CSE, 2013 की मुख्य परीक्षा के पैटर्न में बड़ा बदलाव हुआ है। दो वैकल्पिक विषयों में से एक के स्थान पर GS के दो अतिरिक्त पेपर लागू किए गए हैं। इससे वैकल्पिक विषय की तुलना में GS का महत्व दोगुना बढ़ गया है। इसके पूर्व दो संयुक्त वैकल्पिक विषयों की तुलना में इसका महत्व आधा ही था। तीन घंटे में किए जाने वाले GS के पेपर में प्रश्नों की संख्या बढ़ाकर 25 कर दी गई और प्रत्येक प्रश्न के लिए 10 अंक रखे गए। इस कारण सोचने-विचारने हेतु समय कम हुआ तथा प्रश्नोत्तर करने में गति का महत्व बहुत बढ़ गया है। इसके पीछे उद्देश्य यह हो सकता है कि जब प्रतिभागी परीक्षा कक्ष में प्रश्नों के उत्तर देने की जल्दबाजी में हों, तो कोचिंग/प्रशिक्षण द्वारा सिखाई गई परिपाटी के स्थान पर, उनमें सहज उत्तर/प्रतिक्रिया को परखा जा सके। मुख्य परीक्षा में सात प्रश्न-पत्रों अर्थात एक निबंध, चार GS तथा एक वैकल्पिक विषय के दो पेपरों में से प्रत्येक में न्यूनतम 10% अंक अनिवार्यत: अर्जित करने पर ही अभ्यर्थी को मेरिट हेतु पात्र माना जाएगा।
CSE, 2013 की अधिसूचना में GS के चार पेपरों को स्पष्टत: सूचीबद्ध किया गया है। इसके साथ-साथ GS के पेपर– IV में नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और अभिरूचि (Ethics, Integrity and Aptitude) नाम से एक नया विषय शामिल किया गया है। GS के इस पेपर को शामिल किए जाने से UPSC द्वारा सिविल सेवकों के लिए व्यक्तिगत तथा पेशेवर नीतिशास्त्र के महत्व को दर्शाया गया है। ‘साक्षात्कार की तैयारी’ के अगले अध्याय में चर्चा की गई है कि लोक सेवक में अनिवार्यत: किस प्रकार के गुण होने चाहिए। CSE, 2013 में लागू किए गए अनेक परिवर्तन अरूण निगावेकर समिति द्वारा अगस्त, 2012 मे की गई सिफारिशों पर आधारित थीं , परंतु समिति की सभी सिफारिशों को स्वीकारा नहीं गया। सूचना अधिकर के अंतर्गत यह रिपोर्ट अब लोक अधिकार क्षेत्र में है।
समिति के समक्ष यह विचार-विमर्श हुआ कि इतने महत्वपूर्ण मुकाम पर प्रतियोगी आमतौर पर दो वैकल्पिक विषयों में अच्छे अंक अर्जित करके सिविल सेवाओं हेतु पात्रता प्राप्त कर लेते हैं, जिनका इन सेवाओं के लिए अधिक उपयोग नहीं होता। लोक सेवकों की नियुक्ति ऐसे पदों के लिए की जाती है, जहां विभिन्न प्रकार की स्थितियों से निपटने के लिए दक्षता एवं व्यावहारिक ज्ञान के साथ-साथ महत्वपूर्ण सम-सामयिक घटनाओं की व्यापक जानकारी अपेक्षित है। इन्हीं तथा अन्य संगत बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए, समिति ने एक वैकल्पिक विषय को हटाकर GS के पेपर को लागू करने का निर्णय लिया। उल्लेखनीय है कि सिविल सेवा आरंभिक परीक्षा, भारतीय वन सेवा परीक्षा-2013 हेतु स्क्रीनिंग परीक्षा के रूप में भी उपयोगी साबित हुई। इसका महत्वपूर्ण परोक्ष प्रभाव यह रहा कि वन सेवा में अंतिम कट ऑफ मेरिट में कमी आई।
हालांकि अनिवार्य भाषा खंड में अंग्रेजी के साथ-साथ संविधान की अष्टम अनुसूची में शामिल 22 भारतीय भाषाओं में से किसी दूसरी भाषा के चयन में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। उक्त अधिसूचना में पात्रता के न्यूनतम अंक दर्शाए गये हैं, जो भारतीय भाषाओं हेतु 30% तथा अंग्रेजी भाषा हेतु 25% हैं। साक्षात्कार परीक्षा हेतु पहले 300 अंक निर्धारित थे, जिन्हें वर्ष 2013 में घटाकर 275 अंक कर दिया गया, ताकि मेरिट हेतु कुल अर्जित अंक से साक्षात्कार के अधिभार प्रतिशत में कोई परिवर्तन न हो। दो महीनों के अनुमान के बाद तथा अधिसूचना जारी किए जाने से पूर्व ही इन परिवर्तनों के कारण एक बार पुन: बड़ा हंगामा खड़ा किया गया। प्रतिभागियों को संतुष्ट करने के लिए, प्रत्येक श्रेणी में, निर्धारित सीमा में दो प्रयास और बढ़ा दिए गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप अधिकतम आयु सीमा में दो वर्ष की वृद्धि की गई है।
वर्ष 2014 में मुख्य परीक्षा का पैटर्न भी वही रहेगा। यह विरोधाभास ही है कि एक ओर मुख्य परीक्षा में प्रमुख रूप से हुए बड़े बदलाव के कारण भारी हंगामा खड़ा किया गया, वहीं दूसरी ओर वर्ष 2014 में वस्तु–स्थिति ठीक इसके प्रतिकूल रही। विरोध मुख्य परीक्षा को लेकर नहीं, आरंभिक परीक्षा के लिए हुआ। CSE, 2014 की मुख्य परीक्षा में सफलता पाने के लिए आइए रणनीति बनाने की कोशिश करें। प्रिय अभ्यर्थियों, मैं आपको आश्वस्त कर दूं कि अंकों के कारण मुख्य परीक्षा, आरंभिक परीक्षा से प्रतिस्पर्धात्मक रूप से सरल है, क्योंकि आरंभिक परीक्षा में चयनित 14000 प्रतिभागियों में से विषयगत मुख्य परीक्षा के आधार पर साक्षात्कार में बैठने हेतु लगभग 3000 अभ्यर्थियों को चयनित किया जाएगा। ऐसी रणनीति बनाई जाए जिससे आपका अध्ययन संगठित हो सके। ऐसा करने से परीक्षा कक्ष की प्रकृति के अनुसार पूर्व निर्धारित तरीके से लिखित जानकारी आपको याद आ सकेगी। इससे मुख्य परीक्षा में शानदार सफलता पाने हेतु आपको नि:संदेह मदद मिल सकती है। ऐसे सभी अभ्यर्थियों के लिए, जो मुख्य परीक्षा को अभेद्य समझते हैं और केवल आरंभिक परीक्षा पास करके ही अटक जाते हैं, और जिनके लिए मुख्य परीक्षा उनके रास्ते में रोड़ा बनी होती है, और जिनका यह भीमानना रहा है कि उनके और सिविल सेवा के बीच कीबाधा मुख्य परीक्षा रही है, ऐसे सभी अभ्यर्थी पुस्तक के निम्न खंड से नि:संदेह लाभान्वित होंगे:
निबंध :
निबंध और कुछ नहीं, बल्कि GS का गहन चिंतन है। दक्षता एवं व्यावहारिक ज्ञान के दृष्टिकोण से किसी एक टॉपिक पर यह एक व्यापक एवं बहु-आयामी मूल्यांकन है, जो किसी सिविल सेवक में होना अति आवश्यक है, ताकि वह महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श कर सके। परीक्षा के दृष्टिकोण से, निबंध वह परीक्षा है, जहां आप अंकों में अंतर बना सकते हैं। निबंध में अर्जित अंकों का भारी अंतर होता है। कुछ कौशल हासिल कर लेने भर से आपको औसत या औसत से कुछ अधिक अंक मिल सकते हैं, लेकिन प्राप्तांक के शीर्ष पर पहुंचने के लिए गहरी रणनीति तथा अभ्यास की आवश्यकता होती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में निबंध अधिक महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि जहां तक GS की बात है, अभ्यर्थियों में ज्ञान का अंतर बहुत सूक्ष्म होता है, क्योंकि GS में अंको का अंतर बहुत कम होता है। कहने का आशय है कि यह निबंध ही है जो अन्य प्रतिभागियों की तुलना में आपको काफी आगे ले जा सकता है। इस प्रकार, अन्य सफल अभ्यर्थियों से काफी विचार-विमर्श के बाद तथा उनके द्वारा संभावित अर्जित अंक एवं वास्तविक अर्जित अंक को स्पष्ट रूप से साझा करने से, मैं निबंध हेतु निम्न प्रभावी रणनीति बना सका हूं:
