Table of contents |
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कहानी का परिचय |
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मुख्य बिंदु |
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पाठ का सार |
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कहानी से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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"हरिहर काका" एक हिंदी कहानी है जो एक गाँव के बुजुर्ग व्यक्ति हरिहर काका के जीवन और उनकी मुश्किलों के बारे में बताती है। हरिहर काका एक साधारण किसान हैं जो अपने परिवार और गाँव की ठाकुरबारी (मंदिर) के बीच फंस जाते हैं। उनके पास कुछ जमीन है, जिसे उनके भाई और ठाकुरबारी के लोग अपने नाम करवाना चाहते हैं। इस वजह से उन्हें बहुत दबाव और अन्याय का सामना करना पड़ता है।
कहानी में दिखाया गया है कि हरिहर काका को उनके भाइयों और ठाकुरबारी के साधुओं द्वारा परेशान किया जाता है। उनकी जमीन के लिए उन पर दबाव डाला जाता है और यहाँ तक कि उन्हें बंधक भी बनाया जाता है। कहानी यह दर्शाती है कि समाज में लालच और सत्ता की वजह से कैसे एक साधारण व्यक्ति को परेशान किया जा सकता है। साथ ही, यह हरिहर काका की हिम्मत और उनकी सच्चाई की लड़ाई को भी दिखाती है। यह कहानी सामाजिक अन्याय, परिवारिक रिश्तों, और धार्मिक संस्थानों के दुरुपयोग को उजागर करती है। यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि समाज में सही और गलत के बीच की लड़ाई कितनी जटिल हो सकती है।
कहानी ‘हरिहर काका’ गाँव में रहने वाले एक बुज़ुर्ग व्यक्ति की कहानी है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन सादगी से बिताया, लेकिन जीवन के अंतिम समय में उन्हें बेबसी और अकेलेपन का सामना करना पड़ा। उनके अपने परिवार के लोग स्वार्थी हो गए थे और हर कोई अपनी फायदेमंदी में लगा हुआ था।
कहानी में लेखक हरिहर काका से गहराई से जुड़ा हुआ है। बचपन में हरिहर काका लेखक को बहुत प्यार करते थे, उसे कंधे पर बैठाकर घुमाते थे। बड़े होने पर लेखक और हरिहर काका अच्छे दोस्त बन गए। अब जब हरिहर काका बूढ़े हो गए हैं, उन्होंने बोलना बंद कर दिया है और शांत रहते हैं। लेखक के अनुसार उनके जीवन की कहानी जानना ज़रूरी है। वे उसी गाँव के रहने वाले हैं जहाँ लेखक रहता है।
गाँव आरा नामक कस्बे से 40 किलोमीटर दूर है। गाँव में ठाकुर जी का एक बड़ा मंदिर है, जिसे ठाकुरबारी कहा जाता है। यहाँ लोग मन्नत माँगते हैं और विश्वास करते हैं कि मन्नत ज़रूर पूरी होती है। मंदिर के पास बहुत सी ज़मीन है। पहले हरिहर काका मंदिर में नियमित जाते थे, पर अब उन्होंने वहाँ जाना बंद कर दिया है।
हरिहर काका के चार भाई हैं। सब विवाहित हैं और उनके बच्चे भी बड़े हो गए हैं। हरिहर काका के खुद के बच्चे नहीं हैं। वे अपने भाइयों के साथ रहते हैं। उनके पास 60 बीघा खेत हैं, जिनमें से 15-15 बीघा हर भाई के हिस्से में आता है। सभी खेती पर निर्भर हैं। भाइयों ने अपनी पत्नियों को हरिहर काका की सेवा करने को कहा, और कुछ समय तक बहुएँ उनकी सेवा करती रहीं, लेकिन बाद में सेवा में लापरवाही होने लगी। एक दिन ऐसा भी आया जब उन्हें पीने के लिए पानी देने वाला भी कोई नहीं था। बचा-खुचा खाना उनकी थाली में परोसा जाने लगा।
एक दिन उनके भतीजे का मित्र शहर से आया। उसके लिए स्वादिष्ट खाना बनाया गया, लेकिन काका को वही रूखा-सूखा खाना मिला। वे गुस्से में थाली उठाकर आँगन में फेंक देते हैं और बहुओं को डाँटते हैं। उस समय मंदिर के पुजारी वहीं मौजूद थे। उन्होंने जाकर महंत को सारी बात बताई। महंत ने इसे अच्छा संकेत मानते हुए काका को मंदिर बुलवाया।
