Table of contents |
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कविता का परिचय |
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कविता का सार |
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कविता की व्याख्या |
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कविता से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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यह कविता प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर जी ने लिखी है। इस कविता में चाँद को एक नन्हा बच्चा दिखाया गया है, जो ठंड से परेशान होकर अपनी माँ से ऊन का मोटा कुरता सिलवाने की ज़िद करता है। माँ उसे प्यार से समझाती है कि कुरता कैसे सिले, क्योंकि चाँद तो कभी छोटा होता है, कभी बड़ा और कभी दिखाई ही नहीं देता। इसलिए उसका नाप लेना बहुत मुश्किल है। यह कविता बहुत ही सरल, मज़ेदार और कल्पना से भरी है। इसमें चाँद को बच्चे जैसा बनाकर, ठंड और आकार बदलने की बात को मज़ेदार तरीके से बताया गया है।
यह कविता चाँद और उसकी माँ के बीच की प्यारी बातचीत को दिखाती है। एक दिन चाँद अपनी माँ से कहता है कि वह बहुत ठंड महसूस करता है क्योंकि रात को तेज हवा चलती है। इसलिए वह माँ से एक मोटा ऊनी कुरता सिलवाने की ज़िद करता है।
माँ उसकी बात सुनकर प्यार से कहती है कि भगवान तुम्हारी रक्षा करें, लेकिन एक परेशानी है – तुम्हारी नाप कौन ले? कभी तुम छोटे दिखते हो, कभी बड़े। कभी पतले, तो कभी मोटे। कभी तो तुम बिल्कुल दिखते ही नहीं। रोज़-रोज़ बदलते रहते हो, तो फिर एक ही नाप का कुरता कैसे सिला जाए?
इस कविता में हँसी और प्यार के साथ यह समझाया गया है कि चाँद की आकृति हर दिन बदलती है, इसलिए उसके लिए एक नाप का कुरता बनाना असंभव है।
हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला,
“सिलवा दो माँ, मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला।
सन-सन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूँ,
ठिठुर-ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।
व्याख्या: एक दिन चाँद, एक जिद्दी बच्चे की तरह, अपनी माँ से कहता है कि उसे रात में बहुत ठंड लगती है। तेज "सन-सन" हवा चलती है, जिससे वह ठिठुरता रहता है। वह माँ से ऊन का मोटा झिंगोला (गरम कुरता) सिलवाने की ज़िद करता है, ताकि ठंड से बचा रहे और आसमान में अपनी रात की यात्रा आराम से पूरी कर सके।
आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो कुरता ही कोई भाड़े का।"
बच्चे की सुन बात कहा माता ने, "अरे सलोने !
कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने।
व्याख्या: चाँद कहता है कि उसे सर्दियों के मौसम में आसमान में लंबा सफर करना पड़ता है, इसलिए उसे गरम कपड़ा चाहिए। अगर नया झिंगोला नहीं बन सकता, तो कोई किराए का या उधार का कुरता ही ला दो। माँ उसकी बात सुनकर प्यार से कहती है, "अरे मेरे सलोने बेटे! भगवान तुझे नजर से बचाए, कहीं तुझ पर जादू-टोना न हो जाए।" वह मजाक में उसकी ज़िद को हल्का करती है।
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ।
कभी एक अंगुल-भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,
बड़ा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा।
व्याख्या: माँ कहती है कि ठंड की बात तो ठीक है, लेकिन मुझे चिंता इस बात की है कि तुम्हारा आकार कभी एक जैसा नहीं रहता। मैंने तुम्हें कभी एक नाप में नहीं देखा। कभी तुम एक अंगुल जितने छोटे दिखते हो, तो कभी एक फुट जितने बड़े। कोई दिन तुम बहुत छोटे तो कोई दिन बहुत बड़े हो जाते हो। ऐसे में तुम्हारी सही नाप कैसे लूँ?
घटता-बढ़ता रोज किसी दिन ऐसा भी करता है,
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है।
अब तू ही तो बता, नाप तेरी किस रोज लिवाएँ,
सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आए?"
व्याख्या: माँ कहती है कि तुम तो रोज घटते-बढ़ते हो, और कभी-कभी तो बिल्कुल दिखाई ही नहीं देते, जैसे अमावस्या में। अब तू ही बता, तुम्हारी नाप किस दिन लें? अगर तुम्हारा आकार ही रोज बदलता है, तो ऐसा झिंगोला (कुरता) कैसे सिलवाया जाए जो तुम्हारे बदन में हर रोज फिट हो?
यह कविता हमें यह सिखाती है कि हर चीज़ को मापकर, सोच-समझकर और सही समय पर करना चाहिए। चाँद की तरह अगर कोई हर दिन बदलता रहे — कभी बड़ा, कभी छोटा, तो उसके लिए सही चीज़ बनाना बहुत मुश्किल हो जाता है। इससे हमें यह भी समझ में आता है कि अगर हम अपने कामों में स्थिर नहीं रहेंगे और हर दिन अपना मन बदलते रहेंगे, तो न तो कोई हमारी मदद कर पाएगा और न ही कोई काम ठीक से हो पाएगा। इसलिए हमें खुद में थोड़ा स्थिर और समझदार बनना चाहिए।
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2. "चाँद का कुरता" कविता के लेखक कौन हैं? | ![]() |
3. इस कविता से बच्चों को क्या शिक्षा मिलती है? | ![]() |
4. "चाँद का कुरता" कविता का सार क्या है? | ![]() |
5. इस कविता की व्याख्या कैसे की जा सकती है? | ![]() |