a) अध्ययन क्षेत्र एवं टॉपिक में भेद करें
अभ्यर्थी को किसी क्षेत्र (एरिया) और उस क्षेत्र (एरिया) में आने वाले टॉपिक में अंतर करना आना चाहिए। उदाहरण के लिए सामाजिक मुदृदा एक ऐसा ही अध्ययन क्षेत्र है और नारी सशक्तिकरण, पारिवारिक मूल्य, जातिवाद आदि इसी अध्ययन क्षेत्र के अंतर्गत आ सकते हैं। दूसरा उदाहरण लेते हैं- पर्यावरण एक अध्ययन क्षेत्र है और इस अध्ययन क्षेत्र में वायु प्रदूषण, भू-विकृति, वनों की कटाई, तटीय क्षेत्रों का अपरदन आदि अध्ययन क्षेत्र आते हैं। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि अध्ययन क्षेत्र बड़ा व्यापक दायरा (डोमेन) है, जो अपने में अनेक विषयों को समाहित किए हुए है, जो उस व्यापक अध्ययन क्षेत्र के अंतर्गत हैं।
अब अभ्यर्थी को याद रखना है कि समाचार पत्र कैसे पढ़े जाने हैं। समाचार पढ़ना जोरदार कला है- समाचार को विभिन्न डायरियों में अलग-अलग शीर्षक जैसे-सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, पर्यावरणीय, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से दर्ज कर लें। ये आपके लिए व्यापक अध्ययन क्षेत्र के सिवा और कुछ नहीं हैं, जिसकी विषय-वस्तु संबंधित निबंध में शामिल की जा सकती है। इसका अर्थ यह हुआ कि अभ्यर्थी ने अपने GS हेतु जानकारी को एकत्र एवं पृथक करने में जो प्रयास किए, वे निबंध हेतु भी लाभदायक साबित होंगे।
प्रिय मित्रो, ध्यान रखें कि जो निबंध विचारार्थ टॉपिक के अनुरूप उपयुक्त सम-सामयिक उदाहरण के साथ होते हैं, परीक्षक पर शानदार प्रभाव डालते हैं। इससे अधिक अंक अर्जित होते हैं।
b) ऐसे अध्ययन क्षेत्रों की सूची बनाएं, जिनमें आप सशक्त हों:
निबंध के उद्देश्य से दार्शनिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विषयों के साथ-साथ पहले बताए गएसामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, IR, पर्यावरणीय तथा S&T को समेकित करने से अध्ययन क्षेत्रों की संख्या बढ़ जाती है। अभ्यर्थी किसी ऐसे क्षेत्र की पहचान करे, जिसमें उसे सहजता महसूस हो। कम से कम तीन ऐसे क्षेत्रों का चयन करें, जिसमें सहजता महसूस हो। सहज महसूस करने से मेरा आशय है कि उस क्षेत्र से जुड़ी हाल की घटनाओं से व़ो परिचित हो। चौथे क्षेत्र का चयन अनिवार्यत: बफर के रूप में किया जाना है, जो आकस्मिक स्थिति से निपटने में सक्षम हो।
विगत तीन वर्ष के निबंधों का विश्लेषण करें। आपको एहसास होगा कि निबंध के टॉपिक, दार्शनिक निबंध के अलावा कम से कम दो या अधिकतम तीन क्षेत्रों से जुड़े होते हैं। इस प्रकार, अभ्यर्थी अपने सहज क्षेत्र में से ऐसे तीन क्षेत्रों का चयन करे जिनमें निबंध को विस्तार देते हुए उस पर निष्कर्ष लिखने की जानकारी में सहज हों।
इसके अतिरिक्त, इन तीन अध्ययन क्षेत्रों में अनिवार्यत: या तो पर्यावरण अथवा विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी हो। इन दोनों अध्ययन क्षेत्रों की व्यापक प्रासंगिता है और इन्हें निबंध में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सामाजिक, आर्थिक तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सशक्त अध्ययन क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ सामंजस्य हैं, जिसमें बफर के रूप में राजनीतिक क्षेत्र होगा। आर्थिक, राजनीतिक तथा पर्यावरण एक दूसरा अच्छा सामंजस्य होगा, जिसमें आकस्मिक स्थिति से निपटने हेतु सामाजिक अध्ययन क्षेत्र बफर का काम करेगा। बफर क्षेत्र का आशय है कि जब तीन प्रमुख अध्ययन क्षेत्र में से एक भी प्रासंगिक न हो, तो बफर अध्ययन क्षेत्र का उपयोग किया जा सके।
तीन प्रमुख अध्ययन क्षेत्र और चौथा बफर क्षेत्र का चयन कर लेने के बाद, अभ्यर्थी सम-सामयिक घटनाक्रम और उन क्षेत्रों में उनके विश्लेषण से पूरी तरह से परिचित हो।
c) CSE 2013 का विश्लेषण
अब कोई भी अभ्यर्थी विगत वर्ष की परीक्षा में पूछे गए निबंध के प्रश्नों का आत्म-विश्लेषण करने की स्थिति में है। CSE मुख्य 2013 के निबंधों के विश्लेषण आपकी जानकारी के लिए नमूने के तौर पर किए गए हैं;
निबंध का टॉपिक | एरिया 1 | एरिया 2 | एरिया 3 | बफर |
जो परिवर्तन दूसरों में देखना चाहते हो, उन्हें स्वयं में करो- गांधीजी | दार्शनिक |
|
| ऐतिहासिक |
क्या औपनिवेशिक मानसिकता, भारत की सफलता में बाधक है? | सामाजिक | आर्थिक | पर्यावरणीय |
|
GDP के साथ- साथ GDH किसी देश की यथार्थ स्थिति निर्धारण हेतु सही सूचकांक होंगे | आर्थिक | सामाजिक | पर्यावरणीय |
|
राष्ट्र की वृद्धि एवं सुरक्षा हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी रामबाण हैं | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी | अर्थव्यवस्था | पर्यावरण | IR |
अध्ययन एरिया के महत्व का क्रम एरिया 1 से लेकर बफर एरिया तक घटता चला जाता है। निबंध का टॉपिक जिस एरिया के इर्द-गिर्द घूमता है, उस एरिया के महत्व को श्रेणीबद्ध कर लेने से परीक्षा के लिए चयन किए गए टॉपिक को लिखने में सहायता मिलेगी। अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे मुख्य परीक्षा के कम से कम तीन अन्य सेटों से उपरोक्त विश्लेषण का अभ्यास कर लें और इस एरिया की जानी-मानी फैकल्टी के साथ विचार-विमर्श कर लें।
a) निबंध का संयोजन
प्रश्न में लिखा होता है कि निबंध 2500 शब्दों से अधिक का न हो। इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं कि आपको 2500 शब्द तक यथासंभव लिखना है। ऐसा आखिर क्यों? पेपर3 घंटे का होता है और 3 घंटे की समयावधि में 2500 शब्द लिख पाना क्या बहुत मुश्किल काम है?
