UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  वैष्णव धर्म का विकास क्रम और दक्षिण भारत में प्रसार - भागवत और ब्राह्मण धर्म, इतिहास, सिविल सेवा

वैष्णव धर्म का विकास क्रम और दक्षिण भारत में प्रसार - भागवत और ब्राह्मण धर्म, इतिहास, सिविल सेवा | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

 वैष्णव धर्म का विकास क्रम

  • भागवत धर्म का केन्द्र बिन्दु भगवत् या विष्णु की पूजा है। इसका उद्भव मौर्योत्तर काल में माना जाता है।
  • वैदिक काल में विष्णु एक गौण देवता थे। उन्हें सूर्य के प्रतिरूप में उर्वरता-पंथ का देवता माना जाता था।
  • ईसा-पूर्व दूसरी शताब्दी में आकर विष्णु एक अवैदिक कबायली देवता नारायण के साथ अभिन्न होकर नारायण विष्णु कहलाने लगे।
  • नारायण मूलतः एक अवैदिक कबायली देवता थे जिन्हें भगवत् के संबोधन से पुकारा जाता था और उनके उपासक भागवत कहलाते थे।
  • भगवत् की कल्पना कबायली सरदार के दिव्य स्वरूप के रूप में की गई थी।
  • कबायली जनों का विश्वास था कि जिस प्रकार कबायली सरदार स्वजनों से प्राप्त भेंटों को अपने कबीले में बराबर-बराबर हिस्से में बाँट देता है, उसी प्रकार नारायण या भगवत् हिस्सा या भाग अपने भक्तों के बीउनकी भक्ति के अनुसार बाँट देता है।
  • इसी समय एक और उपास्य देव विष्णु से आकर एकाकार होते हैं जिन्हें हम वासुदेव कृष्ण के नाम से जानते हैं।
  • इस प्रकार ये तीनों उपास्य देव मिलकर एक नये सम्प्रदाय भागवत को जन्म देते हैं।
  • छठी शताब्दी ई. पू. में जब भारत में जैन और बौद्ध धर्म के विकास व उदय की प्रक्रिया चल रही थी, उस समय पश्चिम भारत में अंधक वृष्णियों से संबंधित सात्त्वत जाति (यादवों की एक शाखा) ने एक ऐसे सम्प्रदाय को जन्म दिया, जिसने मोक्ष हेतु भक्ति मार्ग पर बल दिया। सात्त्वतों का यह धर्म वैष्णव के नाम से जाना गया। वासुदेव कृष्ण की उपासना ही इसके मूल में था।
  • वासुदेव कृष्ण का भगवान विष्णु से तादात्म्य की प्रक्रिया सर्वप्रथम भगवद्गीता की रचना के समय दृष्टिगोचर हुआ। कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिखाये गये विराट स्वरूप को गीता में कृष्ण के वैष्णव रूप में उल्लिखित किया गया है। वस्तुतः इसी समय से वासुदेव-धर्म या भागवत-धर्म को वैष्णव-धर्म के नाम से जाना गया।
  • सर्वप्रथम बोधायन धर्मसूत्र में नारायण की साम्यता विष्णु से की गई है।
  • तैतिरीय आरण्यक के दसवें पाठ में ‘नारायण-विदमहे- वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्’ कहा गया है। यहाँ पर नारायण, वासुदेव व विष्णु एक ही देवता हैं।
