Table of contents |
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कवि परिचय |
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पाठ प्रवेश |
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कविता सार |
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कविता की व्याख्या |
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कविता का परिप्रेक्ष्य |
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शब्दार्थ |
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कवि वीरेन डंगवाल जी का जन्म 5 अगस्त 1947 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के कीर्तिनगर में हुआ था | इन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा नैनीताल में और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में पूरी की | यह पेशेवर प्राध्यापक हैं, परन्तु पत्रकारिता से भी जुड़े हुए हैं | इनकी कविताओं की विशिष्टता की बात करें तो समाज के साधारण जन और हाशिए पर स्थित विलक्षण ब्योरे और दृश्य कवि की कविताओं की विशिष्टता मानी जाती है |
कवि वीरेन डंगवाल जी का अब तक दो कविता संग्रह 'इसी दुनिया में' और 'दुष्चक्र में सृष्टा' प्रकाशित हो चुके हैं | इन्हें श्रीकांत वर्मा पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा और भी अनेक पुरस्कार से नवाजा गया है|
‘प्रतीक’ अर्थात निशानी और ‘धरोहर’ अर्थात विरासत दो तरह की होती है। एक वे जिन्हें देखकर या जिनके बारे में जानकर हम अपने देश और समाज की प्राचीन उपलब्धियों के बारे में जान सकते हैं और दूसरी वे जो हमें बताती हैं कि हमारे पूर्वजों से कब क्या गलती हुई थी जिसके कारण देश की कई पीढ़ियों को गहरे दुःख और कष्टों को झेलना पड़ा।
प्रस्तुत पाठ में ऐसी ही दो निशानियों का वर्णन किया गया है। पाठ हमें याद दिलाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी कभी भारत में व्यापार करने आई थी। भारत में उसका स्वागत किया गया था परन्तु धीरे – धीरे वो हमारी शासक बन गई।
अगर उन्होंने कुछ बाग़ – बगीचे बनाये तो उन्होंने तोपें भी तैयार की। देश को फिर से आज़ाद करने का सपना देखने वाले वीर सपूतों को इन तोपों ने मौत के घाट उतार दिया। पर एक दिन ऐसा भी आया जब हमारे पूर्वजों ने उस सत्ता को उखाड़ फैंका। तोप को बेकार कर दिया। फिर भी हमें इन निशानियों के माध्यम से याद रखना होगा की भविष्य में कोई और इस तरह हम पर हुक्म ना जमा पाए जिसके इरादे अच्छे ना हो और यहाँ फिर से वही परिस्थितियाँ बने जिनके घाव आज तक हमारे दिलों में हरे हैं। भले ही अंत में उनकी तोप भी उसी काम क्यों ना आये जिस काम इस पाठ की तोप आ रही है।
प्रस्तुत पाठ हमें याद दिलाता है कि कभी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने के इरादे से आई थी। भारत में उसका स्वागत किया गया था परन्तु धीरे – धीरे वो हमारी शासक बन गई। अगर उन्होंने कुछ बाग़ – बगीचे बनाये तो उन्होंने तोपें भी तैयार की। कवि कहते हैं कि यह 1857 की तोप, जो आज कंपनी बाग़ के प्रवेश द्वार पर रखी गई है, बहुत देखभाल की जाती है। जिस तरह यह कंपनी बाग़ हमें विरासत में अंग्रेजों से मिला है उसी तरह यह तोप भी हमें अंग्रेजों से ही विरासत में मिली। सुबह और शाम को बहुत सारे व्यक्ति कंपनी के बाग़ में घूमने के लिए आते हैं। तब यह तोप उन्हें अपने बारे में कहती है कि मैं अपने ज़माने में बहुत ताकतवर थी।
