समाचार-पत्र जानकारी का प्रसार करने, निबंध, लेखों और पैसेज को समझने और साथ ही आपकी शब्दावली को समृद्ध करने में निर्विवाद भूमिका निभाते हैं। तथापि, ब्लाइंड रीडिंग और स्मार्ट रीडिंग के बीच का अंतर अच्छी प्रकार से समझ लेना चाहिए। पहला, समाचार-पत्र की प्रत्येक सामग्री पढ़ता है जबकि दूसरा केवल उस सामग्री को ही पढ़ता है जो परीक्षा में उसके लिए महत्वपूर्ण हो सकती है। इस प्रकार, समाचार-पत्र पढ़ना एक कला है और इसे अभ्यास से सीखा जाना चाहिए।
आपकी रुचि आपके लक्ष्य पर भारी नहीं पड़नी चाहिए। किसी अभ्यर्थी की खेलों में रुचि हो सकती है, लेकिन खेल संबंधी खण्ड को पढ़ना परीक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं होगा। अत: मैंने विस्तारपूर्वक उन विषयों की सूची तैयार की है जिन्हें नहीं पढ़ा जाना चाहिए और यदि आप उन्हें पढ़ते हैं तो उस पर खर्च किए गए समय को अपने अध्ययन के समय में शामिल न करें:
1. खेल खण्ड को पूरी तरह से छोड़ा जा सकता है।
2. ऐसे अंतरराष्ट्रीय समाचार जो भारत से संबंधित नहीं हैं।
3. राजनीतिक चर्चाएं, प्रवक्ताओं की टिप्पणियां, उत्तेजित बहस को पूरी तरह से छोड़ दिया जाना चाहिए।
4. पुस्तक समीक्षा को पढ़ने की आवश्यकता बिल्कुल भी नहीं।
5. राजनैतिक घटनाओं की ऐतिहासिक समीक्षाएं।
समाचार खण्ड जिन्हें चयनात्मक तरीके से पढ़ा जाना चाहिए:
1. राजनैतिक समाचारों को अलग से पढ़ा जाना चाहिए। आपको उस समाचार के राजव्यवस्था (Polity) संबंधी पहलू पढ़ने हैं, जिन्हें मुख्य परीक्षा से संबंधित खण्ड में पढ़ा जाएगा।
2. राज्य संबंधी समाचारों में से केवल वे ही समाचार पढ़ने चाहिए जिनमें कुछ नई स्कीम और नीतियां शामिल हों।
3. समाचार-पत्रों के वित्त/आर्थिक खण्ड को वित्त मंत्रालय की नीतियों, RBI द्वारा उठाए गए कदमों, वित्त से जुड़ने वाले विधानों के संबंध में पढ़ा जाना चाहिए। GDP की आवधिक समीक्षाओं, ब्याज दरों, आयात/निर्यात और अन्य तथ्यों और आंकड़ों को याद रखने के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है।
4. बिजनेस खण्ड क्षेत्र विशेष की परफार्मेंस की हद तक ही पढ़ा जाना चाहिए। स्टॉक मार्केट में उतार-चढ़ाव, मुद्रा दर में घटत-बढ़त और विलयन तथा अधिग्रहण संबंधी समाचारों को छोड़ा जा सकता है।
5. यदि आप ‘साइंस रिपोर्टर’ पत्रिका में समेकित घटनाक्रम पढ़ते हैं तो विज्ञान और प्रौद्योगिकी खण्ड को भी छोड़ा जा सकता है।
वे विषय जो आपको पूरी तरह पढ़ने चाहिएं:
1. उच्चतम न्यायालय के निर्णयों से संबंधित समाचार।
2. संपादकीय खण्ड।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि अभ्यर्थी को स्मार्ट तरीके से समाचार-पत्र पढ़ना चाहिए ताकि न्यूनतम प्रयास से अधिकतम परिणाम हासिल किए जा सकें।
पत्रिकाएं आपको भ्रमित कर देंगी। मार्केट में इतनी अधिक पत्रिकाएं उपलब्ध हैं कि अभ्यर्थी बुक स्टाल पर जाकर भ्रमित हो सकता है और वह स्वयं को बेशुमार सामग्री से ओवरलोड कर लेगा। इसके अलावा, शिक्षकों, साथियों और यहां तक कि बुक-स्टाल के लोगों से भी अलग-अलग पत्रिकाएं पढ़ने के संबंध में विभिन्न सुझाव मिलते रहते हैं।
इस मौजूदा कोलाहल में मेरी पसंद एकदम स्पष्ट थी, मैंने केवल योजना पत्रिका पढ़ी। शुरुआत में, मैंने फ्रंटलाइन पत्रिका पढ़ी, फिर प्रतियोगिता दर्पण पढ़ी और जिस्ट को भी आजमाया, इनमें विभिन्न समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं का सार दिया होता है। लेकिन अंत में मैं योजना पर टिक गया। इसका प्रकाशन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा किया जाता है लेकिन इसमें केवल सरकार के विचारों को ही स्थान नहीं दिया जाता।