  • डाॅ. आर. जी. भंडारकर ने इस संबंध में लिखा है, ”उत्तर ब्राह्मण काल में परम-पुरुष के रूप में विकसित नारायण वस्तुतः वासुदेव से पूर्ववर्ती थे। महाकाव्य काल में जब वासुदेव की पूजा का उदय हुआ तो नारायण के साथ वासुदेव का तादात्म्य स्थापित किया गया“।
  • वैष्णव धर्म से संबंधित लेखों, पतंजलि कृत महाभाष्य और महाभारत के नारायणीय पर्व में गोपाल-कृष्ण के तादात्म्य का कोई उल्लेख नहीं आया है। नारायणीय पर्व में वासुदेव के अवतार को कंस-वध के लिए बतलाया गया है न कि गोकुल के दैत्यों के वध के लिए। किंतु हरिवंश पुराण, वायुपुराण, भागवत पुराण आदि में वासुदेवावतार या कृष्णावतार का उल्लेख गोकुल के सभी दैत्यों और कंस के वध के लिए ही किया गया है।
  • इसी आधार पर डाॅ. भंडारकर कहते हैं, ”इस अंतर से स्पष्ट है कि जिस समय इन ग्रंथों की रचना हुई थी उस समय तक गोकुल में कृष्ण की कथा प्रचलित हो चुकी होगी और वासुदेव से उसका तादात्म्य हो गया होगा और तीसरी सदी ई. तक उच्राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने वाली आभीर जाति ने ही प्रथम सदी ई. में बालक कृष्ण की पूजा की प्रथा आरंभ की होगी“।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि अमीरों के स्वतंत्र शिथिल आचरण के फलस्वरूप ही भागवत-धर्म या वासुदेव-धर्म में गोपी-कृष्ण लीला संबंधी दंतकथाओं का समावेश हो गया होगा।
  • महाभारत के आदिपर्व में कृष्ण को गोविन्द के नाम से पुकारा गया है। इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि श्रीकृष्ण ने अपने वराह रूप में पृथ्वी को जल से बाहर निकाला था।
  • गोविन्द मूलरूप से प्राकृत भाषा से लिया गया है। संस्कृत में इसके लिए गोपेन्द्र शब्द है जिसका अर्थ गो-रक्षक होता है। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि कृष्ण के शक्तिशाली हो जाने पर उन्हें इन्द्र के विशेषण गोविन्द शब्द से पुकारा जाने लगा होगा। 
  • इस प्रकार हम देखते हैं कि जिस वासुदेव मत से वैष्णव-धर्म का उत्कर्ष हुआ था वह पौराणिक काल तक आते-आते धार्मिक चिन्तन की तीन धाराओं से प्रभावित हुआ। प्रथम धारा के मूल में वैदिक देवता विष्णु थे। द्वितीय धारा के मूल में विराट कबायली पुरुष नारायण थे और तृतीय धारा ऐतिहासिक पुरुष वासुदेव अर्थात् कृष्ण से निःसृत हुई थी। इस तरह तीन धाराओं के सम्मिश्रण ने उत्तरकालीन वैष्णव मत को जन्म दिया।
  • उत्तरकालीन वैष्णव मत में चैथी चिन्तन धारा ‘गोपाल-कृष्ण धारा’ का सम्मिश्रण, उत्तरकालीन कतिपय वैष्णव सम्प्रदायों में अत्यधिक महत्त्व की दृष्टि से देखा गया।