CSE की अधिसूचना में अभ्यर्थियों को बताया गया है कि ‘’विचार क्रमबद्ध और संक्षिप्त रूप में लिखें’’ विचारों को क्रमबद्ध करने में समय लगेगा और यदि अभ्यर्थी प्रश्नोत्तर बुकलेट पाते ही उत्तर लिखना आरंभ कर देंगें, तो वे अपने विचारों को क्रमबद्ध नहीं कर पाएंगें। अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे किसी निबंध की रूप-रेखा (ब्लू–प्रिंट) तैयार करने में कम से एक घंटा तथा अधिकतम डेढ़ घंटे का समय दें और शेष समय निबंध लिखने में लगाएं। इस प्रकार, निबंध लिखने का वास्तविक समय 3 घंटे से घटकर 2 घंटें (अधिकतम) अथवा 1.5 घंटे (न्यूनतम) रह जाएगा। अनेक ब्लॉग लिखने और पढ़ने के बाद मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि विभिन्न परिस्थितियों, विशेषकर जिनमें सोच-विचार की आवश्यकता होती है, व्यक्ति के लिखने की रफ्तार लगभग 18 शब्द प्रति मिनट हो सकती है। इस प्रकार डेढ़ घंटे में 1620 शब्द और 2 घंटे में 2160 शब्द लिखे जा सकते हैं। इस तरह मेरा मानना है कि दोनों प्रकार से औसत शब्दों की संख्या 1900 बैठती है, जो निबंध लिखने हेतु अनुकूलतम शब्द संख्या है।
ये 1900 या इसके आस-पास के शब्द किसी निबंध में तीन भागों में अभिव्यक्त किए जाएं- जैसे प्रस्तावना, विषय-वस्तु और निष्कर्ष। प्रस्तावना में आम-तौर पर 250 शब्द, जो दो या तीन पैराग्राफ में विभक्त हों, इससे निबंध के विषय का परीक्षक से तारतम्य होगा। यह कार्य निबंध के माध्यम से स्पष्टत: अभिव्यक्त मूलभूत अवधारणा को परिभाषित करते हुए किया जा सकता है। निष्कर्ष सामान्यतया 150 शब्दों का हो, जो निबंध के परिप्रेक्ष्य में अभ्यर्थी की भावी सोच और देश के प्रति उसके दृष्टिकोण (विजन) को प्रतिबिम्बित करे। इस संदर्भ में देश के समक्ष प्रत्येक मुद्दे, चुनौतियों अथवा समस्याओं पर योजना के प्रस्ताव का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करें। निबंध का की एप्रोच पूर्णतया नकरात्मक कभी भी नहीं होनी चाहिए, और न ही मैंने लेखकों को नास्तिवादी विचारधारा व्यक्त करते हुए देखा है। निष्कर्ष का पैराग्राफ अनिवार्यत: दो से अधिक न हो, लेकिन उसमें गजब का विजन और भविष्य की योजनाएं हों।
ऐसा क्यों? क्योंकि यदि कोई सिविल सेवक निराशावादी होगा, तो उसमें लोकसेवा का उत्साह स्वत: खत्म हो जाएगा। ऐसा भी नहीं कि व्यावहारिक परिस्थितयों में समस्याएं एवं चुनौतियां नहीं आएगीं, परंतु लोक सेवक में यह विशेषता होनी चाहिए कि वह देशवासियों की भलाई में इन चुनौतियों को स्वयं के लिए अवसर बना ले। यह दृष्टिकोण आपके निबंध में निश्चित रूप से परिलक्षित हो। आपकी व्यावहारिक समाधानकर्ता की यही विशेषता कानून के दायरे में है और साथ ही आपका विजन और आपकी दूरदृष्टि सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
b) निबंध की रूपरेखा (ब्लू-प्रिंट) तथा विषय-वस्तु :
लगभग 1500 शब्दों के निबंध की विषय-वस्तु का मुख्य विश्लेषण अभ्यर्थी द्वारा कम से कम एक घंटे में तैयार निबंध की रूप-रेखा पर आधारित होगा। इस रूप-रेखा को प्रभावी रूप से तैयार करने में निबंध के टॉपिक के डिवीजन चार्ट –अर्थात यह जिन एरिया से संबंधित है उसका उपयोग किया जाना है। जो विचार मस्तिष्क में आएं उन्हें संगत क्षेत्रों में लिख लिया जाए। CSE-2104 की अधिसूचना के अनुसार ‘’अभ्यर्थी से अपेक्षित है कि वे निबंध के विषय के यथासंभव आसपास बने रहें।‘’ ऐसा भी संभव है कि आपके मस्तिष्क में जो विचार आएं, वे विषय के बिल्कुल अनुरूप न हों, फिर भी उन्हें पहले लिख लें। विचारों को व्यवस्थित तथा पृथक करते समय उन्हें अलग कर लिया जाएगा। उन्हें शायद पहले लिंक अथवा व्यवस्थित न किया जा सके, फिर भी अव्यवस्थित रूप से ही सही, उन्हें लिख लें। संभव है कि सामान्य रूप से आपके मस्तिष्क में विचार-प्रवाह क्रमानुसार न हों, लेकिन वे अचानक भी आ सकते हैं। रूप-रेखा (ब्लू-प्रिंट) का यह सबसे महत्वपूर्ण तथा उठा-पटक वाला भाग है। कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि अभ्यर्थी के मस्तिष्क में कोई विचार आए ही नहीं। यहीं से आपके मन में दूसरे निबंध के लिए कोशिश करने की बात आ सकती है, लेकिन प्रिय अभ्यर्थियों, इस प्रवृत्ति में धोखा है और आपको इससे बचना होगा, क्योंकि जब आपने ऐसे निबंध का चयन किया है, जिसमें आप सहज हैं, तो आपके मस्तिष्क में विचार तो उसी एरिया से उठने तय हैं। इसलिए ऐसी परिस्थिति के लिए आवश्यक है कि आप शांत रहें और निबंध के अपने निर्णय में विश्वास रखें और उस पर अडिग रहें।
इस प्रक्रिया में सम-सामयिक तथ्य तथा समाचार पत्रों के विश्लेषण से आपको अनुपूरक बल मिलेगा, क्योंकि डायरियों में पृथक-पृथक ढंग से तैयार वे तथ्य आपके दिमाग में आएंगे, और उन्हें प्रासंगिक स्थल पर सूचीबद्ध करें, जिससे निबंध पूर्ण हो सके।
एक बार जब यह प्रक्रिया पूरी हो जाए, तो अव्यवस्थित विचारों को सुव्यवस्थित कऱें। इसके लिए कोई स्पष्ट नियम नहीं हो सकता कि अभ्यर्थी विचारों को प्रभावी बनाने तथा उन्हें सुव्यवस्थित करने में उनका प्रयोग कर सके, लेकिन यह केवल अभ्यास की बात है और इस कला में महारथ हासिल की जा सकती है। रूप-रेखा तैयार हो जाने पर, वाक्य की संरचना बनाते हुए और संयोजकों (कनेक्टरों) का प्रयोग करते हुए निबंध तो सिर्फ उसी का विस्तार मात्र रह जाता है।
