संस्कृत भाषा में 'प्रहेलिका' का अर्थ है कविता के रूप में लिखी गई पहेली। सामान्यतः प्रहेलिका का मतलब होता है किसी वाक्य का विशेष अर्थ। ये प्रहेलिकाएँ प्रश्न, कविता या वाक्य के रूप में प्रस्तुत होकर किसी व्यक्ति या वस्तु के खास गुणों को उजागर करती हैं। इनका उपयोग न केवल ज्ञानवर्धन के लिए, बल्कि मनोरंजन के उद्देश्य से भी किया जाता है।
प्रस्तुत पाठ में शामिल प्रहेलिकाएँ विद्यार्थियों की तर्कशक्ति और ज्ञान को बढ़ाने में अत्यंत सहायक हैं। संस्कृत साहित्य में पहेलियों का एक अनूठा स्थान है। पहेलियाँ बच्चों और बुजुर्गों दोनों के मानसिक आनंद का स्रोत बनती हैं। ये बुद्धि को तर्कपूर्ण और तीव्र बनाने में सहायक होती हैं। हमारे पूर्वज कवियों की असाधारण बुद्धिमत्ता और कल्पनाशक्ति पहेलियों के माध्यम से प्रकट होती है।
मूलपाठः, शब्दार्थाः, सरलार्थाः, अभ्यासकार्यम् च
1. भोजनान्ते च किं पेयं जयन्तः कस्य वै सुतः।
कथं विष्णुपदं प्रोक्तं तक्रं शक्रस्य दुर्लभम् ||
विवरणम्- भोजनस्य अन्ते किं पानीयम् ? (तक्रं) । जयन्तः कस्य पुत्रः ? (इन्द्रस्य ) ।
विष्णोः सान्निध्यं कथम् उक्तम् ? (दुर्लभम् )।
शब्दार्था:
सरलार्थ:
भोजन के अंत में क्या पीना चाहिए। (‘छाछ’), जयन्त किसका पुत्र है ? (इन्द्र का), विष्णु का पद कैसा है? (दुर्लभ) ।
2.
न तस्यादिर्न तस्यान्तो मध्ये यस्तस्य तिष्ठति ।
तवाप्यस्ति ममाप्यस्ति यदि जानासि तद्वद ॥
विवरणम् – तस्य आदिः न अस्ति, तस्य अन्तः अपि न अस्ति, तस्य मध्ये यः तिष्ठति । तत् तव अपि अस्ति । मम अपि अस्ति । यदि जानासि तत् वद – (नयनम्) ।
उत्तर: नयननम्
शब्दार्था:-
सरलार्थ: उसका आदि (आरम्भ) ‘न’ है, उसका अन्त भी ‘न’ है। उसके मध्य जो ‘य’ स्थित है। वह तुम्हारा भी है, मेरा भी है। यदि जानते तो बताओ।
उत्तर: ‘नयन / आँख ‘
3.
वृक्षस्याग्रे फलं दृष्टं फलाग्रे वृक्ष एव च ।
अकारादिं सकारान्तं यो जानाति स पण्डितः ॥
विवरणम् – वृक्षस्य अग्रे फलं दृष्टम् फलस्य अग्रे वृक्षः एव च । अकारः यस्य आदि तथैव सकारः यस्य अन्ते अस्ति, तत् पदं यः जानाति स पण्डितः – (………)।
शब्दार्था:
सरलार्थ: वृक्ष के अग्र भाग में फल दिखाई दिया फल के आगे वृक्ष ही है। अकार जिसमें शुरू और वैसे ही सकार अंत में है। उस पद को जो जानता है वह विद्वान है।
उत्तर: अनानास
4.
किमिच्छति नरः काश्यां भूपानां को रणे हितः
को वन्द्यः सर्वदेवानां दीयतामेकमुत्तरम् ॥
विवरणम् – मनुष्यः काश्यां किम् इच्छति ? (मृत्युम्) । युद्धे महाराजानां कः हित: ? (जय:) । कः सर्वदेवानां वन्दनीयः? (मृत्युञ्जयः) एकपदेन उत्तरं ददातु – (शिव:)
शब्दार्था:
सरलार्थ: मनुष्य काशी में क्या चाहता है? (मृत्युः) राजाओं का युद्ध में क्या हित है ? (जय) सब देवताओं में कौन वन्दनीय हैं। (मृत्युञ्जय) इसका एक ही उत्तर दीजिए
उत्तर: शिव (मृत्युंजय)
5.
कुलालस्य गृहे ह्यर्धं तदर्थं हस्तिनापुरे ।
द्वयं मिलित्वा लङ्कायां यो जानाति स पण्डितः ॥
विवरणम् – कुम्भकारस्य गृहे एकम् अर्धम् किम् अस्ति ? (कुम्भं) । हस्तिनापुरे तस्य अपरम् अर्धम् किम् अस्ति ? (कर्ण)। द्वयं मिलित्वा पूर्णरूपं लङ्कायाम् किम् अस्ति ? उत्तरं यः
जानाति स पण्डितः – (कुम्भकर्ण:) शब्दार्था:- कुलालस्य- कुम्हार के । गृहे – घर में।
ह्यर्धं – (हि + अर्धम् ) निश्चय ही आधा ।
हस्तिनापुरे – हस्तिनापुर में ।
तदर्धम् – (तत् + अर्धम् ) वह आधा ।
द्वयं – दोनों
मिलित्वा – मिलकर।
जानाति जानता है।
सरलार्थ: कुम्हार के घर में आधा, उससे आधा हस्तिनापुर में, दोनों मिलकर लंका में है जो जानता है वह विद्वान है।
उत्तर: कुम्भकर्ण
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