Class 10 Exam  >  Class 10 Notes  >  Chapter Notes for Class 10  >  पाठ का सार - पाठ 9- लखनवी अंदाज़, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10

पाठ का सार - पाठ 9- लखनवी अंदाज़, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 | Chapter Notes for Class 10 PDF Download

लेखक परिचय

यशपाल
इनका जन्म सन 1903 में पंजाब के फिरोजपुर छावनी में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा काँगड़ा में ग्रहण करने के बाद लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी.ए. किया। वहाँ इनका परिचय भगत सिंह और सुखदेव से हुआ। स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा से जुड़ाव के कारण ये जेल भी गए। इनकी मृत्यु सन 1976 में हुई।

प्रमुख कार्य
कहानी संग्रह: ज्ञानदान, तर्क का तूफ़ान, पिंजरे की उड़ान, वा दुलिया, फूलों का कुर्ता।
उपन्यास: झूठा सच, अमिता, दिव्या, पार्टी कामरेड, दादा कामरेड, मेरी तेरी उसकी बात।

पाठ का संक्षिप्त परिचय

वैसे तो यशपाल जी ने ‘ लखनवी अंदाश ‘ , जो की एक व्यंग्य है , यह साबित करने के लिए लिखा था कि बिना किसी कथ्य के कहानी नहीं लिखी जा सकती परंतु फिर भी एक स्वतंत्र रचना के रूप में इस रचना को पढ़ा जा सकता है। यशपाल जी उस पतन की ओर जाने वाला सामंती वर्ग पर तंज़ करते हैं जो असलियत से अनजान एक बनावटी जीवन शैली का आदी है। इस बात को नकारा नहीं सकता कि आज के समय में भी ऐसे दूसरों पर निर्भर रहने वाली संस्कृति को देखा जा सकता है।

पाठ का सार - पाठ 9- लखनवी अंदाज़, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 | Chapter Notes for Class 10

पाठ का सार

लेखक अपने सफ़र की शुरुआत का हिस्सा बताते हुए कहते हैं कि लोकल ट्रेन के चलने का समय हो गया था इसलिए ऐसा लग रहा था जैसे वह लोकल ट्रेन चल पड़ने की हड़बड़ी या बेचैनी में फूंक मार रही हो। आराम से अगर लोकल ट्रेन के सेकंड क्लास में जाना हो तो उसके लिए कीमत भी अधिक लगती है। लेखक को बहुत दूर तो जाना नहीं था। लेकिन लेखक ने टिकट सेकंड क्लास का ही ले लिया ताकि वे अपनी नयी कहानी के संबंध में सोच सके और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य का नज़ारा भी ले सकें , इसलिए भीड़ से बचकर , शोरगुल से रहित ऐसा स्थान जहाँ कोई न हो , लेखक ने चुना। लेखक जिस लोकल ट्रेन से जाना चाहता था , किसी कारण थोड़ी देरी होने के कारण लेखक से वह गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर , लेखक ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। लेखक ने अंदाज़ा लगाया था कि लोकल ट्रेन का वह सेकंड क्लास का छोटा डिब्बा खाली होगा परन्तु लेखक के अंदाज़े के विपरीत वह डिब्बा खाली नहीं था। 

उस डिब्बे के एक बर्थ पर लखनऊ के नवाबी परिवार से सम्बन्ध रखने वाले एक सज्जन व्यक्ति बहुत सुविधा से पालथी मार कर बैठे हुए थे। उन सज्जन ने अपने सामने दो ताज़े – चिकने खीरे तौलिए पर रखे हुए थे। लेखक के उस डिब्बे में अचानक से कूद जाने के कारण उन सज्जन के ध्यान में बाधा या अड़चन पड़ गई थी , जिस कारण उन सज्जन की नाराज़गी साफ़ दिखाई दे रही थी। लेखक उन सज्जन की नाराज़गी को देख कर सोचने लगे कि , हो सकता है , वे सज्जन भी किसी कहानी के लिए कुछ सोच रहे हों या ऐसा भी हो सकता है कि लेखक ने उन सज्जन को खीरे – जैसी तुच्छ वस्तु का शौक करते देख लिया था और इसी हिचकिचाहट के कारण वे नाराज़गी में हों। उन नवाब साहब ने लेखक के साथ सफ़र करने के लिए किसी भी प्रकार की कोई ख़ुशी जाहिर नहीं की। लेखक भी बिना नवाब की ओर देखते हुए उनके सामने की सीट पर जा कर बैठ गए। लेखक की पुरानी आदत है कि जब भी वे खाली बैठे होते हैं अर्थात कोई काम नहीं कर रहे होते हैं , तब वे हमेशा ही कुछ न कुछ सोचते रहते हैं और अभी भी वे उस सेकंड क्लास की बर्थ पर उस नवाब के सामने खाली ही बैठे थे , तो वे उस नवाब साहब के बारे में सोचने लगे। 

