इस अध्याय में एक चालाक सियार और भूखे सिंह की कहानी बताई गई है। यह कहानी जंगल में एक सिंह और सियार के बीच की चालाकी और होशियारी को दिखाती है, जिसमें सियार अपनी सूझबूझ से सिंह को धोखा देकर अपनी जान बचाता है।
एक दिन जंगल में एक सिंह, जिसका नाम खरनखर था, बहुत भूखा था। वह दिनभर आहार की खोज में इधर-उधर भटकता रहा, लेकिन उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला। शाम होने पर उसे एक माँद दिखी, और वह वहाँ रात बिताने के लिए घुस गया। सिंह ने सोचा कि जब माँद का असली निवासी लौटेगा, तब वह उसे मारकर खा जाएगा।
उस माँद में एक सियार रहता था, जिसका नाम दधिपुच्छ था। जब सियार वापस आया, तो उसने देखा कि सिंह के पैरों के निशान माँद में जा रहे हैं, लेकिन बाहर नहीं आ रहे। उसे समझ में आ गया कि सिंह माँद के अंदर ही छिपा है। सियार ने अपनी जान बचाने के लिए एक योजना बनाई।
सियार ने माँद के बाहर खड़े होकर माँद को पुकारा और कहा, "ऐ मेरी माँद, आज तू क्यों नहीं बोल रही? पहले तो तू मुझे बुलाने पर हमेशा जवाब देती थी। अगर आज तूने जवाब नहीं दिया, तो मैं किसी और माँद में चला जाऊँगा।" सिंह ने सोचा कि सचमुच माँद जवाब देती होगी, इसलिए उसने सियार के बदले खुद जवाब दिया। सिंह की दहाड़ सुनते ही सियार समझ गया कि उसकी योजना काम कर गई, और वह वहाँ से भाग गया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि बुद्धिमानी और सूझबूझ से बड़ी से बड़ी मुसीबत से भी बचा जा सकता है। सियार ने अपनी चालाकी से सिंह को बेवकूफ बनाया और अपनी जान बचाई।
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