Class 9 Exam  >  Class 9 Notes  >  Hindi Class 9 (Kritika and Kshitij)  >  NCERT Solutions: उपभोक्तावाद की संस्कृति

उपभोक्तावाद की संस्कृति NCERT Solutions | Hindi Class 9 (Kritika and Kshitij) PDF Download

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1: लेखक के अनुसार जीवन में 'सुख' से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: 
लेखक के अनुसार, जीवन में ‘सुख’ का अभिप्राय केवल उपभोग-सुख नहीं है। विभिन्न प्रकार के मानसिक, शारीरिक तथा सूक्ष्म आराम भी ‘सुख’ कहलाते हैं। परन्तु आजकल लोग केवल उपभोग के साधनों को भोगने को ही ‘सुख’ कहने लगे हैं।

प्रश्न 2: आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?
उत्तर: उपभोक्तावादी संस्कृति से हमारा दैनिक जीवन पूरी तरह प्रभावित हो रहा है। आज व्यक्ति उपभोग को ही सुख समझने लगा है। इस कारण लोग अधिकाधिक वस्तुओं का उपभोग कर लेना चाहते हैं। लोग बहुविज्ञापित वस्तुओं को खरीदकर दिखावा करने लगे हैं। इस संस्कृति से मानवीय संबंध कमजोर हो रहे हैं। अमीर-गरीब के बीच दूरी बढ़ने से समाज में अशांति और आक्रोश बढ़ रहा है।

प्रश्न 3: लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?
उत्तर: 
गाँधी जी सामाजिक मर्यादाओं तथा नैतिकता के पक्षधर थे। वे सादा जीवन, उच्च विचार के कायल थे। वे चाहते थे कि समाज में आपसी प्रेम और संबंध बढ़े। लोग संयम और नैतिकता का आचरण करें। उपभोक्तावादी संस्कृति इस सबके विपरीत चलती है। वह भोग को बढ़ावा देती है और नैतिकता तथा मर्यादा को तिलांजलि देती है। गाँधी जी चाहते थे कि हम भारतीय अपनी बुनियाद पर कायम रहें, अर्थात् अपनी संस्कृति को न त्यागें। परंतु आज उपभोक्तावादी संस्कृति के नाम पर हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी मिटाते जा रहे हैं। इसलिए उन्होंने उपभोक्तावादी संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती कहा है।

प्रश्न 4:  आशय स्पष्ट कीजिए -
(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।

उत्तर:
(क) उपभोक्तावादी संस्कृति अधिकाधिक उपभोग को बढ़ावा देती है। लोग उपभोग का ही सुख मानकर भौतिक साधनों का उपयोग करने लगते हैं। इससे वे वस्तु की गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना उत्पाद के गुलाम बनकर रह जाते हैं। जिसका असर उनके चरित्र पर पड़ता है।
(ख) लोग समाज में प्रतिष्ठा दिखाने के लिए तरह-तरह के तौर तरीके अपनाते हैं। उनमें कुछ अनुकरणीय होते हैं तो कुछ उपहास का कारण बन जाते हैं। पश्चिमी देशों में लोग अपने अंतिम संस्कार अंतिम विश्राम हेतु-अधिक-से-अधिक मूल्य देखकर सुंदर जगह सुनिश्चित करने लगे हैं। उनका ऐसा करना नितांत हास्यास्पद है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5: कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देख कर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं? क्यों?
उत्तर: 
टी.वी. पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन अत्यंत सम्मोहक और प्रभावशाली होते हैं। वे हमारी आँखों और कानों को विभिन्न दृश्यों और ध्वनियों के सहारे प्रभावित करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, ये विज्ञापन हमारे मन में वस्तुओं के प्रति भ्रामक आकर्षण पैदा करते हैं। जैसे 'खाए जाओ', 'क्या करें, कंट्रोल ही नहीं होता', और 'दिमाग की बत्ती जला देती है' जैसे आकर्षक वाक्य हमारी लार टपका देते हैं। इन विज्ञापनों के प्रभाव में आने वाला हर व्यक्ति इनके वश में हो जाता है, और इस प्रकार, अनुपयोगी वस्तुएँ भी हमें खरीदने के लिए लालायित कर देती हैं।

उपभोक्तावाद की संस्कृति NCERT Solutions | Hindi Class 9 (Kritika and Kshitij)


प्रश्न 6: आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर: 
वस्तुओं को खरीदने का एकमात्र आधार गुणवत्ता होना चाहिए। विज्ञापन हमें गुणवत्ता वाली वस्तुओं से परिचित करा सकते हैं, लेकिन अक्सर यह भ्रामक आकर्षण पैदा करते हैं। ये विज्ञापन आकर्षक दृश्यों के माध्यम से गुणहीन वस्तुओं का प्रचार करते हैं, जिससे ग्राहक को सही निर्णय लेने में कठिनाई होती है। इसलिए, हमें हमेशा वस्तु की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए, न कि उसके विज्ञापन पर।

