Table of contents |
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परिचय |
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प्रमुख बातें |
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कहानी का सारांश |
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कहानी से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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इस पाठ में हम एक गरीब लड़के मदन की कहानी पढ़ेंगे, जो अपनी माँ के साथ एक गाँव में रहता था। मदन को कविता लिखने का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन वह एक कवि-सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए राजमहल जाता है। रास्ते में वह प्रकृति और अपने आसपास की चीजों से प्रेरणा लेकर एक अनोखी कविता बनाता है। यह कविता न केवल उसे पुरस्कार दिलाती है, बल्कि राजा के खजाने को चोरों से बचाने में भी मदद करती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि साधारण चीजों से भी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की जा सकती हैं।
कहानी की शुरुआत एक गाँव से होती है, जहाँ मदन अपनी माँ के साथ रहता था। दोनों बहुत गरीब थे, और उनके पास कमाई का कोई साधन नहीं था। मदन दिनभर खेल-कूद में समय बिताता था, जिससे उसकी माँ परेशान होकर उसे पैसे कमाने के लिए घर से निकलने को कहती है। मदन घर से निकलता है और सोचता है कि पैसे कैसे कमाए। तभी उसे ढिंढोरा सुनाई देता है कि राजमहल में कवि-सम्मेलन हो रहा है, और सबसे अच्छी कविता सुनाने वाले को सौ अशर्फियाँ मिलेंगी। मदन इसे एक मौका समझकर राजमहल की ओर चल पड़ता है।
मदन ने पहले कभी कविता नहीं लिखी थी, लेकिन उसे भरोसा था कि चलते-चलते कुछ विचार आ जाएगा। सबसे पहले उसे एक कुत्ता दिखता है, जो जमीन खोद रहा था। मदन तुरंत बोल पड़ता है, “खुदुर-खुदुर का खोदत है?” यह पंक्ति उसे इतनी पसंद आती है कि वह इसे दोहराते हुए आगे बढ़ता है।
फिर वह एक तालाब के पास पहुँचता है, जहाँ एक भैंस पानी पी रही थी। मदन कहता है, “सुरुर-सुरुर का पीबत है?” इसके बाद वह एक चिड़िया को पेड़ पर इधर-उधर झाँकते देखता है और बोलता है, “ताक-झाँक का खोजत है?” इन पंक्तियों को दोहराते हुए वह सोचता है, “हम जानत का ढूँढत है!”
आगे चलते हुए मदन को एक साँप रेंगता दिखता है, और वह कहता है, “सरक-सरक कहाँ भागत है? जानत हो हम देखत हैं। हमसे न बच सकत है।” अब उसकी कविता में केवल एक पंक्ति की कमी रह जाती थी। राजमहल का रास्ता पूछने के लिए वह एक आदमी से बात करता है, जो अपना नाम धन्नू शाह बताता था। मदन को यह नाम इतना पसंद आता है कि वह अपनी कविता को पूरा करता है: “धन्नू शाह, भाई धन्नू शाह!” इस तरह उसकी पूरी कविता बन जाती है।
राजमहल पहुँचकर मदन ने अपनी कविता सुनाई। लोग उसकी अजीब कविता सुनकर हैरान रह गए, लेकिन कोई यह नहीं बोला कि उन्हें कविता समझ नहीं आई, क्योंकि वे राजा के सामने मूर्ख नहीं दिखना चाहते थे। राजा को यह कविता एक पहेली जैसी लगी। उसी रात राजा छत पर खड़े होकर कविता दोहराने लगे। उसी समय कुछ चोर, जिनमें धन्नू शाह भी था, राजा के खजाने में चोरी करने की कोशिश कर रहे थे। जब उन्होंने राजा को “खदुरु-खदुरु का खोदत है?” कहते सुना, तो वे डर गए और सोचने लगे कि राजा ने उन्हें देख लिया है।
जैसे-जैसे राजा कविता की अगली पंक्तियाँ दोहराते हैं—“सुरुर-सुरुर का पीबत है?”, “ताक-झाँक का खोजत है?”, “सरक-सरक कहाँ भागत है?” चोर और डर जाते हैं। जब राजा “धन्नू शाह, भाई धन्नू शाह!” कहते हैं, तो धन्नू शाह की साँस रुक जाती है। वह समझता है कि अब बचना मुश्किल है। वह राजा के पास जाकर माफी माँगता है और कहता है कि उन्होंने खजाना नहीं लूटा। राजा ने सिपाहियों से छानबीन करवाई और पता चलता है कि खजाना सुरक्षित है।
राजा मदन को बुलाते हैं और उसकी कविता की तारीफ करते हुए कहते हैं, “यह सब तुम्हारी कविता का कमाल है।” मदन को सोने-चाँदी से पुरस्कृत किया जाता है, और वह खुशी-खुशी अपने गाँव लौटता है। अब उसके पास अपनी और अपनी माँ की जरूरतों के लिए पर्याप्त धन था।
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