Table of contents |
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कवि परिचय |
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आत्मत्राण पाठ प्रवेश |
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कविता का सार |
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कविता की व्याख्या |
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1.
विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।
दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।।
शब्दार्थ:
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर जी की कविता आत्मत्राण से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कह रहे हैं कि मैं स्वयं को कष्टों से दूर रखने की विनती नहीं कर रहा हूँ | बल्कि आप मुझे उन तमाम कष्टों को सहने की शक्ति प्रदान करें | कवि ठाकुर जी अपने कष्ट भरे वक़्त में ईश्वर की सहायता नहीं चाहते, बल्कि वे कष्टों पर विजय हासिल करने के लिए आत्मविश्वास और हौसला की कामना करते हैं | कवि ईश्वर को संबोधित करते हुए कहते हैं कि चाहे जितना भी तकलीफ़ क्यों न आ जाए, मगर हमारा पुरुषार्थ डगमगा न सके | कवि कहते हैं कि यदि हमें नुकसान उठाना पड़े, तो भी मुझे इतनी शक्ति देना की हम उस चुनौती का सामना सरलतापूर्वक कर सकें |
भाव पक्ष: 1. कवि ईश्वर से विपदाओं वेफ समय में पौरुष एवं शक्ति देने की प्रार्थना कर रहे हैं।
2. संघर्षमय समय में व्यथित न होने वेफ लिए वह ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं।
कला पक्ष: 1. भाषा सहज एवं सरल है। भाषा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
2. ‘कोई कहीं’ में अनुप्रास अलंकार है।
2. मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करवेफ न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय -
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही।
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।
शब्दार्थ:
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर जी की कविता आत्मत्राण से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि हे प्रभु ! मेरी यह विनती नहीं है कि आप हर रोज मुझे डर से मुक्ति दिलाओ | मेरी रक्षा करो | बस आप मुझे रोग मुक्त और स्वस्थ रखें, ताकि मैं अपने बलबूते इस संसार के तमाम कष्टों को पार कर सकूँ | कवि ईश्वर को संबोधित करते हुए आगे कहते हैं कि आप मेरी तकलीफ़ों को कम करें और मेरा ढाढ़स बंधाएँ | आप मुझमें निडरता पैदा करें, ताकि मैं हर कष्टों से डटकर मुकाबला कर सकूँ | कवि कहते हैं कि दुःखों से भरी रात में जब पूरी दुनिया मुझे धोखा दे, मेरी सहायता करने से इनकार कर दे | फिर भी मेरे अंदर आपके (ईश्वर) प्रति संदेह न उत्पन्न हो | हे प्रभु ! कुछ ऐसी ही शक्ति मुझमें भरना |
भाव पक्ष:1. कवि ईश्वर से विशेष शक्ति पाने की प्रार्थना कर रहा है।
2. कवि क्षण-क्षण ईश्वर के दर्शन करने की कामना कर रहा है।
3. उदार हृदय व्यक्ति के गुणों का बखान किया गया है।
भाषा: 1. सहज एवं सरल भाषा का प्रयोग किया गया है। भाषा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
2. ‘छिन-छिन’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. छंदमुक्त कविता है।
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1. आत्मत्राण कविता का मुख्य विषय क्या है ? | ![]() |
2. आत्मत्राण कविता के कवि कौन हैं ? | ![]() |
3. आत्मत्राण कविता का सार क्या है ? | ![]() |
4. आत्मत्राण कविता की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं ? | ![]() |
5. आत्मत्राण कविता का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है ? | ![]() |