प्रश्न 1: "न्याय की कुर्सी" कहानी किसने लिखी है?
उत्तर: यह कहानी लीलावती भागवत ने लिखी है। यह "स्वर्ग की सैर तथा अन्य कहानियाँ" नामक पुस्तक से ली गई है।
प्रश्न 2: बच्चों ने पत्थर को किस चीज़ के रूप में माना?
उत्तर: बच्चों ने उस पत्थर को सिंहासन माना। एक लड़का उस पर बैठकर राजा बन गया और फैसले करने लगा।
प्रश्न 3: लोगों ने अपनी असली शिकायतें किसके पास ले जानी शुरू कीं?
उत्तर: लोग असली शिकायतें उस लड़के के पास ले जाने लगे। क्योंकि उसके फैसले सभी को सही और न्यायपूर्ण लगते थे।
प्रश्न 4: राजा को जब इस बात का पता चला तो उसकी क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर: राजा को बहुत गुस्सा आया। उसने सोचा कि वह खुद जाकर देखेगा कि मामला क्या है।
प्रश्न 5: राजा ने उस पत्थर को क्या निकलवाया?
उत्तर: राजा ने उस जगह को खोदकर पत्थर निकलवाया। वह असल में राजा विक्रमादित्य का सिंहासन निकला।
प्रश्न 6: सिंहासन पर कैसी नक्काशी बनी थी?
उत्तर: सिंहासन पर सुंदर नक्काशी थी। इसके चारों पायों पर चार देवदूतों की मूर्तियाँ बनी थीं।
प्रश्न 7: जब राजा सिंहासन पर बैठने गया तो मूर्तियाँ क्या करने लगीं?
उत्तर: मूर्तियाँ बोलने लगीं। उन्होंने राजा से चोरी, झूठ और हिंसा के बारे में सवाल किए।
प्रश्न 8: राजा ने अपनी गलतियों के लिए क्या किया?
उत्तर: राजा ने हर गलती मानकर प्रायश्चित किया। उसने तीन-तीन दिन उपवास और प्रार्थना की।
प्रश्न 9: चौथी मूर्ति ने राजा से कौन-सा सवाल पूछा?
उत्तर: चौथी मूर्ति ने पूछा कि क्या उसका मन साफ और निष्कलुष है। राजा ने अहंकार से खुद को योग्य बताया।
प्रश्न 10: कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर: कहानी से शिक्षा मिलती है कि सच्चा न्याय वही कर सकता है, जिसका मन साफ और निष्पक्ष हो। अहंकार इंसान को गिरा देता है।
प्रश्न 1: बच्चों का खेल कैसे पूरे शहर में प्रसिद्ध हो गया?
उत्तर: बच्चे एक पत्थर पर राजा-रानी का खेल खेलते थे। एक लड़का उस पत्थर पर बैठकर शिकायतें सुनता और फैसले करता। उसके फैसले इतने समझदारी भरे थे कि लोग हैरान रह जाते। धीरे-धीरे शहर के लोग अपनी असली शिकायतें भी उसके पास ले जाने लगे। इस तरह बच्चों का खेल पूरे शहर में प्रसिद्ध हो गया।
प्रश्न 2: राजा विक्रमादित्य का सिंहासन कैसे मिला?
उत्तर: जब राजा ने बच्चों का खेल देखा तो उसे आश्चर्य हुआ। उसने उस पत्थर को निकलवाने का आदेश दिया। जब मिट्टी खोदी गई तो वह एक सुंदर सिंहासन निकला। उस पर सुंदर नक्काशी थी और चार देवदूतों की मूर्तियाँ बनी थीं। विद्वानों ने बताया कि यह राजा विक्रमादित्य का प्राचीन सिंहासन है।
प्रश्न 3: सिंहासन पर बैठने की राजा की कोशिश बार-बार क्यों असफल हुई?
उत्तर: राजा सिंहासन पर बैठना चाहता था। लेकिन हर बार मूर्तियाँ उससे सवाल पूछतीं। चोरी, झूठ और हिंसा के सवालों में राजा को अपनी गलतियाँ माननी पड़ीं। वह बार-बार पीछे हट गया। उसके मन की अशुद्धि और अहंकार के कारण वह सिंहासन पर बैठने योग्य नहीं था।
प्रश्न 4: राजा ने कौन-कौन से प्रायश्चित किए?
उत्तर: राजा ने जब अपनी गलतियाँ मानीं तो मूर्तियों ने उसे प्रायश्चित करने को कहा। उसने तीन-तीन दिन तक उपवास और प्रार्थना की। हर बार नई गलती मानकर फिर प्रायश्चित करता। लेकिन वह पूरी तरह योग्य साबित नहीं हो पाया। अंत में उसका अहंकार उसे विफल कर गया।
प्रश्न 5: "न्याय की कुर्सी" कहानी से हमें क्या संदेश मिलता है?
उत्तर: इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि न्याय करने के लिए मन साफ और निष्पक्ष होना चाहिए। राजा विक्रमादित्य का सिंहासन केवल उसी को स्वीकार करता है, जो ईमानदार और पवित्र हो। अहंकार और गलतियाँ इंसान को योग्य नहीं बनातीं। सच्चा न्याय करने के लिए विनम्रता, करुणा और सत्य जरूरी है।
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1. न्याय की कुर्सी का महत्व क्या है? | ![]() |
2. न्याय की कुर्सी पर कौन बैठता है? | ![]() |
3. क्या न्याय की कुर्सी केवल एक भौतिक वस्तु है? | ![]() |
4. न्याय की कुर्सी के चारों ओर कौन-कौन से लोग होते हैं? | ![]() |
5. न्याय की कुर्सी में न्याय की प्रक्रिया कैसे होती है? | ![]() |