Table of contents |
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लेखक परिचय |
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मुख्य विषय |
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पात्र-परिचय |
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कहानी का सार |
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कहानी की मुख्य बातें |
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कहानी से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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उदयशंकर भट्ट का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा में 1898 में हुआ था। उनके परिवार में साहित्य का माहौल था, इसलिए उन्हें बचपन से ही साहित्य में रुचि थी। उन्होंने रेडियो के लिए कई नाटक लिखे और नाटकों व फिल्मों में अभिनय भी किया। उन्होंने कविताएँ और उपन्यास भी लिखे, लेकिन नाटक और एकांकी के क्षेत्र में उन्हें खास पहचान मिली। उनका उपन्यास "लोक-परलोक" और एकांकी संग्रह "पर्दे के पीछे" बहुत प्रसिद्ध हुए। उनका निधन 1966 में हुआ।
उदयशंकर भट्ट
"नए मेहमान" एक मध्यवर्गीय परिवार की कहानी है, जो गर्मी और छोटे मकान की परेशानियों से जूझ रहा है। अचानक दो अनजान मेहमानों के आने से परिवार को और मुश्किलें होती हैं। कहानी दिखाती है कि कैसे यह परिवार मेहमानों की खातिरदारी करने की कोशिश करता है, भले ही उनकी अपनी समस्याएँ हों। यह एकांकी मेहमाननवाजी, सामाजिक दबाव और मध्यवर्गीय जीवन की कठिनाइयों को दर्शाती है।
कहानी की शुरुआत में विश्वनाथ, जो एक मध्यवर्गीय परिवार का मुखिया है, गर्मी से परेशान होकर कमरे में प्रवेश करता है। वह पसीने से तर है और अपने छोटे बच्चे को हवा देने के लिए पंखा झलता है। वह कहता है कि मकान इतना गर्म है कि भट्टी जैसा लगता है। रेवती, उसकी पत्नी, भी गर्मी और सिरदर्द से परेशान है। दोनों इस बात पर चर्चा करते हैं कि मकान में हवा नहीं है, पानी गर्म है, और ठंडा पानी भी प्यास नहीं बुझाता। विश्वनाथ बताता है कि वह दो साल से बेहतर मकान ढूँढ़ रहा है, लेकिन उसे कोई अच्छा मकान नहीं मिल रहा।
रेवती शिकायत करती है कि पड़ोसियों ने अपनी छत पर बच्चों को सोने की जगह नहीं दी, क्योंकि वे स्वार्थी हैं। विश्वनाथ कहता है कि अगर कोई मेहमान आ जाए, तो इस छोटे मकान में उनकी खातिरदारी करना मुश्किल होगा। रेवती भी यही चाहती है कि कोई मेहमान न आए, क्योंकि वह पहले से ही गर्मी और सिरदर्द से परेशान है। वे बच्चों की बीमारियों के बारे में भी बात करते हैं, जैसे बड़ा बच्चा टाइफाइड से बीमार था और शिमला भेजना पड़ा। विश्वनाथ छुट्टी लेने की बात करता है, लेकिन कहता है कि छुट्टी मिलना मुश्किल है और खर्च भी चाहिए। दोनों सोने की जगह पर बहस करते हैं कि कौन ऊपर छत पर सोएगा और कौन आँगन में, लेकिन कोई फैसला नहीं होता।
अचानक दरवाजा खटखटाता है, और दो अजनबी, नन्हेमल और बाबूलाल, मकान में प्रवेश करते हैं। वे अपने साथ एक बिस्तर और संदूक लाते हैं। विश्वनाथ और रेवती उन्हें नहीं जानते, लेकिन भारतीय मेहमाननवाजी की परंपरा के कारण उनकी खातिरदारी में जुट जाते हैं। नन्हेमल और बाबूलाल गर्मी से परेशान हैं और कहते हैं कि उनके कपड़े पसीने से भीग गए हैं। वे ठंडा पानी माँगते हैं और खाने-पीने की बात करते हैं।
