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न्याय Chapter Notes | Hindi Class 5 वीणा - New NCERT PDF Download

कहानी परिचय

यह कहानी प्रसिद्ध लेखक विष्णु प्रभाकर जी ने लिखी है। इसमें कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ (जो आगे चलकर गौतम बुद्ध बने) के दयालु स्वभाव को दिखाया गया है। कहानी में राजकुमार सिद्धार्थ और उनके चचेरे भाई देवदत्त के बीच एक घायल हंस को लेकर विवाद होता है। देवदत्त हंस को तीर से घायल कर देता है और उसे अपना मानता है, जबकि सिद्धार्थ उसे बचाकर अपने पास रखते हैं। जब यह मामला महाराज के सामने पहुँचता है तो मंत्री यह निर्णय करते हैं कि हंस उसी के पास रहेगा जिसके पास वह स्वयं जाना चाहे। हंस सिद्धार्थ के पास उड़कर चला जाता है। इससे यह शिक्षा मिलती है कि दूसरों की रक्षा करना सबसे बड़ा धर्म और सच्चा न्याय है।

न्याय Chapter Notes | Hindi Class 5 वीणा - New NCERT

मुख्य विषय

कहानी “न्याय” का मुख्य विषय यह है कि सही न्याय वही है जिसमें दया, करुणा और बचाने वाला सबसे बड़ा माना जाता है। कहानी में राजकुमार सिद्धार्थ (भगवान बुद्ध) घायल हंस को बचाते हैं और कहते हैं कि जिसको मारा गया है वह मारने वाले का नहीं बल्कि बचाने वाले का होता है। मंत्री भी यही फैसला सुनाते हैं और हंस स्वयं सिद्धार्थ की गोद में आकर बैठ जाता है। इससे हमें सीख मिलती है कि हमें किसी भी जीव-जंतु पर दया करनी चाहिए, उन्हें कष्ट नहीं देना चाहिए। सच्चा न्याय हमेशा अहिंसा, दया और करुणा के पक्ष में होता है।

पात्र परिचय

  • सिद्धार्थ: कपिलवस्तु के राजकुमार। वे दयालु और करुणावान हैं। पक्षियों और सभी जीवों से बहुत प्यार करते हैं।
  • शुद्धोदन: कपिलवस्तु के महाराजा और सिद्धार्थ के पिता।
  • सखा: सिद्धार्थ का प्यारा मित्र, जो हर समय उनके साथ रहता है।
  • देवदत्त: सिद्धार्थ का चचेरा भाई। वह शिकार करना चाहता है और उसी ने हंस पर तीर चलाया था।
  • मंत्री: महाराजा का मंत्री, जो समझदारी और न्याय से फैसला करता है।
  • प्रतिहारी: दरबार का सेवक, जो राजा के आदेश पहुँचाता है।

कहानी का सार

शुरुआत: प्रकृति की सुंदरता और हंस का घायल होना

कहानी की शुरुआत कपिलवस्तु के राज-उद्यान में होती है, जहाँ राजकुमार सिद्धार्थ अपने मित्र (सखा) के साथ संध्या के समय बैठे हैं। दोनों प्रकृति की सुंदरता का आनंद ले रहे हैं। वे गायों का अपने बछड़ों के पास लौटना, पक्षियों के घोंसलों में जाने, और सूरज के रोज़ पूरब से निकलने व पश्चिम में डूबने की बात करते हैं। सिद्धार्थ कहते हैं कि हर चीज़ का अपना स्वभाव होता है, जैसे गर्मी और बरसात का समय पर आना। तभी वे आसमान में उड़ते हुए सुंदर राजहंसों का झुंड देखते हैं और उनकी तारीफ करते हैं। अचानक एक हंस को तीर लगता है और वह घायल होकर सिद्धार्थ की गोद में गिर जाता है। सिद्धार्थ करुणा से उसे सहलाते हैं, तीर निकालते हैं, और पूछते हैं कि किसने इस निर्दोष पक्षी को मारा। उनका मित्र कहता है कि सुंदर होना कोई पाप नहीं है। सिद्धार्थ अपने मित्र को राजवैद्य से मरहम लाने भेजते हैं।

