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पाठ 6 - प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी - UPSC PDF Download

प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी 

  

मैं व्‍यक्तिगत तौर पर प्रारंभिक परीक्षा को मुख्‍य परीक्षा से तुलनात्‍मक रूप से ज्‍यादा कठिन महसूस करता हूं! आंकड़ों को देखने पर आपको पता चल जाएगा कि मैं ऐसा क्‍यों महसूस करता हूं। किसी भी वर्ष परीक्षा में बैठने वाले लगभग 5 लाख छात्रों में से केवल 14000 को ही मुख्‍य परीक्षा के लिए चुना जाता है, अर्थात् सफल होने के लिए 97 पर्सेन्‍टाइल से अधिक की आवश्‍यकता होती है। CSAT लागू होने के बाद से प्रतियोगिता और भी अधिक कठिन हो गई है। वन सेवा के अभ्‍यर्थियों की स्थिति‍ और भी अधिक संकटपूर्ण हो गई है क्‍योंकि भारतीय वन सेवा की मुख्‍य परीक्षा में बैठने के लिए सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा पास करना पात्रता परीक्षा बन गई है। CSE में भारतीय वन सेवा परीक्षा का विकल्‍प चुनने वालों में से केवल पहले लगभग 1000 छात्र ही वन सेवा मुख्‍य परीक्षा में बैठने के लिए पात्र होते हैं। इसके लिए लगभग 99 पर्सेन्‍टाइल की आवश्‍यकता होगी। 

इसके अलावा, वर्ष 2011 से 2013 के दौरान पैटर्न की पूर्व स्‍पष्‍ट वजहों से कट-ऑफ प्रतिवर्ष बढ़ी है। तथापि, CSE 2014 प्रतिवर्ष बढ़ते कट-ऑफ रुझान से अलग होगी। अब CSE 2014 के GS के पेपर 2 की मार्किंग स्‍कीम को अंतिम क्षणों में बदल दिया गया है, मार्किंग स्‍कीम को स्थिरता दिए जाने के लिए CSE 2015 में एक और बदलाव की संभावना है। इस प्रकार, इस अत्‍यधिक प्रतिस्‍पर्धा भरे माहौल में अभ्‍यर्थी, विशेषकर फ्रेशर, चकरा जाता है कि वह प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी किस प्रकार करे। मैंने CSAT, 2014 के पेपरों के व्‍यापक विश्‍लेषण का सार प्रस्‍तुत किया है।

     CSAT – 2014 के पेपर-II का विश्‍लेषण 

 

खण्‍ड

प्रश्‍न

टिप्‍पणियां

     समय

     (मिनट में)

कॉम्प्रिहेन्‍शन (हिंदी और अंग्रेजी, दोनों में मुद्रित)

  1.  

कुल मिलाकर 8 पैसेज, अर्थात् प्रति पैसेज 3.38 प्रश्‍न। पैसेज और प्रश्‍नों को मिलाकर कुल लगभग 3000 शब्‍द पढ़ने होते हैं, अर्थात् प्रत्‍येक प्रश्‍न के लिए लगभग 115 प्रश्‍न पढ़ने होते हैं।

पैसेज के विषय GS की विषय-वस्‍तु से संबंधित होते हैं। वस्‍तुओं के मूल्‍य जैसे पैट्रोल का मूल्‍य, समावेश विकास, आंतरिक अर्थव्‍यवस्‍था पर वैश्‍वीकरण के प्रभाव, पारिस्थितिकी और जैव-विविधता, प्राइवेट बनाम पब्लिक स्‍वामित्‍व, मुक्‍त बाजार और पूंजीवाद।

  1.  
  •  
  1.  

परिवर्तनीय रेखीय समीकरण, गति/दूरी और समय, लाभ और हानि, क्षेत्रफल संबंधी प्रश्‍न, वेन डायग्राम आधारित प्रश्‍न, दिशा आधारित प्रश्‍न, अंक-गणित अनुक्रम।

  1.  

लॉजिकल रीजनिंग

  1.  

अरेन्‍जमेंट और कॉम्बिनेशन से जुड़े प्रश्‍न, तारीख और दिवस का पता लगाने संबंधी प्रश्‍न, परिवास संबंधी प्रश्‍न, तार्किक निष्‍कर्ष और अनुमान आधारित प्रश्‍न, लापता संख्‍या संबंधी प्रश्‍न 

  1.  

आंकड़ा विश्‍लेषण

  1.  

दो फल विक्रेताओं के लाभ की तुलना करना, दो छात्रों के अंकों से संबंधित सरल प्रश्‍न और किसी शहर की आय की तुलना में जनसंख्‍या संबंधी प्रश्‍न

  1.  

चित्र आधारित

  1.  
  1. प्रश्‍न चित्र से संबंधित और एक प्रश्‍न A से B का मार्ग खोजने संबंधी 
  1.  

अंग्रेजी कॉम्प्रिहेन्सन (केवल अंग्रेजी भाषा में लिखा होता है)

  1.  

नहीं करना है

  1.  

निर्णय करना

  1.  

इस बार कोई प्रश्‍न नहीं पूछा गया।

  1.  

 

 

अंग्रेजी कॉम्प्रिहेन्‍शन के 6 प्रश्‍नों (केवल अंग्रेजी में लिखित) को शामिल नहीं किया गया, जिससे CSAT का अधिकतम स्‍कोर 185 रह गया है। परीक्षा के दौरान समय की अत्‍यधिक कमी महसूस हुई। कुछ इस प्रकार के सुस्‍पष्‍ट प्रश्‍न जो कठिन अथवा पेचीदा थे, छोड़ने चाहिएं थे: 

  1. लापता संख्‍या संबंधी प्रश्‍न
  2. कार्ड संबंधी प्रश्‍न जिनके दोनों ओर 1 और 2 लिखा था।
  3. घड़ी की दो सुईयां एक-दूसरे के ऊपर होने की स्थिति में समय बताने संबंधी प्रश्‍न।
  4. जज, वकील, स्‍टैनो, इंजीनियर आदि से संबंधित तार्किक क्षमता वाले प्रश्‍न।
  5. ऐसा प्रश्‍न जिसमें 36 सेमी. की सरल रेखा खींची गई थी और इसके दोनों सिरों पर बिंदु लगाए गए थे।
  6. दिए हुए अंतराल पर पांच व्‍यक्तियों द्वारा गोली दागने संबंधी प्रश्‍न।

उपर्युक्‍त प्रश्‍नों के कुल मिलाकर 20 अंक हैं। इन्‍हें मैं कठिन प्रश्‍न मानूंगा। जो अभ्‍यर्थी इन प्रश्‍नों में उलझ गए थे उन्‍हें पेपर पूरा करने में कठिनाई हुई। जिन अभ्‍यर्थियों की पढ़ने की गति प्रति मिनट 80 शब्‍द से कम थी उन्‍हें कॉम्प्रिहेन्‍शन संबंधी प्रश्‍नों में कठिनाई का सामना करना पड़ा। इस प्रकार के कॉम्प्रिहेन्‍शन के लिए ऐसी गति की आवश्‍यकता होती है।

 

  •  मौजूदा विवाद

   CSAT पेपर-2 उन सभी विवादों की जड़ था जो सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा को घेरे हुए थे। यह दावा किया गया कि यह पेपर अंग्रेजी बोलने वाले छात्रों, शहरी भारतीय लोगों और इंजीनियरिंग और प्रबंधन पृष्‍ठभूमि के छात्रों को बढ़ावा देता है। इसी प्रकार यह हिंदी-भाषी और अन्‍य क्षेत्रीय भाषाएं बोलने वाले अभ्‍यर्थियों, ग्रामीण भारत और आर्टस संकाय के छात्रों के साथ पक्षपात करता है। विभिन्‍न पीड़ित पक्षों के निष्‍पक्ष सामान्‍य विचार इस प्रकार हैं: 

a) हिन्‍दी माध्‍यम के अभ्‍यर्थी: अंग्रेजी कॉम्प्रिहेन्‍शन खण्‍ड (जो केवल अंग्रेजी में लिखा होता है), जो अंग्रेजी भाषा ज्ञान की जाच करता है, हिन्‍दी–भाषी छात्रों के साथ भेदभाव करता है। इसके अलावा, अन्‍य कॉम्प्रिहेन्‍शन का हिन्‍दी में अनुवाद शब्‍दश: और अनुवाद सॉफ्टवेयर द्वारा होता है, इस प्रकार पैरा का अर्थ थोड़ा विकृत हो जाता है। इस प्रकार, कॉम्प्रिहेन्शन का सही अर्थ समझने के लिए हिंदी के छात्रों को बीच-बीच में कॉम्प्रिहेन्‍शन का अंग्रेजी संस्‍करण देखना पड़ता है। इससे समय नष्‍ट होता है।

b) क्षेत्रीय भाषा के छात्र: यदि कोई स्‍नातक छात्र उड़िया भाषी है और अंग्रेजी एवं हिंदी, दोनों में उसका कौशल अच्‍छा नहीं है तो वह क्‍या करेगा? क्‍या यह अनिवार्य है कि हिन्‍दी भाषा के अलावा अन्‍य भाषा बोलने वाले छात्रों को CSAT परीक्षा लिखने के लिए अंग्रेजी भाषा का पर्याप्‍त कार्यसाधक ज्ञान होना चाहिए? अथवा यह माना जाता है कि प्रत्‍येक स्‍नातक स्‍तर का कॉलेज अंग्रेजी में कार्यसाधक ज्ञान प्रदान करता है? क्‍या इससे देश के अन्‍य भागों की बजाए हिन्‍दी-भाषी क्षेत्रों के छात्रों को फायदा नहीं पहुंच रहा है? ऐसे अनेक कठिन सवाल मौजूद हैं।   

c) ग्रामीण अभ्‍यर्थी: जैसाकि हिंदी और अन्‍य क्षेत्रीय भाषाओं के छात्रों ने दावा किया है, क्‍या भाषा संबंधी भेदभाव सिविल सेवा परीक्षा के माध्‍यम से शहरी-ग्रामीण क्षेत्र का अंतर बढ़ा  रहा है? ग्रामीण क्षेत्रों के साथ भेदभाव होने के पीछे मूल आवधारणा यह है कि अंग्रेजी मुख्‍यत: शहरी भारत, विशेषकर महानगरों की भाषा है।  

d)    आर्टस संकाय के छात्र: तर्क दिया जाता है कि गणित, जिसकी वेटेज लगभग 17 प्रतिशत है, जो 10वीं कक्षा के स्‍तर से ऊपर का होता है। इसके अलावा यह भी दावा किया जाता है कि लॉजिकल रीजनिंग और डाटा इंटरप्रि‍टेशन, जिनकी संयुक्‍त वेटेज 30 प्रतिशत है, प्रशासनिक होने की अपेक्षा प्रबंधकीय अधिक है। यह भी तर्क दिया जाता है कि इंजीनियरिंग और प्रबंधन के छात्रों को आर्टस संकाय के छात्रों की अपेक्षा स्‍पष्‍ट तौर पर फायदा होता है और सिविल सेवा के लिए आवश्‍यक प्रशासनिक कौशल का परीक्षा के इस पैटर्न से मूल्‍यांकन नहीं किया जा सकता है।       

