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लेखक परिचय

भारतेंदु हरिश्चंद्र आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक माने जाते हैं। उनका जन्म 1850 में हुआ और 1885 में उनका निधन हो गया। उन्होंने कविताएँ, नाटक, निबंध और यात्रा-वृत्तांत लिखे। उन्होंने कई पत्रिकाएँ भी निकालीं, जैसे कविवचन सुधा, हरिश्चंद्र मैगजीन और बालाबोधिनी। उनकी रचनाओं में समाज सुधार, देश प्रेम और अंग्रेज़ी शासन का विरोध दिखाई देता है। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में सत्य हरिश्चंद्र, भारत-दुर्दशा और अंधेर नगरी शामिल हैं।

हरिद्वार Chapter Notes | Chapter Notes For Class 8भारतेंदु हरिश्चंद्र

मुख्य विषय

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 1871 में हरिद्वार की यात्रा की और वहाँ की सुंदर प्रकृति, गंगा नदी, घाट, पर्वत, पक्षी और शांत वातावरण का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि यह पवित्र स्थान मन को शुद्ध और प्रसन्न करता है, यहाँ के लोग संतोषी हैं और यह जगह साधुओं और यात्रियों के लिए बहुत उपयुक्त है।

हरिद्वार Chapter Notes | Chapter Notes For Class 8

हरिद्वार यात्रा का सार

भारतेंदु हरिश्चंद्र एक मशहूर हिंदी लेखक थे। उन्हें घूमना बहुत पसंद था। वे भारत के कई गाँवों और शहरों में गए और उनके बारे में लिखा। उनकी यात्राएँ उन्हें प्रकृति, इतिहास, संस्कृति और पुरानी चीज़ों के बारे में जानने में मदद करती थीं। उनका मानना था कि किताबों के साथ-साथ यात्राएँ भी हमें बहुत कुछ सिखाती हैं।

सन् 1871 में भारतेंदु हरिद्वार गए। उन्होंने वहाँ की सुंदरता को देखकर बहुत खुशी महसूस की। उन्होंने 'कविवचन सुधा' नाम की पत्रिका के संपादक को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी हरिद्वार यात्रा के बारे में बताया। यह पत्र बहुत पुराना है, लगभग 150 साल पहले का, और इसमें उस समय की हिंदी का इस्तेमाल हुआ है।

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पत्र का सार

भारतेंदु ने अपने पत्र में लिखा कि हरिद्वार का वर्णन करने में उन्हें बहुत आनंद मिल रहा है। हरिद्वार एक पवित्र जगह है, जहाँ जाते ही मन शांत और साफ हो जाता है। यह जगह तीन तरफ से हरे-भरे पहाड़ों से घिरी है। इन पहाड़ों पर हरी-हरी लताएँ और पेड़ हैं, जो बहुत सुंदर लगते हैं। पेड़ ऐसे लगते हैं जैसे साधु एक टांग पर खड़े होकर तपस्या कर रहे हों। ये पेड़ धूप, बारिश और ओस को सहते हैं। भारतेंदु कहते हैं कि इन पेड़ों का जन्म धन्य है, क्योंकि ये लोगों को फल, फूल, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़ देते हैं। यहाँ तक कि जलने के बाद भी इनके कोयले और राख से लोगों का काम होता है। ये पेड़ इतने अच्छे हैं कि पत्थर मारने पर भी फल देते हैं।

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इन पेड़ों पर रंग-बिरंगे पक्षी चहचहाते हैं और बिना डर के गाते हैं, क्योंकि वहाँ शिकारी नहीं हैं। बारिश की वजह से चारों तरफ हरियाली थी, जो देखने में ऐसा लगता था जैसे हरा गलीचा (कालीन) बिछा हो।

हरिद्वार में गंगा नदी बहती है, जो बहुत पवित्र है। भारतेंदु कहते हैं कि गंगा की धारा राजा भगीरथ की कीर्ति की तरह चमकती है। गंगा का पानी बहुत ठंडा और मीठा है, जैसे बर्फ में जमी चीनी का शरबत। पानी साफ और सफेद है, और उसमें कई तरह के जलीय जीव तैरते हैं। गंगा का पानी तेज़ी से बहता है, जिससे बहुत आवाज़ होती है। ठंडी हवा गंगा के छोटे-छोटे कणों को उड़ाती है, जो छूने से ही मन को शुद्ध कर देती है।

