UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  पाठ 4 - कोचिंग इंडस्ट्री का आतंक; भ्रांतियां और FAQ

पाठ 4 - कोचिंग इंडस्ट्री का आतंक; भ्रांतियां और FAQ - UPSC PDF Download

कोचिंग इंडस्‍ट्री का आतंक

 

कोचिंग इंडस्‍ट्री, अभ्‍यर्थियों के डर की मनोवृति‍ का लाभ उठाती है। कोचिंग संस्‍थान तर्क देते हैं कि वे अभ्‍यर्थियों की तैयारी में सहायता करते हैं। ये संस्‍थान अभ्‍यर्थियों को सिविल सेवा, इसके आधारभूत सिद्धांतों, परीक्षा के पैटर्न और इसमें हाल ही में हुए बदलावों से अवगत कराने से लेकर उन्‍हें अपने क्‍लासरूम कार्यक्रमों, टेस्‍ट सीरीज और मॉक इन्‍टरव्‍यू के माध्‍यम से गहन अध्‍ययन करवाते हैं ताकि वे UPSC को पास करने का लक्ष्‍य बनाकर सिविल सेवा ज्‍वायन करने लायक बन सकें।    

इस तथ्‍य से इनकार नहीं किया जा सकता कि अपेक्षाकृत कम आत्‍म-प्रेरित अभ्‍यर्थियों के लिए अधिक कोचिंग की आवश्‍यकता होती हैपुश फैक्‍टर से यह कोर्स तेजी से पूरा करने और पुल फैक्‍टर से अपने बैच के साथियों के अध्‍ययन में नियमितता लाता है। सिविल सेवा का कोर्स बेहद विस्‍तृत होने के कारण प्रत्‍येक अभ्‍यर्थी के सामने समय की कमी रहती है। यदि कोचिंग संस्‍थान के संक्षिप्‍त नोट्स और अध्‍ययन सामग्री का बुद्धिमतापूर्वक इस्‍तेमाल किया जाए तो वे अभ्‍यर्थी के लिए लाभदायक हो सकते हैं।  

तथापि, इस कहानी का दूसरा पहलू कहीं अधिक हानिकारक है; बल्कि मैं तो कहूंगा निराशाजनक है। इस इंडस्ट्री के अधिकांश बड़े नाम अभ्‍यर्थियों के सपनों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। वे देश के हर वर्ग और कोने-कोने से छात्रों को आकर्षित करने के लिए विशुद्ध रूप से मा‍र्केटिंग तकनीकों का प्रयोग कर रहे हैं। और दोस्‍तो, इन तकनीकों से हम भली-भांति अवगत भी हैं। वर्ष 2012 में मैं अपने लिए एक उपयुक्‍त कोचिंग संस्‍थान की तलाश कर रहा था। मैं कुछ नामी कोचिंग संस्‍थानों में गया और पाया कि प्रत्‍येक कोचिंग संस्‍थान कुल 1100 सफल अभ्‍यर्थियों में से कम से कम 500 अभ्‍यर्थी अपने संस्‍थान से होने का दावा कर रहा था! कैसे? इन सभी कोचिंग संस्‍थानों ने मुख्‍य परीक्षा में सफल हुए प्रत्‍येक अभ्‍यर्थी का मॉक इन्‍टरव्‍यू आयोजित किया था। अधिकतर अभ्‍यार्थियों ने दो या तीन अलग-अलग संस्‍थानों में मॉक इन्‍टरव्‍यू देने के लिए पंजीकरण करवाया था। परिणामस्‍वरूप एक ही सफल अभ्‍यर्थी का नाम विभिन्‍न संस्‍थानों के सफल उम्‍मीदवारों की सूची में दिखाई देता है।   

जब मैं कोचिंग संस्‍थानों के इन दोहराए (replicating) हुए परिणामों को लेकर आशंकित हुआ तो मैंने कोचिंग संस्‍थान चुनने के लिए दूसरे तरीके अपनाने का निर्णय लिया जो एकदम सही था। उसकी मदद से मैं सिविल सेवा की सही तैयारी कर पाया। मैंने कुछ दिन तक द हिन्‍दू समाचार पत्र लेकर पढ़ना शुरु कर दिया। एक दिन मैंने ‘Success Guru’ की ओर से एक सेमिनार में भाग लेने का खुला आमंत्रण देखा। यह विज्ञापन लगातार तीन-चार दिन तक प्रकाशित होता रहा। अंतत: मैंने उस अद्भुत सेमिनार में भाग लेने के लिए अपना पंजीकरण करवा लिया। सेमिनार के दौरान ‘Success Guru’ ने हमें सिविल सेवा के बारे में पूर्ण जानकारी दी, अपने संस्‍थान के विभिन्‍न फायदों के बारे में बताया और उन्‍होंने उस वर्ष के कुछ टॉपर्स से भी परिचय करवाया। उन चयनित अभ्‍यर्थियों ने संस्‍थान की इतनी तारीफ की कि मैंने लगभग 40,000/- रुपए की फीस अदा कर उस संस्‍थान से जुड़ने का निर्णय किया।

