Table of contents |
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कहानी परिचय |
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मुख्य विषय |
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पात्र परिचय |
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कहानी का सार |
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कहानी की मुख्य बातें |
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कहानी से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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यह कहानी प्रसिद्ध लेखक विष्णु प्रभाकर जी ने लिखी है। इसमें कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ (जो आगे चलकर गौतम बुद्ध बने) के दयालु स्वभाव को दिखाया गया है। कहानी में राजकुमार सिद्धार्थ और उनके चचेरे भाई देवदत्त के बीच एक घायल हंस को लेकर विवाद होता है। देवदत्त हंस को तीर से घायल कर देता है और उसे अपना मानता है, जबकि सिद्धार्थ उसे बचाकर अपने पास रखते हैं। जब यह मामला महाराज के सामने पहुँचता है तो मंत्री यह निर्णय करते हैं कि हंस उसी के पास रहेगा जिसके पास वह स्वयं जाना चाहे। हंस सिद्धार्थ के पास उड़कर चला जाता है। इससे यह शिक्षा मिलती है कि दूसरों की रक्षा करना सबसे बड़ा धर्म और सच्चा न्याय है।
कहानी “न्याय” का मुख्य विषय यह है कि सही न्याय वही है जिसमें दया, करुणा और बचाने वाला सबसे बड़ा माना जाता है। कहानी में राजकुमार सिद्धार्थ (भगवान बुद्ध) घायल हंस को बचाते हैं और कहते हैं कि जिसको मारा गया है वह मारने वाले का नहीं बल्कि बचाने वाले का होता है। मंत्री भी यही फैसला सुनाते हैं और हंस स्वयं सिद्धार्थ की गोद में आकर बैठ जाता है। इससे हमें सीख मिलती है कि हमें किसी भी जीव-जंतु पर दया करनी चाहिए, उन्हें कष्ट नहीं देना चाहिए। सच्चा न्याय हमेशा अहिंसा, दया और करुणा के पक्ष में होता है।
कहानी की शुरुआत कपिलवस्तु के राज-उद्यान में होती है, जहाँ राजकुमार सिद्धार्थ अपने मित्र (सखा) के साथ संध्या के समय बैठे हैं। दोनों प्रकृति की सुंदरता का आनंद ले रहे हैं। वे गायों का अपने बछड़ों के पास लौटना, पक्षियों के घोंसलों में जाने, और सूरज के रोज़ पूरब से निकलने व पश्चिम में डूबने की बात करते हैं। सिद्धार्थ कहते हैं कि हर चीज़ का अपना स्वभाव होता है, जैसे गर्मी और बरसात का समय पर आना। तभी वे आसमान में उड़ते हुए सुंदर राजहंसों का झुंड देखते हैं और उनकी तारीफ करते हैं। अचानक एक हंस को तीर लगता है और वह घायल होकर सिद्धार्थ की गोद में गिर जाता है। सिद्धार्थ करुणा से उसे सहलाते हैं, तीर निकालते हैं, और पूछते हैं कि किसने इस निर्दोष पक्षी को मारा। उनका मित्र कहता है कि सुंदर होना कोई पाप नहीं है। सिद्धार्थ अपने मित्र को राजवैद्य से मरहम लाने भेजते हैं।
तभी सिद्धार्थ का चचेरा भाई देवदत्त आता है और कहता है कि उसने हंस को तीर मारकर गिराया है, इसलिए हंस उसका है। वह गर्व से कहता है कि उसका निशाना सध गया है। सिद्धार्थ जवाब देते हैं कि उन्होंने हंस को बचाया है, इसलिए हंस उनका है। दोनों में बहस हो जाती है। सिद्धार्थ कहते हैं कि कोई भी हृदय वाला व्यक्ति निर्दोष पक्षी को नहीं मार सकता। देवदत्त ज़िद करता है कि हंस उसका है, लेकिन सिद्धार्थ उसे देने से मना कर देते हैं। सखा सुझाव देता है कि इस झगड़े का फैसला महाराज शुद्धोदन करें। दोनों राजकुमार और सखा महाराज की सभा में जाने का फैसला करते हैं।
महाराज शुद्धोदन की सभा में देवदत्त पहले पहुँचता है और शिकायत करता है कि सिद्धार्थ ने उसका हंस छीन लिया। महाराज सिद्धार्थ को बुलाते हैं। सिद्धार्थ हंस को गोद में लिए सभा में आते हैं। देवदत्त कहता है कि उसने हंस को तीर मारकर गिराया, इसलिए वह उसका है। सिद्धार्थ कहते हैं कि उन्होंने हंस को बचाया है और बचाने वाला मारने वाले से बड़ा होता है। वे यह भी कहते हैं कि हंस उनकी शरण में आया है, इसलिए वे उसे नहीं लौटाएँगे। सभा सिद्धार्थ की बात से प्रभावित होती है। महाराज मंत्री से निर्णय करने को कहते हैं। मंत्री सुझाव देते हैं कि हंस को बीच में रखा जाए और दोनों राजकुमार उसे बुलाएँ। देवदत्त पहले बुलाता है, लेकिन हंस डरकर चीखता है और उसके पास नहीं जाता। फिर सिद्धार्थ प्यार से बुलाते हैं, और हंस तुरंत उड़कर उनकी गोद में चिपक जाता है। यह देखकर सभा में हर्ष की लहर दौड़ उठती है।
मंत्री कहते हैं कि हंस ने खुद फैसला कर लिया है कि वह सिद्धार्थ के पास रहना चाहता है। महाराज इस निर्णय को स्वीकार करते हैं और आदेश देते हैं कि हंस सिद्धार्थ के पास रहे। सभा में जय-जयकार होती है। सिद्धार्थ प्रेम से हंस को गले लगाते हैं, जबकि देवदत्त शर्मिंदगी में सिर झुका लेता है। कहानी यहीं खत्म होती है, जो दिखाती है कि करुणा और न्याय की जीत होती है और निर्दोष प्राणियों के प्रति प्रेम सबसे बड़ा होता है।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सभी जीवों के प्रति दया और प्रेम रखना चाहिए। सिद्धार्थ ने हंस को बचाकर दिखाया कि किसी की मदद करना और उसकी रक्षा करना बहुत बड़ा काम है। दूसरी ओर, देवदत्त ने हंस को मारने की कोशिश की, जो गलत था। कहानी बताती है कि जो दूसरों को दुख देता है, वह गलत है, और जो दूसरों की रक्षा करता है, वह सही है। हमें हमेशा दूसरों की भलाई के लिए काम करना चाहिए और किसी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। यह भी सीख मिलती है कि सच्चा न्याय वही है, जो प्रेम और करुणा पर आधारित हो।
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1. न्याय क्या है और इसका महत्व क्या है? | ![]() |
2. कहानी में मुख्य पात्र कौन-कौन हैं? | ![]() |
3. कहानी का सार क्या है? | ![]() |
4. इस कहानी से हमें कौन-सी शिक्षा मिलती है? | ![]() |
5. क्या न्याय केवल कानून से होता है, या यह नैतिकता से भी जुड़ा है? | ![]() |