गंगा यहाँ दो धाराओं में बँटी है - एक का नाम नील धारा और दूसरी गंगा। इन दोनों धाराओं के बीच एक छोटा सा पहाड़ है। नील धारा के किनारे एक सुंदर पहाड़ है, जिसके ऊपर चण्डिका देवी की मूर्ति है। हरिद्वार में 'हरि की पैड़ी' नाम का एक पक्का घाट है, जहाँ लोग स्नान करते हैं। खास बात यह है कि यहाँ गंगा ही सबसे बड़ी देवी हैं, और कोई दूसरा देवता नहीं है। हालाँकि, कुछ साधुओं ने मठ और मंदिर बना लिए हैं। गंगा का रास्ता यहाँ संकरा है, लेकिन पानी बहुत तेज़ बहता है।

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गंगा के किनारे राजाओं ने धर्मशालाएँ बनवाई हैं, जहाँ यात्री ठहरते हैं। वहाँ दुकानें भी हैं, लेकिन रात को बंद हो जाती हैं। हरिद्वार इतना शुद्ध और शांत जगह है कि वहाँ कोई गुस्सा या लालच नहीं दिखता। यहाँ के पंडे और दुकानदार कनखल और ज्वालापुर से आते हैं। पंडे बहुत संतुष्ट रहते हैं और एक पैसे को भी बहुत मानते हैं।

हरिद्वार में पाँच मुख्य तीर्थ हैं: हरिद्वार, कुशावर्त, नीलधारा, विल्वपर्वत और कनखल। हरिद्वार में हरि की पैड़ी पर स्नान होता है। कुशावर्त उसके पास ही है। नीलधारा दूसरी धारा है। विल्वपर्वत एक सुंदर पहाड़ है, जहाँ विल्वेश्वर महादेव की मूर्ति है। कनखल तीर्थ भी पास ही है। कनखल बहुत अच्छा तीर्थ है। बहुत समय पहले वहाँ दक्ष ने यज्ञ किया था, और सती ने शिव जी का अपमान न सहकर अपना शरीर त्याग दिया था। वहाँ कुछ छोटे-छोटे घर भी हैं। भारामल जैकृष्णदास खत्री वहाँ के मशहूर धनवान व्यक्ति हैं।

हरिद्वार में कोई झगड़ा या बखेड़ा नहीं है। यह साधुओं और शांत लोगों के लिए बहुत अच्छी जगह है। भारतेंदु का मन वहाँ जाते ही बहुत खुश और शुद्ध हो गया। वे दीवान कृपा राम के घर के ऊपर बने बंगले में रुके थे। वहाँ चारों तरफ से ठंडी हवा आती थी। एक रात को चंद्रग्रहण हुआ, और उन्होंने बड़े आनंद से गंगा में स्नान किया। दिन में उन्होंने भागवत पुराण का पाठ भी किया। उनके दोस्त कल्लू जी भी उनके साथ थे और बहुत खुश थे।

एक दिन भारतेंदु ने गंगा के किनारे पत्थर पर खाना बनाया और पानी के पास बैठकर खाया। गंगा के ठंडे छींटे उनके पास आते थे। यह खाना उन्हें सोने की थाली के खाने से भी ज़्यादा अच्छा लगा। उनका मन बार-बार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति से भर जाता था। वहाँ कोई झगड़ा या लड़ाई नहीं थी।

हरिद्वार में कई चीज़ें अच्छी बनती हैं। वहाँ का जनेऊ बहुत पतला और चमकदार होता है। वहाँ की कुशा (पवित्र घास) बहुत खास है, जिसमें दालचीनी और जावित्री जैसी खुशबू आती है। भारतेंदु कहते हैं कि यह पुण्य भूमि इतनी खास है कि यहाँ की घास भी सुगंधित है।