नन्हेमल और बाबूलाल अपने बारे में ठीक-ठीक नहीं बताते। वे कहते हैं कि वे बिजनौर से आए हैं और किसी संपतराम (जो गोटे का व्यापारी है) के रिश्तेदार हैं। विश्वनाथ कहता है कि वह संपतराम को नहीं जानता। फिर वे कहते हैं कि शायद विश्वनाथ को सेठ जगदीशप्रसाद के यहाँ मुरादाबाद में देखा था। लेकिन विश्वनाथ को कुछ भी याद नहीं आता, क्योंकि वह बीस साल पहले बिजनौर गया था और जगदीशप्रसाद का प्रेस है, न कि मिल। मेहमान बार-बार अस्पष्ट बातें करते हैं, जिससे विश्वनाथ और रेवती को शक होता है। वे कोई चिट्ठी भी नहीं लाए हैं और कहते हैं कि संपतराम ने उन्हें रेलवे रोड पर कृष्णा गली का पता दिया था, लेकिन शहर में कई कृष्णा गलियाँ हैं।
नन्हेमल और बाबूलाल ठंडा पानी, नहाने का इंतजाम, और खाना माँगते हैं। वे कहते हैं कि उन्हें साग और पूरी या रोटी खानी है। रेवती को गुस्सा आता है, क्योंकि वह पहले से ही सिरदर्द और गर्मी से परेशान है। वह विश्वनाथ से कहती है कि पहले मेहमानों की सही जानकारी लें, फिर खाना बनाएँ। लेकिन विश्वनाथ कहता है कि मेहमानों को भूखा नहीं रख सकते, इसलिए खाना बनाना होगा। रेवती कहती है कि बाजार से मँगाना पड़ेगा, जो महँगा पड़ेगा। परिवार में नौकर भी नहीं टिकता, क्योंकि पानी ऊपर चढ़ाना पड़ता है।
इसी बीच, पड़ोसी की शिकायत आती है कि मेहमानों ने उनकी छत पर गंदा पानी फैलाया। विश्वनाथ माफी माँगता है, लेकिन पड़ोसी नाराज होकर कहता है कि विश्वनाथ के यहाँ बार-बार मेहमान आते हैं और परेशानी खड़ी करते हैं। इससे विश्वनाथ को और शर्मिंदगी महसूस होती है। मेहमान फिर से पानी पीते हैं और खाने की जल्दी माँगते हैं।
विश्वनाथ बार-बार पूछता है कि मेहमान कहाँ से आए हैं और किसके यहाँ जाना चाहते हैं। अंत में नन्हेमल और बाबूलाल कहते हैं कि वे कविराज रामलाल वैद्य के यहाँ जा रहे थे, जो पास की गली में रहते हैं। विश्वनाथ को राहत मिलती है, क्योंकि उसे लगता है कि ये मेहमान गलती से उसके घर आ गए। वह प्रमोद को कहता है कि मेहमानों को कविराज रामलाल का घर दिखा दे। नन्हेमल और बाबूलाल विदा लेते हैं। विश्वनाथ और रेवती को अब राहत मिलती है, और रेवती कहती है कि सिर फट रहा था।
जैसे ही नन्हेमल और बाबूलाल जाते हैं, रेवती का भाई अचानक आता है। वह कहता है कि उसने पहले से तार (टेलीग्राम) भेजा था, लेकिन विश्वनाथ को तार नहीं मिला। रेवती का भाई गर्मी और मकान खोजने की परेशानी से थका हुआ है। वह कहता है कि उसे खाना नहीं चाहिए, लेकिन रेवती जिद करती है कि वह खाना बनाएगी, क्योंकि भाई को भूखा नहीं सोने दे सकती। विश्वनाथ और रेवती उसे ठंडा पानी और नहाने का इंतजाम देते हैं। वह कहता है कि शहर बहुत बड़ा है और होटल में ठहरने का विचार आया था, लेकिन घर आ गया। कहानी यहीं खत्म होती है, जो दिखाती है कि मध्यवर्गीय परिवार मेहमानों की वजह से कितनी परेशानियाँ झेलता है।
इस कहानी "नए मेहमान" से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में कभी-कभी अनजान परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और हमें धैर्य, संयम और समझदारी से काम लेना चाहिए। मेहमान चाहे परिचित हों या अनजाने, उनका सम्मान करना और उनकी मदद करना हमारी जिम्मेदारी है। साथ ही, यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि गर्मी, तंग जगह और असुविधाओं के बीच भी हमें आपसी सहयोग और विनम्रता बनाए रखनी चाहिए। मुश्किल समय में एक-दूसरे के साथ सहानुभूति रखना और परिस्थिति को हँसी-मज़ाक व धैर्य से संभालना ही सच्ची समझदारी है।
1. "नए मेहमान" कहानी का मुख्य संदेश क्या है? | ![]() |
2. कहानी के मुख्य पात्र कौन-कौन हैं? | ![]() |
3. "नए मेहमान" कहानी में किस प्रकार की चुनौतियों का सामना किया गया है? | ![]() |
4. इस कहानी में पात्रों के विकास को कैसे दर्शाया गया है? | ![]() |
5. "नए मेहमान" कहानी की पृष्ठभूमि क्या है? | ![]() |