वैष्णव धर्म का सिद्धांत

  • वैष्णव धर्म के प्रारंभिक सिद्धांत हमें भगवद्गीता से प्राप्त होते हैं। इसमें वासुदेव-कृष्ण-विष्णु के प्रति एकनिष्ट भक्ति का उपदेश दिया गया है।
  • इसमें ज्ञान और कर्म का समन्वय करते हुए भक्तिमार्ग का प्रतिपादन किया गया है। इसके तहत सांख्य व योग के दर्शन को स्वीकार किया गया है।
  • गीता में जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष को बताते हुए उसकी प्राप्ति के लिए ज्ञान व कर्म योग के समन्वित भक्तिमार्ग को स्वीकार करने का उपदेश दिया गया है।
  • वैष्णव धर्म का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत चतुव्र्यूह का सिद्धांत है जिसके तहत पाँवृष्णिवंशीय वीरों की पूजा पर बल दिया गया है।
  • मथुरा के निकट मोर नामक स्थान से प्रथम सदी ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है जिसमें पाँवृष्णिवंशीय वीरों का वर्णन है।
  • वायुपुराण में वासुदेव व देवकी के संगम से उत्पन्न पुत्र वासुदेव, वासुदेव व रोहिणी के संगम से उत्पन्न पुत्र संकर्षण, रुकमणी और वासुदेव से उत्पन्न पुत्र प्रद्युमन, वासुदेव व जावंती से उत्पन्न पुत्र साम्ब व प्रद्युमन के पुत्र अनिरुद्ध का वर्णन मिलता है।
  • इनमें वासुदेव को परमात्मा, व अन्यों को उनका व्यूह माना गया है।
  • संकर्षण, अनिरुद्ध व प्रद्युमन को क्रमशः जीव, अहंकार एवं मन व बुद्धि के रूप में प्रस्तुत किया गया है। दरअसल इनकी उत्पत्ति भी वासुदेव-कृष्ण से ही मान लेने के कारण ये व्यूह कहलाए।
  • वासुदेव-कृष्ण की उपासना पट, व्यूह, विभव, अन्तर्यामी एवं अर्चा इन पाँरूपों में की जाती थी।
  • जहाँ भगव०ीता में एकान्तिक भक्ति पर जोर दिया गया है वहीं पाँचरात्र मत में वासुदेव सहित उनके अन्य स्वरूपों की पूजा का प्रावधान भी है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह मत ई. पू. तीसरी सदी तक अस्तित्व में आ गया था।
  • इस मत में पाँचरात्र सत्र का आयोजन होता था। इस मत के पाँपदार्थ - परमतत्व, मुक्ति, युक्ति, भोग व विषय थे।
  • पाँदिन व रात तक चलने वाले अनुष्ठानात्मक यज्ञ को पाँचरात्र सत्र से विभूषित करते हैं।
  • चूँकि वैष्णव धर्मावलंबी मूर्ति-पूजा में विश्वास करते हैं, अतः विष्णु के विभिन्न अवतारों के लिए मंदिरों का निर्माण हुआ।
  • मंदिर-निर्माण में गुप्त-काल का सर्वाधिक योगदान रहा क्योंकि इस काल के अधिकांश शासक भागवत धर्म को मानने वाले थे।
