Class 8 Exam  >  Class 8 Notes  >  Chapter Notes For Class 8  >  Chapter Notes: सम्यग्वर्णप्रयोगेण ब्रह्मलोके महीयते

सम्यग्वर्णप्रयोगेण ब्रह्मलोके महीयते Chapter Notes | Chapter Notes For Class 8 PDF Download

परिचय

यह पाठ हमें सही उच्चारण और सम्यक् वर्ण प्रयोग के महत्व को बताता है। जब हम वेदों, शास्त्रों या सामान्य भाषा का भी सही उच्चारण करते हैं, तो उसका वास्तविक अर्थ स्पष्ट होता है और श्रोता तक सही संदेश पहुँचता है। गलत उच्चारण से अर्थ बदल सकता है और अपूर्णता आ सकती है। इसीलिए वर्ण प्रयोग में शुद्धता आवश्यक है। पाठ में उत्तम पाठक के गुण और अधम पाठक के दोष भी बताए गए हैं। अंत में यह संदेश दिया गया है कि सम्यक् वर्ण प्रयोग करने वाला मनुष्य ब्रह्मलोक में भी मान-सम्मान प्राप्त करता है।

श्लोक एवं भावार्थ

(१) यद्यहप बिु नारीषे तथाहप पठ पुत्र वयाकरणम्।
सवजनः श्वजनो मा भूः सकलं शकलं सकृत् शकृत्॥

  • पदच्छेदः यदि अपि बहु न अधीषे, तथापि पठ पुत्र व्याकरणम्।
    सजनः श्वजनः मा भूः। सकलं शकलं, सकृत् शकृत्।
  • अन्वयः हे पुत्र! यदि तुम बहुत अधिक अध्ययन न करो तो भी व्याकरण का अवश्य अध्ययन करो। क्योंकि व्याकरण न जानने पर ‘सजनः’ (सज्जन) का अर्थ ‘श्वजनः’ (कुत्ता) हो जाता है। इसी प्रकार ‘सकलम्’ (पूरा) का अर्थ ‘शकलम्’ (टुकड़ा), ‘सकृत्’ (एक बार) का अर्थ ‘शकृत्’ (मल) हो जाता है।
  • भावार्थ: यहाँ स्पष्ट किया गया है कि व्याकरण का ज्ञान न होने पर शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं। इसीलिए शुद्ध उच्चारण और व्याकरण का अभ्यास करना आवश्यक है, जिससे अर्थ का अपभ्रंश न हो।

(२) व्याघ्री यथा हरेत् पुत्रान् दंष्ट्राभयायं न च पीडयेत्।
भीता पतनभेदाभयायं तद्वद्वर्णान् प्रयोजयेत्॥

  • पदच्छेदः व्याघ्री यथा हरेत् पुत्रान् दंष्ट्राभयायं न च पीडयेत्।
    भीता पतनभेदाभयायं तद्वत् वर्णान् प्रयोजयेत्।
  • अन्वयः जैसे व्याघ्री अपने बच्चों को दाँतों से पकड़ती है, पर उन्हें पीड़ा नहीं देती, वैसे ही उच्चारण करते समय वर्णों का प्रयोग करना चाहिए।
  • भावार्थ: उच्चारण ऐसा हो कि स्पष्ट सुनाई दे, पर कठोरता न हो। अधिक बलपूर्वक उच्चारण करने से श्रोता को कष्ट हो सकता है। इसलिए मधुरता और कोमलता बनाए रखना चाहिए।

(३) एवमवर्णाः प्रयोज्याः नाव्यक्ता न च पीडिताः।
सम्यग्वर्णप्रयोगेण ब्रह्मलोके महीयते॥

  • पदच्छेदः एवं वर्णाः प्रयोज्याः। न अव्यक्ताः, न च पीडिताः।
    सम्यग् वर्णप्रयोगेण ब्रह्मलोके महीयते।
  • अन्वयः इस प्रकार वर्णों का प्रयोग करना चाहिए। वे अस्पष्ट भी न हों और पीड़ादायक भी न हों। सही वर्ण प्रयोग करने वाला व्यक्ति ब्रह्मलोक में सम्मान पाता है।
  • भावार्थ: उच्चारण में स्पष्टता और मधुरता आवश्यक है। न तो शब्द अस्पष्ट हों और न ही कठोर। शुद्ध उच्चारण करने वाला व्यक्ति लोक और परलोक दोनों में सम्मानित होता है।

(४) मार्दवं अक्षरव्यक्तं पदच्छेदः सुस्वरः।
धैर्यं लयसमर्थं च षडेते पाठकगुणाः॥

  • पदच्छेदः मार्दवम्, अक्षरव्यक्तम्, पदच्छेदः, सुस्वरः, धैर्यम्, लयसमर्थम्।
    एते षट् पाठकगुणाः।
  • अन्वयः मधुरता, स्पष्ट अक्षर उच्चारण, पदों का उचित छेदन, सुन्दर स्वर, धैर्य और लय की समर्थता – ये छह उत्तम पाठक के गुण हैं।
  • भावार्थ: एक अच्छे पाठक के लिए यह आवश्यक है कि उसका स्वर मधुर हो, अक्षरों का उच्चारण स्पष्ट हो, वाक्यों को सही ढंग से विभाजित करे, आत्मविश्वास से बोले और लय का पालन करे।