अडिग UPSC और सरकार का दृष्टिकोण

   विरोध की शुरुआत UPSE द्वारा CSE 2013 का अंतिम परिणाम घोषित होने के बाद दिल्‍ली के मुखर्जी नगर से हुई और लगभग तीन महीनों के भीतर इसने भारतीय संसद में बैठे जन प्रतिनिधियों का ध्‍यान आकर्षित कर लिया। उपद्रव को शांत करने के लिए, सरकार ने CSE 2014 में UPSC द्वारा निम्‍न परिवर्तन किए जाने का प्रस्‍ताव किया:

A) अंग्रेजी कॉम्प्रिहेन्‍शन (अनिवार्य, जिसका हिन्‍दी अनुवाद नहीं होता) के अंक अंतिम मैरिट में शामिल नहीं किए जाएंगे।

B) जिन अभ्‍यर्थियों ने वर्ष 2011 में पेपर दिया था, जिस वर्ष CSAT को सबसे पहली बार लागू किया गया था, उन्‍हें वर्ष 2015 में एक अतिरिक्‍त अवसर दिया जाएगा।

   सरकार ने उपर्युक्‍त प्रस्‍तावों द्वारा हिंदी माध्‍यम के छात्रों की चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया। तथापि, UPSE, जो कि एक स्‍वायत्‍त संवैधानिक निकाय है, अंतिम समय तक अपने निर्णय से झुकने के लिए तैयार नहीं था। अध्‍यक्ष के बदलने पर ही उपर्युक्‍त लिखित संशोधनों को राजपत्र में अधिसूचित किया जा सका।

   अनिवार्य अंग्रेजी प्रश्‍नों को हटाने के इस कथित साधारण मुद्दे से कई अन्‍य मुद्दे जुड़े हैं। सबसे पहला मुद्दा संवैधानिक निकायों की स्‍वायत्‍तता से ही जुड़ा है। यदि सरकार द्वारा अंतिम क्षणों में UPSC पर पैटर्न बदलने अथवा अंकन (मार्किंग) स्‍कीम बदलने का दबाव डाला जाता है तो इसकी स्‍वायत्‍तता पर ही प्रश्‍नचिन्‍ह लग जाएगा। और इस प्रकार अन्‍य संवैधानिक निकायों जैसे चुनाव आयोग, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की स्‍वायत्‍तता के प्रश्‍न पर सार्वजनिक बहस कराई जा सकती है। 

   दूसरा मुद्दा संस्‍थानों के विश्‍वास संबंधी महत्‍व परिवर्तित होने से संबंधित है। इन संस्‍थानों को चलाने वाले लोगों की मंशा और उनकी क्षमताओं पर विवाद हुए हैं। क्‍या UPSC के सदस्य, जिन्‍हें  DoPT के पास सिविल सेवकों के नाम संस्‍तुत करने का दायित्‍व सौंपा गया है, वे अपने कार्य के साथ ही साथ देश के साथ न्‍याय नहीं कर रहे? क्‍या उनके पास वर्तमान समय की अपेक्षाओं अनुसार परीक्षा के ढांचे में बदलाव करने का विज़न और तदनुसार स्‍वायत्‍तता नहीं है? इन प्रश्‍नों से न केवल अभ्यर्थियों को कष्‍ट पहुंचता है बल्कि इनसे प्रत्‍येक आम आदमी को भी चिंता होती है क्‍योंकि सिविल सेवकों के चयन की प्रक्रिया देश को भी प्रभावित करती है।  

 

  मंजिल की ओर

  जैसाकि हमने पहले चर्चा की है कि किसी अभ्‍यर्थी को केवल अपने प्रयासों द्वारा ही सफलता नहीं मिलती। इसमें माता-पिता, परिवार और साथियों का प्रत्‍यक्ष और समाज का अप्रत्‍यक्ष रूप से काफी अधिक योगदान होता है, जिसके बदले जन सेवा के माध्‍यम से समाज का आभार व्‍यक्‍त किया जाता है। इस प्रकार, चर्चा इस बात पर बल देती है कि कुछ कारक ऐसे होते हैं जो अभ्‍यर्थी की पहुंच से बाहर हैं और उसके चयन को प्रभावित करते हैं। जहां तक चयन की बात है तो सकारात्‍मक कारकों को अधिक करने और नकारात्‍मक कारकों को कम करने के प्रयास किए जाने चाहिए। हिंदी माध्‍यम के छात्रों, क्षेत्रीय भाषाओं के छात्रों, ग्रामीण क्षेत्रों और आर्टस संकाय के छात्रों की बात करें तो वे CSAT परीक्षा को हटाने के लिए प्रयास कर रहे थे। उनके तर्क के अनुसार, इससे उन्‍हें समान अवसर मिलेगा और इस प्रकार उनके चयन की संभावना बढ़ जाएगी।

   लेकिन प्र‍िय अभ्‍यर्थियो कुछ चीजें हमारे बूते से बाहर होती हैं। इस प्रकार, एक हद के बाद कोई व्‍यक्ति बाह्य कारकों को नहीं बदल सकता और यदि वह बदलाव आ भी जाता है तो इसे कार्यरूप लेने में समय लगता है। इस तथ्‍य को समझना महत्‍वपूर्ण है, क्‍योंकि इसके बाद, अभ्‍यर्थी को बाह्य कारकों पर ध्‍यान देना बंद करना है और ऐसे कारकों पर काम करना है जो सीधे उसके नियंत्रण में हैं जैसे विषय का ज्ञान, भाषा पर पकड़, विश्‍लेषणात्‍मक कौशल आदि। इसे ध्‍यान में रखते हुए अभ्‍यर्थियों को मौजूदा कोलाहल भरे समय में आगे की तैयारी के लिए सही रणनीति अपनानी है। 

   अत: इस उथल-पुथल और भ्रम से भरी स्थिति में अभ्‍यर्थियों को क्‍या करना चाहिए? जब यह अटकलें लगाई जाने लगी कि प्रारंभिक परीक्षा सितम्‍बर में आयोजित की जाएगी तो कई अभ्‍यर्थियों ने अपनी पढ़ाई रोक दी। ऐसे समय में ही चतुर अभ्‍यर्थी लाभ उठाते हैं। सबसे अच्‍छा तरीका है कि चाय की दुकानों पर होने वाली चर्चाओं से दूर रहा जाए। प्रिंट और इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में आने वाली ऐसी खबरों से भी बचा जाए। प्रिय मित्रो, प्रमाणित बदलाव का पता लगाने का एकमात्र स्रोत UPSC की वेबसाइट अथवा भारत के राजपत्र में दी गई अधिसूचना ही होती है। जब तक ऐसा नहीं होता, न तो खुश होने की जरूरत है और न ही दु:खी होने की, बल्कि ऐसी अटकलों में दिलचस्‍पी ही नहीं लेनी चाहिए। इनमें दिलचस्‍पी न लेने से आपकी ऊर्जा अकारण नष्‍ट नहीं होगी। ऐसे समय में आपको वे सभी बातें सुनने को मिलेगी जो आपके लिए अनुकूल होंगी, इन अटकलों के बारे में कोई भी घोषणा करने से बचें और इस प्रकार आपके मस्तिष्‍क पर ऐसी कोई छाप नहीं पड़ेगी जिससे आपकी महत्‍वपूर्ण ऊर्जा नष्‍ट होती हो। 

   मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। अक्‍तूबर/नवम्‍बर, 2012 में व्‍यापक रूप से एक अफवाह फैली कि UPSC एक वैकल्पिक विषय को हटा सकता है और उसकी जगह पर GS के दो पेपर और लागू कर सकता है। उस समय मैंने सिविल इंजीनियरिंग के साथ दर्शन-शास्‍त्र को दूसरे वैकल्पिक विषय के रूप में चुना था। चाय की दुकानों पर आते-जाते मुझे UPSC द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के बारे में विभिन्‍न प्रकार के विचार सुनने को मिलते थे। लोग इतने विश्‍वास से बातें करते जैसे कि वे ही बदलावों को अंतिम रूप देने वाली समिति के सदस्‍य हों! इस अनिश्चित समय में उनकी आगे की रणनीति के बारे में, कि क्‍या वैकल्पिक विषय की ही पढ़ाई जारी रखनी चाहिए अथवा GS की पढ़ाई शुरु करनी चाहिए, मैं उन्‍हें चुपचाप सुनता रहा।   

   हालांकि मैं इन चर्चाओं को सुनता रहता था लेकिन मैं इस मुद्दे पर अपने विचार देने से बचता रहा। एक दोस्‍त ने मुझे इस विषय पर कुछ कहने के लिए दबाव डाला। मैंने कहा, “कोई भ्रम नहीं है। जब तक राजपत्र अधिसूचना द्वारा पुराने पैटर्न को नए पैटर्न द्वारा प्रतिस्‍थापित नहीं कर दिया जाता तब तक मेरे लिए दो वैकल्पिक विषयों वाला पैटर्न ही लागू है। इसलिए मैं GS के साथ-साथ दर्शन-शास्‍त्र की पढ़ाई जारी रखूंगा।”

   हांलाकि, CSE 2013 की अधिसूचना में जबर्दस्‍त तरीके से पैटर्न बदल दिया गया। एक वैकल्पिक विषय की जगह GS का पेपर लागू कर दिया गया। मैं पश्चिमी दर्शन और भारतीय दर्शन को पूरा पढ़ चुका था और अब यह मेरे लिए बेकार था। जो लोग पैटर्न में बदलाव की वकालत करते थे उन्‍होंने मेरे व्‍यर्थ के प्रयासों पर ताने मारना शुरू कर दिया। “याद है ना मैंने आपसे कहा था। क्‍या मैंने ऐसा नहीं कहा था? जब तक अधिसूचना नहीं आ जाती सिविल सेवा की तैयारी करना उपयोगी नहीं है।” मेरे एक मित्र ने मुझे चिढ़ाया। लेकिन वह इस बात को नजरंदाज कर रहा था कि मैं दर्शन-शास्‍त्र के साथ-साथ GS भी पढ़ रहा था। आगे वह इस तथ्‍य को भी जनरंदाज कर रहा था कि मैं लगातार पढ़ाई के संपर्क (टच) में था और उसने ब्रेक कर लिया था। प्रिय अ‍भ्‍यर्थियो बीच-बीच में लंबे ब्रेक लेने की बजाए अध्‍ययन में निरंतरता बनाए रखना ज्‍यादा अच्‍छा होता है। 

   जहां तक CSE 2014 की बात है, 24 अगस्‍त को प्रारंभिक परीक्षा की अंकन (मार्किंग) स्‍कीम में जो भी हल्‍के-फुल्‍के बदलाव किए गए वे प्रारंभिक परीक्षा के पैटर्न को स्थिर नहीं करते हैं। इस बात की काफी अधिक संभावना है कि UPSC द्वारा CSE 2015 में कई अन्‍य बदलावों को शामिल किया जा सकता है, विशेषकर प्रारंभिक परीक्षा में, जो कि गले हड्डी बना हुआ है। लेकिन, 2015 की अधिसूचना आने तक 2015 के अभ्‍यर्थियों को GS की तैयारी शु्रू कर देनी चाहिए अथवा जारी रखनी चाहिए। CSE 2015 की अधिसूचना आने से पहले पेपर 2 को लेकर चिंतित होना केवल अपनी ऊर्जा बेकार करना है और इससे बचा जाना चाहिए। इसके अलावा, यदि 2015 के लिए प्रारंभिक परीक्षा 2015 का पैटर्न नहीं बदलता तो भी अभ्‍यर्थी के पास अधिसूचना जारी होने के बाद भी तैयारी के लिए पर्याप्‍त समय रहेगा।

  GS पेपर 2 के लिए स्‍मार्ट रणनीति

   यह मानते हुए कि वर्ष 2015 की प्रारंभिक परीक्षा का पैटर्न नहीं बदलेगा, अभ्‍यर्थी का क्‍या दृष्टिकोण होना चाहिए? GS और CSAT के बीच किस प्रकार का तालमेल बिठाया जाए?

