Table of contents |
|
कवि परिचय |
|
मुख्य विषय |
|
पद का सार |
|
पद की व्याख्या |
|
पद से शिक्षा |
|
शब्दार्थ |
|
मीरा एक महान हिंदी कवयित्री, कृष्ण भक्त और संत थीं, जिन्होंने लगभग 500 साल पहले ये कविताएँ लिखी थीं। उनका जन्म राजस्थान में हुआ था और वे बचपन से ही भगवान कृष्ण की भक्ति में डूबी रहती थीं। राजकुमारी होने के बावजूद उन्होंने सादा जीवन चुना और महलों को छोड़कर तीर्थ यात्राएँ कीं। मंदिरों में भजन गाए और संतों की संगति में रहकर भगवान की भक्ति की। उनके भजन आज भी लोग श्रद्धा और प्रेम से गाते और सुनते हैं।
यह कविता मीरां की कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति को व्यक्त करती है। इसमें मीरां अपने नयन (आँखों) से कृष्ण को देखने की इच्छा, उनके प्रेम में रंगीनी और उनकी पूजा करती हुई भक्ति का वर्णन करती हैं। कविता में प्रकृति की सुंदरता, जैसे बारिश, शीतल हवा और ताजगी, कृष्ण के प्रेम के साथ जुड़ी हुई है। मीरां के भजन में कृष्ण के दर्शन के लिए उनकी उत्कट तड़प और प्रेम का चित्रण किया गया है।
इस पद में मीरा भगवान कृष्ण की सुंदरता का बखान करती हैं। वे कहती हैं कि कृष्ण की मोहक मूर्ति, साँवली सूरत और बड़ी-बड़ी आँखें उनके मन को लुभाती हैं। कृष्ण के होंठों पर मुरली शोभा देती है और उनके गले में वैजयंती माला सुंदर लगती है। उनकी कमर पर छोटी घंटियाँ और पैरों में नूपुर की मधुर आवाज़ मन को आनंद देती है। मीरा कहती हैं कि उनके प्रभु कृष्ण संतों को सुख देने वाले और भक्तों के प्रिय गोपाल हैं।
इस पद में मीरा सावन के मौसम का वर्णन करती हैं। सावन की बारिश और ठंडी हवा उनके मन को खुश करती है। उन्हें लगता है कि बादलों की गड़गड़ाहट और बारिश की बूँदें भगवान कृष्ण के आने की खबर ला रही हैं। मीरा का मन उमंग से भर जाता है। वे अपने प्रभु गिरधरनागर की भक्ति में आनंद और मंगल गीत गाती हैं।
बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहिनी मूरति साँवरि सूरति, नैना बने विशाल॥
अधर सुधा रस मुरली राजति, उर वैजंती माल॥
क्षुद्र घंटिका कटितट सोभित, नूपुर शब्द रसाल॥
मीरा के प्रभु संतन सुखदाई, भक्त वछल गोपाल॥
व्याख्या: इस पद में मीरा अपने दिल की गहरी भावना को व्यक्त करती हैं। वह भगवान श्री कृष्ण को अपने नैनों (आँखों) में बसाने की प्रार्थना करती हैं। मीरा कहती हैं कि उनके लिए भगवान कृष्ण की सुंदरता और रूप मोहक (आकर्षक) है, भगवान कृष्ण के रूप को देखकर उनके नैन इतने विशाल हो गए हैं, मानो उस सुंदर छवि को पूरी तरह समेट लेना चाहते हों। मीरा के गले में भगवान कृष्ण की वैजंती माला शोभा देती है, जो उनके प्रेम का प्रतीक है। मीरा कृष्ण के भगवान रूप में नूपुर की आवाज़ और घंटियों के संगीत को भी महसूस करती हैं, जो उनके दिल को खुश कर देती है। वह कहती हैं कि भगवान कृष्ण अपने भक्तों के लिए सुख देने वाले और उनकी रक्षा करने वाले हैं।
बरसे बदरिया सावन की, सावन की मन भावन की।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की॥
उमड़ घुमड़ चहुँ दिश से आया, दामिन दम कै झर लावन की।
नन्हीं नन्हीं बूँदन मेहा बरसे, शीतल पवन सोहावन की॥
मीरा के प्रभु गिरधरनागर, आनंद मंगल गावन की॥
व्याख्या: इस पद में मीरा सावन (मूसलधार बारिश) के मौसम का वर्णन करती हैं। वह कहती हैं कि जैसे ही सावन की घटाएँ आईं, उनका मन भी खुशी से उमड़ने लगा। बारिश की बूँदें मानो भगवान कृष्ण के आगमन की आहट सुना रही हों। मीरा अपने मन को कृष्ण के प्रेम में समर्पित करती हैं, और बारिश के मौसम में शीतल पवन से आनंद महसूस करती हैं। यह बारिश और ठंडी हवा उनके दिल को शांति और सुख देती है। मीरा कृष्ण को गिरधरनागर, यानी गोवर्धन को उठाने वाले अपने प्रिय प्रभु के रूप में देखती हैं, जो उनके जीवन में खुशी और मंगल लाते हैं।
इन पदों से हमें भक्ति और प्रेम की सीख मिलती है। मीरा हमें बताती हैं कि सच्ची भक्ति में मन को शांति और आनंद मिलता है। हमें भगवान के प्रति प्रेम और विश्वास रखना चाहिए। सावन के मौसम का वर्णन हमें प्रकृति से प्रेम करना सिखाता है। हमें छोटी-छोटी चीजों में खुशी ढूंढनी चाहिए और दूसरों के लिए अच्छे विचार रखने चाहिए।
1. मीराँ के पदों का मुख्य विषय क्या है? | ![]() |
2. मीराँ का परिचय क्या है? | ![]() |
3. मीराँ के पदों का सार क्या है? | ![]() |
4. मीराँ के पदों से हमें कौन सी शिक्षा मिलती है? | ![]() |
5. मीराँ के पदों में प्रयुक्त कुछ मुख्य शब्दों का अर्थ क्या है? | ![]() |