महंत ने हरिहर काका को समझाया कि वे अपनी ज़मीन मंदिर के नाम कर दें ताकि उन्हें बैकुंठ (मोक्ष) की प्राप्ति हो और लोग उन्हें हमेशा याद रखें। काका थोड़े परेशान हो जाते हैं और सोचने लगते हैं। महंत ने मंदिर में उनके रहने-खाने की व्यवस्था कर दी। जैसे ही यह बात भाइयों को पता चली, वे उन्हें मनाने ठाकुरबारी आए लेकिन काका वापस नहीं गए। फिर अगली सुबह वे फिर आए, उनके पाँव पकड़ कर रोने लगे, माफ़ी माँगी। काका को दया आ गई और वे घर लौट आए।
अब घर में उनकी बहुत सेवा होने लगी। उन्हें जो भी चाहिए होता, तुरंत मिल जाता। गाँव में उनकी चर्चा होने लगी। घर के लोग अब ज़मीन अपने नाम करवाना चाहते थे। लेकिन हरिहर काका ने ऐसे कई उदाहरण देखे थे जिनमें लोग ज़मीन लिखवाकर बाद में पछताए थे। महंत भी बार-बार उन्हें ज़मीन मंदिर को देने के लिए समझाते रहते थे, लेकिन काका पर कोई असर नहीं हुआ।
इसके बाद महंत चिंता करने लगे और एक योजना बनाई। उन्होंने अपने लोगों को हथियारों से लैस कर काका का अपहरण करवा दिया। भाइयों और गाँव वालों को जब यह पता चला तो वे मंदिर पहुँचे, लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला। फिर उन्होंने पुलिस बुला ली। अंदर महंत ने ज़बरदस्ती काका से सादे कागज़ों पर अँगूठा लगवा लिया। काका बहुत हैरान थे कि महंत ऐसा कर सकते हैं।
पुलिस ने जैसे-तैसे दरवाज़ा खुलवाया। एक कमरे में काका रस्सियों से बँधे मिले, मुँह में कपड़ा ठूँसा हुआ था। उन्हें छुड़ाया गया और भाई उन्हें घर ले गए। अब उनकी बहुत निगरानी होने लगी। रात में दो-तीन लोग उनके पास सोते और दिन में हथियारों से लैस लोग उनके साथ चलते।
फिर उन पर ज़मीन देने का दबाव बनने लगा। एक दिन भाइयों ने उन्हें धमकाया कि अगर ज़मीन नहीं दी तो मारकर घर में गाड़ देंगे। काका ने साफ इनकार किया तो उन्होंने काका की पिटाई कर दी और मुँह में कपड़ा ठूँस दिया। काका ने चिल्लाने की कोशिश की। गाँव वाले इकट्ठा हुए। महंत को खबर मिली, वह पुलिस के साथ पहुँचे। पुलिस ने काका को छुड़ाया और उनका बयान लिया। उन्होंने बताया कि भाइयों ने ज़बरदस्ती उनसे कागज़ों पर अँगूठा लगवाया है।
अब काका ने पुलिस सुरक्षा की माँग की। वे अब अकेले रहने लगे हैं। उन्होंने एक नौकर रख लिया है। कुछ पुलिसकर्मी उनकी रक्षा करते हैं और उनके पैसों से ऐश करते हैं। एक नेता ने उन्हें ज़मीन पर स्कूल खोलने का सुझाव दिया, पर काका ने मना कर दिया। गाँव में तरह-तरह की बातें हो रही हैं। लोग सोचते हैं कि उनकी मौत के बाद महंत साधुओं को बुलाकर ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेगा।
अब हरिहर काका गूंगे जैसे हो गए हैं। वे चुपचाप बैठे रहते हैं और खाली आँखों से आसमान की ओर देखा करते हैं।
"हरिहर काका" कहानी हमें यह सिखाती है कि जब लोग लालची हो जाते हैं और अपनों के साथ धोखा करते हैं, तो बहुत दुख होता है। हरिहर काका एक सीधे-सादे और अच्छे इंसान थे, लेकिन उनके अपने भाइयों और मंदिर वालों ने उनकी ज़मीन हथियाने के लिए उन्हें धोखा दिया और जबरदस्ती की। इस कहानी से हमें यह समझ आता है कि हमें हमेशा ईमानदार रहना चाहिए और जब हमारे साथ गलत हो, तो उसका विरोध करना चाहिए, चाहे सामने अपने ही परिवार वाले हों या ताकतवर लोग। यह कहानी यह भी दिखाती है कि लालच रिश्तों को बिगाड़ देता है और हमें अपने हक की रक्षा करनी चाहिए।
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