   मैं यहां आपके लिए एक रणनीति प्रस्‍तुत कर रहा हूं जिसे यदि प्रतिबद्धता के साथ अपनाया जाए तो निसंदेह अच्‍छे परिणाम हासिल होंगे:

   चरण 1: CSE 2015 के अभ्‍यर्थियों को प्रारंभिक परीक्षा से कम से कम दो महीने पूर्व किसी भी प्रकार की कोचिंग लेना अवश्‍य बंद कर देना चाहिए

   चरण 2: उस कोचिंग संस्‍थान की टेस्‍ट सीरीज लें जो CSE में पूछे जाने वाले पेपर जैसी ही सीरीज मुहैया कराता है। साप्‍तहिक टेस्‍ट को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पांच या छह टेस्‍ट पर्याप्‍त हैं।

   चरण 3: साथ ही साथ, कम से कम 30 दिनों तक प्रतिदिन समाचार-पत्र के किसी एक लेख का सार लिखें। हिंदी माध्‍यम के छात्रों को भी अपनी सुविधा के अनुसार हिंदी या अंग्रेजी में ऐसा ही करना चाहिए।   

   चरण 4: किन्हीं दो अन्‍य कोचिंग संस्‍थानों के पेपर भी अपने घर पर मंगाएं ताकि विविध प्रकार के प्रश्‍नों को समायोजित किया जा सके।

   चरण 5: विगत दो महीनों के दौरान लगभग समान अंतराल पर अर्थात् 7 या 8 दिनों के अंतराल पर अपने घर पर 5 या 6 CSAT पेपर दें।    

   चरण 6: टेस्‍ट को घर पर पूरी तरह समयबद्ध तरीके से दिया जाना चाहिए और इसे 1 घंटे और 50 मिनट के समय में पूरा कर लिया जाना चाहिए।

      पेपर का पहले निदानात्‍मक विश्‍लेषण करें और उसके बाद सुधारात्मक अध्‍ययन किया जाना चाहिए। CSAT का पहला पेपर बिना तैयारी के देना चाहिए। यह देखें कि किस क्षेत्र में समस्‍या आ रही है, और उसी क्षेत्र पर ध्‍यान दिया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक ऐसे अभ्‍यर्थी पर विचार करो जो तार्किक कारण (लॉजिकल डेरवेशन) के प्रश्‍नों और रक्‍त संबंधों के प्रश्‍नों को एक विशेष समय-सीमा में हल नहीं कर पाता है। उसे गति-दूरी, आंकड़ा विश्‍लेषण, ज्‍यामिती अथवा संभाव्‍यता के प्रश्‍न क्‍यों करने चाहिए? उसे केवल समस्‍याग्रस्‍त क्षेत्र पर ही ध्‍यान क्‍यों नहीं देना चाहिए और तार्किक कारण (लॉजिकल डेरवेशन) और रक्‍त संबंधों के लगभग 30 प्रश्‍न अपने आप ही क्‍यों नहीं करने चाहिए? दरअसल यह अभ्‍यर्थी में ही था और मैंने CSAT के प्रत्‍येक पहलू को कवर करने की अपेक्षा केवल अपनी कमजोरियों पर ही ध्‍यान दिया। इसका संतोषजनक परिणाम मेरे समक्ष था। 

CSAT – 2014 के पेपर-I का विश्‍लेषण 

खण्‍ड

प्रश्‍न

टिप्‍पणियां

   समय (मिनट में)

राज्‍य–व्‍यवस्‍था (POLITY)

  1.  

इस बार राज्‍य-व्‍यव‍स्‍था (polity) के प्रश्‍नों की संख्‍या कम कर दी गई थी। कुछ प्रश्‍न सामान्‍य प्रकृति के थे जिनकी परीक्षा हॉल की परिस्थितियों में अभ्‍यर्थियों द्वारा विभिन्‍न व्‍याख्‍याएं की जा सकती थी। उदाहरण के लिए, संवैधानिक सरकार क्‍या है जिसे ‘नियोजन’ के साथ जोड़ा जा सकता है? कुछ बेहद सरल प्रश्‍न थे; दसवीं अनुसूची में दल-बदल कानून दिया गया है, अंतरराष्‍ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना संविधान के किस भाग में शामिल है, संसद की सबसे बड़ी समि‍ति और दो प्रश्‍न उच्‍चतम न्‍यायालय के संबंध में थे। अन्‍य प्रश्‍न राज्‍यपाल, राष्‍ट्रपति – प्रधानमंत्री संबंधों और अविश्‍वास प्रस्‍ताव से संबंधित थे।

  1.  
  •  
  1.  

आधुनिक भारत के इतिहास का महत्‍व लगभग समान रहता है। प्रश्‍नों का स्‍तर काफी सरल था। बंगाल के विभाजन, भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस का 1929 सत्र, क्रांतिकारी समूह, भारत सरकार का अधिनियम, 1958, भारत का विभाजन और रैडक्लिफ लाइन के संबंध में प्रश्‍न पूछे गए थे।

  1.  

कला और संस्‍कृति

  1.  

कला और संस्‍कृति का महत्‍व बढ़ गया है और इसका विशेष उल्‍लेख किए जाने की आवश्‍यकता है। प्रश्‍नों में निम्‍न विस्‍तृत क्षेत्र शामिल थे:

बुद्ध का जीवन और स्‍मारकों के संबंध में बौद्ध इतिहास, मध्‍यकालीन भारत का प्रशासन और अकबर का शासन, नृत्‍य के प्रकार, राजस्‍थान का क्षेत्रीय संगीत, शास्‍त्रीय भाषाएं, मंदिर वास्‍तुकला, भारतीय मार्शल आर्ट्स, कबीर का संग्रह (बीजक), भारतीय दर्शन की छह व्‍यवस्‍थाएं, विभिन्‍न उपनिषद, शहरों का ऐतिहासिक महत्‍व, शक काल, चैत्र-1

  1.  
  •  
  1.  

मानचित्र आधारित प्रश्‍न (9) सीधे पूछे जाते हैं, विशेषकर विश्‍व-स्‍तर पर दक्षिण-पूर्व एशिया और यूरेशिया क्षेत्र से। भारत के मानचित्र से अंडमान एवं निकोबार की अवस्थिति, राष्‍ट्रीय पार्क, नदियों और पर्वत श्रृंखलाओं से संबंधित प्रश्‍न पूछे गए। भारत के राजमार्गों और फसलों और उनके उत्‍पादन से संबंधित क्षेत्रों के मानचित्र से संबंधित प्रश्‍न आश्‍चर्यचकित करने वाले थे। अवधारणा आधारित प्रश्‍न केवल 5 थे, जो काफी कम कर दिए गए थे। ये प्रश्‍न हिमालय की वनस्‍पति, महाद्वीपीय विस्‍थापन और उसका प्रभाव, मानसून, प्रवाल भित्‍ती से संबंधित थे।

  1.  

पर्यावरण (प्रदूषण)

  1.  

पिछले वर्ष प्रदूषण से संबंधित आठ प्रश्‍न आए थे। इस वर्ष इनमें मृदा अपरदन के कारण, कार्बन-डाई-ऑक्‍साइड के स्रोत, इस्‍पात उद्योग के प्रदूषक, ओजोन क्षयकारक एजेंट और उनका मैकेनिज्‍म से संबंधित प्रश्‍न पूछे गए थे।

  1.  

पर्यावरण (पारिस्थितिकी)

  1.  

पिछले वर्ष के पेपर में पारिस्‍थ‍ितिकी से संबंधित 10 प्रश्‍न पूछे गए थे। इस वर्ष इनमें काफी बढ़ोतरी हुई है। प्रमुख क्षेत्र थे: सहजीवी संबंध, पानी में आहार-श्रृंखला, पर्यावरण हितेषी प्रथाएं और समुदाय, पशुकल्‍याण बोर्ड, NTCA, NGRBA, वन्‍य-जीव संरक्षण बोर्ड, EPA, टैक्‍सोनमी वर्गीकरण, अंतरराष्‍ट्रीय पर्यावरण संधियां और पहलें (intiatives) जैसे अर्थ आवर, मोन्‍ट्रेक्‍स रिकार्ड, नमभूमि संबंधी संरक्षण, गंगा डॉल्फिन, स्‍तनधारी और हाइबरनेशन, जैवमंडल रिजर्व, वन्‍यजीव अभयारण्‍य, राष्‍ट्रीय उद्यानों, जैव उद्यानों में अंतर, जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़े प्रभाव।   

  1.  

विज्ञान और प्रौद्योगिकी

  1.  

प्रश्‍नों की संख्‍या पिछले वर्ष के प्रश्‍नों जितनी ही थी। प्रश्‍न मुख्‍यत: इन क्षेत्रों से थे: रक्षा उपकरण जैसे मिसाइल, उपग्रह, रॉकेट आदि की आधारभूत कार्यप्रणाली। ऊर्जा के अपारंपरिक स्रोत– कोल-बेड मीथेन और शेल गैस, जैव-ईंधन की अवधारणा–बायोडीजल, बायोगैस, बायोएथेनॉल आदि, इनकी कच्‍ची सामग्री और विभिन्‍न श्रेणियों में इनका वर्गीकरण, आर्थिक व्‍यवहार्यता और इनके गौण उत्‍पाद। सिंचाई, HYV बीजों के माध्‍यम से आहार सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए S & T का प्रयोग और इससे संबंधित मुद्दे जैसे बीजों का प्रतिस्‍थापन, सिंचाई और HVY बीजों में प्राइवेट सेक्‍टर की सहभागिता। इससे जुड़ा एक और मुद्दा कृषि पंपों को प्रतिस्‍थापित करना है। अभाव आधारित रोगों से संबंधित प्रश्‍न सरल था। नैनोटैक्नोलजी को एक बार फिर से स्‍थान हासिल हुआ। इसकी अवधारणा, इसके अनुप्रयोग, उपयोग और सरोकारों का अध्‍ययन किए जाने की आवश्‍यकता है। पादपों की आधारभूत प्रक्रिया और इनके भाग, भारतीय औषधीय पद्यति में स्‍थान पाने वाले पौधे और उनकी भूमिका/उपचार संबंधी गुण। बायोमेट्रिक पहचान और इसके पीछे काम करने वाला सिद्धान्‍त। भौतिक बनाम रसायनिक परिवर्तन। सौर ऊर्जा उत्‍पादन की समझ– फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव, प्रयोग की जाने वाली धातु और उनकी उपलब्‍धता, फोटोवोल्टिक सेलों की आर्थिक व्‍यवहार्यता और इनकी सीमाएं। 

  1.  

अर्थशास्‍त्र

  1.  

अर्थशास्‍त्र के प्रश्‍न घट गए हैं। इनमें मुख्‍यत: निम्‍न क्षेत्र शामिल होते हैं: बैंकिंग प्रचालन, उद्यम पूंजी, पब्लिक फाइनेंस, 12वीं योजना के उद्देश्‍य, कर ढांचा, अंतरराष्‍ट्रीय एजेंसियों के प्रकाशन, बजट की आधारभूत अवधारणाएं, परिवार, बैंकिंग, सरकार और बाह्य क्षेत्रों के बीच संबंध।

  1.  