  • इष्ट की मूर्ति को श्री विग्रह या अर्चा का नाम दिया गया। श्री विग्रह या अर्चा में साक्षात् विष्णु का स्वरूप देखकर उसकी पूजा-अर्चना वैष्णव मतावलम्बियों की पूजा का प्रमुख अंग था।
वासुदेवोपासना के प्रारंभिक साक्ष्य
  • पाणिनि के अष्टाध्यायी में, जो कि पाँचवी सदी ई. पू. की रचना है, वासुदेव पूजा का उल्लेख है। इसका अर्थ ‘वासुदेव पूज्य हैं ’ लिया जाता है।
  • दो सौ ई. पू. में उत्कीर्ण राजपूताना के घोसुण्डी शिलालेख में वासुदेव व संकर्षण के उपासना मण्डप के चारों ओर भित्ति चित्र के निर्माण का उल्लेख है।
  • ई. पू. द्वितीय सदी के बेसनगर से प्राप्त अभिलेख में हेलियोडोरस ने स्वयं को देवाधिदेव वासुदेव की प्रतिष्ठा में गरुड़ध्वज स्थापित करने वाला घोषित किया है। स्पष्टतः कृष्ण ई. पू. द्वितीय सदी तक देवाधिदेव के रूप में पूजित होने लगे थे और उनके उपासक भागवत कहलाने लगे थे।
  • मेगास्थनीज ने सूरसेन नामक भारतीय क्षत्रिय द्वारा हेरेक्वीज (कृष्ण) की उपासना का उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट है कि मौर्य काल से पूर्व ही वैष्णव-धर्म अस्तित्व में आ गया होगा।
  •  ई. पू. प्रथम सदी के नानाघाट गुहालेख संख्या एक में वासुदेव व संकर्षण की वन्दना की गई है।
  • गीता व भागवत पुराण में वासुदेव कृष्ण से संबंधित वैष्णव धर्म की विस्तृत व्याख्या मिलती है।
 ¯    महाभारत के नारायणीय पर्व में ऐसे धर्म का उल्लेख है जिसके सूत्रधार वासुदेव थे।
  • ओम नमो नारायण तथा ओम नमो भगवतो वासुदेवाय नामक मंत्रों से वासुदेव-कृष्ण-विष्णु का ध्यान व जाप करना वैष्णव धर्म के बाह्य आचरण का प्रमुख अंग था। इसमंे भजन, कीर्तन व तीर्थयात्रा उत्सवों के महत्व को भी स्वीकार किया गया।

अवतार की अवधारणा

  • महाभारत के नारायणीय पर्व में विष्णु के छः तथा बारह व अग्नि पुराण में दस अवतारों का वर्णन मिलता है। भागवत पुराण में 22 अवतारों का उल्लेख मिलता है।
  • परंतु विष्णु के दस अवतारों का विशेष महत्व है जिनका संबंध पृथ्वी से पापियों के नाश के लिए समय-समय पर अवतरित दिखाया गया है।
  • विष्णु के अवतारों में सर्वप्रथम मत्स्यावतार का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। इस संबंध में कहा गया है कि पृथ्वी के जलमग्न हो जाने पर सृष्टि के क्रम को पुनःस्थापित करने के लिए विष्णु मत्स्यावतार लेकर जलमग्न पृथ्वी से मनु, उनके परिवार के सदस्यों और सप्त ऋषियों को नौका पर बैठाकर अपने पीठ के सहारे बचाकर ले आए थे। उन्होंने बाढ़ से वेदों को भी बचाया था।
     

