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पाठ का सार: सपनों के-से दिन | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

पाठ का संक्षिप्त परिचय

यह पाठ गुरुदयाल सिंह की आत्मकथा का एक अंश है। यह एक ऐसी कथा है, जिसे भुला देना कठिन है। इस पाठ के स्मृति में बने रहने की जो अन्य वजह है, वह यह कि इसे पढ़ते हुए पाठक को बार-बार ऐसा लगता है कि जो दिनचर्या मेरी थी, जो शरारतें, चुहलबाज़ियाँ, आकांक्षाएँ, सपने मेरे थे, जो मैंने आज तक किसी को बताए भी नहीं, वे लेखक को केसे मालूम हो गए और उसने बिना मुझसे मिले ही मेरी दैनंदिनी केसे लिख डाली?

पाठ का सार

लेखक अपनी आत्मकथा के इस अंश में बताते हैं कि बचपन में जब वह और मेरे साथी खेला करते थे तो सभी एक जैसे लगते थे। नंगे पाँव, फटी मैली सी-कच्छी आरै टूटे बटनों वाले कई जगह से फटे उनके कुर्ते और बिखरे बाल। खेलते हुए इधर-उधर भागते-भागते वे गिर पड़ते जिससे पाँव छिल जाते थे। उनकी चोट देखकर माँ, बहनें तथा पिता उनकी पिटाई किया करते थे। इसके बावजदू भी वे बच्चे अगले दिन फिर खेलने निकल पड़ते । लेखक बचपन में यह सब नहीं समझ पाए था। जब अध्यापक की ट्रैनिग में उन्होंने बाल-मनोविज्ञान विषय पढ़ा, तब उन्हें यह बात समझ में आई। सभी बच्चों की आदतें मिलती-जलुती थीं। उनमें से अधिकतर स्कूल नहीं जाते थे या फिर पढ़ने में रुचि न लेते थे। पढ़ाई का महत्व नहीं समझा जाता था। स्वयं माता-पिता भी पढ़ाने में रुचि नहीं लेते थे। वे उन्हें पंडित घनश्याम दास से लंडे पढ़वाकर मुनीमी सिखाने में ज़्यादा रुचि लेते थे। लेखक के आधे से ज़्यादा साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। उनकी बोली कम समझ में आती थी। उनकी बोली पर हँसी भी आती थी पर खेलते समय कभी-कभी ये बोली समझ में आ जाती थी।

बचपन में लेखक को घास अधिक हरी और फूलों की सुगंध अधिक मनमोहक लगती थी। लेखक को अभी तक पूफलों की सुगंध याद है। उन दिनों स्कूल में शुरू के साल में डेढ़ महीना पढ़ाई हुआ करती थी, फिर डेढ़-दो महीनों की छुट्टियाँ हो जाया करती थीं। लेखक हर साल माँ के साथ ननिहाल जाया करते थे। जिस साल ननिहाल न जा पाते थे, उस साल भी अपने घर से थोड़ा बाहर तालाब पर चले जाते। दूसरे बच्चे तालाब में कुदकर नहाते थे। कभी-कभी उनके मुँह में गंदा पानी चला जाता था। इस प्रकार छुट्टियाँ बीतने लगतीं। मास्टरों की डाँट का डर बढ़ता चला जाता। मास्टर जी हिसाब के कम से कम दो सौ सवाल दिया करते थे। उनके करने का हिसाब लगाने लगते। उस समय दिन छोटे लगने लगते। स्कूल का डर सताने लगता। कुछ सहपाठी ऐसे भी थे जो काम करने से अच्छा मास्टर की पिटाई खाना उचित समझते थे। उनका नेता ओमा हुआ करता। उसके जैसा लड़का कोई नहीं था। उसका सिर हाँड़ी जितना बड़ा था। उसका सिर ऐसे लगता मानों बिल्ली के बच्चे के माथे पर तरबूज़ रखा हो। वह हाथ-पाँव से नहीं अपितु सिर से लड़ाई करता था। वह अपना सिर दूसरे के पेट या छाती में मारा करता था। सहपाठियों ने उसके सिर की टक्कर का नाम ‘रेल-बम्बा’ रखा हुआ था।

लेखक का स्कूल बहुत छोटा था। उसमें केवल नौ कमरे थे, जो अंग्रेज़ी के अक्षर एच की भाँति बने थे। पहला कमरा हेडमास्टर श्री मदनमोहन शर्मा जी का था। वे स्कूल की प्रेयर के समय बाहर आते थे। पी.टी. अध्यापक प्रीतम चंद लड़कों की कतारों का ध्यान रखते थे। वे बहुत कठोर थे और छात्रों की खाल खींचा करते थे। परंतु हेडमास्टर उसके बिल्कुल उलटे स्वभाव के थे। वे पाँचवीं और आठवीं कक्षा को अंग्रेज़ी पढ़ाते थे। वे कभी भी किसी छात्रा को मारते नहीं थे। केवल गुस्से में कभी-कभी गाल पर हलकी चपत लगा देते थे। कुछ छात्रों को छोड़कर बाकी सब रोते हुए ही स्कूल जाया करते थे। कभी-कभी स्कूल अच्छा भी लगता था जब पी.टी. टीचर कई रंगों की झंडियाँ पकड़वाकर स्काउटिग का अभ्यास करवाते थे। यदि हम ठीक से काम करते तो वे ‘शाबाश’ कह कर हमारा हौसला बढ़ाते थे।