लेखक उस नवाब साहब के बारे में अंदाजा लगाने लगे कि उन नवाब साहब को किस तरह की परेशानी और हिचकिचाहट हो रही होगी। लेखक सोचने लगे कि हो सकता है कि , नवाब साहब ने बिलकुल अकेले यात्रा करने के अंदाजे से और  बचत करने के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया होगा और अब उनको यह सहन नहीं हो रहा होगा कि शहर का कोई सफेद कपड़े पहने हुए व्यक्ति उन्हें इस तरह बीच वाले दर्जे में सफर करता देखे , कहने का तात्पर्य यह है कि नवाब लोग हमेशा प्रथम दर्ज़े में ही सफर करते थे और उन नवाब साहब को लेखक ने दूसरे दर्ज़े में सफ़र करते देख लिया था तो लेखक के अनुसार हो सकता है कि इस कारण उनको हिचकिचाहट हो रही हो। या फिर हो सकता है कि अकेले सफर में वक्त काटने के लिए ही उन नवाब साहब ने खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफेद कपड़े पहने हुए व्यक्ति अर्थात लेखक के सामने खीरा कैसे खाएँ , यह सोच कर ही शायद उन्हें परेशानी हो रही हो ? लेखक बताते हैं कि वे नवाब साहब के सामने वाली बर्थ पर आँखें झुकाए तो बैठे थे किन्तु वे आँखों के कोनों से अर्थात तिरछी नजरों से छुप कर नवाब साहब की ओर देख रहे थे। 

नवाब साहब कुछ देर तक तो गाड़ी की खिड़की से बाहर देखकर वर्तमान स्थिति पर गौर करते रहे थे , अचानक से ही नवाब साहब ने लेखक को पूछा कि क्या लेखक भी खीरे खाना पसंद करेंगे ? इस तरह अचानक से नवाब साहब के व्यवहार में हुआ परिवर्तन लेखक को कुछ अच्छा नहीं लगा। नवाब साहब के खीरे के शौक को लेखक ने देख लिया था और खीरा एक साधारण वस्तु माना जाता है , जिस कारण नावाब साहब हिचकिचाने लगे थे और लेखक को लग रहा था कि इसी हिचकिचाहट को छुपाने के लिए और साधारण वस्तु का शौक रखने के कारण वे लेखक से खीरा खाने के बारे में पूछ रहे हैं। लेखक ने भी नवाब साहब को शुक्रिया कहते हुए और सम्मान में किबला शब्द से सम्मानित करते हुए जवाब दिया कि वे ही अपना खीरे को खाने का शौक पूरा करें। लेखक का जवाब सुन कर नवाब साहब ने फिर एक पल खिड़की से बाहर देखकर स्थिति पर गौर किया और दृढ़ निश्चय से खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़ा और अपने सामने बिछा लिया। फिर अपनी सीट के नीचे रखा हुआ लोटा उठाया और दोनों खीरों को खिड़की से बाहर धोया और तौलिए से पोंछ कर सूखा लिया। फिर अपनी जेब से एक चाकू निकाला। दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें चाकू से गोदकर उनका झाग निकाला , जिस तरह से हम भी खीरे खाने से पहले काटते हैं। यह सब करने के बाद फिर खीरों को बहुत सावधानी से छीलकर लंबाई में टुकड़े करते हुए बड़े तरीक़े से तौलिए पर सजाते गए। लेखक हम सभी पाठकों को लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले लोगों के खीरे के इस्तेमाल का तरीका बताते हुए कहते हैं कि हम सभी लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचने वाले लोगों के खीरे के इस्तेमाल का तरीका तो जानते ही हैं। 