भ्रांतियां और FAQ (बारंबार पूछे जाने वाले प्रश्न)
A) भाषा पर मेरी अच्छी पकड़ है, इसलिए मैं अच्छा निबंध लिख सकता हूं।
फ्रेशर में यह भावना व्यापक रुप से होती है, लेकिन इस बात में कोई सच्चाई नहीं है। CSE 2014 की अधिसूचना को सावधानीपूर्वक पढ़ें। उसमें लिखा है कि ‘’प्रभावपूर्ण एवं यथार्थ निबंध को श्रेय दिया जाएगा।‘’ यह कहीं नहीं लिखा ह कि निबंध में साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए अंक दिए जाएंगें। यह भी उल्लेखनीय है कि प्रभावी और यथार्थ भाषा सहज-सरल, स्पष्ट और संक्षिप्त होनी चाहिए। प्रिय अभ्यर्थियों, यद्यपि जब मैंने निबंध का अभ्यास आरंभ किया, तो मैं भी इसी भ्रम में था। कठिन भाषा-शैली, जटिल वाक्य से अंग्रेजी भाषा पर मेरी पकड़ कुछ हद तक परिलक्षित हो सकती है, फिर भी मुझे अपेक्षित उतने अच्छे अंक प्राप्त नहीं हुए क्योंकि विषय-वस्तु अपूर्ण और सतही थी। इसलिए विषय-वस्तु को सामग्री से भरपूर कर उसे सहज-सरल ढंग से प्रस्तुत करना अधिक महत्वपूर्ण है।
B) उद्धरण (quotation) से आरंभ करें।
इसके विपरीत, निबंध को उद्धरण (quotation) से आरंभ करने से बचें। इन्हें विषय-वस्तु या निष्कर्ष में प्रयोग करें और केवल जब वे आपको अक्षरश: याद हों। अपने उद्धरण कभी न बनाएं, उदाहरण के लिए-किसी ने कहा है, ‘’. . . . . .’’ या हो सकता है, किसी विद्धान ने एक बार कहा था, ‘’ . . .’’
C) दार्शनिक निबंध लिखने में सरल होते हैं।
यह एक अन्य भ्रम है। ऐसे विचार केवल उसी अभ्यर्थी के हो सकते हैं जो, अर्थशास्त्र, पर्यावरण आदि के GS के विविध पहलुओं के बारे में जानते ही न हों। दार्शनिक निबंध के प्रति आकर्षण बहुत आसन्न (तत्कालिक) होगा, क्योंकि ये तुरंत ही बिल्कुल सत्य प्रतीत होंगे। CSE (मुख्य), 2103 के दार्शनिक निबंधों पर एक नजर डालते हैं- ‘’जो परिवर्तन दूसरों में देखना चाहते हो, स्वयं में करो’’ - गांधीजी।
अपने मस्तिष्क में इसे दोहराएं और तनिक स्वयं विचार करें। आपको आभास होगा कि यह कितनी सच्ची बात है। यह निबंध विपरीत भी जा सकता है। यह कैसे हो सकता है कि पहले स्वयं में परिवर्तन लाए बिना, आप दूसरों में परिवर्तन लाने की अपेक्षा करें? यह भी संभव है कि आप लोगों को बदलना चाहें, तो अनुसरण करने हेतु आप उनके लिए उदाहरण प्रस्तुत करें और यह तभी संभव हो सकेगा, जब आप पहले स्वयं को बदलें।
निबंध का आशय पढ़कर अभ्यर्थी की आंखों में चमक आ सकती है, लेकिन यह आकर्षण है । उस पर 500 शब्द लिखें तब आपको लगेगा कि निबंध आपसे फिसल रहा है। ऐसे में नया विचार पैदा करना मुश्किल होगा और अंतत: विषय-वस्तु में भाषागत भिन्नता ही हो और एक ही बात दोहराकर निबंध खत्म कर दिया जाए। इसके अतिरिक्त दार्शनिक विचारों के लिए सम-सामयिक घटनाओं एवं विविधतापूर्ण उदाहरणों को प्रस्तुत कर पाना मुश्किल हो। इस प्रकार अभ्यर्थियों से यह विनम्र निवेदन है कि वे ऐसे निबंध से बचें तथा अध्ययन के अन्य क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करें।
D) केवल GS के ज्ञान से निबंध लिखा जा सकता है।
जैसा कि हमने पहले ही चर्चा की है कि निबंध कुछ और नहीं बल्कि GS का ही गहन चिंतन है, इसलिए इसे लिखने में GS के दौरान अर्जित ज्ञान के अलावा अभ्यर्थी को किसी नए एवं अतिरिक्त ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, यह कहना कि निबंध लिखने के लिए किसी अभ्यास की आवश्यकता नहीं है, पूर्णतया गलत है। इसलिए अभ्यर्थियों की सलाह दी जाती है कि वे कम से कम पांच निबंध का अभ्यास कर लें तथा अपने शिक्षक अथवा विशेषज्ञ से उसकी जांच करा लें।
उल्लेखनीय है कि जब से प्रश्नपत्र बुकलेट के साथ उत्तर का प्रावधान हुआ, निबंध लिखने की जगह कमोवेश सीमित हुई है, इसलिए प्रथमत: और निबंध लिखने के दौरान उसका अनुमान लगा लिया जाना होगा। अब वे दिन लद गए जब विस्तार से निबंध लिखे जाने हेतु अतिरिक्त उत्तर पुस्तिकाएं लगाई जाती थीं।
यहां पर मैं अपने एक मित्र द्वारा मुख्य परीक्षा 2013 में निबंध में की कई भारी भूल को रेखांकित करना चाहूंगा। इस तथ्य को दर-किनार करते हुए कि निबंध लिखने हेतु उनके पास सीमित स्थान है, वे लिखते गए और अंत में उन्हें एहसास हुआ कि निष्कर्ष लिखने हेतु उनके पास स्थान ही नहीं बचा। इस प्रकार उन्हें निबंध को अप्रत्याशित ढंग से समाप्त करना पड़ा। उन्हें 49 अंक मिले और परिणामस्वरूप साक्षात्कार सूची में उनका नाम नहीं था। इसलिए वर्तमान समय में सिविल सेवा परीक्षा में निर्धारित स्थान के अनुरूप ही अभ्यर्थी को 5 निबंध अवश्य लिखने चाहिए।
GS पेपर 1: भारतीय विरासत तथा संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल तथा समाज(सोसाइटी)
मुख्य परीक्षा का यह सबसे स्थाई तथा पूर्वानुमेय पेपर है और इसीलिए अच्छे अंक अर्जित करने की संभावना अत्यधिक होती है। हालांकि, अभ्यर्थी की ओर से भारत और विश्व दोनों के इतिहास और भूगोल पर अच्छी पकड़ बनाने के लिए काफी महत्वपूर्ण प्रयास किए जाने होंगे। कारण सरल है-पाठ्यक्रम की विषय-वस्तु अत्यधिक है।
यहां मैं आपको बताउंगा कि इतिहास और भूगोल में आरंभिक परीक्षा हेतु अध्ययन के समय जो कुछ ज्ञान आपने अर्जित किया है, उसे कैसे आगे बढ़ाया जाए। आरंभिक परीक्षा में पहले ही जो प्रयास किए गए हैं, उसके अतिरिक्त इस पेपर में अधिकतम अंक पाने में कम से कम कितना और प्रयास किया जाना होगा। 2013 के पेपर का विश्लेषण तथा उत्तर लिखने की तकनीक पर विचार किया गया है।