लेखक को हर वर्ष अगली श्रेणी में प्रवेश करने पर पुरानी पुस्तकें मिल जाया करती थीं। हमारे हेडमास्टर एक धनाढ्य लड़के को उसके घर जाकर पढ़ाया करते थे। वह लड़का लेखक से एक श्रेणी आगे था। इसलिए उसकी पुस्तकें लेखक को मिल जाया करती थीं। उन्हीं पुस्तकों के कारण लेखक अपनी पढ़ाई जारी रख सका। बाकी सब चीज़ों पर साल का मात्र एक-दो रुपये खर्च हुआ करता था। उस समय एक रुपये में एक सेर घी और दो रुपये में एक मन गेहूँ मिल जाया करता था। इसी कारण, खाते-पीते घरों के लड़के ही स्कूल जाया करते थे। लेखक अपने परिवार में से स्कूल जाने वाला पहला लड़का था।

यह दूसरे विश्व-युद्ध का समय था। नाभा रियासत के राजा को अंग्रज़ेां ने सन 1923 में गिरफतार कर लिया था। तमिलनाडु में काडेाएकेनाल में जंग शुरू होने से पहले उनका देहांत हो गया था। उनका बेटा विलायत में पढ़ रहा था। उन दिनों अंग्रेज़ फौज में भरती करने के लिए नौटंकी वालों को साथ लेकर गाँवों में जाया करते थे। वे फैाज के सुखी जीवन का दृश्य प्रस्तुत करते थे ताकि नौजवान फैाज में भरती हो जाएँ। जब लेखक स्काउटिग की वर्दी पहन कर परेड करते, तब उनको भी ऐसा ही महसूस होता था।

लेखक ने मास्टर प्रीतमचंद को कभी मुसकराते हुए नहीं देखा। उनकी वेशभूषा सभी को भयभीत कर देती थी। उनसे सभी डरते थे और नफ़रत भी करते थे। वे बहुत कठिन सज़ा दिया करते थे। वह चैाथी श्रेणी में फारसी पढ़ाते थे। एक बार एक शब्द रूप याद न कर पाने के कारण उन्होंने लड़कों को मुर्गा बना दिया था। जब हेडमास्टर शर्मा जी ने यह दृश्य देखा तो वे प्रीतम सिह पर क्रोधित होकर बोले ‘वाट आर यू डूईंग, इज इट द वे टू पनिश द स्टूडेंट्स ऑफ फोर्थ क्लास? स्टाप इट एट वन्स।’ शर्मा जी गुस्से में काँपते हुए अपने दफतर में चले गए। इस घटना के बाद प्रीतम सिंह कई दिनों तक स्कुल नहीं आए। शायद हेडमास्टर ने उन्हें मुअत्तल कर दिया था। अब फारसी शर्मा जी स्वयं या मास्टर नाहै रिया राम जी पढ़ाने लगे थे। पी. टी. मास्टर अपने घर पर आराम करते रहते थे। उन्हें अपनी नौकरी की बिलकुल भी चिंता नहीं थी। वे अपने पिंजरे में रखे दो तोतों को दिन में कई बार भीगे हुए बादाम खिलाते थे और उनसे मीठी-मीठी बातें करते रहते। यह सब लेखक तथा उनके साथियों को बड़ा विचित्र लगता था कि इतने कठोर पी.टी. मास्टर तोते के साथ इतनी मीठी बातें केसे कर लेते हैं! ये सब बातें उनकी समझ से परे थीं। वे उन्हें अलौकिक मानते थे।

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FAQs on पाठ का सार: सपनों के-से दिन - Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

1. What is the article "सपनों के-से दिन" about?
Ans. The article "सपनों के-से दिन" is about the importance of dreams in our lives and how they can positively impact our mental and emotional well-being.
2. How do dreams affect our mental and emotional health?
Ans. Dreams can affect our mental and emotional health by providing a way for our subconscious mind to process and make sense of our experiences and emotions. They can also help us uncover repressed feelings and desires, which can lead to greater self-awareness and personal growth.
3. Is there any scientific evidence to support the claims made in the article?
Ans. While there is limited scientific research on the exact mechanisms by which dreams affect our mental and emotional health, there is some evidence to suggest that they can have a positive impact on our well-being. For example, studies have shown that people who have positive dreams tend to have lower levels of anxiety and depression.
4. Can dreams be interpreted to reveal hidden meanings or messages?
Ans. While some people believe that dreams can be interpreted to reveal hidden meanings or messages, there is no scientific evidence to support this claim. However, some therapists and counselors use dream interpretation as a tool to help clients explore their thoughts and emotions.
5. How can we improve the quality and frequency of our dreams?
Ans. There are several things we can do to improve the quality and frequency of our dreams, such as keeping a dream journal, setting an intention before going to sleep, practicing relaxation techniques, and avoiding certain foods and substances that can interfere with sleep. It's also important to maintain a regular sleep schedule and get enough restful sleep each night.
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