3 सप्‍ताह तक सप्‍ताहांत में कोचिंग कक्षाओं में उपस्थित होने के बाद मुझे संस्‍थान द्वारा प्रदान की जा रही शिक्षा के खोखलेपन का पता चला। शिक्षक अयोग्‍य थे, उन्‍हें छात्रों की भलाई की कोई चिंता नहीं थी और उनके पढ़ाने का तरीका पूरी तरह से पाठ्य सामग्री को रटने पर आधारित था। मैं भाग्‍यशाली था जो मैंने इस सिस्‍टम को भांप लिया और इससे पहले कि मेरे विचारों और विज़न को कोई नुकसान पहुंचता, मैंने इसे छोड़ दिया; अन्‍यथा मेरा सिविल सेवा में चयन न होता और न ही मैं यह पुस्‍तक लिखता। इस ‘आकर्षक’ संस्‍थान ने मुझे मेरी फीस लौटाने से इनकार कर दिया जिससे मुझे केवल वित्‍तीय नुकसान ही हुआ! ऐसे असंख्‍य अभ्‍यर्थी रहे होंगे जिनके साथ ऐसा ही हुआ होगा और जिन्‍होंने इन व्‍यापक लेकिन खोखले कोचिंग प्रोग्राम पर अपनी मेहनत की कमाई का पैसा गंवाया होगा। 

यह उत्‍पात एक ही अभ्‍यर्थी को कई संस्‍थानों द्वारा अपने सफल अभ्‍यर्थी के रूप में दर्शाने तक ही सीमित नहीं है। यह अनेक रुपों में व्‍याप्त है और यदि अभ्‍यर्थी इन संस्‍थानों के संबंध में सभी तथ्‍यों से अवगत नहीं होता है तो इनका उस पर काफी अधिक प्रभाव पड़ सकता है। विभिन्‍न कोचिंग संस्‍थानों द्वारा प्रदान किए जाने वाले ऑफर पर ध्‍यान दें। कई संस्‍थान तो बच्‍चों की स्‍कूली शिक्षा पूरी होते ही उन्‍हें अपनी और आकर्षित करने की होड़ में लग जाते हैं! ये संस्‍थान स्‍नातक के प्रथम वर्ष में पढ़ने वाले छात्रों के लिए तीन वर्षीय प्रोग्राम शुरू कर देते हैं। मैं अपनी युवा पीढ़ी को दिल से सलाह देना चाहता हूं कि उन्‍हें इन संस्‍थानों के लालच के जाल में नहीं फंसना चाहिए। यदि कॉलेज जाने वाला छात्र कॉलेज के दिनों में सिविल सेवा परीक्षा की पढ़ाई करने की बजाए अपने स्‍नातक के कोर्स पर ध्‍यान केन्‍द्रि‍त करे तो उसे आगे चलकर इसका अपेक्षाकृत अधिक लाभ होगा। 

इन संस्‍थानों ने अध्‍ययन के समय को लेकर एक और भ्रम जानबूझकर उत्‍पन्‍न किया है। इस  इंडस्‍ट्री (कोचिंग) ने एक अविवादित धारणा फैला रखी है कि छात्रों के शिक्षण के लिए जितना अधिक समय खर्च किया जाएगा, यह उनके लिए उतना ही अधिक फायदेमंद होगा और इस प्रकार संस्‍थान की लोकप्रियता बढ़ जाती है! मुझे लगता है कि कोचिंग में अध्‍ययन करना ऑफिस जाने जैसा ही है – फर्क सिर्फ इतना है कि आपको इस ‘ऑफिस’ में एक सीट हासिल करने के लिए काफी अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं। कक्षाएं सप्‍ताह में 6 या 7 दिन तक 6 से 8 घंटे तक चलती हैं! और इस इंडस्‍ट्री के बड़े खिलाड़ी, अभ्‍यर्थियों को ऐसे प्रोग्राम प्रदान करके खुश क्‍यों नहीं होंगे? उन्‍हें तो प्रत्‍येक छात्र से 1.5 लाख रुपए तक वसूलने होते हैं; इसलिए पूरे कोर्स के दौरान काफी अधिक समय तक उन्‍हें छात्रों को व्‍यस्‍त रखना होता है। इतने अधिक समय तक छात्रों को पढ़ाई में व्‍यस्‍त रखने का परिणाम यह होता है कि अत्‍यधिक विस्‍तारित अध्‍ययन कोर्स को पढ़ाने वाली फैकल्‍टी के पास छात्रों को विषय-वस्‍तु का अत्‍यधिक विस्‍तृत विवरण प्रदान करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता, और यह विवरण अनावश्‍यक होने के साथ-साथ अभ्‍यर्थियों पर गैर-जरूरी बोझ भी डालता है। इस प्रकार, कई अभ्‍यर्थी कोचिंग बीच में ही छोड़कर चले जाते हैं और कुछ तो परीक्षा की तैयारी करने का विचार ही छोड़ देते हैं।  

