Class 8 Exam  >  Class 8 Notes  >  Chapter Notes For Class 8  >  Chapter Notes: वर्णोच्चारण-शिक्षा १

वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Chapter Notes | Chapter Notes For Class 8 PDF Download

परिचय

संस्कृत भाषा के अध्ययन में वर्णों का शुद्ध उच्चारण अत्यन्त आवश्यक है। यदि किसी शब्द का उच्चारण ठीक प्रकार से न हो, तो उसका अर्थ भी बदल सकता है। इसीलिए वर्णोच्चारण-शिक्षा का विशेष महत्त्व है। इस अध्याय में यह बताया गया है कि शब्द उच्चारण के लिए किन-किन स्थानों, करणों और प्रयत्नों की आवश्यकता होती है, तथा मुख और नासिका में ध्वनि उत्पन्न होने की प्रक्रिया कैसी है।

शब्दानां सम्यक् उच्चारणस्य महत्त्वम्

मूल पाठ (संस्कृत):
शब्दानां सम्यक् शब्दं च उच्चारणं नितान्तं महत्त्वपूर्णम् अन्तेऽपि तत्त्व्यं पदार्थे दृष्टव्यम्।
किञ्चित् शब्दस्य सम्यग् उच्चारणार्थं, तस्य शब्दस्य प्रत्येकवर्णस्य स्पष्टम उच्चारणं भवति।
अतः प्रत्येकवर्णस्य शब्दम् उच्चारणं कर्तुं भवति इति अत्र ज्ञायते।

भावार्थ:
किसी भी शब्द का सही उच्चारण बहुत आवश्यक है, क्योंकि इससे उसका वास्तविक अर्थ प्रकट होता है। जब तक किसी शब्द के प्रत्येक वर्ण का शुद्ध उच्चारण नहीं होगा, तब तक उसका सही अर्थ स्पष्ट नहीं हो सकता।

वागुत्पत्तेः प्रणाली

संस्कृत अनुच्छेद:
स्वर-व्यान्जनानां नत्वनत्वध-भेद-उपभेदानां विशेषः तत्त्व्यदर्शनातः। तत्र अङ्गेषु षट् उच्चारण-प्रदानानि अपि दृष्टानि। परन्तु, स्वराणाम् उच्चारणे केवलं आङ्ग्य एव उपयुज्यते न।

भावार्थ (हिंदी):
मानव-शरीर में ध्वनि उत्पन्न करने के लिए मुख्यतः छः अंग कार्य करते हैं। स्वर-उच्चारण में केवल मुख और नासिका का ही प्रयोग होता है, जबकि व्यंजन-उच्चारण में अन्य अंग भी सहायक होते हैं।

षट् उच्चारण-प्रदानानि (षडङ्गानि):

  • नाभि-प्रदेशः – उदर की मांसपेशियाँ (श्वास बल-तंत्र)
  • उरः – छाती (फेफड़े व डायफ्राम, वायु-बल-तंत्र)
  • कण्ठ-सिरः – कंठ, स्वरयंत्र (स्वनन-तंत्र)
  • आस्यम् – मुख व नासिका (उच्चारण-तंत्र)
  • जिह्वा – जिह्वा का विभिन्न भाग
  • नासिका – नासिका गुहा

उच्चारण हेतु आवश्यक तत्त्वानि

संस्कृत अनुच्छेद:
आस्यस्य अभ्यन्तरे वर्णानाम् उत्पत्त्यर्थं त्रीणि तत्त्वानि आवश्यकानि –
(क) स्थानम्, (ख) करणम्, (ग) आभ्यन्तर-प्रयत्नः।

भावार्थ (हिंदी):
मुख और नासिका के भीतर वर्णों के निर्माण के लिए तीन बातें आवश्यक हैं—

  • स्थानम् – जहाँ से वर्ण उत्पन्न होता है।
  • करणम् – जिससे स्थान पर वर्ण का आघात होता है।
  • आभ्यन्तर-प्रयत्नः – वर्ण के निर्माण का भीतरी प्रयास।

स्थानानि (उच्चारण-स्थान)

षट् स्थानानि:

  • कण्ठः
  • तालुः
  • मूर्धा
  • दन्तः
  • ओष्ठः
  • नासिका

भावार्थ (हिंदी):
मुख और नासिका में ये छह स्थान वर्णों के उच्चारण में सहायक होते हैं।

करणानि (उपकरणानि)

