लगता है UPSC, शीघ्र ही CSE में वैकल्पिक विषय का महत्व कम करने जा रहा है। वर्ष 2013 में, वैकल्पिक विषय के दो पेपर के स्थान पर GS के पेपर रखे गए थे। इससे पूर्व इन दोनों वैकल्पिक विषयों का महत्व इतना ज्यादा था कि किसी भी अभ्यर्थी द्वारा इन दोनों पेपरों में 300 से अधिक अंक प्राप्त करने पर उसका सिविल सेवा में पहुंचना तय था, भले GS में अंक औसत से कम हों।
तथापि, इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि वर्तमान परिदृश्य में भी काफी हद तक वैकल्पिक विषय ही चयन का निर्धारण और रैंक प्रभावित करते हैं। हमें यह तथ्य स्वीकारना होगा कि GS में महत्वपूर्ण बढ़त पाना बेहद कठिन है। एक वर्ष के गहन अध्ययन के बाद भी गंभीर प्रतिभागियों की GS की जानकारी लगभग एक जैसी होती है। किसी की पकड़ अर्थशास्त्र में मजबूत हो सकती है जबकि अन्य इतिहास और भूगोल में अच्छा प्रदर्शन कर सकते होंगे। अत: परीक्षा के अंत में, हमें पता चलता है कि GS के 1000 में से प्राप्त होने वाले अंकों की रेंज अधिक नहीं होती। ऐसे में, वैकल्पिक विषयों में प्राप्त होने वाले अंक रैंक बढ़ाने का काम करते हैं। वैकल्पिक विषय में लक्ष्य 250 अंक, अर्थात् 50% का होना चाहिए। इससे अधिक अंक आपके लिए बोनस का काम करेंगे!
वैकल्पिक विषय का महत्व देखते हुए, यह जरूरी है कि वैकल्पिक विषय चुनने से पूर्व काफी सोच-विचार करना चाहिए। यदि आप अपना निर्णय बदलते हैं, अर्थात्, यदि आप किसी समय अपना वैकल्पिक विषय बदलते हैं तो अध्ययन का समय कम से कम 5 से 6 महीने बढ़ जाएगा। मैंने ऐसे भी लोग देखे हैं जिन्होंने दो असफल प्रयासों के बाद तीसरे प्रयास में अपने वैकल्पिक विषय बदले और सफल प्रतियोगियों की सूची में अपना नाम दर्ज करवाने में सफलता हासिल की। लेकिन वैकल्पिक विषय चुनने के गलत निर्णय से असफल और परेशान क्यों हों और एक भी प्रयास व्यर्थ क्यों हो? जल्दबाजी में फैसला करने और एक अथवा दो प्रयास गंवाने के बाद निर्णय बदलने की अपेक्षा बेहतर होगा कि अभ्यर्थी वैकल्पिक विषय चुनने का फैसला करने के लिए दो महीने सोच-विचार करें। श्रेष्ठ वैकल्पिक विषय का निर्णय करने के लिए दिशा-निर्देशों की व्यापक समझ चाहिए। अंतिम निर्णय अभ्यर्थी को ही लेना चाहिए, लेकिन निर्णय इन तथ्यों और कारकों को ध्यान में रखते हुए सोच-समझकर लेना होगा:
1. वैकल्पिक विषयों को स्थिर अथवा सक्रिय विषयों के रूप में देखें:
स्थिर विषय वे विषय होते हैं जिनका कोर्स (सिलेबस) सुपरिभाषित होता है और जो स्नातक स्तर पर अपरिवर्तित रहता है। उदाहरण के लिए, आर्टस वर्ग के विषयों में इतिहास और दर्शनशास्त्र, विज्ञान वर्ग में भौतिकशास्त्र, रसायनविज्ञान और गणित एवं इंजीनियरिंग के सभी विषय, कॉमर्स वर्ग के छात्रों के लिए लेखाशास्त्र (अकाउंटेंसी), चिकित्सा वर्ग के छात्रों के लिए प्राणीविज्ञान और वनस्पति-विज्ञान; इन सभी विषयों को स्थिर विषयों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इन विषयों की विषय-वस्तु हर वर्ष एक जैसी रहती है। भिन्नता केवल प्रश्नों में हो सकती है और वो भी केवल शब्दों में, अंकों में और निष्कर्षों में। लेकिन मूलभाव हमेशा वही रहता है।