वे अपने ग्राहक के लिए जीरा – मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च को कागज़ आदि में विशेष प्रकार से लपेट कर ग्राहक के सामने प्रस्तुत कर देते हैं। नवाब साहब ने भी उसी तरह से बहुत ही तरीके से खीरे के लम्बे – लम्बे टुकड़ों पर जीरा – मिला नमक और लाल मिर्च की लाली बिखेर दी। लेखक बताते हैं कि नवाब साहब की हर एक क्रिया – प्रक्रिया और उनके जबड़ों की कंपन से यह स्पष्ट था कि उन खीरों को काटने और उस पर जीरा – मिला नमक और लाल मिर्च की लाली बिखेरने की सारी प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रस का स्वाद लेना की कल्पना मात्र से ही जल से भर गया था। जिस तरह जब हम अपनी पसंदीदा खाने की किसी चीज़ को देखते हैं तो हमारे मुँह में पानी आ जाता है उसी तरह नवाब साहब के मुँह में भी खीरों को खाने के लिए तैयार करते समय पानी भर आया था। लेखक आँखों के कोनों से अर्थात तिरछी नज़रों से नवाब साहब को यह सब करते हुए देखकर सोच रहे थे , नवाब साहब ने सेकंड क्लास का टिकट ही इस ख़याल से लिया होगा ताकि कोई उनको खीरा खाते न देख लें लेकिन अब लेखक के ही सामने इस तरह खीरे को खाने के लिए तैयार करते समय अपना स्वभाविक व्यवहार कर रहे हैं। अपना काम कर लेने के बाद नवाब साहब ने फिर एक बार लेखक की ओर देख लिया और फिर उनसे एक बार खीरा खाने के लिए पूछ लिया , और साथ – ही – साथ उन खीरों की खासियत बताते हुए कहते हैं कि वे खीरे लखनऊ के सबसे प्रिय खीरें हैं। 

लेखक बताते हैं कि नमक – मिर्च छिड़क दिए जाने से उन ताज़े खीरे की पानी से भरे लम्बे – लम्बे टुकड़ों को देख कर उनके मुँह में पानी ज़रूर आ रहा था , लेकिन लेखक पहले ही इनकार कर चुके थे , जिस कारण लेखक ने अपना आत्मसम्मान बचाना ही उचित समझा , और उन्होंने नवाब साहब को शुक्रिया देते हुए उत्तर दिया कि इस वक्त उन्हें खीरे खाने की इच्छा महसूस नहीं हो रही है , और साथ ही साथ लेखक ने अपनी पाचन शक्ति कमज़ोर होने का बहाना बनाते हुए नवाब साहब को ही खीरे खाने को कहा। लेखक का जबाव पाते ही नवाब साहब ने लालसा भरी आँखों से नमक – मिर्च के संयोग से चमकती खीरे के लम्बे – लम्बे टुकड़ों की ओर देखा। फिर खिड़की के बाहर देखकर एक लम्बी साँस ली। लेखक बताते हैं कि नवाब साहब ने खीरे के एक टुकड़े को उठाया और अपने होंठों तक ले गए , फिर उस टुकड़े को सूँघा , नवाब साहब केवल खीरे को सूँघ कर उसके स्वाद का अंदाजा लगा रहे थे। खीरे के स्वाद के अंदाज़े से नवाब साहब के मुँह में भर आए पानी का घूँट उनके गले से निचे उतर गया। यह सब करने के बाद नवाब साहब ने खीरे के टुकड़े को बिना खाए ही खिड़की से बाहर छोड़ दिया। 

नवाब साहब ने खीरे के सभी टुकड़ों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए से अपने हाथ और होंठ पोंछ लिए और बड़े ही गर्व से आँखों में खुशी लिए लेखक की ओर देख लिया , ऐसा लग रहा था मानो वे लेखक से कह रहे हों कि यह है खानदानी रईसों का तरीका। नवाब साहब ने जो खीरे की तैयारी और इस्तेमाल किया था उससे वे थक गए थे और थककर अपनी बर्थ में लेट गए। लेखक सोच रहे थे कि जिस तरह नवाब साहब ने खीरे का इस्तेमाल किया उससे केवल खीरे के स्वाद और खुशबू का अंदाजा ही लगाया जा सकता है , उससे पेट की भूख शांत नहीं हो सकती। परन्तु नवाब साहब की ओर से ऊँचे डकार का शब्द ऐसे सुनाई दिया , जैसे उनका पेट भर गया हो। और नवाब साहब ने लेखक की ओर देखकर कहा कि खीरा होता तो बहुत स्वादिष्ट है लेकिन जल्दी पचने वाला नहीं होता , और साथ – ही – साथ बेचारे बदनसीब पेट पर बोझ डाल देता है।  नवाब साहब की ऐसी बातें सुन कर लेखक कहते हैं कि उनके ज्ञान – चक्षु खुल गए अर्थात लेखक को जो बात समझ नहीं आ रही थी अब समझ में आ रही थी ! नवाब साहब की बात सुन कर लेखक ने मन ही मन कहा कि ये हैं नयी कहानी के लेखक ! क्योंकि लेखक के अनुसार अगर खीरे की सुगंध और स्वाद का केवल अंदाज़ा लगा कर ही पेट भर जाने का डकार आ सकता है तो बिना विचार , बिना किसी घटना और पात्रों के , लेखक के केवल इच्छा करने से ही ‘ नयी कहानी ’ क्यों नहीं बन सकती?