न्याय Chapter Notes | Hindi Class 5 वीणा - New NCERT

पहला विवाद: देवदत्त का दावा

तभी सिद्धार्थ का चचेरा भाई देवदत्त आता है और कहता है कि उसने हंस को तीर मारकर गिराया है, इसलिए हंस उसका है। वह गर्व से कहता है कि उसका निशाना सध गया है। सिद्धार्थ जवाब देते हैं कि उन्होंने हंस को बचाया है, इसलिए हंस उनका है। दोनों में बहस हो जाती है। सिद्धार्थ कहते हैं कि कोई भी हृदय वाला व्यक्ति निर्दोष पक्षी को नहीं मार सकता। देवदत्त ज़िद करता है कि हंस उसका है, लेकिन सिद्धार्थ उसे देने से मना कर देते हैं। सखा सुझाव देता है कि इस झगड़े का फैसला महाराज शुद्धोदन करें। दोनों राजकुमार और सखा महाराज की सभा में जाने का फैसला करते हैं।

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दूसरा दृश्य: सभा में न्याय

महाराज शुद्धोदन की सभा में देवदत्त पहले पहुँचता है और शिकायत करता है कि सिद्धार्थ ने उसका हंस छीन लिया। महाराज सिद्धार्थ को बुलाते हैं। सिद्धार्थ हंस को गोद में लिए सभा में आते हैं। देवदत्त कहता है कि उसने हंस को तीर मारकर गिराया, इसलिए वह उसका है। सिद्धार्थ कहते हैं कि उन्होंने हंस को बचाया है और बचाने वाला मारने वाले से बड़ा होता है। वे यह भी कहते हैं कि हंस उनकी शरण में आया है, इसलिए वे उसे नहीं लौटाएँगे। सभा सिद्धार्थ की बात से प्रभावित होती है। महाराज मंत्री से निर्णय करने को कहते हैं। मंत्री सुझाव देते हैं कि हंस को बीच में रखा जाए और दोनों राजकुमार उसे बुलाएँ। देवदत्त पहले बुलाता है, लेकिन हंस डरकर चीखता है और उसके पास नहीं जाता। फिर सिद्धार्थ प्यार से बुलाते हैं, और हंस तुरंत उड़कर उनकी गोद में चिपक जाता है। यह देखकर सभा में हर्ष की लहर दौड़ उठती है।

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अंत: हंस का निर्णय और महाराज का फैसला

मंत्री कहते हैं कि हंस ने खुद फैसला कर लिया है कि वह सिद्धार्थ के पास रहना चाहता है। महाराज इस निर्णय को स्वीकार करते हैं और आदेश देते हैं कि हंस सिद्धार्थ के पास रहे। सभा में जय-जयकार होती है। सिद्धार्थ प्रेम से हंस को गले लगाते हैं, जबकि देवदत्त शर्मिंदगी में सिर झुका लेता है। कहानी यहीं खत्म होती है, जो दिखाती है कि करुणा और न्याय की जीत होती है और निर्दोष प्राणियों के प्रति प्रेम सबसे बड़ा होता है।

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कहानी की मुख्य बातें

  • सिद्धार्थ और हंस की कहानी: कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ उद्यान में अपने मित्र के साथ बैठे हैं। वे प्रकृति की सुंदरता और शांति का आनंद ले रहे हैं।
  • हंस पर तीर: सिद्धार्थ और उनका मित्र राजहंसों को देख रहे हैं, तभी एक हंस को तीर लगता है और वह सिद्धार्थ की गोद में गिरता है।
  • देवदत्त का दावा: देवदत्त, सिद्धार्थ का चचेरा भाई, कहता है कि उसने हंस को तीर मारा, इसलिए हंस उसका है।
  • सिद्धार्थ का तर्क: सिद्धार्थ कहते हैं कि उन्होंने हंस को बचाया, इसलिए हंस उनका है। वे हंस को देवदत्त को नहीं देना चाहते।
  • महाराज के पास मामला: सिद्धार्थ और देवदत्त अपने झगड़े का निर्णय महाराज शुद्धोदन के पास ले जाते हैं।
  • मंत्री का फैसला: मंत्री हंस को बीच में रखकर दोनों को बुलाने के लिए कहते हैं। हंस डरकर देवदत्त से दूर भागता है, लेकिन सिद्धार्थ की गोद में खुशी से चला जाता है।
  • अंतिम निर्णय: मंत्री और महाराज फैसला करते हैं कि हंस सिद्धार्थ का है, क्योंकि हंस ने खुद सिद्धार्थ को चुना।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सभी जीवों के प्रति दया और प्रेम रखना चाहिए। सिद्धार्थ ने हंस को बचाकर दिखाया कि किसी की मदद करना और उसकी रक्षा करना बहुत बड़ा काम है। दूसरी ओर, देवदत्त ने हंस को मारने की कोशिश की, जो गलत था। कहानी बताती है कि जो दूसरों को दुख देता है, वह गलत है, और जो दूसरों की रक्षा करता है, वह सही है। हमें हमेशा दूसरों की भलाई के लिए काम करना चाहिए और किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। यह भी सीख मिलती है कि सच्चा न्याय वही है, जो प्रेम और करुणा पर आधारित हो।