दूसरी ओर, गतिशील विषयों जैसे, लोक प्रशासन, समाज-शास्त्र, प्रबंधन, विधि के मूलभाव और विषय-वस्तु, दोनों के संदर्भ में फैलाव होता रहता है। इन विषयों के प्रश्नों में ताज़ा घटनाक्रम, रुझान, तथ्य और केस स्टडी को शामिल किया जाता है। आपको इन विषयों में अपना ज्ञान निरंतर अपडेट करते रहना होगा। इनके अलावा कुछ मध्यम विषय होते हैं जैसे भूगोल और मनोविज्ञान, जिनमें स्थिर और गतिशील अवधारणा लगभग समान रुप में होती है।
लेकिन प्रश्न यह है कि स्थिर अथवा गतिशील वर्ग में से किस वर्ग का चयन किया जाए? प्रिय अभ्यर्थी, आप अपना निर्णय लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं। इसलिए अपनी परीक्षा के परिणाम के लिए आप केवल स्वयं को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं न कि किसी अन्य को। अपने साथियों को देखकर दबाव में न आएं। लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं कि आपको अन्य लोगों की राय पर गौर न करें। वैकल्पिक विषयों के बारे में अन्य लोगों के अनुभव पर भी आपको पूरा ध्यान देना चाहिए। GS से संबंधित अध्यापकों और संकाय से बातचीत करें और वैकल्पिक विषयों के बारे में उनके बहुमूल्य निष्कर्षों पर विचार करें। फिर भी, वैकल्पिक विषय चुनने के बारे में विषय विशेषज्ञों के पास पूछने न जाएं। भौतिक-विज्ञान का अध्यापक आपको लोक प्रशासन विषय चुनने की सलाह कैसे दे सकता है और उसके विपरीत लोक प्रशासन विषय का अध्यापक भौतिक-विज्ञान चुनने की सलाह कैसे देगा?
कुछ लोगों को स्थिर विषय ज्यादा अनुकूल लग सकते हैं क्योंकि इन विषयों में निरंतर विवेचना की जरुरत नहीं होती– इतिहास को एक बार पढ़ लेने के बाद आपको इसे केवल दोहराने की जरुरत है और बदलते समय के साथ आपको इसमें कोई नया ज्ञान अथवा निष्कर्ष नहीं जोड़ना। तथापि, एक और दर्शन भी है जिसके अनुसार गतिशील विषय ज्यादा रोचक होते हैं और वे अपने वैकल्पिक विषयों के साथ मौजूदा मुद्दों और विकासशील घटनाओं को जोड़ना चाहते हैं, जैसाकि हम लोक प्रशासन विषय में पाते हैं।
जहां तक मेरा अनुभव है, विकासात्मक गतिशील विषयों की ओर मेरा झुकाव नहीं है। मैं एक बार के प्रयास में विश्वास करता हूं, उसके लिए भले ही मुझे सामान्य से ज्यादा मेहनत करनी पड़े और बाद में लंबे समय तक उसका फायदा मिल सके। इसके अलावा, मैं कला (आर्ट्स) वर्ग के विषय चुनने का इच्छुक नहीं था क्योंकि मैं GS से पहले ही स्वयं को बोझिल महसूस कर रहा था। इस प्रकार मेरे लिए सीमित विकल्प, सिविल इंजीनियरिंग का था– जो मेरा ग्रेजुएशन का विषय था। इससे मैं इंजीनियरिंग सेवा की तैयारी कर और उसमें सफल होकर पेशेवर तरीके से स्वयं को सुरक्षित कर सकता था।
तथापि, अभ्यर्थियों को यह भी अवश्य जान लेना चाहिए कि सिविल सेवा के लिए सिविल इंजीनियरिंग को वैकल्पिक विषय के रूप में चुनने के विचार पर मुझे गंभीर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। आम धारणा यह है कि लोग इंजीनियरिंग विषयों को अपने वैकल्पिक विषय के रूप में चुनकर सिविल सेवा में सफल नहीं हो सकते। यह सच भी है क्योंकि अभ्यर्थियों का एक छोटा सा हिस्सा ही इंजीनियरिंग के विषयों का चयन करता है। इस प्रकार, जब CSE, 2013 की अधिसूचना में एक विषय को हटाया तो मेरे दिमाग में दो तरह के विचार आने लगे, मुझे दर्शन-शास्त्र और सिविल इंजीनियरिंग में से किसी एक विषय को वैकल्पिक विषय के रूप में चुनना था। अंतत: अपने निर्णय के विभिन्न सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों को ध्यान में रखते हुए मैंने सिविल इंजीनियरिंग विषय अपनाने का निर्णय लिया और इसका मुझे बहुत फायदा हुआ, जब मुझे इस वैकल्पिक विषय में पूरे 250 अंक प्राप्त हुए।