मेरा मानना है कि शिक्षण एक उत्‍तम पेशा है। लेकिन कोचिंग इंडस्‍ट्री के साथ मेरे अनुभव ने, IIT JEE की तैयारी करने वाले छात्रों को भौतिक-विज्ञान पढ़ाने की फैकल्‍टी के रूप में और साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने के लिए एक अभ्‍यर्थी के रूप में, मुझे मेरी इस अवधारणा को बदलने पर मजबूर कर दिया है। फिर भी, इस इंडस्‍ट्री में कुछ ऐसे लोग हैं जो इस पेशे को सिर्फ कमाई का जरिया ही नहीं मानते बल्कि वे इसे सामाजिक दायित्‍व भी मानते हैं। संकल्‍प अकैडमी ऐसे ही कुछ संस्‍थानों में से एक है। संस्‍थान से जुड़े प्रख्‍यात शिक्षकों सहित इसकी पूरी मशीनरी ऐसे ही मिशन के साथ काम कर रही है कि जो अभ्‍यर्थी मार्केट रेट पर तैयारी के खर्च को वहन नहीं कर सकते, उन्‍हें श्रेष्‍ठ मार्गदर्शन प्रदान करना। संकल्‍प के साथ मेरा संबंध अल्‍प अवधि के लिए रहा अर्थात् केवल इंटरव्‍यू के लिए। इस दौरान मैं इस संस्‍थान की कार्यप्रणाली से बहुत अच्‍छी तरह से अवगत हुआ। एक विशिष्‍ट पहलू जिसने मुझे प्रभावित किया, वो था अभ्‍यर्थियों का अनुशासन, जो अभ्‍यर्थियों में सिविल सेवक के चरित्र और स्‍वभाव के लिए होना जरूरी है। हालांकि संकल्‍प की क्षमता सीमित है और पूरे देश के इतने अधिक अभ्‍यर्थियों की मांग को पूरा करने के लिए ये प्रयास बहुत कम पड़ जाते हैं। एक और अत्‍यंत प्रभावी प्रोग्राम RIAS अकैडमी द्वारा मुख्‍य परीक्षा के निबंध के लिए मुहैया कराया जा रहा है। यह एक छोटी सी अकैडमी है और इसकी अवसंरचना भी अत्‍यधिक अच्‍छी नहीं है, लेकिन यह बहुत ही उचित मूल्‍य पर श्रेष्‍ठ गुणवत्‍ता की सेवा प्रदान कर रही है। सबसे अधिक सराहनीय बात शिक्षक डॉ. बी. रामास्‍वामी का दृष्टिकोण है, उनकी एकमात्र धारणा अभ्‍यर्थियों के लिए हमेशा उपलब्‍ध रहना है, जो कि उन सेलेब्रि‍टी फैकल्‍टी के बिल्‍कुल उलट है जो 200 से अधिक छात्रों की क्‍लास लेने के बाद गायब हो जाते हैं! संस्‍थान की GS टेस्‍ट सीरीज काफी अधिक व्‍यापक थी जिसमें 30 से अधिक पेपर शामिल थे। इन पेपरों को समय-बद्ध तरीके से और निर्धारित स्‍थान परिप्रेक्ष्‍य में हल करना था। डॉ. बी. रामास्‍वामी द्वारा उत्‍तरों का उचित मूल्‍यांकन और उन पर उनकी सलाह काफी सराहनीय थी। फिर भी ऐसे शिक्षक बहुत कम हैं और मुझे आशा है कि वे अपना इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर बढ़ाएंगे। मुझे यह भी आशा है कि ऐसे और भी अनेक प्रयास जल्‍द सामने आएंगे।

वर्तमान परिदृश्‍य में कोचिंग इंडस्‍ट्री की भूमिका मामूलीनहीं है, सिविल सेवा से संबंधित इस विशिष्‍ट खण्‍ड में काफी अधिक सुधार किए जाने हैं। प्रिय मित्रो और भावी अभ्‍यर्थियों, आपको इस पर विचार करने की आवश्‍यकता है। आपको विस्‍तृत, व्‍यापक और थकाऊ कोचिंग प्रोग्राम की आवश्‍यकता नहीं बल्कि संक्षिप्‍त मार्गदर्शन तकनीकों और फैक्‍ल्‍टी के साथ व्यक्तिगत स्‍तर पर संवाद करने की आवश्‍यकता है। एक बार आप विषय-वस्‍तु की आधारभूत पाठ्य सामग्री, जो प्रारंभिक और मुख्‍य परीक्षा से संबंधित आगामी अध्‍यायों में विस्‍तार से लिखी गई है, को पढ़ लेंगे तो ये परामर्श संबंधी आपका प्रयोजन पूरा कर देंगे। मार्केट में ऐसी मांग आने पर कोचिंग संस्‍थानों को अपने पाठ्यक्रमों को नया रूप देने के लिए बाध्‍य होना पड़ेगा और वे इसे रट कर सीखने की बजाए और अधिक संवादात्‍मक (इंटरैक्टिव) बनाने पर जोर देंगे। यदि संपूर्ण क्‍लासरूम प्रोग्राम की बजाए संक्षिप्‍त और अच्‍छे मार्गदर्शन माड्यूल को स्‍वीकार्यता मिल जाती है तो परिणामस्‍वरूप, पढ़ाई के घंटे काफी घट जाएंगे और संस्‍थानों को शुल्‍क संरचना में भी कमी करनी पड़ेगी।  

