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सुभाषितरसं पीत्वा जीवनं सफलं कुरु Chapter Notes | Chapter Notes For Class 8 PDF Download

परिचय

इस पाठ में हमें उपदेशात्मक श्लोकों के माध्यम से जीवन को सफल बनाने की दिशा में प्रेरणा दी जाती है। यह श्लोक जीवन के आदर्श रूप को प्रस्तुत करते हैं, जिसमें हमें अच्छे कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। सभाषितों के माध्यम से जीवन के रहस्यों को समझना और उसे सही दिशा में लगाना, यह इस पाठ का मुख्य उद्देश्य है।

सुभाषितरसं पीत्वा जीवनं सफलं कुरु

सुभाषितपठनेन जीवननिर्माणाय प्रेरणा

  • सुभाषितों के पठन से आदर्श मानवजीवन निर्माण की प्रेरणा मिलती है।
  • मानवजीवन के सुख और समृद्धि के लिए सुभाषितों का पठन आवश्यक है।
  • जो व्यक्ति सुभाषितों का ज्ञान कार्यक्षेत्र में प्रयोग करता है, वह अनेक लाभ प्राप्त करता है।
  • सुभाषित सुंदर वचन होते हैं जो सदैव जनहित के लिए होते हैं।
  • ये स्वकर्तव्य और अकर्तव्य के विषय में स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
  • अतः सभी को सुभाषित पढ़ने चाहिए, जिससे जीवन का रहस्य समझें और सुखमय जीवन बनाएँ।

सुभाषितानि किम् ?

  • सुभाषित सुंदर और शोभन वचन हैं।
  • ये नीतिश्लोक कहलाते हैं जो जीवन के लिए उपयोगी सलाह देते हैं।
  • पितामही बच्चों को नीतिश्लोक सुनाने की सलाह देती है।

प्रथमः श्लोकः

श्लोक: गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे। 
स्वर्गापवर्गास्पद‌मार्गभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ॥ १ ॥
अर्थ:
देवता भारतभूमि के गुणगान करते हैं और कहते हैं कि जो इस भूमि पर जन्म लेते हैं, वे धन्य हैं।
भारतभूमि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है, अतः यहाँ देवता भी मनुष्यरूप में जन्म लेना चाहते हैं।

द्वितीयः श्लोकः

श्लोक: गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणः बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलः। 
पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः करी च सिंहस्य बलं न मूषकः ॥ २ ॥
अर्थ:
 गुणवान् व्यक्ति दूसरों के गुण जानता है, किन्तु गुणहीन नहीं जानता।
बलवान् दूसरों का बल समझता है, किन्तु निर्बल नहीं समझता।
कोयल वसन्त के गुण को गाती है, किन्तु कौआ नहीं गा सकता।
हाथी सिंह का बल जानता है, किन्तु चूहा नहीं जानता।

तृतीयः श्लोकः

श्लोक: भवन्ति नम्रास्तरवः फलोद्गमैः नवाम्बुभिर्दूरविलम्बिनो घनाः। 
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् ॥ ३ ॥
अर्थ:
फल के भार से वृक्ष झुक जाते हैं, नए जल से मेघ नीचे आते हैं और वर्षा करते हैं।
समृद्धि पाकर भी सज्जन लोग अभिमानहीन रहते हैं, यह परोपकारी का स्वभाव होता है।

चतुर्थः श्लोकः

श्लोक: यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निघर्षणच्छेदनतापताडनैः। 
तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते कुलेन शीलेन गुणेन कर्मणा ॥ ४ ॥
अर्थ:
सोने की शुद्धता घर्षण, काटने, ताप और प्रहार से जाँची जाती है।
उसी तरह पुरुष की परीक्षा कुल, स्वभाव, गुण और कर्म से की जाती है।

पञ्चमः श्लोकः

श्लोक: अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति प्रज्ञा च कौल्यं च दमः श्रुतं च। 
पराक्रमश्चाबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च ॥ ५ ॥
अर्थ:
प्रज्ञा, कुलीनता, संयम, शास्त्रज्ञान, पराक्रम, अल्पभाषिता, दान और कृतज्ञता ये आठ गुण पुरुष को सम्मानित करते हैं।