CSE (मेन्स), 2103 में GS पेपर 1 का विश्लेषण
विषय-सूची | CSE. (मेन्स) 2013 में प्रश्न और प्रतिशत में वेटेज | अतिरिक्त अध्ययन (आरंभिक परीक्षा के अतिरिक्त) |
प्राचीन एवं मध्यकालीन साहित्य और वास्तुकला के समस्त विधाओं के प्रमुख बिन्दु भारतीय संस्कृति में समाहित होंगे | संगम साहित्य, ‘ताण्डव’ नृत्य और चोला वास्तुकला . . . (8%) | NCERT की कक्षा XII की पुस्तक में ‘Themes in India History` भाग-। और ‘Themes in India History भाग-।। में केवल विजयनगर पर भक्ति सूफी परंपरा का अध्याय। `Themes in India History` भाग-।।। में केवल औपनिवेशिक नगर पढ़ें। इनका अध्ययन करने से एक नींव तैयार होगी, जिससे किसी कोचिंग संस्थान के नोट उपयोगी साबित होंगे, जिनमें साहित्य, कला, नृत्य, संगीत नाटक, चित्रकारी, मूर्तिकला, वास्तुकला तथा धर्म दर्शन आदि विषय शामिल हों। |
18वीं सदीं के लगभग मध्यकाल से लेकर वर्तमान तक आधुनिक भारत का इतिहास, महत्वपूर्ण घटनाएं, भारत की प्रमुख विभूतियां तथा मुद्दे शामिल हों।
| डलहौजी, आचार्य विनोवा भावे, विकास, ‘’जय जवान-जय किसान’’ नारे (स्लोगन) का महत्व . . .(12%) | NCERT की कक्षा VIII की पुस्तक, जिसका शीर्षक है ‘Our Pasts-।।।‘ भाग-। एवं भाग-।। दोनों। इसे पढ़ने के बाद बिपिन चन्द्र की ‘History of modern India’ से अग्रणी विचार-विमर्श का आधार तैयार होगा। इसी लेखक की पुस्तक ‘India`s struggle for Independence’ का अध्ययन न करें, क्योंकि इसके विवरण से मुख्य परीक्षा के प्रश्नों का उत्तर देना अपेक्षित नहीं है। |
स्वतंत्रता संघर्ष-इसके विभिन्न चरण तथा देश के कोने-कोने से महत्वपूर्ण योगदान | भारत में महिलाओं का, विदेशियों का योगदान (8%) |
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत देश के अंदर सुदृढ़ीकरण तथा पुनर्गठन
| मौलाना अबुल कलाम आजाद, ताशकंत समझौता 1966, बांगलादेश के उदय में भारत की भूमिका ...(12%) | NCERT की कक्षा XII की पुस्तक ‘Political Science-।।‘ |
विश्व का इतिहास, जिसमें शामिल होंगे- औद्योगिक क्रांति, विश्व युद्ध, राष्ट्रीय सीमाओं से वापसी (विथड्राल) औपनिवेशवाद, औपनिवेशवाद का समापन जैसी 18वीं सदी की घटनाएं तथा राजनीति, दर्शन-जैसे साम्यवाद, पूंजीवाद, समाजवाद इत्यादि के प्रकार तथा समाज पर उनका प्रभाव | जापान में औद्योगिक क्रांति, अफ्रीका का बंटवारा, अमेरिकी क्रांति, घोर/विकट आर्थिक मंदी. . . (16%) | NCERT की कक्षा XII की पुस्तक, जिसका शीर्षक है ‘’Themes in world history, खंड IV आधुनिकीकरण की ओर NCERT की कक्षा IX की पुस्तक जिसका शीर्षक है ‘Indian and contemporary world—।‘ तथा उसी कड़ी में आगे ‘Indian and contemporary world—।।‘ हालांकि उक्त अध्ययन के अतिरिक्त कुछ अच्छे कोचिंग संस्थान के संक्षिप्त एवं सारगर्भित नोट भी पढ़ें। |
भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएं, भारत में विविधता |
| NCERT की कक्षा XI की पुस्तक, जिसका शीर्षक है ‘Understanding society`, इससे प्रथम दो अध्याय ही पढें। इसके साथ-साथ NCERT की कक्षा XII की पाठ्य पुस्तक, जिसका शीर्षक है ‘Indian Society’ अध्याय 1,2,3 और 6 पढ़ें। |
महिलाओं की भूमिका तथा महिला संगठन, जनसंख्या एवं इससे जुड़ी समस्याएं, गरीबी एवं विकास के मुद्दे, नगरीकरण की समस्याएं तथा समाधान | तीव्र नगरीकारण की सामाजिक समस्याएं, महिला संगठनों में पुरूषों की भूमिका, नगरों में हीट आइलैंड . . . (10%) | NCERT की कक्षा XII की पाठ्य पुस्तक, जिसका शीर्षक है ‘Social change and development in India’ अध्याय 4 और 5, इसके अतिरिक्त कुछ अच्छे कोचिंग संस्थान के नोट का अध्ययन भी अपेक्षित होगा। |
भारतीय समाज पर वैश्वीकरण का प्रभाव | उम्रदराज लोगों पर इसका प्रभाव . . . (4%) | NCERT की कक्षा XII की पाठ्य पुस्तक, जिसका शीर्षक है ‘Social change and development in India’ अध्याय 6 , 7 और 8 |
सामाजिक सशक्तिकरण, साम्यवाद, क्षेत्रीयतावाद तथा धर्मनिरपेक्षतावाद | क्षेत्रीयतावाद तथा अलग राज्य की मांग . . . (4%) | NCERT की कक्षा XI की पाठ्य पुस्तक, जिसका शीर्षक है ‘Political Theory’ |
विश्व के भौतिक भूगोल की मुख्य विशेषताएं | महाद्वीपीय अपवाह (ड्रिफ्ट), उत्तरी अर्धवृत्त (हेमिस्फीयर) गर्म मरूस्थल की स्थिति . . . (6%) | NCERT की कक्षा XI की पाठ्य पुस्तक, जिसका शीर्षक है ‘Fundamentals of physical geography`। क्रायोस्फियर के एक नए अध्याय को कुछ अच्छे कोचिंग संस्थान के नोट को मिलाकर अवश्य अध्ययन करें। |
पूरे विश्व में प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों का संवितरण, भारत सहित विश्व में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक उद्योग की स्थिति हेतु उत्तरदायी कारक | दक्षिणी राज्यों में चीनी मिलें, भारत में सूती कपड़ा उद्योग का विकेंद्रीकरण, भारत तथा विश्व में परमाणु ऊर्जा हेतु कच्चा माल, भारत में शिला (शेल) गैस और तेल से जुड़़े मुद्दे . . . (12%) | प्रारंभिक परीक्षा के दौरान भारत में संसाधनों के संवितरण पर व्यापक विचार-विमर्श आवश्यक किया गया है। मुख्य परीक्षा की तैयारी हेतु विश्व के संसाधनों के अध्ययन के लिए विजराम कोचिंग की अध्ययन सामग्री को पढ़ा जा सकता है। |