मुझे नहीं मालूम कि संस्‍थानों की इस बड़ी त्रुटि का एहसास अभ्‍यर्थियों को कैसे और कब होगा। लेकिन यह जितना जल्‍दी हो उतना ही बेहतर होगा। फिर भी, हमें कोचिंग क्षेत्र के मिथकों और FAQ (बारंबार पूछे जाने वाले प्रश्‍न) के विभिन्‍न विश्‍लेषणों पर ध्‍यान केन्द्रित करना होगा ताकि इनकी कुछ कमियों और फायदों के बारे में जाना जा सके।

 

भ्रांतियां और FAQ (बारंबार पूछे जाने वाले प्रश्‍न)

 

A) बिना कोचिंग के सिविल सेवा परीक्षा पास नहीं की जा सकती। 

     मैंने एक भी ऐसा उम्‍मीदवार नहीं देखा, सफल अथवा असफल, जो किसी न किसी रुप में किसी कोचिंग संस्‍थान से न जुड़ा रहा हो। आप GS का पूरा पैकेज ले सकते हैं, वैकल्पिक विषयों की कोचिंग ले सकते हैं अथवा किसी विषय विशेष की कोचिंग ले सकते हैं; आप केवल टेस्‍ट सीरीज ले सकते हैं अथवा इंटरव्‍यू के लिए मार्गदर्शन प्राप्‍त कर सकते हैं, प्रत्‍येक मामले में आप कोचिंग से जुड़े होते हैं और कोचिंग संस्‍थान का योगदान चाहे कितना ही कम क्‍यों न हो, लेकिन आपकी सफलता अथवा असफलता में इसका हाथ होता है! 

     लेकिन विडंबना यह है कि बहुत कम उम्‍मीदवार ऐसे होते हैं जो उसी वर्ष CSE पास कर लेते हैं जिस वर्ष वे कोचिंग लेते हैं। ऐसा क्‍यों होता है? ऐसा कोचिंग और स्‍व–अध्‍ययन के बीच समय का तालमेल बिठाने की चुनौती की वजह से होता है। कोचिंग उस समय विश्‍वासघाती बन जाती है जब आप केवल कोचिंग में ही पढ़ते हैं और अपने कमरे में बहुत कम पढ़ते हैं। जब आप अपना अधिकांश समय संस्‍थान में बिताते हैं और रात में इतना थक जाते हैं कि अपने कमरे में अकेले नहीं पढ़ पाते तो कोचिंग आपकी शत्रु बन जाती है। 

     यदि आप कोचिंग से जुड़ने का निर्णय लेते हैं तो जून/जुलाई/अगस्‍त के महीने में ऐसा करें ताकि अगले वर्ष मार्च/अप्रैल तक कोर्स पूरा किया जा सके और आपको प्रारंभिक परीक्षा से पहले स्‍वयं-अध्‍ययन के लिए 2 या 3 महीने का समय मिल जाएगा। यदि आप सितम्‍बर तक कोचिंग से नहीं जुड़ पाते तो उचित होगा कि आप स्‍वयं पढ़ाई करें। इस पुस्‍तक का प्रारंभिक और मुख्‍य परीक्षा से संबंधित खण्‍ड पढ़ने पर आपको शुरु से अध्‍ययन करने वाले अभ्‍यर्थी के लिए आवश्‍यक सभी जानकारियां मिल जाएंगी। 

     इसके अलावा यह भी सलाह दी जाती है कि कोचिंग दिन में 3 या 4 घंटे से अधिक न हो और वह भी सप्‍ताह में केवल 3 अथवा अधिकतम 4 चार दिन के लिए ही होनी चाहिए। मेरा विश्‍वास करो, आप कोचिंग में जो कुछ पढ़ते हैं उसे समेकित करने के लिए आपको सप्‍ताह में दो या तीन दिन का समय चाहिए होता है। मैं आपको एक लड़की की कहानी बताना चाहूंगा जिसने CSE 2014 को ध्‍यान में रखते हुए एक प्रतिष्ठित कोचिंग संस्‍थान में प्रवेश लिया। मैंने प्रारंभिक परीक्षा 2013 में दी थी जबकि उसी समय वह कोचिंग से जुड़ी थी। एक वर्ष बाद, मेरा चयन हो गया जबकि उसी समय उसने तैयारी छोड़ने का निर्णय ले लिया। जब मैंने उससे कारण पूछा तो उसने कहा, “मैं बिना कोई छुट्टी किए लगातार तीन महीनों तक, यहां तक की शनिवार और रविवार को भी प्रात: 9 बजे से सायं 10 बजे तक कोचिंग गई। कोर्स बढ़ता गया और क्‍लास नोट्स इतने हो गए कि उन्‍हें एक अलग बेड पर रखना पड़ता था। तब मुझे महसूस हुआ कि मैं CSE 2014 में नहीं बैठ सकती हूं और अब मैं 2015 के लिए भी प्रयास नहीं करुंगी।”

