लिये अतिरिक्त आँगनवाड़ी सहायकों के साथ इष्टतम स्टाफिंग स्तर।
    • बेहतर बुनियादी ढाँचे, उपकरण और शिक्षण सामग्री के साथ आँगनवाड़ी केंद्रों को आधुनिक बनाया गया।
    • कुशल रिकॉर्ड-कीपिंग, निगरानी और संचार के लिये तकनीकी-सक्षम समाधान।

सर्वाइकल/ग्रीवा कैंसर के लिये HPV टीका

चर्चा में क्यों?

भारत में वर्ष 2023 के मध्य तक स्कूलों के माध्यम से 9-14 वर्ष की आयु की लड़कियों में सर्वाइकल/ग्रीवा कैंसर की रोकथाम के लिये स्वदेशी रूप से विकसित CERVAVAC वैक्सीन को लगाने की उम्मीद है।

  • यह निर्णय टीकाकरण के लिये राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (NTAGI) की सिफारिश पर आधारित था, जिसमें सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) वैक्सीन को शामिल करने की सिफारिश की गई थी।

सर्वाइकल/ग्रीवा कैंसर

  • परिचय: 
    • यह भारत का पहला क्वाड्रिवेलेंट ह्यूमन पैपिलोमावायरस वैक्सीन (qHPV) है, इसे वायरस के चार स्ट्रेन- टाइप 6, टाइप 11, टाइप 16 और टाइप 18 के खिलाफ प्रभावी बताया गया है।
    • एक चतु:संयोजक वैक्सीन एक टीका है जो चार अलग-अलग एंटीजन जैसे चार भिन्न-भिन्न वायरस या अन्य सूक्ष्मजीवों के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को उत्तेजित करके काम करती है।
    • CERVAVAC हेपेटाइटिस बी टीकाकरण के समान VLP (वायरस-लाइक पार्टिकल्स) पर आधारित है।
  • अनुमति: 
    • वैक्सीन को भारत के औषधि महानियंत्रक (Drugs Controller General of India-DGCI) की मंज़ूरी मिल गई है और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में उपयोग के लिये सरकारी सलाहकार पैनल NTAGI द्वारा भी मंज़ूरी दे दी गई है।
  • महत्त्व: 
    • इसमें सर्वाइकल कैंसर को खत्म करने की एक महत्त्वपूर्ण क्षमता है और यह राष्ट्रीय HPV टीकाकरण प्रयासों में शामिल होने और मौजूदा टीकाकरण की तुलना में कम कीमत पर पेश करने में मददगार होगा।
    • यह टीका तभी अत्यंत प्रभावी होता है जब इसे यौन-संबंध से पहले लगाया जाता है।
  • सर्वाइकल कैंसर:
    • सर्वाइकल कैंसर एक महिला के गर्भाशय ग्रीवा में विकसित होता है। यह विश्व स्तर पर महिलाओं में चौथा सबसे आम प्रकार का कैंसर है और भारत में महिलाओं में दूसरा सबसे आम प्रकार है।
    • भारत में वैश्विक सर्वाइकल कैंसर के भार का सबसे बड़ा हिस्सा देखा गया है यानी सर्वाइकल कैंसर के कारण विश्व स्तर पर हर 4 मौतों में से लगभग 1 (द लांसेट अध्ययन के अनुसार)।
    • सर्वाइकल कैंसर के लगभग सभी मामले (99%) उच्च जोखिम वाले HPV संक्रमण से जुड़े हैं, जो यौन संपर्क के माध्यम से प्रसारित होने वाला एक अत्यंत सामान्य वायरस है। 
    • प्रभावी प्राथमिक (HPV टीकाकरण) और माध्यमिक रोकथाम दृष्टिकोण (कैंसर पूर्ववर्ती घावों के लिये जाँच एवं उपचार) सर्वाइकल कैंसर के अधिकांश मामलों को रोकने में सक्षम होगा।
    • जब सर्वाइकल कैंसर का निदान किया जाता है, तो यह कैंसर के सबसे सफलतापूर्वक इलाज योग्य रूपों में से एक है, जितना शीघ्र इसका पता चल जाता है इसे उतने ही प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है। 
    • बाद के चरणों में निदान किये गए कैंसर को उचित उपचार और उपशामक देखभाल से भी नियंत्रित किया जा सकता है।
    • रोकथाम, जाँच और उपचार हेतु एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ सर्वाइकल कैंसर को एक पीढ़ी के भीतर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में समाप्त किया जा सकता है।

