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मञ्जुलमञ्जूषा सुन्दरसुरभाषा Chapter Notes | Chapter Notes For Class 8 PDF Download

परिचय

यह अध्याय संस्कृत भाषा की महिमा का परिचय कराता है। संस्कृत को देववाणी, सभ्य भाषाओं की जननी, साहित्य का आधार तथा ज्ञान-विज्ञान की संवाहिका कहा गया है। इसमें श्लोकों के माध्यम से बताया गया है कि संस्कृत न केवल सौंदर्य और माधुर्य से परिपूर्ण है, बल्कि यह मानव-जीवन, साहित्य, विज्ञान और दर्शन को भी आलोकित करती है।

श्लोक १

मूल श्लोकः
मुनिवरनवकनितकनववरनवलनित-
मञ्जुलमञ्जूषा, सुन्दरसुरभाषा ।
अनिमातसत्त्व पोषणक्षमता
मम वच्यातीता, सुन्दरसुरभाषा ॥१॥

  • पदच्छेदः – मुनिवर-नवकनित-नववर-नवलनित-मञ्जुल-मञ्जूषा सुन्दरसुरभाषा ।
  • अन्वयः – हे माते! तव पोषणक्षमता मम वच्यातीता, सुन्दरसुरभाषा (असि)।
  • भावार्थः (हिन्दी में)
    • संस्कृत भाषा अत्यन्त सुन्दर है।
    • यह देवभाषा कहलाती है।
    • मुनियों ने इसके द्वारा गवेषणाएँ कीं और ग्रन्थों की रचना की।
    • संस्कृत अन्य भाषाओं की जननी है।
    • इसके शब्द कोमल और सम्पूर्ण हैं।
    • संस्कृत अन्य भाषाओं का पोषण करती है।

श्लोक २

मूल श्लोकः
वेदव्यास-वाल्मीकि-मुनिभिः कृतानि
कालिदास-बाणकविभिः रचितानि ।
पौराणिक-सामान्य-जीविनाम् आशा
सुन्दरसुरभाषा ॥ २ ॥

  • पदच्छेदः – वेदव्यास-वाल्मीकि-मुनिभिः कालिदास-बाणकविभिः पौराणिक-सामान्य-जीविनाम् आशा सुन्दरसुरभाषा ।
  • अन्वयः – हे सुन्दरसुरभाषे! तव आश्रयेण वेदव्यास-वाल्मीकि-मुनिभिः रचितानि, कालिदास-बाणकविभिः रचितानि, पौराणिक-सामान्यजीविनाम् आशा असि।
  • भावार्थः (हिन्दी में)
    • संस्कृत रमणीय भाषा है।
    • वेदव्यास ने महाभारत, वाल्मीकि ने रामायण रची।
    • कालिदास, बाणभट्ट आदि कवियों ने साहित्य की अमूल्य धरोहर दी।
    • प्राचीन काल से आज तक संस्कृत सामान्य जन के जीवन में आशा का संचार करती रही है।

श्लोक ३

मूल श्लोकः
श्रुतिसुखनिर्दे कलप्रमोदे
समस्मृतिवर्द्धे सरसविनोदे ।
गतिमत-मनः-प्रेरक-काविविशारदे
तव संस्कृतिः एषा, सुन्दरसुरभाषा ॥ ३ ॥

  • पदच्छेदः – श्रुतिसुखनिदे कलप्रमोदे स्मृतिवर्द्धे सरसविनोदे गतिमत-मनः-प्रेरक-काविविशारदे तव संस्कृतिः एषा सुन्दरसुरभाषा ।
  • अन्वयः – हे सुन्दरसुरभाषे! श्रुतिसुखनिदे! कलप्रमोदे! स्मृतिवर्द्धे! सरसविनोदे! गतिमत-मनः-प्रेरक-काविविशारदे! तव एषा संस्कृतिः अस्ति।
  • भावार्थः (हिन्दी में)
    • संस्कृत सुनने में मधुर और आनन्दप्रद है।
    • यह कला और संस्कृति का विकास करती है।
    • स्मृति और विवेक को बढ़ाती है।
    • सरस विनोद का अनुभव कराती है।
    • यह साहित्य और काव्य की प्रेरणा है।
    • यह मानव-जीवन में उत्तम मार्गदर्शन देती है।

श्लोक ४

मूल श्लोकः
रस-रुचिरालङ्कृत-धारा
वेदविषय-वेदान्त-विचारा ।
वैद्य-खगोल-शास्त्रादि-विहाराः
विज्ञैः धरा, सुन्दरसुरभाषा ॥ ४ ॥