2. वर्णनात्मक और वस्तुनिष्ठ वैकल्पिक विषय:
जिन विषयों में उत्तरों की विभिन्न व्याख्याएं नहीं की जा सकतीं उन विषयों को इनके मूलभाव में वस्तुनिष्ठ विषय कहा जा सकता है, जैसे इंजीनियरिंग के विषय, विज्ञान के विषय, एकाऊंटिंग आदि। दूसरी ओर, कुछ विषय वर्णनात्मक होते हैं जैसे आर्टस वर्ग के विषय। वस्तुनिष्ठ विषय आमतौर पर स्थिर होते हैं जबकि वर्णनात्मक विषय मूलभाव में स्थिर अथवा गतिशील हो सकते हैं।
आधुनिक समय में, जब GS के बढ़े हुए महत्व की वजह से CSE में शामिल वर्णनात्मकता के कारण परिणामों में अस्थिरता बढ़ गई है, ऐसे में वस्तुनिष्ठ वैकल्पिक विषय चुनना अपेक्षाकृत ज्यादा बेहतर रहेगा। तथापि, इसकी गुंजाइश सीमित है। उदाहरण के लिए, मकैनिकल विकल्प को केवल मकैनिकल इंजीनियर ही चुनेगा और कोई अन्य इंजीनियर अथवा आर्टस वर्ग का छात्र नहीं। इस प्रकार, जो अभ्यर्थी जैसेकि इतिहास, दर्शन-शास्त्र, मानव-शास्त्र आदि जैसे वस्तुनिष्ठ वैकल्पिक विषय नहीं चुन सकते, उनके लिए स्थिर प्रकृति के वर्णनात्मक विषय सर्वाधिक पसंदीदा विकल्प होंगे।
3. वैकल्पिक विषयों में अंकों के सामान्यीकरण की अवधारण:
विभिन्न वैकल्पिक विषयों के अंकों का सामान्यीकरण किए जाने के पीछे मूल भावना प्रत्येक विशिष्ट वैकल्पिक विषय की कठिनाईयों के विभिन्न स्तरों के अनुसार अंकों में आई विकृति को समाप्त करना अथवा कम करना है। प्रत्येक पेपर के कठिनाई के अलग-अलग स्तर के परिणामस्वरूप अंकों में आई विभिन्नता का सामना अर्थात भरपाई कैसे की जाए? यदि समाजशास्त्र की तुलना में भूगोल में अधिकांश छात्रों के अंक कम हों तो क्या होगा? यदि किसी विशिष्ट वर्ष में भूगोल का पेपर अत्यधिक कठिन हो और अधिकतर अभ्यर्थियों का स्कोर कम रहे तो क्या भूगोल के अभ्यर्थी असफल हो जाएंगे? इस सभी प्रश्नों का उत्तर, विभिन्न विषयों के स्तर पर प्रत्येक वैकल्पिक विषय के अंकों का सामान्यीकरण किया जाना है। मैं सामान्यीकरण की गणितीय गहनता में नहीं जाना चाहूंगा क्योंकि UPSC अपनी वेबसाइट अथवा अन्य कहीं सामान्यीकरण की कार्य-पद्यति को उजागर नहीं करता। तथापि, जो अभ्यर्थी इसमें गहनता से जानना चाहते हैं वे IIM बैंगलोर की वेबसाइट देखें, जहां संपूर्ण प्रक्रिया स्पष्ट की गई है और इसे प्रतिवर्ष CAT के लिए प्रयोग किया जाता है।
यहां पर हम यह जानना चाहते हैं कि सामान्यीकरण होने पर हम किस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। हमारे सामने दो निष्कर्ष हैं:
a) यह तर्क देकर कोई वैकल्पिक विषय नहीं चुन सकता कि अमुक विषय के प्रश्न अपेक्षाकृत सरल होते हैं क्योंकि इसका सिलेबस अपेक्षाकृत छोटा है अथवा उस वैकल्पिक विषय का पेपर सरल होने पर उसमें अभ्यर्थियों को अधिक अंक प्राप्त होंगे और सामान्यीकरण प्रक्रिया के दौरान अंकों को घटाकर कम कर दिया जाएगा।