वर्तमान तथ्‍य और स्‍कीमें

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इस बार कई तथ्‍यात्‍मक प्रश्‍न पूछे गए थे इसलिए इनके लिए एक अलग शीर्ष (हैड) की आवश्‍यकता है। इन प्रश्‍नों में शामिल हैं: अरब स्प्रिंग, आर्कटिक कौंसिल, माली, इराक और रूस की हालिया घटनाएं, स्‍पेसक्राफ्ट और उनके उद्देश्‍य, BNHS. विभिन्‍न स्‍कीमें जैसे: अकालग्रस्‍त क्षेत्र, मरूस्‍थल विस्‍तार, वर्षा आधारित क्षेत्र और समेकित वाटरशेड विकास, BRICS, भारत में बीमारी उन्‍मूलन।    

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(मुझे आश्‍चर्य है कि GS के पेपर 1 के अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद में वे कथित कमियां क्‍यों नहीं दिखाई देतीं जो GS के पेपर 2 में दिखाई देती हैं। ऐसा इस वज़ह से हो सकता है कि पेपर 1 में पेपर 2 की तरह लंबे कॉम्‍प्रिहेशन नहीं थे जिनका अनुवाद करने की आवश्‍यकता पड़ती!)  

CSAT, 2014 ने UPSC के पेपर सेट करने के रुझानों की अनिश्‍चितता की हमारी अवधारणा की एक बार पुन: पुष्‍टि कर दी है! सबसे बड़ा आश्‍चर्य पेपर 2 से निर्णय-लेने की क्षमता संबंधी प्रश्‍नों को हटाए जाने से हुआ। इसके अलावा, GS का पेपर अजीब प्रकृति का था – प्रश्‍न या तो बहुत सरल थे अथवा काफी कठिन थे।   

² विषय-वार विश्‍लेषण:  

            राज्‍य-व्‍यवस्‍था (Polity) : यह पेपर 1 का सबसे अधिक पूर्व अनुमानित और स्‍कोरिंग भाग है। तैयारी की शुरुआत करने वाले अभ्‍यर्थी को NCERT की कक्षा 9 और 10 की DEMOCRATIC POLITICS नामक पाठ्यपुस्‍तकों में सबसे पहले हमारी राज्‍य-व्‍यवस्‍था के आधारभूत पहलुओं को पढ़ना चाहिए। इससे राज्‍य-व्‍यवस्‍था की कुछ आधारभूत शब्‍दावलियों की समझ बनेगी– आदर्श, संविधान, निर्वाचन पद्यति, सत्‍ता में साझेदारी आदि। इनमें कोई भी अनुच्‍छेद नहीं दिया गया है। इस प्रकार, यह भाग कुछ विशिष्‍ट उदाहरणों के साथ बहुत ही रोचक है। इसे पढ़ने के बाद, अभ्‍यर्थी को भारत के संविधान के भागों, अनुच्‍छेदों और अनुसूचियों के बारे में पढ़ने की आवश्‍यकता है। इसके लिए, कोचिंग नोट्स पढ़ने की बजाए अभ्‍यर्थी को कोई स्‍टैंडर्ड पाठ्यपुस्‍तक जैसे कि बेयर एक्‍ट के साथ लक्ष्‍मीकांत को पढ़ना चाहिएलक्ष्‍मीकांत का संक्षिप्‍त विकल्‍प, सुभाष कश्‍यप की पुस्‍तक ‘हमारा संविधान’ के रूप में उपलब्‍ध है। अभ्‍यर्थी को इन दोनों में से कोई एक पुस्‍तक ही पढ़नी चाहिए न कि दोनों। कृपया ध्‍यान दें कि D.D Basu भारतीय संविधान की एक आदर्श समीक्षा है। UPSC के लिए इस तरह की बारीक समीक्षा की आवश्‍यकता नहीं है।

            जिन अभ्‍यर्थियों ने पहले ही एक बार राज्‍य-व्‍यवस्‍था को पढ़ लिया है उन्‍हें पूरी स्‍टैंडर्ड पाठ्यपुस्‍तकों को बार-बार पढ़ने की आवश्‍यकता नहीं। उन्‍हें केवल अपने कमजोर क्षेत्रों पर ध्‍यान देना चाहिए अथवा अपनी विशेष रुचि के क्षेत्रों पर ध्‍यान देना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई अभ्‍यर्थी यह पढ़ता है कि तमिलनाडु ने कावेरी ट्राइब्‍यूनल के निर्णय को चुनौती दी है तो उसके मन में जिज्ञासा उत्‍पन्‍न होगी, जबकि तथ्‍य यह है कि A 262 के अनुसार ट्राइब्‍यूनल के निर्णय उच्‍चतर न्‍यायपालिका के क्षेत्राधिकार से परे हैं (संसद ने कानून द्वारा यह छूट प्रदान की है)। देश की मौजूदा राज्‍य-व्‍यवस्‍था की वज़ह से पैदा होने वाली जिज्ञासा को bare acts के संगत भागों को पढ़कर तत्‍काल शांत किया जा सकता है। इस प्रकार, राज्‍य-व्‍यवस्‍था पढ़ने के बाद अभ्‍यर्थी को bare acts को पढ़ने की आदत बनानी चाहिए। बाद में, हम यह विचार करेंगे कि देश की राजनीति से राज्‍य-व्‍यवस्‍था संबंधी समाचारों का सार किस प्रकार निकाला जा सकता है।

          आधुनिक इतिहास: आधुनिक भारत अपेक्षाकृत सरल है और इसे पहले पढ़ना चाहिए। प्रश्‍न ऐसे होते हैं कि घटनाओं के कालक्रम और उनके कारण और प्रभावों की जानकारी होना पर्याप्‍त है। ऐसा NBT freedom struggle नामक पुस्‍तक को पढ़कर किया जा सकता है, यह ऐसे लोगों के लिए ‘उपन्‍यास’ समान है जिन्‍हें इतिहास पढ़ना उबाऊ लगता है। इसे उपन्‍यास की तरह पढ़ें, अनुमान लगाएं कि आगे क्‍या होने वाला है और जब आप इसे पहली बार पूरा पढ़ लेंगे तो इससे आप इतिहास की थोड़ी अधिक वर्णात्‍मक पुस्‍तक पढ़ने के लिए तैयार हो जाएंगे। NBT की पुस्‍तक पढ़ने के बाद अभ्‍यर्थी NCERT की कक्षा आठ की OUR PAST – III (भाग 1 और भाग 2, दोनों) नामक पुस्‍तक का आलोचनात्‍मक विश्‍लेषण करने की स्थिति में होगा। चूंकि CSAT में तथ्‍यात्‍मक विवरणों को ज्‍यादा गहनता से नहीं पूछा जाता, NCERT की आधुनिक इतिहास की पुरानी किताबें पढ़ने की सलाह नहीं दी जा‍ती है। जहां तक भारत के आधुनिक इतिहास का प्रश्‍न है, प्रारंभिक परीक्षा के लिए उपर्युक्‍त विश्‍लेषण पर्याप्‍त है। जिन अभ्‍यर्थियों ने आधुनिक भारत की तैयारी में बहुत समय लगाया, उन्‍हें प्रश्‍नों के सरल स्‍तर को देखकर निराशा हुई। तथापि, उनका ज्ञान मुख्‍य परीक्षा के दौरान फायदेमंद रहेगा। अभ्‍यर्थी को सलाह दी जाती है कि इस पेपर के सरल प्रश्‍नों को देखते हुए आधुनिक इतिहास की आधारभूत पाठ्यसामग्री की पढ़ाई को कम न करें।

कला और संस्‍कृति: यह स्‍पष्‍ट रूप से देखा जा सकता है कि कला और संस्‍कृति का महत्‍व आधुनिक भारत के इतिहास से कहीं अधिक है। सबसे कठिन बात यह है कि इसके प्रश्‍न आमतौर पर तथ्‍यात्‍मक होते हैं। इसे दो तरह से समझा जाए। पहला, कला और संस्‍कृति में पूछे जाने वाले प्रश्‍न मुख्‍यत: प्राचीन और मध्‍यकालीन भारत से संबंधित होते हैं। दूसरा, कला और संस्‍कृति के विकास को समझने के लिए अभ्‍यर्थी को प्राचीन और मध्‍यकालीन भारत की परिस्थितियों को ध्‍यान में रखना होगा। राजवंशों और लड़ाइयों की अपेक्षा हमारा ध्‍यान महत्‍वपूर्ण घटनाओं के व्‍यापक कालक्रम पर होना चाहिए। यह विश्‍लेषण NCERT की कक्षा 6 की नई पाठ्यपुस्‍तक (Our past – I) और कक्षा 7 की पाठ्यपुस्‍तक (Our past – II) (राष्‍ट्रीय कोर्स फ्रेमवर्क, 2005 के बाद छपी पुस्‍तकों में) में बहुत अच्छी तरह से दिया गया है। इन पुस्‍तकों के पढ़ने से प्राचीन और मध्‍यकालीन भारत की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों का आधार बन जाएगा। अब अभ्‍यर्थी विषय-वस्‍तु के व्‍यापक अध्‍ययन के लिए तैयार होगा। यह अध्‍ययन कोचिंग नोट्स का प्रयोग करके किया जा सकता है जिनमें कला और संस्‍कृति की विषय-वस्‍तु को संगीत, नाटक, धर्म, भाषा, साहित्‍य, मूर्तिकला और वास्‍तुकला में विभाजित किया गया होता है। इनमें से कुछ की विषय-वस्‍तु एक दूसरे का अतिव्‍यापन (overlapping) करती है। इस प्रयोजन के लिए Spectrum भी उपयोगी है। तथापि, उन विशिष्‍ट विषयों की पढ़ाई की जानी चाहिए जो पिछले वर्ष के CSAT पेपर में पूछे गए थे।

                भूगोल: यह विषय भौतिक, मानव और आर्थिक भूगोल में विभाजित किया जा सकता है। भौतिक भूगोल वायुमण्‍डल, जलमण्‍डल और भू-आकृतियों, इनके कारणों और इनसे जुड़ी प्रक्रियाओं से संबंधित है। इस प्रकार, भौतिक भूगोल का अध्‍ययन वैश्विक स्‍तर पर किया जाना है लेकिन कुछ भारत-विशिष्‍ट घटनाओं का भी अध्‍ययन किया जाना है, जैसे मानसून। अत: सुझाव है कि विश्‍व-स्‍तरीय घटनाओं से संबंधित स्‍टैंडर्ड पुस्‍तकों के साथ-साथ भारतीय परिस्थितियों से संबंधित पाठ्यपुस्‍तकें पढ़ी जानी चाहिएं। J.C Leong पुस्‍तक में वायुमण्‍डलीय तंत्र, समुद्री धाराओं, भू-आकृतियों और उनके कारणों पर और दुनिया भर में विभिन्‍न जैव मण्‍डल उत्‍पन्‍न करने के लिए अजैविक कारकों की जैविक कारकों के साथ अंत:क्रिया पर बहुत अच्‍छी तरह से प्रकाश डाला गया है। प्रत्‍येक बायोम में तापमान, वर्षा, वनस्‍पतिजात और प्राणिजात संबंधी सामान्‍यीकृत विशेषताएं होती हैं। NCERT की 11वीं कक्षा की ‘Fundamentals of Physical Geography’ नामक पुस्‍तक इसका एक विकल्‍प हो सकती है। Leong अथवा NCERT में से कोई एक पुस्‍तक पढ़ें। लेकिन दोनों पुस्‍तकें न पढ़ें क्‍योंकि यह हमारे काम की पुनरावृत्ति होगी और हमारी मेहनत बेकार जाएगी।