शब्दार्थ

  • राज-उद्यान: राजा का बगीचा
  • लालिमा: लाल रंग की आभा या चमक
  • नेपथ्य: परदे के पीछे का स्थान
  • वेदी: पूजा, यज्ञ या समारोह के लिए बनाया गया ऊँचा चबूतरा
  • व्याकुल: बेचैन
  • अचरज: आश्चर्य
  • नियत: निश्चित
  • योगी: संत / महात्मा
  • निर्दयी: दया भाव से हीन
  • अनुराग: प्रेम
  • निर्दोष: दोष रहित
  • राजवैद्य: राज महल का वैद्य
  • गवाही: बयान या साक्ष्य
  • प्रमाण: सबूत
  • तिलमिलाकर: व्याकुल होकर / छटपटाकर
  • विवश: मज़बूर
  • सुझाव: राय देना
  • प्रतिहारी: दरबार के प्रवेश द्वार की रखवाली करने वाला
  • आखेट: शिकार
  • शरणागत: शरण में आया हुआ
  • स्नेहपूरित: प्रेम से भरा हुआ
  • स्तंभित: चकित / हैरान
  • आसन: बैठने का स्थान
  • उल्लास: आनंद / उमंग / खुशी

मुहावरे

  • धौंस जमाना: दबाव बनाना या डराना-धमकाना
  • नेत्र सजल हो जाना: आँखों में आँसू आ जाना
  • छाती से चिपकाना: स्नेहपूर्वक अपनाना / बहुत प्यार करना
  • गरदन झुकाना: हार मान लेना / समर्पण कर देना
  • नेकी और पूछ-पूछ: भलाई में संकोच या देरी नहीं करनी चाहिए
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FAQs on न्याय Chapter Notes - Hindi Class 5 वीणा - New NCERT

1. न्याय क्या है और इसका महत्व क्या है?
Ans. न्याय का अर्थ है सही और निष्पक्ष व्यवहार या निर्णय। यह समाज में समानता और सद्भाव बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है। न्याय का पालन न केवल कानून के माध्यम से, बल्कि नैतिकता और सामाजिक मूल्यों के आधार पर भी किया जाता है।
2. कहानी में मुख्य पात्र कौन-कौन हैं?
Ans. कहानी में मुख्य पात्र वे लोग हैं जो न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हैं या न्याय की खोज में लगे रहते हैं। इनमें न्यायाधीश, वकील, और आम नागरिक शामिल हो सकते हैं, जो अपनी आवाज उठाते हैं और न्याय की स्थापना के लिए संघर्ष करते हैं।
3. कहानी का सार क्या है?
Ans. कहानी का सार यह है कि न्याय का पालन करना और उसके लिए लड़ना सभी का कर्तव्य है। यह दिखाता है कि जब लोग मिलकर कार्य करते हैं और सही के लिए खड़े होते हैं, तो वे समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
4. इस कहानी से हमें कौन-सी शिक्षा मिलती है?
Ans. इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि न्याय की स्थापना केवल कानूनी प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे नैतिक मूल्यों और व्यक्तिगत पहलुओं से भी जुड़ी होती है। हमें हमेशा सही के लिए खड़ा होना चाहिए और दूसरों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।
5. क्या न्याय केवल कानून से होता है, या यह नैतिकता से भी जुड़ा है?
Ans. न्याय केवल कानून से नहीं होता, बल्कि यह नैतिकता से भी गहराई से जुड़ा है। कानूनों का उद्देश्य समाज में व्यवस्था बनाए रखना है, लेकिन नैतिकता हमें सही और गलत के बीच का अंतर समझने में मदद करती है। न्याय का असली अर्थ तब ही निकलता है जब हम दोनों पहलुओं को ध्यान में रखते हैं।
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