     इसलिए, दोस्‍तो कोचिंग को आपकी तैयारी सुगम करनी चाहिए, शिक्षक को एक दार्शनिक और मित्र की तरह आपका मार्गदर्शन करना चाहिए और अंत में कोचिंग से जुड़ने का आपका निर्णय सही सिद्ध होना चाहिए। इस प्रकार, कोचिंग प्रोग्राम चुनते समय ऐसा प्रोग्राम चुनें जो आपकी आवश्‍यकताओं के अनुरूप हो और आपको कोचिंग के ब्रांड नाम और उसमें आने वाली भीड़ के आधार पर प्रोग्राम नहीं चुनना चाहिए!

B) मेरी आर्थिक अच्‍छी नहीं और मैं कोचिंग से जुड़ना चाहता हूं लेकिन इस पर होने व़ाला खर्च वहन नहीं कर सकता।  

     कोचिंग संस्‍थानों की शुल्‍क संरचना में काफी अंतर देखने को मिलता है। कुछ संस्‍थान लाखों में शुल्‍क लेते हैं जबकि अन्‍य संस्‍थान उसी प्रोग्राम के लिए लगभग 40,000/- रुपए वसूलते हैं। लेकिन आपको यह बात समझ लेनी चाहिए कि संस्‍थानों द्वारा वसूल किया जाने वाला शुल्‍क, उस संस्‍थान द्वारा अपने छात्रों को प्रदान की जाने वाली गुणवत्‍ता, समर्पण और फैकल्‍टी की प्रतिबद्धता नहीं दर्शाता। यह स्‍पष्‍ट है कि ये कोचिंग संस्‍थान समाज के EWS (आर्थिक रूप से कमजोर तबके) की पहुंच से बाहर हैं। इस क्षेत्र पर काम करने की जरूरत है। हम सिविल सेवाओं के लिए पारंपरिक मंहगी कोचिंग क्‍लासेज की बजाए किसी मार्गदर्शन प्रोग्राम की संभावना का भी मूल्‍यांकन कर रहे हैं। नि:संदेह, ऐसा करने से शुल्‍क में काफी अधिक अंतर आ जाएगा और इससे आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों को राहत मिलेगी।

C) क्‍या संपूर्ण GS की कोचिंग लेने की बजाए विषय विशेष की कोचिंग लेना बेहतर होता है? 

     विषय विशेष की कोचिंग लेना नि:संदेह बेहतर होता है। यह समय और सामग्री के संबंध में काफी अधिक लचीलापन प्रदान करती है और संपूर्ण GS की अपेक्षा कम शुल्‍क पर उपलब्‍ध होती है। इसके अलावा, विषय विशेष के लिए अच्‍छी फैकल्‍टी उपलब्‍ध होती है जो अपनी विशेषज्ञता से अभ्‍यर्थियों को लाभान्वित करेंगे। फिर भी, इन अलग-अलग विषयों की फैकल्‍टी को अपने शिक्षण पैटर्न के एक तरफा जानकारी देने की शिक्षण पद्धति को तार्किक विधियों पर बल देते हुए परस्‍पर संवादात्‍मक सत्र में बदलना चाहिए। मुझे इस इंडस्‍ट्री के बड़े खिलाडि़यों से ऐसी उम्‍मीद बिल्‍कुल भी नहीं कि वे 50 अथवा कम छात्रों के बैच बनाएंगे और अभ्‍यर्थियों को ‘अपनी दुकान का एक और ग्राहक’ समझने की अपेक्षा उनके साथ अधिक मानवीय तरीके से व्‍यवहार करेंगे।

D) अधिकतर कोचिंग संस्‍थान दिल्‍ली में है। इसलिए, मुझे कोचिंग के दौरान और CSE पूरी हो जाने तक दिल्‍ली में ही रहना होगा। 

     मैं कोचिंग समाप्‍त हो जाने के पश्‍चात् अध्‍ययन के लिए दिल्‍ली में ठहरने के तर्क को सही नहीं मानता। मेरे अधिकांश ऐसे मित्र जो दिल्‍ली से बाहर के हैं, कहते हैं कि घर में पढ़ने का माहौल नहीं है। हो भी सकता है! लेकिन मैं व्‍यक्तिगत तौर पर अनुभव करता हूं कि पढ़ने के लिए घर से अच्‍छी जगह कोई नहीं। मैं समझता हूं कि संयुक्‍त परिवार में अध्‍ययन के लिए आरामदेह वातावरण मिलना मुश्किल है लेकिन एकाकी परिवारों के मामले में ऐसा नहीं है। दरअसल, घर में आपको कई अन्‍य सुविधाएं उपलब्‍ध होंगी जैसे स्‍वास्‍थ्‍यकर भोजन, शरीर की जैविक घड़ी के अनुसार समय पर सोना और अपने परिवार के सदस्‍यों से भावनात्‍मक रूप से जुड़े होने की वजह से, किसी भी असफलता की स्थिति से उबरने के लिए आपको दिलासा और मदद मिलेगी। 