       वैश्विक घटनाक्रम का व्‍यापक अवलोकन करने के बाद, हमें भारत के विशिष्‍ट मामलों का अध्‍ययन करना है। कक्षा 11वीं की ‘India physical environment’ नामक भूगोल की पुस्‍तक में इसका बहुत अच्‍छी तरह से वर्णन है जिसमें हमारे पर्वतों, नदियों, जलवायु, वनस्‍पति‍ और मृदाओं के बारे में जानकारी दी गई है। जैसाकि हमने ऊपर GS के पेपर 1 के विश्‍लेषण में देखा था, मानचित्र आधारित प्रश्‍नों की संख्‍या में बढ़ोतरी हो गई है। विश्‍व के मानचित्र से भी दो प्रश्‍न शामिल किए गए थे। मानचित्र पर आधारित 9 प्रश्‍नों में से चार का उत्‍तर सरलता से दिया जा सकता था। शेष प्रश्‍नों के लिए विशेष जानकारी की चाहिए। एटलस (भारत के भौतिक मानचित्र पर) की सहायता से निम्‍न मानचित्रों का अच्‍छी तरह अभ्‍यास करने की आवश्‍यकता है:

a)  पर्वत  b) नदियां  c) राष्‍ट्रीय उद्यान  d) वन्‍यजीव अभ्‍यारण्‍य  e) बाघ रिजर्व  f) मृदाएं  g) वनस्‍पतियां

 (राष्‍ट्रीय उद्यान, वन्‍यजीव अभयारण्‍य और बाघ रिजर्व के बीच के अंतर को समझें)

       इसके बाद मानव और आर्थिक भूगोल का भाग है। जहां तक प्रारंभिक परीक्षा का संबंध है, इसके लिए केवल भारतीय संदर्भ का अध्‍ययन करने की आवश्‍यकता है। इन दोनों भागों में आर्थिक भूगोल ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण है, इसलिए हमें इस पर ज्‍यादा ध्‍यान देना होगा। इसके लिए NCERT की कक्षा 8वीं की ‘Resources and development’ नामक पाठ्यपुस्‍तक और कक्षा 10वीं की ‘contemporary India – II’ नामक पाठ्यपुस्‍तक का संपूर्ण अध्‍ययन करना अनिवार्य है। प्रारंभिक परीक्षा के लिए इन दोनों पुस्‍तकों में भारत के खनिज, कृषि, जल, वन और वन्‍यजीव संसाधनों, उद्योगों और उन्‍हें प्रभावित करने वाले कारकों की पर्याप्‍त जानकारी दी गई है। 

       मानव भूगोल, मानव संसाधनों, क्षमता निर्माण सहित मानव पूंजी और इसके प्रबंधन से संबंधित है। इस भाग के कुछ क्षेत्र अर्थशास्‍त्र से मिलते-जुलते हैं। इस प्रकार, हमें मानव भूगोल से संबंधित अपने अध्‍ययन को सीमित रखना होगा क्‍योंकि इससे संबंधित प्रश्‍न सीधे नहीं पूछे जाते; इसके प्रश्‍न अर्थशास्‍त्र अथवा नवीनतम नीतियों से जुड़े हो सकते हैं। अत: अभ्‍यर्थियों को NCERT की 11वीं कक्षा की ‘India – people and economy’ नामक पुस्‍तक को अच्‍छी तरह से पढ़ने की सलाह दी जाती है।

पर्यावरण: यह बेहद पेचीदा विषय है क्‍योंकि इसका डोमेन काफी हद तक भूगोल से मिलता-जुलता है; यह अभ्‍यर्थियों को उनके प्रयासों को दोहराने के लिए लुभाता है लेकिन इससे समय की बर्बादी होती है और कोई महत्‍वपूर्ण ज्ञान भी अर्जित नहीं होता। तथापि, हम अपना ध्‍यान पर्यावरण की रचना करने वाले घटकों पर ही केन्द्रित करेंगे। इसे मुख्‍यत: पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और पर्यावरण में विभाजित किया जा सकता है। पारिस्थितिकी के लिए NCERT की 12वीं कक्षा की जीवविज्ञान की पाठ्यपुस्‍तक स्‍टैंडर्ड पुस्‍तक है अभ्‍यर्थियों को इसके पारिस्थिति नामक अध्‍याय 10 को पढ़ने की सलाह दी जाती है। गत वर्षों के प्रश्‍न देखने पर आप पाएंगे कि अनेक प्रश्‍न उपर्युक्‍त पाठ में दी गई मौलिक जानकारी का प्रयोग करके हल किए जा सकते हैं।  

    जैव-विविधता और प्रदूषण के बारे में ‘Teachers’ handbook on Environmental education for the higher secondary stage’ के अंतिम 4 अध्‍यायों में व्‍यवस्थित ढंग से बताया गया है। ErachBharucha की ‘Environmental studies for graduate’ नामक पुस्‍तक भी एक स्‍टैंडर्ड पुस्‍तक है। दोनों में ही व्‍यापक विश्‍लेषण प्रस्‍तुत किया गया है। इस प्रकार अभ्‍यर्थियों को पहले teachers’ handbook पढ़ने की सलाह दी जाती है और उसके बाद ErachBharucha की पुस्‍तक से प्रमुख, लुप्‍तप्राय और विलुप्‍त हो चुकी प्रजातियों से संबंधित वन्‍यजीवों के भाग को पढ़ने की सलाह दी जाती है। ErachBharucha की पुस्‍तक में दिया गया अन्‍य सभी विवरण दोहराया गया भाग है, इसे पढ़ना समय की बर्बादी होगी। इसके अलावा पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की वेबसाइट पर भारत में लुप्‍तप्राय प्रजातियों की सूची डाउनलोड करें। यह भी सलाह दी जाती है कि अभ्‍यर्थी इनके चित्रों को विशेषतौर पर देखें। इन लुप्‍तप्राय प्रजातियों के सूक्ष्‍म शारीरिक विभेदों के बारे में भी प्रश्‍न पूछे जा सकते हैं। इस पेपर में, पिछले वर्षों की तुलना में प्रदूषण से संबंधित प्रश्‍नों का महत्‍व कम जबकि पारिस्‍थिति संबंधी प्रश्‍नों का महत्‍व बढ़ गया है। प्रदूषण से संबंधित प्रश्‍न पूर्वानुमेय क्षेत्रों से आए थे, लेकिन पारिस्थिति से संबंधित प्रश्‍न इस बार थोड़े पेचीदा थे। NCERT की 12वीं कक्षा की जीवविज्ञान की पाठ्यपुस्‍तक का पर्यावरण और पारिस्थितिकी से संबंधित अंतिम अध्‍याय और पर्यावरण संबंधी टीचर्ज हैंडबुक के चुनिंदा अध्‍याय पढ़ने से अभ्‍यर्थी पेपर में पूछे गए 20 प्रश्‍नों में से 8 प्रश्‍नों को हल कर सकते थे। अन्‍य प्रश्‍नों को हल करने के लिए अतिरिक्‍त प्रयासों की आवश्‍यकता है; नमभूमि संरक्षण, वन और जैविक विविधता संरक्षण के लिए चलाए जा रहे वैश्विक कार्यक्रमों/प्रयासों के संबंध में UNEP, UNDP, UNFCCC आदि की वेबसाइटों का विस्‍तार से अध्‍ययन करने की जरुरत है। इस संबंध में हमारे राष्‍ट्रीय कानूनों के फ्रेमवर्क को भी देखने की आवश्‍यकता है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी: आइए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को हम दो भागों में बांटते हैं। पहला भाग भौतिकी, रसायन और जीवविज्ञान की पारंपरिक अवधारणा से और दूसरा विज्ञान के सिद्धान्‍तों में हुए नए विकास और प्रौद्योगिकियों में हुए नए आविष्‍कारों से संबंधित है। मानविकी के छात्रों को विज्ञान से घबराने की जरुरत नहीं है क्‍योंकि इसके लिए 10वीं कक्षा के स्‍तर का ही ज्ञान चाहिए। अभ्‍यर्थियों को NCERT की कक्षा छठी, सातवीं और आठवीं की विज्ञान की पुस्‍तकों में दी गई आधारभूत अवधारणों का गहन अध्‍ययन करना चाहिए। जहां तक NCERT की कक्षा नौवीं और दसवीं की स्‍टैंडर्ड पाठ्यपुस्‍तकों का सवाल है, हमें अपने प्रयासों में अत्‍यधिक चयनात्‍मक होने की जरुरत है और ये हमारी आवश्‍यकताओं के अनुरूप होने चाहिए। सिविल सेवा के लिए कक्षा 9वीं और 10वीं की भौतिकशास्‍त्र और रसायनशास्‍त्र की विषयवस्‍तु पढ़ने की आवश्‍यकता नहीं है। तथापि, कक्षा 10 का प्रकाश से संबंधित अध्‍याय पढ़ना चाहिए जो परावर्तन, अपवर्तन और प्रकीर्णन (reflection, refraction and dispersion) से संबंधित है लेकिन इसके गणितीय भाग को छोड़ देना चाहिए।  

            दूसरा पहलू विज्ञान और प्रौद्योगिकी के नवीनतम समाचारों से संबंधित है। UPSC द्वारा तथ्‍यात्‍मक विवरण नहीं पूछा जाएगा। लेकिन नवीनतम घटनाओं की जानकारी देते हुए अंतर्निहित सिद्धांतों का वर्णन जानकारी के आधार पर देने की आवश्‍यकता है। इसके लिए सर्वश्रेष्‍ठ तरीका यह है कि उन समाचारों पर विचार किया जाए और दर्शाया जाए जिन्‍हें आपने समाचार-पत्र पढ़ते समय उस डायरी में एकत्र किया है जो आपने इस उद्देश्‍य के लिए तैयार की थी। इसके अलावा, साइंस रिपोर्टर पत्रिका विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुए नए विकासों की जानकारी का बहुत अच्‍छा स्रोत है। हालांकि इस पत्रिका के प्रत्‍येक अंक को पूरी तरह पढ़ना कठिन है क्‍योंकि इसमें अत्‍यधिक तथ्‍यात्‍मक जानकारी दी गई होती है। अभ्‍यर्थी साइंस रिपोर्टर की अपेक्षा दी जिस्‍ट भी पढ़ सकते हैं, जिसमें साइंस रिपोर्टर के संक्षिप्‍त समाचार शामिल होते हैं। लेकिन दोनों पत्रिकाओं को न पढ़ें।

अर्थशास्‍त्र: सिविल सेवा की तैयारी में यह सर्वाधिक रोचक विषयों में से एक है। ऐसा इसलिए कि अभ्‍यर्थी भारत और दुनिया के नवीनतम घटनाक्रम को इस विषय से जोड़ सकता है। इसके अलावा, अर्थशास्‍त्र के मूल सिद्धान्‍त पूंजीवादी दृष्टिकोण में प्रचलित हैं, जो समकालीन विश्‍व के अधिकांश हिस्‍सों में जड़ जमा चुका है। अत: राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर अर्थशास्‍त्र का व्‍यापक अध्‍ययन करने के लिए इसके मूल सिद्धान्‍तों की आधारभूत जानकारी होना जरूरी है।  