  • पदच्छेदः – रस-रुचिरा अलङ्कृत-धारा वेदविषय-वेदान्तविचारा वैद्य-खगोल-शास्त्रादि-विहाराः विज्ञैः धरा सुन्दरसुरभाषा ।
  • अन्वयः – हे सुन्दरसुरभाषे! रस-रुचिरा अलङ्कृत-धारा, वेदविषय-वेदान्तविचारा, वैद्य-खगोल-शास्त्रादि-विहाराः धरा (असि)।
  • भावार्थः (हिन्दी में)
    • संस्कृत में शृंगार, हास्य, रौद्र, वीर आदि सभी रस विद्यमान हैं।
    • शब्दों की अलंकारयुक्त धारा इसे और समृद्ध बनाती है।
    • वेद, उपनिषद्, वेदान्त और पुराणों के विचार इसमें समाहित हैं।
    • आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित, खगोल आदि शास्त्र संस्कृत में रचे गए।
    • इस प्रकार संस्कृत सर्वत्र प्रतिष्ठित है।

शब्दार्थ (संग्रह से)

  • मञ्जुल = मोहक
  • मञ्जूषा = पेटिका, संचित निधि
  • सुन्दरसुरभाषा = देवभाषा संस्कृत
  • पोषणक्षमता = पालन-पोषण करने की शक्ति
  • वच्यातीता = वाणी से परे
  • श्रुतिसुख = सुनने में आनन्ददायक
  • सरसविनोद = हृदय को आनन्द देने वाला
  • रस-रुचिर = रसों से युक्त
  • अलङ्कृतधारा = अलंकारों से सुसज्जित धारा

व्याकरण (समास का विवेचन)

  • मातुः भूमि = मातृभूमिः
  • सुराणां भाषा = सुरभाषा
  • पोषण + क्षमत्वम् = पोषणक्षमत्वम्
  • वच्यम् अतीतम् = वच्यातीतम्
  • विरसैः रुचिरा = विरसरुचिरा
  • वेद + विषय = वेदविषयः
  • खगोल + शास्त्रम् = खगोलशास्त्रम्
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FAQs on मञ्जुलमञ्जूषा सुन्दरसुरभाषा Chapter Notes - Chapter Notes For Class 8

1. मञ्जुलमञ्जूषा सुन्दरसुरभाषा का मुख्य विषय क्या है ?
Ans. मञ्जुलमञ्जूषा सुन्दरसुरभाषा में विभिन्न प्रकार की सुंदरता और भाषा के महत्व को दर्शाया गया है। इसमें संस्कृत साहित्य की खूबसूरती और उसमें छिपे भावों को उजागर किया गया है। यह श्लोकों और कविताओं के माध्यम से एक सजीव चित्र प्रस्तुत करता है।
2. इस पाठ में श्लोकों का क्या महत्व है ?
Ans. श्लोकों का महत्व इस पाठ में व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन की गहराई को समझाने में है। श्लोक न केवल भाषा की सुंदरता को व्यक्त करते हैं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डालते हैं, जैसे प्रेम, त्याग, और ज्ञान की खोज।
3. शब्दार्थ (संग्रह से) का क्या उपयोग है ?
Ans. शब्दार्थ (संग्रह से) का उपयोग पाठ में उपस्थित शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए किया जाता है। यह विद्यार्थियों को शब्दों की गहराई और उनके सही अर्थ को समझने में मदद करता है, जिससे वे पाठ को बेहतर तरीके से समझ सकें।
4. व्याकरण (समास का विवेचन) में कौन-कौन से समास शामिल हैं ?
Ans. व्याकरण (समास का विवेचन) में विभिन्न प्रकार के समास जैसे द्वन्द्व समास, तत्पुरुष समास, और अव्ययीभाव समास शामिल हैं। ये समास शब्दों के मिलन से नए अर्थ उत्पन्न करते हैं और भाषा की संरचना को समझने में सहायता करते हैं।
5. इस पाठ का अध्ययन करने से विद्यार्थियों को क्या लाभ होता है ?
Ans. इस पाठ का अध्ययन करने से विद्यार्थियों को न केवल संस्कृत भाषा और साहित्य की समझ बढ़ती है, बल्कि वे जीवन के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी सीखते हैं। यह पाठ उनके भाषाई कौशल को विकसित करने में भी सहायक होता है।
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