महत्वपूर्ण भूभौतिकी परिदृश्य जैसे-भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी की घटनाएं, चक्रवात इत्यादि, भौगोलिक विशेषताएं तथा जटिल भौगोलिक विशेषताओं की स्थिति में परिवर्तन (जिसमें वॉटर बॉडीज एवं आइस कैप शामिल हैं) तथा उन परविर्तनों का वनस्पति और वन्य जीव (फ्लोरा एवं फॉना) पर प्रभाव | चक्रवात ‘फालिन’ तापमान का पलटना, पश्चिमी घाटों की तुलना में हिमालय में बारंबर भूस्खलन, पश्चिमी घाटों की नदियों द्वारा डेल्टा का न बनाना . . . (8%) | उपरोक्त लिखित पाठ्य सामग्री के अध्ययन से यह भाग भी कवर हो जाएगा, क्योंकि उक्त संकल्पना, जिनका ऊपर अध्ययन किया जा चुका है, इस परिदृश्य से अलग नहीं हैं। |
CSE (मेन्स)- GS के पेपर 1 पर टिप्पणी
जैसा कि हमने ऊपर देखा, इस पेपर की तैयारी हेतु प्रचुर मात्रा में अध्ययन सामग्री उपलब्ध है। इसलिए यद्यपि पेपर स्थिर प्रकार का है, फिर भी 80 प्रतिशत अंक पाना अपने में एक चुनौती है। कला एवं संस्कृति के भाग का नोट बना लें और परीक्षा के एक दिन पहले इस नोट को पुन: रिवाइज कर लें। हालांकि विश्व इतिहास पर नोट बनाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि प्रश्न कमोबेश तथ्यात्मक न होकर विश्लेषणात्मक होंगे। इस प्रकार, अभ्यर्थी विश्व इतिहास याद करने से बचें।
मुख्य परीक्षा 2013 से दो माह पूर्व एक नामी-गिरामी कोचिंग संस्थान में अध्ययनरत एक लड़की मेरे पास आई। आते ही उसने सपाट से कहा, ‘’मैं अमेरिकी क्रांति में अटक गई हूं।’’ मामले की तह में जाने पर मुझे ज्ञात हुआ कि वह मामूली घटनाओं, उनके कालक्रम तथा तारीखें याद करने में उलझी थी। जब मैंने उससे पूछा ऐसा क्यों, तो उसने उत्तर दिया ‘’मैं अपना उत्तर बिल्कुल परफेक्ट लिखना चाहती हूं।‘’ मैंने अपनी ओर से भरसक कोशिश की लेकिन उसके अंदर से ‘परफेक्ट उत्तर’ लिखने की भावना नहीं निकाल सका। परिणाम आने के बाद, मैंने महसूस किया कि जो लड़की कुछ महीने पहले तक IPS अधिकारी बनने का सपना संजोए हुई थी, उसने अपना विचार त्याग दिया था।
मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि कोचिंग संस्थाओं की आम प्रवृत्ति होती है और एक दूसरे से कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण अभ्यर्थी अपने को एक दूसरे से श्रेष्ठ दिखाएं। इसके लिए वे अन्य कोचिंग संस्थाओं के नोट्स से अपने क्लास नोट्स को अलग दिखाने के लिए अपने क्लास नोट्स में, अनावश्यक और व्यर्थ तथ्य समाविष्ट कर लेते हैं। किसी अभ्यर्थी को संस्थानों की परस्पर प्रतिस्पर्धा का शिकार नहीं होना चाहिए। अब हम GS के प्रथम पेपर के उत्तर लिखने की बात करते हैं। सर्वाधिक पूर्ण (परफेक्ट) उत्तर लिखने के स्थान पर अधिक से अधिक प्रश्नों के शुद्ध एवं यथार्थ उत्तर लिखने का प्रयास करना चाहिए। पेपर इतना व्यापक होगा कि हमें विवरण याद रखने का समय ही नहीं मिलेगा और व्याकरण की दक्षता और भाषा में निपुणता की भूमिका गौण होगी।
10 अंकों के प्रत्येक प्रश्न हेतु अभ्यर्थी को 200 शब्द तक लिखना होगा तथा 5 अंकों के प्रश्न हेतु शब्दों की अधिकतम निर्धारित सीमा 100 है। हमारा लक्ष्य अधिकतम शब्द सीमा तक नहीं बल्कि कम से कम समय में यथासंभव प्रश्न के अनुरूप उत्तर लिखना है। इस प्रकार मुझे लगता है कि 75 प्रतिशत अधिकतम शब्द सीमा आपका लक्ष्य होना चाहिए। आपके सामने जहां तक संभव हो सके 17 प्रश्नों के उत्तर सर्वश्रेष्ठ ढंग से लिखने की चुनौती होगी और अन्य 5 प्रश्नों में आपको अपने ज्ञान का इनपुट देना होगा, ताकि कुल 250 अंकों में से आपका प्रयास 220 अंकों के आस-पास तक पहुंच जाए। प्रिय अभ्यर्थियों आपका उद्देश्य अधिकतम अंक अर्जित करना है, न कि 3 या 4 परफेक्ट उत्तर लिखना।
² GS पेपर 2: शासन, संविधान, शासन तंत्र (polity) सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध।
यह पेपर अपने स्वरूप में अत्यंत गतिशील है। इसके लिए सम-सामयिक घटनाक्रम का सतत अपग्रेडेशन आवश्यक है, जिसे उत्तर में शामिल किया जाना होगा। लेकिन यहां समस्या कोर्स के गतिशील होने की नहीं, बल्कि विषय-सूची के अधिव्यापक (ओवरलैपिंग) होने की है। एक बार जब हम पेपर का विश्लेषण कर लेंगे, तब हम पाएंगे कि इसके विभिन्न टॉपिक के बीच कुछ चीजें समान हैं। इस प्रकार, समय बर्बाद न करने के लिए हमें पुनरावृत्ति के प्रयास से बचना होगा।
इसके बावजूद, संविधान और सरकार की संरचना के स्वरूप विषय-वस्तु में कुछ स्थिर भाग हैं। इसी से अंक मिलने वाला है और सम-सामयिक घटनाक्रम में जानकारी कम होने से अंकों में हो रही कमी की भरपाई भी हो सकेगी। इससे अतिरिक्त, यद्यपि अंतर्राष्ट्रीय संबंध गतिशील टॉपिक है, फिर भी अभ्यर्थी इसमें अच्छे अंक अर्जित कर सकते हैं। समाचार पत्रों की खबरों को अलग करना अत्यंत श्रमसाध्य तो होगा, परंतु अच्छे अंक दिलाने में इसकी बड़ी भूमिका होगी।