अभ्‍यर्थी को अर्थशास्‍त्र की शुरुआत NCERT की कक्षा 9वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं की अर्थशास्‍त्र की पुस्‍तकों की पढ़ाई से करनी चाहिए। कक्षा 11वीं का व्‍यष्टि अर्थशास्‍त्र (micro economics) आसानी से छोड़ा जा सकता है और इस पर कोई चर्चा किए जाने की भी आवश्‍यकता नहीं। इसके विपरीत कक्षा 12 की समष्टि अर्थशास्‍त्र (macro economics) पुस्‍तक सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा की आधारशिला है, जो धन, बैंकिंग, वित्‍त, RBI की भूमिका, सरकारी वित्‍त और घाटे (deficits) से संबंधित है। इस पुस्‍तक को दो बार पढ़ना समय की बर्बादी नहीं कही जाएगी क्‍योंकि इसकी अवधारणाओं की मुख्‍यत: मुख्‍य परीक्षा में भी आवश्‍यकता पड़ती है। एक बार इन आधारभूत आवश्‍यक पाठ्यपुस्‍तकों को पढ़ लेने के बाद अभ्‍यर्थी समाचार-पत्र में अर्थशास्‍त्र और बिजनेस संबंधी समाचारों को पढ़ने का आनंद उठा सकता है।  

हालांकि अर्थशास्‍त्र का आधार NCERT की पाठ्यपुस्‍तकों द्वारा तैयार कर दिया जाता है लेकिन प्रारंभिक परीक्षा के सभी प्रश्‍नों को हल करने के लिए आवश्‍यक ज्ञान हेतु ये पर्याप्‍त नहीं होंगी। इस कमी को कोचिंग नोट्स द्वारा पूरा किया जा सकता है जिनमें ऐसी सामग्री दी गई होती है जो NCERT की पाठ्यपुस्‍तकों में नहीं होती, जैसे विकास के सूचकांक, धन और पूंजी बाजार, अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक निकाय, अंतरराष्‍ट्रीय व्‍यापार और वित्‍त। CSAT, 2014 में पेपर 1 का सर्वाधिक सरल भाग अर्थशास्‍त्र था। NCERT की 12वीं की समष्टि अर्थशास्‍त्र (macro economics) पुस्‍तक अधिकतर प्रश्‍नों का उत्‍तर देने के लिए पर्याप्‍त थी। तथापि, अभ्‍यर्थियों को अर्थशास्‍त्र के अध्‍ययन के लिए एक ही पुस्‍तक तक सीमित रहने की सलाह नहीं दी जाती क्‍योंकि मुख्‍य परीक्षा के अनेक प्रश्‍नों के लिए अर्थशास्‍त्र के व्‍यापक अध्‍ययन की आवश्‍यकता होती है। अनेक अभ्‍यर्थी अर्थशास्‍त्र का इतना सरल स्‍तर देखकर निराश भी हो गए थे!

सम-सामयिकी: कुछ अभ्‍यर्थियों के लिए ये प्रश्‍न आश्‍चर्यदायक थे। कई अभ्‍यर्थी इन प्रश्‍नों की तुलना SSC के साझा स्‍नातक स्‍तर के पेपर में पूछे गए प्रश्‍नों से करते हैं। तथापि, सम-सामयिकी के केवल 9 प्रश्‍न दिए जाने से इसकी तुलना करना न्‍यायोचित नहीं। ये प्रश्‍न हाल में खबरों में रहे स्‍थानों/देशों से संबंधित थे जो गंभीर अभ्‍यर्थियों की नजरों से नहीं चूकने चाहिए। इसके अलावा, जिन्‍होंने आर्थिक सर्वेक्षण में स्‍कीमों के बारे में पढ़ा होगा (बॉक्‍स में उल्लिखित) उन्‍हें स्‍कीमों से जुड़े प्रश्‍नों को हल करने में कोई कठिनाई नहीं आई होगी। प्रमुख फ्लैगशिप स्‍कीमों के संबंध में प्रत्‍येक स्‍कीम की तीन चीज़ों की जानकारी होनी चाहिए – केन्‍द्र एवं राज्‍य का वित्‍तपोषण अनुपात, नोडल मंत्रालय/एजेंसी और लक्षित लोग। कुल मिलाकर यदि अभ्‍यर्थी ने नौ में से छह प्रश्‍नों के उत्‍तर सही नहीं दिए तो लगता है कि समाचार-पत्रों को पढ़ने संबंधी उसकी कोई समस्‍या रही होगी। उसे इस पुस्‍तक के समाचार-पत्र, पत्रिकाएं और वेबसाइट की भूमिका नामक अध्‍याय का अध्‍ययन अवश्‍य करना चाहिए। ध्‍यान दें कि इन प्रश्‍नों का उत्‍तर देने के लिए कोचिंग का कोई करंट अफेयर्स पैकेज लेने की जरुरत नहीं है। ताजा घटनाक्रम से संबंधित वाजीराम के पैकेज में गैर-जरुरी तथ्‍यों को पढ़ने से अनावश्‍यक भार बढ़ जाएगा।

  • प्रारंभिक परीक्षा, 2015 के लिए समेकित रणनीति: 

 उपर्युक्‍त सरोकारों पर विचार करके मैं आपके समक्ष प्रारंभिक परीक्षा, 2015 के लिए एक संयुक्‍त रणनीति प्रस्‍तुत कर रहा हूं, बशर्ते GS के पेपर 2 के एक विशेष खण्‍ड को छोड़कर परीक्षा का पैटर्न वही रहे अथवा अधिक न बदले। यह मानते हुए कि अभ्यर्थी 15 सितम्‍बर, 2014 तक पढ़ाई करने के लिए व्‍यवस्थित हो जाएगा और अगस्‍त 2015 में CSAT 2015 आयोजन होगा, अभ्‍यर्थी के लिए कम से कम 10 महीने की समय-सारणी दी गई है और प्रारंभिक परीक्षा 2015 उत्‍तीर्ण करने के लिए निम्‍न तरीके से इसका उपयोग रचनात्‍मक ढ़ंग से किया जा सकता है:

वर्ष माह                     महत्‍वपूर्ण                   क्‍या करना है
                             तारीखें     

 

 2014 सितम्‍बर  पहला सप्‍ताह   मस्तिष्‍क में सिविल सेवा का विचार अवश्‍य बैठ जाना चाहिए।

1. उस विचार का विश्‍लेषण करना, सिविल सेवा में जाने के कारणों पर आत्‍मचिंतन करना। ऐसे लोगों से बात करना जिनका चयन हो चुका हो और जो तैयारी कर रहे हों। उनसे सिविल सेवा के लिए पढ़ाई शुरु करने का कारण पूछें। दीर्घकालीन विज़न तैयार करने की कोशिश करें– सिविल सेवा से आपको क्‍या हासिल होगा? ऐसा सिविल सेवा परीक्षा द्वारा भरे जाने वाले प्रत्‍येक पद की जॉब प्रोफाइल के बारे में पता लगाना और ऐसी राय बनाने की कोशिश करना कि कौन सी सेवा आपकी आवश्‍यकताओं और अपेक्षाओं को पूरा करती है। याद रखें कि आपकी इंटरव्‍यू की तैयारी शुरू हो चुकी है। (पढ़ें: सिविल सेवा से जुड़ने का निर्णय - अध्‍याय 1)

2. यदि आपका निर्णय GS की कोचिंग लेने का है तो ऐसा  कोचिंग संस्‍थान चुनें जिसका समय आपकी आवश्‍यकताओं के अनुरुप हो। आदर्शत: यह दिन में 3 घंटे और सप्‍ताह में 4 दिन से अधिक नहीं होना चाहिए। (पढ़ें: अच्‍छे कोचिंग संस्‍थान का चयन कैसे करें - अध्‍याय 2)  

3. जल्‍दबाजी में और एकाएक अध्‍ययन शुरू न करें। धैर्य रखें। कम बोलें और ज्‍यादा सुनें।

                                    4. वैकल्पिक विषयों को चुनने में जल्‍दबाजी न करें।

5. जब भी आपके पास समय हो, समाचार-पत्र पढ़ना शुरू कर दें और इसे अपने अध्‍ययन के भाग के रूप में नहीं बल्कि इसे मनोरंजन के साधन के रूप में पढ़ें। यदि आप कुछ समाचारों के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे तो हतोत्‍साहित होने की आवश्‍यकता नहीं। इन्‍हें न पढ़ें और आगे बढ़ जाएं। ऐसा 15 दिनों तक करें और समाचारपत्रों के खण्‍डों से अवगत हो जाएं।

15-30 तारीख                  1. यदि आपका सोचना GS की कोचिंग लेने का है तो सितम्‍बर के अंत तक इसका निर्णय कर लें।

2. यदि आपका निर्णय कोचिंग न लेने का है तो सितम्‍बर के बाद इससे जुड़ने से बचें।

3. राज्‍य-व्‍यवस्‍था, अर्थशास्‍त्र, सामाजिक, पर्यावरण/विज्ञान और प्रौद्योगिकी और अंतरराष्‍ट्रीय संबंधों के लिए 5 छोटी-छोटी डायरियां तैयार करें। संगत समाचारों को अलग-अलग संबंधित डायरी में लिखें।  (पढ़ें: समाचार पत्र पढ़ने की कला - अध्‍याय 3)

 

 2014 अक्‍तूबर              1. आप कोचिंग से जुड़ें अथवा न जुड़ें, आपको अक्‍तूबर के महीने में GS के कम से कम दो पेपर                                             अवश्‍य पढ़ लेने चाहिएं। कम से कम आधारभूत पाठ्य सामग्री अवश्‍य पढ़ लेनी चाहिए। (ऊपर पढ़ें:                                        आधारभूत पाठ्य सामग्री का विषयवार विश्‍लेषण)

                                     2. शुरुआत करने के लिए दो विषयों का सबसे अच्‍छा मेल होगा– (राज्‍य-व्‍यवस्‍था+ अर्थशास्‍त्र) और                                               (इतिहास+ भूगोल)। शुरुआत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी पढ़ने से बचें।

3. अक्‍तूबर के पूरे महीने में वैकल्पिक विषयों के बारे में सोचना शुरु कर दें। वैकल्पिक विषयों की कोचिंग लेनी है अथवा नहीं और यदि लेनी है तो ऐसा कौन सा कोचिंग संस्‍थान है जो GS की कक्षाओं (यदि कोई हो) के जारी रहने पर तालमेल बैठा सकता है। अक्‍तूबर के अंत तक इसे तथा अन्‍य सभी मुद्दों को सुलझा लेना चाहिए। (अधिक जानकारी के लिए पढ़ें: वैकल्पिक विषयों के चयन के संबंध में - अध्‍याय 2)

 

2014 नवम्‍बर पहला सप्‍ताह      1. वैकल्पिक विषय के साथ-साथ, कोचिंग, यदि ली जानी हो, उस पर अंतिम निर्णय ले लेना चाहिए  

2014नवम्‍बर                    2. अब तक GS के दो विषय अवश्‍य पढ़ लिए जाने चाहिए।

शेष माह के दौरान                 1. इस समय तीन कार्य चल रहे होते हैं; पहला, चुना गया नया वैकल्पिक विषय अध्ययन में शामिल                                               हो जाता है। इस पर समय का ज्‍यादा हिस्‍सा लगाना पड़ेगा।

