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पाठ का सार : अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

पाठ का सार 

बाइबिल के सोलोमन को कुरआन में सुलेमान कहा गया है। वे इर्सा से 1025 वर्ष पूर्व एक बादशाह थे। वे मनुष्य की ही नहीं पशु-पक्षियों की भी भाषा समझते थे। एक बार वे अपने लश्कर के साथ रास्ते से गुज़र रहे थे। रास्ते में कुछ चीटियाँ उनके घोडा़ें की आवाज़ सनु कर अपने बिलों की तरफ वापस चल पड़ीं। सुलेमान ने उनसे कहा, ‘घबराओ नहीं, सुलेमान को खुदा ने सबका रखवाला बनाया है। मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ। सबके लिए मुहब्बत हूँ।’ यह कहकर वे अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ने लगे।

सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाश ने अपनी आत्मकथा में लिखा है - एक दिन उनके पिता कुएँ से नहाकर लौटे तो माँ ने भोजन परोसा। उन्होंने जैसे ही रोटी का कौर तोड़ा, तो उन्हें अपनी बाजू पर एक चींटा दिखाई दिया। उसे देखकर वे उठ खड़े हुए। वे बोले मैंने एक घरवाले को बेघर कर दिया है। उस बेघर को कुएँ पर उसके घर छोड़ने जा रहा हूँ।

बाइबिल और दूसरे पावन ग्रंथों में नूह नाम के एक पैगंबर का ज़िक्र मिलता है। उनका असली नाम लशकर था। नूह के सामने से एक बार एक घायल कुत्ता गुज़रा। नूह ने उसे दुत्कारते हुए कहा, ‘दूर हो जा गंदे कुत्ते!’ इस पर कुत्ते ने जवाब दिया - न मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ, न तुम अपनी पसंद से इनसान हो। बनाने वाला सबका तो वही एक है। नूह उसकी बात सुनकर सारी उम्र रोते रहे। महाभारत में भी एक कुत्ते ने युध्ष्ठििर का अंत तक साथ दिया था।

यह दुनिया अस्तित्व में केसे आई? कहाँ से इसकी यात्रा शुरू हुई? इस प्रश्न का उत्तर विज्ञान तथा धर्मिक ग्रंथ अलग-अलग तरह से देते हैं। यह धरती किसी एक की नहीं है। सभी जीव-जंतुओं का इस पर समान अध्किार है। पहले पूरा संसार एक था। मनुष्य ने ही इसे टुकड़ों में बाँटा है। पहले लोग मिल-जुलकर रहते थे। अब वे बँट चुके हैं। बढ़ती हुई आबादी में समंदर को पीछे धकेल दिया है, पेड़ों को रास्ते से हटा दिया है। फैलते हुए प्रदूषण ने पंछियों को बस्तियों से भगाना शुरू कर दिया है। प्रकृति का रूप बदल गया है। लेखक की माँ कहती थीं कि सूरज ढले आँगन के पेड़ से पत्ते मत तोड़ो। दीया-बत्ती के वक्त फूल मत तोड़ो। दरिया पर जाओ तो उसे सलाम करो। कबूतरों को मत सताया करो। मुर्गे को परेशान मत किया करो। वह अज़ान दकेर सबको जगाता है।

लेखक बताते हैं कि ग्वालियर में उनका मकान था। उनके रोशनदान में कबूतर के जोड़े ने घोंसला बना लिया था। एक बार बिल्ली ने उसमें से एक अंडा तोड़ दिया। दूसरे अंडे की रक्षा करते समय वह अंडा लेखक की माँ से टूट गया। इस कृत्य के लिए उनकी माँ रोती रहीं। उन्होंने माफी के लिए रोज़ा रखा। बार-बार नमाज़ पढ़कर खुदा से इस गलती के लिए माफ करने की दुआ माँगती रहीं।

अब संसार में काफी बदलाव आ गए हैं। लेखक मुंबई के वर्सोवा इलाके में रहते थे। वहाँ समंदर किनारे बस्ती बन गई है। यहाँ से परिंदे दूर चले गए हैं। लोग उन्हें अपने घरों में घोंसला नहीं बनाने देते। उनके आने की खिड़की को बंद कर दिया गया है। अब इनका दुख बाँटने वाला कोई नहीं है।

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FAQs on पाठ का सार : अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले - Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

1. दुसरे के दुख से दुखी होने का मतलब क्या है?
उत्तर: दुसरे के दुख से दुखी होना एक इंसानी भावना है जिसका मतलब होता है कि जब हम किसी दूसरे व्यक्ति की दुख और तकलीफ को देखते हैं, तो हमें भी उससे दुःख होता है और हम उसके दर्द को महसूस करते हैं। इसका मतलब है कि हमारे मन और भावनाएं उस व्यक्ति के साथ सहयोग करती हैं और हम उसका दुख समझते हैं।
2. दुसरे के दुख से दुखी होने के कारण क्या हो सकते हैं?
उत्तर: दुसरे के दुख से दुखी होने के कारण अनेक हो सकते हैं। कई लोग संवेदनशील होते हैं और उनकी भावनाएं बहुत संवेदनशील होती हैं, इसलिए जब वे किसी को दुखी देखते हैं तो उन्हें भी दुःख होता है। दूसरे के दुख से दुखी होने का कारण यह भी हो सकता है कि हम एक दूसरे के साथ संबंध में रहते हैं और हमें उनके दुःख का असर उनके साथी होता है। इसके अलावा, समाज में सभी में एक मानवीयता की भावना होती है और हमें दुसरे के साथी के दर्द को अनुभव करने की क्षमता होती है।
3. दुसरे के दुख से दुखी होने का कोई सामाजिक या मनोवैज्ञानिक असर होता है?
उत्तर: हाँ, दुसरे के दुख से दुखी होने का एक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक असर होता है। सामाजिक दृष्टिकोण से, यह भावना हमारी संघटना में समाविष्ट होती है और हमें सामाजिक अस्तित्व से जोड़ती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह भावना हमारे मन की स्थिति को प्रभावित करती है और हमारे सामाजिक और पारिवारिक संबंधों की गहराई को दिखाती है।
4. दुसरे के दुख से दुखी होने के फायदे क्या हैं?
उत्तर: दुसरे के दुख से दुखी होने का एक महत्वपूर्ण फायदा यह है कि यह हमें एक संवेदनशील और सहकारी मानवीय समाज की ओर ले जाता है। यह हमें दूसरों की समस्याओं को समझने और समर्थन करने की क्षमता प्रदान करता है। इसके अलावा, दुसरे के दुख से दुखी होने से हमारा रिश्ता और मजबूत हो सकता है और हमारी बातचीत और संबंधों में अधिक सम्मिलितता और सहयोग हो सकता है।
5. दुसरे के दुख से दुखी होने के बिना क्या हम एक संवेदनशील समाज बना सकते हैं?
उत्तर: जी हाँ, दुसरे के दुख से दुखी होने के बिना भी हम एक संवेदनशील समाज बना सकते हैं। हमें दूसरों की समस्याओं को समझने की क्षमता और समर्थन करने की आवश्यकता होती है। हमें दूसरों के साथ सहयोग करना चाहिए और उन्हें उनके दुख में सहायता प्रदान करनी चाहिए। इसके अलावा, हमें दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और उनके साथ संवाद करना चाहिए। इससे हम एक संवेदनशील समाज का निर
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