     एक और तर्क जो मुझे सुनने को मिलता है, वो यह कि जैसे ही आप दिल्‍ली से अपने होमटाउन जाते हैं, सामायिक जानकारी से आपका तारतम्‍य टूट जाता है। मेरा एक घनिष्‍ठ मित्र, जो लखनऊ का रहने वाला है और 4 वर्षों से दिल्‍ली में रह रहा है, उनसे मैंने दिल्‍ली में रुके रहने का कारण पूछा तो उन्‍होंने बताया, “आपको यह अवश्‍य मालूम होना चाहिए कि अभ्‍यर्थी क्‍या पढ़ रहे हैं, मार्केट में प्रतिष्ठित कोचिंग संस्‍थानों की कौन सी नवीनतम सामग्री उपलब्‍ध है।” हालांकि मुझे यह दिल्‍ली में ठहरने का कोई ठोस तर्क नजर नहीं आया। दिल्‍ली में आपके ऐसे मित्र हो सकते हैं जो आपको कोई भी नई और महत्‍वपूर्ण सामग्री की जानकारी दे सकते हैं, अथवा नई जानकारी के संबंध में आप सीधे कोचिंग संस्‍थान को फोन कर सकते हैं अथवा उनकी वेबसाइट भी देख सकते हैं।  

     मैं कम से कम, दिल्‍ली के आसपास के क्षेत्रों के अभ्‍यर्थियों से अनुरोध करना चाहूंगा कि वे कोचिंग पूरी हो जाने और प्रारंभिक परीक्षा देने के बाद अपने घर लौट जाएं। ऐसे अभ्‍यर्थी कोई सप्‍ताहांत टेस्‍ट सीरीज ज्‍वाइन कर सकते हैं और उनको अपनी मुख्‍य परीक्षा की तैयारी के लिए जो भी सामग्री चाहिए उसे सप्‍ताहांत में आकर प्राप्‍त कर सकते हैं।   

E) क्‍या बेहतर है– मुद्रित अध्‍ययन सामग्री अथवा कक्षा के नोट्स? अथवा मुझे स्‍टैंडर्ड पाठ्यपुस्‍तकें पढ़नी चाहिए? 

     असल में NCERT की स्‍टैंडर्ड पाठ्यपुस्‍तकें और स्‍नातक कोर्स के दौरान पढ़ी गई पुस्‍तकें सर्वोत्‍तम होती हैं। तथापि, यह सामग्री इतनी अधिक व्‍यापक और भिन्‍न होती है कि समय की कमी की वजह से पूरी सामग्री पढ़ना, इसे छांटना और आवश्‍यक सामग्री को अलग से एकत्र करना बेहद कठिन हो जाता है। कोचिंग संस्‍थान अभ्‍यर्थियों की यह जरूरत अपने मुद्रित नोट्स और कक्षा नोट्स द्वारा पूरा करते हैं।    

     अब, स्‍टैंडर्ड पाठ्यपुस्‍तकें अथवा कोचिंग सामग्री पढ़ना, प्रश्‍न के समय और पढ़े जाने वाले कोर्स पर निर्भर करेगा। उदाहरण के लिए, यह लिखा होता है कि सिलेबस में भारतीय संस्‍कृति शामिल है न कि प्राचीन और मध्‍यकालीन भारतीय इतिहास। लेकिन भारतीय संस्‍कृति में, इस काल के दौरान विकसित हुई आर्टस, वास्‍तुकला, साहित्‍य, नृत्‍य, नाटक और सं‍गीत शामिल होता है। इसलिए अभ्‍यर्थी को भारत के प्राचीन और मध्‍यकालीन इतिहास को, भारतीय संस्‍कृति में हुए विकास को अलग करके और साथ मिलाकर देखते हुए पढ़ना होगा।  

     इस प्रकार, यदि कोई जून के महीने में मुझसे पूछे कि भारतीय संस्‍कृति का अध्‍ययन किस प्रकार किया जाना चाहिए तो मैं NCERT की कक्षा 6 से लेकर 8 तक की पुस्‍तकें पढ़ने की सलाह दूंगा। लेकिन यदि यही प्रश्‍न अक्‍तूबर के म‍हीने में पूछा जाता है तो मेरा सीधा जवाब होगा कि कोचिंग संस्‍थान के पढ़ने चाहिएं। दूसरा प्रश्‍न है‍ कि कौन से नोट्स– कक्षा के नोट्स अथवा मुद्रित नोट्स? यह अभ्‍यर्थी की सुविधा पर निर्भर करता है। मैं व्‍यक्तिगत तौर पर महसूस करता हूं कि छपे नोट्स पढ़ना ज्‍यादा अच्‍छा रहेगा– ऐसे में लिखावट की समस्‍या नहीं होती और न ही लेखक की वर्णानात्‍मक व्‍याख्‍या की वजह से कोई भिन्‍नता आती है।  

F) क्‍या मुझे टेस्‍ट सीरीज लेनी चाहिए? 

