Table of contents |
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कहानी परिचय |
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मुख्य विषय |
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कहानी का सार |
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कहानी की मुख्य बातें |
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कहानी से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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यह कहानी नदी गंगा के जीवन और यात्रा के बारे में है। गंगा का जन्म हिमालय की गोद में गंगोत्री से होता है। गोमुख से निकलकर वह पहाड़ों से नीचे आती है, रास्ते में चट्टानों और घाटियों से टकराती है और अपनी धारा बढ़ाती है। गंगा कई नगरों और तीर्थों के पास से बहती है, जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी। वह खेतों को पानी देती है, कारखानों और लोगों की जरूरतें पूरी करती है और अंत में बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है। गंगा को लोग पवित्र मानते हैं। इस कहानी में यह भी बताया गया है कि गंगा का पानी शहरों और कारखानों के कारण गंदा हो जाता है, लेकिन अब लोगों ने इसे साफ करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।
इस कहानी का मुख्य विषय यह है कि गंगा नदी भारत की जीवनदायिनी और पवित्र नदी है। कहानी में बताया गया है कि गंगा हिमालय के गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है और पहाड़ों, नगरों और तीर्थस्थलों से होकर बहती है। लोग गंगा के पानी का उपयोग पीने, खेती और उद्योगों में करते हैं। गंगा का जल समय के साथ शहरों और कारखानों के गंदे पानी से दूषित हो जाता है, लेकिन अब लोगों ने उसे साफ़ करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि हमारी जीवन, संस्कृति और पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है और इसे स्वच्छ रखना हमारी जिम्मेदारी है।
गंगा नदी का जन्म हिमालय की गोद में हुआ। गंगा नन्ही-सी धारा के रूप में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री हिमनद के गोमुख नामक स्थान से निकलती हूँ। गंगोत्री में मेरा भव्य मंदिर है, जहाँ देशभर से लोग दर्शन करने आते हैं। मेरा एक नाम भागीरथी भी है क्योंकि राजा भगीरथ ने इसी स्थान पर तपस्या की थी। यहाँ से मैं पहाड़ों के बीच से बहती हुई नीचे की ओर चलती हूँ। मैं चट्टानों से टकराती, उछलती-कूदती आगे बढ़ती हूँ।
देवप्रयाग में मुझसे अलकनंदा नदी मिलती है। ऋषिकेश पहुँचने पर मैं मैदान में उतर जाती हूँ। मेरे किनारों पर साधु-संतों और महात्माओं के आश्रम हैं। कई नगर मेरे किनारे बसे हैं और कई कारखाने भी खुल गए हैं। इन सबको पानी मैं ही देती हूँ। ऋषिकेश और हरिद्वार प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हैं। हरिद्वार में हर बारह वर्ष बाद कुंभ मेला लगता है। हरिद्वार के पास से गंगानहर निकाली गई है, जो लाखों एकड़ जमीन को सींचती हुई उत्तर प्रदेश के कानपुर तक पहुँचती है।
कानपुर भारत का प्रसिद्ध औद्योगिक नगर है। यहाँ कपड़े, चमड़े और लोहे के कारखाने हैं। ये कारखाने मुझसे पानी पाते हैं। कानपुर से मैं प्रयागराज पहुँचती हूँ। यहाँ मेरी यमुना नदी से संगम होता है। संगम पर भी हर बारह साल में कुंभ का मेला लगता है, जिसमें लाखों लोग आते हैं।
मैं लगातार बहती रहती हूँ। वाराणसी (काशी) पहुँचकर मैं यहाँ के लोगों और तीर्थस्थलों को अपने जल से लाभ पहुँचाती हूँ। वाराणसी से आगे मैं बिहार पहुँचती हूँ। यहाँ पटना, भागलपुर जैसे नगर मेरे किनारे बसे हैं। फिर मैं पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती हूँ। यहाँ मेरी दो धाराएँ बन जाती हैं। एक धारा बांग्लादेश की ओर जाती है और वहाँ उसका नाम पद्मा है। दूसरी धारा कोलकाता की ओर जाती है और वहाँ मुझे हुगली कहते हैं। अंत में मैं बंगाल की खाड़ी में समुद्र से मिल जाती हूँ।
भारतवासी मुझे पवित्र नदी मानते हैं। गंगोत्री से निकलते समय मेरा जल चाँदी जैसा चमकता है। लेकिन काशी पहुँचने तक मेरा जल मटमैला हो जाता है क्योंकि कारखानों और शहरों का गंदा पानी मुझे दूषित कर देता है। मुझे खुशी है कि अब लोगों ने इस बात पर ध्यान दिया है। मेरे जल को फिर से स्वच्छ और निर्मल बनाने के प्रयास शुरू हो गए हैं। गंगा उस दिन की प्रतीक्षा करती है जब मेरा जल फिर से वैसा स्वच्छ होगा जैसा गंगोत्री से निकलते समय था।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें नदियों और पानी की स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए। गंगा जैसे पवित्र जल स्रोत हमारे जीवन के लिए बहुत जरूरी हैं। अगर हम नदी और उसके जल को गंदा करेंगे तो यह हमारी और अन्य जीवों की सेहत के लिए हानिकारक होगा। हमें अपने शहरों, घरों और कारखानों का गंदा पानी सीधे नदियों में नहीं डालना चाहिए। साथ ही, हमें यह भी सीख मिलती है कि लगातार प्रयास और सावधानी से हम किसी भी चीज़ को साफ, सुंदर और उपयोगी बना सकते हैं, जैसे कि लोग अब गंगा को फिर से स्वच्छ बनाने के प्रयास कर रहे हैं। इस तरह, हमें अपने पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करनी चाहिए।
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1. गंगा नदी का महत्व क्या है ? | ![]() |
2. गंगा नदी का उद्गम स्थल कहाँ है ? | ![]() |
3. गंगा नदी के किनारे कौन-कौन से प्रमुख शहर स्थित हैं ? | ![]() |
4. गंगा नदी के प्रदूषण के कारण क्या हैं ? | ![]() |
5. गंगा नदी की सफाई के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं ? | ![]() |