Table of contents |
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कवि परिचय |
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मुख्य विषय |
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कविता का सार |
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कविता की व्याख्या |
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कविता से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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गिरिधर कविराय अठारहवीं सदी के प्रसिद्ध हिंदी कवि थे। उनकी कुंडलियाँ बहुत लोकप्रिय हैं और लोग इन्हें कहावतों की तरह इस्तेमाल करते हैं। उनकी कविताएँ सरल और सीधी भाषा में लिखी गई हैं, जो आम लोगों को आसानी से समझ आती हैं। इनमें जीवन के लिए जरूरी नीतियाँ और घर-परिवार के व्यवहार की बातें शामिल हैं। गिरिधर कविराय ने अपनी रचनाओं में लाठी जैसी चीजों के उपयोग और धन के सही इस्तेमाल जैसे विषयों पर भी लिखा है। उनकी दो प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं: “बिना बिचारे जो करै सो पाछे पछिताय” और “बीती ताहि बिसारि दे आगे की सुधि लेइ।”
गिरिधर कविराय
कविता का मुख्य विषय है बिना सोचे-समझे काम करने के नुकसान और अतीत को भूलकर भविष्य पर ध्यान देने की सलाह। पहली कुंडलिया बताती है कि जल्दबाजी में किए गए काम से पछतावा होता है और मन को शांति नहीं मिलती। दूसरी कुंडलिया सिखाती है कि पुरानी बातों को भूलकर आगे की योजना बनानी चाहिए और जो सहज हो, उसी पर ध्यान देना चाहिए। ये कविताएँ हमें सही निर्णय लेने और जीवन को सरल रखने की प्रेरणा देती हैं।
गिरिधर कविराय की ये दो कुंडलियाँ जीवन के लिए महत्वपूर्ण सबक सिखाती हैं।
पहली कुंडलिया: यह बताती है कि बिना सोचे-समझे किया गया काम अपने लिए परेशानी लाता है। लोग उसका मजाक उड़ाते हैं, और मन में बेचैनी रहती है। खाना-पीना, सम्मान और खुशियाँ भी अच्छी नहीं लगतीं। कवि कहते हैं कि जल्दबाजी में किए गए काम का पछतावा हमेशा मन में चुभता रहता है।
दूसरी कुंडलिया: यह सलाह देती है कि बीती बातों को भूल जाना चाहिए और भविष्य की चिंता करनी चाहिए। जो काम आसानी से हो सकता है, उसी पर ध्यान देना चाहिए। ऐसा करने से कोई हमारा मजाक नहीं उड़ाएगा और मन में शांति रहेगी। कवि कहते हैं कि आगे की सोच और विश्वास से सुख मिलता है, और पुरानी बातों को भूल जाना ही ठीक है।
बिना बिचारे जो करै सो पाछे पछिताय।
काम बिगारे आपनो जग में होत हँसाय॥
व्याख्या: कवि गिरिधर कविराय कहते हैं कि जो व्यक्ति बिना सोचे-समझे कोई भी कार्य करता है, उसे बाद में पछताना पड़ता है। ऐसे लोग अपने ही काम को बिगाड़ लेते हैं और अपने ही हाथों अपमान का कारण बनते हैं। परिणाम यह होता है कि दुनिया में उनका मजाक उड़ाया जाता है और वे सबके बीच हँसी का पात्र बन जाते हैं। इसलिए कोई भी काम करने से पहले अच्छी तरह सोच-विचार करना जरूरी है।
जग में होत हँसाय चित में चैन न पावै।
खान पान सन्मान राग रंग मनहिं न भावै॥
व्याख्या: जब लोग किसी का मजाक उड़ाते हैं तो उस व्यक्ति के मन का चैन चला जाता है। उसे मानसिक दुख होता है। फिर न अच्छा खाना अच्छा लगता है, न आदर-सम्मान की बातों में मन लगता है और न ही किसी मनोरंजन या खुशी की चीज़ में रुचि बचती है। यानी उसका पूरा जीवन दुखी और बेचैन हो जाता है।
कह गिरिधर कविराय दुःख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय माहि कियो जो बिना बिचारे॥
व्याख्या: गिरिधर कविराय कहते हैं कि बिना सोचे-समझे किए गए काम के कारण जो दुख पैदा होता है, वह जल्दी से खत्म नहीं होता। यह दुख बार-बार मन को कचोटता रहता है और व्यक्ति को अंदर ही अंदर परेशान करता है। इसीलिए हमें हर कार्य को करने से पहले भलीभांति सोच-विचार कर लेना चाहिए।
बीती ताहि बिसारि दे आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में ताही में चित देइ॥
व्याख्या: कवि गिरिधर कविराय यहाँ यह शिक्षा देते हैं कि जो बातें बीत गई हैं, उन्हें भुला देना चाहिए। हमें बार-बार पुराने दुख या गलती को याद करके परेशान नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, हमें भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। जो भी कार्य सहजता से बन जाए, उसी में मन लगाना चाहिए। पुरानी गलतियों पर पछताने के बजाय आगे बढ़ने पर ध्यान देना चाहिए।
ताही में चित देइ बात जोइ बनि आवै।
दुर्जन हँसै न कोइ चित में खता न पावै॥
व्याख्या: कवि कहते हैं कि यदि हम अपना ध्यान उन कामों पर लगाएँ जो स्वाभाविक रूप से आसानी से पूरे हो सकते हैं, तो कोई भी बुरा व्यक्ति हम पर हँस नहीं सकेगा। साथ ही, हमारे मन में भी किसी तरह की गलती का बोझ या पछतावा नहीं रहेगा। यानी सोच-समझकर आगे बढ़ने से सम्मान बना रहता है और मन में संतोष रहता है।
कह गिरिधर कविराय यहै कर मन परतीती।
आगे को सुख होइ समुझि बीती सो बीती॥
व्याख्या: कवि गिरिधर कविराय अंत में यह कहते हैं कि मन में इस बात का पक्का विश्वास रखना चाहिए कि बीती बातों को भूलकर यदि हम समझदारी से आगे बढ़ेंगे, तो भविष्य में सुख और सफलता मिलना निश्चित है। पुराने दुखों को भूलकर जो व्यक्ति आगे की सोचता है, वही जीवन में आनंद और शांति प्राप्त कर सकता है।
गिरिधर कविराय की ये कुंडलियाँ सरल शब्दों में जीवन के बड़े सबक सिखाती हैं। पहली कुंडलिया हमें जल्दबाजी से बचने और सोच-समझकर काम करने की सलाह देती है, ताकि पछतावे से बचा जा सके। दूसरी कुंडलिया अतीत को भूलकर भविष्य पर ध्यान देने और सरल जीवन जीने की प्रेरणा देती है। ये कविताएँ हमें सिखाती हैं कि सही निर्णय और धैर्य से जीवन में सुख और शांति पाई जा सकती है। ये कुंडलियाँ न केवल मनोरंजक हैं, बल्कि हमें बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित भी करती हैं।
1. गिरीधर कविराय कौन थे और उनकी लेखनी की विशेषताएँ क्या हैं? | ![]() |
2. 'कुंडलिया' कविता का मुख्य विषय क्या है? | ![]() |
3. इस कविता का सार क्या है? | ![]() |
4. 'कुंडलिया' कविता की व्याख्या कैसे की जा सकती है? | ![]() |
5. इस कविता से हमें क्या शिक्षा मिलती है? | ![]() |