     इस संबंध में मेरा उत्‍तर पूरी तरह सकारात्‍मक होगा। आपको फाइनल मैच से पहले नेट प्रैक्टिस करनी होती है, मोर्चे पर लड़ने से पहले मॉक ड्रिल करनी होती है। टेस्‍ट सीरीज प्रारंभिक और मुख्‍य परीक्षा, दोनों के लिए आवश्‍यक होती है। अंतिम चरण में दो अथवा तीन इंटरव्‍यू सेशन की आवश्‍यकता होती है।

     लेकिन एक पेंच है। यह पलायनवादी प्रवृत्ति है। कुछ अभ्‍यर्थी टेस्‍ट सीरीज से नहीं जुड़ते क्‍योंकि उनका मानना है कि उनकी तैयारी अपेक्षित स्‍तर की नहीं, जबकि कुछ ऐसे अभ्‍यर्थी होते हैं जो टेस्‍ट सीरीज से जुड़ने के बाद इसे बीच में ही छोड़ देते हैं। प्रिय अभ्‍यर्थियो, आपको यह तथ्‍य स्‍वीकार करना होगा कि किसी भी अभ्‍यर्थी को कभी भी यह महसूस नहीं होता कि उसकी तैयारी सिविल सेवा परीक्षा पास करने के लिए पर्याप्‍त है। बिना परीक्षा दिए कोई कैसे बता सकता है कि उसकी तैयारी का स्‍तर क्‍या है? इसके अलावा, CSE का कोर्स अंतहीन है और प्रत्‍येक टॉपिक पर मजबूत पकड़ हासिल करना न तो संभव है और न ही आवश्‍यक है। 

     मेरे एक मित्र ने अपने तीसरे प्रयास में वर्ष 2013 की प्रारंभिक परीक्षा के बाद मुख्‍य परीक्षा की टेस्‍ट सीरीज से जुड़ने का मेरा सुझाव मानने से इनकार कर दिया, उनका कहना था, “जब तक मुझे हमारे संविधान का प्रत्‍येक अनुच्‍छेद याद नहीं हो जाएगा, दुनिया के अधिकतर शहरों की जानकारी नहीं हो जाएगी, हाल की प्रत्‍येक समिति की रिपोर्ट याद नहीं हो जाएगी और भारत के प्रत्‍येक क्षेत्र की चुनौति‍यों की जानकारी नहीं हो जाएगी तथा UN (संयुक्‍त राष्‍ट्र) के प्रत्‍येक देश के साथ भारत के संबंधों की जानकारी नहीं हो जाएगी, तब तक मैं किसी भी टेस्‍ट सीरीज से नहीं जुडुंगा।”

     उनकी कई बातों के बारे में मैं नहीं जानता था। लेकिन मैंने टेस्‍ट सीरीज ज्‍वाइन की और मैंने अपने सभी उत्‍तर गंभीरता के साथ समयबद्ध तरीके से दिए। प्रिय अभ्‍यर्थी, यदि आप टेस्‍ट लिखते समय मेहनत करते हैं और यह जानने की कोशिश करते हैं कि टेस्‍ट पेपर लिखते समय क्‍या गलती हुई तो प्रत्‍येक टेस्‍ट पेपर लिखने से आपकी क्षमता में सुधार आता है। 

G) क्‍या वैकल्पिक विषयों के लिए कोचिंग की आवश्‍यकता होती है? 

     यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्‍या आपका वैकल्पिक विषय आपके लिए पूरी तरह नया है अथवा आपने इसे स्‍नातक स्‍तर पर पढ़ा है और वह भी कितनी गंभीरता से पढ़ा है। यदि कोई इंजीनियर इतिहास को अपने वैकल्पिक विषय के रूप में चुनता है तो उसे निश्चित रूप से थोड़ी सहायता की जरूरत होगी। यदि कोई विज्ञान संकाय का छात्र, जो अपने कॉलेज दिनों में पूरी तरह से निष्‍ठावान रहा है और CSE के लिए विज्ञान के विषयों को अपने वैकल्पिक विषय के रूप में चुनता है तो उसे किसी भी प्रकार की बाह्य सहायता की जरूरत नहीं पड़ेगी। दूसरी ओर, जो छात्र अपने कॉलेज समय में बैकबेंचर्स थे यदि वे अपने विषय को वैकल्पिक विषय के रूप में चुनते हैं तो उन्‍हें इसके लिए सहायता की आवश्‍यकता होगी। इस प्रकार, वैकल्पिक विषयों को चुनने के बाद, प्रतिभागी को इस विषय के संबंध में अपने पिछले ज्ञान का मूल्‍यांकन करना चाहिए और उसके बाद तदनुसार कोचिंग लेने अथवा न लेने का निर्णय लेना चाहिए।

H) कोचिंग ज्‍वायन करने का निर्णय लेने पर कौन सी बुनियादी बातों को ध्‍यान में रखा जाना है?