कुछ विशेष तथ्य

  • पर: यह वासुदेव का सर्वोच्स्वरूप था।
  • व्यूह: पाँवृष्णिवंशीय वीर।
  • विभव: वासुदेव, कृष्ण का अवतार ग्रहण करनेवाला स्वरूप विभव था।
  • अंतर्यामी: इस स्वरूप में यह माना गया है कि वासुदेव-विष्णु सम्पूर्ण संसार पर नियंत्रण रखते हैं।
  • अर्चा: इसका संबंध वैष्णव-धर्म के बाह्य आचरण से है।
  • पृथ्वी के जलमग्न हो जाने के कारण पृथ्वी की बहुतेरे अमूल्य वस्तुएँ समुद्र के गर्भ में समा गए थे। इसमें अमृत भी शामिल था जिसे पीकर देवगण अमर हो गए थे। इन वस्तुओं को फिर से प्राप्त करने के लिए देवताओं और दानवों ने समुद्र-मंथन किया था। इसी समुद्र-मंथन को अंजाम देने के लिए विष्णु ने दूसरा अवतार कूर्म (कछुआ) के रूप में लिया। देवताओं ने उनके पीठ पर मंदराचल पर्वत को रखकर नागराज वासुकि को मंदराचल पर्वत में लपेटकर समुद्र-मंथन किया। समुद्र-मंथन के क्रम में देवताओं ने अमृत और अन्य वस्तुओं के साथ देवी लक्ष्मी को भी प्राप्त किया और अमृत के बँटवारे के नाम पर दानवों से युद्ध किया और जीत हासिल की। वैसे यह कहानी शुरू में ही प्रचलित हो गई थी परंतु कूर्म अवतार के रूप में विष्णु की पहचान काफी बाद में हुई।
  • दानव हिरण्याक्ष द्वारा पृथ्वी को विश्व सिंधु में डुबो दिये जाने पर पृथ्वी के उद्धार के लिए विष्णु ने वराह का रूप धारण किया और पृथ्वी को अपने दाँतों से उठाकर यथास्थान रख दिया। वराहावतार के रूप में विष्णु की पूजा गुप्तकाल में भारत के कुछ भागों में विशेष तौर पर होती थी।
  • नरसिंह अवतार के रूप में विष्णु की अवधारणा बालक प्रह्लाद को अपने पिता दानव नरेश हिरण्यकशिपु के हाथों मृत्यु से बचाने के लिए की गई। ऐसा कहा जाता है कि हिरण्यकशिपु ने ब्रह्मा से यह वरदान माँग लिया था कि वह न तो दिन में, न रात्रि के किसी पहर में, न किसी देव, न मानव और न किसी पशु के हाथों ही मारा जा सके। इस वरदान की प्राप्ति के बाद हिरण्यकशिपु पृथ्वी लोक में अत्याचार करने लगा। यहाँ तक कि अपने विष्णु भक्त पुत्र प्रह्लाद को भी विष्णु की भक्ति के लिए मारने का प्रयास किया था। फलतः स्वयं भगवन् विष्णु ने अर्धभाग सिंह तथा अर्धभाग मनुष्य का रूप धर कर सांध्य धूमिल वेला में दहलीज पर हिरण्यकशिपु का वध कर पृथ्वी लोक को उसके अत्याचारों से त्राण दिलवायी।
  • राक्षसराज बलि के अत्यधिक दान-तप आदि से डरकर देवताओं ने भगवन् विष्णु से उसके प्रभामंडल को समाप्त करने के लिए प्रार्थना की। देवताओं के प्रार्थना को ध्यान में रखकर विष्णु ने वामन का रूप धारण किया और बलि से तीन पग भूमि की माँग की। बलि द्वारा दान की याचना स्वीकार करने पर विष्णु ने अपना विशाल रूप धारण कर एक पग से आकाश, एक से पृथ्वी नाप दी और तीसरे पग में बलि के पूरे शरीर को नाप कर उसे पाताल-लोक में भेज दिया। इस प्रकार बलि को अपने नियंत्रण में लाकर देवताओं के अस्तित्व की रक्षा की। विष्णु के तीन पग की चर्चा तो ऋग्वेद में भी मिलता है परंतु आख्यान की अन्य बातें बाद में जोड़ दी गई।
  • पौराणिक आख्यानों के अनुसार विष्णु ने मानव रूप में ब्राह्मण जमदग्नि के पुत्र परशुराम के रूप में अवतार लिया। कार्तवीर्य नामक क्षत्रिय राजा द्वारा जमदग्नि और अन्य ब्राह्मणों को तंग किये जाने के कारण परशुराम ने उसकी हत्या कर दी। प्रत्युत्तर में कार्तवीर्य के पुत्रों ने जमदग्नि की हत्या की थी। इससे गुस्से में आकर परशुराम ने सम्पूर्ण पृथ्वी को क्षत्रियविहीन करने की ठान ली और 21 बार अपने इस संकल्प को पूरा किया।
  • दशरथ के पुत्र और रामायण के नायक राम का अवतरण श्रीलंका के राजा रावण के अत्याचारों से मानव जाति को बचाने के लिए हुआ था। रामावतार की अवधारणा भारत में मुस्लिम राज्य के समय प्रचलित हुई।
  • कृष्णावतार की अवधारणा विष्णु के सभी अवतारों में विशेष रूप से लोकप्रिय हुआ है। इस अवतार का उद्देश्य कंस जैसे दानवों का वध कर मानवता व लोक कल्याण की रक्षा करना था। बाद में इसी कृष्ण ने पाण्डवों को कौरवों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए प्रेरित किया और युद्ध भूमि में ही अर्जुन को श्रीमद् भागवद् गीता का उपदेश दिया। यही गीता आगे चलकर भागवत धर्म का आधार बनी।
  • बुद्ध के रूप में भगवान विष्णु का अन्तिम ऐतिहासिक अवतरण हुआ। जयदेव के गीत गोविन्द के अनुसार वैदिक यज्ञ व कर्मकाण्डों में होने वाली बलि आदि हिंसकड्डकृत्यों को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने बुद्ध के रूप में अवतार लिया और अहिंसा का पालन करते हुए मध्यम मार्ग के अनुसरण पर जोर दिया।
  • पौराणिक विवरण के आधार पर माना जाता है कि विष्णु का कल्कि अवतार कलियुग के अंतिम चरण में होगा। इस अवतरण में विष्णु श्वेत अश्व पर सवार होकर प्रज्वलित खड़ग धारण कर मानव के रूप में अवतार लेंगे और स्वर्णयुग की पुनःस्थापना कर मानव जाति का कल्याण करेंगे।