(५) गीती शीघ्री शिरःकम्पी तथा ललितपाठकः।
अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः॥

  • पदच्छेदः गीती, शीघ्री, शिरःकम्पी, ललितपाठकः, अनर्थज्ञः, अल्पकण्ठः।
    एते षट् पाठकाधमाः।
  • अन्वयः जो गाने की तरह पढ़े, बहुत शीघ्रता से पढ़े, सिर हिलाकर पढ़े, गाकर पढ़े, अर्थ न समझकर पढ़े और मंद स्वर से पढ़े – ये छह अधम पाठक कहलाते हैं।
  • भावार्थ: खराब पाठक वे हैं जो केवल शब्द बोलते हैं पर अर्थ नहीं समझते, जल्दी-जल्दी पढ़ते हैं, गाकर पढ़ते हैं, या अस्पष्ट वाणी से पढ़ते हैं। ऐसे पठन से श्रोता को कोई लाभ नहीं होता।

वेदाङ्गाः

पाठ में आगे वेदाङ्गों का उल्लेख है –

  • शिक्षा – स्वर एवं वर्णों के उच्चारण का विज्ञान।
  • कल्प – यज्ञविधि का वर्णन।
  • व्याकरण – भाषा के शुद्ध प्रयोग का शास्त्र।
  • निरुक्त – शब्दों की व्युत्पत्ति।
  • छन्दः – कविता और छन्दों का शास्त्र।
  • ज्योतिषम् – ग्रह-नक्षत्रों का शास्त्र।

निष्कर्ष

इस अध्याय से शिक्षा मिलती है कि –

  • शुद्ध उच्चारण और सम्यक् वर्ण प्रयोग का अत्यधिक महत्व है।
  • व्याकरण और शिक्षा के बिना शब्दों का अर्थ बदल सकता है।
  • उत्तम पाठक के छह गुण और अधम पाठक के छह दोष हमें सीखने चाहिए।
  • सही वर्ण प्रयोग करने वाला व्यक्ति इस लोक और परलोक दोनों में सम्मान प्राप्त करता है।
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FAQs on सम्यग्वर्णप्रयोगेण ब्रह्मलोके महीयते Chapter Notes - Chapter Notes For Class 8

1. वेदाङ्गों का महत्व क्या है ?
Ans. वेदाङ्ग वेदों के अध्ययन और समझ के लिए सहायक शास्त्र हैं। इनमें शुद्ध उच्चारण, व्याकरण, निरुक्त, छंद, और ज्योतिष आदि विषय शामिल हैं। ये शास्त्र वेदों के मूल तत्वों को समझने और उनके सही उपयोग के लिए आवश्यक होते हैं।
2. 'सम्यग्वर्णप्रयोगेण ब्रह्मलोके महीयते' का क्या अर्थ है ?
Ans. इस वाक्य का अर्थ है कि सही वर्ण का प्रयोग करने से व्यक्ति ब्रह्मलोक में समृद्ध होता है। यह दर्शाता है कि भाषा एवं शब्दों का सही प्रयोग व्यक्ति की प्रतिष्ठा और ज्ञान में वृद्धि करता है।
3. श्लोक और भावार्थ के क्या अर्थ हैं ?
Ans. श्लोक एक विशेष प्रकार की कविता या गीत है, जो प्राचीन ग्रंथों में पाया जाता है। भावार्थ उसका अर्थ है, जो श्लोक में निहित विचारों या संदेशों को स्पष्ट करता है। यह अध्ययन में गहराई और विस्तार लाने में मदद करता है।
4. वेदों के कितने भाग होते हैं और उनके नाम क्या हैं ?
Ans. वेदों के चार मुख्य भाग होते हैं: ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद। प्रत्येक वेद का अपना विशेष विषय और महत्व होता है, जैसे कि ऋग्वेद में मंत्रों का संग्रह है, सामवेद में गायन का महत्व है, यजुर्वेद में यज्ञ के विधान हैं, और अथर्ववेद में तंत्र-मंत्र और औषधियों का ज्ञान है।
5. 'श्लोक एवं भावार्थ' का अध्ययन क्यों किया जाता है ?
Ans. 'श्लोक एवं भावार्थ' का अध्ययन इसलिए किया जाता है ताकि श्लोकों के गूढ़ अर्थों को समझा जा सके। इससे पाठक को शास्त्रों के गूढ़ संदेश और नैतिक शिक्षाएँ स्पष्ट रूप से समझ में आती हैं, जो जीवन में मार्गदर्शन करती हैं।
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