WEF: वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2024

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum - WEF) ने वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2024 जारी की है, जो तीव्र तकनीकी विकास, आर्थिक अनिश्चितता, ग्लोबल वार्मिंग और गंभीर वैश्विक जोखिमों के विरुद्ध आगामी दशकों में मानव के सामने आने वाले भविष्य के गंभीर खतरों पर प्रकाश डालती है।

  • यह रिपोर्ट लगभग 1,500 विशेषज्ञों, उद्योग जगत के नेताओं और नीति निर्माताओं के सर्वेक्षण पर आधारित है।

वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • वैश्विक परिदृश्य में नकारात्मक परिवर्तन:
    • वर्ष 2023 में संघर्ष, चरम मौसमी घटनाएँ और सामाजिक असंतोष सहित विभिन्न वैश्विक घटनाओं ने मुख्य रूप से नकारात्मक दृष्टिकोण में योगदान दिया है।
  • AI संचालित गलत सूचना और दुष्प्रचार:
    • गलत सूचना और दुष्प्रचार को अगले दो वर्षों में सबसे गंभीर जोखिमों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे प्रौद्योगिकी में तेज़ी से प्रगति नई समस्याएँ पैदा कर रही है या मौजूदा समस्याओं को बदतर बना रही है।
    • यह चिंताजनक है कि  ChatGPT जैसे जनरेटिव AI  चैटबॉट्स के विकास से तात्पर्य है कि विशेष प्रतिभा वाले लोग अब जटिल सिंथेटिक सामग्री नहीं बना पाएँगे जिनका उपयोग लोगों के समूहों को नियंत्रित करने के लिये किया जा सकता है।
    • AI-संचालित गलत सूचना और दुष्प्रचार एक जोखिम के रूप में उभर रहा है, क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, इंडोनेशिया, भारत, मैक्सिको तथा पाकिस्तान जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं सहित कई देशों में अरबों लोग वर्ष 2024 एवं उसके बाद के चुनावों में भाग लेने के लिये तैयार हैं।
  • वैश्विक जोखिमों को आकार देने वाली संरचनात्मक शक्तियाँ:
    • अगले दशक में वैश्विक जोखिमों को आकार देने वाली चार संरचनात्मक शक्तियाँ हैं: जलवायु परिवर्तन, जनसांख्यिकीय विभाजन, त्वरित प्रौद्योगिकीय और भू-रणनीतिक बदलाव।
    • ये शक्तियाँ वैश्विक परिदृश्य में दीर्घकालिक परिवर्तनों का संकेत देती हैं, और उनकी अंतःक्रियाएँ अनिश्चितता और अस्थिरता में योगदान देंगी।
  • पर्यावरणीय जोखिम की प्रमुखता:
    • पर्यावरणीय जोखिम, विशेष रूप से चरम मौसम, सभी समय-सीमाओं में जोखिम परिदृश्य पर हावी रहते हैं।
    • संभावित अपरिवर्तनीय परिणामों के साथ, जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता हानि और पृथ्वी प्रणालियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के बारे में चिंताएँ स्पष्ट हैं।
  • आर्थिक तनाव और असमानता:
    • जीवनयापन की लागत का संकट, मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी जैसे आर्थिक जोखिम 2024 के लिये चिंताजनक हैं।
    • आर्थिक अनिश्चितता निम्न और मध्यम आय वाले देशों को असंगत रूप से प्रभावित करेगी, जिससे संभावित डिजिटल अलगाव और बिगड़ते सामाजिक तथा पर्यावरणीय प्रभाव होंगे।
  • सुरक्षा जोखिम और तकनीकी प्रगति:
    • अगले दो वर्षों में अंतर्राज्यीय सशस्त्र संघर्ष को शीर्ष जोखिम रैंकिंग में एक नए प्रवेशकर्त्ता के रूप में पहचाना गया है।
    • तकनीकी प्रगति, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता में, सुरक्षा जोखिम पैदा करती है क्योंकि वे गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं को विघटनकारी उपकरणों तक पहुँचने में सक्षम बनाती हैं, जिससे संभावित रूप से संघर्ष और अपराध में वृद्धि होती है।
  • भू-राजनीतिक बदलाव तथा शासन चुनौतियाँ:
    • वैश्विक शक्तियों के बीच विद्यमान व्यापक अंतराल, विशेष रूप से ग्लोबल नॉर्थ तथा साउथ के बीच, अंतर्राष्ट्रीय शासन में चुनौतियों का कारण बन सकता है।
    • ग्लोबल साउथ में देशों का बढ़ता प्रभाव तथा भू-राजनीतिक तनाव सुरक्षा गतिशीलता को नया आकार दे सकता है एवं वैश्विक जोखिमों को प्रभावित कर सकता है।

