कविता का सार
‘कैदी और कोकिला’ नामक कविता में कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने अंग्रेजाी हुकूमत द्वारा किए गए अत्याचारों एवं जेल में कैदियों द्वारा भोगी जाने वाली यातनाओं तथा अपने मन के दुख एवं असंतोष का वर्णन किया है। कवि स्वतंत्राता के आंदोलन में शामिल होकर जेल चला गया है। वहाँ उस पर बहुत अत्याचार किया जाता है। उसे बिलकुल उम्मीद नहीं है कि ब्रिटिश अत्याचार कभी खत्म होगा। अतः वह रात के समय कूकने वाली कोयल से कहता है कि हे कोयल! तू आधी रात के समय कूक-कूक कर क्या गा रही है? क्या संदेश दे रही है? मैं जेल में बंद हूँ। तू स्वतंत्रता है। तू गा रही है। मुझे रोना भी गुनाह है। तू इस अँधियारी रात में चीख-चीखकर क्यों बावली हो रही है? तू शायद मेरे दुख से दुखी है क्योंकि हमें जानवरों के समान कोल्हू खींचना पड़ता है। तू मेरे दुख को दूर करने के लिए ही करुण स्वर में बोल रही है। तू
शायद अंग्रेजाों के अत्याचार का डटकर मुकाबला करने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरणा दे रही है। इस कविता में कोयल के माध्यम से कवि ने स्वतंत्रता सेनानियों एवं भारतीय जन सामान्य में देश पर न्योछावर हो जाने की भावना भरने का प्रयत्न किया है।
कवि परिचय
माखनलाल चतुर्वेदी -
इनका जन्म सन 1889 मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गाँव में हुआ था। मात्र 16 वर्ष की अवस्था में ये शिक्षक बने, बाद में अध्यापन का काम छोड़कर पत्रिका सम्पादन का काम शुरू किया। वे देशभक्त कवि एवं प्रखर पत्रकार थे। वे एक कवि-कार्यकर्ता थे और स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कई बार जेल गए। सन 1968 में इनका देहांत हो गया।
प्रमुख कार्य
पत्रिका - प्रभा, कर्मवीर, प्रताप
कृतियाँ - हिम किरीटनी, साहित्य देवता, हिम तरंगिनी, वेणु लो गूंजे धरा।
कठिन शब्दों के अर्थ
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1. कविता "कैदी और कोकिला" का सार क्या है? |
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