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पाठ का सार: एवेरेस्ट: मेरी शिखर यात्रा | Hindi Class 9 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

पाठ का सार: एवेरेस्ट: मेरी शिखर यात्रा | Hindi Class 9 (Sparsh and Sanchayan)

पाठ का सार

प्रस्तुत लेख में बचेंद्री पाल ने अपने अभियान का रोमांचकारी वर्णन किया है कि 7 मार्च को एवरेस्ट अभियान दल दिल्ली से काठमांडू के लिए चला। नमचे बाज़ार से लेखिका ने एवरेस्ट को निहारा। लेखिका ने एवरेस्ट पर एक बड़ा भारी बर्फ़ का फूल देखा। यह तेज़ हवा के कारण बनता है। 26 मार्च को अभियान दल पैरिच पहुँचा तो पता चला कि खुंभु हिमपात पर जाने वाले शेरपा कुलियों में से बर्फ़ खिसकने के कारन एक कुली की मॄत्यु हो गई और चार लोग घायल हो गए। बेस कैंप पहुँचकर पता चला कि प्रतिकूल जलवायु के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई है। फिर दल को ज़रुरी प्रशिक्षण दिया गया। 29 अप्रैल को वे 7900 मीटर ऊँचाई पर स्थित बेस कैंप पहुँचे जहाँ तेनजिंग ने लेखिका का हौसला बढ़ाया। 15-16 मई, 1984 को अचानक रात 12:30 बजे कैंप पर ग्लेशियर टूट पड़ा जिससे कैंप तहस-नहस हो गया , हर व्यक्‍ति चोट-ग्रस्त हुआ। लेखिका बर्फ़ में दब गई थी। उन्हें बर्फ़ से निकाला गया।
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 फिर कुछ दिनों बाद लेखिका साउथकोल कैंप पहुँची। वहाँ उन्होंने पीछे आने वाले साथियों की मदद करके सबको खुश कर दिया। अगले दिन वह प्रात: ही अंगदोरज़ी के साथ शिखर – यात्रा पर निकली। अथक परिश्रम के बाद वे शिखर – कैंप पहुँचे। एक और साथी ल्हाटू के आ जाने से और ऑक्सीजन आपूर्ति बढ़ जाने से चढ़ाई आसान हो गई। 23 मई , 1984 को दोपहर 1:07 बजे लेखिका एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। वह एवरेस्त पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला थी। चोटी पर दो व्यक्तियों के साथ खड़े होने की ज़गह नहीं थी, उन्होंने बर्फ के फावड़े से बर्फ की खुदाई कर अपने आप को सुरक्षित किया। लेखिका ने घुटनों के बल बैठकर ‘सागरमाथे’ के ताज को चूमा। फिर दुर्गा माँ तथा हनुमान चालीसा को कपडे में लपेटकर बर्फ़ में दबा दिया। अंगदोरज़ी ने उन्हें गले से लगकर बधाई दी। कर्नल खुल्लर ने उन्हें बधाई देते हुए कहा – मैं तुम्हरे मात-पिता को बधाई देना चाहूँगा। देश को तुम पर गर्व है। अब तुम जो नीचे आओगी , तो तुम्हें एक नया संसार देखने को मिलेगा।

लेखक परिचय  

बचेंद्री पाल

इनका जन्म सन 24 मई, 1954 को उत्तरांचल के चमोली जिले के बमपा गाँव में हुआ। पिता पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते थे। अत: बचेंद्री को आठवीं से आगे की पढ़ाई का खर्च सिलाई-कढ़ाई करके जुटाना पड़ा। 

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विषम परिस्थितियों के बावज़ूद बचेंद्री ने संस्कृत में एम.ए. और फिर बी. एड. की शिक्षा हासिल की। बचेंद्री को पहाद़्ओं पर चढ़ने शौक़ बचपन से था। पढ़ाई पूरी करके वह एवरेस्ट अभियान – दल में शामिल हो गईं। कई महीनों के अभ्यास के बाद आखिर वह दिन आ ही गया , जब उन्होंने एवरेस्ट विजय के लिए प्रयाण किया।

कठिन शब्दों के अर्थ

  1. दुर्गम – जहाँ जाना कठिन हो
  2. ध्वज – झंडा
  3. हिम-स्खलन – बर्फ़ का गिरना 
  4. नेतॄत्व – अगुवाई 
  5. अवसाद – निराशा
  6. ज़ायजा लेना – अनुमान लेना
  7. हिम-विदर – बर्फ़ में दरार पड़ना 
  8. अंतत: - आखिरकार
  9. हिमपुंज – बर्फ़ का समूह
  10. उपस्कर – आरोही की आवश्यक सामग्री
  11. भुरभुरी – चूरा-चूरा टूटने वाली 
  12. शंकु – नोक
  13. रज्जु – रस्सी
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FAQs on पाठ का सार: एवेरेस्ट: मेरी शिखर यात्रा - Hindi Class 9 (Sparsh and Sanchayan)

1. "एवेरेस्ट: मेरी शिखर यात्रा" पाठ का प्रमुख संदेश क्या है?
Ans. "एवेरेस्ट: मेरी शिखर यात्रा" पाठ का प्रमुख संदेश यह है कि कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए साहस और दृढ़ता आवश्यक हैं। लेखक ने अपनी शिखर यात्रा के अनुभवों के माध्यम से यह दर्शाया है कि कठिन परिस्थितियों में भी सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास से हम अपने सपनों को साकार कर सकते हैं।
2. लेखक ने एवेरेस्ट की चढ़ाई के दौरान किन चुनौतियों का सामना किया?
Ans. लेखक ने एवेरेस्ट की चढ़ाई के दौरान कई चुनौतियों का सामना किया, जैसे कि अत्यधिक ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी, ठंड, और मौसम की विपरीत परिस्थितियाँ। इसके अलावा, मानसिक थकान और शारीरिक कमजोरी भी एक बड़ी चुनौती थी, जिसे उन्होंने साहस और आत्मविश्वास से पार किया।
3. इस पाठ में लेखक का प्रेरणास्रोत कौन था?
Ans. इस पाठ में लेखक का प्रेरणास्रोत उनके गुरु और अन्य पर्वतारोहियों का अनुभव था। उन्होंने अपने गुरु से मिली प्रेरणा और मार्गदर्शन को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व माना। इसके अतिरिक्त, लेखक ने अपने साथी पर्वतारोहियों के साहस और संघर्ष से भी प्रेरणा ली।
4. "एवेरेस्ट: मेरी शिखर यात्रा" पाठ में कठिन शब्दों के अर्थ क्या हैं?
Ans. पाठ में कुछ कठिन शब्दों के अर्थ निम्नलिखित हैं: 1. शिखर - सबसे ऊँचा बिंदु 2. साहस - कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति 3. दृढ़ता - किसी लक्ष्य के प्रति अडिग रहना 4. विपरीत - उल्टा या कठिन
5. पाठ के अंत में लेखक ने पाठकों को कौन सा संदेश दिया है?
Ans. पाठ के अंत में लेखक ने पाठकों को यह संदेश दिया है कि जीवन में चुनौतियाँ आएंगी, लेकिन हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। हमें अपने लक्ष्यों के प्रति दृढ़ रहना चाहिए और कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सफल होने के लिए आत्मविश्वास और मेहनत अति आवश्यक हैं।
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