b) दूसरा निष्कर्ष अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अभ्यर्थी चाहे कोई भी वैकल्पिक विषय चुनें, उसे उस वैकल्पिक विषय में अधिकतम अंक प्राप्त करने वाले 1 या 2 प्रतिशत अभ्यर्थियों में अपनी जगह बनानी होगी। इससे यह तथ्य निरर्थक हो जाता है कि अमुक पेपर कठिन है अथवा सरल है। पहले मामले में (पेपर कठिन होने की स्थिति में), सामान्यीकरण की वजह से आपके स्कोर में बढ़ोतरी होगी जबकि दूसरे मामले में आपका स्कोर कम हो जाएगा। लेकिन दोनों ही स्थितियों में आपको उस विषय के अधिकतम अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों की सूची में स्थान पाना होगा और इस प्रकार अंतिम सूची में आपका नाम शामिल किए जाने की संभावना अत्यधिक बढ़ जाएगी।
उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, वैकल्पिक विषयों से संबंधित विभिन्न भ्रांतियां और FAQ (बारंबार पूछे जाने वाले प्रश्न) आपके समक्ष प्रस्तुत हैं और उन पर विचार-विमर्श करूंगा;
भ्रांतियां और FAQ (बारंबार पूछे जाने वाले प्रश्न)
A) मैं IIT का स्टूडेंट हूं इसलिए वैकल्पिक विषयों के रूप में मुझे भौतिक विज्ञान, रसायन शास्त्र और गणित चुनना चाहिए।
IIT के छात्रों के बीच यह कल्पना सर्वाधिक प्रचलित है, और हो भी क्यों न? उन्होंने P/C/M विषयों के साथ इंजीनियरिंग की सबसे कठिन प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की है। तथापि, ठोस तथ्यों के बगैर किसी को भी अपने ज्ञान के संबंध में निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए। इंटरमीडिएट स्तर पर हमने P/C/M विषयों में जो कुछ पढ़ा था उनका एक छोटा सा ही भाग स्नातक स्तर पर CSE के सिलेबस में शामिल होता है। यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिए कि CSE के वैकल्पिक विषय के रूप में भौतिक-विज्ञान का सिलेबस इंटरमीडिएट स्तर पर पढ़े गए भौतिक-विज्ञान के सिलेबस से भिन्न होता है, जिसमें याददाश्त की बहुत कम जरुरत होती है– यदि आप अवधारणात्मक तरीके से दुरुस्त हैं तो आप अधिकतर सूत्रों (फार्मूले) को प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन यह ऐसी बात भैतिकी के वैकल्पिक विषय में मौजूद नहीं होती। आपको बहुत कुछ याद रखना होता है और वह भी विविध क्षेत्रों के बारे में, प्रश्नों को हल करने का निश्चित तरीका होता है।
तथापि, इसका मतलब यह नहीं कि विज्ञान के विषय नहीं चुनने चाहिए– बल्कि इन विषयों का फायदा यह है कि ये स्थिर प्रकृति के होते हैं। इस प्रकार, विषय की अच्छी तैयारी करने से आपको आश्चर्यजनक परिणाम मिल सकते हैं। असल बात यह है कि CSE में P/C/M विषयों को वैकल्पिक विषय के रूप में चुनने का आधार विगत में इन विषयों में अच्छा प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। इन्हें वैकल्पिक विषय के रूप में चुनने का आधार इनसे पहले से परिचित होना और इनकी अपरिवर्तित रहने की प्रकृति की वजह से इनकी तैयारी के लिए एक बार कठिन परिश्रम करने की जरूरत का होना है।
और अधिक गहनता में जाने के लिए यदि P/C/M के तुलनात्मक विश्लेषण के बारे में पूछा जाता है तो मैं भौतिक-विज्ञान और गणित की अपेक्षा रसायन-शास्त्र को तरजीह देना पसंद करूंगा, क्योंकि इसका कोर्स अपेक्षाकृत अच्छी प्रकार से परिभाषित है और यह अन्य दो विषयों की अपेक्षा कम भी है। अपने साथियों के अनुभवों पर आधारित यह मेरी व्यक्तिगत राय है, जिसमें कोर्स के आधार पर उनका अनुभव, इसके लिए आवश्यक अभ्यास और अंतत: विभिन्न प्रयासों में इस विषय में प्राप्त परिणाम शामिल हैं। इस विषय पर अभ्यर्थी के अपने स्वतंत्र, अलग और पुष्ट विचार हो सकते हैं।