संबंधित अनुसंशाएँ क्या हैं?

  • निवेश एवं विनियमन का लाभ उठाने वाली स्थानीयकृत रणनीतियाँ अपरिहार्य जोखिमों के प्रभाव को कम कर सकती हैं तथा सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र इन लाभों को सभी तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • भविष्य को प्राथमिकता देने तथा अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयासों के माध्यम से विकसित एकल सफल प्रयास विश्व को एक सुरक्षित स्थान बनाने में मदद कर सकते हैं।
  • नागरिकों, कंपनियों तथा देशों के वैयक्तिक प्रयास भले ही बहुत अधिक प्रभावशाली प्रतीत न हों किंतु वैश्विक जोखिम में कमी लाने में वे पर्याप्त प्रभाव डाल सकते हैं।
  • विश्व में बढ़ते विखंडन के बावजूद मानव सुरक्षा तथा विकास के लिये निर्णायक जोखिमों को कम करने के लिये बड़े पैमाने पर सीमा पार सहयोग वर्तमान में भी आवश्यक है।

वैश्विक जोखिम क्या है?

  • वैश्विक जोखिम को किसी घटना अथवा स्थिति के घटित होने की संभावना के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके घटित होने पर वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद, जनसंख्या अथवा प्राकृतिक संसाधनों के एक महत्त्वपूर्ण अनुपात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • वैश्विक जोखिम रिपोर्ट स्विट्ज़रलैंड के दावोस में फोरम की आगामी वार्षिक बैठक आयोजित होने से पूर्व विश्व आर्थिक मंच द्वारा प्रकाशित एक वार्षिक अध्ययन है।
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FAQs on Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): January 2024 UPSC Current Affairs - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

1. What is the recent announcement made by the World Health Organization regarding malaria?
Ans. The World Health Organization has declared Cape Verde as a malaria-free country.
2. What is the focus of the report by the Indian Council of Medical Research?
Ans. The report focuses on multiple sclerosis.
3. What are the concerns raised by the Anganwadi workers?
Ans. The concerns raised by the Anganwadi workers are related to cervical cancer and the HPV vaccine.
4. What social issues are being highlighted for January 2024 in the Indian society?
Ans. The social issues being highlighted for January 2024 in Indian society are related to cervical cancer and HPV vaccination.
5. How is the Indian government planning to address the challenges related to cervical cancer and HPV vaccination?
Ans. The Indian government is planning to introduce a vaccination drive for HPV to combat cervical cancer in the society.
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