प्रिय अभ्यर्थी, वर्ष 2013 के GS के पेपर की योजना पत्रिका के पिछले 7-8 अंकों महीनों के अंकों के साथ तुलना करें और आप यह जानकर आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि GS के पेपर 2 और 3 के कई प्रश्नों को योजना के विभिन्न लेखों में देखा जा सकता है। यह मासिक पत्रिका निबंध लेखन के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका दृष्टिकोण प्रगतिशील, दूरदर्शी और आशावादी है। किसी मुद्दे का बहु-आयामी विश्लेषण, इसके बहु-क्षेत्रीय संयोजन (मल्टी–सेक्टोरल लिंकेजिज), इसकी चुनौतियां और अंतत: किसी नकारात्मक दृष्टिकोण की अपेक्षा विकास के विज़न के साथ लक्ष्योन्मुखी समाधान, इन सबकी जरूरत न केवल आपके निबंध में पड़ती है बल्कि एक प्रशासक बनने के लिए ये आपके व्यक्तिगत गुणों में भी शामिल होने चाहिए। इस संबंध में योजना संपूर्ण पत्रिका है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय की पत्रिका कुरुक्षेत्र को भी इसकी सामग्री और महत्व के हिसाब से योजना के ही समकक्ष माना जाता है। तथापि, मुझे लगता है कि कुरुक्षेत्र अधिक अनुसंधानोन्मुखी है और यह किसी समस्या पर सामान्य विचार की अपेक्षा उसका विस्तृत समाधान प्रस्तुत करती है। इस कारक को ध्यान में रखते हुए, मैं अभ्यर्थियों को योजना पत्रिका को अपनाने और इसे पूरी तरह से पढ़ने की सलाह दूंगा।
यदि समझदारी से प्रयोग न किया जाए तो वेबसाइटें एक जंजाल बन सकती हैं। ऐसी बहुत सी पत्रिकाएं हैं जो तथ्य और विश्लेषण प्रदान करती हैं, यहां तक की वे GS कोर्स के पारंपरिक भाग के संबंध में भी सामग्री उपलब्ध कराती हैं। Mrunal, GK today, Halfmantr जैसी वेबसाइटें इसी प्रकार की हैं।
तथापि, अभ्यर्थी को इन वेबसाइटों का चयन करते समय बेहद सजग रहने की आवश्यकता है। आपको निश्चित रूप से यह पता होना चाहिए कि आप वेबसाइट पर क्या खोज रहे हैं। अन्यथा, इंटरनेट पर उपलब्ध प्रचुर सामग्री आपको अपने लक्ष्य से भटका सकती है और आप पढ़ेंगे तो बहुत कुछ लेकिन आपको उसका फायदा कुछ भी नहीं होगा! यदि इंटरनेट का प्रयोग उचित रूप से नहीं किया जाता है तो यह आपका ध्यान लक्ष्य से भटका सकता है। एक बार मैं REDD प्रोग्राम के बारे में जानकारी खोज रहा था, जो कि उष्णकटिबंधीय विकसित देशों को उनके वनों के संरक्षण के लिए विश्व स्तर पर प्रोत्साहन प्रदान करता है। मुझे इसकी आधारभूत मंशा, वित्तपोषण मैकेनिज्म और भारत के संयुक्त वन समूहों से इसके जुड़े होने के तरीके के बारे में जानने के लिए चार घंटे का समय लग गया। कुछ दिनों बाद मुझे यह सामग्री एक कोचिंग के नोट्स में अधिक बेहतर संरचित तरीके से मिल गई!
इस प्रकार, यदि अर्थशास्त्र की भाषा में कहूं तो ICOR (वृद्धिशील पूंजी अनुपात) अर्थात् एक इकाई इनपुट बढ़ने पर आउटपुट में होने वाला बदलाव इंटरनेट अध्ययन के संबंध में निश्चित रूप से उच्च है। अत: अभ्यर्थियों यह उपयुक्त रहेगा कि इंटरनेट का सहारा केवल तभी लिया जाए जब ऐसा करना अतिआवश्यक हो और जैसे ही आपका काम पूरा हो जाए इंटरनेट बंद कर देना चाहिए।
भ्रांतियां और FAQ (बारंबार पूछे जाने वाले प्रश्न)
A) CSAT के कॉम्प्रिहेन्शन में बेहतर प्रदर्शन के लिए मैं समाचार-पत्रों का प्रयोग कैसे करुं?