B) इंजीनियरिंग के विषयों को वैकल्पिक विषय के रूप में चुनने को लेकर अभ्यर्थी स्पष्ट नहीं।
यह मिथक इसलिए पनपा है क्योंकि न तो काफी अभ्यर्थी इंजीनियरिंग विषयों को वैकल्पिक रूप में चुनते हुए दिखाई देते हैं और न ही इंजीनियरिंग विषयों के अनेक अभ्यर्थी अंतिम सूची में दिखाई देते हैं। इंजीनियरिंग के विषयों के प्रति यह डर दो वज़ह से है, पहला, CSE में बैठने का निर्णय लेने वाले इंजीनियर ज्यादातार औसत और औसत से कम दर्जे के छात्र होते हैं, जिन्हें कॉलेज में पढ़े अपने इंजीनियरिंग विषयों का पर्याप्त ज्ञान नहीं होता। दूसरा, कोचिंग इंडस्ट्री को अभी इंजीनियरिंग विषयों को CSE के लिए फलदायक वैकल्पिक विषयों के रूप में प्रचारित करना है।
मैं इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के अभ्यर्थियों से कहना चाहूंगा कि भले ही स्नातक की पढ़ाई के दौरान आपका प्रदर्शन अच्छा न रहा हो, आपको इंजीनियरिंग विषयों को चुनने से नहीं डरना चाहिए। हालांकि इन विषयों की पूरी तैयारी करने में अपेक्षाकृत थोड़ा अधिक समय लगेगा लेकिन इनके परिणाम लाभदायक होंगे। ये विषय मूलत: व़स्तुनिष्ठ होते हैं, अर्थात् यदि आपका उत्तर सही है तो आप शत-प्रतिशत अंक पाएंगे।
इस परिस्थिति में GS का महत्व बढ़ने से मूल्यांकन में उच्च स्तर की व्यक्तिपरकता बढ़ी है, इसलिए मैं आपसे आग्रह करूंगा कि ऐसा वैकल्पिक विषय चुनें जो मूलत: वस्तुनिष्ठ प्रकृति का हो। इस संबंध में इंजीनियरिंग के विषय खरे उतरते हैं, बल्कि ये विज्ञान के विषयों से अपेक्षाकृत बेहतर होते हैं!
C) ऐसा वैकल्पिक विषय चुनें जो पढ़ने में रोचक हो
ऐसा जरूरी नहीं। यह एक और कल्पना है। आपका एकमात्र उद्देश्य CSE पास करना होना चाहिए, कुछ और नहीं। आप किसी विषय को पढ़ने से पहले, केवल इसके नाम अथवा विषय-वस्तु के आधार पर यह निर्णय कैसे ले सकते हैं कि पढ़ने में यह विषय रोचक रहेगा? इसके अलावा, पढ़ाई हमेशा टाल-मटोल (पढ़ाई के अलावा दूसरे कार्यों में समय बर्बाद करना) की वज़ह से प्रभावित होती है। इस प्रकार, वैकल्पिक विषय अपनी रुचि को ध्यान में न रखते हुए, तर्कसंगत आधार पर चुनें।
मैं स्वयं का उदाहरण देना चाहूंगा। मैं कॉलेज समय के दौरान हमेशा मनोविज्ञान विषय में रुचि लेता था। जबकि रुड़की IIT से सिविल इंजीनियरिंग में B.Tech होने के कारण सिविल इंजीनियरिंग पढ़ने की बजाए सिगमंड फ्रॉयड को पढ़ना मुझे इतना अच्छा लगा कि मैंने उनकी 7 पुस्तकें पढ़ीं और नोट्स बनाए। हालांकि मनोविज्ञान विषय में रुचि होने के बावजूद मैंने इसे CSE में वैकल्पिक विषय के रूप में नहीं चुना। मेरा निर्णय मेरी जरूरतों पर आधारित था जैसे पेशेवर रूप से सुरक्षित होने का तकाजा, मूल्यांकन की विषय-परखता कम करना और एक बार कठिन परिश्रम करने की स्थिरता पर ध्यान केन्द्रित करना।
अत: मैं आपको इस तथ्य से आश्वस्त करना चाहता हूं कि पढ़ने में कोई भी विषय रोचक नहीं। अध्ययन के प्रति आपकी प्रेरणा किसी विषय में रुचि होने से जागृत नहीं होगी बल्कि यह लक्ष्य को हासिल करने की आपकी इच्छा से जागृत होगी।