षष्ठः श्लोकः

श्लोक: न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धाः वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम्। 
धर्मः स नो यत्र न सत्यमस्ति सत्यं न तद्यच्छलमभ्युपैति ॥ ६॥
अर्थ:
 जहाँ वृद्धजन न हों, वह सभा नहीं।
जो वृद्ध धर्म न बोलें, वे वृद्ध नहीं।
जहाँ सत्य न हो, वहाँ धर्म नहीं, और जो छल से मिले, वह सत्य नहीं।

सप्तमः श्लोकः

श्लोक: दुर्जनेन समं सख्यं प्रीतिं चापि न कारयेत्। 
उष्णो दहति चाङ्गारः शीतः कृष्णायते करम् ॥ ७ ॥
अर्थ: 
दुष्ट व्यक्ति के साथ मित्रता और प्रीति नहीं करनी चाहिए।
गरम अंगार जलाता है और ठंडा हाथ को काला करता है, उसी तरह दुष्ट हानि पहुँचाता है।

अष्टमः श्लोकः

श्लोक: यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्। 
एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिध्यति ॥ ८ ॥
अर्थ: 
एक चक्र से रथ नहीं चलता, उसी तरह पुरुषार्थ के बिना भाग्य सफल नहीं होता।
प्रयत्न और भाग्य दोनों मिलकर फल देते हैं।

शब्दार्थानि

  • शृङ्खलितम्: अनुशासित, Disciplined
  • गायन्ति: गानं कुर्वन्ति, गाते हैं
  • किल: निश्चयेन, निश्चय से
  • धन्याः: प्रशंसिताः, प्रशंसनीय
  • अपवर्गः: निर्वाणम्, मोक्ष
  • भूयः: पुनः पुनः, बार-बार
  • सुरत्वात्: देवत्वात्, देवत्व से
  • वेत्ति: जानाति, जानता है
  • निर्गुणः: गुणहीनः, गुणरहित
  • बली: बलवान्, बलशाली
  • निर्बलः: बलरहितः, बलहीन
  • पिकः: कोकिलः, कोयल
  • वायसः: काकः, कौआ
  • करी: गजः, हाथी
  • नम्राः: अवनताः, झुके हुए
  • तरवः: पादपाः, वृक्ष
  • फलोद्गमैः: फलभारैः, फलों के भार से
  • अम्बुभिः: जलैः, जल से भरे हुए
  • दूरविलम्बिनः: दूरात् अधः अवनताः, दूर से नीचे झुके हुए
  • घनाः: मेघाः, बादल
  • अनुद्धताः: गर्वशून्याः, अभिमान से रहित
  • सत्पुरुषाः: सज्जनाः, अच्छे लोग
  • समृद्धिभिः: प्रचुरैः धनैः, बहुत धन से
  • कनकम्: सुवर्णम्, सोना
  • परीक्ष्यते: परीक्षितं भवति, उसकी परीक्षा की जाती है
  • निघर्षणम्: घर्षणम्, घिसना
  • छेदनम्: कर्तनम्, काटना
  • ताडनैः: प्रहारैः, प्रहार के द्वारा
  • कुलेन: वंशेन, कुल से
  • शीलेन: स्वभावेन, स्वभाव से
  • कर्मणा: कार्येण, कार्य से
  • दीपयन्ति: प्रकाशयन्ति, प्रकाशित करते हैं
  • प्रज्ञा: विशेषज्ञानम्, विशिष्ट बुद्धि
  • कौल्यम्: कुलीनता, अच्छे कुल में जन्म
  • दमः: इन्द्रियसंयमः, इन्द्रियों का संयम
  • श्रुतम्: शास्त्रज्ञानम्, शास्त्रों का ज्ञान
  • पराक्रमः: साहसः, वीरता
  • अबहुभाषिता: मितभाषिता, कम और सार्थक बोलना
  • छलम्: कपटता, छलना
  • अभ्युपैति: प्राप्नोति, प्राप्त करता है
  • दुर्जनेन: दुष्टजनेन, दुष्ट व्यक्ति से
  • समम्: सह, साथ
  • सख्यम्: मैत्री, मित्रता
  • दहति: ज्वलयति, जलाता है
  • अङ्गारः: दग्धकाष्ठः, अंगारा
  • कृष्णायते: मलिनं करोति, काला करता है
  • दैवम्: भाग्यम्, भाग्य
  • सिध्यति: सिद्धं भवति, फलता है