अंत में, भारतेंदु लिखते हैं कि हरिद्वार सब कुछ अनोखा है। यह जगह साधुओं और शांत मन वालों के लिए बनी है। उनका मन अभी भी हरिद्वार में ही बस्ता है। उन्होंने संपादक से अपने इस पत्र को पत्रिका में छापने की गुज़ारिश की और कहा कि वे पाठकों को इस पवित्र जगह के बारे में बताना चाहते हैं। पत्र के अंत में उन्होंने अपने नाम की जगह 'यात्री' लिखा।

हरिद्वार यात्रा की मुख्य बातें

  • भारतेंदु हरिश्चंद्र 1871 में हरिद्वार घूमने गए थे।
  • हरिद्वार को देखकर उनका मन बहुत खुश और साफ हो गया।
  • यह जगह तीन ओर से हरे-हरे पहाड़ों से घिरी हुई है।
  • पहाड़ों पर बेलें और बड़े-बड़े पेड़ हैं, जिनसे लोग फल, फूल, छाया, लकड़ी आदि पाते हैं।
  • पेड़ों पर अलग-अलग रंग के पक्षी निडर होकर गाते हैं।
  • चारों तरफ बारिश के कारण हरियाली फैली थी, जैसे हरा कालीन बिछा हो।
  • पास में गंगा नदी बहती है, जिसका पानी बहुत ठंडा, मीठा और साफ है।
  • गंगा की दो धाराएँ हैं – नीलधारा और गंगा जी। इनके बीच एक छोटा पहाड़ है।
  • हरि की पैड़ी नाम का घाट है, जहाँ लोग स्नान करते हैं।
  • यहाँ लोग शांत और संतोषी हैं, झगड़े-लड़ाई नहीं होती।
  • पाँच मुख्य तीर्थ हैं – हरिद्वार, कुशावर्त, नीलधारा, विल्वपर्वत और कनखल।
  • कनखल तीर्थ में पहले दक्ष का यज्ञ हुआ था और यहीं सती ने अग्नि में प्रवेश किया था।
  • लेखक ने गंगा किनारे पत्थर पर बैठकर खाना खाया, जो उन्हें सोने की थाली से भी अच्छा लगा।
  • यहाँ का जनेऊ बहुत अच्छा बनता है और कुशा में अच्छी खुशबू आती है।
  • यह जगह साधुओं और शांत मन वाले लोगों के रहने के लिए बहुत अच्छी है।

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यात्रा से शिक्षा

भारतेंदु हरिश्चंद्र जी मानते थे कि पढ़ाई सिर्फ किताबों से नहीं, यात्राओं से भी होती है। 1871 में हरिद्वार जाकर उन्होंने वहाँ की प्रकृति, गंगा नदी, शांत वातावरण और लोगों का संतोष देखा। उन्हें महसूस हुआ कि यात्रा से हमें नया ज्ञान, भक्ति, और प्रकृति की कद्र करना सीखने को मिलता है।