D) ऐसा वैकल्पिक विषय चुनें जिसकी GS में भूमिका हो। इससे आपका काम सरल होगा।
यह कथन आंशिक रूप से सही है। GS सिलेबस की सुस्पष्ट सूची देखें। यह समझने की कोशिश करें कि किस वैकल्पिक विषय का कोर्स GS के कोर्स के साथ साझा है। इतिहास, भूगोल, राजनीतिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र, लोक-प्रशासन। यह सूची और भी बड़ी होगी। उपर्युक्त सूची में कुछ विषयों का GS में अधिक प्रतिनिधित्व है जबकि कुछ का प्रतिनिधित्व नाममात्र होगा। इस प्रकार, किसी वैकल्पिक विषय का चयन इस मानदण्ड के आधार पर करने से हमारे GS की तैयारी में मदद मिलेगी, इस तरह इतिहास और भूगोल को स्पष्ट प्राथमिकता देनी चाहिए।
E) कुछ वैकल्पिक विषयों के कोर्स का एक खण्ड सामान्य प्रकृति का होता है। ऐसा वैकल्पिक विषय चुनने से अपेक्षाकृत कम मेहनत करनी होगी।
यह एक जोखिम भरी कल्पना है। समाजशास्त्र, राजनीतिक विज्ञान, दर्शनशास्त्र जैसे विषयों के पेपर का एक खण्ड ऐसा होता है जिनका उत्तर GS की जानकारी वाला इंजीनियरिंग छात्र भी दे सकता है। तथापि, यह तर्क अभ्यर्थियों को इन खण्डों का विशेष अध्ययन करने से छूट नहीं देता। जो खण्ड सामान्य प्रकृति के होते हैं उन विशेष खण्डों के संबंध में अभ्यर्थियों से अपेक्षा की जाती है कि उन्हें इनकी अपेक्षाकृत अधिक जानकारी होगी और इन पर वे अधिक बौधिक मंथन कर सकेंगे। असल में, इन खण्डों की तैयारी में अभ्यर्थियों को थोड़ी ज्यादा मेहनत करने की जरूरत होती है ताकि वे अपने उत्तर में और सामान्य दृष्टिकोण वाले अभ्यर्थियों द्वारा दिए गए उत्तर में एक अंतर कर सकें।
F) अपेक्षाकृत छोटे कोर्स वाले विषयों का अध्ययन करना सरल होता है।
वैकल्पिक विषयों की कोर्स सामग्री का आकार भिन्न-भिन्न होता है। कुछ विषयों का कोर्स विस्तृत होता है जैसे विज्ञान, इंजीनियरिंग और कुछ आर्टस वर्ग के विषय जैसे इतिहास। जबकि कुछ विषयों का कोर्स छोटा होता है जैसे दर्शनशास्त्र, समाज-शास्त्र आदि। तथापि, सामान्यीकरण की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए अभ्यर्थी को अपने वैकल्पिक विषय का चयन केवल उसके कोर्स के आकार के आधार पर ही नहीं करना चाहिए। यदि किसी वैकल्पिक विषय का कोर्स छोटा है तो इसे चुनने वाले छात्रों की संख्या अधिक होगी, इस प्रकार प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और उस विषय के शीर्ष 1 या 2 प्रतिशत छात्रों में स्थान बनाना मुश्किल हो जाएगा। अत: यह तर्क कि कम कोर्स वाले विषयों के लिए कम अध्ययन की आवश्यकता होती है, पूरी तरह आधारहीन है। इसलिए, यदि अभ्यर्थी कोई ऐसा विषय चुनता है तो उसे विषय को 2 या 3 बार दोहराने के लिए तैयार रहना चाहिए ताकि वह इतनी प्रवीणता हासिल कर ले कि वह उस विषय के टॉपर्स में अपना स्थान बना सके।
1. यूपीएससी के लिए वैकल्पिक विषय का चयन कैसे करें? |
2. वैकल्पिक विषय चुनने के लिए कौन-कौन से प्रमाण को मध्यस्थ करना चाहिए? |
3. वैकल्पिक विषय का चयन करने के लिए कौन-कौन से तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है? |
4. क्या वैकल्पिक विषय चुनने के लिए किसी विशेष शैक्षिक योग्यता की जरूरत होती है? |
5. क्या यह संभव है कि एक व्यक्ति दो वैकल्पिक विषयों को एक साथ चुन सकता है? |
|
Explore Courses for UPSC exam
|