प्रश्न 7: पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही "दिखावे की संस्कृति" पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर: 
आज दिखावे की संस्कृति पनप रही है। यह बात बिल्कुल सत्य है। इसलिए लोग उन्हीं चीजों को अपना रहे हैं, जो दुनिया की नजरों में अच्छी हैं। सारे सौंदय-प्रसाधन मनुष्यों को सुंदर दिखाने के ही प्रयास करते हैं। पहले यह दिखावा औरतों में होता था, आजकल पुरुष भी इस दौड़ में आगे बढ़ चले हैं। नए-नए परिधान और फैशनेबल वस्त्र दिखावे की संस्कृति को ही बढ़ावा दे रहे हैं।
आज लोग समय देखने के लिए घड़ी नहीं खरीदते, बल्कि अपनी हैसियत दिखाने के लिए हजारों क्या लाखों रुपए की घड़ी पहनते हैं। आज हर चीज पाँच सितारा संस्कृति की हो गई है। खाने के लिए पाँच-सितारा होटल, इलाज के लिए पाँच सितारा हस्पताल, पढ़ाई के लिए पाँच सितारा सुविधाओं वाले विद्यालय-सब जगह दिखावे का ही साम्राज्य है। यहाँ तक कि लोग मरने के बाद अपनी कब्र के लिए लाखों रुपए खर्च करने लगे हैं ताकि वे दुनिया में अपनी हैसियत के लिए पहचाने जा सकें।
यह दिखावा-संस्कृति मनुष्य को मनुष्य से दूर कर रही है। लोगों के सामाजिक संबंध घटने लगे हैं। मन में अशांति जन्म ले रही है। आक्रोश बढ़ रहा है, तनाव बढ़ रहा है। हम लक्ष्य से भटक रहे हैं। यह अशुभ है। इसे रोका जाना चाहिए।

प्रश्न 8: आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति -रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए|
उत्तर: 
आज की उपभोक्ता संस्कृति के प्रभाव से हमारे रीति-रिवाज और त्योहार अछूते नहीं रहे। हमारे रीति-रिवाज और त्योहार सामाजिक समरसता बढ़ाने वाले, वर्ग भेद मिटाने वाले सभी को उल्लासित एवं आनंदित करने वाले हुआ करते थे, परंतु उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव से इनमें बदलाव आ गया है। इससे त्योहार अपने मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। आज रक्षाबंधन के पावन अवसर पर बहन भाई द्वारा दिए गए उपहार का मूल्य आंकलित करती है। दीपावली के त्योहार पर मिट्टी के दीए प्रकाश फैलाने के अलावा समानता दर्शाते थे परंतु बिजली की लड़ियों और मिट्टी के दीयों ने अमीर-गरीब का अंतर स्पष्ट कर दिया है। यही हाल अन्य त्योहारों का भी है।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 9: धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
इस वाक्य में बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।
(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त लगभग पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।
(ख) धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर-इन क्रिया-विशेषण शब्दों को प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
(ग) नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए-

उपभोक्तावाद की संस्कृति NCERT Solutions | Hindi Class 9 (Kritika and Kshitij)उत्तर: (क)

  1. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। (‘ धीरे-धीरे रीतिवाचक क्रिया-विशेषण) (सब-कुछ ‘परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण’)
  2. आपको लुभाने की जी-तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती है। (‘निरंतर’ रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
  3. सामंती संस्कृति के तत्त्व भारत में पहले भी रहे हैं। (‘पहले’ कालवाचक क्रिया-विशेषण)
  4. अमरीका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है। (आज, कल कालवाचक क्रिया-विशेषण)
  5. हमारे सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है। (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण)

(ख)

  1. धीरे-धीरे: भ्रष्टाचार की बीमारी धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल चुकी है।
  2. जोर-से: अचानक यहाँ जोर-से विस्फोट हुआ। लगातार-कल से लगातार वर्षा हो रही है।
  3. हमेशा: चोरी और बेईमानी हमेशा नहीं चलती।
  4. आजकल: आजकल विज्ञापनों का प्रचलन और भी जोर पकड़ता जा रहा है।
  5. कम: भारत में अनपढ़ों की संख्या कम होती जा रही है।
  6. ज्यादा: उत्तर प्रदेश में अपराधों की संख्या पंजाब से ज्यादा है।
  7. यहाँ: कल तुम यहाँ आकर बैठना।
  8. उधर: मैंने जानबूझकर उधर नहीं देखा।
  9. बाहर: तुम चुपचाप बाहर चले जाओ।

(ग)

  1. निरंतर, (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
  2. पके (विशेषण)
  3. हलकी (विशेषण) कल रात कल रात (कालवाचक क्रियाविशेषण) जोरों की (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
  4. उतना, जितनी (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण) मुँह में (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)
  5. आजकल (कालवाचक क्रिया-विशेषण) बाज़ार (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न: ‘दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों पर बढ़ता प्रभाव’ विषय पर अध्यापक और विद्यार्थी के बीच हुए वार्तालाप को संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर: 
इस पाठ के माध्यम से आपने उपभोक्ता संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अब आप अपने अध्यापक की सहायता से सामंती संस्कृत के बारे में जानकारी प्राप्त करें और नीचे दिए गए विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कक्षा में अपने विचार व्यक्त करें। क्या उपभोक्ता संस्कृति सामंती संस्कृति का ही विकसित रूप है। आप प्रतिदिन टी० वी० पर ढेरों विज्ञापन देखते-सुनते हैं और इनमें से कुछ आपकी ज़बान पर चढ़ हैं। आप अपनी पसंद की किन्हीं दो वस्तुओं पर विज्ञापन तैयार कीजिए। उत्तर-छात्र स्वयं करें।