शब्दार्थ

  • पुण्य भूमि: पवित्र और धार्मिक महत्व वाली जगह
  • चित्त: मन, हृदय
  • निर्मल: साफ, शुद्ध
  • वल्ली: बेल या लता
  • शुभ मनोरथ: अच्छे उद्देश्य या नेक इरादे
  • तपस्या: साधना, कठिन धार्मिक अभ्यास
  • अर्थी: मृत शरीर ले जाने वाले लोग
  • गंध: सुगंध, खुशबू
  • मनोर्थ: मन की इच्छा
  • कल्लोल: पानी या पक्षियों की चहचहाहट जैसी मधुर ध्वनि
  • जात्री: यात्री, यात्रा करने वाला
  • त्रिभुवन पावनी: तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) को पवित्र करने वाली (यहाँ गंगा जी)
  • पवित्र: शुद्ध, पावन
  • मिष्ट: मीठा
  • पने: टुकड़ा (यहाँ चीनी का टुकड़ा)
  • संचार: चलना-फिरना, फैलना
  • धार: नदी का बहाव
  • चुटीला पर्वत: छोटा और नुकीला पहाड़
  • मूर्ति: प्रतिमा
  • घाट: नदी किनारे स्नान करने की सीढ़ियाँ
  • वैरागी: संसार के मोह-माया से दूर साधु
  • धर्मशाला: यात्रियों के ठहरने की जगह
  • निर्मल तीर्थ: साफ-सुथरा और पवित्र तीर्थस्थान
  • विलक्षण: अनोखा
  • कनखल: हरिद्वार के पास का प्रसिद्ध धार्मिक स्थान
  • यज्ञ: धार्मिक हवन या अनुष्ठान
  • अपमान: बेइज्जती
  • भस्म: राख
  • टिकना: ठहरना
  • पारायण: किसी धार्मिक ग्रंथ का पाठ
  • निदान: अंत में, आखिरकार
  • छलके: लहरें, पानी की छोटी-छोटी तरंगें
  • वैराग्य: मोह-माया से मुक्ति की भावना
  • जनेऊ: यज्ञोपवीत, एक धार्मिक धागा
  • कुशा: पूजा में प्रयुक्त एक प्रकार की पवित्र घास
  • सुगंधमय: जिसमें अच्छी खुशबू हो
  • विरागमय: मोह-माया से रहित
  • मौनावलंबन: चुप्पी धारण करना
  • स्थानदान: जगह देना
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FAQs on हरिद्वार Chapter Notes - Chapter Notes For Class 8

1. हरिद्वार यात्रा का महत्व क्या है?
Ans. हरिद्वार यात्रा का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से है। यह स्थान गंगा नदी के किनारे स्थित है और इसे हिंदू धर्म में एक पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है। यहां पर कुम्भ मेला जैसे बड़े धार्मिक समारोह का आयोजन होता है, जहां लाखों श्रद्धालु स्नान करने और पूजा करने आते हैं। यह यात्रा आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण है।
2. हरिद्वार यात्रा के दौरान किन प्रमुख स्थलों का दर्शन किया जा सकता है?
Ans. हरिद्वार यात्रा के दौरान प्रमुख स्थलों में हर की पौड़ी, चंडी देवी मंदिर, मनसा देवी मंदिर, और हरिद्वार आश्रम शामिल हैं। हर की पौड़ी गंगा नदी का एक प्रसिद्ध घाट है, जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं। चंडी देवी और मनसा देवी मंदिर पहाड़ी पर स्थित हैं और यहां पहुंचने के लिए ट्रैकिंग या रोपवे का उपयोग किया जा सकता है।
3. हरिद्वार यात्रा से हमें कौन सी प्रमुख शिक्षाएं मिलती हैं?
Ans. हरिद्वार यात्रा से हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं मिलती हैं, जैसे कि जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, आत्मा की शुद्धता और धर्म के प्रति श्रद्धा। यह यात्रा हमें सिखाती है कि हमें अपने जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। इसके अलावा, यह हमें प्राकृतिक सौंदर्य के महत्व और संरक्षण का भी ज्ञान देती है।
4. हरिद्वार यात्रा की तैयारी कैसे करनी चाहिए?
Ans. हरिद्वार यात्रा की तैयारी के लिए पहले से योजना बनाना आवश्यक है। श्रद्धालुओं को यात्रा की तिथि, आवास, और यात्रा के दौरान आवश्यक वस्त्र और सामग्री की सूची बनानी चाहिए। स्वास्थ्य के प्रति ध्यान रखते हुए, यात्रा के दौरान कुछ दवाइयां और प्राथमिक चिकित्सा किट भी साथ ले जाना चाहिए। इसके अलावा, स्थानीय नियम और संस्कृति का सम्मान करना भी महत्वपूर्ण है।
5. हरिद्वार यात्रा का एक सामान्य समय अवधि क्या है?
Ans. हरिद्वार यात्रा की सामान्य समय अवधि 2 से 4 दिन होती है। यह समय अवधि यात्रा की गतिविधियों और स्थलों के दर्शन पर निर्भर करती है। यदि श्रद्धालु विशेष धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होना चाहते हैं, तो यात्रा को और भी विस्तारित किया जा सकता है।
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