कठिन शब्दों के अर्थ

  1. मुफ़स्सिल - केंद्र में स्थित नगर के इर्द-गिर्द स्थान
  2. उतावली - जल्दबाजी
  3. प्रतिकूल - विपरीत
  4. सफ़ेदपोश - भद्र व्यक्ति
  5. अपदार्थ वस्तु - तुच्छ वस्तु
  6. गवारा ना होना - मन के अनुकूल ना होना
  7. लथेड़ लेना - लपेट लेना
  8. एहतियात - सावधानी
  9. करीने से - ढंग से
  10. सुर्खी - लाली
  11. भाव-भंगिमा - मन के विचार को प्रकट करने वाली शारीरिक क्रिया
  12. स्फुरन - फड़कना
  13. प्लावित होना - पानी भर जाना
  14. पनियाती - रसीली
  15. तलब - इच्छा
  16. मेदा - पेट
  17. सतृष्ण - इच्छा सहित
  18. तसलीम - सम्मान में
  19. सिर ख़म करना - सिर झुकाना
  20. तहजीब - शिष्टता
  21. नफासत - स्वच्छता
  22. नफीस - बढ़िया
  23. एब्सट्रैक्ट - सूक्ष्म
  24. सकील - आसानी से ना पचने वाला
  25. नामुराद - बेकार चीज़
  26. ज्ञान चक्षु - ज्ञान रूपी नेत्र
The document पाठ का सार - पाठ 9- लखनवी अंदाज़, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 | Chapter Notes for Class 10 is a part of the Class 10 Course Chapter Notes for Class 10.
All you need of Class 10 at this link: Class 10
146 docs

Top Courses for Class 10

FAQs on पाठ का सार - पाठ 9- लखनवी अंदाज़, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10 - Chapter Notes for Class 10

1. "लखनवी अंदाज" पाठ का मुख्य विषय क्या है ?
Ans."लखनवी अंदाज" पाठ में लखनऊ की संस्कृति, वहां की भाषा-बोली और जीवनशैली का वर्णन किया गया है। यह पाठ लखनवी तहजीब और वहां के लोगों की विशेषताओं को उजागर करता है।
2. इस पाठ में लेखक ने लखनवी संस्कृति को कैसे प्रस्तुत किया है ?
Ans. लेखक ने लखनवी संस्कृति को उसके अदब, नज़ाकत, और वहां के लोगों की बातचीत के अंदाज के माध्यम से प्रस्तुत किया है। उन्होंने लखनऊ की विशेषताओं और वहां के ऐतिहासिक महत्व को भी दर्शाया है।
3. "लखनवी अंदाज" पाठ में कौन से कठिन शब्दों का प्रयोग किया गया है और उनके अर्थ क्या हैं ?
Ans. पाठ में कुछ कठिन शब्द जैसे "तहजीब", "नज़ाकत", "अदब" आदि का प्रयोग किया गया है। "तहजीब" का अर्थ है संस्कृति या सभ्यता, "नज़ाकत" का अर्थ है नाजुकता या शिष्टता, और "अदब" का अर्थ है शिष्टाचार या मर्यादा।
4. पाठ का सार क्या है और यह कक्षा 10 के छात्रों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ?
Ans. पाठ का सार लखनवी संस्कृति और वहां के जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाना है। यह कक्षा 10 के छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें भारतीय संस्कृति की विविधता और समृद्धि से परिचित कराता है।
5. "लखनवी अंदाज" पाठ में लेखक ने कौन सी विशेषताओं पर जोर दिया है ?
Ans. लेखक ने लखनवी अंदाज की विशेषताओं जैसे कि वहां की बातचीत की मिठास, शिष्टता, और लोगों के आपसी संबंधों की गर्माहट पर जोर दिया है। उन्होंने यह भी बताया है कि कैसे ये विशेषताएं लखनऊ को एक अनोखा स्थान बनाती हैं।
146 docs
Download as PDF
Explore Courses for Class 10 exam

Top Courses for Class 10

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Summary

,

कक्षा - 10 | Chapter Notes for Class 10

,

हिंदी

,

practice quizzes

,

Viva Questions

,

Exam

,

क्षितिज II

,

shortcuts and tricks

,

Free

,

कक्षा - 10 | Chapter Notes for Class 10

,

MCQs

,

Extra Questions

,

Objective type Questions

,

पाठ का सार - पाठ 9- लखनवी अंदाज़

,

Important questions

,

हिंदी

,

past year papers

,

क्षितिज II

,

कक्षा - 10 | Chapter Notes for Class 10

,

हिंदी

,

pdf

,

Sample Paper

,

Previous Year Questions with Solutions

,

पाठ का सार - पाठ 9- लखनवी अंदाज़

,

ppt

,

Semester Notes

,

क्षितिज II

,

पाठ का सार - पाठ 9- लखनवी अंदाज़

,

video lectures

,

study material

,

mock tests for examination

;