2. दूसरा, वैकल्पिक विषय के साथ GS के केवल एक ही विषय का प्रबंधन किया जा सकता है। GS     का कोई एक विषय चुनें, प्राथमिकता उसे दें जो कोचिंग में चल रहा हो।  

3. तीसरा, इस समय तक आपको समाचार-पत्र पढ़ने की स्‍मार्ट तकनीक से अवगत हो जाना चाहिए।     इस तकनीक से प्रतिदिन कम से कम एक घंटा बचाने में मदद मिलेगी जो अतिरिक्‍त वैकल्पिक       विषय को समायोजित करने में लाभदायक होगा।

4. वैकल्पिक विषय हटाने से संबंधित कोई विवाद चलने पर आप उससे दूर रहें। इस भ्रम के होने        की संभावना काफी अधिक है क्‍योंकि UPSC द्वारा सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा 2014 में किए      बदलाव पेपर के ढांचे को स्थिर नहीं करते हैं, और सिविल सेवा परीक्षा 2015 में और बदलाव हो      सकते हैं। वर्ष 2015 में होने वाला यह संभावित बदलाव मुख्‍य परीक्षा में भी हो सकता है और इस     प्रकार अधिसूचना आने तक भ्रम की स्थिति बनी रह सकती है।

 

2014दिसम्‍बर                   1. वर्ष के अंत तक अभ्‍यर्थी को GS के 3 विषय पढ़ लेने चाहिए, वैकल्पिक विषयों के क्षेत्र में अच्‍छी                                           पकड़ बना लेनी चाहिए और समाचार-पत्र पढ़ने का समय एक घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए। 

2015 जन/फर CSE, सिविल          1.  अधिसूचना के आने तक अभ्‍यर्थी GS के शेष 3 विषयों को पूरा कर लें
           /मार्च    2015            
          /अप्रैल   की               
        /मई2015 अधिसूचना        

      न्‍यूनतम  अवधि 5 माह            2. अभ्‍यर्थी को  वैकल्पिक विषयों का आधा कोर्स पूरा कर लेना चाहिए।
                      

          3. जनवरी, 2015 से मासिक पत्रिका ‘योजना’ का निरंतर अध्‍ययन जारी रखना।

     4. इस अवधि के दौरान, सिलसिलेवार  नया समाचार-पत्र पढ़ना शुरू कर देना चाहिए। उदाहरण के लिए, अभ्‍यर्थी एक दिन द हिंदू पढ़ सकता है, अगले दिन दी इंडियन एक्‍सप्रेस और तीसरे दिन फिर द हिंदू। यह रणनीति हिंदी छात्रों के लिए भी लागू होती है जो अदल-बदल कर हिंदी के समाचार-पत्र पढ़ सकते हैं। इससे विभिन्‍न विषयों की अलग-अलग डायरियों में विभिन्‍न प्रकार के विचार शामिल किए जा सकते हैं।

5. मई के महीने में अभ्‍यर्थी को यह निर्णय अवश्‍य कर लेना चाहिए कि उसे CSAT की आवश्‍यकता है अथवा नहीं। यदि हां, तो टेस्‍ट सीरीज के लिए संगत पेपर (सिविल सेवा के पैटर्न और कठिनाई स्‍तर के अनुसार) वाले कोचिंग संस्‍थान को चुना जाना चाहिए।

 2015जून      पहला सप्‍ताह         1. GS और वैकल्पिक विषयों के लिए कोचिंग कक्षाएं बंद कर देनी चाहिए, भले ही वहां कोर्स शेष                                              बचा हो अथवा नहीं। अब कोचिंग का समय नहीं है बल्कि अब स्‍व-अध्‍ययन का समय है।

                                        2. वैकल्पिक विषयों का अध्‍ययन पूरी तरह बंद कर देना चाहिए

3. अब तक यह निर्णय अवश्‍य ले लिया जाना चाहिए कि CSAT के लिए किसी कोचिंग संस्‍थान की टेस्‍ट सीरीज की आवश्‍यकता है अथवा नहीं।

4. CSAT का पहला पेपर, चाहे आप इसे किसी कोचिंग में दें अथवा अपने घर पर, बिना किसी तैयार के दें। यह अपनी कमजोरियों – महत्‍वपूर्ण क्षेत्र, जिन पर अभ्‍यर्थी को पूरे कोर्स की अपेक्षा अधिक काम करना चाहिए, का पता लगाने के लिए अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण है।

5. जून के पहले सप्‍ताह से समाचार-पत्र पढ़ने बंद कर देने चाहिए और डायरियों में विश्‍लेषण अथवा तथ्‍य लिखना भी बंद कर देना चाहिए।    

2015 जून     दूसरा/तीसरा/        1.   समाचार-पत्रों की मदद से GS के पेपर 2 के कॉम्प्रिहेशन में  सुधार करने पर ध्‍यान केन्द्रित
चौथा सप्‍ताह                                करें। समाचार-पत्र के किसी एक लेख का  सारांश 6 से 8 मिनट में लिखें, यह सारांश मूल लेख                                                  का लगभग एक-तिहाई होना चाहिए। यह अभ्‍यास कम से कम 20 दिन तक जारी रख

2.  जून के महीने के अंतिम तीन सप्‍ताह के भीतर GS के कम से कम 3 विषयों को अवश्‍य दोहरा लेना चाहिए।

3. अपने प्रदर्शन का पता लगाने के लिए प्रत्‍येक सप्‍ताह CSAT का एक पूरा पेपर अवश्‍य देना चाहिए। पेपर 1 और पेपर 2 के संबंध में कमजोर क्षेत्रों की एक सूची अवश्‍य तैयार की जानी चाहिए।

4. यदि CSAT पेपर आपने अपने कमरे/घर के सुविधाजनक माहौल में दिया है तो समयसीमा को 10 मिनट घटा दिया जाना चाहिए, अर्थात् अधिकतम समय 1 घंटा और 50 मिनट होना चाहिए।

2015जुलाई                                   1. जुलाई का महीना GS के शेष 3 विषयों को दोहराने के लिए समर्पित किया जाना चाहिए।

                                                 2. ऐसा सप्‍ताह में कम से कम CSAT का एक पेपर देना जारी रखते हुए किया जा सकता है।

2015अगस्‍त  क्रैश प्री-2015       1.  प्रारंभिक परीक्षा 2015 से पहले, इस महीने का शेष भाग अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण है।

 

      2. इस लगभग आधे महीने को उन कमजोरियों को दूर करने के लिए इस्‍तेमाल किया जाना चाहिए, जो पूर्व के कई CSAT पेपर देते समय बनाई गई सूची में शामिल हैं।

     3. CSAT पेपरों की आवृत्ति को बढ़ाकर सप्‍ताह में दो कर देना चाहिए। महीने के इस भाग तक स्‍कोर लगभग 230 (100 पेपर 1 + 130 पेपर 2) के आसपास स्थिर करें। क्‍योंकि कोचिंग संस्‍थानों के पेपर UPSC के वास्‍तविक CSAT से अधिक कठिन होते हैं, आमतौर पर कोचिंग टेस्‍ट सीरीज अथवा घर पर दिए गए टेस्‍ट की अपेक्षा परीक्षा में स्‍कोर बढ़ जाता है।

      4. पेपरों की समय-सारणी इस प्रकार निर्धारित की जानी चाहिए कि कोई अभ्‍यर्थी प्रारंभिक परीक्षा से 4 दिन पहले कोई पेपर न दे।

2015अगस्‍त     प्री-2015             1.   परीक्षा के बाद, अभ्‍यर्थी को अपने प्रदर्शन को लेकर आशंकित नहीं होना चाहिए। इसके                                                        अलावा, कोचिंग संस्‍थानों द्वारा जारी किए गए उत्‍तरों से मिलान करने के लिए आलस्‍य अथवा                                                    थकान आड़े नहीं आनी चाहिए। अपने प्रदर्शन को जानने के लिए, चाहे यह कैसा भी हो, और                                                और इसका  मूल्‍यांकन अगले कदम के लिए योजना बनाने हेतु अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण है। कोचिंग                                                 संस्‍थान का स्‍कोर और वास्‍तविक स्‍कोर में 5 प्रतिशत से अधिक अंतर नहीं आता है।

भ्रांतियां और FAQ (बारंबार पूछे जाने वाले प्रश्‍न)

 

A) इंजीनियरिंग के छात्रों को आर्टस के छात्रों के अपेक्षा लाभ होता है। 

     मैंने आमतौर पर देखा है कि आर्टस संकाय के छात्र निरुत्‍साहित भावना से मेरे पास तैयारी के लिए मदद मांगने आते हैं, विशेषकर CSAT संबंधी वर्तमान विवाद के दौरान। मेरा अनुमान है कि इंजीनियरिंग के छात्रों की अपेक्षा उनका प्रतिकूल  स्थिति में होने का तर्क आगे चलकर भी उनके लिए नुकसानदायक  बनता है। मानविकी के इन छात्रों को स्‍वयं को किसी अन्‍य इंजीनियरिंग और प्रबंधन के छात्र से कम नहीं आंकना चाहिए। ‘GS के पेपर 1 के विषयवार-विश्‍लेषण’ पर एक निगाह डालें। आप पाएंगे कि GS में ऐसे भी विषय है जिनमें 10वीं कक्षा से ऊपर की विशेषज्ञता की आवश्‍यकता होती है, जैसे प्रारंभिक परीक्षा के लिए अर्थशास्‍त्र और भूगोल। इसके अलावा, मुख्‍य परीक्षा के संदर्भ में राजनीति और इतिहास के लिए विस्‍तृत विश्‍लेषण की आवश्‍यकता होगी। इसके विपरीत, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के किसी भी मामले में 11वी और 12वीं के स्‍तर के विश्‍लेषण की और गणितीय में 10वीं के स्‍तर तक के विश्‍लेषण की भी आवश्‍यकता नहीं होगी।

      इस प्रकार, जहां तक GS की बात है, आर्टस अथवा मानविकी के छात्र को निडर होकर कार्य करना चाहिए। GS के पेपर में उनकी सापेक्ष लाभ की स्थिति की क्षतिपूर्ति CSAT के पेपर 2 में मौजूद अलाभ की स्थिति से हो जाएगी।   

B) प्रारंभिक परीक्षा पास करने के लिए आपको समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और इंटरनेट से काफी अधिक सम-सामयिकी पढ़नी होती है।  

     किसी भी प्‍लेटफॉर्म पर उपलब्‍ध पिछले चार वर्षों के पेपर देखें। इन्‍हें सरसरी तौर पर पढ़ने से कोई भी व्‍यक्ति बता सकता है कि आमतौर पर सम-सामयिकी से जुड़े तथ्‍य नहीं पूछे जाते। UPSC अभ्‍यर्थियों की याददाश्‍त पर जोर डालने से बचती रही है। ज्‍यादा से ज्‍यादा नवीनतम समाचारों, विशेषकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी और पर्यावरण के पीछे की अवधारणाओं के बारे में पूछा जा सकता है।

इस प्रकार, जब कोई अभ्‍यर्थी समाचार-पत्र विश्‍लेषण से अलग-अलग तथ्‍य तैयार करे, तो उनकी अं‍तर्निहित अवधारणाओं पर अधिक ध्‍यान दिया जाना चाहिए। असल में, यह आदत प्रारंभिक चरण की अपेक्षा मुख्‍य परीक्षा में अधिक सहायक होगी।