प्रश्न: इस पाठ के माध्यम से आपने उपभोक्ता संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अब आप अपने अध्यापक की सहायता से सामंती संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करें और नीचे दिए गए विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कक्षा में अपने विचार व्यक्त करें।
क्या उपभोक्ता संस्कृति सामंती संस्कृति का ही विकसित रूप है

उत्तर: पक्ष में विचार
हाँ, उपभोक्ता संस्कृति को हम सामंती संस्कृति का ही नया रूप कह सकते हैं।
पहले सामंती समाज में कुछ अमीर लोग होते थे। वे लोग महंगे कपड़े पहनते थे, बड़ी-बड़ी कोठियों में रहते थे, नौकर-चाकर रखते थे और अपने वैभव का दिखावा करते थे। गरीब लोग बस देखते थे, पर वैसा जीवन नहीं जी पाते थे।
आज भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। अब लोग महंगी चीजें खरीदते हैं – जैसे महंगी घड़ियाँ, गाड़ियाँ, मोबाइल, कपड़े – ताकि वे दूसरों को दिखा सकें कि वे कितने अमीर हैं। लोग अपनी हैसियत दिखाने के लिए दिखावे में पैसे खर्च कर रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे पहले राजा-महाराजा किया करते थे।
इसलिए कहा जा सकता है कि उपभोक्ता संस्कृति भी सामंती सोच का नया रूप है – जहाँ अमीर होना और उसे दिखाना ज़रूरी माना जाता है।

प्रश्न: आप प्रतिदिन टी.वी. पर ढेरों विज्ञापन देखते-सुनते हैं और इनमें से कुछ आपकी जबान पर चढ़ जाते हैं। आप अपनी पसंद की किन्हीं दो वस्तुओं पर विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर: 1. वस्तु – बिस्किट (पारले-जी)
उपभोक्तावाद की संस्कृति NCERT Solutions | Hindi Class 9 (Kritika and Kshitij)
विज्ञापन:
जब भूख लगे थोड़ा-सा,
तो साथ हो पारले-जी जैसा।
दूध के साथ या चाय के संग,
हर बच्चे का प्यारा रंग-बिरंगा स्वाद।
पारले-जी – सेहत भी, स्वाद भी!

2. वस्तु – पेंसिल (अप्सरा पेंसिल)
उपभोक्तावाद की संस्कृति NCERT Solutions | Hindi Class 9 (Kritika and Kshitij)विज्ञापन:
लिखाई हो साफ, सुंदर और तेज़,
तो लाओ अप्सरा पेंसिल आज ही देश।
हर बच्चा कहे दिल से,
अप्सरा – सबसे बेस्ट है!

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FAQs on उपभोक्तावाद की संस्कृति NCERT Solutions - Hindi Class 9 (Kritika and Kshitij)

1. What is consumerism and its impact on society?
Ans. Consumerism is a social and economic order that encourages an acquisition of goods and services in ever-increasing amounts. It is a culture that promotes excessive consumer spending and materialistic values. The impact of consumerism on society can be both positive and negative. While consumerism can boost economic growth and create jobs, it can also lead to environmental degradation, social inequality, and psychological stress.
2. How can we reduce consumerism?
Ans. To reduce consumerism, we can adopt sustainable consumption practices that prioritize the use of eco-friendly, fair trade, and locally produced goods and services. We can also reduce our consumption of non-essential items and adopt a minimalist lifestyle. Governments can also promote regulations and policies that discourage wasteful consumption and support sustainable production and consumption practices.
3. What are the benefits and drawbacks of consumerism?
Ans. The benefits of consumerism include economic growth, job creation, and improved standard of living. However, consumerism can also have several drawbacks, such as environmental degradation, social inequality, and psychological stress. It can also lead to the exploitation of natural resources and the creation of waste and pollution.
4. How does advertising contribute to consumerism?
Ans. Advertising contributes to consumerism by creating a desire for goods and services that are not necessary for our survival or well-being. Advertisers use various techniques to create a sense of need or urgency, such as celebrity endorsements, emotional appeals, and subliminal messages. Advertising also creates a culture of competition and status-seeking, where people feel pressure to buy more and better things to keep up with their peers.
5. How can we practice responsible consumerism?
Ans. To practice responsible consumerism, we can adopt the following habits: 1. Buy eco-friendly, fair trade, and locally produced goods and services. 2. Reduce our consumption of non-essential items and adopt a minimalist lifestyle. 3. Repair or reuse items instead of buying new ones. 4. Choose products with minimal packaging or packaging that can be recycled. 5. Support companies and brands that prioritize sustainability and social responsibility. 6. Educate ourselves and others about the impact of our consumption choices on the environment, society, and our well-being.
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