Table of contents |
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लेखक परिचय |
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मुख्य विषय |
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कहानी का सार |
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कहानी की मुख्य घटनाएँ |
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कहानी से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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अनुपम मिश्र एक प्रसिद्ध लेखक, संपादक, पर्यावरणविद् और छायाकार थे। उनका जन्म 1948 में हुआ था और 2016 में उनका निधन हो गया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ है, जिसका अनुवाद कई भाषाओं में किया गया है। इसके अलावा, ‘साफ माथे का समाज’ उनकी एक और महत्वपूर्ण रचना है। वे गांधी मार्ग पत्रिका के संस्थापक और संपादक भी थे, जो गांधी शांति प्रतिष्ठान से प्रकाशित होती थी।
अनुपम मिश्र
इस पाठ का मुख्य विषय है—पानी की कमी, जल-चक्र, और जल संरक्षण का महत्व। यह पाठ हमें समझाता है कि पानी हमारे जीवन के लिए कितना आवश्यक है और इसे बचाने के लिए हमें क्या-क्या कदम उठाने चाहिए। लेखक ने पानी की तुलना धरती की गुल्लक में जमा होने वाले खजाने से की है और बताया है कि तालाब, झीलें और नदियाँ इस खजाने को बढ़ाने में सहायक होती हैं। यह पाठ हमें अकाल और बाढ़ जैसी समस्याओं से बचने के लिए जल संरक्षण के उपाय सिखाता है।
पानी रे पानी पाठ में लेखक अनुपम मिश्र जल-चक्र और पानी की कमी की समस्या को बहुत सरल और रोचक तरीके से समझाते हैं। वे बताते हैं कि जल-चक्र प्रकृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें समुद्र का पानी भाप बनकर बादल बनता है, फिर बारिश के रूप में धरती पर आता है और नदियों के रास्ते वापस समुद्र में चला जाता है। यह चक्र किताबों में तो बहुत सुंदर लगता है, लेकिन असल जिंदगी में पानी का एक अजीब चक्कर बन गया है।
शहरों, गाँवों, स्कूलों, खेतों और कारखानों में पानी की कमी एक बड़ी समस्या बन गई है। नलों में पानी समय पर नहीं आता, और जब आता है तो देर रात या सुबह जल्दी। नल खोलने पर सिर्फ साँय-साँय की आवाज आती है। इस कमी को पूरा करने के लिए लोग मोटर लगाकर पानी खींचते हैं, जिससे आसपास के घरों का पानी कम हो जाता है। इससे झगड़े भी होने लगते हैं। बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में भी पानी की कमी लोगों को परेशान करती है। गर्मियों में तो अकाल जैसे हालात बन जाते हैं।
वहीं, बारिश के मौसम में इतना पानी बरसता है कि सड़कें, घर और स्कूल पानी में डूब जाते हैं। बाढ़ आती है, जो गाँवों और शहरों को नुकसान पहुँचाती है। लेखक कहते हैं कि अकाल और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अगर हम जल-चक्र को ठीक से समझें और पानी को सही तरीके से संभालें, तो इन समस्याओं से बच सकते हैं।
लेखक पानी की तुलना पैसे से करते हैं और धरती को एक बड़ी गुल्लक बताते हैं। जैसे हम गुल्लक में पैसे जमा करते हैं, वैसे ही बारिश के पानी को तालाबों, झीलों और नदियों में जमा करना चाहिए। यह पानी धीरे-धीरे जमीन के नीचे भूजल भंडार में जाता है, जो साल भर हमारे काम आता है। लेकिन हमने लालच में तालाबों को कचरे से भर दिया और उन पर मकान, बाजार और स्टेडियम बना दिए। इस गलती की सजा अब हमें मिल रही है—गर्मियों में नल सूख जाते हैं और बारिश में बस्तियाँ डूब जाती हैं।
लेखक सुझाव देते हैं कि हमें जल-चक्र को समझना होगा। बारिश का पानी तालाबों और झीलों में जमा करना होगा, भूजल भंडार को सुरक्षित रखना होगा और जलस्रोतों की अच्छे से देखभाल करनी होगी। तभी हम पानी की कमी से बच सकते हैं। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, तो पानी के चक्कर में फँसते चले जाएँगे।
यह पाठ हमें सिखाता है कि जल ही जीवन है और इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हमें अपने पुराने तालाबों, झीलों और नदियों को बचाना चाहिए। बारिश के पानी को संचित कर धरती के जल भंडार को भरना चाहिए ताकि हमें भविष्य में पानी की कमी या बाढ़ जैसी समस्याओं का सामना न करना पड़े। हमें अपनी धरती को एक बड़ी गुल्लक की तरह समझकर उसमें पानी बचाना चाहिए।
1. 'पानी रे पानी' कहानी का मुख्य संदेश क्या है? | ![]() |
2. 'पानी रे पानी' कहानी में मुख्य पात्र कौन हैं? | ![]() |
3. इस कहानी की प्रमुख घटनाएँ क्या हैं? | ![]() |
4. 'पानी रे पानी' कहानी से हमें कौन-सी शिक्षा मिलती है? | ![]() |
5. 'पानी रे पानी' की कहानी का सार क्या है? | ![]() |