अब तोप की स्थिति बहुत खराब हो गई है- छोटे बच्चे इस पर बैठ कर घुड़सवारी का खेल खेलते हैं। चिड़ियाँ इस पर बैठ कर आपस में बातचीत करने लग जाती हैं। कभी – कभी शरारती चिड़ियाँ खासकर गौरैयें तोप के अंदर घुस जाती हैं। वह यह बताना चाहती है कि ताकत पर घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि ताकत हमेशा नहीं रहती।
कंपनी बाग़ के मुहाने पर
धर रखी गई है यह 1857 की तोप
इसकी होती है बड़ी सम्हाल, विरासत में मिले
कंपनी बाग़ की तरह
साल में चमकाई जाती है दो बार।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि यह जो 1857 की तोप आज कंपनी बाग़ के प्रवेश द्वार पर रखी गई है इसकी बहुत देखभाल की जाती है। जिस तरह यह कंपनी बाग़ हमें अंग्रेजों से मिली विरासत है, उसी तरह यह तोप भी हमें अंग्रेजों से ही विरासत में मिली है। जिस तरह कंपनी बाग़ की साल में दो बार अच्छी देखरेख की जाती है। उसी तरह इस तोप को भी साल में दो बार चमकाया जाता है।
सुबह शाम आते हैं कंपनी बाग़ में बहुत से सैलानी
उन्हें बताती है यह तोप
कि मैं बड़ी जबर
उड़ा दिए थे मैंने
अच्छे – अच्छे सूरमाओं के धज्जें
अपने ज़माने में
व्याख्या: कवि कहते हैं कि सुबह और शाम को बहुत सारे व्यक्ति कंपनी के बाग़ में घूमने के लिए आते हैं। तब यह तोप उन्हें अपने बारे में बताती है कि मैं अपने ज़माने में बहुत ताकतवर थी। मैंने अच्छे अच्छे वीरों के चिथड़े उड़ा दिए थे। अर्थात, उस समय तोप का भय हर इंसान के मन में था।
अब तो बहरहाल
छोटे बच्चों की सवारी से अगर यह फारिग हो
तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अकसर करती है गपशप
कभी -कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं
खासकर गौरैयें
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद।
व्याख्या: कवि कहते हैं कि अब तोप की स्थिति अब बहुत खराब हो गई है। छोटे बच्चे इस पर बैठ कर घुड़सवारी का खेल खेलते हैं। जब बच्चे इस पर नहीं खेल रहे होते, तब चिड़ियाँ इस पर बैठ कर आपस में बातचीत करने लगती हैं।। कभी–कभी शरारती चिड़ियाँ खासकर गौरैयें तोप के अंदर घुस जाती हैं। वह छोटी सी चिड़ीया हमें यह बताना चाहती है कि कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो एक ना एक दिन उसका भी अंत निश्चित होता है।
प्रस्तुत पाठ या कविता तोप, कवि वीरेन डंगवाल जी के द्वारा रचित है | इस पाठ में दो किस्म प्रतीक और धरोहर का चित्रण करते हुए, कवि कहते हैं कि ईस्ट इंडिया कम्पनी कभी भारत में व्यापार करने आई थी और हमारा शासक बन बैठी | कवि कहते हैं कि धरोहर दोनों, अच्छी और बुरी, हो सकती है | जैसे कम्पनी बाग अंग्रेजों द्वारा दी गई विरासतों में से एक अच्छी धरोहर मानी जाती है | लेकिन वहीं, उसके मुहाने पर रखी तोप एक ऐसी विरासत है, जिसने हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को बेरहमी से मारा था।
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1. 'तोप' कविता के कवि कौन हैं और उनकी विशेषताएँ क्या हैं ? | ![]() |
2. 'तोप' कविता का मुख्य सार क्या है ? | ![]() |
3. 'तोप' कविता में किन-किन प्रतीकों का प्रयोग किया गया है ? | ![]() |
4. 'तोप' कविता की व्याख्या कैसे की जा सकती है ? | ![]() |
5. 'तोप' कविता का परिप्रेक्ष्य क्या है और यह समाज पर कैसे प्रभाव डालती है ? | ![]() |