समाचार-पत्र GS की तैयारी में प्रभावशाली भूमिका अदा करने के अलावा, CSAT के कॉम्प्रिहेन्शन में सुधार करने के लिए भी प्रभावी तरीके से प्रयोग किए जा सकते हैं। निम्नलिखित कार्य करें और इनका नियमित रूप से पालन करें; संपादकीय का कोई एक लेख चुनें। इसे 3 मिनट में पढ़ने की कोशिश करें और इसके सार को अगले 3 मिनट में लिखने का प्रयास करें। प्रिय अभ्यर्थी, प्रारंभिक परीक्षा से लगभग एक माह पूर्व ऐसा करने की आदत डालें और किसी टेस्ट सीरीज को अपनाकर अपने CSAT स्कोर में होने वाले निरन्तर सुधार को देखें। भले ही आप हिन्दी माध्यम के छात्र हों और तमाम विरोधों के बावजूद यदि CSAT बना रहता है तो मैं आपसे इस रणनीति को अपनाने का अनुरोध करता हूं, इसे अपनाकर आप कॉम्प्रिहेशन के मामले में अंग्रेजी माध्यम के छात्रों से भी अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। मैंने प्रारंभिक परीक्षा से लगभग 20 दिन पहले इस रणनीति को अपनाया और 2013 के CSAT के पेपर में 200 में से 180 अंक प्राप्त किए!
B) क्या मुझे समाचार-पत्रों के नोट्स बनाने चाहिए?
एक बार जब आप समाचार-पत्रों की आवश्यक विषय-वस्तु को छांटना सीख जाएं और इन्हें स्मार्ट तरीके से पढ़ना शुरु कर दें तो आपको दूसरे स्तर की ओर अग्रसर हो जाना चाहिए, अर्थात् संगठित नोट्स बनाने चाहिए। तथापि, नोट्स अलग-अलग होने चाहिए और भावी संदर्भ के लिए आसानी से उपलब्ध होने चाहिए। प्रिय अभ्यर्थी, राजनीति एवं संविधान, भूगोल एवं पर्यावरण, सामाजिक मुद्दों एवं स्कीमों, आर्थिक नीतियों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए छोटी-छोटी डायरियां तैयार करें। जब भी आप समाचार-पत्र पढ़ें, तो इन विशिष्ट डायरियों में संबंधित समाचारों और उनके विश्लेषणों को सारगर्भित और स्पष्ट तरीके से लिख लें। इससे न केवल आपको GS की तैयारी में बल्कि निबंध की तैयारी में भी मदद मिलेगी।
C) यदि मैं समाचार-पत्र नहीं पढ़ूंगा तो सिविल सेवा परीक्षा पास नहीं कर पाऊंगा।
असल में यदि आप समाचार-पत्र को आंख बंद करके पढ़ते हैं तो इससे न पढ़ना ही बेहतर होगा। प्रिय अभ्यर्थी, यदि आपने समाचार-पत्र को स्मार्ट तरीके से पढ़ने की कोशिश की है और फिर भी इसे संगठित तरीके से नहीं पढ़ पा रहे, तो अच्छा रहेगा कि आप समाचार-पत्र को पढ़ने में खर्च करने वाले समय को किसी अन्य कार्य में लगाएं। आपको सभी महत्वपूर्ण मामलों का संकलन योजना पत्रिका में अवश्य मिल जाएगा।
D) इंडिया ईयर बुक पढ़ना अनिवार्य है।
यह सबसे अधिक प्रचलित गलतफहमियों में से एक है। इसके उलट इसे पढ़ने की कोई जरूरत ही नहीं है। यह इतनी भारी-भरकम है कि इसकी सामग्री ही इसे पूरा पढ़ने में बाधक हो सकती है और ऐसा करने का अभ्यर्थी का प्रयास निराशाजनक हो सकता है। असल में योजनागत दस्तावेज इंडिया ईयर बुक का श्रेष्ठ विकल्प है। उसे भी ध्यान से पढ़ा जाना चाहिए, विशेषकर मुख्य परीक्षा के लिए।
E) हमें समाचार-पत्र पढ़ते समय सामने आने वाले नए शब्दों को शब्दकोश में दिए गए उनके अर्थ के साथ अवश्य लिख लेना चाहिए।
ऐसा करना न तो संभव है और न ही आवश्यक। संभव इसलिए नहीं क्योंकि आप तैयारी के दौरान नए शब्द खोजने और उनका अर्थ लिखने के लिए समय की कमी होने की वजह से इस विशेष आदत को कायम नहीं रख पाएंगे। आप कुछ सप्ताह तक ऐसा करेंगे लेकिन फिर अन्य कार्यों की वजह से इस आदत को कम अहमियत देने लगेंगे। इसके अलावा, जब आप किसी शब्द विशेष के अर्थ पर अपना ध्यान केन्द्रित करोगे तो पूरा लेख आपके दिमाग से फिसल जाएगा और आपको इसे फिर से पढ़ने की जरूरत पड़ेगी!