C) टेस्‍ट सीरीज से जुड़ना अनिवार्य है। 

     जो अभ्‍यर्थी अपने घर में ही परीक्षा जैसा माहौल तैयार कर पेपर को समय-बद्ध तरीके से पूरा कर सकता है और पेपर देते समय ईमानदारी और सत्‍यनिष्‍ठा को बनाए रख सकता है, उसे कोचिंग संस्‍थान में टेस्‍ट सीरीज से जुड़ने की जरुरत नहीं। आप अलग-अलग कोचिंग संस्‍थानों के मॉक पेपर चुन सकते हैं ताकि अलग-अलग कठिनाई स्‍तर के विभिन्‍न प्रश्‍नों को हल किया जा सके। तथापि, परीक्षा जैसी स्थिति के लिए किसी कोचिंग संस्‍थान की टेस्‍ट सीरीज से जुड़ा जा सकता है जिनके प्रश्‍नों का पैटर्न वास्‍तविक परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्‍नों से काफी अधिक मिलता-जुलता हो। इसके लिए, अभ्‍यर्थी किसी चयनित जानकार उम्‍मीदवार से और उनके शिक्षकों से सलाह ले सकते हैं जो बिना किसी भेदभाव के सलाह देंगे।

D) गत वर्ष प्रारंभिक परीक्षा मैंने सफलतापूर्वक पास की थी लेकिन मुख्‍य परीक्षा पास नहीं हो सकी। इस वर्ष मुख्‍य परीक्षा पर ध्‍यान केन्द्रित करना बेहतर रहेगा क्‍योंकि प्रारंभिक परीक्षा पास करना मेरे लिए सरल होगा। 

     यह सच है कि हमें प्रत्‍येक चीज को मुख्‍य परीक्षा को ध्‍यान में रखते हुए पढ़ना चाहिए। ऊपर दी गई ‘प्रारंभिक परीक्षा 2015 के लिए समेकित रणनीति’ में इसे अच्‍छी तरह समझाया गया है कि तैयारी के पहले नौ या दस महीनों के दौरान मुख्‍य परीक्षा के लिए अच्‍छी अवधारणा तैयार करने की मजबूत नींव रखी जानी चाहिए। आपको यहां एहसास होगा कि अध्‍ययन की दिशा मुख्‍य परीक्षा की ओर उन्‍मुख होती है। केवल अंतिम दो महीनों के दौरान प्रारंभिक परीक्षा के वस्‍तुनिष्‍ठ प्रश्‍नों को हल करने की अपनी विशिष्‍ट आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए जोरदार प्रयास करना होता है।

     तथापि, यह तर्क कि जिस अभ्‍यर्थी ने एक बार प्रारंभिक परीक्षा पास कर ली है वह उस प्रकार के पैटर्न की परीक्षा में हर बार सफल हो जाएगा, पूरी तरह भ्रामक और यहां तक कि‍ खतरनाक है। मस्तिष्‍क में इस प्रकार के विचार लाना, स्‍वयं को छलने का जाल बिछाना है।

     प्रारंभिक परीक्षा, 2013 से पहले मेरे एक घनिष्ठ मित्र ने कहा, “आप इस क्षेत्र में नए हैं। प्रारंभिक परीक्षा की अवहेलना मत करो। मैं जानता हूं कि आप मुख्‍य परीक्षा को ध्‍यान में रखते हुए तैयारी कर रहे हैं लेकिन परीक्षा के इस पहले चरण की अवहेलना मत करो। इसलिए कोई टेस्‍ट सीरीज ज्‍वाइन कर लो या अपने घर पर ही कुछ पेपर दो।” मैंने इस नेक सलाह का पालन किया और अपने घर पर CSAT के पेपर 1 और 2 को समयबद्ध तरीके से हल करना शुरू कर दिया। मैं इस सलाह के लिए उनका ऋणी हूं, लेकिन मुझे खेद है कि उन्‍होंने जो सलाह मुझे दी, स्‍वयं उसका पालन नहीं किया और वे मात्र 10 अंकों से प्रारंभिक परीक्षा पास करने से रह गए। उन्‍होंने प्रारंभिक परीक्षा, 2013 को हल्‍के में लिया या 2013 की प्रारंभिक परीक्षा पास करने की वजह से वे लापरवाह हो गए थे।

     किसी भी अभ्‍यर्थी को प्रारंभिक परीक्षा की प्रतियोगिता को हल्‍के में नहीं लेना चाहिए। मैं यहां एक बार फिर से दोहराना चाहूंगा कि मैं प्रतिस्‍पर्धात्‍मक रूप से प्रारंभिक परीक्षा को मुख्‍य परीक्षा की अपेक्षा अधिक कठिन मानता हूं और ऐसा सफल उम्‍मीदवारों के अनुपात की वजह से है। अभ्‍यर्थी अंतिम दो महीनों की अवधि‍ को सिकोड़ कर एक महीने की कर सकता है, लेकिन इससे कम नहीं करना चाहिए।

E)  क्‍या किसी PSU में, सरकारी (केन्‍द्र अथवा राज्‍य), बैंक अथवा प्राइवेट सेक्‍टर में काम करते हुए भी प्रारंभिक परीक्षा को पास किया जा सकता है? 

     यह प्रश्‍न इस प्रकार किया जा सकता है कि क्‍या कोई अभ्‍यर्थी बिना कोचिंग के और कोई अन्‍य कार्य को करते हुए भी प्रारंभिक परीक्षा को पास कर सकता है? नि:संदेह, यह लक्ष्‍य हासिल किया जा सकता है। इसके लिए अनुशासन और समर्पण की आवश्‍यकता होती है। यदि कोई अभ्‍यर्थी उपर्युक्‍त चार्ट/समय-सारणी का पालन करता है, तो कोचिंग के बिना भी अच्‍छा परिणाम पा सकता है। मैं व्‍यक्तिगत रूप से महसूस करता हूं कि कोई अभ्‍यर्थी एक साथ दो कार्य कर सकता है, हालांकि उसके कार्य करने का समय बढ़ जाएगा। इसके अलावा, अंतिम दो महीने बेहद महत्‍वपूर्ण होंगे और उस दौरान अभ्‍यर्थी को छुट्टी लेनी होगी। यदि छुट्टी लेना संभव न हो तो लंबे समय के लक्ष्‍यों के लिए अपनी वर्तमान नौकरी छोड़ देनी चाहिए।

            आमतौर पर, यदि कार्यभार कम हो तो केवल सरकारी क्षेत्र (केन्‍द्र अथवा राज्‍य) में ही इस परीक्षा की तैयारी के लिए अनुकूल माहौल मिल सकता है। आज के परिदृश्‍य में बैंकों, PSUs और प्राइवेट सेक्‍टर की नौकरी इतनी बोझिल है कि अभ्‍यर्थी की पूरी ऊर्जा ही निचोड़ लेती है और उसे किसी अन्‍य ठोस कार्य के योग्‍य नहीं छोड़ती।  

 

F)  प्रारंभिक परीक्षा में बढ़ती हुए कट ऑफ अंकों पर टिप्‍पणी

 

 वर्ष            सामान्‍य       ओबीसी         अ.जा.     अ.ज.जा.         चरण1     चरण2     चरण3

 

 2012             209             190              185            181         160       164     111

 2013             241             222              207            201         199      184      163

 %बढ़ोतरी      15.31            16.84           11.89          11.05       24.38   12.19   46.85

 

हर वर्ग के अभ्यर्थियों को पेपर 1 में न्‍यूनतम 30 और पेपर 2 में न्‍यूनतम 70 अंक अवश्‍य अर्जित करने होते हैं। सभी वर्गों के लिए कट ऑफ में हुई भारी बढ़ोतरी दो वजहों से संभव है, पहली; वर्ष 2013 की प्रारंभिक परीक्षा 2012 की परीक्षा की तुलना में सरल थी और दूसरा; उम्‍मीदवारों की संख्‍या में बढ़ोतरी होने और पैटर्न की पूर्वानुमेयता बढ़ने से प्रतिस्‍पर्धा में बढ़ोतरी हो रही है।

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Additional FAQs on पाठ 6 - प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी - UPSC

1. प्रारंभिक परीक्षा क्या है?
उत्तर: प्रारंभिक परीक्षा यूपीएससी (UPSC) की प्रवेश परीक्षा है जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय विदेश सेवा (IFS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और अन्य संघ सामान्य सेवाओं में सीधी भर्ती के लिए आयोजित की जाती है। यह परीक्षा दो चरणों में होती है, पहला चरण है प्रारंभिक परीक्षा और दूसरा चरण है मुख्य परीक्षा। प्रारंभिक परीक्षा में वाणिज्यिक ज्ञान, सामान्य ज्ञान, और मौखिक और लिखित कौशल का मूल्यांकन किया जाता है।
2. प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी के लिए कौन-कौन सी बुक्स अच्छी हैं?
उत्तर: यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी के लिए कुछ अच्छी पुस्तकें हैं जैसे "भारतीय राजव्यवस्था" द्वारा महेश बरनवाल, "सामान्य अध्ययन" द्वारा टाटा मग्राव हिंदी संस्करण, "लक्ष्य यूपीएससी (सामान्य अध्ययन)" द्वारा अजय चौधरी आदि। यह पुस्तकें परीक्षा की सिलेबस के अनुसार विषयों को समझने में मदद करती हैं और प्रैक्टिस सेट्स भी प्रदान करती हैं।
3. प्रारंभिक परीक्षा के लिए समय व्यवस्थापन कैसे करें?
उत्तर: प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी के लिए समय व्यवस्थापन करना महत्वपूर्ण है। पहले, एक अच्छी तैयारी कार्यक्रम बनाएं और उसे अपनी दैनिक जीवनशैली में शामिल करें। दैनिक अवधि के लिए निर्धारित समय को पूरा करें और समय सांझा करने के लिए अनुकूलता और समर्थन प्राप्त करें। समय के अनुसार अध्ययन करें और निरंतर मौखिक और लिखित प्रैक्टिस करें। समय सीमा के अनुसार प्रश्नों का मूल्यांकन करने के लिए मॉक टेस्ट सीरीज भी उपयोगी हो सकती है।
4. प्रारंभिक परीक्षा के दौरान नेगेटिव मार्किंग कैसे रोकें?
उत्तर: प्रारंभिक परीक्षा में नेगेटिव मार्किंग को रोकने के लिए सतर्क रहें और अच्छी तैयारी करें। प्रश्नों को ध्यान से पढ़ें और सही उत्तर के लिए समय बिताएं। यदि आप किसी प्रश्न का उत्तर नहीं जानते हैं, तो उसे छोड़ दें और अन्य प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करें। नेगेटिव मार्किंग की संभावना होने पर अंतिम में ही उत्तर चुनें, क्योंकि यदि आप गलत उत्तर देते हैं तो आपको नकारात्मक अंक मिलेंगे।
5. प्रारंभिक परीक्षा के लिए सामान्य ज्ञान की तैयारी कैसे करें?
उत्तर: प्रारंभिक परीक्षा में सामान्य ज्ञान की तैयारी के लिए न्यूज़पेपर, मैगज़ीन, और इंटरनेट के माध्यम से अद्यतित जानकारी प्राप्त करें। दैनिक समाचार पत्र पढ़ें और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के बारे में जानें। इतिह
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