योग्यताविस्तरः

  • विष्णुपुराणम्: यह अठारह पुराणों में से एक है, जिसमें सात सहस्र से अधिक श्लोक हैं। इसमें भगवान् विष्णु और उनके अवतारों का वर्णन है।
  • महाभारतम्: यह संस्कृत साहित्य का पाँचवाँ वेद माना जाता है, जिसमें एक लाख से अधिक श्लोक हैं और अठारह पर्व हैं।
  • भर्तृहरि: ये संस्कृत के महान् कवि हैं, जिनकी रचनाएँ नीतिशतक, शृङ्गारशतक और वैराग्यशतक हैं।
  • हितोपदेश: पण्डित नारायण द्वारा रचित यह कथाग्रन्थ चार भागों में विभक्त है - मित्रलाभ, सुहृद्भेद, विग्रह, सन्धिः।
  • चाणक्यनीति: चाणक्य के नीतिश्लोक बालकों के चरित्र निर्माण और आदर्श जीवन के लिए उपयोगी हैं।

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FAQs on सुभाषितरसं पीत्वा जीवनं सफलं कुरु Chapter Notes - Chapter Notes For Class 8

1. "सुभाषितरसं" का अर्थ क्या है और यह हमारे जीवन में कैसे महत्वपूर्ण है?
Ans."सुभाषितरसं" का अर्थ है "सुभाषितों का रस" या "सुन्दर कथनों का सार।" यह हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें नैतिकता, ज्ञान और जीवन के अनुभवों से जुड़ी महत्वपूर्ण शिक्षाएं प्रदान करता है। ये सुभाषित हमारे जीवन को सफल बनाने के लिए प्रेरित करते हैं और कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति देते हैं।
2. "जीवनं सफलं कुरु" का क्या अर्थ है?
Ans."जीवनं सफलं कुरु" का अर्थ है "अपने जीवन को सफल बनाओ।" यह वाक्यांश हमें प्रेरित करता है कि हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मेहनत करनी चाहिए और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ना चाहिए। यह हमें यह भी सिखाता है कि सफलता केवल भाग्य से नहीं, बल्कि प्रयास और धैर्य से प्राप्त होती है।
3. सुभाषितों का प्रयोग किस प्रकार किया जा सकता है?
Ans. सुभाषितों का प्रयोग हमें प्रेरणा देने, नैतिक शिक्षा देने और जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने के लिए किया जा सकता है। विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा शिक्षा में, परिवार में बच्चों को सिखाने के लिए, और सामाजिक समारोहों में उपयोग किया जाता है। ये हमारे संवाद को भी समृद्ध बनाते हैं और विचारों को स्पष्टता प्रदान करते हैं।
4. क्या सुभाषितों का अध्ययन करना फायदेमंद है?
Ans. हाँ, सुभाषितों का अध्ययन करना बहुत फायदेमंद है। यह हमें जीवन के अनुभवों से सीखने में मदद करता है और विभिन्न परिस्थितियों में सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाता है। सुभाषितों में निहित ज्ञान और अनुभव हमें मानसिक और नैतिक विकास में सहायता करते हैं, जिससे हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं।
5. किस प्रकार के सुभाषित जीवन में प्रेरणा प्रदान कर सकते हैं?
Ans. विभिन्न विषयों पर आधारित सुभाषित जैसे कि मित्रता, प्रेम, मेहनत, धैर्य और न्याय जीवन में प्रेरणा प्रदान कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, "मेहनत का फल मीठा होता है" जैसे सुभाषित हमें कठिन परिश्रम करने के लिए प्रेरित करते हैं, जबकि "सच्चा मित्र वही है जो कठिन समय में साथ दे" मित्रता के महत्व को दर्शाता है।
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