   पारदर्शिता के आज के समय में, जब राजनीतिक दल और उम्‍मीदवारों से अपेक्षित है कि वे बुनियादी बातों की जानकारी जनता को दें, तो क्‍या कोचिंग इंडस्‍ट्री के लिए अनिवार्य बुनियादी बातें नहीं बतानी चाहिए? कोचिंग संस्‍थानों के लिए फैक्‍ल्‍टी की शैक्षिक पृष्‍ठभूमि बताना अनिवार्य होना चाहिए। संस्‍थान की वेबसाइट पर यह जानकारी उपलब्‍ध होनी चाहिए। अनेक कोचिंग संस्‍थान शिक्षकों के प्रोफाईल की बजाए विभिन्‍न मॉड्यूल की फीस की जानकारी देने पर बल देते हैं।

 

  एक और अजीब बात यह है कि वैकल्पिक विषय ऐसे व्‍यक्तियों द्वारा पढ़ाया जाता है जिनकी उस विशेष विषय में कोई शैक्षिक पृष्‍ठभूमि नहीं होती। किसी भी वैकल्पिक विषय के लिए शिक्षक के पास विशेषज्ञता, गहन अध्‍ययन और अच्‍छा अनुभव होना चाहिए। यह इतना सरल नहीं कि कभी भी कोई उठकर कह दे कि अब से वो वैकल्पिक विषय पढ़ाएंगे। अन्‍य विषयों के साथ-साथ जन प्रशासन और समाज शास्‍त्र में टीचरों की बाढ़ आ गई है। अभ्‍यर्थियों को चल रहे ऐसे कुचक्र से बचना चाहिए। 

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Additional FAQs on पाठ 4 - कोचिंग इंडस्ट्री का आतंक; भ्रांतियां और FAQ - UPSC

1. कोचिंग इंडस्ट्री का आतंक क्या है?
उत्तर: कोचिंग इंडस्ट्री का आतंक एक ऐसी स्थिति है जब छात्रों को कोचिंग संस्थानों द्वारा दिए जाने वाले भ्रांतियों और दबावों का सामना करना पड़ता है। यह आमतौर पर UPSC और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्रों को प्रभावित करता है।
2. कोचिंग इंडस्ट्री में कौन कौन सी भ्रांतियाँ हैं?
उत्तर: कोचिंग इंडस्ट्री में कुछ प्रमुख भ्रांतियाँ हैं: - कोचिंग संस्थानों द्वारा दिए जाने वाले दावों की अवास्तविकता - छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यधिक दबाव और तनाव - छात्रों को नकारात्मक तथ्यों की अवगति के बिना डराना - बिना आवश्यकता के अत्यधिक फीस का दावा करना - छात्रों के लिए उपयुक्त नोट्स और सामग्री की कमी
3. कोचिंग संस्थानों द्वारा दिए जाने वाले दावों की अवास्तविकता कैसे पता चलती है?
उत्तर: कोचिंग संस्थानों द्वारा दिए जाने वाले दावों की अवास्तविकता जांचने के लिए छात्रों को उन दावों की गहन जांच करनी चाहिए। वे इन दावों की सत्यता को स्वयं जांच सकते हैं, जैसे कि पिछले वर्षों की सफलता दर, छात्रों के प्रतिशत की संख्या, या संस्थान के द्वारा प्रदान की गई सहायता और संपर्क की सुविधाएं। साथ ही, आप अन्य छात्रों और पूर्व छात्रों से भी बातचीत कर सकते हैं ताकि आपको संस्थान के बारे में सटीक जानकारी मिल सके।
4. कोचिंग संस्थानों के द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता क्या होती है?
उत्तर: कोचिंग संस्थानों के द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता छात्रों के लिए निम्नलिखित हो सकती है: - पाठ्यक्रम का विभाजन और अद्यतन करने की मदद - प्रश्नों के लिए समय प्रबंधन के टिप्स और ट्रिक्स - मॉक टेस्ट और परीक्षा के बाद का विश्लेषण - नोट्स, बुक्स, और अन्य सामग्री की उपलब्धता - छात्रों के लिए समर्थन और मार्गदर्शन
5. क्या कोचिंग संस्थानों के द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता हमेशा उपयोगी होती है?
उत्तर: कोचिंग संस्थानों के द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता आमतौर पर उपयोगी होती है, लेकिन यह हमेशा नहीं होता है। कुछ छात्रों को यह सहायता प्राप्त करने में सफलता मिलती है, जबकि कुछ छात्रों को इससे अधिक लाभ नहीं होता है। इसलिए, छात्रों को ध्यान से संस्थान का चयन करना चाहिए और उन्हें अपनी आवश्यकताओं के अनुसार सहायता का उपयोग करना चाहिए।
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