शासन (गवर्नेन्स) और सामाजिक न्याय अपने वास्तविक अर्थ तथा विषय सूची में अधिव्याप्त (ओवरलैपिंग) हैं और इसके बावजूद इनका एरिया इतना व्यापक (वाइड) है कि बिना इनकी योजना बनाएं अंतिम क्षण सब व्यर्थ हो जाएगा। विशेष रूप से गवर्नेन्स से संबंधित पूछे गए अनेक सामान्य से दिखने वाले प्रश्न अभ्यर्थियों को आकर्षित करेंगे। अभ्यर्थी को ऐसा आभास होगा कि गवर्नेन्स की विषय-वस्तु की पर्याप्त जानकारी के बिना वह उन प्रश्नों के उत्तर दे सकता है। पेपर 2 के लिए इस प्रवृत्ति से दूर रहना होगा। सामान्य ज्ञान का अध्ययन किया जाना चाहिए तथा व्यवस्थित नोट्स के रूप में उसे अलग तथा योजनाबद्ध कर लेना होगा। मुख्य परीक्षा 2013 में GS पेपर 2 के विश्लेषण के बाद इन सबकी तैयारी करनी होगी।
CSE (मुख्य), 2103 के GS पेपर 2 का विश्लेषण
विषय-सूची | CSE (मेन्स) 2013 में प्रश्न और प्रतिशत में वेटेज | अतिरिक्त अध्ययन (आरंभिक परीक्षा के अतिरिक्त) |
भारतीय संविधान-ऐतिहासिक सुदृढ़ीकरण, विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान तथा आधारभूत संरचना | आयकर अधिनियम की धारा A-19 के उल्लंघन में धारा 66 A ….. (4%) | यह संपूर्ण खंड भारत के संविधान और शासनतंत्र (polity) से संबंधित है। आरंभिक परीक्षा की तैयारी के उद्देश्य से अभ्यर्थी को जो बेसिक पाठ्य सामग्री सुझाई गई है, उसे पढ़ लेने के बाद NCERT की कक्षा XI की ‘Indian constitution at work’ नामक पुस्तक का बृहद अध्ययन करना होगा। |
संघ तथा राज्यों के कार्य तथा दायित्व, संघीय ढांचे से जुड़े मुद्दे और चुनौतियां, अधिकारों एवं वित्त का स्थानीय स्तर पर ट्रांसफर और उसकी चुनौतियां | नागाओं को विशेष दर्जा देने के विवाद पर पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय का निदेश, A -371 A छोटे राज्य का अर्थ है बेहतर सुशासन, समीक्षा करें ….. (8%) | लक्ष्मीकांत या सुभाष कश्यप को पढें। लक्ष्मीकांत की पुस्तक के प्रत्येक अध्याय में एक निश्चित पैटर्न है, जबकि सुभाष कश्यप की पुस्तक में संविधान पर कमेंटरी है। फिर भी लक्ष्मीकांत की पुस्तक में संवैधानिक, सांविधिक, नियामक एवं अर्ध-न्यायिक निकायों पर अच्छी विवेचना है। मेन्स परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्न में अभ्यर्थी से अपेक्षित है कि वे अपनी राय बनाएं। स्प्ष्ट है कि 13वें वित्त आयोग की रिपोर्ट पर सबसे प्रत्यक्ष प्रश्न के स्थान पर केवल ऐसे प्रश्न पूछे गए जो पूर्व वित्त आयोग की रिपोर्ट से भिन्न थे। |
विभिन्न संस्थाओं के अंतर्गत अधिकारों का विभाजन, विवाद समाधान हेतु तंत्र और संस्थाएं | संसद पर उच्चतम न्यायालय का नियंत्रण है। जटिल परिचर्चा अंतर्राज्यीय जल-विवाद हेतु ढीले समाधान के कारण ….. (8%) |
भारतीय संवैधानिक प्रावधानों की अन्य देशों से तुलना, |
| शासन तंत्र (polity) के पहलुओं को रेखांकित करते हुए सम-सामयिक टॉपिक के प्रश्न भी शामिल किए गए हैं। उदाहरण के लिए आयकर अधिनियम की धारा 66 (A) बनाम A 19, SEBI और IRDA. सम-सामयिक घटनाओं और शासन तंत्र (polity) के बीच संबंधों के समाचार पत्र की डायरी में दर्ज नोट्स का सार तैयार करना। इस संबंध में श्रीराम की ‘Indian Constitution, polity and governance’ नामक पुस्तक भी उपयोगी है। | |
संसद तथा विधान सभाओं की संरचना, कार्य-प्रणाली, कार्य-निष्पादन, शक्तियां, विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
सांसदों के आचरण तथा दल-बदल कानून का उद्देश्य ….. (4%) |
कार्यकारी, न्यायपालिका, सरकार के मंत्रालय, प्रभावी गुट, औपचारिक/ अनौपचारिक संस्थाएं एवं शासन तंत्र (polity) में उनकी भूमिका | प्रभावी गुटों की संरचना और कार्य प्रणाली ….. (4%) |
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लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएं। |
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विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां, विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियां, उनके कार्य एवं उत्तरदायित्व | 13वें वित्त आयोग की सिफारिशें, जो पूर्व वित्त आयोग की सिफारिशों से भिन्न हैं ….. (4%) |
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सांविधिक विनियामक एवं विभिन्न अर्ध-न्यायिक निकाय | क्या SEBI और IRDA को मिलाकर एक कर देना चाहिए? ….. (4%) |
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सरकार की नीतियां तथा विभिन्न क्षेत्रों में विकास हेतु हस्तक्षेप तथा उनका क्रियान्वयन | मिड डे मील योजना पर विचार-विमर्श ….. (4%) | अभ्यर्थी से प्रमुख राष्ट्रीय नीतियों की जानकारी अपेक्षित है। उसे नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण में केवल वर्तमान सरकार द्वारा चलाई गई अग्रणी योजनाओं का अध्ययन करना है। अग्रणी योजनाओं को पढ़ते समय स्वयं से प्रश्न बनाने का प्रयास करें क्योंकि इसमें सीधे प्रश्न नहीं पूछे जाएंगे। अग्रणी योजनाओं के अलावा किसी अन्य योजना का अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं है। |
विकास प्रक्रिया और विकास उद्योग- NGO, SHG, विभिन्न समूहों तथा संस्थाओं दान-दाताओं, संस्थागत और स्टेक होल्डरों की भूमिका
| SHG एवं उनसे संबद्ध संरक्षक (पैट्रन)- MFI का विश्लेषण | यह खंड का किसी विशेष NGO या SHG अथवा MFI से कोई लेन-देन नहीं है। इसमें समस्त स्वयंसेवी संगठनों की संरचना, मुद्दे तथा लिंकेज को प्रमुखता दी गई है। मेन्स परीक्षा के लिए वाजीराम की अध्ययन सामग्री में इसका व्यापक विश्लेषण दिया गया है। |
केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा समाज के गरीब वर्ग हेतु कल्याणकारी योजनाएं, उनका परफार्मेंस, इस तबके की सुरक्षा और बेहतरी के लिए बनाए गए तंत्र, कानून, गठित संस्थाएं एवं निकाय | बेहतर क्रियान्वयन एवं मूल्यांकन हेतु राज्यों को सहूलियत प्रदान करने हेतु सीएसएस की रि-स्ट्रक्चरिंग ….. (4%) | सामाजिक न्याय का यह एक ऐसा व्यापक मुद्दा है कि अध्ययन से पहले इसे संरचित कर लेना चाहिए। इसे एक टेबिल टाइप लर्निंग संरचना बनाया जाए, जिसे अभ्यर्थी जब आवश्यकता हो, उसकी तैयारी पूरी कर लें। |
विकास से जुड़े मुद्दे तथा सामाजिक क्षेत्र प्रबंधन अथवा स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन से जुड़े क्षेत्र | ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाएं (PURA) उपलब्ध कराना, जिनमें पहला काम कनेक्टीविटी है। टिप्पणी करें। स्वास्थ्य से जुडे़ MDG तथा इसमें सरकार की सफलता ….. (8%) | यह टॉपिक अर्थशास्त्र एवं मानव भूगोल, दोनों के साथ है। स्वास्थ्य एवं शिक्षा, दोनों का बहुआयामी विश्लेषण अपेक्षित है। संरचनात्मक नोट्स www.firstattempt.in पर जल्द उपलब्ध होंगे। |
गरीबी और भुखमरी से जुड़े मद्दे |
| गरीबी, भुखमरी एवं कुपोषण भी बहु-आयामी मुद्दे हैं जो सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक तथा पर्यावरणसे संबंधित हैं। पूर्व नियोजित अध्ययन हेतु व्यापक दस्तावेज firstattempt.in पर अलग से अपलोड किया जाएगा। अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे मल्टी-सेक्टर के लिंकेज कवर करते हुए इस टॉपिक को निबंध के दृष्टिकोण से तैयार करें। |
शासन, पारदर्शिता, तथा उत्तरदायित्व के महत्वपूर्ण पहलू, ई-गवर्नेन्स- एप्लिकेशन्स, मॉडल, सफलता, सीमाएं तथा क्षमता, नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व और संस्थागत तथा अन्य उपाय
| कल्याणकारी योजनाओं में नकदी का इलेक्ट्रानिक अंतरण-बेहतर शासन। टिप्पणी।
नागरिक चार्टर के संतोषजनक परिणाम सामने नहीं आएं हैं। विश्लेषण करें . . . . (8%) | पेपर के इस खंड में सर्वाधिक पुनरावृत्ति होती है। कोचिंग की अध्ययन सामग्री में भी इसकी पुनरावृत्ति देखने को मिलेगी जिससे बहुत भ्रम होगा, इसलिए इससे बचने की जरुरत है। सुशासन के लिए प्रकाशित योजना पत्रिका का अंक तथा एक सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी के लिए समर्पित योजना का एक अन्य अंक इन टॉपिकों के लिए पर्याप्त रहेंगे। इन्हें इंटरनेट पर देखा जा सकता है। |
लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका | लोक कार्यों में व्याप्त अनीति/भ्रष्टाचार को लोकपाल ठीक नहीं कर सकता है। अपने विचार प्रकट करें। . . . . (4%) | GS के पेपर 4 का एक कॉमन टॉपिक है- इसमें सिविल सेवकों में आचार-शास्त्र तथा लोकतंत्र में उसकी भूमिका का वर्णन है। |
भारत तथा उसके पड़ोसी देशों से संबंध | अफगानिस्तान से ISAF विड्राअल, भारत के सामने चुनौतियो की बाढ़। ढाका के शाहबाग चौक (स्क्वेयर) में प्रदर्शन तथा भारत के लिए इसका महत्व। भारत-श्रीलंका संबंध, बताएं कि आंतरिक कारण विदेश नीति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? ...(12%) | अंतर्राष्ट्रीय संबंध, यद्यपि गतिशील है, फिर भी अच्छे अंक देता है, क्योंकि किसी वर्ष सेट किए जाने वाले प्रश्नों की संख्या सीमित होती है। प्रश्न नि:संदेह सम-सामयिक घटनाक्रम-विशेषकर भारत के सामरिक और आर्थिक हितों से संबद्ध होंगे। लेकिन स्थिर प्रश्न जैसे गुजराल का सिद्धांत भी 2013 में पूछा गया था। इसलिए अभ्यर्थी को आज तक भारत की विदेश नीति की पृष्ठभूमि तथा इससे जुड़े विभिन्न सिद्धांतों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। |
द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूहीकरण एवं समझौतों का भारत अथवा इसके हितों को प्रभावित करना | ‘मोतियों की लड़ी’ भारत कैसे उसकी काट निकालेगा? जापान के साथ आर्थिक हित संभावित स्तर से काफी नीचे है . ..(8%) | इस उद्देश्य हेतु अभ्यर्थी वी.पी. दत्ता की ‘India`s foreign policy since independence’ के साथ-साथ NCERT की कक्षा XII की पाठ्य-पुस्तक ‘compemporary world politics’ भी पढ़ें। हालांकि अभ्यर्थी से अपेक्षित है कि वह अपनी IR डायरी से समाचार पत्र के भाग को समेकित करे। यदि यह कार्य दुष्कर लगे, तो मुख्य परीक्षा के ठीक एक माह पूर्व वाजीराम द्वारा प्रकाशित IR पर समेकित नोट्स देखें। |
भारत के हितों पर विकसित एवं विकासशील देशों की नीतियों एवं राजनीति का प्रभाव, प्रवासी भारतीय | मालदीव की राजनीति का भारत पर प्रभाव अवश्यंभावी है। गुजराल का सिद्धांत तथा इसकी वर्तमान में प्रासंगिकता बताएं ...(8%) |
विश्व के महत्वपूर्ण संस्थान, एजेन्सियां, मंच-उनकी संरचना, शासनादेश | विश्व बैंक तथा विश्व मुद्रा कोष उनकी भूमिका निर्धारण, कार्य एवं शासनादेश ...(4%) |
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1. मुख्य (मेन्स) परीक्षा क्या है? |
2. मुख्य परीक्षा के कितने भाग होते हैं? |
3. मुख्य परीक्षा के लिए तैयारी कैसे करें? |
4. मुख्य परीक्षा के लिए संघ कर्मचारी कैसे बनें? |
5. मुख्य परीक्षा का प्रारूप क्या होता है? |
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