संस्कृत अनुच्छेद:
स्थानस्य समीपं यदागतं तत् करणं कथ्यते।

भावार्थ (हिंदी):
जिस अंग से उच्चारण-स्थान को स्पर्श किया जाता है, उसे करण कहते हैं।

स्थान और करण के उदाहरण:

  • तालु – स्थानम्, जिह्वा-मध्यः – करणम्
  • मूर्धा – स्थानम्, जिह्वा-उपान्तः – करणम्
  • दन्तः – स्थानम्, जिह्वा-अग्रः – करणम्
  • ओष्ठः – स्थानम्, ओष्ठः – करणम्

परिभाषा

  • स्वरः – "स्वयं राजन्ते इति स्वराः" – जो अपने बल से उच्चारित होते हैं।
  • व्यञ्जनम् – "अनवग्रहवत्त्वात् व्यञ्जनम्" – जो स्वर के साथ मिलकर बोले जाते हैं।

सारांश

इस अध्याय में यह स्पष्ट हुआ कि –

  • ध्वनि उत्पादन के लिए शरीर के छह अंग विशेष रूप से कार्य करते हैं।
  • उच्चारण के लिए तीन बातें आवश्यक हैं – स्थानम्, करणम्, आभ्यन्तर-प्रयत्नः।
  • मुख और नासिका के भीतर छह स्थानों और उनके करणों से ही सभी वर्ण उच्चरित होते हैं।
  • स्वर और व्यंजन की परिभाषाएँ तथा उनके भेद समझाए गए हैं।
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FAQs on वर्णोच्चारण-शिक्षा १ Chapter Notes - Chapter Notes For Class 8

1. उच्चारण का महत्त्व क्या है ?
Ans. उच्चारण का महत्त्व इसलिए है क्योंकि यह शब्दों के सही अर्थ को व्यक्त करने में सहायक होता है। सही उच्चारण न केवल संवाद को स्पष्ट बनाता है, बल्कि यह व्यक्ति की भाषा की समझ और ज्ञान का भी परिचायक होता है। गलत उच्चारण से कभी-कभी अर्थ में भी बदलाव आ सकता है, जिससे संवाद में भ्रम उत्पन्न हो सकता है।
2. वागुत्पत्तेः प्रणाली क्या है ?
Ans. वागुत्पत्तेः प्रणाली वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शब्दों का निर्माण एवं विकास होता है। यह प्रणाली विभिन्न ध्वनियों, स्वर और व्यंजन के संयोजन से शब्दों का निर्माण करती है। यह हमें यह समझने में मदद करती है कि कैसे विभिन्न ध्वनियाँ मिलकर नए अर्थ उत्पन्न करती हैं और भाषा में विविधता लाती हैं।
3. उच्चारण हेतु आवश्यक तत्त्वानि क्या हैं ?
Ans. उच्चारण हेतु आवश्यक तत्त्वों में सही ध्वनि, स्थान, और उपकरण शामिल हैं। ध्वनि की स्पष्टता और सटीकता महत्वपूर्ण होती है। इसके अलावा, उच्चारण के स्थान जैसे कि स्वर और व्यंजन के स्थान का ज्ञान होना आवश्यक है। यह सभी तत्त्व मिलकर सही उच्चारण को सुनिश्चित करते हैं।
4. उच्चारण-स्थान और करणानि (उपकरणानि) के बारे में बताइए।
Ans. उच्चारण-स्थान वह स्थान है जहाँ स्वर और व्यंजन का उत्पादन होता है, जैसे कि होंठ, जिव्हा, तालु, आदि। वहीं, करणानि (उपकरणानि) वे अंग हैं जो ध्वनि उत्पन्न करने में मदद करते हैं। इनमें श्वास नली, वोकल कॉर्ड्स, और अन्य आवाज़ उत्पन्न करने वाले अंग शामिल होते हैं। सही उच्चारण के लिए इन सभी का सही ज्ञान आवश्यक है।
5. वर्णोच्चारण-शिक्षा का क्या महत्व है ?
Ans. वर्णोच्चारण-शिक्षा का महत्व इसलिए है क्योंकि यह छात्रों को सही उच्चारण सिखाने में मदद करती है। यह न केवल भाषा कौशल को बेहतर बनाती है, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ाती है। सही उच्चारण से छात्र अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकते हैं, जो उनके संवाद कौशल को विकसित करता है।
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