ऐसा आवश्यक नहीं है क्योंकि किसी शब्द विशेष के अर्थ की बजाए इसके प्रयोग और वाक्य में इसके भाव का महत्व होता है। अत: हम अपनी शब्दावली में किस प्रकार सुधार कर सकते हैं? मेरे पास कुछ आमतौर पर प्रयोग किए जाने वाले शब्दों के समूह की एक सूची है जिन्हें पर्यायवाची और विपरीतार्थक शब्दों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ये शब्द www.firstattempt.in पर उपलब्ध होंगे।
F) मैं उन लोगों को देखकर हीन भावना का शिकार हो जाता हूं जो समाचार-पत्र पढ़ने अथवा इंटरनेट पर कोई चीज ढूंढ़ने के लिए आसानी से मोबाइल का प्रयोग करते हैं। उनके पास काफी अधिक जानकारी एकत्र हो जाती है और इस मामले में उनके पास महत्वपूर्ण बढ़त होती है।
प्रिय अभ्यर्थी, यदि आप इस अहसास को अनुभव कर रहे हैं तो आपको स्वीकार करना होगा कि आप भी मेरी तरह डिजिटल अंतराल के शिकार हैं! फिर भी, हमें यह बात अवश्य समझ लेनी चाहिए कि जानकारी तक सरल पहुंच एकमात्र मानदण्ड नहीं है जो आपकी सफलता की संभावना को निर्धारित करता है। बल्कि अभ्यर्थी द्वारा उस जानकारी को व्यवस्थित करने का तरीका, वह जानकारी संगठित है अथवा नहीं, क्या इसे प्रयोग के लिए बाद में याद किया जा सकता है अथवा नहीं, इस जानकारी को हासिल करने में कितना समय लगा आदि सभी कारक मिलकर समसामयिकी में सफलता की संभावना को निर्धारित करते हैं।
केवल सामान्य–ज्ञान में बढ़ोतरी करने से ही आपको अधिक फायदा नहीं होने वाला। यह मुख्य परीक्षा में केवल आपके विश्लेषणात्मक उत्तरों में मदद देता है क्योंकि मुख्य परीक्षा में केवल तथ्यात्मक प्रश्न ही नहीं पूछे जाते। उदाहरण के लिए, मुझे यह परवाह करने की कोई जरूरत नहीं कि क्रिकेट जगत में मैच फिक्सिंग स्कैंडल में कौन फंसा? लेकिन मैं खेलों पर पड़ने वाले इसके प्रभाव, अंडरवर्ल्ड और आतंकी गतिविधियों के साथ इसके वित्तीय संबंधों, इसे रोकने के लिए हमारे सरकारी कानून, प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा लागू कानूनों और इन कानूनों में मौजूद कमियों को लेकर निश्चित तौर पर चिंतित हूं।
एक और उदाहरण, मुझे यह याद नहीं भी रह सकता कि रसायन का नोबल पुरस्कार किसे मिला, क्या यह एक ही व्यक्ति को मिला अथवा संयुक्त रूप से दिया गया, लेकिन मुझे यह अवश्य मालूम होना चाहिए कि उस शोध से मानवता को क्या मदद मिलेगी, क्या यह मदद भारत के लिए भी उपलब्ध होगी, और यदि हां तो कैसे। इस प्रकार, प्रिय अभ्यर्थियो तथ्यों को याद करने के इस झमेले से बाहर निकलो और ऐसी अवधारणों को गहराई से जानो जो हमें तथ्य मुहैया कराती है!
1. समाचार-पत्र, पत्रिकाओं और वेबसाइटों की भूमिका क्या है? |
2. समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित सामग्री क्या होती है? |
3. समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं को क्यों पढ़ना चाहिए? |
4. वेबसाइटों की भूमिका क्या है? |
5. समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और वेबसाइटों की भूमिका के बारे में कुछ भ्रांतियाँ हैं? |
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