Table of contents |
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लेखक परिचय |
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मुख्य विषय |
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कहानी का सार |
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कहानी की मुख्य घटनाएँ |
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कहानी से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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स्वयं प्रकाश हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक थे। उनका जन्म 1947 में हुआ और 2019 में उनका निधन हो गया। उनकी कहानियाँ बच्चों और बड़ों दोनों को बहुत पसंद आती हैं। उनकी कहानियाँ पढ़कर ऐसा लगता है जैसे कोई दोस्त अपनी बातें सुना रहा हो। उनकी कहानियाँ मनोरंजन के साथ-साथ सोचने और समझने की नई दिशाएँ देती हैं। उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं: मात्रा और भार, अगली किताब, ज्योति रथ के सारथी और फीनिक्स। उनकी कहानियों में साहस, दोस्ती और जीवन के छोटे-छोटे लेकिन महत्वपूर्ण पहलुओं को बहुत रोचक तरीके से दिखाया गया है।
स्वयं प्रकाश
कहानी का मुख्य विषय है बच्चों की शरारत, बीमारी का बहाना बनाना और उससे मिलने वाला सबक। यह कहानी बताती है कि झूठ बोलकर स्कूल से छुट्टी लेना कितना गलत हो सकता है। यह बच्चों को ईमानदारी, मेहनत और जिम्मेदारी का महत्व सिखाती है। साथ ही, यह दिखाती है कि बीमारी का बहाना बनाना आसान लग सकता है, लेकिन इसके परिणाम बोरियत, भूख और पछतावे के रूप में सामने आते हैं।
कहानी "नहीं होना बीमार" एक बच्चे की शरारत भरी कहानी है, जो स्वयं प्रकाश ने बहुत ही रोचक और मजेदार तरीके से लिखी है। यह कहानी एक छोटे बच्चे के दृष्टिकोण से है, जो स्कूल जाने से बचने के लिए बीमारी का बहाना बनाता है, लेकिन उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
कहानी की शुरुआत तब होती है जब बच्चा अपनी नानी के साथ पड़ोसी सुधाकर काका को देखने अस्पताल जाता है। यह उसका अस्पताल जाने का पहला अनुभव था। वहाँ उसे अस्पताल का माहौल बहुत अच्छा लगता था। साफ-सुथरे बिस्तर, हरे पेड़, शांति और कोई शोर नहीं था, जो उसे बहुत आकर्षित करता था। सुधाकर काका को नानी द्वारा साबूदाने की खीर खिलाई जाती थी, जिसे देखकर बच्चा सोचता था कि बीमार होना कितना मजेदार है। उसे लगता था कि बीमार लोग बिना मेहनत के आराम करते हैं और स्वादिष्ट खाना खाते हैं। वह सोचता था, "काश! मैं सुधाकर काका की जगह होता!"
कुछ दिन बाद बच्चे का स्कूल जाने का मन नहीं करता था। उसने होमवर्क भी नहीं किया था और उसे डर था कि स्कूल में सजा मिलेगी। वह सोचता था कि बीमारी का बहाना बनाकर स्कूल से छुट्टी ले लेगा। वह रजाई में लेटा रहता था और नानी को कहता था कि उसे सिरदर्द, पेट दर्द और बुखार है। नानी उसकी बात मान लेती थी और नानाजी को बुलाती थी। नानाजी उसका माथा छूते थे और नब्ज देखकर कहते थे कि बुखार नहीं है, लेकिन फिर भी उसे कड़वी दवा और काढ़ा पीने को देते थे। वे कहते थे कि उसे आज कुछ खाना नहीं देना है, सिर्फ आराम करना है।
बच्चा रजाई में पड़ा-पड़ा दिनभर बोर होता था। वह घर में चल रही गतिविधियों का अनुमान लगाता था, जैसे छोटे मामा का नहाना, कुसुम मौसी का कॉलेज जाना और मन्नू का जूता ढूँढ़ना। धीरे-धीरे घर में सब चले जाते थे और वह अकेला रह जाता था। उसे भूख लगती थी, लेकिन वह नानी से कुछ मांगने से डरता था क्योंकि नानाजी कहते थे कि भूखे रहने से बीमारी ठीक होती है। वह साबूदाने की खीर, कचौड़ी, गोलगप्पे और बेसन की चिक्की जैसी चीजों के बारे में सोचता रहता था। उसे लगता था कि साबूदाने की खीर सिर्फ बीमारी या उपवास में ही क्यों बनती है।
दिन बढ़ने पर उसे और बोरियत होती थी। उसकी पीठ लेटे-लेटे दुखने लगती थी। वह बाहर की चहल-पहल देखना चाहता था, लेकिन बीमारी का बहाना बनाए रखने के लिए लेटा रहता था। दोपहर में मन्नू स्कूल से आता था और परिवार खाना खाने बैठता था। बच्चा रसोई से दाल-चावल, तली हुई हरी मिर्च और आम की खुशबू सूंघता था। वह चुपके से रसोई तक जाता था और देखता था कि मन्नू आम चूस रहा है। उसे गुस्सा, जलन और पछतावा होता था कि उसने बीमारी का बहाना क्यों बनाया।
आखिरकार, उसे दिनभर भूखा रहना पड़ता था। वह थक जाता था और सोचता था कि स्कूल जाना बेहतर था। उसे सजा मिलती तो भी रिसेस में नमक-मिर्च वाले अमरूद खाने को मिलते। वह पछताता था और फैसला करता था कि अब वह कभी स्कूल से छुट्टी लेने के लिए बीमारी का बहाना नहीं बनाएगा।
यह कहानी हमें सिखाती है कि झूठ बोलना बुरी आदत है। बीमारी का बहाना बनाना केवल परेशानी और दुख लाता है। हमें हमेशा सच बोलना चाहिए और अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाना चाहिए। स्वस्थ रहना और स्कूल या काम पर जाना जीवन का सही तरीका है।
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1. "नहीं होना बीमार" कहानी का मुख्य विषय क्या है? | ![]() |
2. कहानी में कौन से मुख्य पात्र हैं? | ![]() |
3. कहानी में कौन सी मुख्य घटनाएँ घटित होती हैं? | ![]() |
4. कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है? | ![]() |
5. "नहीं होना बीमार" कहानी का सार क्या है? | ![]() |