वैष्णव धर्म का दक्षिण भारत में प्रसार

  • दक्षिण भारत में वैष्णव आंदोलन गुप्तकाल के अंतिम समय से 13वीं शताब्दी के बीफैला।
  • आलवर के नाम से प्रचलित वैष्णव संत कवियों ने एकनिष्ठ होकर विष्णु की आराधना पदों में शुरू की और उनके पदों के संग्रह को प्रबंध के नाम से जाना गया।
  • श्री वैष्णवाचार्य के नाम से प्रचलित वैष्णव धर्म प्रचारकों ने विष्णु भक्ति को एक सम्प्रदाय के रूप में विकसित होने में काफी सहायता की।
  • दक्षिण भारत के 12 आलवरों में सबसे प्रसिद्ध दो - नम्मालवर और तिरुमलिशाई आलवर थे जबकि आचार्यों में प्रसिद्ध यमुनाचार्य और रामानुजाचार्य शामिल थे।
  • आलवरगण दक्षिण भारतीय वैष्णव धर्म के भाव-पक्ष का प्रतिनिधित्व करते थे जबकि आचार्यगण बौद्धिक पक्ष का।
  • शंकराचार्य के अद्वैतवाद के प्रत्युत्तर में यमुनाचार्य और रामानुजाचार्य ने उपनिषदों के सहारे एक अन्य वाद विशिष्टाद्वैत की नींव रखी।
  • रामानुजाचार्य के तुरंत बाद लगभग ग्यारहवीं शताब्दी ई. में अन्य दो आचार्यों माधव और निम्बार्क ने ब्रह्म संप्रदाय और सनकादि संप्रदाय की स्थापना की।
  • ब्रह्म संप्रदाय ने द्वैतवाद और सनकादि संप्रदाय ने द्वैताद्वैतवाद के लिए वैष्णव धर्म में आधार-भूमि तैयार किया।
  • निम्बार्काचार्य ने, जो अपने जीवन का अधिकांश समय थुरा में बिताया, राधा-कृष्ण की आराधना पर जोर दिया।
The document वैष्णव धर्म का विकास क्रम और दक्षिण भारत में प्रसार - भागवत और ब्राह्मण धर्म, इतिहास, सिविल सेवा | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
398 videos|676 docs|372 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on वैष्णव धर्म का विकास क्रम और दक्षिण भारत में प्रसार - भागवत और ब्राह्मण धर्म, इतिहास, सिविल सेवा - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. वैष्णव धर्म क्या है और यह कैसे विकसित हुआ?
उत्तर: वैष्णव धर्म एक प्रमुख सनातन धर्म है जो भारतीय सभ्यता में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह धर्म विष्णु भगवान के पूजन और उपासना पर आधारित है। इसकी विकास क्रमश: भागवत और ब्राह्मण धर्म के रूप में हुआ, जहां विष्णु भगवान को मानवीय रूप में पूजा जाता था। यह धर्म प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है और विभिन्न प्रांतों में विभाजित होकर प्रसारित हुआ।
2. भागवत और ब्राह्मण धर्म में क्या अंतर है?
उत्तर: भागवत धर्म और ब्राह्मण धर्म दोनों ही वैष्णव धर्म के अंश हैं, लेकिन उनमें थोड़ा अंतर है। भागवत धर्म में विष्णु भगवान की भक्ति और पूजा का ज्ञानाधारित अध्ययन किया जाता है, जबकि ब्राह्मण धर्म में विष्णु भगवान के मानवीय रूप की पूजा और उपासना का महत्व दिया जाता है।
3. दक्षिण भारत में वैष्णव धर्म का प्रसार कैसे हुआ?
उत्तर: दक्षिण भारत में वैष्णव धर्म का प्रसार विभिन्न कालों में हुआ। भागवत पुराण और ब्रह्म सूत्रों के अध्ययन के माध्यम से वैष्णव धर्म की महत्वपूर्ण संस्कृति और उपासना को लोगों तक पहुंचाया गया। वैष्णव संतों और आचार्यों के द्वारा इस धर्म की प्रचार प्रसार की गई और यह दक्षिण भारत में व्यापक रूप से फैल गया।
4. वैष्णव धर्म का इतिहास क्या है?
उत्तर: वैष्णव धर्म का इतिहास बहुत पुराना है और इसे प्राचीन काल से ही मान्यता प्राप्त है। विष्णु पुराण का ज्ञान, वैष्णव संतों की बानी, वेदों के उपासना और वैष्णव साहित्य के माध्यम से इस धर्म का विकास हुआ। इसके साथ ही, वैष्णव धर्म को भारतीय इतिहास, संस्कृति और तांत्रिक परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
5. सिविल सेवा UPSC परीक्षा में वैष्णव धर्म के बारे में प्रश्न पूछे जाते हैं क्या?
उत्तर: हां, सिविल सेवा UPSC परीक्षा में वैष्णव धर्म के बारे में प्रश्न पूछे जा सकते हैं। यह परीक्षा भारतीय संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाती है और इसमें भारतीय इतिहास, संस्कृति, धर्म और साहित्य के प्रश्न शामिल हो सकते हैं। इसलिए, वैष्णव धर्म के बारे में बेहतर ज्ञान होना उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
398 videos|676 docs|372 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

video lectures

,

ppt

,

इतिहास

,

इतिहास

,

study material

,

Extra Questions

,

Objective type Questions

,

past year papers

,

सिविल सेवा | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

practice quizzes

,

pdf

,

Viva Questions

,

Sample Paper

,

mock tests for examination

,

Previous Year Questions with Solutions

,

सिविल सेवा | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

shortcuts and tricks

,

Summary

,

सिविल सेवा | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Free

,

Semester Notes

,

Important questions

,

इतिहास

,

Exam

,

वैष्णव धर्म का विकास क्रम और दक्षिण भारत में प्रसार - भागवत और ब्राह्मण धर्म

,

वैष्णव धर्म का विकास क्रम और दक्षिण भारत में प्रसार - भागवत और ब्राह्मण धर्म

,

MCQs

,

वैष्णव धर्म का विकास क्रम और दक्षिण भारत में प्रसार - भागवत और ब्राह्मण धर्म

;